Quasi Contract (अर्ध-अनुबंध)
प्रस्तावना
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 केवल वास्तविक अनुबंधों (Contracts) तक सीमित नहीं है। कुछ परिस्थितियों में, भले ही पक्षकारों के बीच कोई वास्तविक अनुबंध न हो, फिर भी विधि (Law) एक ऐसा दायित्व आरोपित कर देती है, मानो उनके बीच अनुबंध हुआ हो।
इन्हें Quasi Contracts (अर्ध-अनुबंध) या Contracts implied in law कहा जाता है।
इस प्रकार, Quasi Contract न्याय और समानता (Justice and Equity) के सिद्धांतों पर आधारित है।
परिभाषा (Definition)
Pollock & Mulla के अनुसार –
“Quasi-contract is a situation where law imposes upon a person an obligation similar to that of a contract, though the parties never entered into a contract.”
भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 68 से 72 तक Quasi Contracts की व्यवस्था की गई है।
Quasi Contract की विशेषताएँ (Features)
- कोई वास्तविक अनुबंध नहीं (No real contract):
पक्षकारों के बीच कोई प्रस्ताव और स्वीकृति (offer & acceptance) नहीं होती। - विधि द्वारा आरोपित (Imposed by law):
यह केवल विधि द्वारा लगाया गया दायित्व है। - न्याय एवं समानता पर आधारित (Based on equity):
Quasi Contract का उद्देश्य है कि कोई भी व्यक्ति अन्यायपूर्ण लाभ (Unjust Enrichment) न उठा सके। - अनुबंध जैसे दायित्व (Obligation similar to contract):
यद्यपि यह अनुबंध नहीं है, परंतु इसके दायित्व बिल्कुल अनुबंध जैसे होते हैं।
Quasi Contracts के प्रकार (Types under Indian Law)
भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 68 से 72 तक पाँच प्रकार की परिस्थितियाँ दी गई हैं जिनमें Quasi Contract बनता है।
1. Necessaries supplied to persons incapable of contracting (Section 68)
यदि कोई व्यक्ति ऐसा है जो अनुबंध करने में सक्षम नहीं (जैसे – नाबालिग या अस्वस्थ मस्तिष्क वाला), और कोई अन्य व्यक्ति उसे या उसके आश्रितों को आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराता है, तो आपूर्ति करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति से प्रतिपूर्ति पाने का अधिकारी होता है।
उदाहरण:
A ने एक नाबालिग B को भोजन व कपड़े उपलब्ध कराए। A को B की संपत्ति से भुगतान पाने का अधिकार होगा।
Case Law:
- Chapple v. Cooper (1844) – यह निर्णय हुआ कि आवश्यक वस्तुओं (necessaries) की आपूर्ति का मूल्य वसूल किया जा सकता है।
2. Payment by an interested person (Section 69)
यदि कोई व्यक्ति दूसरों के हित में कोई वैध भुगतान करता है, जबकि वह भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं था, तो वह प्रतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
उदाहरण:
A, B का किराया चुकाता है ताकि B की संपत्ति न नीलाम हो। बाद में A, B से उस राशि की वसूली कर सकता है।
Case Law:
- M/S Food Corporation of India v. Vikas Majdoor Kamdar Sahkari Mandli Ltd. (2007) – किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया वैध भुगतान प्रतिपूर्ति योग्य माना गया।
3. Obligation of person enjoying benefit of non-gratuitous act (Section 70)
यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से और निःशुल्क न करने के आशय से कोई कार्य करता है जिससे दूसरा व्यक्ति लाभान्वित होता है, तो लाभ पाने वाला व्यक्ति उस कार्य का उचित मूल्य चुकाने हेतु बाध्य होता है।
उदाहरण:
A, B की जमीन पर गलती से फसल बो देता है और B उस फसल का उपयोग करता है। B को उचित मूल्य चुकाना होगा।
Case Law:
- State of West Bengal v. B.K. Mondal & Sons (1962) – ठेकेदार ने राज्य के लिए निर्माण कार्य किया, अनुबंध औपचारिक न था, परंतु राज्य ने लाभ उठाया, अतः ठेकेदार को भुगतान का अधिकार मिला।
4. Responsibility of finder of goods (Section 71)
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की वस्तु पाता है, तो वह वस्तु के स्वामी की तरह जिम्मेदार होता है और उसे सावधानी से रखना व उचित देखभाल करना आवश्यक होता है।
उदाहरण:
A को सड़क पर B की सोने की अंगूठी मिलती है। A को उसे सुरक्षित रखना और वापस लौटाना अनिवार्य है।
Case Law:
- Hollins v. Fowler (1875) – वस्तु पाने वाले व्यक्ति पर स्वामी के समान दायित्व आरोपित किया गया।
5. Liability to pay for non-gratuitous act or money paid by mistake or under coercion (Section 72)
यदि कोई व्यक्ति गलती से या दबाव में किसी अन्य को धन का भुगतान करता है, तो प्राप्तकर्ता उस धन को लौटाने के लिए बाध्य है।
उदाहरण:
A ने B को गलती से ₹1,000 अधिक दे दिया। B को वह राशि लौटानी होगी।
Case Law:
- Sales Tax Officer v. Kanhaiya Lal Mukund Lal Saraf (1959) – यदि सरकार द्वारा टैक्स गलती से वसूल लिया गया हो, तो उसे लौटाना अनिवार्य है।
Quasi Contract और वास्तविक अनुबंध में अंतर
आधार | वास्तविक अनुबंध | Quasi अनुबंध |
---|---|---|
उत्पत्ति | प्रस्ताव और स्वीकृति से | विधि द्वारा आरोपित |
उद्देश्य | पक्षकारों के बीच वादे का पालन | अन्यायपूर्ण लाभ को रोकना |
सहमति | आवश्यक | आवश्यक नहीं |
उदाहरण | बिक्री अनुबंध | गलती से भुगतान किया गया धन |
न्यायिक दृष्टांत (Important Case Laws)
- Chapple v. Cooper (1844) – नाबालिग को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का मूल्य वसूल योग्य।
- State of West Bengal v. B.K. Mondal & Sons (1962) – राज्य ने लाभ उठाया, ठेकेदार भुगतान पाने का अधिकारी।
- Sales Tax Officer v. Kanhaiya Lal (1959) – गलती से वसूले गए टैक्स को लौटाना अनिवार्य।
- Hollins v. Fowler (1875) – वस्तु पाने वाले की जिम्मेदारी स्वामी जैसी।
व्यावहारिक महत्त्व (Practical Importance)
- अनुबंध के अभाव में भी न्याय:
यह सुनिश्चित करता है कि केवल अनुबंध न होने के कारण कोई पक्ष नुकसान न उठाए। - अन्यायपूर्ण लाभ की रोकथाम:
कोई भी व्यक्ति दूसरे की हानि पर लाभ न उठा सके। - सामाजिक न्याय:
समाज में निष्पक्षता और न्याय की भावना को बढ़ावा देता है। - व्यापार और वाणिज्य में उपयोग:
गलत भुगतान, अनजाने में हुए लाभ आदि परिस्थितियों में Quasi Contract व्यापक रूप से लागू होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Quasi Contract भारतीय अनुबंध अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। यह उन परिस्थितियों में राहत प्रदान करता है जब कोई वास्तविक अनुबंध न होते हुए भी न्याय और समानता की दृष्टि से दायित्व उत्पन्न होता है।
इनका मूल उद्देश्य है – “किसी को अन्यायपूर्ण लाभ उठाने से रोकना और पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाना।”
इस प्रकार Quasi Contracts कानून द्वारा उत्पन्न वैधानिक दायित्व (Legal Obligations) हैं, जो समाज में निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखते हैं।