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State (NCT of Delhi) v. Navjot Sandhu (Parliament Attack Case, 2005) धारा 65B के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की व्याख्या

State (NCT of Delhi) v. Navjot Sandhu (Parliament Attack Case, 2005) धारा 65B के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की व्याख्या


1. प्रस्तावना (Introduction)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 65B को Information Technology Act, 2000 द्वारा जोड़ा गया, ताकि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने की प्रक्रिया स्पष्ट हो सके।

धारा 65B का मुख्य उद्देश्य है —

  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को प्रमाणित तरीके से अदालत में प्रस्तुत करना,
  • उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करना,
  • और डेटा से छेड़छाड़ की संभावना को कम करना।

State (NCT of Delhi) v. Navjot Sandhu (2005) में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार धारा 65B की व्याख्या करते हुए यह कहा कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने के लिए certificate under Section 65B(4) आवश्यक है, लेकिन अगर यह प्रमाणपत्र नहीं है, तब भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अन्य साक्ष्य नियमों के तहत स्वीकार किया जा सकता है।


2. मामले का पृष्ठभूमि (Background of the Case)
2.1 संसद हमला (Parliament Attack)
  • 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला हुआ।
  • इस हमले में सुरक्षा बलों के कई जवान और स्टाफ सदस्य शहीद हुए, जबकि सभी पाँच आतंकवादी मारे गए।
  • जाँच के दौरान कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें अफजल गुरु, शौकत हुसैन गुरु, S.A.R. गिलानी और नवजोत संधू (आफशान गुरु) शामिल थे।
2.2 इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का महत्व
  • अभियोजन पक्ष ने मुख्य रूप से कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDRs), मोबाइल फोन जब्ती, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डेटा पर भरोसा किया।
  • यह दिखाने की कोशिश की गई कि आरोपियों ने एक-दूसरे से और आतंकवादियों से घटना से पहले व दौरान संपर्क किया था।

3. अभियोजन और बचाव पक्ष के तर्क (Arguments)
3.1 अभियोजन पक्ष
  • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, जैसे कॉल रिकॉर्ड्स और इंटरसेप्टेड बातचीत, घटना की साजिश साबित करते हैं।
  • मोबाइल कंपनियों से प्राप्त डेटा धारा 65B के तहत स्वीकार्य है।
3.2 बचाव पक्ष
  • कॉल रिकॉर्ड्स धारा 65B(4) के तहत आवश्यक प्रमाणपत्र के बिना प्रस्तुत किए गए थे।
  • ऐसे में ये साक्ष्य स्वीकार्य नहीं होने चाहिए।
  • बिना प्रमाणपत्र के इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की विश्वसनीयता संदिग्ध है।

4. मुख्य कानूनी प्रश्न (Legal Issue)

क्या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, जैसे कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स, धारा 65B(4) के तहत आवश्यक प्रमाणपत्र के बिना भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अन्य प्रावधानों के अंतर्गत अदालत में स्वीकार किए जा सकते हैं?


5. सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court’s Analysis)

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं —

  1. धारा 65B का उद्देश्य
    • यह सुनिश्चित करना कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रामाणिकता बनी रहे और उसे प्रमाणित करने के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया अपनाई जाए।
  2. प्रमाणपत्र की आवश्यकता
    • धारा 65B(4) कहती है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने के लिए एक अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाणपत्र आवश्यक है, जिसमें रिकॉर्ड के निर्माण और संग्रहण की प्रक्रिया का विवरण हो।
  3. अन्य धाराओं के तहत स्वीकार्यता
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि धारा 65B(4) के तहत प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं है, तो इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63 और धारा 65 के तहत secondary evidence के रूप में भी स्वीकार किया जा सकता है।
    • इसका मतलब यह हुआ कि प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति में भी अन्य साक्ष्य नियमों के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पेश किया जा सकता है।
  4. मूल साक्ष्य और द्वितीयक साक्ष्य
    • यदि मूल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (जैसे हार्ड ड्राइव, सर्वर) उपलब्ध है, तो उसे सीधे अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है और इसके लिए 65B का प्रमाणपत्र जरूरी नहीं है।
    • लेकिन यदि केवल उसकी कॉपी (प्रिंटआउट, सीडी, आदि) दी जा रही है, तो 65B प्रमाणपत्र बेहतर होगा, पर उसकी अनुपस्थिति में भी साक्ष्य अस्वीकार नहीं होगा।

6. निर्णय (Judgment)
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 65B प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति में भी कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स और अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार किया जा सकता है, यदि वे अन्य साक्ष्य नियमों के तहत प्रमाणित किए जाएं।
  • अदालत ने धारा 65B को mandatory requirement के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे एक procedural safeguard माना।
  • इस आधार पर अदालत ने कई इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को स्वीकार किया और अफजल गुरु को मौत की सजा, जबकि शौकत हुसैन गुरु और S.A.R. गिलानी को सजा सुनाई गई (बाद में गिलानी को हाईकोर्ट ने बरी किया)।

7. धारा 65B पर प्रभाव (Impact on Section 65B Interpretation)

इस निर्णय के बाद वर्षों तक यह मान लिया गया कि —

  • यदि 65B प्रमाणपत्र नहीं है, तब भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अन्य तरीकों से पेश किए जा सकते हैं।
  • यह दृष्टिकोण पुलिस और अभियोजन पक्ष के लिए आसान था, लेकिन इससे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की सुरक्षा और प्रामाणिकता पर सवाल भी उठे।

8. बाद के महत्वपूर्ण निर्णय (Subsequent Developments)
8.1 Anvar P.V. v. P.K. Basheer (2014)
  • सुप्रीम कोर्ट ने Navjot Sandhu का दृष्टिकोण बदल दिया।
  • कहा कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की कॉपी को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने के लिए धारा 65B प्रमाणपत्र अनिवार्य है।
  • बिना प्रमाणपत्र के इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य स्वीकार नहीं किए जा सकते।
8.2 Arjun Panditrao Khotkar v. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020)
  • तीन जजों की पीठ ने Anvar P.V. को सही ठहराया।
  • स्पष्ट किया कि 65B प्रमाणपत्र mandatory है, सिवाय इसके कि मूल डिवाइस सीधे अदालत में प्रस्तुत किया जाए।

9. आलोचना और सीमाएँ (Criticism and Limitations)
  • Navjot Sandhu दृष्टिकोण – प्रमाणपत्र की अनिवार्यता न मानने से इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य में छेड़छाड़ का खतरा बढ़ गया।
  • तकनीकी जटिलता – धारा 65B का पालन करना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह साक्ष्य की विश्वसनीयता के लिए जरूरी है।
  • बाद में बदलाव – बाद के मामलों ने इस दृष्टिकोण को पलट दिया, जिससे अब 65B प्रमाणपत्र के बिना कॉपी आधारित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश करना संभव नहीं है।

10. निष्कर्ष (Conclusion)

State (NCT of Delhi) v. Navjot Sandhu (2005) भारतीय इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य कानून में एक अहम मील का पत्थर है, क्योंकि इसमें पहली बार धारा 65B की व्याख्या की गई।

मुख्य बिंदु:

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 65B प्रमाणपत्र आवश्यक नहीं है, और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड अन्य प्रावधानों के तहत भी पेश किए जा सकते हैं।
  • इस निर्णय ने अभियोजन को सुविधा दी, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की सुरक्षा पर सवाल उठाए।
  • बाद के मामलों (Anvar P.V. और Arjun Panditrao) ने इस दृष्टिकोण को बदल दिया और 65B प्रमाणपत्र को अनिवार्य बना दिया।

आज, यह केस एक ऐतिहासिक लेकिन संशोधित दृष्टिकोण के उदाहरण के रूप में पढ़ाया जाता है, जो बताता है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ कानून भी बदलता है और न्यायालयों को साक्ष्य की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अपने रुख में बदलाव करना पड़ता है।