“UAPA मामलों में गवाह के बयानों के पूर्ण रूप से छुपाए जाने पर रोक: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला”
(Mohammed Asarudeen बनाम भारत संघ एवं अन्य)
पूरा लेख:
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने Mohammed Asarudeen Versus Union of India & Others मामले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मौलिक अधिकारों से संबंधित निर्णय दिया है। इस निर्णय में Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (UAPA) के तहत दर्ज मामलों में गवाहों के बयानों को पूरी तरह गोपनीय रखने की नीति को अवैध और असंवैधानिक बताया गया है।
प्रकरण का सार:
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा गवाहों के बयानों को पूरी तरह छुपाना, उसके न्यायिक सुनवाई के अधिकार (Right to Fair Trial) का उल्लंघन करता है। राज्य पक्ष ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इन बयानों को साझा करने से इनकार किया।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- UAPA जैसे कठोर कानूनों के अंतर्गत भी अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का मूल अधिकार है, जिसमें गवाहों के बयानों की जानकारी शामिल है।
- “Blanket Ban” यानी सभी गवाह बयानों को बिना किसी भिन्नता के पूरी तरह छुपा देना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।
- यदि गवाह की जान या सुरक्षा को वास्तविक खतरा है, तो ऐसे मामलों में “Individualised Assessment” यानी व्यक्तिगत स्तर पर मूल्यांकन अनिवार्य है।
- किसी भी गवाह के बयान को रक्षा पक्ष (defence) से छिपाने से पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि
- उस गवाह को वास्तविक खतरा है,
- ऐसा प्रतिबंध उचित और न्यूनतम आवश्यक स्तर पर आधारित है।
अदालत का निष्कर्ष:
“Unlawful Activities (Prevention) Act के तहत भी अभियुक्त को निष्पक्ष प्रक्रिया और जानकारी तक पहुंच का अधिकार है। गवाहों के बयानों को सामान्य रूप से और बिना विश्लेषण के गोपनीय रखना, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।“
महत्वपूर्ण सिद्धांत जो स्थापित हुए:
- निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार सर्वोपरि है।
- राज्य को हर एक गवाह की सुरक्षा का मूल्यांकन अलग से करना होगा।
- सुरक्षा कारणों से बयान छुपाने की अनुमति तभी दी जा सकती है, जब स्पष्ट और ठोस आधार हो।
निष्कर्ष:
यह निर्णय न केवल UAPA जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत दर्ज मामलों में अभियुक्तों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को भी सुनिश्चित करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह भी संकेत देता है कि सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यावश्यक है, और केवल कानून की कठोरता के नाम पर मूलभूत अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।