Rule of Law as Propounded by A.V. Dicey
भूमिका (Introduction)
कानून का शासन (Rule of Law) आधुनिक विधि और शासन प्रणाली का आधारभूत सिद्धांत है। यह विचार इस धारणा पर आधारित है कि किसी भी समाज में शासक और शासित, दोनों समान रूप से कानून के अधीन हैं और किसी भी प्रकार की मनमानी या निरंकुश सत्ता का स्थान नहीं होना चाहिए। कानून के शासन की अवधारणा ने विधिक शासन (legal governance) और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
19वीं शताब्दी में प्रसिद्ध अंग्रेजी विधिवेत्ता ए. वी. डाइसि (A. V. Dicey) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Introduction to the Study of the Law of the Constitution” (1885) में “Rule of Law” की अवधारणा को व्यवस्थित रूप से प्रतिपादित किया। उनके विचार आज भी संवैधानिक कानून के अध्ययन का अभिन्न हिस्सा हैं और न्यायिक निर्णयों में बार-बार उद्धृत किए जाते हैं।
इस निबंध में हम डाइसि द्वारा प्रतिपादित “Rule of Law” की अवधारणा, उसके तीन मुख्य सिद्धांत, उसके महत्व, आलोचनाएं और आधुनिक युग में इसकी प्रासंगिकता का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
Rule of Law की परिभाषा
साधारण अर्थ में “Rule of Law” का तात्पर्य है कि “कानून का शासन होना चाहिए, न कि व्यक्तियों का शासन।” अर्थात् राज्य की समस्त शक्तियाँ कानून द्वारा नियंत्रित हों और कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर न हो।
डाइसि के अनुसार –
“Rule of Law means the absolute supremacy or predominance of regular law as opposed to the influence of arbitrary power.”
अर्थात्, कानून का शासन उस व्यवस्था को दर्शाता है जहाँ मनमाने और निरंकुश शक्ति की बजाय विधि की सर्वोच्चता होती है।
A.V. Dicey के Rule of Law के तीन प्रमुख सिद्धांत
डाइसि ने “Rule of Law” के अंतर्गत तीन मूल सिद्धांत प्रतिपादित किए, जिन्हें आधुनिक विधिशास्त्र में भी स्वीकार किया जाता है।
(1) Supremacy of Law (कानून की सर्वोच्चता)
डाइसि ने कहा कि किसी भी राज्य में कानून की सर्वोच्चता होनी चाहिए और मनमाने या निरंकुश शासन का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
- किसी भी नागरिक को दंडित या दायित्वपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उसने कानून का उल्लंघन न किया हो और विधिवत् न्यायालय द्वारा उसके विरुद्ध निर्णय न दे दिया जाए।
- किसी व्यक्ति को मात्र प्रशासकीय आदेश, पुलिस के निर्देश या सरकारी इच्छा से दंडित नहीं किया जा सकता।
उदाहरण – भारत में अनुच्छेद 21 यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह डाइसि की “Supremacy of Law” की अवधारणा का ही संवैधानिक रूप है।
(2) Equality before Law (कानून के समक्ष समानता)
डाइसि का दूसरा सिद्धांत यह है कि सभी व्यक्ति, चाहे वे साधारण नागरिक हों या सरकारी अधिकारी, कानून की दृष्टि में समान हैं।
- प्रत्येक व्यक्ति सामान्य न्यायालयों के अधीन है और किसी को भी विशेषाधिकार या विशेष न्यायालय नहीं मिलना चाहिए।
- किसी भी वर्ग या समुदाय को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता।
भारतीय संदर्भ – संविधान का अनुच्छेद 14 “समानता का अधिकार” प्रदान करता है, जो डाइसि की इस अवधारणा का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब है।
(3) Predominance of Legal Spirit (विधि की भावना की प्रधानता)
डाइसि ने अपने तीसरे सिद्धांत में कहा कि केवल लिखित संविधान या अधिकारों की औपचारिक घोषणा से नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी नहीं होती।
- वास्तविक स्वतंत्रता न्यायालयों द्वारा विकसित और संरक्षित “विधि की भावना” (legal spirit) पर निर्भर करती है।
- ब्रिटेन में उन्होंने देखा कि मौलिक अधिकार लिखित रूप में संविधान में न होकर, न्यायालयों द्वारा विकसित सामान्य विधि (common law) में सुरक्षित हैं।
अर्थात्, न्यायपालिका और विधिक परंपराएं नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा का सबसे बड़ा साधन हैं।
Rule of Law की विशेषताएँ
- कानून की सर्वोच्चता और निरंकुश सत्ता का अभाव।
- समानता का सिद्धांत – कोई विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका।
- विधि द्वारा नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा।
- मनमानी प्रशासनिक कार्यवाहियों पर नियंत्रण।
भारतीय संविधान में Rule of Law
भारतीय संविधान में “Rule of Law” की अवधारणा व्यापक रूप से निहित है।
- अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता और समान संरक्षण।
- अनुच्छेद 21 – विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 32 और 226 – मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायिक उपाय।
- अनुच्छेद 13 – संविधान के विपरीत कोई भी कानून शून्य होगा।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अनेक निर्णयों में Rule of Law को संविधान की बुनियादी संरचना (basic structure) का हिस्सा मान चुका है, जिसे बदला नहीं जा सकता।
प्रमुख निर्णय –
- Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973) – Rule of Law को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा घोषित किया गया।
- Indira Nehru Gandhi v. Raj Narain (1975) – सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि Rule of Law भारतीय संविधान की बुनियादी विशेषता है।
Dicey की अवधारणा की आलोचनाएँ (Criticism of Dicey’s Rule of Law)
यद्यपि डाइसि की अवधारणा ने विधिशास्त्र को नई दिशा दी, फिर भी इसकी कुछ आलोचनाएँ भी की गईं –
- विशेषाधिकार प्राप्त अधिकारियों की वास्तविकता –
डाइसि ने कहा कि सभी समान हैं, लेकिन व्यवहार में प्रशासनिक अधिकारियों को विशेष अधिकार और प्रतिरक्षा प्राप्त होती है। उदाहरण – भारत में राष्ट्रपति और राज्यपाल को उनके आधिकारिक कार्यों के लिए प्रतिरक्षा प्राप्त है। - लिखित संविधान और मौलिक अधिकारों की उपेक्षा –
डाइसि ने ब्रिटिश परंपरा में अधिकारों की सुरक्षा को पर्याप्त माना, लेकिन आधुनिक राज्यों में लिखित संविधान और मौलिक अधिकार आवश्यक हैं। - न्यायिक समीक्षा पर अत्यधिक भरोसा –
डाइसि का विश्वास था कि न्यायालय ही स्वतंत्रता के संरक्षक हैं, जबकि व्यवहार में न्यायालय की भी सीमाएँ हैं और न्यायिक विलंब जैसी समस्याएँ सामने आती हैं। - समानता का सिद्धांत व्यावहारिक नहीं –
कई बार समाज में कमजोर वर्गों और पिछड़े समुदायों के लिए विशेष प्रावधान करना आवश्यक होता है। डाइसि की कठोर समानता की अवधारणा सामाजिक न्याय के सिद्धांत से मेल नहीं खाती।
आधुनिक युग में Rule of Law की प्रासंगिकता
आज Rule of Law लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की आधारशिला है।
- मानवाधिकार संरक्षण – यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि राज्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता – Rule of Law न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका पर नियंत्रण रखने का आधार देता है।
- भ्रष्टाचार और मनमानी पर रोक – यदि प्रशासन कानून से ऊपर नहीं है, तो शासन अधिक पारदर्शी और जवाबदेह होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय महत्व – संयुक्त राष्ट्र (UN) और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय भी Rule of Law को वैश्विक शांति और मानवाधिकारों की गारंटी मानते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
A.V. Dicey की “Rule of Law” की अवधारणा ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी सभ्य राज्य में शासन की नींव कानून पर ही आधारित होनी चाहिए। डाइसि के तीन सिद्धांत – कानून की सर्वोच्चता, कानून के समक्ष समानता और विधि की भावना की प्रधानता – आज भी विधिशास्त्र और संवैधानिक कानून के लिए मार्गदर्शक हैं।
यद्यपि उनकी अवधारणा में कुछ सीमाएँ थीं, फिर भी आधुनिक संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने इसे नए सिरे से अपनाया और विकसित किया। भारत में भी Rule of Law को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना गया है।
अतः यह कहा जा सकता है कि Rule of Law केवल एक विधिक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक आदर्श है, जो स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी देता है और समाज को एक संगठित एवं लोकतांत्रिक दिशा प्रदान करता है।