SC का निर्णय: Article 226 के अंतर्गत चार्जशीट को क्वॉश नहीं किया जा सकता, उपाय Section 528 BNSS में निहित है
प्रस्तावना
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दायर की गई प्राथमिकी (FIR) और चार्जशीट (Charge Sheet) को चुनौती देने का अधिकार महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से उच्च न्यायालयों को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। परंतु हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें स्पष्ट किया गया कि चार्जशीट दायर होने के बाद और मजिस्ट्रेट द्वारा उस पर संज्ञान (Cognizance) लेने के बाद, अनुच्छेद 226 के तहत राहत नहीं दी जा सकती। इसके स्थान पर, राहत पाने का उचित मंच Section 528 BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) है। इस निर्णय ने आपराधिक प्रक्रिया में न्यायिक राहत के दायरे और उसकी सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है।
पृष्ठभूमि
इस मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने एक याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया था कि चार्जशीट दायर होने से याचिका निरर्थक हो गई है। उच्च न्यायालय ने Neeta Singh v. State of UP (2024) के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि संज्ञान के बाद अनुच्छेद 226 के तहत राहत नहीं दी जा सकती। परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि उक्त निर्णय का यहाँ गलत प्रयोग हुआ, क्योंकि वर्तमान याचिका में अनुच्छेद 226 के साथ-साथ Section 528 BNSS का भी सहारा लिया गया था।
Article 226: प्रारंभिक चरण में राहत का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि जब तक मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता, तब तक उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत FIR और चार्जशीट को क्वॉश कर सकता है। इसका उद्देश्य न्याय की रक्षा करना, उत्पीड़न से बचाव सुनिश्चित करना, और प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकना है। प्रारंभिक चरण में यदि मामला दुराशय से दर्ज किया गया हो या उसमें कोई कानूनी आधार न हो, तो उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
लेकिन एक बार संज्ञान लिया गया और मामला न्यायिक प्रक्रिया में प्रवेश कर गया, तब अनुच्छेद 226 का प्रयोग न्यायालय की प्रक्रिया में बाधा पहुँचाने जैसा होगा। अदालत ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा और संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसी स्थिति में अनुच्छेद 226 के तहत राहत सीमित कर दी जानी चाहिए।
Section 528 BNSS: संज्ञान के बाद राहत का मंच
सर्वोच्च न्यायालय ने Section 528 BNSS को न्याय का वैधानिक उपाय बताया। यह धारा न केवल FIR और चार्जशीट को बल्कि संज्ञान आदेश को भी चुनौती देने की अनुमति देती है, बशर्ते उचित pleadings दाखिल की जाएं और मजबूत आधार प्रस्तुत किया जाए।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि न्यायालयों के पास ऐसे मामलों में भी राहत देने का अधिकार हो जहाँ अभियोजन प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा हो। Section 528 BNSS अदालत को यह शक्ति देता है कि वह आपराधिक प्रक्रिया के किसी भी चरण में हस्तक्षेप कर सके, बशर्ते तथ्य स्पष्ट हों और न्याय की रक्षा आवश्यक हो।
Neeta Singh मामला और उसका प्रभाव
Neeta Singh v. State of UP (2024) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संज्ञान लिए जाने के बाद अनुच्छेद 226 के तहत राहत नहीं दी जा सकती। बंबई उच्च न्यायालय ने इसी आधार पर वर्तमान याचिका को खारिज कर दिया। परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उस मामले में केवल अनुच्छेद 226 का ही सहारा लिया गया था। जबकि यहाँ Section 528 BNSS का भी उपयोग किया गया है। इसलिए उस निर्णय का यहाँ लागू होना उचित नहीं था।
यह स्पष्ट कर दिया गया कि प्रत्येक मामला अपने तथ्यों और विधिक आधारों के अनुसार विचारणीय है। केवल अनुच्छेद 226 का उपयोग करने मात्र से याचिका असफल नहीं होगी, यदि अन्य विधिक प्रावधान भी उपलब्ध हैं।
न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन और दुरुपयोग से संरक्षण
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया के संतुलन को बनाए रखने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ित व्यक्ति को उत्पीड़न से बचाव का अधिकार मिले। FIR और चार्जशीट दायर करने की प्रक्रिया का दुरुपयोग आमतौर पर राजनीतिक प्रतिशोध, व्यक्तिगत द्वेष, या अन्य गैर-कानूनी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यदि संज्ञान के बाद अनुच्छेद 226 के तहत राहत दी जाए तो न्याय प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
परंतु Section 528 BNSS यह सुनिश्चित करता है कि यदि मामला पूरी तरह से बेबुनियाद हो या कानूनी रूप से टिकाऊ न हो तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है। यह विधिक संतुलन न्यायिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों दोनों की रक्षा करता है।
बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करना
सर्वोच्च न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया और मामला पुनर्विचार के लिए लौटाया। अदालत ने कहा कि Section 528 BNSS की उपस्थिति में याचिकाकर्ता को राहत का अवसर दिया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय का यह कहना कि चार्जशीट दायर होने से याचिका निरर्थक हो गई, न्यायिक प्रक्रिया के उद्देश्यों के विपरीत है।
इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हुआ कि उच्च न्यायालयों को प्रारंभिक चरण में अनुच्छेद 226 के तहत राहत देने का अधिकार है, परंतु संज्ञान के बाद Section 528 BNSS के माध्यम से ही राहत प्राप्त करनी होगी।
न्यायशास्त्रीय महत्व
इस फैसले ने कई महत्वपूर्ण सिद्धांत स्पष्ट किए:
- न्याय की प्रक्रिया का संरक्षण – न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करते हुए राहत का उचित मंच सुनिश्चित किया गया।
- व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण – उत्पीड़न या गलत अभियोजन से बचाव का रास्ता प्रदान किया गया।
- Section 528 BNSS का सशक्त उपयोग – इसे मात्र एक तकनीकी प्रावधान नहीं बल्कि न्यायिक संरक्षण का महत्वपूर्ण औजार माना गया।
- पूर्व निर्णयों की सीमाएँ स्पष्ट करना – Neeta Singh के निर्णय को अंधाधुंध लागू करने से न्यायालय ने परहेज़ किया।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए मील का पत्थर है। अनुच्छेद 226 के अंतर्गत राहत का अधिकार प्रारंभिक चरण तक सीमित है, जबकि संज्ञान के बाद Section 528 BNSS के माध्यम से राहत प्राप्त की जा सकती है। यह न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र, प्रक्रिया की गरिमा, और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि न्याय प्रणाली में विधिक उपायों की समझ आवश्यक है, और प्रत्येक प्रावधान का उद्देश्य, सीमा, तथा उपयोग अलग-अलग चरणों में अलग होता है। FIR और चार्जशीट दायर होने के बाद न्याय पाने का मार्ग बंद नहीं होता, बल्कि Section 528 BNSS के तहत उपलब्ध रहता है—यदि उचित आधार प्रस्तुत किया जाए।
यह निर्णय न्यायालयों की भूमिका, नागरिकों के अधिकार, और विधिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को और मजबूत करता है। भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में यह एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश के रूप में स्थापित होगा।
1. अनुच्छेद 226 क्या है?
अनुच्छेद 226 भारतीय संविधान का वह प्रावधान है जो उच्च न्यायालयों को विशेष अधिकार देता है कि वे मौलिक अधिकारों और अन्य विधिक अधिकारों के संरक्षण के लिए रिट जारी कर सकें। FIR या चार्जशीट के मामले में, यदि मामला संज्ञान से पहले है, तो उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत राहत देकर उसे क्वॉश कर सकता है। यह अधिकार न्यायिक संरक्षण के लिए है, लेकिन इसका प्रयोग प्रक्रिया शुरू होने से पहले तक ही सीमित है।
2. Section 528 BNSS क्या है?
Section 528 BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) उस कानूनी उपाय का हिस्सा है जो अदालत को यह शक्ति देता है कि वह FIR, चार्जशीट या संज्ञान आदेश को भी क्वॉश कर सके। यह प्रावधान विशेष रूप से संज्ञान लिए जाने के बाद राहत प्रदान करने के लिए बनाया गया है। यदि उचित तथ्य और मजबूत आधार प्रस्तुत किए जाएँ, तो अदालत प्रक्रिया का दुरुपयोग रोक सकती है।
3. संज्ञान (Cognizance) का अर्थ क्या है?
संज्ञान का मतलब है कि अदालत ने उपलब्ध साक्ष्यों, शिकायत या चार्जशीट के आधार पर मामला स्वीकार कर लिया है और आगे सुनवाई प्रारंभ करेगी। संज्ञान के बाद मामला न्यायिक प्रक्रिया में प्रवेश कर जाता है और तब अनुच्छेद 226 का उपयोग सीमित हो जाता है।
4. संज्ञान से पहले राहत क्यों संभव है?
संज्ञान से पहले मामला केवल प्रक्रिया का हिस्सा होता है। यदि FIR या चार्जशीट में कानूनी आधार न हो, या गलत इरादे से दर्ज की गई हो, तो उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता है। यह न्याय और उत्पीड़न से बचाव के लिए प्रारंभिक सुरक्षा प्रदान करता है।
5. संज्ञान के बाद अनुच्छेद 226 का उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता?
संज्ञान के बाद मामला न्यायालय की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है। अनुच्छेद 226 का उपयोग कर प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना न्याय की गरिमा के विरुद्ध होगा। इसलिए संज्ञान के बाद राहत का उचित मंच Section 528 BNSS है।
6. Section 528 BNSS और अनुच्छेद 226 में क्या अंतर है?
अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालय को प्रारंभिक चरण में राहत देने की अनुमति देता है, जबकि Section 528 BNSS संज्ञान के बाद भी राहत देता है। दोनों प्रावधान अलग चरणों में लागू होते हैं, और Section 528 BNSS अदालत को FIR, चार्जशीट और संज्ञान आदेश को क्वॉश करने का विस्तृत अधिकार प्रदान करता है।
7. Neeta Singh मामला और वर्तमान निर्णय में क्या अंतर है?
Neeta Singh में केवल अनुच्छेद 226 का सहारा लिया गया था, इसलिए संज्ञान के बाद राहत नहीं मिली। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के साथ-साथ Section 528 BNSS का भी सहारा लिया, जिससे अदालत ने कहा कि राहत पाने का अधिकार बना हुआ है।
8. क्या चार्जशीट दायर होते ही याचिका खारिज हो जाती है?
नहीं। यदि याचिका में उचित कानूनी आधार हो और Section 528 BNSS का सहारा लिया गया हो तो संज्ञान के बाद भी अदालत राहत प्रदान कर सकती है। चार्जशीट दायर होना मात्र राहत पाने के अधिकार को समाप्त नहीं करता।
9. इस निर्णय का न्याय व्यवस्था पर क्या प्रभाव है?
इस निर्णय ने स्पष्ट किया कि न्यायालय प्रक्रिया का दुरुपयोग रोक सकते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि संज्ञान के बाद भी कानून के तहत राहत पाने का रास्ता बंद नहीं है। इससे न्याय और प्रक्रिया दोनों का संतुलन बना रहता है।
10. आगे क्या करना चाहिए यदि मामला संज्ञान के बाद है?
ऐसी स्थिति में अनुच्छेद 226 का सहारा छोड़कर Section 528 BNSS के तहत उचित pleadings दाखिल करनी चाहिए। अदालत के सामने तथ्य प्रस्तुत करके यह दिखाना आवश्यक है कि मामला दुर्भावना से दर्ज किया गया है या कानूनी आधार से रहित है।