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Tort के आवश्यक तत्व तथा Contract और Crime से इसका भेद

Tort के आवश्यक तत्व तथा Contract और Crime से इसका भेद

भूमिका

भारतीय विधि व्यवस्था में कानूनी उत्तरदायित्व तीन प्रमुख क्षेत्रों में बंटा हुआ है—Contract (अनुबंध), Crime (अपराध), और Tort (नागरिक हानि/अपराधिकेतर दायित्व)। इन तीनों का आधार भिन्न होते हुए भी एक-दूसरे से गहराई से जुड़ा है। Tort Law को सामान्यत: “civil wrong” कहा जाता है, जो किसी व्यक्ति के कानूनी अधिकार के उल्लंघन पर आधारित होता है। Tort कानून मुख्यतः क्षतिपूर्ति (compensation) के सिद्धांत पर चलता है। इसके विपरीत, Contract पक्षकारों के बीच स्वेच्छा से बने समझौते पर आधारित होता है, जबकि Crime समाज के विरुद्ध किया गया गंभीर कानूनी अपराध है जिसमें राज्य (State) कार्यवाही करता है।

इस लेख में पहले हम Tort के आवश्यक तत्वों की चर्चा करेंगे और तत्पश्चात इसे Contract और Crime से भिन्न करके समझेंगे।


Tort की परिभाषा

“Tort” शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द tortum से हुई है, जिसका अर्थ है “मुड़ा हुआ” या “गलत”। विधि की दृष्टि से Tort को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है—

“A civil wrong, not exclusively the breach of a contract or a breach of trust or merely an equitable obligation, but a wrong which the law recognizes as actionable and for which remedy lies in the form of unliquidated damages.”

सरल शब्दों में, Tort वह नागरिक हानि है जिसमें किसी व्यक्ति का कानूनी अधिकार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उल्लंघित होता है और पीड़ित व्यक्ति न्यायालय से क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।


Tort के आवश्यक तत्व (Essentials of Tort)

1. किसी कानूनी अधिकार का उल्लंघन (Violation of Legal Right)

Tort तभी उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति के कानूनी रूप से संरक्षित अधिकार का हनन हो। केवल नैतिक या सामाजिक अधिकार का उल्लंघन Tort नहीं कहलाता।

  • उदाहरण: Ashby v. White (1703) में वादी को मतदान से रोका गया था। यद्यपि इससे प्रत्यक्ष हानि नहीं हुई, फिर भी यह कानूनी अधिकार का हनन था और वादी को हर्जाना मिला।

2. कानून द्वारा मान्यता प्राप्त दायित्व का उल्लंघन (Breach of Duty Recognised by Law)

Tort में दायित्व ऐसा होना चाहिए जिसे कानून मान्यता देता हो। यह दायित्व किसी विशिष्ट व्यक्ति के प्रति न होकर संपूर्ण समाज के प्रति हो सकता है।

3. दायित्व का उल्लंघन किसी व्यक्ति के प्रति हानि पहुँचाए (Injury to the Plaintiff)

Tort में प्रतिवादी के आचरण से वादी को कानूनी हानि (legal injury) होनी चाहिए। हानि भौतिक (Physical), मानसिक (Mental), वित्तीय (Financial) या प्रतिष्ठा (Reputation) से जुड़ी हो सकती है।

4. हानि के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार (Right to Claim Compensation)

Tort का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पीड़ित व्यक्ति न्यायालय से Unliquidated Damages (पूर्व निर्धारित न होकर न्यायालय द्वारा तय हर्जाना) प्राप्त कर सकता है।

5. Mens Rea की आवश्यकता नहीं (Absence of Necessity of Mens Rea)

Tort में अधिकांश मामलों में Mens Rea (दोषपूर्ण मनोभाव) आवश्यक नहीं होता। यदि किसी ने लापरवाही या चूक के कारण हानि पहुंचाई, तब भी Tort उत्पन्न होगा।

  • जैसे: Rylands v. Fletcher (1868) में प्रतिवादी ने अपने जमीन पर जलाशय बनाया, जिससे पानी रिसकर वादी की खदान में भर गया। यहाँ प्रतिवादी की नियत बुरी नहीं थी, फिर भी वह उत्तरदायी ठहराया गया।

6. नागरिक प्रकृति (Civil Nature of Wrong)

Tort एक Civil Wrong है। इसमें कार्यवाही पीड़ित व्यक्ति द्वारा की जाती है और उद्देश्य क्षतिपूर्ति प्राप्त करना होता है, न कि अपराधी को दंडित करना।


Tort, Contract और Crime में भेद

अब हम Tort की तुलना अन्य दो प्रमुख विधिक क्षेत्रों—Contract और Crime—से करेंगे।

(A) Tort और Contract में भेद

  1. दायित्व का आधार
    • Tort: दायित्व कानून द्वारा आरोपित होता है।
    • Contract: दायित्व पक्षकारों की सहमति से उत्पन्न होता है।
  2. पक्षकारों का स्वरूप
    • Tort: प्रतिवादी का दायित्व अनिर्दिष्ट व्यक्तियों के प्रति होता है।
    • Contract: दायित्व केवल उन व्यक्तियों के प्रति होता है जिन्होंने अनुबंध किया है।
  3. Mens Rea का महत्व
    • Tort: प्रायः Mens Rea आवश्यक नहीं।
    • Contract: यहाँ नियत महत्वहीन है, केवल शर्तों का उल्लंघन मायने रखता है।
  4. Remedy
    • Tort: Unliquidated damages (न्यायालय द्वारा तय हर्जाना)।
    • Contract: Liquidated damages या अनुबंध में पूर्वनिर्धारित उपाय।
  5. उद्देश्य
    • Tort: पीड़ित की क्षतिपूर्ति करना।
    • Contract: पक्षकारों की सहमति का पालन सुनिश्चित करना।
  6. उदाहरण
    • Tort: किसी का मानहानि करना, लापरवाही से दुर्घटना।
    • Contract: समय पर माल की आपूर्ति न करना, भुगतान न करना।

(B) Tort और Crime में भेद

  1. दायित्व का स्वरूप
    • Tort: दायित्व निजी व्यक्ति के प्रति।
    • Crime: दायित्व समाज या राज्य के प्रति।
  2. कार्रवाई कौन करता है
    • Tort: वादी (पीड़ित व्यक्ति) कार्यवाही करता है।
    • Crime: राज्य कार्यवाही करता है, भले ही पीड़ित व्यक्ति सहमत न हो।
  3. Remedy/Relief
    • Tort: क्षतिपूर्ति (damages)।
    • Crime: दंड (punishment)—जैसे कारावास, जुर्माना, मृत्यु-दंड।
  4. Mens Rea का महत्व
    • Tort: हर मामले में आवश्यक नहीं।
    • Crime: प्रायः Mens Rea अनिवार्य होता है।
  5. प्रक्रिया
    • Tort: दीवानी न्यायालय में मुकदमा।
    • Crime: फौजदारी न्यायालय में मुकदमा।
  6. उदाहरण
    • Tort: सड़क दुर्घटना में लापरवाही।
    • Crime: हत्या, चोरी, डकैती।

न्यायालयीन दृष्टांत (Case Laws)

  1. Ashby v. White (1703) – मतदान के अधिकार का उल्लंघन भी Tort है।
  2. Donoghue v. Stevenson (1932)Neighbour Principle स्थापित; निर्माता उपभोक्ता के प्रति उत्तरदायी।
  3. Rylands v. Fletcher (1868)Strict Liability का सिद्धांत।
  4. M.C. Mehta v. Union of India (1987) – भारत में Absolute Liability का सिद्धांत।

निष्कर्ष

Tort, Contract और Crime—तीनों ही विधि की अलग-अलग शाखाएँ हैं।

  • Tort व्यक्ति के कानूनी अधिकारों की रक्षा करता है और पीड़ित को क्षतिपूर्ति दिलाने पर केंद्रित है।
  • Contract पक्षकारों के बीच सहमति पर आधारित है और इसका उद्देश्य अनुबंधीय वचनबद्धता को सुनिश्चित करना है।
  • Crime पूरे समाज के विरुद्ध एक गंभीर अपराध है, जिसमें राज्य स्वयं आगे आकर अपराधी को दंडित करता है।

इस प्रकार, इन तीनों के बीच स्पष्ट भेद होते हुए भी वे न्याय व्यवस्था की रीढ़ हैं और मिलकर समाज में न्याय, संतुलन और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हैं।