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Shreya Singhal v. Union of India (2015): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आईटी एक्ट की धारा 66A पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

Shreya Singhal v. Union of India (2015): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आईटी एक्ट की धारा 66A पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression)। यह अधिकार न केवल विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है, बल्कि लोकतांत्रिक समाज की नींव भी है। लेकिन समय-समय पर विभिन्न कानूनों और प्रावधानों ने इस अधिकार पर नियंत्रण लगाने की कोशिश की है। ऐसा ही एक विवादास्पद प्रावधान था सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) की धारा 66A, जिसने ऑनलाइन अभिव्यक्ति पर गंभीर प्रतिबंध लगाए।

मार्च 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने Shreya Singhal v. Union of India मामले में इस धारा को असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित कर दिया। यह फैसला न केवल भारत में इंटरनेट स्वतंत्रता (Internet Freedom) की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ बल्कि विश्व स्तर पर भी इसे एक प्रगतिशील कदम माना गया। आइए इस ऐतिहासिक मामले का विस्तृत विश्लेषण करते हैं।


पृष्ठभूमि: धारा 66A का प्रावधान

आईटी एक्ट, 2000 की धारा 66A को वर्ष 2008 में संशोधन द्वारा जोड़ा गया था। इस प्रावधान के अनुसार:

  • यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट के माध्यम से कोई भी ऐसा संदेश भेजता है जो
    • अत्यधिक आपत्तिजनक (grossly offensive) हो,
    • धमकीपूर्ण (menacing) हो, या
    • झूठी सूचना (false information) देकर असुविधा, परेशानी या शत्रुता फैलाता हो,

तो उसे 3 वर्ष तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान था।

समस्या यह थी कि इस धारा की भाषा अत्यधिक अस्पष्ट और व्यापक (vague and overbroad) थी। “आपत्तिजनक”, “असुविधा”, “परेशानी” जैसे शब्दों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई थी। इसके कारण पुलिस और प्रशासन को यह अधिकार मिल गया कि वे मनमाने ढंग से किसी भी ऑनलाइन अभिव्यक्ति को अपराध मानकर कार्रवाई कर सकते थे।


विवाद और उत्पत्ति

धारा 66A के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए। उदाहरण के लिए:

  • 2012 में महाराष्ट्र में दो लड़कियों को फेसबुक पोस्ट करने और लाइक करने के लिए गिरफ्तार किया गया।
  • कई पत्रकारों, कार्टूनिस्टों और सोशल मीडिया यूजर्स पर इस धारा का प्रयोग किया गया।

इन घटनाओं ने जनचर्चा और विरोध को जन्म दिया। लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। इसी पृष्ठभूमि में श्रेया सिंघल (Shreya Singhal), जो कि कानून की छात्रा थीं, ने इस धारा की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।


याचिकाकर्ता (Petitioner) के तर्क

याचिकाकर्ता और अन्य समर्थकों ने निम्नलिखित मुख्य तर्क दिए:

  1. अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन
    धारा 66A सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करती है।
  2. अस्पष्टता और मनमानी
    प्रावधान में प्रयुक्त शब्द जैसे “grossly offensive” और “menacing” अत्यंत अस्पष्ट हैं। इससे पुलिस के पास मनमाने ढंग से कार्रवाई करने की शक्ति आ जाती है।
  3. प्रतिबंधों का अनुचित विस्तार
    संविधान के अनुच्छेद 19(2) में केवल कुछ निश्चित आधारों (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता आदि) पर ही अभिव्यक्ति पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन धारा 66A इनसे कहीं अधिक व्यापक थी।
  4. अत्यधिक दमनकारी प्रभाव
    यह प्रावधान लोगों में भय उत्पन्न करता है और स्वयं सेंसरशिप (self-censorship) की स्थिति पैदा करता है।

सरकार (Respondent) के तर्क

भारत सरकार ने इस धारा का बचाव करते हुए कहा:

  1. कानून आवश्यक था – इंटरनेट और सोशल मीडिया पर गलत और आपत्तिजनक सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए यह प्रावधान जरूरी था।
  2. दुरुपयोग का आधार नहीं – केवल इसलिए कि कुछ मामलों में इसका दुरुपयोग हुआ, धारा को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।
  3. संविधान सम्मत उद्देश्य – सरकार ने तर्क दिया कि यह धारा अनुच्छेद 19(2) के दायरे में आती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाती है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

24 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस आर.एफ. नारिमन की पीठ ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

मुख्य बिंदु:

  1. धारा 66A असंवैधानिक घोषित
    कोर्ट ने कहा कि धारा 66A अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन करती है और अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध के दायरे में नहीं आती।
  2. अस्पष्टता और अति-विस्तार
    धारा की भाषा अत्यधिक अस्पष्ट और व्यापक है। “आपत्तिजनक” या “परेशान करने वाला” जैसे शब्द व्यक्तिपरक (subjective) हैं और इनकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं है।
  3. चिलिंग इफेक्ट (Chilling Effect)
    कोर्ट ने माना कि इस धारा से नागरिकों में भय उत्पन्न होता है और वे अपनी राय व्यक्त करने से डरते हैं। यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
  4. अनुच्छेद 19(2) से असंगत
    धारा 66A उन आधारों पर भी अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करती थी, जिन्हें संविधान ने अनुच्छेद 19(2) में शामिल नहीं किया है। इसलिए यह असंवैधानिक है।
  5. धारा 69A और 79 को बरकरार
    सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 69A (वेबसाइट ब्लॉकिंग) और धारा 79 (इंटरमीडियरी की जिम्मेदारी) को संवैधानिक माना, क्योंकि इनमें पर्याप्त सुरक्षा उपाय (safeguards) मौजूद थे।

फैसले का महत्व और प्रभाव

  1. इंटरनेट स्वतंत्रता की जीत
    यह फैसला भारत में इंटरनेट स्वतंत्रता को मजबूत करता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  2. लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा
    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है। यह निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती का प्रतीक है।
  3. विधायी चेतावनी
    संसद को यह संदेश गया कि ऐसे प्रावधान जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें अदालत द्वारा असंवैधानिक ठहराया जा सकता है।
  4. अंतरराष्ट्रीय सराहना
    इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया और इसे इंटरनेट पर स्वतंत्रता के क्षेत्र में ऐतिहासिक माना गया।
  5. दुरुपयोग की रोकथाम
    धारा 66A के हटने से निर्दोष लोगों की गिरफ्तारी और उत्पीड़न का खतरा कम हुआ।

आलोचना और सीमाएँ

हालाँकि यह फैसला सराहनीय था, लेकिन कुछ आलोचनाएँ भी सामने आईं:

  • सरकार का तर्क था कि अब ऑनलाइन अपराधों पर रोक लगाना कठिन हो गया है।
  • सोशल मीडिया पर फर्जी समाचार (fake news), ट्रोलिंग और घृणास्पद भाषण (hate speech) को नियंत्रित करने के लिए अन्य प्रभावी प्रावधानों की आवश्यकता महसूस की गई।

निष्कर्ष

Shreya Singhal v. Union of India (2015) भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को केवल उसी हद तक सीमित किया जा सकता है, जितना संविधान अनुमति देता है। धारा 66A की अस्पष्टता और व्यापकता ने नागरिकों के अधिकारों को सीधे प्रभावित किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से असंवैधानिक ठहराया।

यह निर्णय न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में डिजिटल स्वतंत्रता (Digital Freedom) की रक्षा के लिए उदाहरण के रूप में देखा जाता है। आज के युग में, जब सोशल मीडिया और इंटरनेट लोकतंत्र की आवाज बन चुके हैं, यह फैसला आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक रहेगा।


Shreya Singhal v. Union of India (2015) – प्रश्नोत्तर (Q&A)

Q.1. Shreya Singhal v. Union of India (2015) केस की पृष्ठभूमि क्या थी?

Ans. यह मामला सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A से संबंधित था, जो इंटरनेट पर “आपत्तिजनक” या “परेशान करने वाले” संदेश भेजने को अपराध घोषित करता था। इस धारा का कई बार दुरुपयोग हुआ, जैसे सोशल मीडिया पोस्ट पर लोगों की गिरफ्तारी। इसी कारण इसकी संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।


Q.2. आईटी एक्ट की धारा 66A का प्रावधान क्या था?

Ans. धारा 66A के तहत, यदि कोई व्यक्ति कंप्यूटर या संचार उपकरण द्वारा कोई आपत्तिजनक, धमकीपूर्ण, या झूठा संदेश भेजता था जिससे असुविधा, परेशानी या शत्रुता उत्पन्न होती हो, तो उसे 3 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता था।


Q.3. याचिकाकर्ता (Shreya Singhal) ने क्या तर्क दिए?

Ans.

  1. धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करती है।
  2. इसमें प्रयुक्त शब्द “grossly offensive” और “annoying” अत्यंत अस्पष्ट और व्यापक हैं।
  3. यह अनुच्छेद 19(2) में दिए गए वैध प्रतिबंधों से परे जाकर नागरिकों के अधिकारों का हनन करती है।
  4. इस धारा से भय और स्वयं सेंसरशिप (self-censorship) की स्थिति उत्पन्न होती है।

Q.4. सरकार ने धारा 66A का बचाव कैसे किया?

Ans.

  1. इंटरनेट पर आपत्तिजनक और गलत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए यह प्रावधान जरूरी है।
  2. केवल दुरुपयोग होने के कारण किसी धारा को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।
  3. यह प्रावधान अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत उचित प्रतिबंधों में आता है।

Q.5. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को क्यों असंवैधानिक घोषित किया?

Ans.

  • यह धारा अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन करती है।
  • “आपत्तिजनक”, “परेशान करने वाला” जैसे शब्द अस्पष्ट और व्यक्तिपरक हैं।
  • यह अनुच्छेद 19(2) में दिए गए वैध प्रतिबंधों के बाहर जाकर नागरिकों की स्वतंत्रता सीमित करती है।
  • इससे चिलिंग इफेक्ट (chilling effect) उत्पन्न होता है।

Q.6. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किस न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया और मुख्य निष्कर्ष क्या था?

Ans. यह निर्णय जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस आर.एफ. नारिमन की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने 24 मार्च 2015 को सुनाया। मुख्य निष्कर्ष था कि धारा 66A असंवैधानिक है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असंवैधानिक और अनुचित प्रतिबंध लगाती है।


Q.7. कोर्ट ने धारा 69A और 79 के बारे में क्या कहा?

Ans. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 69A (वेबसाइट ब्लॉकिंग) और धारा 79 (इंटरमीडियरी की जिम्मेदारी) को संवैधानिक माना, क्योंकि इनमें पर्याप्त सुरक्षा उपाय (safeguards) मौजूद हैं और ये अनुच्छेद 19(2) के दायरे में आते हैं।


Q.8. इस निर्णय का महत्व क्या है?

Ans.

  1. भारत में इंटरनेट स्वतंत्रता (Internet Freedom) की जीत हुई।
  2. नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हुई।
  3. लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती हुई।
  4. विधायिका को चेतावनी मिली कि वह मौलिक अधिकारों से परे जाकर कोई कानून न बनाए।
  5. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी सराहना हुई।

Q.9. इस निर्णय के बाद भी किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

Ans.

  • फर्जी समाचार (Fake News), घृणास्पद भाषण (Hate Speech) और ऑनलाइन ट्रोलिंग पर नियंत्रण करना कठिन हो गया।
  • सरकार को साइबर अपराधों से निपटने के लिए अन्य वैधानिक उपायों की आवश्यकता पड़ी।

Q.10. निष्कर्ष लिखिए।

Ans. Shreya Singhal v. Union of India (2015) एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसने यह स्थापित किया कि मौलिक अधिकारों, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, को केवल संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ही सीमित किया जा सकता है। धारा 66A की अस्पष्टता और दुरुपयोग ने नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित किया था, इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित करना लोकतंत्र और डिजिटल स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनिवार्य था।