प्रश्न 1. भूवद्ध का तात्पर्य क्या है?
What is meaning of attached to earth?
अथवा
भूमि से संलग्न वस्तुएँ शब्दाबली को समझाइए।
Explain the term “Things of attached to earth.”
अथवा
“भू- निविष्ट वस्तुओं से संलग्नित वस्तुएँ” से क्या अभिप्राय है? समुचित उदाहरण देते हुए समझाइए।
What is meant by “Things fastened to a thing attached to the earth”? Explain giving suitable examples.
अथवा
भूमि से संलग्न वस्तुएँ से क्या तात्पर्य है ? What is meant by “Things attached to earth ?
उत्तर– निर्वाचन खण्ड की धारा 3 में दी गयी परिभाषा के अनुसार भूवद्ध से अभिप्रेत है –
(क) भूमि में मूलित, जैसे पेड़ एवं झाड़ियाँ,
(ख) भूमि से निविष्ट, जैसे भित्तियाँ या निर्माण, अथवा
(ग) ऐसी निविष्ट वस्तु से इसलिए बद्ध कि जिससे यह बद्ध है. इसका स्थायी एवं लाभप्रद उपयोग किया जा सके। कुछ वस्तुयें होती है जो जमीन में गड़ी होने के बाद भी अचल संपत्ति नहीं होती यथा जहाज का लंगर।
यदि कोई वस्तु ऐसी है जो स्वतः अपने भार से जमीन से दब जाती है तो ऐसी वस्तु सामान्यतः चरन संपत्ति की श्रेणी में आती है परन्तु यदि किसी वस्तु को जमीन से जोड़ने के पीछे आशय यह हो कि इसे जमीन का स्थायी हिस्सा बना दिया जाये तो वह वस्तु अचल संपत्ति हो जायेगी, भले ही वह वस्तु जमीन में गड़ी हुई न हो।
प्रश्न 2. चल संपत्ति में क्या-क्या शामिल है? स्पष्ट कीजिए। What are included in movable property? Clarify.
उत्तर– चल संपत्ति में निम्न को शामिल किया गया है :-
1. प्रमाण का अधिकार (Right of worship)/
2. रॉयल्टी (Royalty)
3. अचल संपत्ति की डिक्री
4. लगान के एरियर के लिए डिक्री।
5. भरण-पोषण के अधिकार की वसूली करना।
6. एक ऐसी मशीन जो स्थायी रूप से जमीन में संलग्न नहीं है।
7. खड़ा हुआ काष्ठ।
8. उगी हुई फसल।
9. उगी हुई घास (Growing grass ) ।
10. सरकारी प्रोमिसरी नोट।
प्रश्न 3. अचल संपत्ति में क्या-क्या शामिल है ? What are included in immovable property?
उत्तर – अचल संपत्ति में निम्न को शामिल माना गया है :-
1. ताड़ का वृक्ष (Palm tree) ।
2. मार्ग का अधिकार।
3. मेले से कर वसूल करना।
4. अचल संपत्ति से कर लेना।
5. पुजारी का आनुवंशिक पद।
6. नाव हाट का हक या अधिकार।
7. हाट बाजार से कर बसूलना।
8. बंधकदार का बंधक।
9. मोचन का अधिकार।
10. मीन क्षेत्र का अधिकार।
11. वंशानुगत रूप से चलने वाला पद।
12. फैक्टरी अथवा कारखाना।
13. दूसरे की भूमि पर भोगाधिकार।
14. जमीन की आय का अधिकार।
15. अचल संपत्ति में बाजार लगवाने का अधिकार।
16. मालिकाना हक ।
17. तेंदूपत्ता एकत्र करने का अधिकार।
18. वंशानुगत कार्यालय
19. मछली पकड़ने तथा ले जाने का अधिकार।
20 परभूमि भोगाधिकार।
21. नाव हाट का अधिकार।
प्रश्न 4. अनुप्रमाणन के सम्बन्ध में अंग्रेजी तथा भारतीय विधि में क्या अन्तर है? What is distinction between English and Indian Law relating to attestation.
उत्तर– अंग्रेजी विधि में दोनों साक्षियों का एक ही समय पर उपस्थित रहना आवश्यक है जबकि भारतीय विधि में दोनों साक्षियों का एक ही समय पर उपस्थित रहना आवश्यक नहीं है। अंग्रेजी विधि में दोनों ही साक्षियों का विलेख का निष्पादन करते हुए वास्तव में देखना आवश्यक है, परन्तु भारतीय विधि में दोनों साक्षियों को एक ही समय में विलेख का निष्पादन करते हुए देखना आवश्यक नहीं है।
प्रश्न 5. अनुप्रमाणन का प्रभाव बताइये।
State consequences of attestation.
उत्तर -अनुप्रमाणन का प्रभाव निम्न प्रकार से होता है –
(1) अनुप्रमाणन की अनुपस्थिति में दस्तावेज शून्य एवं निष्प्रभावी होता है।
(2) अनुप्रमाणित विलेख अथवा दस्तावेज को न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता है।
(3) यदि कोई बंधक पत्र अनुप्रमाणन की अनुपस्थिति में शून्य हो जाता है तो ऋणदेनगी का दायित्व बंधककर्त्ता का व्यक्तिगत होगा।
(4) ऐसे बंधकपत्र को बंधककर्त्ता की स्वीकृति माना जायेगा।
प्रश्न 6. “अचल संपत्ति पर वास्तविक कब्जा है।” इसके क्या अपवाद हैं? “There is real possession on immovable property”, What are its exceptions?
उत्तर- अपवाद सामान्य नियमानुसार अचल सम्पत्ति पर कोई वास्तविक कब्जा एक प्रलक्षित सूचना के समय मान्य है।
(1) प्रलक्षित कब्जा (Constructive Possession)– प्रलक्षित कब्जा नोटिस नहीं होता है।
(2) अंश मात्र कब्जा (Partialy in Possession) सम्पत्ति के अंश मात्र का कब्जा प्रलक्षित सूचना नहीं होगा यदि किसी व्यक्ति का वास्तविक कब्जा, किसी मकान या खेत के एक भाग पर ही हो तो यह कब्जा पूरे मकान के विषय में स्थित समस्त अधिकारों की प्रलक्षित सूचना नहीं हो सकती है।
(3) संविदा पर आधारित मामले (In Contractual Matters) यदि कोई क्रेता सम्पत्ति को खरीदने जाए तो उसके एवं क्रेता के बीच स्थापित संविदाजन्य अधिकारों का संशोधन एवं परिमार्जन कब्जा के सिद्धान्त के आधार पर नहीं हो।
अभिकर्ता को सूचना (Notice to the Agent) सम्पत्ति अन्तरण संशोधित अधिनियम के पूर्व अभिकर्त्ता को सूचना के सम्बन्ध में नियम भारतीय संविदा 1929 अधिनियम, 1872 की धारा 229 के अनुसार लागू किये जाते हैं।
प्रश्न 7. प्रमाणीकरण के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
What are essential elements of attestation?
उत्तर – प्रमाणीकरण के तत्व प्रमाणीकरण के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं –
1. अनुप्रमाणन के समय प्रत्येक गवाहों की एक समय उपस्थिति आवश्यक नहीं है।
2. अनुप्रमाणित करने की कोई विशिष्ट प्रारूप आवश्यक नहीं है।
3. वैध प्रमाणीकरण में प्रारूप या दस्तावेज पर दो या दो से अधिक गवाहों के हस्ताक्षर अन्तरणकर्ता या निष्पादक के समक्ष होना आवश्यक हैं।
4. हस्ताक्षर करने के पहले निम्नलिखित में से कम-से-कम एक शर्त का पालन होना अनिवार्य है।
(i) अन्तरणकर्त्ता या निष्पादक के हस्ताक्षर, अंगूठे का चिन्ह या ऐसे व्यक्ति के हस्ताक्षर का चिन्ह की वैयक्तिक अभिस्वीकृति प्राप्त की हो।
(ii) अन्तरणकर्त्ता या निष्पादक की उपस्थिति में और निर्देश द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरणकर्ता या निष्पादक की तरफ से हस्ताक्षर करते या चिन्ह लगाते देखा है।
(iii) प्रत्येक गवाह के अन्तरणकर्त्ता या निष्पादक को हस्ताक्षर करते या चिन्ह लगाता है।
उदाहरण– चन्दन बनाम लौगा बाई AIR 1998M.PI नामक बाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि जहाँ साक्ष्य के कथन में यह तथ्य स्पष्ट न हुआ हो कि दोनों अनुप्रमाणित करने वाले गवाहों के निष्पादक या अन्तरणकर्त्ता की उपस्थिति में हस्तान्तरण विलेख पर हस्ताक्षर किये हों तथा यह भी स्पष्ट न हुआ हो कि अनुप्रमाणित करने वाले गवाहों के समक्ष अन्तरणकर्त्ता (निष्पादक) ने हस्ताक्षर किए हो तथा यह भी स्पष्ट न हुआ हो कि अनुप्रमाणित करने वाले गवाहों के समक्ष निष्पादक (अन्तरणकर्त्ता) ने हस्ताक्षर किए हों।
प्रश्न 8. अचल संपत्ति में क्या शामिल नहीं है ? What are not included in immovable property?
उत्तर – अचल संपत्ति में शामिल न होने वाले तत्व –
1. घास,
2. उगती फसलें,
3. खड़ा काष्ठ।
(1) घास (Grass) घास को अधिनियम ने चल सम्पत्ति ही माना है हालाँकि घास का प्रयोग जमीन में लगे हुए भी हो सकता है।
(2) उगती फसलें (Growing Crops) उगती फसलों को भी अचल सम्पत्ति नहीं माना गया है इस वर्ग में गेहूँ, चना, टमाटर, पान की फसलें आदि आती हैं।
(3) खड़ा काष्ठ (Standing Timber) सामान्यतया खड़े हुए हरे-भरे वृक्ष अचल सम्पत्ति होते हैं, परन्तु खड़े काष्ठ को –
उदाहरण –
1. मछली पकड़ने तथा ले जाने का अधिकार।
2. वंशानुगत कार्यालय (Hereditary offices) |
3. ताड़ का वृक्ष (Palm tree) |
4. मार्ग का अधिकार (Right of way)।
5. तेंदू पत्तों को एकत्रित करना।
प्रश्न 9. क्या “संभावना मात्र का अधिकार” अंतरित किया जा सकता है ? Whether “spes succession” can be transferred?
अथवा
“सम्भावना मात्र का अधिकार” से क्या तात्पर्य है ? क्या इसका अन्तरण हो जाता है ? What is meant by “Spes-successionis”? Whether it can be transferred?
उत्तर- ‘संभावना मात्र का अधिकार’ (Spes Succession)- सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 6 यह प्रावधान करती है कि क्या अंतरित नहीं किया जा सकता है। इस धारा के खण्ड क के अनुसार किसी प्रत्यक्ष वारिस की संपदा का उत्तराधिकारी होने की संभावना, कुल की मृत्यु पर किसी नातेदार की वसीयत संपदा अभिप्राप्त करने की संभावना या इसी प्रकृति की कोई अन्य संभावना मात्र अन्तरित नहीं की जा सकेगी।
इस खण्ड जिन संभावनाओं के अन्तरण की बात की गई है उसी को उत्तराधिकार की संभावना कहते है। यह संभावना मात्र एक संभावनायें हैं जो किसी हित के साथ जुड़ी हुई नहीं है। जैसे समाश्रित या भविष्य हित किसी प्रत्यक्ष वारिस का एक सम्पदा भी उत्तराधिकारी होने की संभावना इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत न तो कोई सम्पत्ति अपेक्षित है और न ही वास्तव में है। यहाँ पर सम्पत्ति का सम्बन्ध न किसी विद्यमान अधिकार से है। इस खण्ड के अन्तर्गत जिस संभावना का उल्लेख किया गया है। वह कोई विद्यमान अधिकार नहीं है इसलिए इसे सम्पत्ति नहीं कहा जा सकता है। अतः इसका अन्तरण नहीं किया जा सकता है और इसका अन्तरण किया गया तो वह शून्य होगा।
किसी प्रत्यक्ष वारिस का एक सम्पदा का उत्तराधिकारी होने की संभावना मात्र प्रत्याशा की एक उपेक्षा है जो किसी ऐसे व्यक्ति के कार्य द्वारा असफल हो सकती है जिसका सम्पत्ति में व्ययन का वर्तमान अधिकार है। अत: विधि की यह स्थापित धारणा है कि संभाव्य उत्तराधिकार का अन्तरण नहीं होना चाहिए। यहाँ पर प्रत्यक्ष वारिस से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो भविष्य में उत्तराधिकारी होगा और ऐसे व्यक्ति के करने पर वह जीवित रहता है तथा ऐसा व्यक्ति बिना इच्छा पत्र लिखे मर जाता है।
प्रश्न 10. अचल संपत्ति के अर्थ एवं परिभाषा का विश्लेषण कीजिए। Analyse meaning and definition of immovable property.
अथवा
“स्थावर (अचल संपत्ति के अन्तर्गत भूमि से उत्पन्न होने वाले लाभ भी सम्मिलित हैं।” उपर्युक्त उदाहरण देते हुए कथन को समझाइये। Immovable Property includes ‘Benefits arising out of land.” Explain giving suitable examples.
अथवा
स्थावर सम्पत्ति को परिभाषित कीजिए।
Define Immovable Property.
उत्तर– संपत्ति अन्तरण अधिनियम में संपत्ति’ की परिभाषा नहीं दी गयी है। विधिशास्त्र में स्वामित्व, संपत्ति एवं स्वत्व एक दूसरे से परस्पर इस प्रकार संयुक्त है कि बिना एक को समझे दूसरे को समझ पाना कठिन है। स्वामित्व तथा स्वत्व संपत्ति से भिन्न कोई अर्थ नहीं रखते। अत: संपत्ति को हम निम्न रूप से समझ सकते हैं-
(1) संपत्ति का भाग कब्जे से निर्धारित होता है जिस पर स्वत्व का प्रयोग सफलता के साथ किया जा सकता है यथा भूमि तथा खान-पान की वस्तुयें। परन्तु सूर्य के प्रकाश तथा हवा जैसी प्राकृतिक वस्तुओं पर कब्जा नहीं किया जा सकता। अत: इन पर स्वत्व भी कठिन है।
(2) संपत्ति का भाव अधिकार पर निर्भर करता है।
(3) संपत्ति और स्वामित्व का सम्बन्ध भी अभिन्न है क्योंकि स्वामित्व की मुख्य विशेषताओं में प्रयोग करने का अधिकार, नष्ट करने का अधिकार, उपभोग करने का अधिकार तथा अन्य अवशिष्ट अधिकार सम्मिलित हैं।।
संपत्ति अंतरण अधिनियम की किसी भी धारा में अचल संपत्ति’ को भी परिभाषित नहीं किया गया है। निर्वचन खण्ड में धारा 3 के अन्तर्गत अचल संपत्ति के सम्बन्ध में केवल नकारात्मक उल्लेख किया गया है कि अचल संपत्ति में खड़ा काष्ठ अथवा इमारती लकड़ी वाले वृक्ष, उगी हुई फसलें अथवा घास नहीं आती।
भूमि से उत्पन्न होने वाले लाभ
अचल संपत्ति की एक परिभाषा General Clauses Act में भी दी गयी है। इस अधिनियम की धारा 3(26) में अचल संपत्ति’ का तात्पर्य निम्न बताया गया है –
(1) भूमि (Land),
(ii) भूमि से मिलने वाला कोई भी लाभ, तथा
(iii) भूमि से संलग्न वस्तुयें ।
अब यदि संपत्ति अन्तरण अधिनियम तथा सामान्य खण्ड अधिनियम में परिभाषित अचल संपत्ति की परिभाषा को एक साथ मिलाकर पढ़ा जाये तो अचल संपत्ति की पूर्ण परिभाषा निम्न प्रकार से हमारे सामने आती है
“अचल संपत्ति में समाविष्ट है भूमि, भूमि से मिलने वाला लाभ तथा भूमि से संलग्न सभी वस्तुयें, केवल इमारती लकड़ी वाले वृक्ष उगी हुई फसलें तथा घास को छोड़कर।” रजिस्ट्रेशन अधिनियम के अन्तर्गत अचल संपत्ति की परिभाषा निम्न प्रकार से दी गयी है –
”अचल संपत्ति’ की अवधारणा में भूमि, वंशानुगत भत्ते, प्रकाश मार्ग, नौचालन, मत्स्यपालन, या भूमि से होने वाले अन्य लाभ, भूमि से संलग्न वस्तुयें या ऐसी वस्तुओं में स्थायी रूप से बंधी हुई वस्तुयें आदि सम्मिलित हैं। परन्तु खड़े काष्ठ, उगी हुई फसलें तथा घास चल संपत्ति ही होगी। यह अचल संपत्ति की अवधारणा (concept) में इन्हें भी सम्मिलित किया जा सकता है।
इस प्रकार, अचल संपत्ति उसे कहते हैं जो चलायमान न हो या जो चल न सके, जिसमें किसी परिवर्तन की शक्ति या क्षमता नहीं होती। अचल संपत्ति को उसके मूल स्थान से हटा देने पर उसकी वास्तविक स्थिति बदल जाती है।
अतः स्पष्ट है कि अचल संपत्ति में स्थान परिवर्तन की क्षमता नहीं होती जबकि चल संपत्ति में स्थान परिवर्तन से उसके गुणों और वास्तविकता में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
प्रश्न 11. प्रमाणीकरण क्या है? अनुचित प्रमाणीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिये। What is attentions? Discuss effects of improper attestation.
अथवा
प्रमाणन से क्या अभिप्राय है ?
What is meant by Attestation?
उत्तर – प्रमाणीकरण (Attestation) – प्रमाणीकरण से तात्पर्य किसी दस्तावेज पर दो या दो से अधिक गवाहों द्वारा प्रमाणित करना होता है जिनमें से प्रत्येक ने दस्तावेज के लेखन को दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुये या अपने अँगूठे का निशान बनाते हुए या किसी अन्य व्यक्ति को लेखक की मौजूदगी में या उसके निर्देशानुसार दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुये देखा हो या लेखक के हस्ताक्षर या अँगूठा के निशान या ऐसे अन्य व्यक्ति के हस्ताक्षर की व्यक्तिगत अभिस्वीकृति प्राप्त की हो और उनमें से प्रत्येक ने लेखक की उपस्थिति प्रमाणीकरण के आवश्यक तत्व धारा 3 के अनुसार प्रमाणीकरण में निम्नलिखित आवश्यक तत्व होते हैं –
1 प्रमाणित करने वाले साक्षियों के निष्पादक के सामने हस्ताक्षर किये हों।
2. सभी प्रमाणित करने वाले साक्षियों का एक समय पर हाजिर होना जरूरी नहीं है।
3. दस्तावेज पर दो या दो से अधिक गवाहों के हस्ताक्षर हो। 4. ऐसे हस्ताक्षर तब तक किये गये हों, जब
(i) गवाह ने निष्पादक को हस्ताक्षर करते या अँगूठा लगाते देखा हो।
(ii) निष्पादक की मौजूदगी में तथा उसके निर्देश के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति को अपनी ओर से हस्ताक्षर करने या अँगूठा लगाते देखा हो।
(iii) निष्पादक के हस्ताक्षर अँगूठा निशानी या ऐसे व्यक्ति के हस्ताक्षर या अंगूठा निशानी की गत अभिस्वीकृति प्राप्त की हो।
अनुचित प्रमाणीकरण के परिणाम या प्रभाव (Consequences of Improper Attestation)
यदि किसी दस्तावेज को उचित रूप से प्रमाणित न किया गया हो तो उसका प्रभाव शून्य होगा। अनुप्रमाणन का तात्पर्य इस प्रकार के साक्ष्य से है कि किसी व्यक्ति ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर इस प्रकार से किये हों कि उसने दस्तावेज लिखने वाले व्यक्तियों को निष्पादित करते हुए देखा है। उसका साक्ष्य पक्ष माना जाता है। केवल वही व्यक्ति दस्तावेज या हस्ताक्षर करने का अधिकारी है जिसका कि दस्तावेज में कोई हित नहीं होता।
इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि अन्तरणकर्ता स्वतन्त्र रूप से सप्रभाव संपत्ति का अन्तरण कर सके और हस्ताक्षर, बलपूर्वक, कपट अथवा असम्यक् असर द्वारा दस्तावेज पर न लिया जा सके ।
प्रश्म 12. ‘सूचना’ के अर्थ तथा उसके प्रकारों की व्याख्या कीजिये। Explain meaning of Notice and its kinds.
अथवा
सूचना से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Notice?
अथवा
“प्रलक्षित सूचना” को उदाहरण देते हुए समझाइये। Explain “Constructive Notice” by giving an example,
उत्तर – सूचना (Notice) धारा 3 के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी तथ्य की सूचना प्राप्त किये हुए कहलाता है जबकि वह उस तथ्य को वास्तव में जान ले या जब किसी छानबीन के द्वारा जो उसकी करनी चाहिये थी जान-बूझकर दूर रहने या पूर्ण उपेक्षा के अतिरिक्त वह उसको जान लेता है। इस प्रकार किसी व्यक्ति को तथ्य की सूचना उस समय मानी जाती है। जब उसे या तो स्वयं वास्तविक सूचना हो या प्रलक्षित सूचना हो या ऐसी सूचना भी हो सकती है।
सूचना की उक्त परिभाषा के अन्तर्गत वास्तविक तथा प्रलक्षित दोनों प्रकार की सूचनाएँ शामिल हैं। सूचनाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है
सूचना के प्रकार (Kinds of Notice)
(1) वास्तविक सूचना (Actual Notice) वास्तविक सूचना से अभिप्राय ऐसी सूचना से होता है, जिसके द्वारा व्यक्ति को तथ्य की वास्तविक सूचना प्राप्त होती है। वास्तविक सूचना को बाध्यकारी होने के लिए यह अनिवार्य है कि ऐसी सूचना उसे वस्तु में हितबद्ध व्यक्ति द्वारा दी गई है। लायड बनाम वैर्क्स L. R. Sch. 488 में यह निर्धारित किया गया था कि सूचना की लांछन लगाने वाले पक्ष को यह सिद्ध करना चाहिए कि दूसरे पक्ष को ऐसी जानकारी है।
एक मान्य वास्तविक सूचना के लिए निम्नलिखित बातों का पूरा होना आवश्यक है –
1. सूचना सम्पत्ति में हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा ही दी जानी चाहिए किसी अपरिचित व्यक्ति द्वारा नहीं।
2 सूचना उसी सम्बन्धित संव्यवहार के बारे में दी जानी चाहिए। 3. दोनों पक्षों को निश्चित सूचना होनी चाहिए। सूचना हमेशा सत्य और स्पष्ट होनी चाहिए। अफवाह सूचना की श्रेणी में नहीं आती।
(2) प्रलक्षित सूचना (Constructive Notice) प्रलक्षित या रचनात्मक सूचना से तात्पर्य उस सूचना से है, जिसे न्यायालय वाद की परिस्थितियों से किसी व्यक्ति पर इतने सुदृढ़ प्रकल्पना पर थोपे कि उसे खण्डित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती यद्यपि उसे औपचारिक रूप से प्रेषित नहीं किया गया था। प्रलक्षित या अप्रत्यक्ष सूचना की यह अवधारणा निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है
1. अभिकर्ता को सूचना (Notice to Agent)।
2. अचल सम्पत्ति के आधिपत्य द्वारा नमूना
3. अचल सम्पत्ति के किसी संव्यवहार की रजिस्ट्री से प्राप्त सूचना।
4. पूर्ण उपेक्षा (Gross Negligence)
5. स्वेच्छापूर्ण अवहेलना के कारण सूचना।
प्रलक्षित सूचना तभी मानी जाती है जबकि कब्जा वास्तविक हो परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि उसका आधिपत्य प्रत्यक्ष रूप से निरन्तर बना रहे।
वास्तविक कब्जे को प्रलक्षित सूचना माना जाता है। उदाहरण के लिए डैनियल्स बनाम डैविजन (1809) के मामले में अ’ नामक एक व्यक्ति ने एक संविदा के आधार पर एक पब्लिक मकान तथा एक बगीचा ‘ब’ नामक एक व्यक्ति को पट्टे के रूप में अन्तरित किया और बाद में उक्त संपत्ति को ‘ब’ को विक्रय के लिए भी सहमत हो गया। ‘अ’ ने उक्त संपत्ति को ‘ब’ को बेच दिया। यह निर्णीत हुआ कि ‘स’ को’ब’ के उक्त संपत्ति के हक के विषय में सूचना प्राप्त थी।
अन्तरण करने में सक्षम व्यक्ति, अन्तरण की घटनायें तथा मौखिक अन्तरण (Persons Competent to Transfer, Incidents of Transfer and Oral Transfer)
प्रश्न 1. लिखित अन्तरण क्या है ? What is written transfer?
उत्तर– संपत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 9 के अन्तर्गत मौखिक अन्तरण के बारे में प्रावधान किया गया है तथा इसे मान्यता दी गयी है।
धारा 9 के अनुसार, “हर उस दशा में जिसमें विधि कोई लेख अभिव्यक्तत: अपेक्षित नहीं है, सम्पत्ति का विधिक प्रसंगतियों में से उस समस्त हित का संक्रमण या अन्तरण कर देता है जिसका संक्रमण या अन्तरण करने के लिए अन्तरण तब तक समर्थ हो ।
इस प्रकार से किया गया सम्पत्ति का अन्तरण मौखिक अन्तरण कहलाता है।
प्रश्न 2. संपत्ति के लिखित अन्तरण पर टिप्पणी लिखिए।Write comment on written transfer of property.
उत्तर – संपत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 9 के अन्तर्गत मौखिक अन्तरण के अपवाद के रूप में तथा आवश्यकतानुसार यथा स्थानों पर स्पष्ट विवरण मिलते हैं जिसमें अन्तरण का लिखित विलेखों के जरिये किया जाना आवश्यक होता है। ऐसे अन्तरणों को लिखित अन्तरण कहा जाता है। उदाहरण के लिए, धारा 54 के अनुसार किसी अवाभोग तथा मूर्त संपत्ति के विक्रय में जिसकी कीमत 100 रुपये अथवा उससे अधिक हो अंतरण का लिखित एवं पंजीकृत होना आवश्यक है।
इसी प्रकार धारा 59 के अनुसार साधारण बंधक में भले ही वह बिना प्रतिभूत रकम के हो उसका लिखित होना आवश्यक है।
प्रश्न 3. क्या सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत एक अवयस्क अथवा एक पर्दानशीन महिला सम्पत्ति हेतु सक्षम है ? Whether a minor or a Perdanashin lady is competent to transfer property under the provisions of transfer Property Act?
उत्तर- अवयस्क द्वारा सम्पत्ति का अन्तरण – ऐसे व्यक्ति जिन्हें विधि द्वारा संविदा करने में अक्षम उत्तर घोषित किया गया है वे संविदा नहीं कर सकते है। सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 6 अन्तरण कर्त्ता का सक्षम होने के लिए यह उपबंध करती है कि अन्तरणकर्त्ता वही होगा जो संविदा करने के लिए सक्षम हो। इस एक अवयस्क सम्पत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता है क्योंकि वह संविदा करने के लिए सक्षम नहीं होता है मोहरी बीवी बनाम धर्मोदास घोष, 1903 के मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अवयस्क संविदा करने हेतु सक्षम नहीं होता है। इस कारण वह संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता है। यदि उसके द्वारा किसी संविदा के तहत सम्पत्ति का अन्तरण किया जाता है तो वह प्रारम्भ से ही शून्य होगा।”
पर्दानशीन महिला द्वारा सम्पत्ति का अन्तरण- धारा 6 सम्पत्ति के अन्तरण कर्त्ता को संविदा करने ( हेतु सक्षमता का प्रावधान करती है। एक पर्दानशीन महिला संविदा अधिनियम की धारा 16 के अन्तर्गत संविदा करने में अक्षम होती है। अतः विधि द्वारा ऐसी महिलाओं को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। कोई व्यक्ति जो ऐसी महिला से किसी सम्पत्ति के अन्तरण के लिए संविदा करता है उसे यह साबित करना होगा कि जिस पर्दानशीन महिला से उसने संविदा किया है उसने संविदा की प्रकृति को भली-भांति समझ लिया है तथा उसने जानबूझकर एवं स्वतंत्रतापूर्वक संविदा किया है।
प्रश्न 4. संपत्ति अन्तरण के प्रभावों का विश्लेषण कीजिए Analyse consequences of transfer of property.
उत्तर- संपत्ति अन्तरण के प्रभावों के बारे में प्रावधान संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 8 में किया गया है। धारा 8 के अनुसार जब तक कोई भिन्न आशय अभिव्यक्त न हो, या आवश्यक रूप से विवक्षित न हो।
(i) संपत्ति का अन्तरण अन्तरिती को तत्काल ही संपत्ति में के, और
(ii) उसकी विधिक प्रसंगतियों में के उस समस्त हित का अन्तरण कर देता है जिसका संक्रमण करने के लिए अन्तरण तक समर्थ हो, ऐसी प्रसंगतियों के अन्तर्गत आते हैं – जहाँ संपत्ति भूमि हो,
(क) उससे अपबद्ध सुखाचार,
(ख) अन्तरण के पश्चात् प्रोद्भवमान उसके भाटक, और
(ग) लाभ तथा भूबद्ध सब चीजें,
और जहाँ कि संपत्ति भूवद्ध मशीनरी हो,
(i) वहाँ पर उसके जंगम भाग
और जहाँ कि संपत्ति कोई गृह हो।
(1) वहाँ उससे अपबद्ध सुखाचार,
(2) अन्तरण के पश्चात् प्रोद्भवमान उसका भाटक, तथा
(3) उसके साथ स्थायी उपयोग के लिए उपबंधित उसके ताले, चाबियाँ, छड़ें, द्वार, खिड़कियाँ, तथा
(4) अन्य सभी चीजें,
और जहाँ की संपत्ति कोई ऋण या अन्य अनुयोज्य दावा हो, वहाँ-
(i) उसके लिए प्रतिभूतियों परन्तु अन्तरण के पूर्व प्रोद्भूत ब्याज का बकाया नहीं, और जहाँ पर कि संपत्ति, धन या आय देने वाली संपत्ति हो, वहाँ अन्तरण के प्रभावशाली होने के पश्चात् प्रोद्भवमान उसका ब्याज या आय।
धारा 8 में प्रयुक्त पदावली ‘कानूनी प्रसंगति’ का तात्पर्य यह है कि मूल संपत्ति के साथ-साथ उससे अश्रित संपत्ति भी अन्तरित होती है। इस सिद्धान्त का अनुमोदन प्रभात कुमार बेहरा बनाम ताहरा खातूम एण्ड अदर्स AIR 1978 Orissa के वाद में किया गया है।
यहाँ पर यह भी याद करने योग्य है कि अनुयोज्य दावे तथा ऋण को अन्तरित किया जाये तो उसके साथ ही साथ प्रतिभूति अथवा जमानत भी अन्तरित हो जाती है।
निम्न प्रकार की कानूनी प्रसंगतियाँ संपत्ति अन्तरण के साथ अन्तरितो को प्राप्त होती है-
(1) भूमि के साथ सुखाधिकार (Basement),
(2) भूमि के साथ लगान, अथवा
(3) किराया लाभ जो कि अन्तरण के बाद बकाया हो।
(4) वे सभी वस्तुयें जो भूमि के साथ जुड़ी हों।
(5) रहने के मकान के साथ निम्न कानूनी प्रसंगतियाँ संलग्न मानी जाती हैं.
(क) सुखाधिकार
(ख) संपत्ति अन्तरण के पश्चात् प्राप्त होने वाला किराया, (ग) ताले, चाबी, दरवाजा तथा खिड़कियाँ आदि।
(6) कर्ज तथा अनुयोज्य दावे के साथ प्राप्त होने वाली प्रसंगतियाँ निम्न हैं-
(अ) प्रतिभूति (Security)।
(7) भूमि के साथ जुड़ी हुई मशीन के साथ निम्न कानूनी प्रसंगतियाँ प्राप्त होती हैं
(ब) मशीन के चल हिस्से (Movables Parts) |
प्रश्न 5. मौखिक अन्तरण से सम्बन्धित अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या कीजिए। Explain provisions of Act relating to Oral Transfer.
अथवा
किन संपत्तियों का अन्तरण मौखिक नहीं किया जा सकता है? What properties could not be transferred orally?
अथवा
मौखिक अन्तरण क्या है? यह कैसे किया जाता है?What is oral transfer ? How it is made ?
अथवा
मौखिक अन्तरण को स्पष्ट कीजिए। Explain oral transfer.
उत्तर– संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 9 के अनुसार-
“हर उस दिशा में जिसमें विधि द्वारा कोई भी लेख अभिव्यक्ततः अपेक्षित नहीं है संपत्ति का अन्तरण ऐसा अन्तरण जो बिना लिखे किया जाता है, मौखिक अन्तरण कहलाता है। बिना लिखे किया जा सकता है।”
इस प्रकार धारा 9 के अनुसार संपत्ति अन्तरण के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह सदैव लिखित हो हो। संपत्ति का अन्तरण बिना लिखे भी किया जा सकता है।
परन्तु निम्न संपत्तियों का अन्तरण मौखिक नहीं किया जा सकता। इनके अन्तरण के लिए निम्नलिखित के साथ- साथ तथा पंजीयन भी आवश्यक है-
(1) धारा 54 के अनुसार यदि स्थावर संपत्ति की कीमत ₹ 100 अथवा उससे अधिक है।
(2) धारा 54 के अनुसार किसी उत्तरभोग अथवा मूर्त वस्तु के विक्रय में भले की उसकी कीमत कुछ भी हो।
(3) धारा 59 के अनुसार साधारण बंधक में भले ही वह बिना प्रतिभूत रकम के हो।
(4) धारा 59 के अनुसार ₹ 100 अथवा इससे अधिक रुपये प्रतिभूत किसी भी बंधक के मामले में
(5) धारा 107 के अनुसार,
(i) यदि स्थावर संपत्ति का पट्टा एक वर्ष तक हो, या होते हैं।
(ii) एक वर्ष से अधिक का हो, या
(iii) एक वर्ष का लगान आरक्षित करने वाले हो।
(6) धारा 163 के अनुसार स्थावर संपत्ति के दान के लिए दान का लिखित एवं पंजीकृत होना आवश्यक है, भले ही उसकी कीमत कितनी हो।
(3) अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए अन्तरण तथा शाश्वतता के विरुद्ध नियम (Transfer for the Benefit of Unborn Person and Rule against Perpetuity)
प्रश्न 1. दोहरी संभाव्यता क्या है ? What is second possibility?
उत्तर- धारा 13 के अन्तर्गत पहली संभाव्यता तो यह होती है कि पहले बच्चे का जन्म होना ही संभाव्यता है।
पहली संभाव्यता अर्थात् पहले अजन्मे व्यक्ति के जन्म लेने के बाद दूसरे अजन्मे व्यक्ति का जन्म लेना दूसरी संभाव्यता है क्योंकि यह निश्चित नहीं होता कि दूसरा व्यक्ति जन्म ले अथवा नहीं। यदि जीवन हित का अन्तरण किया जाता है तो अन्तरण मान्य नहीं होगा। दूसरे शब्दों में, अन्तरकर्त्ता अजन्मे व्यक्ति को संपत्ति अन्तरण करने के पश्चात् वह दूसरे व्यक्ति अथवा अजन्मे व्यक्ति को अन्तरण करने का निर्देश नहीं दे सकता। अत: संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 13 दोहरी संभाव्यता को मान्य नहीं देती।
उदाहरण के लिए जहाँ पर ‘क’ उस संपत्ति का, जिसका कि वह स्वामी है, ख के अनुक्रमशः अपने और अपनी आशावित पत्नी के जीवन पर्यन्त के लिए और उत्तरजीवी की मृत्यु के पश्चात आशायित विवाह के ज्येष्ठ पुत्र के जीवन पर्यन्त के लिए और उनकी मृत्यु के पश्चात ‘क’ के दूसरे पुत्र के लिए न्यास के रूप में अन्तरित करता है तो ज्येष्ठ पुत्र के फायदे के लिए इस प्रकार का हित प्रभावी नहीं होगा क्योंकि उसका विस्तार उस संपत्ति में ‘ क’ के सम्पूर्ण अवाशिष्ट हित पर नहीं है।
प्रश्न 2. शाश्वतता का आधार क्या है ? What is basis of perpetuity?
उत्तर- (1) संपत्ति के स्वामी को अपनी संपत्ति से लगाव होता है तथा वह सदा यही चाहता है कि उसकी संपत्ति उसके वंशजों के ही पास रहे।
(2) संपत्ति का स्वामी मृत्यु के पश्चात् भी अपने परिवार के सदस्यों पर राज करने की प्रबल इच्छा रखता है। वह चाहता है कि उसकी संपत्ति का उपभोग उसकी इच्छानुसार ही हो।
(3) वह अपने परिवार के नाम को सदा ऊँचा उठाना चाहता है। उसे विश्वास रहता है कि यदि संपत्ति उसके परिवार के सदस्यों के पास रहेगी तो न केवल उसका नाम जीवित रहेगा बल्कि उसके परिवार का नाम भी चमकता रहेगा।
(4) वह अपने उत्तराधिकारियों द्वारा संपत्ति की बर्बादी को रोकना चाहता है।
प्रश्न 3. नफरचन्द बनाम कैलाश चन्द (1921) 25 Cal W.N. 291 वाद पर टिप्पणी लिखिये । Write comment on the case of Nafarchand Vs. Kailash Chand.
उत्तर- इस वाद में एक संविदा के अन्तर्गत क ने ख नामक व्यक्ति से वादा किया कि क तथा उसके खानदान के व्यक्ति ख तथा उसके खानदान के ही व्यक्ति को, एक खानदान से लेकर दूसरे खानदान तक पूजा करने के लिए मंदिर के पुजारी की नियुक्ति करेंगे तथा कार्यालय के साथ-साथ अन्य खर्चे भी देंगे।
न्यायालय ने निर्णय देते हुए धारित किया कि उक्त प्रकार का अनुबन्ध मान्य है तथा यह शाश्वतता के विरुद्ध नियम नहीं है। यह एक अपवाद के रूप में है क्योंकि ऐसी संविदा का सम्बन्ध किसी संपत्ति से नहीं है। बल्कि यह आपस में ही कुछ व्यक्तियों के स्वार्थ से सम्बन्ध रखता है।
प्रश्न 4. शाश्वतता के विरुद्ध नियम के बारे में भारतीय तथा अंग्रेजी विधि में क्या अन्तर है? What is distinction between Indian and English law relating to rule against perpetuity.
उत्तर- शाश्वतता के सम्बन्ध में भारतीय तथा अंग्रेजी विधियों में मुख्य अन्तर निम्न प्रकार से है-
(1) अंग्रेजी विधि में अधिकतम उम्र 21 वर्ष है। अवयस्क में इससे अधिक उम्र में संपत्ति निहित होना शाश्वतता के विरुद्ध नियमानुसार होगा। यहाँ वयस्कता का कोई सम्बन्ध नहीं है। जबकि भारतीय विधि अवयस्कता से सम्बन्धित है और अजन्मे व्यक्ति में 18 वर्ष से अधिक उम्र शाश्वतता के विरुद्ध नियम के अनुसार ही होगी।
(2) अंग्रेजी विधि में कुछ हितों का सृजन वर्तमान में होना मान्य है परन्तु भारतीय विधि में हितों का सृजन केवल भविष्य में होना मान्य है।
(3) अंग्रेजी विधि में धार्मिक ट्रस्ट को शाश्वतता के विरुद्ध नियम को अपवाद के रूप में नहीं लिया गया है जबकि भारतीय विधि में यह अपवाद के रूप में मान्य है।
(4) अंग्रेजी विधि में प्रतीक्षा करो तथा देखो’ का नियम है जबकि भारतीय विधि में यह अमान्य है।
(5) भारतीय विधि में गर्भकाल में शिशु को शुरू में जोड़ लिया जाता है परन्तु अंग्रेजी विधि के अनुसार गर्भकाल की छूट प्रारम्भ तथा अन्त दोनों ही में मिलती है। भारत में यह छूट नहीं मिलती है।
प्रश्न 5. धारा 18 के अपवाद बताइये। State exceptions to rule 18.
उत्तर – धारा 18 में लोक के फायदे के लिए शाश्वतिक अन्तरण के बारे में प्रावधान किया गया है। धारा 18 के अनुसार धारा 14, 16 तथा 17 के निर्बन्धन ऐसे सपंत्ति अन्तरण की दशा में लागू नहीं होंगे जो लोक के फायदे के लिए धर्म, ज्ञान, वाणिज्य, स्वास्थ्य क्षेत्र को या मानव जाति के लिए फायदाप्रद किसी अन्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किया गया हो।
अपवाद (Exception) – धारा 18 के उपबंधित नियम के निम्न अपवाद हैं-
(1) ऋण के भुगतान के लिए संचयन का अधिकार प्रभावित नहीं होगा।
(2) हिस्सों की व्यवस्था के सम्बन्ध में पिता द्वारा बच्चों के हित के लिए व्यवस्था करने के सम्बन्ध में संचयन का नियम लागू होगा।
(3) अंतरित संपत्ति की रक्षा हेतु संचयन का सिद्धान्त लागू नहीं होगा।
प्रश्न 6. यथाशक्य सामीप्य का सिद्धान्त क्या है? What is Doctrine of Cyprus?
उत्तर- ‘यथाशक्य सामीप्य सिद्धान्त’ का तात्पर्य यह है कि यदि संपत्ति का अन्तरण किन्हीं विशेष उद्देश्यों के लिए किया गया है परन्तु इस प्रकार के उद्देश्य के लिए, यदि संपत्ति का उपयोग करना संभव नहीं रह गया है तो उस संपत्ति का उपयोग उन धार्मिक उद्देश्यों से मिलते जुलते उद्देश्यों हेतु किया जा सकता है। इसी को यथाशक्य सामीप्य का सिद्धान्त कहा जाता है।
प्रश्न 7. ‘अ’ अपनी सम्पत्ति’ब’ को जीवनपर्यन्त के लिए उसके बाद ‘ब’ के अजन्मे (अजात) पुत्र को जीवनपर्यन्त के लिए अंतरित करता है। ‘ब’ के अजन्मे पुत्र को किया गया अन्तरण क्या वैध है ?
‘A’ transfers his properties to B for his life and thereafter to unborn child of ‘B’ for life. Whether is the transfer in favour of unborn child of ‘B’ Valid?
उत्तर – प्रस्तुत समस्या में अ, द्वारा ब को किया गया अन्तरण विधिमान्य होगा। इस समस्या में अ अपने सम्पत्ति व को उसके जीवनपर्यन्त के लिए अन्तरित करता है। यह अन्तरण सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 13 के अन्तर्गत विधिमान्य होगा। यहाँ पर अ सम्पत्ति का अन्तरण ब के अजातपुत्र को करना चाहता है जो अन्तरण की तिथि पर अस्तित्थ में नहीं है ऐसी स्थिति में वह सीधे-सीधे य के अगात पुत्र के पक्ष में अन्तरण नहीं कर सकता है अज्ञात व्यक्ति के पक्ष में अन्तरण करने के लिए उसे किसी अन्य व्यक्ति को आजीवन हित प्रदान करना होगा जिसे उसने व के पक्ष में भी कर दिया है। इसके साथ ही शर्त यह भी है कि अजात व्यक्ति को व के आजीवन के हित के समाप्त होने के पूर्व जन्म लेना अनिवार्य है। यदि ऐसा है तब अज्ञात व्यक्ति को अन्तरण किया जा सकता है। इस प्रकार अ, ब के अजात पुत्र के पक्ष में अन्तरण कर सकता है।
प्रश्न 8. ‘जीवित अवस्था में होने वाले अन्तरण’ तथा ‘इच्छा पत्र द्वारा होने वाले अन्तरण’ को समझाइये तथा दोनों में अन्तर कीजिए। Explain and differentiate between transfer Intervivos and Transfer by will.
उत्तर- जीवित अवस्था में होने वाले अन्तरण तथा इच्छा पत्र द्वारा होने वाले अन्तरण की व्याख्या – संपत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 के प्रावधान केवल उन अन्तरणों पर लागू होते हैं जो कि पक्षकारों के कार्य द्वारा किया जाता है।
पक्षकारों के कार्य द्वारा अन्तरण उस अन्तरण से भिन्न होता है जो कि विधि के प्रवर्तन द्वारा होता है। पक्षकारों के कार्य द्वारा अन्तरण का तात्पर्य ऐसे अन्तरणों से है जो जीवित व्यक्तियों के करार द्वारा होता है चाहे वह करार अभिव्यक्त हो या विवाक्षित। उदाहरणस्वरूप जब ‘अ’ अपना मकान 5,000 रुपये वार्षिक किराये पर ‘ब’ को देने के लिये करार करता है तो यहाँ पर मकान का अन्तरण पट्टे के लिए पक्षकारों के कार्य द्वारा होगा और ऐसे अन्तरण पर संपत्ति अन्तरण अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। ऐसा अन्तरण जीवित पक्षकारों द्वारा होने के कारण जीवित अवस्था में होने वाला अन्तरण (Transfer Intervivos) कहलाता है।
विधि के प्रवर्तन द्वारा अन्तरण कई रूपों में होता है जैसे कि वसीयती उत्तराधिकार की स्थिति में, निर्वसीयती उत्तराधिकार की दशा में, संपत्ति की सम्पहरण की स्थिति में दिवाले की स्थिति में तथा न्यायालय द्वारा बिक्री की स्थिति में उदाहरण के लिए जहाँ पर अ अपने जीवन काल में एक वसीयत लिखता है कि उसके मरने के बाद वसीयत में लिखी संपत्ति X ब को मिले। यहाँ पर भी संपत्ति का अन्तरण अ की मृत्यु के बाद व के पक्ष में हो जायेगा परन्तु ऐसा अन्तरण विधि के प्रवर्तन द्वारा होगा और इन पर अधि नियम के प्रावधान लागू नहीं होगे।
अन्तर (Distinction) – संपत्ति अन्तरण अधिनियम के प्रावधान केवल उन अन्तरणों पर लागू होते हैं जो कि पक्षकारों के कार्य द्वारा किया जाता है। जो एक जीवित व्यक्ति द्वारा दूसरे जीवित व्यक्ति को किया जाता है इच्छा पत्र अथवा वसीयत के द्वारा जो अन्तरण किया जाता है उस पर इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते।
इच्छा पत्र पक्षकारों के स्वीय विधि के द्वारा या भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के द्वारा विनियमित होता है।