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“Satheesh V.K. बनाम The Federal Bank Ltd: सर्वोच्च न्यायालय का सिद्धांत — एक बार बिना शर्त SLP वापसी के बाद दूसरी याचिका अस्वीकृत”

“Satheesh V.K. बनाम The Federal Bank Ltd: सर्वोच्च न्यायालय का सिद्धांत — एक बार बिना शर्त SLP वापसी के बाद दूसरी याचिका अस्वीकृत”


भूमिका (Introduction)

भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत “Special Leave Petition (SLP)” के माध्यम से अपने विवेकाधीन अधिकार का प्रयोग करता है। यह प्रावधान न्यायिक व्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी न्यायाधिकरण या उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध विशेष अनुमति देकर अपील सुनने की शक्ति प्रदान करता है। किंतु इस अधिकार का प्रयोग कुछ सीमाओं के भीतर ही किया जा सकता है।

हाल ही में Satheesh V.K. बनाम The Federal Bank Ltd के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर महत्वपूर्ण स्पष्टता दी कि यदि कोई व्यक्ति अपनी SLP को बिना शर्त (unconditionally) वापस ले लेता है, तो वह उसी आदेश के विरुद्ध दूसरी बार SLP दाखिल नहीं कर सकता। इसके साथ ही, यदि उस आदेश के विरुद्ध की गई समीक्षा याचिका (Review Petition) भी खारिज हो जाती है, तो न तो समीक्षा आदेश को और न ही मूल आदेश को पुनः चुनौती दी जा सकती है।

यह निर्णय न्यायिक अनुशासन, अंतिमता (finality) और न्यायिक संसाधनों के उचित उपयोग के सिद्धांतों को मजबूत करता है।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

मामले का नाम: Satheesh V.K. vs The Federal Bank Ltd
न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India)
निर्णय का वर्ष: 2024
पीठ: न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता

इस मामले में, याचिकाकर्ता श्री सतीश वी.के. ने Federal Bank Ltd द्वारा जारी किए गए एक आदेश के खिलाफ पहले एक Special Leave Petition (SLP) दायर की थी। लेकिन सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बिना किसी शर्त के अपनी याचिका वापस ले ली।

बाद में, याचिकाकर्ता ने पुनः उसी आदेश के खिलाफ दूसरी SLP दाखिल की। इस पर प्रश्न उठा कि क्या यह दूसरी याचिका संवैधानिक रूप से स्वीकार्य (maintainable) है?

इसी संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय सुनाया जो अब एक न्यायिक मिसाल (judicial precedent) बन गया है।


मूल प्रश्न (Core Legal Issue)

  1. क्या एक बार बिना शर्त वापस ली गई SLP के बाद, उसी आदेश के विरुद्ध दोबारा SLP दाखिल की जा सकती है?
  2. क्या समीक्षा याचिका (Review Petition) के खारिज होने के बाद मूल आदेश या समीक्षा आदेश के खिलाफ नई SLP दायर की जा सकती है?

न्यायालय का विश्लेषण (Court’s Analysis)

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया:

1. न्यायिक अंतिमता का सिद्धांत (Doctrine of Finality of Litigation)

न्यायालय ने कहा कि जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी SLP बिना शर्त वापस लेता है, तो इसका अर्थ यह होता है कि उसने उस निर्णय को स्वीकार कर लिया है।
इस प्रकार, उस आदेश के विरुद्ध दोबारा SLP दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग (abuse of process) है।

न्यायालय ने कहा:

“Once a litigant withdraws his Special Leave Petition unconditionally, he cannot be permitted to reopen the same issue by filing another SLP against the same impugned order.”

इस प्रकार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया को एक अनंत श्रृंखला नहीं बनने दिया जा सकता।


2. समीक्षा याचिका के खारिज होने का प्रभाव (Effect of Dismissal of Review Petition)

सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि जब किसी आदेश के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की जाती है और वह खारिज हो जाती है, तो उसके बाद:

  • न तो समीक्षा याचिका की अस्वीकृति के विरुद्ध,
  • और न ही मूल आदेश के विरुद्ध
    कोई नई SLP या पुनः अपील दायर की जा सकती है।

इस सिद्धांत की पुष्टि पहले भी कई मामलों में की जा चुकी है, जैसे कि:

  • Abbai Maligai Partnership Firm v. K. Santhakumaran (1998)
  • Vinod Kapoor v. State of Goa (2012)
  • Khoday Distilleries Ltd. v. Sri Mahadeshwara Sahakara Sakkare Karkhane Ltd. (2019)

न्यायालय ने इन मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि “एक बार समीक्षा प्रक्रिया समाप्त हो जाने पर न्यायिक विवाद समाप्त माना जाता है।”


3. SLP को वापस लेने के कानूनी निहितार्थ (Legal Consequence of Withdrawal of SLP)

जब कोई याचिकाकर्ता स्वयं कहता है कि वह अपनी याचिका वापस लेना चाहता है, और न्यायालय उसे “dismissed as withdrawn” कहकर समाप्त करता है, तो यह आदेश पूर्णतः अंतिम होता है।

इस स्थिति में:

  • नई SLP दाखिल करने का अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है।
  • केवल वही स्थिति अपवाद बन सकती है जब याचिका शर्तों के साथ (conditionally) वापस ली गई हो, जैसे “with liberty to file afresh”.
    लेकिन यदि “with liberty” का उल्लेख नहीं है, तो नई याचिका अस्वीकार्य (non-maintainable) होगी।

4. न्यायिक अनुशासन और नीति (Judicial Discipline and Policy)

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में अनुशासन (discipline) बनाए रखना आवश्यक है।
यदि litigants को बार-बार एक ही आदेश के खिलाफ नई SLP दाखिल करने की अनुमति दी जाए, तो:

  • न्यायालय का समय व्यर्थ होगा,
  • न्यायिक प्रणाली पर बोझ बढ़ेगा, और
  • निर्णयों की अंतिमता (finality) समाप्त हो जाएगी।

इसलिए, न्यायालय ने इस प्रवृत्ति को सख्ती से रोकने की आवश्यकता पर बल दिया।


न्यायालय का निर्णय (Court’s Decision)

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा:

“Once the petitioner has withdrawn the SLP unconditionally, it is deemed that he has accepted the impugned order, and he cannot file a second SLP challenging the same order. Likewise, once the review petition is dismissed, neither the review order nor the original order can be re-challenged before this Court.”

इस प्रकार, न्यायालय ने याचिकाकर्ता की दूसरी SLP को अस्वीकृत (dismissed) कर दिया और स्पष्ट किया कि यह कानूनी रूप से अस्वीकार्य (not maintainable) है।


न्यायालय द्वारा उद्धृत पूर्व निर्णय (Precedents Relied Upon)

सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित मामलों का हवाला दिया:

  1. Abbai Maligai Partnership Firm v. K. Santhakumaran (1998) 7 SCC 386
    • एक बार समीक्षा याचिका खारिज हो जाने के बाद, मूल आदेश के विरुद्ध नई याचिका स्वीकार्य नहीं है।
  2. Vinod Kapoor v. State of Goa (2012) 12 SCC 378
    • बिना शर्त SLP वापसी के बाद पुनः उसी आदेश के विरुद्ध याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।
  3. Khoday Distilleries Ltd. v. Sri Mahadeshwara Sahakara Sakkare Karkhane Ltd. (2019) 4 SCC 376
    • समीक्षा खारिज होने के बाद पुनः अपील या SLP दाखिल करने की मनाही।

इन सभी मामलों ने न्यायालय को यह स्पष्ट आधार प्रदान किया कि न्यायिक प्रक्रिया की अंतिमता और सुसंगति (consistency) को बनाए रखना आवश्यक है।


कानूनी सिद्धांत (Legal Principles Evolved)

इस निर्णय से निम्नलिखित प्रमुख सिद्धांत उभरते हैं:

  1. Unconditional withdrawal = acceptance of order.
    → बिना शर्त SLP वापसी का अर्थ है कि याचिकाकर्ता ने संबंधित आदेश को स्वीकार कर लिया।
  2. Second SLP not maintainable.
    → उसी आदेश के खिलाफ दूसरी SLP दाखिल नहीं की जा सकती।
  3. Dismissal of review petition ends the litigation.
    → समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद विवाद का अंत हो जाता है।
  4. Judicial discipline must be maintained.
    → बार-बार याचिकाएं दाखिल करने से न्यायिक अनुशासन भंग होता है, जिसे रोका जाना चाहिए।
  5. No liberty, no second chance.
    → यदि याचिका “with liberty” शब्दों के साथ वापस नहीं ली गई, तो पुनः दायर करना अवैध होगा।

इस निर्णय का प्रभाव (Impact of the Judgment)

इस फैसले का न्यायिक और व्यवहारिक दृष्टि से व्यापक प्रभाव है:

1. न्यायिक दक्षता (Judicial Efficiency) में वृद्धि

बार-बार दायर होने वाली निरर्थक याचिकाओं पर अंकुश लगने से सर्वोच्च न्यायालय का कार्यभार कम होगा।

2. न्यायिक अंतिमता (Finality of Litigation) को मजबूती

एक बार जब कोई आदेश पारित हो जाए और उसकी समीक्षा प्रक्रिया समाप्त हो जाए, तो विवाद का अंत सुनिश्चित होगा।

3. दुरुपयोग की रोकथाम (Prevention of Abuse of Process)

कुछ पक्षकार जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया को लंबा खींचते हैं। इस निर्णय से ऐसे दुरुपयोगों पर रोक लगेगी।

4. अधिवक्ताओं के लिए चेतावनी (Guidance for Advocates)

वकीलों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि यदि भविष्य में पुनः याचिका दायर करनी हो, तो वे “with liberty to file afresh” का उल्लेख करें।


न्यायिक तर्क की दार्शनिक दृष्टि (Philosophical Viewpoint)

यह निर्णय भारतीय न्यायिक व्यवस्था में न्याय की निश्चितता (certainty of justice) और अंतिमता (finality) के सिद्धांत को मजबूत करता है।
न्यायालय का उद्देश्य केवल न्याय देना ही नहीं बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को एक संयमित, पारदर्शी और निश्चित स्वरूप देना भी है।

यदि litigants को बार-बार एक ही विषय पर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी जाए, तो न्यायालय की मर्यादा, समय और विश्वसनीयता सभी पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा।


निष्कर्ष (Conclusion)

Satheesh V.K. बनाम The Federal Bank Ltd का निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में एक अत्यंत महत्वपूर्ण न्यायिक मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करता है।

इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि:

  • एक बार SLP बिना शर्त वापस ली गई हो,
  • या समीक्षा याचिका खारिज हो चुकी हो,
    तो उस आदेश के विरुद्ध पुनः कोई नई SLP या अपील दायर नहीं की जा सकती।

यह निर्णय न केवल न्यायिक प्रक्रिया की अंतिमता और मर्यादा को बनाए रखता है, बल्कि न्यायिक अनुशासन और पारदर्शिता की दिशा में एक मजबूत कदम है।

इस प्रकार, यह फैसला न्यायालयों के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर (landmark precedent) है, जो भविष्य में SLP से संबंधित मामलों में दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगा।