लेख शीर्षक:
“SC/ST एक्ट के तहत ‘Public View’ की अनिवार्यता पर गुजरात हाई कोर्ट का निर्णय: Rasikbhai बनाम State of Gujarat”
पूरा लेख:
गुजरात हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: ‘Public View’ के बाहर घटित घटनाएं SC/ST अधिनियम के तहत अपराध नहीं मानी जाएंगी
🔷 केस शीर्षक: Rasikbhai vs. State of Gujarat
🔷 अर्जी संख्या: SR/SCR.A No. 7907/2023
🔷 न्यायालय: गुजरात उच्च न्यायालय
🔷 कानून: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
🔷 धाराएं: धारा 3(1)(r) एवं 3(1)(s)
गुजरात उच्च न्यायालय ने Rasikbhai बनाम State of Gujarat मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी व्याख्या प्रस्तुत की है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि SC/ST एक्ट के अंतर्गत अपराध तभी माना जाएगा जब वह “Public View” अर्थात् सार्वजनिक दृष्टि में घटित हो।
🔷 न्यायालय की मुख्य टिप्पणी:
“धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत आरोपित कृत्य तभी अपराध की श्रेणी में आएंगे जब वे ऐसे स्थान पर किए गए हों जहाँ आम जनता की उपस्थिति हो या जहाँ कोई स्वतंत्र गवाह आरोपी की बातों या कृत्यों को देख या सुन सके।”
इसका तात्पर्य यह है कि यदि अभियुक्त द्वारा कथित अपमान या धमकी किसी एकांत स्थान या बंद कमरे में दी गई हो, जहाँ कोई स्वतंत्र व्यक्ति मौजूद न हो, तो ऐसा कृत्य SC/ST अधिनियम के तहत ‘Public View’ की शर्त पूरी नहीं करता, और कानून के तहत वह अपराध सिद्ध नहीं होगा।
🔷 ‘Public View’ की कानूनी व्याख्या:
- Public View का अर्थ है — ऐसा स्थान जो जनसामान्य के लिए खुला हो और जहाँ कोई स्वतंत्र दर्शक या गवाह अभियुक्त की कथित टिप्पणी या व्यवहार का स्वतंत्र रूप से अनुभव कर सके।
- यदि कोई घटना बंद कमरे में, निजी संवाद में या गोपनीय/सीमित उपस्थिति वाले वातावरण में होती है, तो उसे ‘Public View’ नहीं माना जाएगा।
🔷 निर्णय के प्रमुख बिंदु:
- निजी बातचीत सार्वजनिक अपमान नहीं:
किसी व्यक्ति को अकेले में अपशब्द कहना या जातिसूचक टिप्पणी करना तब तक SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं बनता, जब तक वह सार्वजनिक रूप से न हो। - गवाहों की अनुपस्थिति में अभियोजन दुर्बल:
यदि किसी सार्वजनिक स्थल पर भी ऐसी घटना घटे, लेकिन कोई गवाह उपस्थित न हो, तो ‘Public View’ की शर्त अधूरी रह सकती है। - अधिनियम की मंशा:
कानून की मंशा यह है कि जातिगत अपमान सार्वजनिक रूप से हो, जिससे पीड़ित की सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचे — निजी या व्यक्तिगत स्तर पर हुई टिप्पणी पर कानून का उद्देश्य लागू नहीं होता।
🔷 विधिक संदर्भ:
- SC & ST (Prevention of Atrocities) Act, 1989
- Section 3(1)(r): अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना।
- Section 3(1)(s): सार्वजनिक रूप से जातिसूचक या अपमानजनक शब्दों का प्रयोग।
🔷 निष्कर्ष:
गुजरात उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट रूप से बताता है कि SC/ST अधिनियम की धाराओं का उपयोग तभी किया जा सकता है जब अभियुक्त का कथित कृत्य सार्वजनिक स्थल पर घटित हुआ हो, और उसकी पुष्टि करने के लिए स्वतंत्र गवाह भी मौजूद हों। यह फैसला उन मामलों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ झूठे आरोपों से बचाव की आवश्यकता हो, और सत्य व न्याय की रक्षा हेतु सटीक विधिक व्याख्या आवश्यक हो।