“Rakesh Kumar बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (29 जुलाई 2025) – B.N.S.S., 2023 की धारा 223 के तहत आरोपी को नोटिस जारी करने की वैध प्रक्रिया पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

“Rakesh Kumar बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (29 जुलाई 2025) – B.N.S.S., 2023 की धारा 223 के तहत आरोपी को नोटिस जारी करने की वैध प्रक्रिया पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”


भूमिका

न्यायिक प्रक्रिया में अभियुक्त को नोटिस जारी करना एक अत्यंत संवेदनशील और कानूनी रूप से नियंत्रित चरण होता है। विशेषकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (B.N.S.S.) के तहत, यह प्रक्रिया स्पष्ट रूप से परिभाषित है ताकि आरोपी को न्यायसंगत अवसर मिल सके। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने Rakesh Kumar बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (29 जुलाई 2025) में इसी सिद्धांत पर एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि शिकायतकर्ता और उसके गवाहों के बयान दर्ज किए बिना आरोपी को पूर्व-समय (premature) नोटिस जारी करना विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।


मामले की पृष्ठभूमि

  • मामला संख्या: आवेदन संख्या 862/2025
  • अपील प्रावधान: धारा 528, B.N.S.S., 2023 के अंतर्गत
  • विवाद का विषय: धारा 223, B.N.S.S., 2023 के तहत आरोपी को नोटिस जारी करने की वैधता
  • तथ्य:
    • मजिस्ट्रेट ने प्रस्तावित आरोपी को धारा 223(1) B.N.S.S. की प्रोविज़ो के तहत नोटिस जारी किया।
    • यह नोटिस शिकायतकर्ता और उसके गवाहों के बयान दर्ज होने से पहले ही जारी कर दिया गया।
    • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया BNSS के अनिवार्य प्रावधानों के विपरीत है।

कानूनी प्रावधान – धारा 223, B.N.S.S., 2023

धारा 223(1) का प्रोविज़ो यह कहता है कि यदि मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को अभियोजन के लिए बुलाना चाहता है, तो उसे—

  1. शिकायत की प्रति,
  2. शिकायतकर्ता का शपथ-पत्र (sworn statement),
  3. गवाहों के बयान,
    इन सबको नोटिस के साथ संलग्न करना आवश्यक है, ताकि आरोपी प्रारंभिक स्तर पर ही मामले की प्रकृति और आरोपों को समझ सके तथा अपना पक्ष रख सके।

हाईकोर्ट की कानूनी विवेचना

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा—

  1. नोटिस जारी करने का सही समय:
    • मजिस्ट्रेट को पहले शिकायतकर्ता और उसके गवाहों के बयान दर्ज करने होते हैं।
    • उसके बाद ही आरोपी को नोटिस भेजा जा सकता है।
  2. पूर्व-समय नोटिस अवैध:
    • यदि बयान दर्ज किए बिना नोटिस जारी होता है, तो आरोपी को मामले की पूरी जानकारी और संदर्भ से वंचित किया जाता है।
    • यह आरोपी के meaningful opportunity of being heard के अधिकार का उल्लंघन है।
  3. अनिवार्यता:
    • नोटिस के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज संलग्न करना अनिवार्य है।
    • इस प्रक्रिया का पालन न करने पर नोटिस अवैध और निरस्त करने योग्य होगा।

न्यायालय का निर्णय

  • मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया पूर्व-समय नोटिस कानूनन अवैध घोषित किया गया।
  • संबंधित आदेश को रद्द (quash) किया गया।
  • आवेदनकर्ता (Rakesh Kumar) का आवेदन स्वीकृत किया गया।

निर्णय का महत्व

  1. प्रक्रियात्मक सुरक्षा: यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि आरोपी को बिना साक्ष्यों और बयानों की जानकारी के बुलाया नहीं जा सकता।
  2. न्यायसंगत सुनवाई का अधिकार: आरोपी को धारा 223 के तहत पूर्ण दस्तावेजी जानकारी देकर ही सुनवाई के लिए बुलाया जाए।
  3. मजिस्ट्रेटों के लिए दिशानिर्देश: यह फैसला निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बन गया है कि नोटिस जारी करने से पहले अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाए।

निष्कर्ष

Rakesh Kumar बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (29 जुलाई 2025) का यह निर्णय BNSS, 2023 की धारा 223 के व्यावहारिक और न्यायिक अनुप्रयोग को स्पष्ट करता है। यह आरोपी के अधिकारों की रक्षा करते हुए न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को मजबूत करता है। भविष्य में इस तरह के मामलों में यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में कार्य करेगा।