IndianLawNotes.com

Supreme Court ने असाधारण शक्ति का उपयोग कर दोषसिद्धि रद्द की: ‘K. Kirubakaran v. State of Tamil Nadu’ — Article 142 के तहत दुर्लभ निर्णय

Supreme Court ने असाधारण शक्ति का उपयोग कर दोषसिद्धि रद्द की: ‘K. Kirubakaran v. State of Tamil Nadu’ — Article 142 के तहत दुर्लभ निर्णय

भूमिका

        भारतीय न्याय व्यवस्था में ऐसे बहुत कम अवसर आते हैं जब सर्वोच्च न्यायालय संविधान के Article 142 के अंतर्गत अपनी असाधारण और पूर्ण न्याय (complete justice) की शक्ति का इस्तेमाल करता है। यह प्रावधान Supreme Court को यह अनुमति देता है कि वह न्याय के हित में किसी भी प्रकार का आदेश पारित कर सके, भले ही वैधानिक प्रावधान कुछ और कहते हों।

       हाल ही में ऐसा ही एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण निर्णय K. Kirubakaran vs State of Tamil Nadu के मामले में देखने को मिला। इस मामले में आरोपी पुरुष को धारा 366 IPC (अपहरण कर विवाह के लिए प्रेरित करना) और POCSO Act की धारा 6 (गंभीर यौन अपराध) के तहत दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों ने उसे दोषी करार देकर कठोर सजा सुनाई थी।

       लेकिन—सुप्रीम कोर्ट ने, एक असाधारण कदम उठाते हुए—इस दोषसिद्धि और सजा को पूरी तरह निरस्त (quash) कर दिया, क्योंकि पीड़िता और आरोपी बाद में वयस्क होने पर विवाह कर चुके थे और अब उनके बच्चे सहित पूरा परिवार शांतिपूर्ण जीवन बिता रहा था।

        यह निर्णय कई दृष्टियों से ऐतिहासिक है—कानूनी, नैतिक, सामाजिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से। इस लेख में हम इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि, सुप्रीम कोर्ट की विवेचना, Article 142 के उपयोग, POCSO कानून की कठोरता और परिवार के हित में न्यायालय द्वारा अपनाए गए मानवीय दृष्टिकोण का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


मामले की पृष्ठभूमि

1. आरोपी और पीड़िता के संबंध

  • आरोपी और पीड़िता (जो उस समय नाबालिग थीं) एक ही गांव में रहते थे।
  • दोनों के बीच प्रेम संबंध विकसित हुआ था और वे एक साथ घर छोड़कर चले गए।

2. परिवार की शिकायत

लड़की के परिवारजनों ने आरोपी पर आरोप लगाया कि उसने नाबालिग लड़की का अपहरण किया और उसके साथ यौन संबंध बनाए।

3. पुलिस कार्रवाई

FIR दर्ज हुई जिसमें IPC की धारा 366 तथा POCSO Act की धारा 6 के आरोप लगाए गए।

4. ट्रायल कोर्ट का फैसला

  • आरोपी को कठोर कारावास की सजा दी गई,
  • POCSO की धारा 6 के तहत 10 वर्ष या इससे अधिक की सजा अनिवार्य है,
  • इसलिए अदालत ने कोई नरमी नहीं दिखाई।

5. हाई कोर्ट का निर्णय

हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और कहा कि—

“नाबालिग के साथ सहमति का प्रश्न ही नहीं उठता; इसलिए आरोपी दोषी है।”

इस प्रकार आरोपी की कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची।


सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य तर्क

आरोपी की ओर से यह महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किया गया—

  1. पीड़िता अब वयस्क है,
  2. दोनों ने सहमति से विवाह किया है,
  3. अब दोनों के बच्चे हैं,
  4. पूरा परिवार स्थिर एवं शांतिपूर्ण जीवन बिता रहा है,
  5. जेल भेजने से पत्नी और बच्चों का जीवन नष्ट हो जाएगा,
  6. पीड़िता ने खुद सुप्रीम कोर्ट से आरोपी को राहत देने की प्रार्थना की।

पीड़िता ने अदालत को बताया कि—

“मेरे पति को जेल भेजना मेरे और मेरे बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेल देगा।
मैंने अपना जीवन साथी स्वयं चुना है और मैं चाहती हूँ कि मामला यहीं समाप्त हो।”

इस मानवीय अपील ने मामले को एक अलग आयाम दे दिया।


सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य प्रश्न

न्यायालय निम्न महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार कर रहा था—

  1. क्या POCSO Act के तहत दोषसिद्धि को केवल इसलिए रद्द किया जा सकता है क्योंकि पीड़िता और आरोपी बाद में वयस्क होकर विवाह कर चुके हैं?
  2. क्या Article 142 का उपयोग कर Supreme Court पूर्ण न्याय (complete justice) प्रदान कर सकता है?
  3. क्या इस मामले में कानून की कठोरता के बजाय मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए?

इन प्रश्नों के उत्तर ने इस निर्णय को असाधारण बना दिया।


सुप्रीम कोर्ट का तर्क और विश्लेषण

1. POCSO Act का उद्देश्य महत्वपूर्ण, परंतु कठोरता का सीमित उपयोग

अदालत ने स्वीकार किया कि POCSO Act का उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देना है, और इस कानून का दुरुपयोग रुकना चाहिए।
लेकिन Supreme Court ने यह भी कहा कि—

“इस मामले में आरोपी और पीड़िता के बीच संबंध प्रेम संबंध के आधार पर बने थे, न कि हिंसा, मजबूरी या शोषण के।”

इसलिए मामले की परिस्थितियाँ सामान्य POCSO मामलों से काफी भिन्न थीं।


2. विवाह और पारिवारिक जीवन को संरक्षित रखना न्याय के हित में

अदालत ने कहा—

“यदि हम अब आरोपी को जेल भेजते हैं, तो उसकी पत्नी और नन्हे बच्चे सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से बर्बाद हो जाएंगे।
इसका परिणाम अत्यंत कठोर और अन्यायपूर्ण होगा।”

अदालत ने स्पष्ट किया कि न्याय केवल कानूनी सिद्धांतों का पालन करना नहीं, बल्कि समाज के वास्तविक जीवन पर प्रभाव को भी देखना है।


3. पीड़िता की इच्छा सर्वोपरि

पीड़िता ने उच्चतम न्यायालय के सामने स्पष्ट रूप से कहा—

  • “मैंने आरोपी से अपनी इच्छा से विवाह किया।”
  • “मैं उससे अलग नहीं होना चाहती।”
  • “मैं चाहती हूँ अदालत उसे मुक्त कर दे।”

अदालत ने कहा कि—

“जब पीड़िता स्वयं उच्चतम न्यायालय से पति को राहत देने का अनुरोध कर रही है, तो इसे अनदेखा करना अन्याय होगा।”


4. Article 142: Complete Justice

यह निर्णय का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।

Article 142 Supreme Court को यह शक्ति देता है कि—

“न्याय के पूर्ण हित में कोई भी आदेश पारित किया जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि—

  • यह मामला असाधारण परिस्थितियों वाला है,
  • कानून की कठोरता लागू करने से परिवार नष्ट हो जाएगा,
  • इसलिए न्याय के पूर्ण हित में दोषसिद्धि रद्द की जा सकती है।

यह एक दुर्लभ उदाहरण है जहां Supreme Court ने Article 142 के तहत पूर्ण न्याय के लिए IPC और POCSO दोनों की दोषसिद्धि रद्द कर दी।


फैसले का अंतिम परिणाम

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया—

  1. दोषसिद्धि और सजा पूरी तरह रद्द (Quashed)
  2. आरोपी को पूरी तरह बरी किया गया
  3. उसके खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी
  4. परिवार को शांति और स्थिरता के साथ जीवन जीने की अनुमति दी गई

यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?

1. POCSO Act की कठोरता के बावजूद मानवीय दृष्टिकोण

यह फैसला दिखाता है कि अदालतें समझती हैं कि—

  • हर मामला एक जैसा नहीं होता,
  • कानून का उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि न्याय प्रदान करना है।

2. पीड़िता की इच्छा को सर्वोच्च महत्व

अदालत ने माना कि—

“पीड़िता के स्वतंत्र निर्णय को नजरअंदाज करके न्याय नहीं किया जा सकता।”

3. पारिवारिक जीवन की सुरक्षा

यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहलू है।
परिवार को बचाने का निर्णय आधुनिक न्यायिक दर्शन का हिस्सा है।

4. Article 142 की शक्ति का संतुलित उपयोग

बहुत कम मामलों में Supreme Court इस धारा का उपयोग करता है।
इस मामले में यह उपयोग न्यायसंगत माना गया।


महत्वपूर्ण न्यायिक सिद्धांत जो इस मामले से निकलते हैं

(1) कानून कठोर है, परंतु न्याय को मनुष्य के जीवन से अलग नहीं किया जा सकता।

(2) POCSO Act का उद्देश्य शोषण रोकना है, न कि प्रेम संबंधों पर कठोर दंड देना।

(3) पीड़िता की इच्छा और उसके वर्तमान जीवन की परिस्थितियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं।

(4) Article 142 के तहत Supreme Court असाधारण परिस्थितियों में पूर्ण न्याय कर सकता है।


इस तरह के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की अन्य टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि—

  • देश में कई राज्य ऐसे मामलों में लव अफेयर और एडोलेसेंट रिलेशनशिप को अपराध की कठोर परिभाषा में डाल देते हैं,
  • जिससे कई युवकों को लंबी सजा भुगतनी पड़ती है,
  • जबकि संबंध आपसी सहमति से बने होते हैं।

अदालत ने इस पर चिंतन की आवश्यकता जताई।


आलोचनाएँ और समर्थन

समर्थन में:

  • यह निर्णय मानवीय है,
  • परिवार का भविष्य सुरक्षित हुआ,
  • POCSO में लचीलेपन की आवश्यकता दर्शाई गई।

आलोचना में:

  • कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि POCSO की कठोरता कम होने का गलत संदेश जा सकता है,
  • यह भी तर्क दिया गया कि नाबालिग होने पर सहमति वैध नहीं होती।

लेकिन Supreme Court ने स्पष्ट किया कि यह असाधारण परिस्थितियों वाला मामला है और भविष्य में इसे सामान्य नियम की तरह न देखा जाए


निष्कर्ष

K. Kirubakaran vs State of Tamil Nadu का फैसला भारतीय न्यायशास्त्र में एक मील का पत्थर है।

यह हमें सिखाता है कि—

  • न्याय केवल कानून की किताबों में नहीं होता,
  • न्याय लोगों के जीवन, संबंधों, परिवार और भविष्य से जुड़ा होता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा Article 142 का उपयोग कर दोषसिद्धि रद्द करना यह दिखाता है कि—

अदालत तब भी न्याय कर सकती है,
जब कानून की कठोरता अन्याय पैदा कर दे।

यह निर्णय बताता है कि—

  • न्याय मानवता से ऊपर नहीं हो सकता,
  • और कानून का अंतिम उद्देश्य—समाज में शांति, संतुलन और न्याय को बढ़ावा देना है।