“Supreme Court of India का फैसला: ‘सुचि-नामों के प्रकाशन का निर्देश नहीं’ — Central Information Commission (CIC) नियुक्तियों पर विवादित मोड़”
प्रस्तावना
सूचना के अधिकार अर्थात Right to Information Act, 2005 (RTI Act) की प्रासंगिकता जब तब चर्चा में रहती है, और उसकी विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे लागू करने वाले संस्थागत ढांचे — जैसे Central Information Commission (CIC) और विभिन्न State Information Commissions (SICs) — निष्पक्ष, समय-निष्ठ एवं पारदर्शी हों। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया कि केंद्र सरकार को shortlisted उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक करने का निर्देश नहीं दिया जाएगा। यह निर्णय बीते 27 अक्टूबर 2025 को आया और इसे ‘नीति-निर्धारण’ तथा ‘संविधागत भूमिका’ के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है।
इस लेख में हम इस मामले को गहराई से देखेंगे: इसके पीछे कौन-कौन से तथ्य-परिस्थितियाँ थीं, सुप्रीम कोर्ट ने क्या तर्क दिए, निर्णय के संभावित प्रभाव क्या होंगे, एवं आगे की राह क्या हो सकती है।
पृष्ठभूमि और तथ्य-परिस्थितियाँ
CIC तथा SICs में नियुक्तियों की ज़रूरत
- CIC और SICs को RTI अधिनियम के तहत उपयुक्त रूप से सक्रिय रहने की ज़रूरत है ताकि जनता को सूचनाएँ मिलें और सूचना आयोग के माध्यम से अपील-भुगतान की प्रक्रिया पारदर्शी एवं समय-बद्ध हो।
- याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इन आयोगों में लंबे समय से पद रिक्त हैं, जिससे आयी शिकायतें लंबित हैं और सूचना-प्रदायगी की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
- उदाहरण के लिए, याचिकाकर्ता ने यह कहा कि CIC में प्रमुख (Chief Information Commissioner) का पद खाली था और दस सूचना आयुक्तों में आठ पद रिक्त थे।
याचिका-विवाद
- इस मामले में याचिकाकर्ता थे Anjali Bhardwaj तथा अन्य, जिनका मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था (WP (C) No. 436/2018) ।
- उन्होंने यह मांग की थी कि केंद्र सरकार निम्नलिखित करें:
- सूचना आयोगों के लिए सर्च कमेटी तथा चयन-प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करे।
- आवेदनकर्ताओं की सूची, शॉर्टलिस्टेड उम्मीदवारों के नाम, चयन मानदंड आदि सार्वजनिक करे — ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि योग्य, स्वतंत्र व्यक्तियों को आयोगों में नियुक्त किया जा रहा है।
- उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अगर सरकार सूची सार्वजनिक नहीं करती, तो “एयर-ड्रॉप” नियुक्तियों का जोखिम बढ़ जाता है — अर्थात् जिनके आवेदन नहीं हैं, वे भी नियुक्ति पा सकते हैं।
सरकार/केंद्र की ओर से तर्क
- केंद्र सरकार ने बताया कि सर्च कमेटी ने शॉर्टलिस्टेड नामों का काम पूरा कर लिया है, और चयन कमेटी (जिसमें प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और एक मंत्री नामित होंगे) अगले दो-तीन हफ्तों में अंतिम नामों को तय करेगी।
- उन्होंने कहा कि इस समय चयन-प्रक्रिया लगभग समाप्ति के चरण में है, इसलिए अभी सूची सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एवं तर्क
निर्णय का सार
- सुप्रीम कोर्ट की पीठ — न्यायाधीश Surya Kant व न्यायाधीश Joymalya Bagchi — ने यह निर्णय सुनाया कि केंद्र को शॉर्टलिस्टेड उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक करने का निर्देश नहीं दिया जाएगा।
- आदेश में कहा गया:
“As regards the CIC, we are informed that the Search Committee has completed the exercise and the Selection Committee … will consider the applicants within three weeks. We have no reason to doubt that the Union shall follow the guidelines laid down in Anjali Bhardwaj v. Union of India and finalise the process at the earliest.”
- न्यायालय ने यह भी कहा कि जब तक प्रक्रिया पूरी न हो जाए, पूर्व निर्देश जारी करना उचित नहीं होगा — और कहा कि अगर नियुक्ति में किसी अयोग्य व्यक्ति को रखा गया हो, तब कोर्ट हस्तक्षेप करेगा।
कोर्ट द्वारा दिए गए तर्क
- निर्वाचन-प्रक्रिया की समापन निकटता
कोर्ट ने माना कि चयन प्रक्रिया अंतिम चरण में है तथा कुछ ही सप्ताह में समाप्त होने वाली है — इसलिए पहले से सार्वजनिक निर्देश देना उचित नहीं। - न्याय-प्रक्रिया का दायरा vs नीति-निर्धारण
पीठ ने यह संकेत दिया कि चयन-प्रक्रिया एवं नियुक्ति श्रेणी “नीति-निर्धारण तथा निष्पादन” के दायरे में आती है, जहाँ न्यायालय का हस्तक्षेप सीमित होना चाहिए। यदि हर चरण में न्यायिक प्रतिबंध लग जाए, तो चयन प्रक्रिया बाधित हो सकती है। - विश्वास-साधक संतुलन
कोर्ट ने कहा कि उन्हें “कोई कारण नहीं लगता कि केंद्र वर्तमान निर्देशों का पालन नहीं करेगा” — अर्थात् केंद्र सरकार पर भरोसा व्यक्त किया गया कि वह पहले से बने निर्देशों (पुराने फैसले में) का पालन करेगी। - भविष्य में हस्तक्षेप की संभावना
न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि नियुक्ति “फैट आॅकॉम्प्ली” (fait accompli – पहले तय करना, बाद में सार्वजनिक करना) नहीं होगी; यदि बाद में पता चले कि अयोग्य व्यक्ति नियुक्त किया गया है, तो न्यायालय हस्तक्षेप करेगा।
विश्लेषण: इस फैसले का महत्व तथा चिंताएँ
सकारात्मक पहलू
- इस फैसले से यह संदेश गया कि आयोगों की नियुक्ति प्रक्रिया को शीघ्रता से पूर्ण करना सर्वोच्च प्राथमिकता है — कोर्ट ने राज्यों एवं केंद्र को निर्देश दिए कि खाली पद जल्द भरें।
- न्यायालय ने यह संतुलन बनाए रखा कि पारदर्शिता आवश्यक है, पर साथ-ही साथ चयन प्रक्रिया को बाधित नहीं होना चाहिए।
- यह निर्णय नीति-निर्देशक अंगों तथा न्यायालय के बीच संतुलन बनाए रखने वाला उदाहरण है — जहाँ समय-सीमा, प्रक्रिया-प्रारंभ, निष्पक्षता आदि सभी पर ध्यान दिया गया है।
चिंताएं एवं आलोचनाएँ
- पारदर्शिता की कमी: आलोचक यह मानते हैं कि जब उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग के नाम और मानदंड सार्वजनिक नहीं होते, तो जनता का विश्वास प्रभावित हो सकता है कि नियुक्ति स्वतंत्र, योग्य एवं निष्पक्ष हुई है या नहीं।
- पूर्व निर्देशों का अनुपालन विषय: दिसंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे कि आवेदन-सूची, चयन-मानदण्ड एवं शॉर्टलिस्टेड नाम सार्वजनिक हों; परंतु केंद्र ने इसे पूरी तरह लागू नहीं किया।
- भविष्य में कार्यान्वयन की गारंटी नहीं: कोर्ट ने भरोसा व्यक्त किया है पर यह भरोसा सुनिश्चित करना आसान नहीं — यदि प्रक्रिया समाप्त हो जाए और बाद में अयोग्य नियुक्ति सामने आए, तब ही हस्तक्षेप संभव है।
- स्थानीय/राज्य-स्तर पर निष्क्रियता: राज्य सूचना आयोगों (SICs) में रिक्त पदों के मामले बहुत लंबे समय से हैं — जैसे Jharkhand में SIC मई 2020 से लगभग निष्क्रिय है।
इस निर्णय का दीर्घकालीन प्रभाव
- यदि प्रक्रिया समय-बद्ध तरीके से पूरी हो जाती है और योग्य व्यक्ति नियुक्त होते हैं, तो यह RTI तंत्र की विश्वसनीयता को पुनः बढ़ा सकती है।
- अन्यथा, यदि संदिग्ध नियुक्तियाँ सामने आती हैं, तो यह सार्वजनिक विश्वास को कमजोर कर सकती है और RTI अधिनियम की प्रभावशीलता पर प्रश्न चिह्न लग सकती है।
- यह निर्णय अन्य संस्थागत नियुक्तियों (जैसे संवैधानिक आयोग, नियामक आयोग) के संदर्भ में “पारदर्शिता vs निष्पादन” की बहस को आगे बढ़ा सकता है।
आगे की राह एवं सुझाव
- प्रक्रिया-समयबद्धता सुनिश्चित करना
केंद्र तथा राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शॉर्टलिस्टिंग से लेकर नियुक्ति तक की प्रक्रिया शीघ्र, सुव्यवस्थित और समय-सीमित हो — ऐसा न हो कि आयोग-पद बहुत लंबे समय तक खाली रहें। - मानदंड-प्रकाशन और उम्मीदवार-सूचना
यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने नाम प्रकाशित करने का निर्देश नहीं दिया, पर यह सुझाव दिया जा सकता है कि चयन-मानदंड, प्रारंभिक आवेदन आंकड़े, शॉर्टलिस्टिंग प्रक्रिया के मापदंड आदि प्रकाशित हों — इससे सार्वजनिक विश्वास बढ़ेगा। - नियुक्ति-प्रक्रिया की निगरानी-संरचना
एक स्वतंत्र निगरानी तंत्र या लोक-निरीक्षण प्रकरण हो सकता है, जहाँ चयन-प्रक्रिया के दौरान संभावित विवाद उपस्थित हों तो समय रहते समीक्षा की जा सके। - राज्य सूचना आयोगों का पुनर्स्थापन
राज्य-स्तर पर SICs की स्थिति बेहद विकट है। राज्यों को स्थानीय रूप से सक्रिय होना होगा, प्रत्येक राज्य में SICs को कार्यशील बनाए रखना होगा। - न्यायालय-कार्यपालिका संवाद
न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि नियुक्ति में अयोग्यता होगी तो वह हस्तक्षेप करेगा — इसलिए सरकार को निर्णय प्रक्रिया में न्यायालय-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय द्वारा एक महत्वपूर्ण सीमा-रेखा स्थापित की है — जहाँ न्यायिक हस्तक्षेप और प्रशासनिक स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। “नाम प्रकाशित करो”-से लेकर “पूरी प्रक्रिया बंद करो” तक का मध्य-पथ उन्होंने अपनाया है।
लेकिन इस निर्णय की सफलता उस बात पर निर्भर करेगी कि केंद्र एवं राज्य प्रशासन कितनी तत्परता एवं पारदर्शिता से कार्य करते हैं। यदि आयोग-नियुक्तियाँ समय-बद्ध एवं योग्य रूप से पूर्ण होती हैं, तो RTI प्रणाली को बल मिलेगा; यदि नहीं, तो यह निर्णय आलोचना और भरोसे की गिरावट का कारण बन सकता है।