Strict Liability का सिद्धांत : एक गहन अध्ययन
प्रस्तावना
कानून का मुख्य उद्देश्य समाज में संतुलन और न्याय की स्थापना करना है। जब किसी व्यक्ति के कार्यों से दूसरे व्यक्ति को हानि पहुँचती है, तो विधि उसे दायित्वपूर्ण ठहराती है। सामान्यत: दायित्व तभी तय होता है जब व्यक्ति का दोष (fault) सिद्ध हो। किंतु कुछ स्थितियों में, भले ही कोई दोष सिद्ध न हो, कानून व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराता है। इस प्रकार के दायित्व को ही Strict Liability कहा जाता है। यह सिद्धांत मुख्यतः Rylands v. Fletcher (1868) केस से विकसित हुआ, जिसने आधुनिक टॉर्ट कानून में क्रांतिकारी परिवर्तन किया।
Strict Liability की परिभाषा
Strict Liability का अर्थ है – “यदि कोई व्यक्ति अपने उद्देश्यों के लिए किसी खतरनाक पदार्थ को अपनी भूमि पर लाता है और उसका उपयोग करता है, और यदि वह पदार्थ किसी भी कारण से बाहर निकल जाता है तथा उससे हानि होती है, तो वह व्यक्ति उत्तरदायी होगा, भले ही उसने पूरी सावधानी बरती हो।”
इसका मूल आधार यह है कि जो व्यक्ति कोई असामान्य और खतरनाक कार्य करता है, वह उसकी संभावित हानि के लिए स्वयं जिम्मेदार होगा।
Rylands v. Fletcher (1868): उत्पत्ति का आधार
तथ्य (Facts)
इस केस में प्रतिवादी (Defendant) ने अपनी भूमि पर जलाशय (Reservoir) बनाने के लिए ठेकेदार नियुक्त किया। जलाशय के नीचे पुरानी खदानें थीं, जिन्हें सही ढंग से भरा नहीं गया था। जब जलाशय में पानी भरा गया तो पानी रिसकर पड़ोसी भूमि पर पहुँचा और वहाँ की कोयला खदान को नुकसान हुआ।
निर्णय (Decision)
लॉर्ड Cairns और लॉर्ड Blackburn ने कहा कि –
- जब कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर कोई ऐसी चीज लाता है और रखता है,
- जो यदि निकल जाए तो दूसरे को हानि पहुँचा सकती है,
- और वह चीज वास्तव में निकलकर हानि पहुँचाती है,
तो वह व्यक्ति हानि का उत्तरदायी होगा, चाहे उसने पूरी सावधानी ही क्यों न बरती हो।
नियम
इस केस से “Rule of Strict Liability” स्थापित हुआ। यह दोष के बिना दायित्व (Liability without Fault) की अवधारणा है।
Strict Liability के आवश्यक तत्व
- खतरनाक वस्तु का संकलन (Accumulation of Dangerous Thing)
- प्रतिवादी ने अपनी भूमि पर ऐसी वस्तु एकत्रित की हो, जो स्वभाव से खतरनाक हो या निकलने पर हानि पहुँचा सके।
- जैसे – पानी, गैस, विस्फोटक, रसायन, विद्युत, आदि।
- अप्राकृतिक उपयोग (Non-Natural Use of Land)
- भूमि का उपयोग प्राकृतिक न हो।
- जलाशय, रसायन कारखाना, परमाणु संयंत्र आदि भूमि का अप्राकृतिक उपयोग माने जाते हैं।
- Natural Use का अर्थ केवल साधारण घरेलू या सामान्य उपयोग है।
- पदार्थ का बाहर निकलना (Escape of the Thing)
- वस्तु प्रतिवादी की भूमि से बाहर निकलकर वादी की भूमि या सार्वजनिक क्षेत्र में पहुँचे।
- यदि हानि केवल प्रतिवादी की भूमि के अंदर ही हो तो Strict Liability लागू नहीं होगी।
- हानि (Damage)
- बाहर निकलने से वास्तविक हानि होनी चाहिए, चाहे वह संपत्ति को हो, व्यक्ति को या पर्यावरण को।
Strict Liability के अपवाद (Exceptions)
हालाँकि यह नियम कठोर है, फिर भी न्यायालयों ने कुछ अपवाद मान्य किए हैं—
- वादकारी की गलती (Plaintiff’s Fault)
- यदि वादी की अपनी गलती से हानि हुई है, तो प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं होगा।
- Ponting v. Noakes (1894) में वादी का घोड़ा प्रतिवादी की भूमि में जाकर जहरीला पौधा खा गया और मर गया। कोर्ट ने कहा कि Strict Liability लागू नहीं होगी।
- ईश्वर की इच्छा (Act of God)
- यदि हानि प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप, बाढ़, बिजली गिरने आदि से हुई हो।
- तीसरे व्यक्ति का कृत्य (Act of Third Party)
- यदि किसी अज्ञात तीसरे व्यक्ति की गलती से पदार्थ बाहर निकला हो।
- Box v. Jubb (1879) में Reservoir तीसरे व्यक्ति के कारण फट गया, प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं ठहराया गया।
- वादी की सहमति (Consent of Plaintiff)
- यदि वादी ने स्वयं खतरे को स्वीकार किया हो।
- Volenti non fit injuria के सिद्धांत के अनुसार वादी को क्षतिपूर्ति नहीं मिलेगी।
- वैधानिक अधिकार (Statutory Authority)
- यदि कोई कार्य किसी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा अधिकृत है, तो Strict Liability लागू नहीं होगी।
भारत में Strict Liability और Absolute Liability
भारत में M.C. Mehta v. Union of India (1987) – Oleum Gas Leak Case ने Strict Liability को और आगे बढ़ाकर Absolute Liability का सिद्धांत दिया।
तथ्य
श्रीराम फर्टिलाइज़र उद्योग से ओलियम गैस रिसाव हुआ, जिससे दिल्ली में कई लोग प्रभावित हुए और कुछ की मृत्यु भी हो गई।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि –
- जब कोई उद्योग खतरनाक गतिविधि करता है,
- और उससे हानि होती है,
- तो उद्योग को Absolute Liability के तहत उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
इसमें कोई अपवाद लागू नहीं होंगे।
इस प्रकार भारत में Strict Liability का स्थान Absolute Liability ने ले लिया।
महत्वपूर्ण भारतीय व विदेशी केस लॉ
- Rylands v. Fletcher (1868) – Strict Liability का मूल सिद्धांत।
- Nichols v. Marsland (1876) – Act of God अपवाद को मान्यता।
- Ponting v. Noakes (1894) – Plaintiff’s Fault अपवाद।
- Read v. Lyons (1947) – Escape का अभाव होने पर दायित्व नहीं।
- M.C. Mehta v. Union of India (1987) – भारत में Absolute Liability सिद्धांत।
- Indian Council for Enviro-Legal Action v. Union of India (1996) – प्रदूषण करने वाले उद्योगों पर कठोर दायित्व।
- Bhopal Gas Tragedy (1984) – यद्यपि कोर्ट ने सीधा Absolute Liability नहीं कहा, पर यह घटना सिद्धांत को प्रेरित करने वाली रही।
Strict Liability और Absolute Liability में अंतर
बिंदु | Strict Liability | Absolute Liability |
---|---|---|
उत्पत्ति | Rylands v. Fletcher (1868) | M.C. Mehta v. Union of India (1987) |
अपवाद | अनेक अपवाद जैसे Act of God, Plaintiff’s Fault आदि | कोई अपवाद नहीं |
परिमाण | सीमित दायित्व | असीमित दायित्व |
प्रकृति | दोष के बिना परंतु सीमित | दोष के बिना और पूर्ण रूप से कठोर |
भारतीय परिप्रेक्ष्य में महत्व
- औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण खतरनाक पदार्थों का उपयोग बढ़ा है।
- पर्यावरण संरक्षण और मानव सुरक्षा के लिए कठोर नियम आवश्यक हैं।
- भारत में Article 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार को ध्यान में रखते हुए Absolute Liability लागू होती है।
- यह सिद्धांत प्रदूषण नियंत्रण, औद्योगिक दुर्घटनाओं और पर्यावरणीय न्याय में महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
Strict Liability का सिद्धांत टॉर्ट कानून में दोष के बिना दायित्व की परिकल्पना करता है। यह उस विचार पर आधारित है कि जो व्यक्ति समाज में खतरनाक गतिविधियाँ करता है, वह उनकी संभावित हानि के लिए उत्तरदायी होगा। यद्यपि Rylands v. Fletcher ने इसकी नींव रखी, लेकिन भारत में इसे और विकसित कर Absolute Liability का रूप दिया गया।
आज के समय में, जब औद्योगिक दुर्घटनाएँ, प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट आम हो गए हैं, यह सिद्धांत न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने का साधन है, बल्कि उद्योगों को भी सावधानी और जिम्मेदारी से काम करने के लिए प्रेरित करता है।