Rylands v. Fletcher (1868) और Strict Liability का मूल सिद्धांत
भूमिका
न्यायशास्त्र (Jurisprudence) और विधि के इतिहास में Rylands v. Fletcher (1868) एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय है जिसने दायित्व (Liability) की अवधारणा को नई दिशा दी। इस निर्णय ने Strict Liability का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसका अर्थ है कि कुछ परिस्थितियों में व्यक्ति को हानि की जिम्मेदारी उठानी ही होगी, चाहे उसमें उसकी लापरवाही (Negligence) या गलती (Fault) हो अथवा न हो। यह सिद्धांत विशेष रूप से उन परिस्थितियों में लागू होता है जहाँ कोई व्यक्ति अपने लाभ के लिए कोई खतरनाक वस्तु, पदार्थ या यंत्र अपने परिसर में लाता है और उसके कारण दूसरों को नुकसान पहुँचता है।
इस निर्णय ने न केवल अंग्रेजी विधि को प्रभावित किया बल्कि भारतीय विधि व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में भी इस सिद्धांत को कई मामलों में अपनाया गया और बाद में M.C. Mehta v. Union of India (1987) में इसे और कठोर बनाकर Absolute Liability में परिवर्तित किया गया।
मामले की पृष्ठभूमि (Facts of the Case)
Rylands v. Fletcher का विवाद इंग्लैंड में उत्पन्न हुआ। Fletcher एक कोयला खदान (Coal Mine) का मालिक था। उसके पड़ोसी Rylands ने अपनी भूमि पर एक जलाशय (Reservoir) का निर्माण कराया ताकि पानी संग्रहीत कर सके। Reservoir के नीचे पुरानी कोयला खदान की सुरंगें थीं जिन्हें ठीक से भरा नहीं गया था।
जब Reservoir में पानी भरा गया, तो वह पुरानी खदान की सुरंगों के रास्ते रिसकर Fletcher की खदान में भर गया और उसकी खदान बर्बाद हो गई। Fletcher को भारी आर्थिक हानि हुई।
Fletcher ने अदालत में दावा किया कि इस नुकसान के लिए Rylands जिम्मेदार है। दूसरी ओर Rylands ने कहा कि उसने कोई लापरवाही नहीं की, Reservoir का निर्माण ठीक से कराया गया था और उसे खदान की सुरंगों की जानकारी भी नहीं थी।
विवाद का प्रश्न (Legal Issue)
मुख्य प्रश्न यह था कि—
क्या Rylands को Fletcher की हानि के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जबकि उसने कोई लापरवाही नहीं की थी और Reservoir बनाने में पूरी सावधानी बरती थी?
निर्णय (Judgment)
लॉर्ड Cairns और न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि—
- यदि कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर किसी खतरनाक वस्तु या ऐसी चीज़ लाता है जो “मूल रूप से खतरनाक” है और यदि वह बाहर निकलकर पड़ोसी की भूमि को नुकसान पहुँचाती है, तो वह व्यक्ति इसके लिए उत्तरदायी होगा।
- यह उत्तरदायित्व इस बात से स्वतंत्र है कि उसने सावधानी बरती थी या नहीं।
- न्यायालय ने कहा:
“The person who, for his own purposes, brings on his land and collects and keeps there anything likely to do mischief if it escapes, must keep it in at his peril, and, if he does not do so, is prima facie answerable for all the damage which is the natural consequence of its escape.”
Strict Liability का सिद्धांत
इस निर्णय से Strict Liability का सिद्धांत उत्पन्न हुआ। इसका मूल सार है—
- यदि कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर कोई खतरनाक वस्तु रखता है,
- वह वस्तु बाहर निकलती है और नुकसान पहुँचाती है,
- तो उस व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराया जाएगा, चाहे उसकी कोई गलती न हो।
Strict Liability के आवश्यक तत्व (Essentials)
- खतरनाक वस्तु का उपयोग (Dangerous Thing)
भूमि पर ऐसी वस्तु या पदार्थ लाना जो स्वभाव से खतरनाक हो या गलत परिस्थितियों में हानि पहुँचा सकता हो।
उदाहरण: पानी, विस्फोटक, बिजली, जहरीले रसायन, गैस आदि। - गैर-प्राकृतिक उपयोग (Non-Natural Use of Land)
भूमि का ऐसा उपयोग जो सामान्य या प्राकृतिक न होकर असाधारण या खतरनाक हो।
जैसे– Reservoir का निर्माण, परमाणु संयंत्र, रासायनिक फैक्ट्री आदि। - Escape (बाहर निकलना)
वह वस्तु, पदार्थ या शक्ति भूमि की सीमा से बाहर निकल जाए।
उदाहरण: Reservoir से पानी का निकलना और पड़ोसी की भूमि को डुबाना। - नुकसान (Damage)
Escape के कारण किसी तीसरे पक्ष की संपत्ति, जीवन या व्यापार को नुकसान पहुँचे।
अपवाद (Exceptions to Strict Liability)
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कुछ परिस्थितियों में Strict Liability लागू नहीं होगी, जैसे—
- Plaintiff की गलती (Plaintiff’s Fault)
यदि हानि स्वयं Plaintiff की लापरवाही से हुई हो। - Act of God (प्राकृतिक आपदा)
जैसे– भूकंप, बाढ़, आंधी-तूफान आदि। - Act of Stranger (तीसरे व्यक्ति का कार्य)
यदि किसी तीसरे व्यक्ति की गलती से हानि हुई हो। - Plaintiff की सहमति (Consent of Plaintiff)
यदि Plaintiff ने स्वयं उस कार्य के लिए अनुमति दी हो। - Statutory Authority (कानूनी अधिकार)
यदि कार्य किसी वैधानिक प्राधिकरण के तहत किया गया हो।
भारतीय विधि में प्रभाव (Impact in India)
भारत में इस सिद्धांत को कई मामलों में अपनाया गया, जैसे—
- Madras Railway Co. v. Zamindar (1874): रेलवे द्वारा जलाशय से निकले पानी से नुकसान होने पर उत्तरदायित्व।
- M.C. Mehta v. Union of India (Oleum Gas Leak Case, 1987): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय परिस्थितियों में Strict Liability पर्याप्त नहीं है। यहाँ Absolute Liability का सिद्धांत लागू होगा, जिसमें कोई अपवाद नहीं होगा।
Absolute Liability बनाम Strict Liability
- Strict Liability: कुछ अपवाद (Act of God, Stranger आदि) उपलब्ध।
- Absolute Liability: कोई अपवाद नहीं; यदि उद्योग खतरनाक गतिविधि करता है और नुकसान होता है तो वह पूर्ण रूप से जिम्मेदार होगा।
महत्व और योगदान
- इस सिद्धांत ने Tort Law में No Fault Liability का आधार तैयार किया।
- औद्योगिकीकरण और तकनीकी विकास के दौर में इसने न्यायिक सुरक्षा प्रदान की।
- भारत जैसे विकासशील देशों में औद्योगिक दुर्घटनाओं के पीड़ितों को राहत देने में इसका बड़ा महत्व रहा।
निष्कर्ष
Rylands v. Fletcher (1868) ने विधि के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत किया। इसने यह स्थापित किया कि कुछ कार्य इतने खतरनाक होते हैं कि उनमें दोष की अनुपस्थिति में भी जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता। यही Strict Liability का मूल तत्व है। यद्यपि भारतीय न्यायपालिका ने बाद में इसे और विकसित कर Absolute Liability का सिद्धांत लागू किया, परंतु इस निर्णय का महत्व आज भी बना हुआ है।
यह सिद्धांत आधुनिक पर्यावरणीय न्यायशास्त्र और औद्योगिक दायित्व (Industrial Liability) का आधार है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि “लाभ उठाने वाले को नुकसान की जिम्मेदारी भी उठानी होगी।”