“Shiv Kumar Jatia v. State (2019): सुप्रीम कोर्ट ने कहा – केवल प्रबंध निदेशक या निदेशक होना पर्याप्त नहीं, प्रत्यक्ष संलिप्तता के बिना आपराधिक दायित्व नहीं ठहराया जा सकता”
परिचय
भारत के कॉर्पोरेट कानून के क्षेत्र में यह प्रश्न अक्सर उठता रहा है कि क्या किसी कंपनी के निदेशक, प्रबंध निदेशक या अन्य वरिष्ठ अधिकारी को कंपनी द्वारा किए गए अपराधों के लिए स्वतः जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने Shiv Kumar Jatia v. State (2019) 17 SCC 193 में इस प्रश्न पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। इस मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को केवल उसके पद या पदनाम के आधार पर आपराधिक दायित्व के घेरे में नहीं लाया जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि वह व्यक्ति अपराध के घटित होने में प्रत्यक्ष रूप से शामिल था या उसने अपराध में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
यह निर्णय कॉर्पोरेट दायित्व (Corporate Liability) और व्यक्तिगत दायित्व (Personal Liability) के बीच की सीमाओं को स्पष्ट करने वाला एक मील का पत्थर है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला दिल्ली के प्रसिद्ध Hyatt Regency Hotel से जुड़ा था, जिसे Asian Hotels (North) Ltd. नामक कंपनी संचालित करती थी। उस समय कंपनी के प्रबंध निदेशक (Managing Director) श्री शिव कुमार जाटिया थे।
घटना 2013 की है, जब एक मेहमान होटल की ऊपरी मंजिल से नीचे गिर गया और गंभीर रूप से घायल हो गया। बाद में उसकी मृत्यु हो गई। मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया कि होटल की सुरक्षा व्यवस्था लापरवाह थी और उचित सुरक्षा उपाय नहीं अपनाए गए थे, जिससे यह दुर्घटना हुई।
दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में धारा 304A IPC (लापरवाही से मृत्यु का कारण बनना) के तहत मामला दर्ज किया। जांच के बाद, पुलिस ने कंपनी के साथ-साथ उसके प्रबंध निदेशक शिव कुमार जाटिया के खिलाफ भी आरोप पत्र (Charge Sheet) दायर किया।
मुख्य कानूनी प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निम्नलिखित प्रमुख प्रश्न विचारणीय थे:
- क्या किसी कंपनी के प्रबंध निदेशक (MD) या निदेशक (Director) को केवल उनके पद के आधार पर आपराधिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
- क्या बिना किसी प्रत्यक्ष संलिप्तता (Direct Involvement) या विशेष भूमिका के सबूत के, उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है?
- क्या इस प्रकार की आपराधिक जिम्मेदारी के लिए कोई विशेष प्रावधान आवश्यक है या सामान्य आपराधिक कानून के तहत भी यह संभव है?
दोनों पक्षों के तर्क
अभियोजन (Prosecution) पक्ष का तर्क:
- होटल के परिसर में हुई मृत्यु के लिए होटल प्रबंधन जिम्मेदार है।
- चूंकि शिव कुमार जाटिया होटल के प्रबंध निदेशक हैं, वे कंपनी के कार्यों के लिए उत्तरदायी हैं।
- उन्होंने उचित सुरक्षा उपाय सुनिश्चित नहीं किए, जिससे यह घटना हुई।
बचाव (Defence) पक्ष का तर्क:
- श्री जाटिया घटना के समय मौके पर उपस्थित नहीं थे, और न ही उन्होंने किसी प्रकार की लापरवाही की थी।
- होटल का संचालन दैनिक रूप से नियुक्त प्रबंधक और स्टाफ द्वारा किया जाता है।
- केवल MD होने के नाते किसी को स्वतः दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक उसकी प्रत्यक्ष भागीदारी या जानकारी साबित न हो।
- आपराधिक दायित्व का सिद्धांत vicarious liability (पर-प्रत्यक्ष दायित्व) केवल तब लागू होता है जब कानून में विशेष रूप से ऐसा प्रावधान हो।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की पीठ — जिसमें न्यायमूर्ति एन.वी. रमना और न्यायमूर्ति मोहन एम. शंतनगौदर शामिल थे — ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा कि:
“किसी कंपनी के निदेशक या प्रबंध निदेशक को आपराधिक दायित्व के लिए उत्तरदायी ठहराने के लिए यह आवश्यक है कि यह आरोप लगाया जाए और यह दिखाया जाए कि वह व्यक्ति अपराध के घटित होने में प्रत्यक्ष रूप से शामिल था।”
अदालत ने आगे कहा:
“सिर्फ यह कह देना कि आरोपी कंपनी का प्रबंध निदेशक है, पर्याप्त नहीं है। जब तक यह दिखाया नहीं जाता कि उसने अपराध में सक्रिय भूमिका निभाई या लापरवाही में उसका व्यक्तिगत योगदान था, तब तक उसे आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं करना चाहिए।”
इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने शिव कुमार जाटिया के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceedings) को रद्द (quash) कर दिया।
निर्णय में उद्धृत सिद्धांत
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई पूर्ववर्ती निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया था कि “Corporate Officers cannot be held criminally liable merely by virtue of their designation.” इनमें प्रमुख निर्णय थे:
- S.M.S. Pharmaceuticals Ltd. v. Neeta Bhalla (2005) 8 SCC 89
- न्यायालय ने कहा था कि केवल “Director” या “Managing Director” होना पर्याप्त नहीं; यह साबित होना चाहिए कि व्यक्ति अपराध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल था।
- Sunil Bharti Mittal v. CBI (2015) 4 SCC 609
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक व्यक्ति की प्रत्यक्ष संलिप्तता नहीं दिखाई जाती, कंपनी के अपराध के लिए उसे व्यक्तिगत रूप से दंडित नहीं किया जा सकता।
- Maksud Saiyed v. State of Gujarat (2008) 5 SCC 668
- अदालत ने कहा था कि कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई है; कंपनी के अपराध के लिए उसके अधिकारी स्वतः जिम्मेदार नहीं माने जा सकते जब तक उनकी भूमिका स्पष्ट न हो।
सुप्रीम कोर्ट की तर्कसंगति (Reasoning)
- Corporate Personality का सिद्धांत:
कंपनी एक अलग कानूनी इकाई है। उसके कृत्यों के लिए वही जिम्मेदार है, जब तक कि यह सिद्ध न हो कि किसी निदेशक ने अपने व्यक्तिगत कार्य या लापरवाही से अपराध किया। - Mens Rea (अपराध का मानसिक तत्व):
किसी अपराध के लिए दोषसिद्धि तभी हो सकती है जब व्यक्ति का mens rea (अपराध करने की मंशा या लापरवाही) स्थापित हो। केवल पद पर होना मानसिक तत्व को सिद्ध नहीं करता। - Vicarious Liability केवल विशेष प्रावधानों में:
सामान्य आपराधिक कानून में vicarious liability (दूसरे के कार्य के लिए जिम्मेदारी) मान्य नहीं है, जब तक कोई विशेष अधिनियम जैसे Negotiable Instruments Act, 1881 (Section 141) या Essential Commodities Act आदि में विशेष रूप से ऐसा प्रावधान न हो। - Criminal Prosecution की गंभीरता:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मुकदमा व्यक्ति की प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव डालता है, इसलिए बिना पर्याप्त सबूतों के केवल पदनाम के आधार पर किसी को अभियोजन में घसीटना न्यायसंगत नहीं है।
परिणाम (Outcome)
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि—
- अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि शिव कुमार जाटिया घटना में किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे।
- उनके खिलाफ आरोपपत्र में कोई ठोस साक्ष्य या विशिष्ट आरोप नहीं था जो यह दर्शाए कि उन्होंने किसी लापरवाही या अपराध में योगदान दिया हो।
इसलिए, अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें जाटिया के खिलाफ कार्यवाही को रद्द किया गया था।
निर्णय का महत्व
यह निर्णय भारतीय कॉर्पोरेट कानून में व्यक्तिगत दायित्व बनाम संस्थागत दायित्व की सीमा तय करने वाला है। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:
- कॉर्पोरेट प्रशासन में स्पष्टता:
कंपनी के प्रबंध निदेशक या निदेशक को केवल उनके पदनाम के आधार पर आपराधिक रूप से दंडित नहीं किया जा सकता। - जांच एजेंसियों के लिए चेतावनी:
पुलिस या अभियोजन को आरोप पत्र दाखिल करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास व्यक्ति की प्रत्यक्ष भागीदारी के ठोस प्रमाण हों। - व्यवसायिक वातावरण में विश्वास:
इस निर्णय से यह विश्वास मजबूत होता है कि भारत में व्यवसायिक नेतृत्व को अनुचित आपराधिक अभियोजन से सुरक्षा प्राप्त है, जिससे Ease of Doing Business को भी बल मिलता है। - कानूनी सिद्धांत की पुन: पुष्टि:
यह निर्णय इस सिद्धांत की पुनर्पुष्टि करता है कि “Criminal liability cannot be fastened vicariously unless the statute specifically provides so.”
निष्कर्ष
Shiv Kumar Jatia v. State (2019) का निर्णय भारतीय न्यायपालिका के उस न्यायिक दृष्टिकोण को दर्शाता है जिसमें अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि आपराधिक न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की केवल पदस्थिति (Designation) उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही का आधार नहीं बन सकती। आवश्यक है कि यह दिखाया जाए कि उस व्यक्ति की सक्रिय भूमिका या प्रत्यक्ष संलिप्तता रही हो।
यह फैसला न केवल कॉर्पोरेट अपराधों में जिम्मेदारी तय करने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून का प्रयोग केवल न्याय के हित में हो, न कि किसी व्यक्ति या संस्था को अनावश्यक रूप से प्रताड़ित करने के लिए।
मुख्य उद्धरण (Key Quote)
“Merely because a person is a Managing Director or a Director of a company, he cannot be made vicariously liable for any offence committed by the company unless there is material to show his active role coupled with criminal intent.”
— Supreme Court in Shiv Kumar Jatia v. State (2019)
समाप्ति टिप्पणी
इस निर्णय ने यह स्थापित कर दिया कि भारतीय दंड कानून में “पद” नहीं, बल्कि “कर्म” ही दायित्व का आधार है।
जब तक किसी व्यक्ति की प्रत्यक्ष लापरवाही, अपराध में भूमिका, या मंशा प्रमाणित नहीं होती, तब तक केवल उसके उच्च पद पर होने से वह दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इस प्रकार, Shiv Kumar Jatia मामला कॉर्पोरेट गवर्नेंस, व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और न्यायिक निष्पक्षता — तीनों के संतुलन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।