-: लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1. “सूचना का अधिकार” से क्या तात्पर्य है? What is meant by Right to Information?
उत्तर- सूचना का अधिकार (Right to Information) — सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (अ) के अनुसार- “सूचना का अधिकार” से इस अधिनियम के अधीन पहुँच योग्य सूचना का जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा उसके नियन्त्रणाधीन धारित है, अधिकार अभिप्रेत है और जिसमें निम्नलिखित का अधिकार सम्मिलित है-
(i) कृति दस्तावेजों, अभिलेखों का निरीक्षण:
(ii) दस्तावेजों या अभिलेखों के टिप्पण, उद्धरण या प्रमाणित प्रतिलिपि लेना;
(iii) सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना;
(IV) डिस्केट, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट के रूप में या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रोति में या प्रिंट आउट के माध्यम से सूचना को, जहाँ ऐसी सूचना किसी कम्प्यूटर या किसी अन्य युक्ति में भण्डारित है, अभिप्राप्त करना;
उक्त सूचना की अगर समग्र एवं अन्तिम परिभाषा दी जाय तो सूचना का अधिकार इस अधिनियम के अन्तर्गत वह सूचना लेने का अधिकार है जो किसी लोक प्राधिकारी के नियन्त्रण या कब्जे में है। सीधे शब्दों में यह वह अधिकार है जिसके अन्तर्गत किसी सरकारी कार्यालय से सम्बन्धित सूचना इस अधिनियम की परिधि में रहते हुए प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 2. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 किस पर लागू होता है? Which are apply to Right to Information Act, 2005?
उत्तर- आर०टी० आई० अधिनियम (सूचना का अधिकार अधिनियम) जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर लागू होता है। यह प्रत्येक प्राधिकरण, निकाय या संस्थाओं पर लागू होता है, जिनकी स्थापना या निर्माण संविधान, संसद या राज्य विधानमण्डल या सरकार के नोटिफिकेशन द्वारा हुआ है। सूचना का अधिकार अधिनियम सरकार के स्वामित्व व नियन्त्रण वाले, सरकार द्वारा वित्त पोषित निकार्यों और सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित गैर-सरकारी संस्थाओं पर भी लागू होता है। अधिनियम में उन्हें लोक प्राधिकरण (Public Authorities) कहा गया है।
प्रश्न 3. सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य लिखिए। Write objects of Right to Information Act.
उत्तर- सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. लोक प्राधिकारियों के कार्यकरण में पारदर्शिता लाना तथा उनके उत्तरदायित्व में संवर्धन करना।
2. लोक प्राधिकारियों के नियन्त्रणाधीन सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करना।
3. नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यवहारिक शासन पद्धति स्थापित करना।
4. केन्द्रीय और राज्य सूचना आयोग का गठन करना।
5. भ्रष्टाचार को रोकना।
6. शासन तथा उसके उपक्रमों को उत्तरदायी बनाना।
7. सरकारों का दक्ष प्रचालन सुनिश्चित करना।
8. सीमित राज्य वित्तीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना।
9 संवेदनशील सूचनाओं की गोपनीयता बनाए रखना।
10. लोकतन्त्रात्मक आदर्श की सम्प्रभुता को बनाए रखना।
11. विरोधी हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करना आदि।
प्रश्न 4. “सूचना का अधिकार अधिनियम किस पर लागू नहीं होता है? Which are not apply to “Right to Information” Act?
उत्तर- ‘सूचना का अधिकार” केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित 18 गुप्तचर तथा सुरक्षा संगठनों पर लागू नहीं होता है। इन संगठनों की सूची सूचना का अधिकार अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में दी गई है। यद्यपि इन संगठनों को भ्रष्टाचार तथा मानवाधिकारों के हनन से सम्बन्धित अभियोगों से सम्बन्धित सूचना उपलब्ध करानी होगी।
प्रश्न 5. जानने का अधिकार। Right to know.
उत्तर – जानने का अधिकार (Right to Know)— भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) में सूचनाओं को जानने का अधिकार भी शामिल है। इसमें सरकारी संचालन सम्बन्धी सूचनायें भी आती हैं। परन्तु केवल तब जब देश की सुरक्षा या लोकहित में आवश्यक हो तभी उसका प्रकटीकरण नहीं किया जा सकता है। लोकतान्त्रिक सरकार एक खुली सरकार होती है जिसके विषय में जनता को जानने का अधिकार होता है।
रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य, ए० आई० आर० 1950 एस० सी० 114 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चाकू एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में विचारों के प्रसार की स्वतन्त्रता भी आती है और वह स्वतन्त्रता विचारों के प्रसारण की स्वतन्त्रता द्वारा सुनिश्चित है। यह स्वतन्त्रता केवल अपने ही विचारों के प्रसार की स्वतन्त्रता तक सीमित नहीं है बल्कि दूसरों के विचारों के प्रसार एवं प्रकाशन की स्वतन्त्रता भी शामिल है।
श्रीमती प्रभादत्त बनाम भारत संघ, ए० आई० आर० 1982 एस० सी० 6 नामक वाद में उच्चतम न्यायालय ने विचार व्यक्त किया कि प्रेस की स्वतन्त्रता में सूचनाओं तथा समाचारों को जानने का अधिकार भी सम्मिलित है। प्रेस को व्यक्तियों के साक्षात्कार के माध्यम से सूचनाएँ जानने का अधिकार प्राप्त है। परन्तु जानने की स्वतन्त्रता आत्यन्तिक (पूर्ण absolute) नहीं है। उसके ऊपर युक्तियुक्त निर्बन्धन (restrictions) लगाए जा सकते हैं। इस मामले में हिन्दुस्तान टाइम्स के संवाददाता ने इन्दिरा गाँधी के हत्यारे के साक्षात्कार की अनुमति माँगी थी। अनुमति देने से जेल अधिकारियों ने इन्कार कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा, प्रेस की जानने की स्वतन्त्रता किसी व्यक्ति पर प्रेस को सूचना देने अथवा समाचार देने का कोई विधिक स्वतन्त्रता अधिरोपित नहीं कर सकती।
प्रश्न 6. सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताओं को वर्णित कीजिए। Discuss the salient features of Right to Information Act, 2005.
उत्तर- सूचना का अधिकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएं – सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) विश्व में अनूठा क्योंकि अन्य देशों में वहाँ के नागरिकों को सूचना अधिनियम अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने की स्वतन्त्रता है जबकि भारत में यह नागरिकों का के वैधानिक अधिकार है।
(2) विस्तृत अधिकार क्षेत्र
(3) क्रियान्वयन के लिए त्रिस्तरीय ढाँचा
(4) मौलिक अधिकार नहीं वरन् वैधानिक अधिकार
(5) लोचनशीलता और व्यावहारिकता
(6) सभी कर्मचारियों और अधिकारियों का उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने में कारगर
(7) पारदर्शिता और खुलापन
(8) प्रशासन को नागरिक की दहलीज तक लाना)
(9) अन्य अधिकारों के साथ आंगिक सम्बन्ध
(10) नागरिकों को शासन के वास्तविक मालिक के रूप में सशक्त करना
(11) समयबद्ध निर्णय
(12) अधिनियम के अन्तर्गत सूचना आयोगों को दण्ड देने का अधिकार
(13) सूचना माँगने के लिए कारण बताना अनिवार्य नहीं
(14) दीवानी अदालतों के हस्तक्षेप की मनाही।
प्रश्न 7. सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुसार सूचना क्या है? What is Information under the Right to Information Act?
उत्तर – सूचना (Information) सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (ङ) या (च) के अधिकार, “सूचना” से किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक संविदा, रिपोर्ट, कागज- पत्र, नमूने, मॉडल, ऑकड़ों सम्बन्धी सामग्री और किसी प्राइवेट निकाय से सम्बन्धित ऐसी सूचना सहित, जिस तक तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहुँच हो सकती हैं, किसी रूप में कोई सामग्री, अभिप्रेत है; सूचना की परिभाषा में दर्शाए गए सूचना के विभिन्न स्वरूपों से इस अधिनियम का अधिकार क्षेत्र प्रतिबिम्बित होता है। अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि चाहे यह सूचना किसी भी रूप में उपलब्ध हैं, वह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार देय बनती है। इसका मुख्य उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना है जो मात्र रिकार्ड से सम्बन्धित सूचना से नहीं हो सकती। यदि किसी काम या आयोजन को पूर्ण पारदर्शी बनाना है तो उसके आरम्भ से अन्त तक की सारी प्रक्रिया स्पष्ट रूप से नजर आनी चाहिए। इस प्रक्रिया में विभिन्न अवस्थाओं में व विभिन्न स्तरों पर सूचना का स्वरूप बदल जाता है। उदाहरण के तौर पर एक सरकारी भवन के निर्माण सम्बन्धी सूचना की प्रारम्भिक सूचना मात्र लागत के अनुमान के आँकड़े व भवन के नक्शे से सम्बन्धित माप व पैमाना होगा। जब निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है तो निर्माण सामग्री की गुणवत्ता, कोमत, खरीद की प्रक्रिया, स्रोत, निरीक्षण, अदायगी इत्यादि अनेक कारक इसमें जुड़ जाते हैं’ एवं प्रत्येक कारक से सम्बन्धित सूचना की संरचना एवं स्वरूप भिन्न होते हैं।
प्रश्न 8. “सूचना के अधिकार प्राप्त करने का योग्यता।” टिप्पणी लिखिए। “Entitlement of Right to Information.” Comment.
उत्तर- सूचना के अधिकार प्राप्त करने की योग्यता – सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 3 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को सूचना का अधिकार प्रदान किया गया है न कि प्रत्येक व्यक्तियों को। अतः गैर नागरिकों को उक्त अधिकार प्रदान करना वांछित नहीं है। यहाँ तक कि संस्थाएँ भी नागरिकों में शामिल नहीं हैं। अधिनियम में सूचना प्राप्त करने के दो तरीके हैं-
(i) लोक प्राधिकरण के लिए अपनी सूचनाओं को स्वतः प्रकाशित करना आवश्यक है। यह जनता के लिए उपलब्ध करानी होगी।
(ii) दूसरा तरीका तय शुल्क के साथ लोक प्राधिकरण को प्रार्थना-पत्र देकर सूचना प्राप्त करने का है।
ऐसा आवेदन उस व्यक्ति द्वारा किया जाएगा जो सूचना के अधिकार का प्रयोग इस अधिनियम के अन्तर्गत करते हुए सूचना प्राप्त करना चाहता है। आवेदक लिखित रूप में या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आवेदन अंग्रेजी, हिन्दी या उस क्षेत्र की आधिकारिक भाषा में कर सकता है अत: उपरोक्त किसी भी भाषा में वह आवेदन कर सकता है। ऐसा आवेदन लिखित रूप में भी कर सकता है अथवा वह ई-मेल या अन्य किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के द्वारा भी कर सकता है। यह आवेदन-पत्र सम्बन्धित केन्द्रीय अथवा राज्य लोक सूचना अधिकारी अथवा सहायक केन्द्रीय अथवा लोक सूचना अधिकारी को सम्बोधित होगा तथा सम्बन्धित अधिकारी के पास निर्धारित शुल्क के साथ जमा करवाना होगा।
प्रश्न 9. सूचना के लिए कैसे आवेदन करेंगे? How will apply for information?
उत्तर- प्रार्थना-पत्र सादे कागज पर जन सूचना अधिकारी को देना होगा। अधिनियम में प्रार्थना-पत्र के लिए निश्चित प्रारूप नहीं दिया गया है। एक नमूना नीचे देखा जा सकता है। किसी भी संस्था/विभाग (पब्लिक अधिकारी) से सूचना प्राप्त करने का स्त्रोत त्रिस्तरीय है-
(अ) जन सूचना अधिकारी से।
(ब) सहायक जन सूचना अधिकारी से।
(स) उपरोक्त से सन्तुष्ट या सूचना न प्राप्त होने पर उसी विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी से।
उपरोक्त से सन्तुष्ट या सूचना न प्राप्त होने पर उसी विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी से।
उपरोक्त से सन्तुष्ट न होने पर द्वितीय अपीलिएट (राज्य सूचना आयुक्त) के माध्यम से सूचना माँगी जा सकती है।
भारतीय गणतन्त्र के प्रत्येक नागरिक चाहे वह व्यापारी हो, सेवारत हो या कृषक हो वह स्वयं से सम्बन्धित या जनहित से जुड़े किसी भी प्रकरण पर सूचना माँगने का अधिकार रखता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत माँगी गई सूचना का आवेदन-
सेवा में,
जन सूचना अधिकारी
————————-
1. आवेदक का नाम:
2. पूरा पता:
3. (i) माँगी गयी सूचना का विवरण :
(ii) अन्य विवरण :
4. आवेदन शुल्क का विवरण 10.00 रुपये (नकद / बैंक ड्राफ्ट/ बैंकर्स चेक पोस्टल आर्डर)
(दस रुपया मात्र)
स्थान :
दिनांक : आवेदक के हस्ताक्षर
प्रश्न 10. रिकार्ड से क्या तात्पर्य है? What do you mean by Records?
उत्तर- रिकार्ड (Record) – अंग्रेजी का शब्द रिकार्ड एक या एक से अधिक दस्तावेजों का सामूहिक संज्ञान करवाता है। इसमें सम्बन्धित विषय सम्बन्धित सभी दस्तावेज शामिल किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी कर्मचारी की छूट्टी का रिकार्ड माँगा जाता है तो उक्त रिकार्ड से सम्बन्धित सूचना में उस कर्मचारी द्वारा ली गई विभिन्न प्रकार की छुट्टियों का ब्यौरा उनकी अवधि कार्यालय का विवरण एवं स्वीकृति सम्बन्धित सभी दस्तावेज उसमें सम्मिलित होंगे। अतः रिकार्ड शब्द किसी विषय से सम्बन्धित सभी दस्तावेजों को सम्मिलित करता है।
आयुक्त केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर बनाम केन्द्रीय सूचना आयोग नई दिल्ली, एल० पी० ए०नं० 543/2009 के बाद में आयुक्त कर के मामले में झारखण्ड उच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी की यदि माँगी गई सूचना किसी ऐसे रिकार्ड से सम्बन्धित है। जिसको नष्ट करने की कोई व्यवस्था नहीं है एवं जिसे सुरक्षित रखना विभाग की जिम्मेवारी है ऐसी स्थिति में विभाग पर सूचना देने का पूर्ण दायित्व है। यदि माँगी गयी सूचना उपलब्ध नहीं भी है और जहाँ रिकार्ड पुनः सृजित किया जा सकता है ऐसी स्थिति में रिकार्ड का पुनसृजन करना आवश्यक है। अतः ऐसी सूचना देने से मना नहीं किया जा सकता है। माननीय उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में उत्तरवादी यह कहकर पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं कि उक्त रिकार्ड उपलब्ध नहीं है जबकि रिकार्ड को सुरक्षित रखना प्राधिकरण का उत्तरदायित्व है।
प्रश्न 11. सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के परिप्रेक्ष्य में न्यायालय के क्षेत्राधिकार को विवेचित कीजिए। Discuss the court jurisdiction with reference to Right to Information Act, 2005.
उत्तर- सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के परिप्रेक्ष्य में न्यायालय के क्षेत्राधिकार – सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 23 इस बात को स्पष्ट – करती है कि कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अन्तर्गत किए गए किसी भी निर्णय या आदेश के विरुद्ध कोई भी दावा, प्रार्थना पत्र अथवा अन्य कोई कार्यवाही स्वीकार नहीं करेगा एवं किसी भी आदेश को इस अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के अतिरिक्त अन्यत्र अपील में चुनौती नहीं दी जाएगी।
इसका स्पष्ट आशय यह है कि अधिनियम में दिया गया तन्त्र अपने आप में पूर्ण तथा अन्तिम है एवं सूचना के अधिकार लागू करने के लिए परिकल्पित इस तन्त्र को किसी प्रकार से अवरुद्ध करने का प्रयास न्यायिक प्रणाली के माध्यम से नहीं किया जाएगा। अतः सूचना के अधिकार की जो प्रक्रिया आवेदक के आवेदन पत्र से प्रारम्भ होकर अन्ततः केन्द्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग तक जाकर समाप्त हो सकती है, के बीच अन्य किसी बाहरी प्रक्रिया में बाधित नहीं होना चाहिए। यदि अदालतों द्वारा इस प्रक्रिया में टोका-टोकी या बाधा पहुँचाई जाती है तो इस प्रक्रिया के प्रभावी होने में रुकावट आएगी अतः इस प्रक्रिया के स्वाभाविक एवं सतत् प्रवाह के लिए यह प्रावधान अधिनियम में शामिल किया गया है।
यद्यपि उपरोक्त उद्देश्य के लिए यह एक सार्थक प्रयास है परन्तु इस प्रक्रिया से उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों को प्राप्त संविधान के अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 226 में निहित न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्तियों को अलग नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 12. “सूचना का अधिकार” अधिनियम के अन्तर्गत माँगी गई सूचना कितने दिनों में दी जाती है?
उत्तर- लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा धारा 6 के प्रावधानों के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्रों का निपटारा प्राप्ति की तिथि से तीस दिन के अन्दर अन्दर किया जाएगा। तीस दिन की अवधि की गणना करते समय यदि आवेदन-पत्र सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा धारा 5 (2) के अन्तर्गत प्राप्त किया गया हो या धारा 6 (3) के परन्तुक (Proviso) के अन्तर्गत स्थानान्तरण द्वारा किसी अन्य लोक सूचना अधिकारी से प्राप्त किया गया हो तो 5 दिन की अवधि अतिरिक्त रूप से जोड़ दी जाएगी। ऐसी स्थिति में आवेदन के निपटाने की निर्धारित अवधि प्राप्ति की तिथि से 305 35 दिन की मानी जाएगी।
किसी शुल्क के विषय में जानकारी प्राप्त करने तथा शुल्क के भुगतान के मध्य के अन्तराल को 30 दिन की समय सीमा से पृथक् रखा जायेगा जहाँ सूचना सम्बन्धित व्यक्ति के जीवन तथा स्वतन्त्रता (Life and liberty) से सम्बन्धित हो, वह प्रार्थना-पत्र प्राप्ति के 48 घण्टे में उपलब्ध करायी जायेगी उस स्थिति में जब सूचना तृतीय पक्ष (Third parties) से सम्बन्धित हो तो यह समय सीमा 40 दिन होगी।
आवेदन पत्र के निपटान से आशय सूचना देने या आवेदन को अस्वीकार करने से है। सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी के पास मूलतः दो विकल्प हैं- या तो निर्धारित अवधि में। सूचना प्रदान की जाए या अधिनियम की धारा 8 व 9 में दिए गए कारणों के आधार पर आवेदन अस्वीकार कर दिया जाए। यदि उक्त प्रावधान को ध्यान में रखा जाए तो लोक सूचना अधिकारी के पास कोई ऐच्छिक शक्तियाँ नहीं है क्योंकि उसके स्तर पर लिए जाने वाला निर्णय अधिनियम के प्रावधानों से स्पष्ट रूप से नियन्त्रित है।
प्रश्न 13. तृतीय पक्षकार की सूचना को परिभाषित कीजिये। Define third party information.
उत्तर- तृतीय पक्षकार की सूचना (Third Party Information ) – सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 तृतीय पक्षकार की सूचना के बारे में उपबन्ध करती है। इस धारा के अनुसार- सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन करने वाला आवेदक प्रथम पक्ष होता है तथा जिस लोक सूचना अधिकारी से सूचना माँगी जाती है, वह द्वितीय पक्ष होता है। परन्तु जब सूचना का सम्बन्ध उक्त दोनों पक्षों के अतिरिक्त किसी अन्य पक्ष से होता है, तो ऐसा अन्य पक्ष तीसरा पक्ष कहलाता है। ऐसा अन्य पक्ष कोई लोक प्राधिकारी भी हो सकता है जब उक्त सूचना उपरोक्त उल्लेखित दोनों पक्षों के अतिरिक्त किसी अन्य लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित हो परन्तु तीसरे पक्ष का लोक प्राधिकारी होना आवश्यक नहीं है वह निजी संस्था या व्यक्ति भी हो सकता है एवं कोई लोक प्राधिकारी भी। परन्तु यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा कि इस व्यवस्था में द्वितीय पक्ष आवश्यक रूप से वह लोक प्राधिकारी होता है जिससे सूचना माँगी गई है। यह धारा उन सूचनाओं का निपटान करती है जो सूचनाएँ किसी तीसरे पक्ष से सम्बन्ध रखती हैं व उक्त सूचना या रिकार्ड ऐसे तीसरे पक्ष द्वारा गोपनीय विश्वास के तौर पर जमा करवाई गई हो। यदि ऐसी किसी सूचना को प्राप्त करने के बारे में सूचना के अधिकार के अन्तर्गत कोई आवेदन प्राप्त हुआ है व सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी ऐसी सूचना प्रदान करने का इरादा रखता है तो उस स्थिति में सम्बन्धित तृतीय पक्ष को ऐसे आवेदन पत्र के प्राप्त होने के 5 दिन के अन्दर अन्दर इस आशय का लिखित नोटिस जारी किया जाएगा। उक्त नोटिस द्वारा ऐसे तीसरे पक्ष को लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना जारी करने के इरादे के बारे में सूचित करते हुए उसे इस विषय में यदि वह चाहे तो अपना पक्ष रखते हुए लिखित अथवा मौखिक आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी द्वारा इस प्रकार से प्राप्त आवेदन पत्र पर सूचना देने से सम्बन्धित निर्णय लेने से पहले विचार किया जाना आवश्यक होगा। इस विषय में व्यापार एवं वाणिज्य सम्बन्धित गोपनीयता को छोड़कर जो कि कानून द्वारा सुरक्षित है, शेष सूचनाएँ प्रदान की जा सकती हैं यदि तृतीय पक्ष के हितों को होने वाले सम्भावित नुकसान की तुलना में जनहित का पलड़ा भारी हो।
प्रश्न 14. तृतीय पक्षकार के सूचना के प्रकटीकरण से संबंधित उपबंधों की व्याख्या कीजिए। Discuss the provisions relating to disclosing information about third party.
उत्तर – तृतीय पक्षकार के सूचना के प्रकटीकरण से संबंधित उपबंध – सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 11 पर व्यक्ति सूचना (third party information) से सम्बन्धित है।
तृतीय पक्ष से सम्बन्धित सूचना निम्न स्थितियों में उपलब्ध करायी जायेगी- तृतीय पक्ष से तात्पर्य सूचना के लिए आवेदन करने वाले नागरिक से भिन्न व्यक्ति या लोक प्राधिकरण से है। तृतीय पक्ष से सम्बन्धित सूचना दिए जाने की प्रार्थना प्राप्त होने के पश्चात् जन सूचना अधिकारी 05 दिन के अन्दर तृतीय पक्ष को नोटिस भेजेगा और उनके विचार जानेगा। तृतीय पक्ष को इस नोटिस प्राप्ति की तिथि से 10 दिन के अन्दर अपना पक्ष जन सूचना अधिकारी के सम्मुख रखने का अवसर दिया जायेगा।
तृतीय पक्ष द्वारा रखे गए अपने पक्ष (Representation) पर यह निर्भर करेगा कि सूचना उपलब्ध करायी जाये या नहीं। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया प्रार्थना-पत्र प्राप्ति के 40 दिन में सम्पन्न हो जानी चाहिए। यदि जनहित तृतीय पक्ष के हित से महत्वपूर्ण होगा तो सूचना प्रकट कर दी जायेगी।
प्रश्न 15. सूचना देने से छूट। Exemptions for disclosure.
उत्तर- सूचना प्रकट किए जाने से छूट- सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 18 के अनुसार- व्यक्ति को निम्नलिखित सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी-
(1) सूचना, जिसके प्रकटन से भारत की प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से सम्बन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या किसी अपराध को करने का उद्दीपन होता हो।
(2) सूचना जिसका प्रकाशन या खुलासा करना किसी अदालत द्वारा प्रतिबन्धित हो ।
(3) सूचना जिसके खुलासे से संसद या विधायिका के क्षेत्राधिकार का हनन होता है।
(4) वाणिज्यिक गोपनीयता, व्यापारिक भेद और बौद्धिक सम्पदा का अधिकार।
(5) संसूचना जो कि विश्वसनीय सम्बन्धों के कारण प्राप्त की गई हो।
(6) संसूचना जिससे किसी व्यक्ति की जान-माल का खतरा हो।
(7) सूचना जिससे जाँच प्रक्रिया प्रभावित हो ।
(8) कैबिनेट पेपर जिसमें मन्त्रिमण्डल सेक्रेटरी और अन्य अधिकारियों के विचार के लिए दस्तावेज सम्मिलित हो।
प्रश्न 16. सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना के अनुरोध के निस्तारण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। Describe the procedure of disposal of request under Right to Information Act.
उत्तर– सूचना के अनुरोध का निस्तारण – सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7 सूचना के अनुरोध का निपटारा से सम्बन्धित प्रावधान के विषय में बतलाती है। आवेदन पत्र की सूक्ष्म परीक्षा के बाद लोक सूचना अधिकारी सूचना प्रदान करने के काम में जुट जाता है। वह आवेदन को विभाग की उस ईकाई या कार्यालय को प्रेषित करता है जिससे सूचना का सम्बन्ध है। जिस कर्मचारी और अधिकारी के पास माँगी गई सूचना उपलब्ध है, वह सूचना अधिकारी को सूचना उपलब्ध करवाने के लिए बाध्य है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 5 (4) में यह स्पष्ट कहा गया है कि सूचना प्राप्त करने में लोक सूचना अधिकारी किसी भी निकाय या कर्मचारी से सहायता प्राप्त कर सकता है। सूचना के निपटारे की निम्न प्रक्रिया इस प्रकार है-
(i) सूचना संकलित करना सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में यह प्रावधान किया गया है कि माँगी गई सूचना यथासम्भव शीघ्र प्रदान की जायेगी परन्तु इसमें 30 दिन से अधिक समय नहीं बीतना चाहिए।
(ii) अतिरिक्त फीस जमा करवाने के लिए पत्र लिखना- यदि माँगी गई सूचना को उपलब्ध कराने में अतिरिक्त धनराशि व्यय होती है तो लोक सूचना अधिकारी उस व्यय का राज्य सरकार द्वारा पूर्व निर्धारित दरों के आधार पर आंकलन कर अनुरोधकर्ता को अतिरिक्त शुल्क देने के लिए निर्धारित प्रारूप पर लिखित रूप में सूचित करेगा।
(iii) सूचना प्रेषित करना इस प्रकार लोक सूचना अधिकारी मांगी गई सूचना पर आने वाले खर्च की अदायगी के लिए आवेदन पत्र लिखता है। यदि 30 दिन तक कोई सूचना आवेदक को नहीं प्रदान की गई और न ही उसे अतिरिक्त फीस के लिए लिखा गया तो सूचना निःशुल्क प्रदान की जाएगी।
(iv) आवेदक द्वारा प्राप्त सूचना की जांच-पड़ताल करना सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्रेषित सूचना मिलने पर आवेदक उसकी छानबीन करता है। यदि माँगी गई। सूचना सही है तो वह संतुष्ट होकर उसका उपयोग करता है और यदि उसमें कोई त्रुटि है तो वह उसके लिए प्रथम अपील करता है। लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध निम्न परिस्थितियों में अपील की जा सकती है –
(1) आवेदन भेजने के 30 दिन तक कोई भी सूचना न मिलना।
(2) आवेदन-पत्र को अस्वीकृत करने के कारण औचित्यपूर्ण नहीं हो।
(3) सूचना आंशिक रूप से प्राप्त हुई है।
(4) आंशिक रूप से भेजी गई सूचना के कारणों और निर्णय लेने वाले अधिकारी का पद नाम नहीं बताया गया है।
(5) अतिरिक्त सूचना औचित्यपूर्ण नहीं है।
(6) सूचना अधूरी एवं असत्य है।
(7) प्रदान की गई सूचना बहकाने वाली है व विरोधाभासी है।
(8) जानबूझकर सूचना प्रदान नहीं की गई।
प्रश्न 17. सूचना देने में विलम्ब के कारण शास्ति लगाने के उपबंधों का वर्णन कीजिए। Discuss the provisions of imposition of penalty for simple reason of delay to furnish information.
उत्तर- सूचना देने में विलम्ब के कारण शास्ति संबंधी उपबंध – सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 18 (ग) में समय-सीमा के भीतर सूचना उपलब्ध न कराने सम्बन्धी उपबन्ध किये गये हैं जहाँ सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी द्वारा निर्धारित समायावधि में सूचना प्राप्त करने या सूचना की जानकारी सम्बन्धी आवेदन का कोई उत्तर प्राप्त न हो ऐसी स्थिति में आवेदक अपनी शिकायत सूचना आयोग को कर सकता है। धारा 19 (1) के अन्तर्गत अपील के लिए भी ऐसी ही स्थिति की परिकल्पना की गई है जहाँ आवेदन पर निर्धारित अवधि में निर्णय प्राप्त न हो। जहाँ धारा 18 (ग) में निर्धारित अवधि में उत्तर की बात कही गई है वहीं धारा 19 (1) में निर्धारित अवधि में निर्णय का जिक्र है। परन्तु निर्णय भी आवेदन का उत्तर हो सकता है वहीं दूसरी ओर उत्तर निर्णय के रूप में हो सकता है अतः दोनों स्थितियों में कोई बड़ा अन्तर नहीं है। अतः जब निर्धारित अवधि में कोई उत्तर अथवा निर्णय आवेदन पत्र पर नहीं मिलता तो आवेदक के पास दो विकल्प हैं वह विभाग में नामित वरिष्ठ अधिकारी व प्रथम अपील सूचना आयोग के पास धारा 19 (1) के अन्तर्गत अपील दायर कर सकता है अथवा सीधे सम्बन्धित सूचना आयोग के पास धारा 18 (ग) के अन्तर्गत शिकायत कर सकता है क्योंकि सूचना आयोग इस अधिनियम के अन्तर्गत उपलब्ध सर्वोच्च संस्था है व राज्य अथवा केन्द्र में एक ही संस्था है उसकी तुलना में विभागीय अपील प्राधिकारी तक पहुँच सुगम हो सकती है अतः ऐसी स्थिति में धारा 19 (1) के अन्तर्गत अपील बेहतर विकल्प हो सकता है।
जहाँ किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी ने, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना सूचना के लिए कोई आवेदन प्राप्त करने से इंकार किया है या धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन सूचना के लिए विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है, तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, दो सौ पचास रुपए की शास्ति अधिरोपित करेगा, तथापि, ऐसी शास्ति की कुल रकम पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं होगी।
प्रश्न 18 केन्द्रीय सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त से आप क्या समझते हैं? What do you understand by Chief Information Commissioner?
उत्तर- मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) केन्द्रीय सूचना आयोग के सदस्यों में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है, अधिनियम को धारा 12 (3) के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित से मिलकर बनी समिति की सिफारिश पर की जायेगी-
(i) प्रधानमन्त्री, जो समिति का अध्यक्ष होगा;
(ii) लोक सभा में विपक्ष का नेता और
(iii) प्रधानमंत्री द्वारा नामनिर्दिष्ट संघ मंत्रिमण्डल का एक मंत्री।
प्रश्न 19. सक्षम प्राधिकारी से क्या अभिप्रेत है? What is meant by competent authority?
उत्तर- समक्ष प्राधिकारी (Competent Authority)— अधिनियम की धारा 2 (ङ) सक्षम प्राधिकारी के बारे में उपबन्ध करती है। सक्षम प्राधिकारी से यहाँ तात्पर्य उस प्राधिकारी से है जो इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए वांछित आदेश पारित करेगा या अधिनियम का कार्यान्वयन अपने अधिकार क्षेत्र में सुनिश्चित करेगा। वास्तव में सक्षम प्राधिकारी यहाँ उन संस्थाओं के विषय में निर्दिष्ट सरकार की जगह कार्य करेंगे जिनको स्वायत्त अस्तित्व प्राप्त है। इन संस्थाओं की स्थापना संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप की जाती है तथा इनकी कार्यप्रणाली स्वतन्त्र रूप से चलती है जिस पर सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता एवं न ही सरकारी हस्तक्षेप की कोई संभावना होती है। सरकार द्वारा ऐसी संस्थाओं को कोई आदेश या निर्देश जारी नहीं किए जा सकते। अतः सूचना के अधिकार को लागू करने के लिए ऐसी संस्थाओं में निर्दिष्ट सरकार के स्थान पर इन्हीं संस्थाओं में स्थित सक्षम प्राधिकारी। की व्यवस्था की गई है। उक्त सक्षम प्राधिकारी सम्बन्धित संस्था के विषय में इस अधिनियम के अन्तर्गत उन्हीं कर्त्तव्यों का वहन करेंगे जो कर्तव्य अन्य सरकारी विभागों एवं संस्थाओं के सन्दर्भ में सरकार द्वारा निभाये जाने हैं। उक्त प्राधिकारी सरकार के विभिन्न अंगों में निम्न प्रकार से होंगे-
(क) लोकसभा, राज्य विधान सभा या केन्द्र शासित प्रदेशों की विधानसभा से सम्बन्धित अध्यक्ष (Speaker) एवं राज्यसभा एवं राज्यों की राज्य परिषदों के सभापति उक्त विधायिकाओं के सम्बन्ध में सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकारी होंगे।
(ख) न्यायपालिका में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय के सन्दर्भ में, एवं ‘
(ग) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय के सन्दर्भ में सक्षम प्राधिकारी होंगे।
(घ) इसी तरह कार्यपालिका से सम्बन्धित स्वायत्त संस्थाओं के सन्दर्भ में भारत के राष्ट्रपति एवं राज्य सरकारों के लिए सम्बन्धित राज्यपाल सक्षम प्राधिकारी होंगे।
(ङ) इसके अतिरिक्त उन केन्द्र शासित प्रदेशों में जहाँ संविधान के अनुच्छेद 239 के अन्तर्गत प्रशासक नियुक्त किये गए हैं, वहाँ के प्रशासक सक्षम प्राधिकारी होंगे।
प्रश्न 20. सूचना देने से इन्कार करने का आधार क्या है?What is ground for refusal to give Information?
उत्तर- सूचना देने से इन्कार करने के आधार – अधिनियम की धारा 8 (1) उन स्थितियों का उल्लेख करती है जिनमें सूचना अधिकारी सूचना देने से इन्कार कर सकता है-
(क) सूचना, जिसको सार्वजनिक करने से भारत की प्रभुता एवं अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, सामरिक, आर्थिक और वैज्ञानिक हित तथा विदेशी सम्बन्धों पर प्रभाव और अपराध को उकसाने के बारे में नुकसानदेह हो ।
(ख) सूचना, जिसके प्रकाशन के बारे में किसी अदालत या किसी न्यायपालिका ने मनाही की हो या जिसके प्रकटन से अदालत की तौहीन होती हो।
(ग) सूचना जिसके प्रकटन से संसद या किसी राज्य विधानमण्डल के विशेषाधिकारों का उल्लंघन होता हो।
(घ) सूचना, जिसके प्रकटन से वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक सम्पदा के आधार पर यदि प्रकटन से किसी तीसरे पक्ष की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान पहुँचने की आशंका हो परन्तु जब तक कि सक्षम अधिकारी सन्तुष्ट नहीं हो जाता कि सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोक हित का फायदा होता है।
(ङ) किसी व्यक्ति को विश्वास आश्रित रिश्ते-नाते में उपलब्ध सूचना, जब तक कि सक्षम अधिकारी सन्तुष्ट न हो जाए कि विस्तृत लोक हित ऐसी सूचना के प्रगटाव की माँग करते हैं।
(च) विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त हुई सूचना ।
(छ) सूचना, जिसके प्रगटाव से किसी व्यक्ति की सुरक्षा तथा जिन्दगी को खतरा हो या कानून लागू करवाने वाली एजेन्सी या सुरक्षा उद्देश्यों के लिए विश्वास में दी गई सहायता या सूचना के स्रोत की पहचान को खतरा हो।
(ज) सूचना, जिसके अपराध की जाँच की प्रक्रिया में रुकावट या शंका तथा अभियोजन की प्रक्रिया में अड़चन पैदा हो।
(झ) मन्त्रिमण्डल के कागज पत्र, जिसमें मन्त्रिपरिषद्, सचिवों तथा दूसरे अधिकारियों के विचार विमर्श के अभिलेख सम्मिलित हैं। परन्तु यह कि मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों के पूर्ण या समाप्ति पर सभी निर्णय, निर्णयों के कारण और वह सामग्री जिस पर निर्णय लिए गए हैं, जनता को उपलब्ध कराए जाएँगे।
(ण) सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना के साथ सम्बन्ध रखती है, जिसका किसी लोक गतिविधि या हित के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है या जिससे किसी व्यक्ति की एकान्तता पर अनावश्यक अतिक्रमण होता है। परन्तु केन्द्रीय/राज्य लोक सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकरण सन्तुष्ट नहीं हो कि विशालतम जनहित में ऐसी सूचना का प्रकटीकरण न्यायसंगत है। परन्तु ऐसी सूचना जिसे संसद या राज्य विधानमण्डल को मना नहीं किया जा सकता, किसी व्यक्ति को मना नहीं की आएगी।
प्रश्न 21. जन सूचना अधिकारी। Public Information Officer.
उत्तर- जन सूचना अधिकारी (Public Information Officer) – सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 5 के अन्तर्गत लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति के बारे में प्रावधान किया गया है। धारा 5 (1) के अनुसार- प्रत्येक लोक प्राधिकारी इस अधिनियम की अधिनियमिति के एक सौ दिनों के भीतर इस अधिनियम के अधीन सूचना के लिए अनुरोध करने वाले व्यक्तियों को सूचना प्रदान करने के लिए इसके अधीन सभी प्रशासनिक इकाइयों या कार्यालयों में इतने केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारियों या राज्य लोक सूचना अधिकारियों को नियुक्त करेगा, जितने आवश्यक हों।
इस प्रकार इस अधिनियम के सफल और प्रभावी क्रियान्वयन में सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी लोक सूचना अधिकारी (Public Information Officer) होता है। उक्त अधिनियम में लोक सूचना अधिकारी के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं की गई है और न ही उसको हटाने और पदों की संख्या का वर्णन अधिनियम में किया गया है। आवेदन प्राप्त करने से लेकर अपील तक सभी अवस्थाओं में उसकी केन्द्रीय भूमिका होती है। अधिनियम के अन्तर्गत उसमें न्यायप्रिय, प्रगतिशील, सहयोगी, समन्वयक और शिष्ट अधिकारी होने की आशा की गई है। उसमें त्वरित और तर्कपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता भी होनी चाहिए। वह आवेदन, अपीलाधिकारी, सूचना आयोग और प्राधिकरण के मुख्य अधिकारी के मध्य सम्पर्ककर्ता की भूमिका निभाता है। यद्यपि अधिनियम यह भी व्यवस्था करता है कि सूचना से सम्बन्धित जिस भी किसी अधिकारी की सहायता ली जाती है, वह सूचना अधिकारी के रूप में कार्य करता है और धाराओं के उल्लंघन के लिए सजा पाने का हकदार भी होता है।
प्रश्न 22. सहायक लोक सूचना अधिकारी। Assistant Public Information Officer.
उत्तर- सहायक लोक सूचना अधिकारी- आम नागरिकों को सूचना के अधिकार का प्रयोग करने के लिए सुदूर कार्यालय में न जाना पड़े इसके लिए अधिनियम में सहायक केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी एवं सहायक राज्य लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति की व्यवस्था की है। इन सहायक अधिकारियों की नियुक्ति भी 100 दिन की निर्धारित अवधि में ही की जानी थी एवं ऐसे सहायक लोक सूचना अधिकारी उपमण्डल स्तर पर व दूसरे उपजिला स्तरों पर नियुक्त किये जाने थे।
इन सहायक लोक सूचना अधिकारियों का मुख्य कार्य अपने स्तर पर सूचना अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन पत्र एवं अपील प्राप्त करना होगा। यह अधिकारी उक्त प्रार्थना प्राप्त करके तुरन्त उसे सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी को भेजेंगे। इसी प्रकार इन द्वारा प्राप्त की जाने वाली अपील सम्बन्धित प्रथम अपील प्राधिकारी (धारा 19 (1) के अधीन नियुक्त किया गया वरिष्ठ अधिकारी) का केन्द्रीय सूचना आयोग वा राज्य सूचना आयोग को भेजी जाएँगी। जहाँ सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा इस तरह की अपील या आवेदन-पत्र प्राप्त किये जाते हैं वहाँ अपील अथवा आवेदन-पत्र के निपटान की धारा 7 (1) में निर्धारित अवधि में पाँच दिन की अवधि और जोड़ दी जाएगी। उक्त पाँच दिन का समय सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी अथवा अपील प्राधिकारी अथवा आयोग को आवेदन पत्र अथवा अपोल भेजने में लगने वाले समय के दृष्टिगत दिया गया है। आवेदनकर्ता अथवा अपीलार्थी को उक्त अतिरिक्त समय के बदले निकटतम आवश्यक सेवा प्राप्त हो जाती है। परन्तु यहाँ यह स्पष्ट किया जाता है कि सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास आवेदन पत्र पर निर्णय लेने का अधिकारी नहीं है व न ही इस विषय में वह आवेदक के साथ किसी प्रकार का पत्राचार अपने स्तर पर कर सकता है।
प्रश्न 23 जन सूचनाधिकारी के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए। Explain the duties of Public Information Officer.
उत्तर- लोक सूचना अधिकारी के कर्तव्य– लोक सूचना अधिकारी के कर्तव्य एवं दायित्व निम्नलिखित हैं जो इस प्रकार हैं –
1. लोक सूचना अधिकारी का कार्य नागरिकों के सूचना के अनुरोध पत्रों पर कार्यवाही कर सूचना की माँग करने वाले नेत्रहीन, विकलांग या अनपढ़ व्यक्तियों की अनुरोध पत्रों को तैयार करने में सहायता करना है।
2. सूचना के अनुरोधों पर सामान्य अवस्था में और अन्य वर्णित विशेष अवधि में सूचना उपलब्ध करवाना।
3. यदि माँगी गई सूचना अधिनियम की धारा 8, 9, 10 और 24 में वर्णित छूट के दायरे में आती हो तो अनुरोधकर्ता को लिखित रूप में वांछित सूचना न दे सकने का कारण बताते हुए यह भी सूचित करना कि वे चाहें तो सूचना न देने के निर्णय के विरुद्ध उच्च अधिकारी के पास अपील कर सकते हैं। साथ ही अपील प्राधिकारी का नाम, पता, दूरभाष नम्बर से भी अनुरोधकर्ता को सूचित करना उसका दायित्व है।
4 – यदि माँगी गई सूचना किसी दूसरे विभाग या लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित हो तो, उस आवेदन पत्र को पाँच दिनों में सम्बन्धित विभाग के लोक सूचना अधिकारी को अग्रेषित करना और लिखित रूप में इसकी सूचना अनुरोधकर्ता को भी देना। [ धारा 6 (3) ]
5. वह आवेदन देने वालों के आवेदन पत्रों को निपटाता है तथा जहाँ आवेदन लिखित रूप में नहीं दिया जा सकता, इसको लिखित रूप में देने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करता है।
6. वह अपने कर्तव्यों को सही ढंग से निभाने के लिए किसी दूसरे अधिकारी की आवेदन सहायता ले सकता है।
7. यदि वह निश्चित अवधि के भीतर आवेदन पर निर्णय नहीं लेता तो इसे को इंकार किया गया माना जाएगा।
8. जब आवेदन-पत्र रद्द किया जाता है तो वह इसकी निम्न कारणों के बारे में आवेदक को सूचना देगा-
(1) रद्द करने के कारण,
(ii) वह अवधि जिसके भीतर इसे रद्द करने के खिलाफ अपील की जा सकती है, अथवा
(iii) अपीली अधिकारी का पूरा ब्यौरा |