कराधान विधियाँ (TAXATION LAWS)
-: लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1. ‘आय’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Income!?
उत्तर- आय (Income) – ‘आय’ शब्द की परिभाषा आयकर अधिनियम, 1961 में कही भी नहीं दी गयी है। अधिनियम की धारा 2 (24) केवल यह बतलाती है कि आय में क्या-क्या शामिल किया जाता है। वैसे सामान्य अर्थों में आय (Income) से तात्पर्य किसी सुनिश्चित स्रोत से समय-समय पर प्राप्त होने वाले धन या धन के मूल्य से लगाया जाता है। आप के अन्तर्गत (i) लाभ और अभिलाभ, (ii) लाभांश, (iii) वेतन, (iv) कोई विशेष भत्ता, (v) करदाता को स्वीकृत कोई भत्ता, (vi) पूँजी लाभ जो धारा 45 के अन्तर्गत कर योग्य है, (vii) लाटरी, क्रासवर्ड पहेली, दौड़ (घुड़दौड़ सहित) ताश के खेल व अन्य किसी प्रकार के जुए या सट्टे से प्राप्त कोई राशि आय मानी जाती है।
प्रश्न 2. निर्धारिती को परिभाषित कीजिए। Define Assessee.
उत्तर- निर्धारिती (Assessee ) — आयकर अधिनियम की धारा 2 (7) के अनुसार, ‘निर्धारिती’ शब्द से अभिप्राय एक ऐसे व्यक्ति से है जिसके द्वारा कर अथवा धनराशि जैसे- शास्ति एवं ब्याज इस अधिनियम के अन्तर्गत देय है और उसमें निम्नलिखित भी सम्मिलित होंगे-
(क) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति जिनकी आय अथवा उसे वेतन के अतिरिक्त प्राप्त हुए लाभ के निर्धारण अथवा किसी अन्य व्यक्ति की आय जिसके लिए वह कर निर्धारण योग्य है अथवा उसके द्वारा उठायी गयी हानि या उसको देय वापसी की राशि निर्धारण के लिए इस अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही प्रारम्भ की गयी है, चाहे उसके द्वारा कोई कर देय हो अथवा न हो।
(ख) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्धारिती माना गया है, धारा 160 के अन्तर्गत मृत व्यक्ति का वैध प्रतिनिधि उस कर के सम्बन्ध में एक निर्धारिती माना जायेगा, जो कि मृत व्यक्ति के द्वारा प्रदेय हो।
(ग) एक अवयस्क का संरक्षक या प्रबन्धक अथवा एक पागल व्यक्ति का संरक्षक या प्रबन्धक उस कर के बारे में एक निर्धारिती माना जायेगा जो कि उस अवयस्क अथवा पागल व्यक्ति द्वारा देय हो।
(घ) ऐसा व्यक्ति जो कि इस अधिनियम के किसी भी उपबन्ध के अधीन ‘चूक घटित करने के कारण निर्धारिती कहे जाने के योग्य हो।
प्रश्न 3. कर निर्धारण वर्ष से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Assessment Year.
उत्तर– कर निर्धारण वर्ष (Assessment Year) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(छ) के अनुसार, कर निर्धारण वर्ष से अभिप्राय ऐसे 12 महीने के समय से है, जो प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल को प्रारम्भ होता है। इस वर्ष को आय कर वर्ष की संज्ञा भी दी जाती है। इस प्रकार यह वर्ष वित्त वर्ष है, जो कि पहली अप्रैल को प्रारम्भ होता हो और आगे आने वाले 31 मार्च को समाप्त होता है। जैसे—कर निर्धारण वर्ष 2012-13 यह वर्ष है जो कि पहली अप्रैल, 2012 को शुरू होता है और 31 मार्च, 2013 को समाप्त होता है। वह वित्त वर्ष जिसमें कि कर लगाया जाता है, उसे कर निर्धारण वर्ष कहते हैं।
प्रश्न 4. “गत वर्ष” से आप क्या समझते हैं? What do you understand by “Preylous year”.
उत्तर- गत वर्ष (Previous Year) – आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 3 में ‘गत वर्ष’ को परिभाषा दी हुई है। गत वर्ष से तात्पर्य कर निर्धारण वर्ष के ठीक पूर्व के वित्तीय वर्ष से है। वित्तीय वर्ष में स्थापित नये व्यापार अथवा पेशे अथवा उस वित्तीय वर्ष में अस्तित्व में आने वाले किसी आय के नये स्रोत के लिए गत वर्ष नये व्यापार या पेशा के स्थापित होने की तिथि अथवा नये स्रोत के अस्तित्व में आने की तिथि से प्रारम्भ होकर उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति की अवधि होगी।
प्रश्न 5. कम्पनी को परिभाषित कीजिए। Define company.
उत्तर- कम्पनी (Company) — आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2 (17) में दी गई परिभाषा के अनुसार कम्पनी शब्द का अर्थ भारतीय कम्पनी अधिनियम में दी गई कम्पनी की परिभाषा से विस्तृत है। यहाँ कम्पनी से निम्नलिखित अभिपेत हैं-
(i) भारतीय कम्पनी अथवा
(ii) भारत के बाहर किसी देश में निगमित कोई कम्पनी; या
(iii) जिस पर कर निर्धारण किया गया हो ऐसी कोई संस्था, निकाय या समाजः या
(iv) कोई भारतीय या विदेशी संस्था, निकाय या समाज जो निगमित हो या न हो तथा जिसे बोर्ड के द्वारा साधारण या विशेष आदेश से कम्पनी के रूप में घोषित किया गया हो।
भारतीय कम्पनी की परिभाषा धारा 2(26) में दी गई है। इस धारा में उपबन्धित है कि भारतीय कम्पनी से एक ऐसी कम्पनी अभिप्रेत है, जो कि भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के अधीन गठित और पंजीकृत की गयी है।
प्रश्न 6. कर निर्धारण अधिकारी से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Assessing Officer?
उत्तर- कर निर्धारण अधिकारी (Assessing Officer)- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2 के अन्तर्गत एक नवीन उपधारा (क) प्रत्यक्ष विधियाँ (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा 1.04.1988 से जोड़ी गयी है। इसके अनुसार कर निर्धारण अधिकारी से तात्पर्य ऐसे सहायक आयुक्त या उपायुक्त या सहायक निदेशक या उपनिदेशक या आयकर अधिकारी से है, जिसे धारा 120 की उपधारा (1) या (2) के अन्तर्गत पारित आदेश या निर्देश द्वारा सुसंगत क्षेत्राधिकार दिया गया है। ‘कर निर्धारण अधिकारी’ के अन्तर्गत ऐसा अतिरिक्त आयुक्त या अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त आयुक्त अथवा संयुक्त निदेशक सम्मिलित हैं, जिसे इस अधिनियम में कर निर्धारण अधिकारी को दिये गये अधिकार और कार्यों को करने के लिए धारा 120 (4) (ख) के अन्तर्गत निर्देश दिया गया है।
प्रश्न 7. “धर्मार्थ उद्देश्य” क्या है? What is “Charitable Purpose”?
उत्तर- धर्मार्थ उद्देश्य (Charitable Purpose) आयकर अधिनियम की धारा 2 (15) में परिभाषित ‘धर्मार्थ उद्देश्य’ में निर्धनों को सहायता, शिक्षा, चिकित्सा सम्बन्धी सुविधा (Medical Relief) और सामान्य लोकोपयोगिता का ऐसा कोई अन्य उद्देश्य जिसकी पूर्ति में किसी लाभ की आशा नहीं की जाती, शामिल है।
प्रश्न 8. ‘लाभांश’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Dividend”?
उत्तर- लाभांश (Dividend)— आयकर अधिनियम की धारा 2 (22) में लाभांश को परिभाषित किया गया है। सामान्यतया लाभांश का अर्थ किसी वर्ष या पिछले वर्षों के लाभ को अंशधारियों में विभाजन से होता है तथा ऐसे लाभों का तात्पर्य व्यापारिक लाभों से होता है, कराधेय लाभ से नहीं। अधिनियम की धारा 2 (22) के अन्तर्गत लाभांश शब्द के अन्तर्गत इस शब्द के अर्थ को व्यापक बना दिया गया है और इसके परिणामस्वरूप लाभांश शब्द के अन्तर्गत इस शब्द के साधारण अर्थ के अतिरिक्त निम्नलिखित भी सम्मिलित माने गये हैं-
(क) कम्पनी के संचयित लाभों के विवरण को भी लाभांश माना जाता है।
(ख) कम्पनी द्वारा अपने अंशधारियों को ऋण पत्र या जमा प्रमाण-पत्र का किया गया वितरण भी लाभांशो के रूप में माना जाता है।
(ग) कम्पनी के परिसमापन के अवसर पर संचयित लाभों का अंशधारियों में वितरण भी लाभांश के अर्थ के अन्तर्गत आता है।
(घ) कम्पनी द्वारा अपने संचयित लाभों में से पूँजी कम करके किया जाने वाला वितरण भी लाभांश माना जाता है।
(ङ) किसी ऐसी कम्पनी के द्वारा जो ऐसी कम्पनी नहीं है, जिसमें जन साधारण सारवान् रूप में हितबद्ध हो 31.5.1987 के बाद किसी ऐसे अंशधारी को अग्रिम राशि या ऋण के रूप में किया गया भुगतान जो ऐसा व्यक्ति हो जो कम से कम 10 प्रतिशत मताधिकार रखने वाले अंशों का हितकारी स्वामी है अथवा किसी ऐसी संस्था को अग्रिम राशि या ऋण के रूप में किया गया भुगतान जिसमें ऐसा अंशधारी भागीदार है और जिसमें उसे सारवान् हित प्राप्त है अथवा ऐसे अंशधारी की ओर से या उसके व्यक्तिगत लाभ के लिए ऐसी कम्पनी द्वारा किया गया भुगतान, परन्तु ऐसा भुगतान केवल ऐसी कम्पनी द्वारा किया गया भुगतान, परन्तु ऐसा भुगतान केवल संचयित लाभों की सीमा तक ही लाभांश माना जायेगा।
प्रश्न 9. क्या जंगलों से होने वाली आय कर योग्य है? स्पष्ट करें।
उत्तर- जंगलों से होने वाली आय – जंगलों से होने वाली आय करयोग्य आय होती है। राजा मुस्तफा अली खाँ बनाम सी० आई० टी०, (1948) 16 आई० टी० आर० 330 में प्रतिपादित किया गया है कि वनों या जंगलों और अपने आप पैदा होने वाली फसलों से जिसके लिए कौशल और श्रम की अपेक्षा नहीं की जाती होने वाली आय कृषि आय नहीं है और इसलिए उस पर आयकर अधिनियम के उपबन्धों के अन्तर्गत कर लगाया जा सकता है।
प्रश्न 10. ‘वेतन’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Salaries”?
उत्तर – वेतन (Salaries) आयकर अधिनियम की धारा 17 (1) के अनुसार वेतन शीर्षक में निम्नलिखित को सम्मिलित किया गया है-
(1) मजदूरी
(2) कोई वार्षिकी या पेंशन
(3) कोई ग्रेच्युटी
(4) वेतन या मजदूरी के एवज में प्राप्त शुल्क, कमीशन, अनुलाभ या लाभ
(5) कोई अग्रिम वेतन, परन्तु इसमें मोटर, स्कूटर मकान आदि के लिये लिया गया अग्रिम (ऋण) शामिल नहीं है।
(6) अवकाश के बदले नकद राशि
(7) हस्तान्तरित शेष का कर योग्य अंश
(8) एक कर्मचारी के स्वीकृत प्रोविडेण्ट फण्ड के शेष में वार्षिक वृद्धि की कर योग्य राशि।
प्रश्न 11. “वेतन पर आयकर” से आप क्या समझते हैं? What do you understand by “Income tax on Salaries”.
उत्तर- ‘आयकर” शब्द से लगभग सभी परिचित हैं, यह एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर होता है जो करदाता को अपनी आय के सन्दर्भ में शासन को देना होता है। यह व्यक्ति को सम्पूर्ण वार्षिक आय पर देय होता है। वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वे आयकर की परिधि में आते हैं या नहीं। प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में केन्द्र एवं राज्य कर्मचारियों को आयकर का ब्यौरा अपने जनपद के लेखाधिकारी को देना होता है।
आयकर के संदर्भ में वेतन से प्राप्त होने वाली आय में (i) मूल वेतन, (ii) महंगाई भत्ता, (iii) मकान भत्ता, (iv) अन्य सभी प्रकार के भने जो नियमित रूप से दिये गये हैं, परीक्षा इत्यादि से होने वाली आय अथवा इसी प्रकार के अन्य पारिश्रमिक कार्यों से प्राप्त आय भी आयकर के लिए सम्मिलित की जाती है। कुछ भते व भुगतान ऐसे भी हैं जिन्हें विशेष छूट प्राप्त है और ये आयकर के आगणन के उद्देश्य से आय में सम्मिलित नहीं किये जाते तथा कुछ छूटों को आप से घटाया भी जाता है।
प्रश्न 12. आयकर अधिनियम के तहत व्यापार को परिभाषित करें। Define the terms “Business” as given in the I.T. Act.
उत्तर- व्यापार (Business) – धारा 2 (13) व्यापार शब्द के अन्तर्गत कोई व्यापार, वाणिज्य या विनिर्माण शामिल है या इसी प्रकार का अन्य कोई साहस जो व्यापार, वाणिज्य या विनिर्माण प्रकृति का हो, शामिल माना जाता है। इन्द्रमणि बाई बनाम सी० आई० टी० एडीशनल, (1993) 200 आई० टी० आर० 594 (एस० सी०) के वाद में दो महिलाओं ने भूमि क्रय किया और उस पर कुछ मकान बनवाकर व्यक्तिगत रूप से विक्रय किया। इस संव्यवहार को व्यापार के प्रकृति का साहस माना गया।
व्यापर शब्द बहुत ही व्यापक और अनिश्चित अर्थ का बोध कराता है और कुछ ऐसी बातों को आभासित करता है, जो कि ऐसे व्यक्ति का ध्यान और परिश्रम आकर्षित करता है. जिसका कि प्रयोजन लाभ प्राप्त करना है। इनसे एक निरन्तरित और क्रमबद्ध रूप में एक धन्धे या व्यवसाय का संचालित करना आभासित होता है, जिसका कि उद्देश्य आय या लाभ प्राप्त करना होता है।
प्रश्न 13. पेशा को परिभाषित कीजिए। Define Profession.
उत्तर- पेशा (Profession)— ‘पेशा’ शब्द से तात्पर्य ऐसे कार्य से है, जिसका केवल बौद्धिक योग्यता या किसी व्यक्ति के श्रम के साथ बौद्धिक योग्यता का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए वकीलों की ओर से सम्पन्न की गयी सेवा में, अथवा इंजीनियरों, डॉक्टरों और लेखाकारों द्वारा सम्पन्न की जाने वाली सेवाओं में बौद्धिक कौशल की अपेक्षा होती है, जबकि पेंटिंग, शिल्प आदि में शारीरिक कौशल की आवश्यकता होती है। सभी ‘पेशा’ व्यापार होते हैं, किन्तु सभी व्यापार को ‘पेशा’ नहीं कहा जा सकता है।
प्रश्न 14. व्यवसाय को परिभाषित कीजिए। Define Vocation.
उत्तर – व्यवसाय (Vocation)— ‘व्यवसाय’ शब्द ‘पेशा’ शब्द के अन्तर्गत ही शामिल माना जाता है, परन्तु ‘व्यवसाय’ शब्द की तुलना में कहीं अधिक व्यापक अर्थ का बोध कराता है। व्यवसाय एक ऐसे ‘कार्य’ के रूप में समझा जा सकता है, जिसमें कि एक व्यक्ति नियमित रूप से नियोजित है, साधारणतया एक निश्चित प्रकार का काम करने के लिए एवं वेतन प्राप्त करने के लिए। अतः ‘व्यवसाय’ शब्द से तात्पर्य उन कार्यों से है, जो जीविकोपार्जन के लिए किये जाते हैं। इसके लिए लाभ प्राप्ति का उद्देश्य होना जरूरी नहीं है।
प्रश्न 15. अविलयन से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Demerger?
उत्तर- अविलयन (Demerger) – आयकर अधिनियम की धारा 2 (19कक) में अविलयन की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार कम्पनियों के सम्बन्ध में अविलयन का अर्थ कम्पनी अधिनियम की धारा 391 से धारा 394 के अन्तर्गत किसी ठहराव में किसी अविलयन कम्पनी द्वारा अपने एक या एक से अधिक उपक्रमों का किसी परिणामी कम्पनी के अन्तरण से है जो कि इन शर्तों की पूर्ति करें-
(क) अविलयित कम्पनी के उपक्रम की समस्त सम्पत्ति एवं दायित्व विलयन के परिणामस्वरूप परिणामी कम्पनी की सम्पत्ति एवं दायित्व हो जायें।
(ख) उक्त सम्पत्ति एवं दायित्व अविलयन के पूर्व उसके लेखा-पुस्तिका में उल्लिखित मूल्य पर आन्तरित की गयी है।
(ग) परिणामी कम्पनी अविलयन के प्रतिफल के रूप में अपने अंश अविलयित कम्पनी के अंशधारियों को अनुपातिक आधार पर जारी करेगी।
(घ) अविलयन के परिणामस्वरूप अविलयित कम्पनी के अंशों के मूल्य के कम से कम 75 प्रतिशत भाग के अंशधारी परिणामी कम्पनी के अंशधारी हो जायें। यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि उक्त 75 प्रतिशत की गणना में वे अंश सम्मिलित नहीं होंगे जो अविलयन के ठीक पूर्व परिणामी कम्पनी या इसके नाम निर्देशित या इसकी सहायक कम्पनी द्वारा धारित थे।
(ङ) उपक्रम का अन्तरण चालू समुत्थान के आधार पर होना चाहिए।
(च) केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित शर्तों के अनुसरण में अविलयन होना चाहिए।
प्रश्न 16. अविलयित कम्पनी से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Demerged company?
उत्तर- अविलयित कम्पनी (Demerged Company ) — आयकर अधिनियम की धारा 2(19ककक) में अविलयित कम्पनी को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार अविलयित कम्पनी का अर्थ ऐसी कम्पनी के रूप में लिया जाना चाहिए जिसका उपक्रम अविलयन के परिणामस्वरूप किसी कम्पनी को अन्तरित किया जाता है।
प्रश्न 17. कृषि विकासार्थं छूट क्या है? What is Agricultural Development Allowance.
उत्तर- कृषि विकासार्थं छूट (Agricultural Development Allowance) – आयकर अधिनियम की धारा 35 (ग) के अनुसार, यदि कोई कम्पनी या सहकारी समिति कृषि, पशुपालन, दुग्धपालन, मुर्गापालन के कार्य में लगी हुई है, तो ऐसी कम्पनी या सहकारी समिति द्वारा अपने उपयोग में लाये गये व्यय की राशि के 11 गुना राशि के बराबर कटौती की जायेगी। ऐसा व्यय प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः विहित प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किसी संस्था या समुदाय के द्वारा किया जा सकता है तथा यह निम्न के सम्बन्ध में हो सकता है-
(a) ऐसे किसान या उत्पादक द्वारा उपयोग में लाये जाने के लिए उर्वरक, बीज, कीटाणुनाशक दवाइयों या उत्पादक तथा कृषक के लिए आवश्यक औजार तथा उपकरण।
(b) कृषि, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय या मुर्गीपालन की उन्नतिशील पद्धति या ढंगों की जानकारी या इससे सम्बन्धित प्राविधिक सलाह का प्रसार या प्रदर्शन। (c) अन्य निर्धारित माल, सेवाएँ या सुविधाएँ।
प्रश्न 18. पूँजी सम्पत्ति से आप क्या समझते हैं? What is meant by ‘Capital Gains’?
उत्तर- पूँजी सम्पत्ति (Capital Gains) — आयकर अधिनियम की धारा 2 (14) में पूँजी सम्पत्ति को स्पष्ट किया गया है। ‘पूंजी सम्पत्ति’ का अर्थ किसी प्रकार की ऐसी सम्पत्ति से है जो निर्धारिती द्वारा धारण की गयी हो, चाहे उसका सम्बन्ध उसके कारबार या व्यवसाय से हो अथवा नहीं। खनन अधिकार भी जी सम्पति’ में सम्मिलित है और इस कारण पट्टे के अन्तर्गत खनन अधिकार का अन्तरण भी पूँजी सम्पत्ति का अन्तरण माना जाता है।
प्रश्न 19. पूँजी परिसम्पत्ति के सम्बन्ध में अन्तरण की व्याख्या करें।
उत्तर – अन्तरण – आयकर अधिनियम की धारा 2 (47) के अनुसार पूँजी परिसम्पत्ति के सम्बन्ध में अन्तरण के अन्तर्गत परिसम्पत्ति का विक्रय, विनिमय या त्याग अथवा उस परिसम्पत्ति में प्राप्त अधिकार का त्याग अथवा किसी विधि के अन्तर्गत उस परिसम्पत्ति को अनिवार्य रूप से ले लेना सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त, यदि परिसम्पति इसके स्वामी द्वारा अपने द्वारा संचालित कारबार के व्यापार स्टॉक के रूप में परिवर्तित कर दी गई है अथवा व्यवहत की जाती है तो इस प्रकार का परिवर्तन या व्यवहार भी ‘अन्तरण’ शब्द के अन्तर्गत आता है।
प्रश्न 20. ‘सन्तुलित प्रभार’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- सन्तुलित प्रभार – सन्तुलित प्रभार को कर योग्य लाभ के नाम से भी जाना – जाता है। अधिनियम की धारा 42 (2) के अनुसार, गत वर्ष में यदि कोई कारोबार में प्रयोग होने वाली इमारत, मशीनें, संयन्त्र या फर्नीचर नष्ट हो जाय, काम में प्रयोग होने के योग्य न रह जाय तो उसे बेच देने पर प्राप्त बिक्री की रकम बीमा कम्पनी से मिली हुई रकम का योग उसके अपलिखित मूल्य से अधिक हो तो उस आधिक्य का उतना भाग जो, ह्रास के बराबर हो उस वर्ष का जबकि धन प्राप्त हुआ है, लाभ माना जायेगा। इस प्रकार योग्य लाभ को ही सन्तुलित चार्ज या कर योग्य लाभ कहा जाता है।
प्रश्न 21. पूँजी व्यय एवं राजस्व व्यय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पूँजी व्यय एवं राजस्व व्यय में अन्तर—ये निम्नवत् हैं-
(1) ऐसे सभी व्यय जो किसी प्रकार की स्थायी परिसम्पत्ति को प्राप्त करने पर किये जाते हैं तथा जो राजस्व के प्रयोजन के लिए कारोबार में बराबर इस्तेमाल होंगे, पूँजी व्यय कहे जाते हैं।
इसके विपरीत कारोबार प्रशासन और संचालन पर किये जाने वाले अन्य खर्चे राजस्व व्यय कहे जाते हैं।
(2) वर्तमान परिसम्पत्तियों की इस प्रकार उन्नति किये जाने या उसका इस प्रकार विस्तार किये जाने पर खर्चे जिससे कि उनकी राजस्व कमाने की सामर्थ्य बढ़ जाय या उत्पादन का खर्च कम हो जाय, पूँजी व्यय माने जायेंगे।
जबकि वर्तमान परिसम्पत्तियों की मरम्मत और नवीनीकरण पर किया गया व्यय, जिससे उनकी कमाने की सामर्थ्य में वृद्धि तो नहीं होती लेकिन मूल यन्त्र अच्छी चालू हालत में बने रहते हैं, राजस्व व्यय के अन्तर्गत आते हैं।
अतः यह ज्ञात करने के लिए कि कोई व्यय पूँजी व्यय है या राजस्व व्यय निम्नलिखित नियमों को ध्यान देना चाहिए-
(1) जब कोई धनराशि किसी पूँजी परिसम्मति को प्राप्त करने या उसका विकास करने के लिए व्यय की जाती है, तो वह पूँजी व्यय कहलाता है।
परन्तु यदि इस प्रकार के भुगतान से पूँजी परिसम्पत्ति में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है तो वह राजस्व व्यय कहलाता है।
(2) करदाता द्वारा स्वयं को किसी पूँजी दायित्व से मुक्त करने के लिए किया गया कोई भुगतान पूँजी व्यय के अन्तर्गत आता है।
जबकि करदाता द्वारा स्वयं को किसी वार्षिकी या राजस्व के दायित्व से मुक्त करने के लिए किया गया भुगतान राजस्व व्यय होता है।
प्रश्न 22. ‘दोहरे करारोपण’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Double Taxation Relief?
उत्तर- दोहरे करारोपण (Double Taxation Relief)—‘दोहरे करारोपण’ पद से तात्पर्य है किसी आय पर एक से अधिक देश में कर लगाया जाना। किसी करदाता की किसी विशेष आय पर भारत में करारोपण किया जा सकता है तथा साथ ही साथ अन्य किसी देश में भी करारोपण किया जा सकता है। ऐसी स्थिति मुख्यतः करारोपण के दो मौलिक भिन्न आधारों के कारण उत्पन्न होती है-
(i) एक देश करदाता की आय की उत्पत्ति के आधार पर कर लगा सकता है; तथा
(ii) जबकि दूसरा देश अधिवास के आधार पर कर निर्धारण कर सकता है।
प्रश्न 23. समामेलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। Write a short note on Amalgamation.
उत्तर- समामेलन (Amalgamation)- समामेलन से तात्पर्य एक या एक से अधिक कम्पनियों का मिल जाना या एक कम्पनी का दूसरी कम्पनी में विलीनीकरण हो जाना। वह कम्पनी या कम्पनियाँ जो इस प्रकार से आपस में मिल जाती है, समामेलनकारी कम्पनियाँ कहलाती हैं और जिस कम्पनी में वे अपना विलीनीकरण करती हैं, उसे ‘समामेलित’ कम्पनी का नाम दिया जाता है। समामेलित कम्पनी को समामेलकारी कम्पनी की समस्त सम्पत्ति एवं समस्त दायित्व को अपनाना पड़ता है।
प्रश्न 24. ‘अनुलाभ’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Perquisitles?
उत्तर- अनुलाभ (Perquisities) अनुलाभ शब्द को अधिनियम की धारा 17 (2) में परिभाषित किया गया है। साधारणतया अनुलाभ शब्द से तात्पर्य किसी आकस्मिक भुगतान, फीस अथवा लाभ से है जो वेतन के अतिरिक्त किसी पद से लगे होते हैं। अनुलाभ एक वैयक्तिक लाभ होता है जिसमें किराये से मुक्त नियोजक द्वारा प्रदत्त मकान, निःशुल्क या रियायती दर पर दी जाने वाली कोई सुविधा या लाभ इत्यादि इसके अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 25. ‘हास’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Depreciation”?
उत्तर- ह्रास (Depreciation)— आयकर अधिनियम, 1961 में ‘हास’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। सामान्यतः ‘ह्रास’ शब्द से तात्पर्य ‘कमी’ या ‘गिरावट’ से लगाया जाता है। व्यापारिक नजरिये से हास से तात्पर्य सम्पत्ति के व्यापार में प्रयोग के कारण उसकी टूट-फूट क्षय आदि होने से उसके मूल्य में कमी होने या गिरावट आ जाने से है। किसी करदाता के लिये ह्रास तभी स्वीकृत किया जायेगा जबकि करदाता सम्पत्ति का स्वामी हो, सम्पत्ति का प्रयोग व्यापार या पेशे के लिए करता हो तथा सम्पत्ति का प्रयोग गत वर्ष में होना चाहिए। सम्पत्ति के वास्तविक लागत पर ह्रास स्वीकृत किया जाता है।
प्रश्न 26. ‘कर कब देय होता है और चूक में करदाता’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Paid Tax and Assessee in default?
उत्तर- चूक में करदाता (Assessee in default)— आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 220 के अन्तर्गत कोई भी रकम (अग्रिम कर से भिन्न) जो धारा 156 में जारी की गयी नोटिस में देय के रूप में उल्लिखित है, नोटिस तामील होने की तिथि से 30 दिन के अन्दर जमा कर दी जानी चाहिए। रकम नोटिस में दिये गये स्थान एवं उल्लिखित व्यक्ति को दी जानी चाहिए। यदि कर निर्धारण अधिकारी को विश्वास का कारण है कि पूरा 30 दिन समय देने से राजस्व को हानि होगी तो वह संयुक्त आयुक्त की पूर्व अनुमति से माँग की नोटिस में उल्लिखित रकम का भुगतान 30 दिन से कम समय की अवधि में भी करने का निदेश दे सकता है। ऐसी अवधि में उक्त रकम जमा न करने पर निर्धारिती उक्त रकम पर ब्याज देने के भी दायित्वाधीन होगा।
ब्याज की दर 1 प्रतिशत प्रतिमाह होगी और यह तब तक लगाया जायेगा जब तक कि सम्पूर्ण रकम का भुगतान नहीं कर दिया जाता है।
माँग की नोटिस में उल्लिखित अवधि की समाप्ति के पूर्व निर्धारिती रकम के भुगतान की अवधि बढ़ाने या उसे किश्तों में भुगतान करने की अनुमति हेतु कर निर्धारण अधिकारी को आवेदन दे सकता है और कर निर्धारण अधिकारी ऐसे आवेदन पर अवधि बढ़ा सकता है। या किश्तों में भुगतान करने की अनुमति प्रदान कर सकता है। वह ऐसी शर्त भी लगा सकता है जिसे वह उचित समझता है।
यदि माँग की सूचना में उल्लिखित रकम स्वीकृत अवधि के अंदर जमा नहीं की जाती है तो निर्धारिती चूक में माना जायेगा और वह दण्ड के लिये भी दायी होगा (धारा 221)
यदि निर्धारिती द्वारा देय रकम का भुगतान किश्तों में किये जाने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है तो किसी भी किश्त की अदायगी में चूक की दशा में उस समय शेष अप्राप्त सभी रकम के लिये वह चूक में माना जायेगा और बची सभी किश्तें उसी दिन मानी जायेंगी जिस दिन वह किश्त देय है, जिसके भुगतान में चूक की गयी है।
प्रश्न 27. ‘कृषि आय’ से आपका क्या तात्पर्य है? What do you mean by ‘Agricultural Income”?
उत्तर – कृषि आय (Agricultural Income ) — भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण भारतीय संविधान में संसद को कृषि आय पर कर लगाने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। कृषि आय को आयकर अधिनियम की धारा 10(1) के अन्तर्गत आयकर से मुक्त रखा गया है। परन्तु कर निर्धारण वर्ष ( Assessment Year) 1974-75 से कृषि आय को अन्य आय पर लागू होने वाले कर की दर से निर्धारण हेतु कुल आय में शामिल किया जाता है।
प्रश्न 28. “आकस्मिक आय” से आपका क्या तात्पर्य है?What do you mean by Casual Income?
उत्तर- आकस्मिक आय (Casual Income )” आकस्मिक आय” का पर्यायवाची अर्थ “गैर आवर्ती आय” होता है। यह वह आय होती है जो किसी गणना न किये जाने योग्य, अनिश्चित समय पर मात्र संयोगवश प्राप्त हुई हो। अतः आकस्मिक आय गैर-पूर्वानुमानित, कभी-कभार प्राप्त एवं बिना किसी समझौते के संयोग मात्र से प्राप्त होने वाली आय होती है।
लॉटरी, वर्ग पहेलियों, तारा के खेलों तथा जुए अथवा शर्त लगाए जाने जैसे किसी भी रूप में अन्य खेलों से प्राप्त की गयी आय को आकस्मिक आय कहा जाता है।
प्रश्न 29. ‘आय के शीर्षक’ बतलाइये तथा मकान सम्पत्ति से आय को समझाइये। What are the ‘Heads of Income’ and Explain Income from House Property.
उत्तर- आय के शीर्षक (Heads of Income) — किसी भी आय को कर योग्य होने के लिये निम्नलिखित शीर्षकों में से किसी में शामिल किया जाना जरूरी है-
(1) वेतन
(2) भवन सम्पत्ति से आय;
(3) व्यापार अथवा पेशे से लाभ तथा प्राप्तियाँ;
(4) पूँजी लाभ; तथा
(5) अन्य स्रोतों से आय
मकान सम्पत्ति से आय – आयकर अधिनियम की धारा 22 के अनुसार कोई आय ‘भवन सम्पत्ति’ की आय के अन्तर्गत उस समय आयकर प्रभारित किये जाने के योग्य होगी जबकि निम्न शर्तें पूरी होती हों-
(1) भवन-सम्पत्ति को अस्तित्व में होना चाहिये।
(2) निर्धारिती (करदाता) को भवन सम्पत्ति का स्वामी होना चाहिये ।
(3) भवन सम्पत्ति का प्रयोग करदाता के ऐसे कारबार या व्यवसाय में नहीं होना चाहिये, जिसका प्रलाभ आयकर योग्य है।
प्रश्न 30. पुन: कर निर्धारण से आपका क्या तात्पर्य है? What do you mean by Re-assessment?
उत्तर – पुन: कर निर्धारण (Re- assessment)— कभी-कभी ऐसा भी पाया जाता है। कि करदाता पर जितना कर निर्धारण होना चाहिए उससे कम हो गया है जिससे कुछ धन कर निर्धारण से बच गया है। ऐसी दशा में धनकर विधि की धारा 17 लागू होती है। जिसके अनुसार यदि कर निर्धारण अधिकारी के पास ऐसा विश्वास करने का कारण है कि किसी कर निर्धारण वर्ष के सम्बन्ध में कुछ कर योग्य शुद्ध धन कर निर्धारण से छूट गया है तो वह ऐसे शुद्ध धन का निर्धारण या पुनः निर्धारण कर सकता है। यदि किसी छूट गये कर योग्य शुद्ध धन के सम्बन्ध में कर निर्धारण की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जाती है और इस कार्यवाही के दौरान कर-निर्धारण अधिकारी को किसी अन्य छूटे हुए कराधेय शुद्ध धन की सूचना मिलती है तो ऐसे शुद्ध धन को भी वह इस कर निर्धारण के अन्तर्गत सम्मिलित कर सकता है।
इस धारा के अन्तर्गत नोटिस जारी करने के पूर्व कर निर्धारण अधिकारी ऐसी नोटिस जारी करने के कारणों को अभिलिखित करेगा। अत: कर निर्धारण अधिकारी ऐसे शुद्ध धन को जो कराधेय है और कर निर्धारण से छूट गया है, कर निर्धारण या पुनः कर निर्धारण कर सकता है।
प्रश्न 31. आयकर निरीक्षक से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Income Tax Inspector?
उत्तर- आयकर निरीक्षक (Income Tax Inspector) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2 (28) के अनुसार, “आयकर निरीक्षक” से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसे धारा 117 (1) के अन्तर्गत आयकर निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है। इसके कार्य निर्धारित नहीं हैं। सामान्यतः यह कर निर्धारण अधिकारी की ओर से निर्धारिती के लेखों की जाँच करते हैं। जिस अधिकारी के ये अधीनस्थ होते हैं, उनके द्वारा दिये गये कार्य को यह सम्पन्न करते हैं।
प्रश्न 32. अग्रिम कर से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Advance Tax’?
उत्तर- अग्रिम कर – आयकर अधिनियम के कुछ प्रावधानों के अन्तर्गत वर्तमान वर्षों की आय पर भी कर चुकाया जाता है, ऐसे कर के भुगतान को अग्रिम कर का भुगतान’ कहा जाता है। आयकर अधिनियम की धारा 208 से 219 तक निर्धारित दर से ऐसी आय पर कर के भुगतान के सम्बन्ध में प्रावधान किये गये हैं, जो जैसे ही अर्जित होती है। कर के इस अग्रिम भुगतान की योजना को ‘चुकाओ जैसे ही कमाओ’ के नाम से भी जाना जाता है। अधिनियम की धारा 207 के अनुसार प्रत्येक करदाता को किसी वित्तीय वर्ष में अपनी उस कुल आय पर अग्रिम कर का भुगतान करना होता है जिस पर इस वित्तीय वर्ष के ठीक बाद आने वाले कर निर्धारण वर्ष में कर लगेगा तथा इस आय को ‘चालू आय’ कहा जाता है।
अधिनियम की धारा 208 के अनुसार, प्रत्येक मामले में किसी वित्तीय वर्ष के दौरान अग्रिम कर देय होता है जब करदाता का कर दायित्व उस वर्ष में पाँच हजार रुपये या इससे अधिक है। दूसरे शब्दों में यदि किसी करदाता का किसी वित्तीय वर्ष के दौरान कर दायित्व पाँच हजार रुपये से कम है, तो वह अग्रिम कर के भुगतान के लिये दायी नहीं है। आयकर अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्येक आय (जिसमें पूँजी लाभों, लॉटरी की जीत, वर्ग पहेली प्रतियोगिता आदि की जीत से आय भी सम्मिलित है) पर अग्रिम कर का भुगतान किया जाता है। करदाता का कर दायित्व आयकर प्रावधानों के अनुसार किया जाता है।
प्रश्न 33. स्थायी खाता संख्या (PAN) से आप क्या समझते हैं? What do you understand by PAN?
उत्तर- स्थायी खाता संख्या (धारा 139क) – ‘स्थायी खाता संख्या’ से तात्पर्य उस संख्या से है जो करदाता की पहचान के लिये कर निर्धारण अधिकारी द्वारा उसे आवंटित किया जाता है तथा इसके अंतर्गत नई श्रृंखला के अन्तर्गत आवंटित किया गया स्थायी खाता संख्या भी सम्मिलित है। नई श्रृंखला के अन्तर्गत स्थायी खाता संख्या में दस अक्षर संख्या होता है। इसे लैमीनेटेड कार्ड पर जारी किया जाता है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा यह निर्देश जारी कर दिये गये हैं कि प्रत्येक करदाता अब नई श्रृंखला में स्थायी खाता संख्या आबंटित कराने हेतु आवेदन करेगा, भले ही उसे पूर्व में स्थायी खाता संख्या आवरित किया जा चुका है। ‘स्थायी खाता संख्या’ को संक्षेप में पैन’ (PAN) कहते हैं।
प्रश्न 34. पेंशन एवं ग्रेच्युटी से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Pension and Gratuity?
उत्तर – पेंशन (Pension)—पेंशन को वेतन शीर्षक के अन्तर्गत कर योग्य माना जाता है, चाहे उनका भुगतान स्वेच्छा से किया गया हो अथवा एक संविदात्मक आभार के अन्तर्गत । यदि पेंशन का भुगतान नियोजक द्वारा किया गया है तो वह वेतन शीर्षक के अन्तर्गत कर योग्य है, किन्तु ऐसी परिस्थिति में जबकि उसका भुगतान एक नियोजक से भिन्न व्यक्ति के द्वारा किया गया है तो धारा 56 के अन्तर्गत ‘अन्य स्रोतों से आय’ शीर्षक के अन्तर्गत कर योग्य है। पेंशन से एक ऐसा भत्ता अभिप्रेत है जिसका भुगतान पिछली सेवाओं के प्रतिफल के रूप में किया जाता है अथवा अधिकारों या आर्थिक उपलब्धियों को समर्पित किये जाने के फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति को किया जाता हो जो सेवाओं से निवृत्त हो चुका है-विशिष्टतया एक नियमित वृति के रूप में सरकार के द्वारा सेवानिवृत्त पब्लिक अफसरों मारे गये सैनिकों के कुटुम्ब इत्यादि को अदा किया जाता है। पेंशन एक अवधिक्रम में दिया जाने वाला भत्ता है अथवा एक वृत्ति है, जिसे पिछली सेवाओं के आधार पर स्वीकृत किया जाता है।
पेंशन को वेतन शीर्षक के अन्तर्गत कर योग्य कहा जायेगा, किन्तु कोई ऐसा भुगतान जो धारा 19 (10-क) के अन्तर्गत पेंशन की एकमुश्त राशि (Commutation of Pension) माना जाता है, उसे आयकर से मुक्त रखा गया है।
ग्रेच्युटी (Gratuity)— ग्रेच्युटी को भी वेतन शीर्षक के अन्तर्गत माना जाता है। यहाँ ग्रेच्युटी से तात्पर्य ऐसे भुगतान से है जो कि नियोजक के द्वारा कर्मचारी को उसकी सेवाओं के आधार पर प्रदान किया जाता है। कतिपय ग्रेच्युटी को धारा 10 (10) के अधीन कर से मुक्त माना जाता है। नियोजक द्वारा अदा की गयी ग्रेच्युटी वेतन शीर्षक के अन्तर्गत कर लगाये जाने के अधीन होती हैं परन्तु नियोजक से भिन्न व्यक्ति द्वारा प्राप्त भुगतान ‘अन्य स्त्रोतों से प्राप्त आय’ के रूप में कर योग्य होती है।
प्रश्न 35. ‘उपकर’ क्या है? What is ‘Cess’?
उत्तर— उपकर (Cess) — भारत में यह सिद्धान्त दृढ़ निश्चित था कि राज्य कृषक से उसकी उपज का एक निश्चित भाग ही कर या मालगुजारी के रूप में ले सकता है। हिन्दू- काल में यह भाग उपज का 1/6 और मुस्लिम काल में 1/3 निश्चित किया गया था, किन्तु शासकों द्वारा सदैव इस सिद्धान्त का दुरुपयोग किया गया है। मालगुजारी तो परम्परागत 1/6 भाग ही रही, किन्तु अतिरिक्त उपकर लगाये गये। मालगुजारी के अतिरिक्त जो कर लगाया गया, उसे ही उपकर कहा गया। लगान और उपकर में अन्तर होता है। लगान जोत-भूमि पर देय होता है और उपकर सार्वजनिक सुविधा के अभिप्राय के लिए उपकर के रूप में।
प्रश्न 36. कर मुक्त वेतन’ से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ‘Tax free Salary’?
उत्तर- कर मुक्त वेतन (Tax free Salary)— नियोजक द्वारा कभी-कभी अपने कर्मचारी को ऐसे वेतन की रकमों का भुगतान किया जाता है, जो कि आयकर से मुक्त हुआ करती है। इसका सामान्य अर्थ यह होता है कि कर का दायित्व कर्मचारी के द्वारा नहीं बल्कि नियोजक के द्वारा उठाया जायेगा। इस प्रकार नियोजक के द्वारा कर्मचारी की ओर से जितनी रकम कर के रूप में अदा की जाती है, उसे उस कर्मचारी के वेतन में आयकर के प्रयोजन के निमित्त शामिल कर लिया जायेगा, अर्थात् शुद्ध रूप में प्राप्त वेतन का कुल योग जिसे कि कर्मचारी ने अपने नियोजन से अर्जित किया है और उस ‘कर्मचारी’ की ओर से उसके नियोजक द्वारा अदा किये गये कर की रकम, दोनों को आयकर के प्रयोजनों के निमित्त उस कर्मचारी की आय में शामिल किया जायेगा।
प्रश्न 37. हानियों को आगे ले जाने से आपका क्या तात्पर्य है? What do you mean by carry forward of losses?
उत्तर- हानियों को आगे ले जाने से तात्पर्य है कि जिस वर्ष की हानि हो, उसी वर्ष यदि उसकी पूर्ति करदाता की किसी अन्य आय से न हो सके तो ऐसी हानि को भविष्य में आगे से जाकर होने वाले लाभ से इसकी पूर्ति की जा सकती है, बशर्ते कि करदाता ने निर्धारित अवधि में आय का विवरण दाखिल करके हानि का निर्धारण करा लिया हो, परन्तु सभी हानियों को आगे नहीं ले जाया जा सकता। कुछ हानियाँ ऐसी होती हैं कि यदि उनको पूर्ति उसी वर्ष में नहीं हो पाती है जिस घर्ष में हानियाँ होती हैं, तो उनकी पूर्ति आगे ले जाकर नहीं की जा सकती है। हानियों को आगे ले जाकर भविष्य में होने वाले लाभ से हानियों की पूर्ति करने की इस प्रक्रिया को ‘हानि को आगे से जाना एवं उनकी पूर्ति करना’ कहा जाता है।
प्रश्न 38. कमिश्नर (अपील) के यहाँ अपील की कार्यविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए। Describe briefly the procedure of an appeal to Commissioner (Appeals).
उत्तर- 3 आयकर आयुक्त (अपील) के यहाँ की प्रक्रिया – आयकर अधिनियम की धारा 250 अपील की प्रक्रिया के विषय में बतलाती है। आयकर आयुक्त (अपील) सुनवाई के लिए एक तिथि और स्थान निश्चित करता है और इसकी सूचना निर्धारिती और सम्बन्धित कर निर्धारण अधिकारी को देता है। अपील की सुनवाई के समय अपील करने वाला तथा सम्बन्धित कर निर्धारण अधिकारी को बोलने का अधिकार है। अपील करने वाला तथा सम्बन्धित कर निर्धारण अधिकारी दोनों या तो स्वयं उपस्थित होकर बोल सकते हैं या उनका प्रतिनिधि बोल सकता है। अपील सुनने वाला प्राधिकारी अपील की सुनवाई समय- समय के लिए स्थगित कर सकता है। अपील सुनने वाला प्राधिकारी अपना निर्णय देने से – पहले जैसा उचित समझे, जाँच कर सकता है और यदि चाहे तो कर निर्धारण अधिकारी को जाँच करने का निर्देश दे सकता है। अपील सुनने वाले प्राधिकारी का निर्णय लिखित होना चाहिए और निर्णय के कारणों का भी उल्लेख होना चाहिए। ऐसे निर्णय के आदेश की प्रतिलिपि निर्धारिती तथा मुख्य आयुक्त या आयुक्त को दी जायेगी।
आयुक्त (अपील) जिस वित्तीय वर्ष में धारा 246क (1) में अपील दाखिल की गई है उसकी समाप्ति के एक वर्ष के अन्दर इसकी सुनवाई करेगा और उसको विनिश्चित करेगा और अपना निर्णय देगा।
प्रश्न 39. निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखें-
(i) व्यक्ति
(ii) हिन्दू अविभाजित परिवार
Write short notes on the following-
(i) Individual (ii) Joint Hindu Family.
उत्तर- (i) व्यक्ति (Individual) यहाँ ‘व्यक्ति’ शब्द से एक प्राकृतिक व्यक्ति अथवा एक मानव प्राणी अध्रिपेत है। इसके अन्तर्गत अवयस्क व्यक्ति अथवा ऐसा व्यक्ति भी शामिल है, जो अस्वस्थ मस्तिष्क का है जिसे श्रीधर उदय नारायण बनाम सी० आई०- टी०, (1962) 45 आई० टी० आर० 977 के वाद निर्धारित किया गया फिर भी अजात व्यक्ति (Unbom Person) इसके अन्तर्गत नहीं आता है। अवयस्क अथवा पागलों के मामलों में निर्धारण उनके संरक्षकों पर किया जाता है।
(ii) हिन्दू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family ) — किसी हिन्दू अविभाजित परिवार से तात्पर्य ऐसे परिवार से है, जिसमें ऐसे सभी व्यक्ति शामिल हैं, जो कि एक सामान्य पूर्वज की वंश परम्परा के अन्तर्गत आते हैं और उसमें उनकी पत्नियाँ तथा उनकी अविवाहित पुत्रियाँ भी शामिल हैं। आयकर के प्रयोजन के लिए हिन्दू अविवाहित परिवार को एक पृथक् इकाई के रूप में माना जाता है तथा इस परिवार का प्रतिनिधित्व उसके कर्ता के द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 40. कर-भार से आपका क्या तात्पर्य है? What do you mean by Incidence of Tax?
उत्तर- कर भार (Incidence of Tax) – आयकर अधिनियम की धारा 5 में कर- भार की विवेचना की गयी है। विभिन्न प्रकार के करदाताओं पर कर लगाये जाने का दायित्व. उनको आवासीय स्थिति के अनुसार बदलता रहता है। धारा 5 करदाताओं की कुल आय के क्षेत्र विस्तार के लिए उसकी आवासीय स्थिति को देखते हुए कर लगाये जाने के दायित्व का निर्धारण करती है। आयकर के प्रयोजन के लिए एक अनिवासी की कुल आय की संगणना करने में उस आय को शामिल नहीं किया जाता है, जो कि उसे भारत से बाहर प्राप्त या उत्पन्न हुई हो।
प्रश्न 41. निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखें-
(i) व्यवसाय
(ii) परिणामी कम्पनी।
Write short notes on the following
(i) Vocation
(ii) Resulting Company
उत्तर (i) – व्यवसाय (Vocation)— व्यवसाय शब्द पेशा शब्द के अन्तर्गत ही शामिल माना जाता है, परन्तु व्यवसाय शब्द की तुलना में कहीं अधिक व्यापक अर्थ का बोध कराता है। व्यवसाय एक ऐसे कार्य के रूप में समझा जा सकता है जिसमें कि एक व्यक्ति नियमित रूप से नियोजित है, साधारणतया एक निश्चित प्रकार का काम करने के लिए एवं वेतन प्राप्त करने के लिए। अतः व्यवसाय शब्द से तात्पर्य उन कार्यों से है, जो जीविकोपार्जन के लिये किये जाते हैं। इसके लिए लाभ प्राप्ति का उद्देश्य होना जरूरी नहीं है।
(ii) परिणामी कम्पनी (Resulting Company) आयकर अधिनियम की धारा 2 (41) परिणामी कम्पनी को परिभाषित करती है। इसके अनुसार परिणामी कम्पनी का अर्थ ऐसी कम्पनी या कम्पनियों जिसमें पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी भी सम्मिलित है। जिसे अविलयन में अविलयित कम्पनी का उपक्रम अन्तरित किया जाता है और जी अविलयित कम्पनी के अंशधारियों को प्रतिपाल के रूप में अपना अंश जारी करती है। इसमें प्राधिकारी या निकाय स्थानीय प्राधिकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी जो कि अविलयन के परिणामस्वरूप स्थापित अथवा गठित है, सम्मिलित है।
प्रश्न 42. धनकर अधिनियम के अन्तर्गत ‘आस्तियों’ को परिभाषित करें। Define ‘Assets’ as given in the Wealth Tax Act.
उत्तर- आस्तियाँ (Assets) धनकर अधिनियम की धारा 2 (ङ) के अनुसार ‘आस्तिय’ शब्द के अन्तर्गत प्रत्येक अभिवर्णन की सम्पति, चाहे वह चल सम्पत्ति हो पा अचल सम्पत्ति हो, सम्मिलित है परन्तु कुछ वस्तुएँ जो इस उपधारा में उल्लिखित हैं, वे इसके अन्तर्गत सम्मिलित नहीं की जाती है। इस प्रकार धारा 2 (ड) के अन्तर्गत ‘ आस्तियाँ ‘-
(i) प्रत्येक अभिवर्णन की सम्पत्ति है, तथा
(ii) चाहे वे चल सम्पत्ति हों या अचल सम्पति हों।
इस तरह यह परिभाषा ‘आस्तियाँ’ शब्द को ‘सम्पत्ति’ शब्द के समतुल्य करती है। ‘सम्पत्ति’ शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, ‘सम्पत्ति’ शब्द ऐसे प्रत्येक हित को निर्देशित करता है जिसे प्राप्त, धारित या उपभोग किया जा सकता है। अतः प्रत्येक वस्तु जिसे आधिपत्य या कब्जे में रखा जा सकता है अथवा जिसका उपभोग किया जा सकता है और जिसका कुछ मूल्य है, उसे सम्पत्ति या आस्तियों में शामिल किया जाता है। इस तरह सम्पत्ति शब्द के अन्तर्गत मूर्त या साकार वस्तुएँ जैसे भूमि, कलम, पेंसिल, साइकिल, यंत्र, करेन्सी नोट सिक्का, शेयर, सरकारी प्रतिभूतियों आदि तथा अमूर्त या निराकार वस्तुओं में प्राप्त हित जैसे साख, (Goodwill), कॉपीराइट, ट्रेडमार्क आदि भी शामिल हैं।
जुग्गी लाल कमलापत बैंकर्स बनाम डब्ल्यू० टी० ओ० (1997) टैक्सेशन लॉ रिपोर्ट्स 1406 (इलाहाबाद) के बाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि भागीदारी फर्म में एक भागीदार का जो हित है वह भी ‘सम्पत्ति’ माना जाता है।
उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार प्रत्येक सम्पत्ति चाहे वह चल हो अथवा अचल ‘आस्तियाँ’ शब्द के अन्तर्गत सम्मिलित की जाती हैं। इस आधार पर कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा सी० ‘डब्ल्यू० टी० बनाम यू० सी० मेहताब, (1970) 78 आई० टी० 214 (कलकत्ता) में यह मत व्यक्त किया है कि यदि कोई सम्पत्ति चल अथवा अंचल सम्पत्ति की कोटि में नहीं आता तो उसे आस्तियों में शामिल नहीं किया जा सकता। परन्तु सी० डब्ल्यू० टी० बनाम ट्रस्टीज ऑफ साहेबजादी के वाद में आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उक्त मत से असहमति प्रकट करते हुए कहा कि ‘आस्तियाँ’ शब्द का अर्थ चल और अचल सम्पति तक ही सीमित न होकर अन्य सम्पत्ति को भी ‘आस्तियों’ में सम्मिलित किया जा सकता है।
प्रश्न 43. शुद्ध धन से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Net Wealth?
उत्तर- शुद्ध धन (Net Wealth) — धनकर निर्धारिती के शुद्ध धन पर लगाया जाता है। इसकी परिभाषा अधिनियम की धारा 2 (ङ) में दी गई है। सामान्य अर्थों में मूल्यांकन तिथि पर की सम्पूर्ण कराधेय आस्तियों में से उसके द्वारा देव समस्त ऋणों को घटाने के बाद जो शेष बचता है, वह शुद्ध धन होता है। धारा 2 (ङ) के अनुसार, शुद्ध धन से तात्पर्य उतनी धनराशि से है जितनी निर्धारिती की मूल्यांकन तिथि पर सम्पूर्ण आस्तियों का मूल्य उसके द्वारा जो कि उन आस्तियों के सम्बन्ध में उपगत हैं, सम्पूर्ण ऋणों के संकलित मूल्य से मूल्यांकन तिथि पर अधिक है। यहाँ निर्धारिती को आस्तियों में वे आस्तियाँ भी शामिल हैं, जिन्हें इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्धारिती के अधिकार में मान लिया जाता है परन्तु ऐसी आस्तियाँ शामिल नहीं हैं जिन्हें कर से मुक्त या विशेषतया निष्कासित (Exclude) कर दिया गया है। ऐसी आस्तियाँ कहीं भी स्थित हो सकती हैं।
किसी भी व्यक्ति, हिन्दू अविभाजित परिवार अथवा कम्पनी की सम्पति की उस राशि के पर 1% की दर से सम्पत्ति कर प्रभारित किया जाएगा जो 30 लाख रुपयों के निबल सम्पत्ति मूल्य से अधिक हो।
नकद रुपयों के अलावा समस्त सम्पत्तियों के मूल्य की संगणना करते समय भारतवर्ष के अन्दर स्थित व भारत के बाहर स्थित समस्त सम्पत्तियों के मूल्य का संगठन किया जायेगा। इस अधिनियम के अन्तर्गत यथापेक्षित ऐसी सम्पत्तियों को जो कि करदाता की स्वयं की न हो भी करदाता की सम्पत्ति में शामिल किया जा सकता है।
प्रश्न-44 ऐसी वस्तुओं को बतलाइये, जिन्हें आस्तियों में सम्मिलित नहीं किया जाता है।
उत्तर- कर निर्धारण वर्ष 1983 अथवा उसके पश्चात् होने वाले कर निर्धारण वर्ष के सम्बन्ध में (जम्मू-कश्मीर के अलावा) निम्नलिखित को आस्तियों में सम्मिलित नहीं किया जाता है-
(1) कृषि भूमि और कृषि भूमि पर खड़ी फसलें (वृक्ष पर फल सहित), भास अथवा कृषि भूमि पर खड़े वृक्ष
(ii) कृषि भूमि पर खेती वाले अथवा उससे लगान प्राप्त करने वाले व्यक्ति के स्वामित्व या कब्जे में रहने वाला एक भवन।
(iii) पशु
(iv) वार्षिकी का अधिकार बशर्ते ऐसी वार्षिकी से सम्बन्धित निबन्धन और शर्तें उसके किसी भाग को एकमुश्त राशि अनुदान में परिवर्तित किये जाने को मना करती है और इसे निर्धारिती ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने निर्धारिती के. साथ हुई संविदा के अनुसरण में क्रय किया है।
(v) किसी सम्पत्ति में हित जो 6 वर्ष से अधिक के लिए प्राप्त नहीं है। कर निर्धारण वर्ष 1993-94 अथवा इसके बाद के कर निर्धारण वर्ष के सम्बन्ध में आस्तियों का अर्थ है।
कोई इमारत या संलग्न भूमि चाहे इसका प्रयोग आवासीय अथवा वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अथवा गेस्ट हाउस के प्रयोजन के लिये किया गया हो जिसमें फार्म हाउस जो कि म्युनिसिपलिटी अथवा कैन्टोनमेण्ट बोर्ड की स्थानीय सीमा से 25 किलोमीटर के अन्दा स्थित है, सम्मिलित है परन्तु इसमें निम्नलिखित सम्मिलित नहीं हैं-
(1) ऐसा भवन आस्तियों में सम्मिलित नहीं है जो कि केवल आवासीय प्रयो हेतु है और कम्पनी द्वारा अपने कर्मचारी अथवा ऑफिसर अथवा निदेशक जो कि पूर्णकालीन नियोजन में है और वार्षिक सकल वेतन 5 लाख से कम है।
(2) कोई भवन जो कि आवासीय अथवा वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए है और स्टॉक इन-ट्रेड का भाग है।
(3) कोई भवन जो कि निर्धारिती अपने द्वारा संचालित कारबार अथवा पेशे के प्रयोजन के लिए कब्जे में रखे हैं।
(4) कोई भी आवासीय उत्पत्ति जिसे कि गत वर्ष में कम से कम 300 दिनों तक किराये पर दिया गया है।
(5) वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अथवा कॉम्प्लेक्स की प्रकृति की अन्य सम्पत्ति।
प्रश्न 45. धनकर अधिनियम के अन्तर्गत कर निर्धारण अधिकारी की परिभाषा दीजिए। Define Assessing Officer as given in the Wealth Tax Act.
उत्तर – कर-निर्धारण अधिकारी (Assesssing Officer) — धनकर अधिनियम की धारा 2(ग-क) में कर निर्धारण अधिकारी को परिभाषित किया गया है। इस धारा से स्पष्ट हो जाता है कि कर निर्धारण अधिकारी से तात्पर्य ऐसे सहायक आयुक्त अथवा आयकर अधिकारी से है जिसे आयकर अधिनियम की धारा 120 (1) अथवा (2) अथवा आयकर अधिनियम के अन्य उपबन्ध जो कि धनकर अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत धनकर के प्रयोजन हेतु लागू होते हैं, के अन्तर्गत जारी निदेश अथवा आदेश द्वारा सुसंगत अधिकारिता प्रदत्त की गई हैं। इसमें वह अतिरिक्त आयुक्त, अतिरिक्त निदेशक या उपायुक्त भी शामिल हैं जिसे उक्त धारा 120 (4) (ख) के अन्तर्गत कर निर्धारण अधिकारी की शक्तियाँ और कार्य सम्पादित करने का निदेश दिया गया है।
प्रश्न 46. धनकर अधिनियम के अन्तर्गत ‘वापसी’ से सम्बन्धित प्रावधानों का वर्णन कीजिए। Describe the provisions regarding ‘refunds’ as given in the Wealth Tax Act.
उत्तर- जहाँ पर अपील में पारित किये गये किसी आदेश के परिणामस्वरूप अथवा इस अधिनियम के अन्तर्गत की किसी कार्यवाही (भूल सुधार की कार्यवाही सहित) में दिये गये। आदेश के परिणामस्वरूप निर्धारिती के रकम की वापसी शोध्य हो जाती है, तो कर निर्धारण अधिकारी, निर्धारिती को वह रकम बिना उसकी ओर से इस निमित्त कोई दावा किये वापस कर देगा। यदि उक्त आदेश के परिणामस्वरूप कोई कर निर्धारण आदेश रद्द हो जाता है और नवीन कर निर्धारण करने का आदेश दिया जाता है तो ऐसी दशा में ऐसे नवीन कर निर्धारण करने के बाद ही वापसी देय होगी। ऐसे आदेश के परिणामस्वरूप कर निर्धारण निरस्त करने की दशा में वापसी कर के केवल उसी राशि की होगी जो निर्धारिती द्वारा दाखिल की गई विवरणी में दर्शाये गये शुद्ध धन पर प्रभारित कर की रकम के आधिक्य में है।
अधिनियम की धारा 34- क (2) के अनुसार, यदि इस अधिनियम के अन्तर्गत दिये गये आदेश के परिणामस्वरूप अथवा धारा 14 या 15 के अन्तर्गत या धारा 16(4) (i) में तामील. की गई नोटिस के अनुसरण के परिणामस्वरूप निर्धारिती को वापसी देय हो जाती है और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कर निर्धारण अधिकारी का मत है कि-
(i) उन विवरणी के सम्बन्ध में धारा 16(2) के अन्तर्गत नोटिस जारी की गई है या जारी किये जाने की सम्भावना है, अथवा
(ii) आदेश अपील या आगे की कार्यवाही के अध्यधीन है, अथवा
(iii) इस अधिनियम के अन्तर्गत अन्य कोई कार्यवाही लम्बित है, और वापसी अनुज्ञात करना राजस्व को कुप्रभावित कर सकता है तो कर निर्धारण अधिकारी, मुख्य आयुक्त या आयुक्त के पूर्ववर्ती अनुमोदन पर वापसी को उस समय तक के लिए रोक सकता है जो समय मुख्य आयुक्त या आयुक्त द्वारा निर्धारित किया गया है।