SARFAESI अधिनियम एवं ऋण वसूली अधिकरण (DRTs): बैंकिंग क्षेत्र में ऋण वसूली का कानूनी ढांचा

लेख शीर्षक: SARFAESI अधिनियम एवं ऋण वसूली अधिकरण (DRTs): बैंकिंग क्षेत्र में ऋण वसूली का कानूनी ढांचा
(SARFAESI Act and Debt Recovery Tribunals – A Legal Framework for Debt Recovery in Banking Sector)


परिचय

भारतीय बैंकिंग प्रणाली को लंबे समय से डिफॉल्ट और एनपीए (Non-Performing Assets) की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जब उधारकर्ता समय पर ऋण चुकाने में असफल रहते हैं, तब बैंक और वित्तीय संस्थानों को भारी आर्थिक हानि होती है। ऐसे मामलों में प्रभावी ऋण वसूली के लिए भारत सरकार ने दो प्रमुख कानूनी तंत्र विकसित किए हैं:

  1. SARFAESI अधिनियम, 2002
  2. ऋण वसूली अधिकरण (Debt Recovery Tribunals – DRTs), 1993

इन दोनों विधिक व्यवस्थाओं ने बैंकों को विशेष अधिकार दिए हैं ताकि वे त्वरित, न्यायिक हस्तक्षेप के बिना और कुशलतापूर्वक अपनी बकाया राशि वसूल सकें। इस लेख में हम इन दोनों कानूनों की प्रकृति, उद्देश्य, प्रक्रिया, अधिकार और उनके परस्पर संबंधों का विश्लेषण करेंगे।


1. SARFAESI अधिनियम, 2002 का परिचय

पूर्ण नाम:
Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002

उद्देश्य:
बैंकों और वित्तीय संस्थानों को यह अधिकार देना कि वे डिफॉल्टर उधारकर्ताओं से गिरवी रखी संपत्ति को जब्त कर सकें और बिना अदालत की अनुमति के बकाया राशि की वसूली कर सकें।


मुख्य प्रावधान:

  1. संपत्ति की जब्ती (Enforcement of Security Interest):
    ऋणदाता 60 दिन का नोटिस देकर गिरवी संपत्ति को जब्त कर सकता है।
  2. एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (ARCs):
    वित्तीय परिसंपत्तियों का अधिग्रहण कर उनकी पुनर्रचना करने की अनुमति।
  3. सिक्योरिटाइजेशन:
    ऋण को वित्तीय प्रतिभूतियों में बदलना और उन्हें पुनर्विक्रय करना।
  4. DRT में अपील का अधिकार:
    यदि उधारकर्ता संपत्ति की जब्ती का विरोध करना चाहता है तो वह DRT में अपील कर सकता है।

SARFAESI अधिनियम के अंतर्गत ऋणदाता के अधिकार:

  • गिरवी रखी संपत्ति की बिक्री
  • किरायेदारों को बेदखल करना
  • तीसरे पक्ष के खाते जब्त करना
  • कंपनी में निदेशक मंडल को बदलना (ARC के माध्यम से)

योग्यता और सीमा:

  • ₹1 लाख से अधिक का ऋण होना चाहिए
  • ऋण एनपीए घोषित हो चुका हो
  • यह कानून सहकारी बैंकों और कृषि भूमि पर लागू नहीं होता (कुछ अपवादों को छोड़कर)

2. ऋण वसूली अधिकरण (Debt Recovery Tribunals – DRTs)

विधिक आधार:
The Recovery of Debts and Bankruptcy Act, 1993 (पहले: RDDBFI Act)

उद्देश्य:
बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ₹10 लाख या अधिक की बकाया राशि की त्वरित न्यायिक वसूली के लिए विशेष न्यायाधिकरण प्रदान करना।


प्रमुख विशेषताएं:

  1. विशेष न्यायाधिकरण:
    पारंपरिक दीवानी न्यायालयों के स्थान पर DRT की स्थापना की गई।
  2. सरल और त्वरित प्रक्रिया:
    तकनीकी और प्रक्रिया संबंधी बाधाएं कम करके शीघ्र निर्णय की व्यवस्था।
  3. DRAT (Debt Recovery Appellate Tribunal):
    DRT के आदेश के विरुद्ध अपील के लिए।
  4. जांच और निष्पादन:
    DRT जांच करता है, साक्ष्य स्वीकार करता है, और डिक्री पारित कर सकता है।

DRT की शक्तियाँ:

  • ऋण की वसूली हेतु आदेश पारित करना
  • संपत्ति जब्ती का आदेश देना
  • बैंक की वसूली के पक्ष में परिसंपत्तियों को बेचने की अनुमति देना
  • SARFAESI अधिनियम के अंतर्गत की गई कार्रवाई की वैधता की समीक्षा करना

3. SARFAESI अधिनियम और DRTs का आपसी संबंध

SARFAESI अधिनियम न्यायालय की अनुमति के बिना कार्रवाई की अनुमति देता है, लेकिन यदि उधारकर्ता असहमत है, तो वह DRT में अपील कर सकता है। इसलिए DRT इन कार्यवाहियों की न्यायिक समीक्षा करता है।

उदाहरण:
यदि बैंक ने SARFAESI अधिनियम के तहत संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया है और उधारकर्ता को लगता है कि यह गलत हुआ है, तो वह Sec. 17 के अंतर्गत DRT में अपील कर सकता है।


4. प्रमुख न्यायिक निर्णय

  1. Mardia Chemicals Ltd. v. Union of India (2004)
    सुप्रीम कोर्ट ने SARFAESI अधिनियम को वैध माना, लेकिन उधारकर्ता को DRT में अपील का अधिकार सुनिश्चित किया।
  2. Transcore v. Union of India (2006)
    अदालत ने स्पष्ट किया कि SARFAESI और DRT कार्यवाहियाँ एक साथ चलाई जा सकती हैं।

5. दोनों तंत्रों के लाभ

पक्ष SARFAESI अधिनियम DRTs
प्रक्रिया अदालती हस्तक्षेप के बिना न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से
समय त्वरित अपेक्षाकृत अधिक समय
अपील DRT में DRAT में
अधिकार संपत्ति पर कब्जा, बिक्री निर्णय पारित करना, डिक्री निष्पादन
प्रभावशीलता उच्च, यदि ठीक से लागू हो प्रभावशील, परंतु बोझिल कार्यवाही से ग्रसित

6. वर्तमान समय में इन तंत्रों की प्रासंगिकता

डिजिटल युग में जहां बैंकों का कर्ज वितरण बढ़ा है, वहीं डिफॉल्ट भी बढ़े हैं। एनपीए की चुनौती से निपटने के लिए इन दोनों कानूनों का संयुक्त उपयोग महत्वपूर्ण है।

  • SARFAESI: अधिक प्रभावी और व्यावहारिक, जब तक कि उधारकर्ता न्यायालय न जाए
  • DRT: न्यायिक संतुलन और उधारकर्ता के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक

7. चुनौतियां और सुधार की आवश्यकता

  • DRT में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है
  • अधिकारियों और स्टाफ की कमी
  • SARFAESI अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना
  • तकनीकी और कानूनी प्रशिक्षण की आवश्यकता

निष्कर्ष

SARFAESI अधिनियम और DRTs भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दो मजबूत स्तंभ हैं, जो ऋण वसूली को कारगर बनाने में सहायक हैं। ये कानून बैंकों को बिना दीवानी मुकदमों के ऋण वसूली की सुविधा देते हैं, जिससे बैंकिंग क्षेत्र की तरलता, लाभप्रदता और वित्तीय अनुशासन बना रहता है।

हालांकि, इन तंत्रों का प्रभाव तभी स्थायी होगा जब उनका उपयोग ईमानदारी, पारदर्शिता और कानून के शासन के तहत किया जाए। सुधारों, डिजिटलीकरण और न्यायिक दक्षता में सुधार लाकर भारत की बैंकिंग प्रणाली को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है।