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सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत मुख्य पदों की परिभाषाएँ (Definitions of Main Terms under the Transfer of Property Act)
प्रश्न 1. संपत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत क्या अंतरित नहीं किया जा सकता है ? What could not be transferred under Transfer of Property Act?
अथवा
संपत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत क्या अन्तरित किया जा सकता है ? स्पष्ट कीजिए। What could be transferred under Transfer of Property Act? Clarify.
अथवा
“किसी भी किस्म (प्रकार) की संपत्ति का अंतरण किया जा सकता है। “इस कथन को समझाइए तथा स्पष्ट कीजिए कि क्या कोई सुखाधिकार अधिभावी भूमि से अलग करके अंतरित किया जा सकता है? Explain the statement, “Property of every kind can be transferred” and clarify whether mere right to easement can be transferred by separating it from the dominant heritage?
अथवा कौन-सी सम्पत्ति अन्तरित नहीं की जा सकती है? What property cannot be transferred?
अथवा
सम्पत्ति अन्तरण का सामान्य सिद्धान्त है कि “प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति का अन्तरण किया जा सकता है। “व्याख्या करते हुए अपवादों का भी वर्णन कीजिए। Explain the general rule that “property of every kind can be transferred.” Point out and describe the exceptions of this rule.
उत्तर – क्या अन्तरित किया जा सकेगा (What may be transferred) संपत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 6 में संपत्ति अन्तरण के संबन्ध में सामान्य सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि किसी भी किस्म की संपत्ति इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय अन्तरित की जा सकेगी। सिवाय………।
इस प्रकर संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 6 दो नियम प्रतिपादित करती है.
1. किसी भी किस्म की संपत्ति अन्तरित की जा सकेगी,
2. केवल वही संपत्ति अन्तरित नहीं की जा सकेगी जिसके बारे में संपत्ति अन्तरण अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्यथा प्रावधान किया गया है।
इस प्रकार केवल वही संपत्ति अन्तरित नहीं की जा सकती जिसके अन्तरण पर संपत्ति अन्तरण अधिनियम या उस समय पर लागू किसी अन्य विधि में यह प्रावधान किया गया है कि इसे अन्तरित नहीं किया जायेगा।
इस प्रकार धारा 6 में संपत्ति अन्तरण के सामान्य नियम तथा इस सामान्य नियम के अपवाद. दोनों के बारे में प्रावधान किया गया है।
संपत्ति अन्तरण के सामान्य नियम के अपवाद (Exception as to the General Rule of Transfer of Property) धारा 6 में स्पष्ट कहा गया है किसी भी किस्म की संपत्ति अन्तरित की जा सकेगी सिवाय अर्थात् निम्न प्रकार की संपत्ति अन्तरित नहीं की जा सकेगी (क) (i) किसी प्रत्यक्ष वारिस की संपदा का उत्तराधिकारी होने की सम्भावना कुल्य की मृत्यु होने पर किसी नातेदार की वसीयत संपदा अभिप्राप्त करने की संभावना, या
(ii) इसी प्रकार की अन्य संभावना मात्र का अन्तरण नहीं किया जा सकेगा।
(ख) किसी आभाव्य शर्त के भंग के कारण पुनः प्रवेश का अधिकार मात्र उस प्रभाव पड़ा है स्वामी के सिवाय किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरित नहीं किया जा सकता है।
(ग) कोई सुखाधिकार अधिष्ठायी स्थल से पृथकत नहीं किया जा सकता है। संपत्ति का जिस पर
(घ) संपत्ति में कोई ऐसा हित, जो उपयोग में स्वयं स्वामी तक ही निर्बंधित है, उसके द्वारा अन्तरित नहीं किया जा सकता है। (घ) भावी हृदय-पोषण का अधिकार, चाहे वह किसी भी रीति से उद्भूत, प्रतिभूत अथवा अवधारित हो।
(ङ) वाद लाने का अधिकार मात्र अन्तरित नहीं किया जा सकता है।
(च) (i) लोकपद अन्तरित नहीं किया जा सकता है, और
(ii) न लोक ऑफिसर का संबलम उसके देय होने से पूर्व या पश्चात् अंतरित किया जा सकता है।
(छ) (i) वृत्तिकायें जो सरकार के सैनिक, नौसैनिक, वायुसैनिक, और
(ii) सिविल पेंशनभोगियों को अनुज्ञात हो, तथा
(iii) राजनीतिक पेंशन अन्तरित नहीं की जा सकती है।
(ज) कोई भी अन्तरण।
(i) जहाँ तक वह तद् द्वारा उस हित की जिस पर प्रभाव पड़ा है, प्रकृति के प्रतिकूल हो, या
(ii) जो भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 के अर्थ के अन्तर्गत किसी विधि विरुद्ध उद्देश्य,।या
(iii) प्रतिफल के लिए, या
(iv) जो ऐसे व्यक्ति को जो अंतरिती होने से विधितः निर्हित हो, नहीं किया जा सकता।
(झ) परन्तु धारा 6 के खण्ड (झ) के अनुसार धारा की कोई भी बात (i) अधिभीग का अन्तरणीय अधिकार रखने वाले किसी अभिधारी को,
(ii) उस संपदा के फार्मर को जिस संपदा के लिए राजस्व देने में बातिक्रम हुआ है, या
(iii) किसी प्रतिपाल्य अधिकरण के प्रबंध के अधीन किसी संपदा के पट्टेदारकों ऐसे अभिधारी, फार्मर या पट्टेदार के नाते & अपने हित का समानुदेशन करने के बारे में प्राधिकृत करने वाली नहीं समझी जायेगी।
इस प्रकार धारा 6 में उन संपत्तियों की सूची दी गयी है जो अंतरित नहीं की जा सकती है। धारा 6 के खण्ड (क) से (झ) तक के प्रावधान उन संपत्तियों के बारे में बताते हैं जिनका इस अधिनियम के
अन्तर्गत अन्तरण नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त भी यदि तत्समय प्रवर्तित विधि द्वारा या किसी अन्य विधि द्वारा किसी संपत्ति के अन्तरण पर रोक लगा दिया गया है तो ऐसी संपत्ति का भी अन्तरण नहीं किया जा सकता है।
कृष्णपिल्ली बनाम पद्मनाभ के मामले में न्यायालय में धारित किया कि केवल किसी वारिस से संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त करने की संभावना का अन्तरण ही अवैध नहीं है परन्तु, इसी प्रकृति की कोई अन्य संभावना का अन्तरण भी अवैध है।
धारा 6 में प्रयुक्त पदावली “इसी प्रकार की अन्य संभावनायें’ में निम्न को शामिल माना गया है
(1) शिकारी के अगले शिकार में पकड़े जाने वाले जानवर,
(2) अगले माह की मजदूरी
(3) किसी भी इनाम को प्राप्त करने की संभावना
(4) शिक्षक की अगले मास के ट्यूशन द्वारा होने वाली आय,
(5) अगले दिन मंदिर में आने वाला चढ़ावा, आदि।
प्रश्न 2. संपत्ति अन्तरण को परिभाषित कर स्पष्ट कीजिए। Define and Explain transfer of property.
अथवा
संपत्ति अन्तरण का क्या अर्थ है ?
What is the meaning of “Transfer of Property”?
उत्तर– सम्पत्ति अन्तरण की परिभाषा सम्पत्ति अन्तरण की धारा 5 में सम्पत्ति के अन्तरण को परिभाषित किया गया है। इस धारा के अनुसार, “सम्पत्ति के अन्तरण से ऐसा कार्य अभिप्रेत है जिसके द्वारा कोई जीवित व्यक्ति एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को या स्वयं को अथवा स्वयं और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को वर्तमान में या भविष्य में सम्पत्ति हस्तांतरित करता है और सम्पत्ति का अन्तरण करना ऐसा कार्य करना है।” इस धारा में वर्णित जीवित व्यक्ति के अन्तर्गत कम्पनी या संगम या व्यक्तियों का निकाय चाहे वह निगमित हो या न हो आता है किन्तु एतस्मिन वर्णित कोई भी बात कम्पनियों, संगमों या व्यक्तियों के निकायों को या के द्वारा किए जाने वाले सम्पत्ति अन्तरण से संबंधित किसी भी तत्समय विधि पर प्रभाव नहीं डालती है।
उपर्युक्त वर्णित सम्पत्ति अन्तरण की परिभाषा को निम्न प्रकार से वर्णित किया जा सकता है –
(i) सम्पत्ति अन्तरण वह कार्य है जिसके फलस्वरूप सम्पत्ति के अधिकारों का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास अन्तरण किया जाता है,
(ii) इस कृत्य का परिणाम या तो तत्काल या भविष्य में कभी फलित हो सकता है। दूसरे शब्दों में सम्पत्ति में हित या तो तुरन्त ही अन्तरित हो जाता है या भविष्य में किसी तिथि को अंतरित होने के लिए प्रभावी होता है।
(iii) यद्यपि कि सम्पत्ति का अन्तरण या तो तात्कालिक या भविष्य के किसी दिन हो सकता है मगर सम्पत्ति का अन्तरण उक्त तिथि पर प्रभावी होना आवश्यक है।
(iv) सम्पत्ति का अन्तरण एक जीवित व्यक्ति का दूसरे जीवित व्यक्ति के पक्ष में अन्तरण किया जाना आवश्यक होता है।
सम्पत्ति अन्तरण के आवश्यक तत्व अधिनियम की धारा 5 में दी गई सम्पत्ति अन्तरण के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं –
1. जीवित व्यक्ति किसी भी वर्तमान सम्पत्ति के अन्तरण के लिए दो जीवित व्यक्तियों का होना अनिवार्य होता है जिसमें सम्पत्ति अन्तरण करने वाले को अन्तरणकर्ता तथा जिस व्यक्ति को सम्पत्ति अंतरित की जाती है उसे अन्तरिती कहते हैं। सम्पत्ति का अन्तरण एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को होना चाहिए अर्थात् अन्तरणकर्ता से अन्तरिती को परन्तु इस धारा के अनुसार अन्तरणकर्ता एवं अन्तरिती दोनों का जीवित होना आवश्यक होता है। यह धारा जीवित व्यक्ति को भी परिभाषित करती है। इस धारा में एक जीवित व्यक्ति का प्रयोग मृत व्यक्ति के विरुद्ध में किया गया है। इसमें न केवल जीवित व्यक्ति आते हैं अपितु इसके अन्तर्गत कम्पनी, संगम या व्यक्तियों का निकाय चाहे वह निगमित हो या न हो भी सम्मिलित है। इस प्रकार जीवित मनुष्यों के अतिरिक्त कम्पनियाँ, निगम, सोसाइटी, भागीदारी फर्म, क्लब आदि सम्पत्ति का अन्तरण कर सकते हैं तथा सम्पत्ति प्राप्त कर सकते हैं। कम्पनियाँ तथा निगम एक विधिक व्यक्ति है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि सभी व्यक्ति विधिक व्यक्ति जीवित ही हों।
2. सम्पत्ति सम्पत्ति के अन्तरण में सम्पत्ति का होना आवश्यक होता है। जिस वस्तु में केवल भविष्य में हित उत्पन्न होने की संभावना हो और उपस्थिति हित न हो तो उस वस्तु को किसी व्यक्ति की सम्पत्ति नहीं कहा जा सकता है। इसमें यह भी आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति अन्तरण के योग्य हो, जैसे पेंशन का अधिकार हस्तांतरित नहीं किया जा सकता लेकिन वह फिर भी सम्पत्ति की श्रेणी में आता है। ऋण जब अनुयोग्य दावे की श्रेणी में रख दिया जाता है तभी उसे सम्पत्ति कहा जायेगा। निम्न प्रकार की सम्पत्तियाँ अन्तरणीय नहीं है
1. बँटवारा
2. पारिवारिक बंदोबस्त
3. परित्याग
4. समर्पण, तथा
5. वसीयती अन्तरण ।
3. अन्तरण सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम में अन्तरण शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में हुआ है। इसका तात्पर्य यह है कि या तो सम्पत्ति के समस्त अधिकारों एवं हितों का अन्तरण होता है या सम्पत्ति से संबंधित एक या अधिक अधीनस्थ अधिकारों का अन्तरण होता है। इस अन्तरण से निम्न निष्कर्ष निकलता है
1. वस्तुओं के अन्तरण, जैसे भवन की बिक्री
2. ऋण का अन्तरण, तथा
3. किसी वस्तु से संबंधित एक या अधिक अधिकारों का अन्तरण, जैसे मकान को बंधक करना, पट्टे पर देना, आदि।
4. वैध उद्देश्य सम्पत्ति का अन्तरण किसी वैधानिक उद्देश्य के लिए ही होना चाहिए। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 में उन उद्देश्यों को बताया गया है जो अवैध होते हैं।
5. वर्तमान या भविष्य में सम्पत्ति का अन्तरण वर्तमान में प्रभावी हो सकता है या भविष्य में कभी प्रभावी हो सकता है परन्तु यह आवश्यक है कि सम्पत्ति का अन्तरण जिस दिन किया जा रहा हो उस दिन सम्पत्ति को अन्तरणकर्ता की सम्पत्ति के रूप में अस्तित्व में हो।
6. स्वयं को अन्तरण– वर्ष 1929 के पूर्व कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति स्वयं को अन्तरित नहीं कर सकता था मगर सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम, 1929 के पश्चात् अब कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति स्वयं को हस्तांतरित कर सकता है जैसे जहाँ कोई व्यक्ति जो अपनी सम्पत्ति एक न्यास को अन्तरित कर देता है तथा स्वयं को एकमात्र न्यासी नियुक्त कर देता है। वहाँ पर अधिनियम के अन्तर्गत सम्पत्ति का अन्तरण वैध होगा।
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 6 में यह वर्णित किया गया है कि कौन-सी सम्पत्तियाँ अन्तरित की जा सकती हैं। इस धारा के अनुसार किसी भी किस्म की सम्पत्ति जो इस अधिनियम या किसी भी अन्य तत्समय प्रवृत विधि द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय अन्तरित की जा सकेगी। “
प्रश्न 3. आंशिक सूचना सिद्धान्त के लागू होने की सीमाएँ बताइये। कब कब्जा को सूचना माना जाता है ?
State limitations of notice concept. When possession is regarded as notice?
उत्तर –
सूचना सिद्धान्त के लागू होने की सीमा
(Extent of the Application of the Doctrine of Notice) सूचना के उक्त सिद्धान्त को सूचना का साम्यिक सिद्धान्त भी कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति को सम्पत्ति के विषय में किसी तीसरे व्यक्ति के पिछले अधिकार की जानकारी या सूचना नहीं है तो वह ऐसे अधिकार से बाध्य नहीं होगा, बशर्ते कि वह सद्भावनापूर्ण कार्य करता है और उसका मूल्य चुकाता है।
सूचना सिद्धान्त अधिनियम की निम्नलिखित धाराओं में लागू होता है –
(1) धारा 39 के अनुसार यदि किसी तीसरे व्यक्ति को अचल सम्पत्ति के लाभों से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है और ऐसी सम्पत्ति को हस्तान्तरित कर दिया जाता है तो वह अधिकार अन्तरण के खिलाफ है यदि अन्तरिती को उसकी सूचना हो ।
(2) धारा 40 के अनुसार किसी दृश्यमान स्वामी द्वारा किये गये अन्तरण को वास्तविक स्वामी द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है यदि अन्तरणग्रहीता ने हस्तान्तरण करने की समझता के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए युक्तिसंगत सावधानी बरतने के बाद सद्भावना से कार्य किया है।
(3) धारा 43 के अनुसार हस्तान्तरणग्रहीता द्वारा सद्भावना प्रतिफल के लिये बिना सूचना प्राप्त किये कोई हित पिछले हस्तान्तरण के विकल्प के प्रयोग से नष्ट नहीं होता।
(4) धारा 51 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति ने किसी अचल सम्पत्ति पर विकास कार्य इस सद्भावना से कि वहो उसका अधिकारी है।
(5) धारा 53 के अनुसार यदि कोई सद्भावनापूर्वक प्रतिफल के लिये वस्तु को खरीदता है तो ऐसे हस्तान्तरण को रद्द नहीं किया जा सकता।
यह सिद्धान्त सम्पत्ति अधिनियम की धारा 53A, 100, 106, 108B, 110, 130 और 131 आदि में भी लागू होता है।
कब्जा को सूचना मानना
धारा 3 के अनुसार किसी सम्पत्ति पर वास्तविक कब्जा प्रलक्षित सूचना माना जाता है। धारा 3 के प्रावधानों के अनुसार, जो व्यक्ति किसी अचल सम्पत्ति को, या कि उसे ऐसी सम्पत्ति के किसी अंश या हित को अर्जित करता है तो उसके बारे में यह समझा जायेगा कि उसे सम्बन्धित सम्पत्ति से उस व्यक्ति के हक की जिसका कि उस समय सम्पत्ति पर वास्तविक कब्जा हो, सूचना है।
सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम सन् 1929 ई. से पूर्व वास्तविक कब्जे के नोटिस माने जाने के सम्बन्ध में मुम्बई, मद्रास तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह विचार था कि “वास्तविक कब्जे के वर्तमान व्यक्ति के समस्त अधिकारों एवं हितों की प्रलक्षित सूचना उस व्यक्ति को होती है, जो सम्बन्धित सम्पत्ति को अन्तरण के अन्तर्गत प्राप्त करता है। इसके विपरीत कोलकाता उच्च न्यायालय के अनुसार कब्जा सूचना नहीं है। बल्कि यह केवल प्रलक्षित सूचना का एक साक्ष्य मात्र है। परन्तु सम्पत्ति अन्तरण (संशोधन) अधिनियम सन् 1929 ई. के पारित होने के बाद प्रलक्षित सूचना होती है। कोलकाता उच्च न्यायालय ने भी वास्तविक कब्जे का प्रलक्षित सूचना ही माँग है।
वास्तविक कब्जा प्रलक्षित सूचना है वास्तविक कब्जा सम्पत्ति पर काबिज व्यक्ति के समस्त अधिकारों एवं हितों के बारे में उस व्यक्ति के जो सम्बन्धित सम्पत्ति को अन्तरण के अन्तर्गत प्राप्त करता है, प्रलक्षित सूचना होती है, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अनुसार, वास्तविक कब्जे से तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें सम्बन्धित व्यक्ति सम्पत्ति पर नियन्त्रण रख रहा हो। सामान्यतया वास्तविक कब्जा नोटिस माना जाता है, परन्तु निम्नलिखित स्थितियों में वास्तविक कब्जा नोटिस नहीं माना जाता है।
1. पूरी सम्पत्ति पर कब्जा, 2. संविदा पर आधरित मामले,
(1) पूरी सम्पत्ति पर कब्जा यदि विक्रेता का किसी अन्तरित की जाने वाली पूर्ण सम्पत्ति पर कब्जा है, तो ऐसा कब्जा है, क्रेता के लिए, प्रलक्षित सूचना नहीं माना जाता है।
(2) संविदा पर आधारित मामले– ऐसे मामले के सम्बन्ध में जो संविदा पर आधारित हो, वास्तविक कब्जा नोटिस नहीं माना जाता है, जैसे- यदि कोई क्रेता किसी सम्पत्ति को खरीदता है तो विक्रेता का दायित्व है कि वह संपत्ति अन्तरण अधिनियम सन् 1882 ई. की धारा 55 I (A) के अन्तर्गत सम्पत्ति के स्वामित्व या सम्पत्ति की कमियों की सूचना क्रेता को दे क्योंकि न तो विक्रेता, क्रेता पर दोषपूर्ण स्वामित्व ही आरोपित कर सकता है।
लेख का रजिस्ट्रेशन कब सूचना माना जाता है? – धारा के अनुसार, ऐसे मामलों में, जहाँ अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित कोई 3 संव्यवहार रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज के द्वारा किया जाता है, वहाँ ऐसे व्यक्ति के बारे में जो ऐसी सम्पत्ति में या उसके किसी भाग में कोई हित अर्जित करता है, वह माना जायेगा कि उसे सम्बन्धित विलेख की सूचना उस दिन से प्राप्त हो गयी है।
प्रश्न 4. अचल संपत्ति के कब्जे द्वारा सूचना की विवेचना कीजिए। Discuss notice by the possession of immovable property?
उत्तर- अचल संपत्ति के कब्जे द्वारा सूचना पहले यह स्पष्ट नहीं था कि आधिपत्य कहाँ तक प्रलक्षित सूचना है। सामान्यतया यह समझा जाता था जो व्यक्ति आधिपत्य में है उसके अधिकार की अप्रत्यक्ष सूचना माननी चाहिए। सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 3 के स्पष्टीकरण 2 में यह स्पष्ट किया गया है कि जो व्यक्ति अचल संपत्ति को या किसी ऐसी सम्पत्ति में से किसी अंश या हित को अर्जित करता है।
जैसे- ‘क’ अपनी भूमि ‘ख’ को ₹ 8,000 पर विक्रय करने की संविदा करता है। ‘ख’ भूमि को कब्जे में ले लेता है। इसके उपरान्त ‘क’ उस भूमि को ‘ब’ के नाम ₹6,000 में विक्रय कर देता है। ‘अ’ ‘क’ ने उस समय भूमि में निहित की जाँच नहीं करता। उस भूमि क’ अ’ के कब्जे में होना इस बात के लिए पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है कि ‘ब’ उस भूमि में’ क’ के हित की सूचना प्राप्त कर चुका है और ‘ ब” क’ के विरुद्ध संविदा का यथावत् अनुपात (Specific Performance) लागू करने के लिए वाद दाखित कर सकता है।
डेनियल्स बॅनाम डैविजन सन् 1809 ई० 19 केस 249 के वाद में ‘अ’ ने एक सार्वजनिक मकान और एक बगीचा ‘ब’ पट्टे पर दिया और उस सम्पत्ति को ‘क’ के नाम विक्रय करने हेतु भी तैयार हो गया। और तत्पश्चात् उसे ‘ग’ को बेच दिया। यह अभिनिर्धारित किया कि ‘ब’ को ‘क’ के उस सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकारियों को प्रलक्षित सूचना थी। न्यायालय द्वारा यह अभिमत व्यक्त किया कि जहाँ भूमि विक्रेता के बजाय अन्य व्यक्ति के हाथ में हो वहाँ भूमि का उसके कब्जे में होना ही इस तथ्य का परिचायक है कि उस व्यक्ति का कुछ हक उस भूमि में अवश्य निहित है।
(2) अन्तरण करने में सक्षम व्यक्ति, अन्तरण की घटनायें तथा मौखिक अन्तरण (Persons Competent to Transfer, Incidents of Transfer and Oral Transfer)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संपत्ति अन्तरण करने हेतु कौन-से व्यक्ति सक्षम हैं ? विवेचना कीजिए। Who are competent to transfer property? Discuss.
अथवा
क्या एक अवयस्क संपत्ति अन्तरित कर सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ? Is a minor can transfer property ? If no, Why ?
उत्तर – संपत्ति का अन्तरण करने में सक्षम व्यक्तियों के बारे में प्रावधान धारा 7 में किया गया है। धारा 7 के अनुसार हर व्यक्ति जो –
(1) संविदा करने के लिए सक्षम हो, और
(2) सम्पत्ति का हकदार हो, या
(3) अन्तरणीय सम्पत्ति के जो उसकी अपनी नहीं है, व्ययन के लिए प्राधिकृत हो,
(4) ऐसी सम्पत्ति का अन्तरण पूर्णतः या भागतः तथा अत्यांतिक रूप से, या
(5) सशर्त उन परिस्थितियों में, उतने विस्तार तक और उसी प्रकार से,
(6) जो किसी भी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा अनुज्ञात और विहित हो, करने के लिए सक्षम है।
धारा 7 के अनुसार संपत्ति अन्तरण करने हेतु आवश्यक है कि व्यक्ति संविदा करने में सक्षम हो। कौन से व्यक्ति संविदा करने में सक्षम हैं, इसका उत्तर अधिनियम की धारा 11 में दिया गया है। धारा 11 1 के अनुसार निम्न व्यक्ति संविदा करने में सक्षम नहीं है। अतः ये संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकते। अर्थात् इन व्यक्तियों को छोड़कर सभी व्यक्ति संविदा कर सकते हैं और इस कारण संपत्ति का अन्तरण भी कर सकते हैं-
(1) अवयस्क (Minor)
(2) विकृतचित्त व्यक्ति (Insane person)
(3) जिस व्यक्ति को संविदा करने हेतु अयोग्य न घोषित किया व्यक्ति ।
(1) अवयस्क संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता (Property Could not be Transferred by Minor) – भारतीय विधि में वही वयस्क होगा जिसने 18 वर्ष की उम्र पूरी कर ली है। परन्तु वह व्यक्ति जिसके लिए न्यायालय का संरक्षक नियुक्त किया गया है उसकी वयस्कता की आयु 21 वर्ष होगी। 1903 में प्रीवी कौंसिल में मोहरीबीबी बनाम धर्मदास घोष (1903) 30 Cal 539 (P.C) के वाद में भी मतभेदों को दूर करते हुए स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 11 के अनुसार संपत्ति अन्तरण हेतु संविदा वही व्यक्ति कर सकता है जो वयस्क हो, यदि अवयस्क संपत्ति का अन्तरण करता है तो। वह आदित: शून्य (Void ab intio) होगा न कि शून्य करणीय (Voidable) i
इस प्रकार प्रीवी कौंसिल के इस वाद से स्पष्ट हो गया है कि अवयस्क संविदा करने हेतु सक्षम नहीं। है और इस कारण वह संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता। यदि उसके द्वारा किसी संविदा का अन्तरण किया जाता है तो वह प्रारम्भ से ही शून्य होगा।
अवयस्क वयस्क होने पर संविदा अनुसमर्थन भी नहीं कर सकता क्योंकि उसके द्वारा की गयी संविदा प्रारम्भ से ही शून्य होती है और इस कारण शून्य संविदा का अन्तरण नहीं किया जा सकता है।
(2) विकृतचित्त व्यक्ति संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता है ( A Person of Unsound Mind cannot Transfer Property) – विकृतचित्त व्यक्ति वह होता है जो स्वयं द्वारा किये गये अन्तरण के अनुबंध की प्रकृति तथा उसके परिणामों को समझने में असमर्थ होता है। अधिनियम की धारा 7 के अनुसार ऐसा व्यक्ति भी संविदा करने में अयोग्य होता है और परिणामतः यह संपत्ति का अन्तर नहीं कर सकता है।
परन्तु ऐसे व्यक्ति जिन्हें पागलपन का दौरा कभी-कभी पड़ता है तो ऐसे व्यक्ति संपत्ति का अन तब कर सकते हैं जब उन्हें पागलपन का दौरा न पड़ा हो। इसी प्रकार यदि अन्तरण स्वस्थ चित्त का है और कभी-कभी उसे पागलपन का दौरा पड़ता है तो पागलपन के दौरे के दौरान वे संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकते हैं।
(3) मदोन्मत्त व्यक्ति संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता है (A Drunk Person can not Transfer Property) – मदोन्मत्त व्यक्तियों द्वारा भी संपत्ति का अन्तरण नहीं किया जा सकता और न ही ऐसे व्यक्ति होश में आने पर अन्तरण की संविदा का अनुसमर्थन कर सकते हैं। यद्यपि अंग्रेजी विधि में इस प्रकार की संविदा की शून्य माना जाता है तथा ऐसे व्यक्तियों द्वारा संविदा का अनुसमर्थन द किया जा सकता है।
जौहरी बनाम महिला द्रौपदी AIR 1991 MIP 304 के बाद में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ऐसे वाद को शून्य घोषित कर दिया जिसमें पत्नी को अपने पति की उन्मत्तता की पूर्ण जानकारी थी। स्वस्थचित्त के निर्धारण के मापदण्ड हित एवं अहित को समझने की योग्यता तथा हित और अहित के प्रश्नों पर विचारशील निर्णन देने की क्षमता है।
क्या संविदा अक्षम व्यक्ति अन्तरिती हो सकता है? (Is a Contract in Competent Person may be Transfer ?) – यद्यपि अवयस्क व्यक्ति संपत्ति को अन्तरित तो नहीं कर सकता परन्तु वह अन्तरिती की हैसियत से संपत्ति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार एक अवयस्क व्यक्ति यद्यपि संपत्ति का दान नहीं कर सकता परन्तु दान ग्रहीता बन सकता है क्योंकि यह लाभ के लिए है।
(4) संपत्ति अन्तरकर्ता के अधिकार में हो (Transferor must be Owner of the Property) – केवल वही संपत्ति अन्तरित की जा सकती है जिस पर अन्तरणकर्ता का स्वामित्व हो। यदि अन्तरण की जाने वाली संपत्ति बिना स्वामित्व के है तो उसका अन्तरण शून्य होगा। एक व्यक्ति दूसरे की संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता जैसा कि ‘नेमो डेट कोड नान हैवेट’ का सिद्धान्त है कि अपने से अच्छा स्वामित्व किसी को अन्तरित नहीं किया जा सकता।
परन्तु इस नियम का एक अपवाद भी है। वह यह है कि यदि अन्तरण करने का अधिकार इस वास्तविक स्वामी द्वारा दे दिया है तो वह व्यक्ति जिसका संपत्ति पर अधिकार नहीं है, वह भी ऐसी संपत्ति का अन्तरण कर सकता है। उदाहरणस्वरूप, स्वतन्त्र हिन्दू परिवार का कर्ता, अवयस्क का एक संरक्षक, वसीयत का प्रवर्तक अभिकर्ता आदि।
प्रश्न 2. सम्पत्ति के अन्तरण पर क्या प्रतिबन्ध हैं? इसके अपवादों पर प्रकाश डालिए। What are restrictions on the transfer of property 7 Throw light on its exceptions.
उत्तर – अन्तरण पर प्रतिबन्ध
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, “जहाँ कि सम्पत्ति ऐसी शर्त व मर्यादा के साथ अन्तरित की जाती है जो अन्तरिती या उसके अधीन दावा करने वाले व्यक्ति को सम्पत्ति में अपने हित को अलग करने या व्ययनित करने से अत्यन्तिक अवरुद्ध करती है वहाँ ऐसी शर्त या मर्यादा शून्य है। सिवाय ऐसे पट्टे की दशा के जिसमें कि यह शर्त पट्टाकर्त्ता या उसके अधीन दावेदारी के फायदे के लिए हो।
अन्तरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध (Absolute Restraint on Transfar) पूर्ण प्रतिबन्ध उस स्थिति को कहते हैं जिससे शर्त द्वारा अन्तरण का समस्त अधिकार एवं सार पूर्णत: लिया गया हो।
(1) अन्तरणकर्त्ता यदि अन्तरिती पर यह शर्त लगा दे कि वह अपने जीवनकाल में उस सम्पत्ति का अन्तरण नहीं कर सकेगा।
(2) अन्तरणकर्त्ता यदि यह शर्त लगा सकता है, अन्तरिती केवल एक विशेष व्यक्ति को ही सम्पत्ति का अन्तरण करेगा।
(3) अन्तरणकर्त्ता यदि अन्तरिती पर यह शर्त लगा दे कि वह अन्तरित सम्पत्ति का कभी भी अन्तरण नहीं कर सकते हैं।
(4.) अन्तरणकर्त्ता यदि अन्तरिती पर यह शर्त लगा दे कि दान में मिली हुई सम्पत्ति को एक विशेष समय में या एक विशेष व्यक्ति के जीवन काल में अन्तरित नहीं कर सकेगा।
पूर्ण प्रतिबन्ध उस स्थिति को कहते हैं जिसमें शर्त द्वारा अन्तरण का समस्त अधिकार एवं पूर्णता ले गया।
अपवाद (Exceptions)
सम्पत्ति के अन्तरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाये जा सकते हैं।
(1) ऐसे संव्यवहार जिन्हें अन्तरण कहा न जा सके- जैसे सुलह या समझौते द्वारा सम्पत्ति के स्वामित्व का अन्तरण पारिवारिक समझौते द्वारा सुखाचार, विभाजन या सम्पूर्ण आदि अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत अन्तरण स्वीकार नहीं किया जाता है।
(2) जब पूर्ण प्रतिबन्ध अन्तरणकर्त्ता पर लगा हो- अधिनियम की धारा केवल अन्तरिती पर लागू पूर्ण प्रतिबन्ध या अवरोध करा देता है।
(3) पट्टा – पट्टे के मामले में पट्टा करने के बाद भी पट्टे की सम्पत्ति में पट्टाकर्त्ता एवं उसके उत्तराधिकारी का कुछ-न-कुछ हित अवश्य शेष रहता है।
(4) विवाहित स्त्री – हिन्दू, बौद्ध तथा मुस्लिम विवाहित स्त्रियों के अतिरिक्त अन्य सभी विवाहित स्त्रियों पर ऐसा प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
(5) विधिक व्यवस्थाओं द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध – जैसे सुलह समझौता द्वारा सम्पत्ति के स्वामित्व का अन्तरण पारिवारिक समझौते द्वारा सुखाचार, विभाजन या सम्पूर्ण आदि जिन्हें अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत अन्तरण स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
जब पूर्ण प्रतिबन्ध अन्तरणकर्त्ता पर लगा हो – अधिनियम की धारा 10 केवल अन्तरिती पर लगे पूर्ण प्रतिबन्ध या अवरोध को अवैध करार देती है। अन्तरणकर्त्ता जो भी प्रतिबन्ध लगाना चाहे वर्ष के लाभों में से किया जा सकता है इस प्रकार के अंशों को संचयी पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
(6) असंचयी पूर्वाधिकार अंश – इस प्रकार के पूर्वाधिकार अंश जिन्हें किसी वर्ष लाभाश न मिलने पर उस लाभांश को आगामी वर्षों के लाभ में से प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता, तो इस प्रकार के अंश को असंचयी पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
(7) परिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश (Convertiable Share) – इस प्रकार के पूर्वाधिकार अंश, जिनके अंशधारियों को यह अधिकार दिया जाता है कि यदि वे चाहे तो एक निश्चित समय के अन्दर अपने अंशों को समता अशो में बदल सकते हैं। इस प्रकार के अंशों को परिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
(8) अपरिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश (Non-convertable Share) इस प्रकार के पूर्वाधिकार अंश जिनके अधिकारियों को यह अधिकार नहीं दिया जाता है कि वह निश्चित समय के अन्दर अपने अंशों को समता अंशों में बदल सकते हैं। इस प्रकार के अंशों को अपरिवर्तनशील पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
(9) अविमोचनशील पूर्वाधिकार (Irredemable Share)- इस प्रकार के पूर्वाधिकार अंश जिनके अंशधारियों को कोर्ट (न्यायालय) की आज्ञा के बिना कम्पनी अपने जीवनकाल में पूँजी का भुगतान नहीं कर सकती उसे अविमोचनशील पूर्वाधिकार अंश कहते हैं। इस प्रकार के अंश संचयी व असचयों पूर्वाधिकार अंश हो सकते हैं।
अतः संक्षेप में पूर्वाधिकार अंश (Preference Shares) का संक्षिप्त वर्गीकरण किया जिनके विभिन्न भाग बताकर फिर प्रत्येक भाग का भी संक्षेप में वर्णन किया गया।
प्रश्न 3. सम्पत्ति अन्तरण की पद्धतियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सम्पत्ति का अन्तरण करने की पद्धतियाँ
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 9 के अनुसार, हर उस दशा में जिसमें विधि द्वारा कोई लेख एक अभिव्यक्त अपेक्षित नहीं है। सम्पत्ति का अन्तरण लिखे बिना किया जा सकेगा। अधिनियम की इस धारा में मौखिक अन्तरण को भी अनुमति प्रदान की गयी है तथा अपवाद के रूप में उन अन्तरणों का उल्लेख किया गया है।
सम्पत्ति अन्तरण की और भी पद्धतियाँ हैं किन्तु उनका विवरण अधिनियम की विषय वस्तु नहीं है; जैसे विभाजन, विमोचन एवं समर्पण आदि अधिनियम के सब अन्तरण अनिवार्यतः निम्नलिखित दो प्रकार के हैं –
(1) मौखिक अन्तरण, (2) लिखित अन्तरण।
(1) मौखिक अन्तरण- सम्पत्ति अन्तरण 1882 की धारा 9 के अन्तर्गत मौखिक अन्तरण को मान्यः दी गयी है। इसके अनुसार “हर उस दशा में जिसमें विधि द्वारा कोई लेख अभिव्यक्त उपेक्षित नहीं है सम्पत्ति का विधिक प्रसंगतियों में से उस समस्त हित का संक्रमण या अन्तरण कर देता है, जिसका संक्रमण या अन्तरण करने के लिए अन्तरक तब तक समर्थ हो। “
(2) लिखित अन्तरण – सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 9 के अन्तर्गत मौखिक अन्तरण के अपवाद के रूप में तथा आवश्यकतानुसार यथा स्थल पर स्पष्ट विवरण मिलते हैं, जिससे अन्तरण का लिखित विलेखों द्वारा किया जाना अत्यावश्यक है।
वे अन्तरण जो लिखित रूप में ही होंगे, निम्नलिखित प्रकार के अन्तरण ऐसे अन्तरण हैं जो केवल लिखित रूप में ही हो सकते हैं, मौखिक रूप में नहीं।
(1) अचल सम्पत्ति का दान (धारा 123 ) ।
(2) अचल सम्पत्ति का वार्षिक पट्टा या एक वर्ष से अधिक किसी का भाटक आरक्षित करने वाला पट्टा (धारा 107 ) ।
(3) कोई विनियम (धारा 118)।
(4) अभियोज्य दावों का अन्तरण ( धारा 130) अभियोज्य दावों का अन्तरण लिखित होना तो आवश्यक है किन्तु इनका पंजीयन होना आवश्यक नहीं है।
(5) सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 54 के अनुसार, अचल सम्पत्ति के सभी विक्रय जो ₹ 100 या अधिक मूल्य के हों।
(6) वे सभी बन्धक जिनके द्वारा ₹ 100 या इसके अधिक का ऋण प्रतिभूत किया गया हो. लेकिन हक- विलेखों के निक्षेप द्वारा बन्धक का लिखित होना आवश्यक नहीं है (धारा 59 ) ।
अतः लिखित अन्तरण (Written Transfer) सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 9 के अधीन मौखिक अन्तरण स्पष्ट अपवाद के रूप में तथा आवश्यकतानुसार यथा स्थल पर स्पष्ट विवरण मिलते हैं। इनमें अन्तरण का लिखित विलेखों द्वारा किया जाना आवश्यक है तथा इसके साथ ही साथ इस प्रकार के विलेखों का अनुप्रमाणन तथा पंजीकरण उसके वैधत्व एवं प्रवर्तन के लिए अनिवार्य है।
प्रश्न 4. सृष्ट हित के विरुद्ध निर्बन्धनों की वैधता की विवेचना कीजिए। Discuss the validity of restrictions repugnent to interest cre- ated.
अथवा
आत्यंतिकतः सृष्ट हित के विरुद्ध लगायी जाने वाली शर्त के प्रभाव पर प्रकाश डालिए। Throw light on the consequences of conditional transfer.
उत्तर- सृष्ट हित के विरुद्ध निबन्धनों की वैधता के बारे में प्रावधान अधिनियम की धारा में किया गया है। धारा 11 के अनुसार जहाँ कि सम्पत्ति के अन्तरण पर उस सम्पत्ति में किसी व्यक्ति के पक्ष में हित आत्यंतिकतः सृष्ट किया जाता है। परन्तु अन्तरण के निर्बंन्धन निदेश करते हैं कि वह ऐसे हित का किसी विशिष्ट रीति से उपयोग या उपभोग करें वहाँ वह ऐसे हित को ऐसे प्राप्त और व्ययनित करने का हकदार होगा मानो ऐसा कोई निदेश था ही नहीं।
जहाँ पर ऐसा कोई निदेश स्थावर सम्पत्ति के एक टुकड़े के बारे में इस सम्पत्ति के दूसरे टुकड़े के फायदा प्रद उपभोग का सुनिश्चित करने के प्रयोजन से किया गया हो, वहाँ पर इस धारा की कोई भी बात किसी ऐसे अधिकार पर जो अन्तरक ऐसे निदेशक प्रवर्तन करने के लिए रखता हो, या किसी ऐसे उपचार पर जो वह उसके भंग के बारे में रखता हो, प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जायेगी।
इस प्रकार धारा 11 यह प्रावधान करती है कि यदि अन्तरिती को सम्पत्ति अथवा कोई हित पूर्ण रूप से अन्तरण कर दिया जाता है और यह शर्त लगा दी जाती है कि अन्तरिती उस सम्पत्ति का उपभोग एक विशेष प्रकार से ही कर सकता है तो इस प्रकार लगायी गयी शर्त शून्य होगी तथा अन्तरण ऐसे होगा मानो कोई इस प्रकार की शर्त है ही नहीं।
परन्तु यह धारा तभी लागू होगी जब सम्पत्ति में हित पूर्ण रूप से अन्तरिती किया गया हो। उदाहरणस्वरूप यदि क नामक व्यक्ति ख नामक व्यक्ति के इस निर्देश सहित दान में एक मकान अन्तरित करता है कि वही अर्थात् केवल ख ही उस मकान में रह सकता है। यह शर्त शून्य होगी क्योंकि दान में सम्पत्ति का हित पूर्णरूपेण अन्तरित किया गया था। वस्तुतः यह ‘ख’ पर निर्भर करता है कि वह चाहे उस मकान में स्वयं रहे अथवा किसी अन्य को रहने दे।
धारा 11 की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह धारा वहीं पर लागू होगी जहाँ पर सम्पत्ति में हित पूर्ण रूप से अन्तरित कर दिया गया हो।
इस प्रकार की शर्त के प्रभाव रहित होने का कारण यह है कि यह विधिशास्त्र महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। कि स्वामित्व का अन्तरण शर्त रहित होना चाहिए।
धारा 11 के अपवाद (Exceptions to Section-11)
धारा में समाहित दिवम के निम्न अपवाद हैं.
(1) भूमि पर लाभकारी उपभोग के लिए निर्देश देना- यदि अन्तरणकर्ता अन्तरिती पर सम्पत्ति का . अन्तरण करते समय ऐसी शर्त लगा सकता है कि जो कि भूमि के लाभकारी उपभोग के लिए हो तो इस प्रकार का अवरोध धारा 11 के अन्तर्गत मान्य होगा।
(2) सही स्थिति की बिना सूचना के- अर्थात् कोई तृतीय पक्षकार अर्थात् दूसरे अन्तरिती को प्रथम अन्तरिता से सम्पत्ति को सद्भाव में खरीदा हो। ऐसा अन्तरण वैध माना जायेगा अन्यथा नहीं। इस सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण वाद तुल्क बनाम भोक्सों का है।
इस याद में अन्तरणकर्त्ता ने अन्तरिती पर अन्तरित सम्पत्ति के सम्बन्ध में एक शर्त लगायी कि वह (अन्तरिती) जमीन पर कोई मकान नहीं बनायेगा ताकि अन्तरकर्त्ता के पास जो जमीन है, उसमें हवा तथा प्रकाश आने में कोई भी असुविधा न हो। न्यायालय ने यह निर्णीत किया कि इस प्रकार की शर्त मान्य थी क्योंकि ऐसा भूमि के लाभप्रद उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु किया गया था।
इस सन्दर्भ में एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि शर्त चाहे सकारात्मक हो अथवा नकारात्मक, दोनों प्रकार की शर्त अपवाद के अन्तर्गत आती हैं।
प्रश्न 5. प्रयतित अन्य संक्रामण पर हित को पर्यवसेय बनाने वाली शर्त की विधि मान्यता को स्पष्ट कीजिए। Clarify legal validity condition making interest determinable on attempted alienation.
उत्तर- इस सन्दर्भ में प्रावधान सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 को धारा 12 में उपबंधित है। धारा 12 के अनुसार जहाँ कि इस शर्त या मर्यादा के अधीन सम्पत्ति अन्तरित की जाती है कि किसी व्यक्ति को या उसके फायदे के लिए आरक्षित या दिया हुआ उस सम्पत्ति में या कोई भी हित उस व्यक्ति के दिवालिया होने पर या उसके अन्तरण या व्ययन करने का प्रयास करने पर समाप्त हो जायेगा, वहाँ ऐसी शर्त या मर्यादा शून्य है।
इस प्रकार धारा 12 यह उल्लेख करती है कि यदि अन्तरकर्त्ता ने अन्तरिती को सम्पत्ति इस शर्त पर अन्तरण की कि अन्तरिती के दिवालिया होने पर उसकी सम्पत्ति अन्तरण कर्त्ता के पास आ जायेगी और इस प्रकार की शर्त शून्य होगी तथा अन्तरण प्रभावी होगा।
इसके अतिरिक्त यदि अन्तरिती द्वारा, सम्पत्ति का अन्य संक्रामण किया जाये तो भी अन्तरिती के सम्पूर्ण अधिकार समाप्त कर दिये जायेंगे। इस प्रकार की शर्त शून्य है परन्तु इससे सम्पत्ति के अन्तरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और अन्तरण मान्य होगा।
इस सिद्धान्त का अनुमोदन ग्रेव्स बनाम डोलफिन नामक वाद में किया गया है।
इस वाद में वसीयतकर्ता ने अपने न्यासी को यह निर्देश दिया कि वह उसके लड़के को उसके जीवन काल तक 500 पौण्ड प्रतिवर्ष दिया करें, बाद में लड़का दिवालिया घोषित कर दिया गया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि “जो लड़के को मिलता था, उस पर उसके कर्जदारों का अधिकार हो गया है। अत: दिवालियापन पर अन्तरण सम्बन्धी कोई भी शर्त यदि लगायी जायेगी तो वह शून्य होगी तथा सम्पत्ति का अन्तरण ऐसा माना जायेगी कि अन्तरण पर कोई शर्त ही नहीं लगी थी। “
धारा 12 के अपवाद (Exception to Section-12)
यदि कोई भी अन्तरण पट्टा सम्बन्धी है तो ऐसा अन्तरण धारा 12 में उपबंधित नियम का अपवाद होगा अर्थात् पट्टा कर्त्ता पट्टा ग्रहीता पर शर्त लगा सकता है कि यदि वह दिवालिया हो जायेगा तो पट्टा – ग्रहीता अपने पट्टे का अधिकार खो देगा। इस प्रकार की शर्त मान्य है क्योंकि पट्टे के अन्तरण में पट्टा ग्रहीता के पास स्वामित्व का अधिकार नहीं पहुँचता । अतः ऐसी शर्त मान्य होगी। यहाँ पर यह भी ध्यान में रखने योग्य है कि पट्टा दाता को इससे लाभ होना चाहिए तभी यह अपवाद लागू होगा अन्यथा नहीं
प्रश्न 6. “कोई भी ऐसा अन्तरण जिसमें अन्तरण-ग्रहीता को या उसके वैध प्रतिनिधी के अंतरित संपत्ति को भविष्य में अन्तरण करने से आत्यांतिक रूप से रोकने की शर्त हो वहाँ ऐसी शर्त शून्य होगी तथा अन्तरण वैध होगा। ” व्याख्या कीजिये तथा अपवादों को बताइये। “Any transfer of property upon the condition under which transferee or his legal representative are absolutely restrained from alienating the transferred property in future, makes the condition void and transfer valid.” Elaborate and point-out the exceptions,
उत्तर – संपत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा में अन्य संक्रमण अवरुद्ध करने वाली शर्तों के बारे में प्रावधान किया गया है।
धारा 10 के अनुसार जहाँ कि संपत्ति ऐसी शर्त या मर्यादा के अधीन अन्तरित की जाती हैं जो अन्तरिती या उसके अधीन दावा करने वाले व्यक्तियों को संपत्ति में अपने हित को अलग करने या व्ययनित करने से आत्यंतिकतः अवरुद्ध करती है। वहाँ ऐसी शर्त या मर्यादा शून्य है, सिवाय ऐसे पट्टे की दशा के जिसमें कि वह शर्त पट्टाकर्ता या उसके अधीन दावेदारों के फायदे के लिए हो, परन्तु संपत्ति किसी स्त्री को (जो हिन्दू, मुसलमान या बौद्ध न हो) या उसके फायदे के लिए इस प्रकार अन्तरित की जा सकेगी कि उसे अपनी विवाहित स्थिति के दौरान उस संपत्ति को या उसमें के अपने फायदा को अन्तरित या पारित करने की शक्ति न होगी।
धारा 10 की आवश्यक शर्ते निम्न है।
(1) किसी प्रकार का अन्तरण होना चाहिए,
(2) अन्तरण पर पूर्ण इतने होना आवश्यक है।
(3) शर्त अथवा मर्यादा का होना आवश्यक है।
उदाहरण के लिए रोशर बनाम रोशर (1884) के बाद में अन्तरणकर्त्ता ने अन्तरिती को संपत्ति इस शर्त पर अन्तरित की कि यदि वह अथवा उसके उतराधिकारी कभी भी संपत्ति का अन्तरण करें तो उसकी पत्नी यदि जीवित हो तो उसे 3000 पौंड में अन्तरित करें, जबकि वसीयत कर्ता की मृत्यु के समय संपत्ति की कीमत पौंड धी, न्यायालय ने निर्णीत किया कि इस प्रकार का अवरोध शून्य था तथा वह संपत्ति के विक्रय में स्वतन्त्र था। न्यायालय ने इस शर्त को पूर्ण अवरोध माना।
यदि इस शर्त के साथ अन्तरण किया जाता है कि अन्तरिती सम्पत्ति का अन्तरण दान, बंधक, विक्रय, विनिमय आदि में से एक या अधिक ढंगों से नहीं करेगा तो इस प्रकार का प्रभाव शून्य माना जायेगा। परन्तु यदि अन्तरिती पर रोकपूर्ण न होकर आंशिक हो तो अन्तरण वैध माना जायेगा, साथ ही यदि संपत्ति अन्तरण करते समय अन्तरिती पर यह शर्त लगा दी जाती है कि वह संपत्ति का अन्तरण एक विशेष व्यक्ति अर्थात अन्तरण कर्ता के शत्रु को नहीं करेगा। तो ऐसा अन्तरण धारा 10 के अन्तर्गत शून्य नहीं होगा।
नियम के अपवाद (Exception to Rule)
1. पट्टा संबंधी अन्तरण- यदि पट्टा कर्ता अन्तरिती को पट्टे संबंधी भूमि अन्तरणकर्ता है तथा वह पूर्ण अवरोध अन्तरिती पर लगा देता है तो रोक इस धारा के अधीन मान्य होगी क्योंकि पट्टाकर्ता का भी कुछ अधिकार संपत्ति में शेष रहता है और उसके रक्षार्थ में अन्तरितो पर रोक लगाना आवश्यक है। परन्तु ऐसी शर्त अन्तरणकर्ता तथा उसके वारिसों के लाभ के लिए होना आवश्यक है।
2. विवाहित स्त्री- अन्तरिती यदि हिन्दू, मुस्लिम या बौद्ध धर्म को मानने वाली नहीं है तो उस पर यह शर्त लगायी जा सकती हैं कि वह विवाह के समय अथवा उसके पश्चात् प्राप्त संपत्ति का अन्तरण वैवाहिक जीवन के दौरान नहीं कर सकती। इस प्रकार की शर्त पूर्ण अवरोध होने पर मान्य होगी।
3. आशिक अवरोध- यदि अन्तरिती के अन्तरण पर लगाया गया अवरोध आंशिक है तो इस प्रकार की शर्त वैध मानी जायेगी और अन्तरिती के द्वारा किया गया अन्तरण वैध माना जायेगा।
4. वसीयत में पूर्ण अवरोध लगाना- यदि वसीयत में अन्तरिती पर पूर्ण अवरोध लगा दिया गया है तो यह शर्त मान्य होगी क्योंकि अधिनियम की धारा 5 के अनुसार संपत्ति अन्तरण के क्षेत्र में वसीयत के द्वारा किये हुए अन्तरण नहीं आते हैं।
इस सिद्धान्त का अनुमोदन मुस्म्मात मखना बनाम विन्देसरी प्रसाद के वाद में किया गया है।
5. दान में आश्रित हित- इस अधिनियम की धारा 126 के अनुसार दानदाता, दानग्रहीता पर पूर्ण अवरोध की शर्त लगा सकता है क्योंकि इस प्रकार का दान शर्त सहित किया जाता है। अतः शर्त मान्य होगी।
इस सिद्धान्त का अनुमोदन इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा व्रजदेवी बनाम शिवनन्द प्रसाद के वाद में किया गया है।
(3) अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए अन्तरण तथा शाश्वतता के विरुद्ध नियम (Transfer for the Benefit of Unborn Person and Rule against Perpetuity)
प्रश्न 1. अजन्मे व्यक्ति को अन्तरण के बारे में सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 के नियमों का विश्लेषण कीजिए। Analyse rule of the Transfer of Property Act, 1882 relating to unborn person.
अथवा
क्या किसी अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में सम्पत्ति का अन्तरण किया जा सकता है ? Whether a transfer of property could be made in favour of an unborn person?
अथवा
“यद्यपि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम जीवित व्यक्तियों के मध्य अन्तरण से सम्बन्धित है फिर भी एक अजन्मे (अज्ञात) व्यक्ति के लाभ हेतु सम्पत्ति में हित का सृजन किया जा सकता है। “विवेचना कीजिए। “Though the transfer of property Act deals with transfer intervivos yet on interest may be created in favour of an unborn person.” Discuss.
अथवा
“एक अजन्में व्यक्ति को सम्पत्ति का अन्तरण प्रत्यक्षतः नहीं किया जा सकता परन्तु उसके लाभ हेतु संपत्ति का अन्तरण हो सकता है।” इस कथन की व्याख्या संपत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 13 के प्रावधानों के आलोक में दीजिए। “Property can not be transferred directly to an unborn person but the same (property) can be transferred for the benefit of an unborn person.” Elucidate the statement in the light of the pro- visions of section 13 of Transfer Property Act.
उत्तर- अधिनियम की धारा 13 के अनुसार जहाँ कि सम्पत्ति के अन्तरण पर उस सम्पत्ति में कोई हित उसी अन्तरण द्वारा सृष्ट किसी पूर्विक हित के अध्यधीन ऐसे व्यक्ति के लिए, की तारीख होना अस्तित्व में न हो, सृष्ट किया जाता है, वहाँ ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए सृष्ट हित प्रभावी नहीं होगा जब कि उसका विस्तार सम्पत्ति में अन्तरक के सम्पूर्ण अवशिष्ट हित पर न हो।
इस प्रकार सम्पत्ति अधिनियम की धारा 13 यह प्रावधान करती है कि सम्पत्ति का अन्तरण उन व्यक्तियों को भी किया जा सकता है जो अजन्मा है।
अजन्मा व्यक्ति वह होता है जिसका अभी अस्तित्व नहीं होता तो क्या उस व्यक्ति के पक्ष में जो अभी माँ के पेट में है, अस्तित्व में माना जायेगा ? नहीं, उस व्यक्ति को अस्तित्व में कदापि नहीं माना जा सकता है।
क्या अजन्मे व्यक्ति को सम्पत्ति का अन्तरण किया जा सकता है?
अधिनियम की धारा 5 उपबंधित करती है कि सम्पत्ति का अन्तरण केवल जीवित व्यक्तियों के मध्य ही हो सकता है। इस प्रकार धारा 5 के अनुसार सम्पत्ति का अन्तरण अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में यदि किया जाता है तो ऐसा अन्तरण शून्य होगा।
परन्तु धारा 13 के अनुसार सम्पत्ति का अन्तरण अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में किया जाना सम्भव है परन्तु, अन्तरण का तरीका धारा 5 से भिन्न होगा।
धारा 13 के अनुसार जबकि सम्पत्ति के अन्तरण से किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति कोई हित उत्पन्न किया जाता है जो कि अन्तरण के समय अस्तित्व में नहीं है तो ऐसा अन्तरण तब तक मान्य नहीं होगा जब तक कि इस अन्तरण द्वारा सम्पत्ति में कोई पूर्व हित न उत्पन्न कर दिया जाये और इस अजन्मे व्यक्ति को सम्पत्ति में पूर्ण हित न दिया जाये। अतः धारा 13 के अनुसार अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में अन्तरण हेतु दो शर्तों का संपालन आवश्यक है-
(1) पूर्विक हित के अधीन अन्तरण, तथा
(2) अजात व्यक्ति को सम्पूर्ण हित ।
(1) धारा 13 के अन्तर्गत अजन्मे व्यक्ति को सम्पत्ति का अन्तरण तभी किया जा सकता है जबकि उससे पहले किसी व्यक्ति को उसी सम्पत्ति को कुछ सीमा तक न कि पूर्ण रूप से अन्तरित किया जाये, ऐसा अन्तरिती उस सम्पत्ति का उपयोग कर सकता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह सम्पत्ति उस व्यक्ति में निहित नहीं होगी, अतः वह व्यक्ति किसी अन्य पक्षकार को सम्पत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता तथा जैसे ही अजन्मा व्यक्ति जन्म लेगा सम्पत्ति उसमें निहित हो जायेगी, भले ही वह सम्पत्ति का उपयोग न कर सके। अजन्मा व्यक्ति उस सम्पत्ति का उपभोग तभी कर सकेगा जबकि पहला हित समाप्त होगा।
उदाहरणस्वरूप, यदि क नामक व्यक्ति ख नामक व्यक्ति को एक मकान का अन्तरण उसके जीवनकाल तक के लिए करता है तथा इसके बाद अजन्मे व्यक्ति के लिए अन्तरण करता है तो जैसे ही वह अजन्मा व्यक्ति पैदा होगा वैसे ही सम्पत्ति उसमें निहित हो जायेगी परन्तु वह उक्त सम्पत्ति का उपभोग तभी कर सकेगा जबकि ‘ख’ नामक उक्त व्यक्ति की मृत्यु जायेगी।
(2) अजन्मे व्यक्ति का जन्म पहले हित के समाप्त होने के पूर्व होना चाहिए, तब ही सम्पत्ति उसमें निहित होगी। यदि उसका जन्म पहले वाले हिती के हित के समाप्त होने के बाद होता है तो सम्पत्ति अजन्मे व्यक्ति में निहित नहीं होगी बल्कि अन्तरकर्ता के पास वापस चली जायेगी।
(3) तीसरी शर्त यह कि अजात व्यक्ति के पक्ष में सम्पत्ति में पूरा हित अन्तरित होना चाहिए कि जीवन हित/केवल जीवन हित का अन्तरण मान्य नहीं होगा।
प्रश्न 2. शाश्वतता के विरुद्ध नियम का आधार स्पष्ट कीजिए। Clarify basis of rule against Perpetuity.
अथवा
शाश्वतता के विरुद्ध नियम को समझाइए | Explain “Rule against perpetuity.
उत्तर- सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 14 में, के अनुसार- शाश्वतता के अनुसार, विरुद्ध नियम इस सिद्धान्त पर आधारित है कि सामान्यतया प्रत्येक सम्पत्ति के दो स्वामी होते हैं। प्रथम वह व्यक्ति जो सम्पत्ति पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण रखने का अधिकारी होता है तथा दूसरा वह समाज जिसके क्षेत्राधिकार में विवादित सम्पत्ति स्थित है तथा जिसका उस सम्पत्ति पर अप्रत्यक्ष नियन्त्रण होता है।
शाश्वतता के विरुद्ध नियम का अर्थ – शाश्वतता या सर्वकालीनता के विरुद्ध नियम के अनुसार, व्यक्ति को कुछ व्यक्ति की सीमा तक किसी सम्पत्ति में प्रयोग अन्तरण दुरुप्रयोग और निपटारे आदि के सम्बन्ध में पूर्ण स्वतन्त्रता दी जा सकती है और इसकी इस स्वतन्त्रता में समाज हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।
किन्तु यदि सम्पत्ति का स्वामी एक निश्चित सीमा के बाहर अन्तरण करेगा- तो ऐसा अन्तर सामाजिक हित और सामाजिक दबाव के कारण कानून द्वारा अमान्य ठहराया जायेगा। इस प्रकार यह सिद्धान्त व्यक्ति के स्वेच्छानुसार सम्पत्ति अन्तरण करने के अधिकार पर अंकुश लगता है, दूसरे शब्दों में, शाश्वत के विरुद्ध सिद्धान्त का अर्थ है व्यक्ति और समाज दोनों के हित के लिए यह आवश्यक है कि एक सीमा के अन्दर सम्पत्ति को बाँधा जाये। शाश्वतता के विरुद्ध नियम को स्पष्ट करते हुए धारा 14 का कहना है कि कोई भी सम्पत्ति का अन्तरण ऐसा हित निर्मित करने के लिए लागू नहीं किया जा सकता, जो ऐसे अन्तरण की तारीख को एक या अधिक जीवित व्यक्ति के जीवन काल के लिए तथा किसी ऐसे नाबालिग की नाबालगी की अवधि के लिए हो जो अन्तिम अन्तरिती की मृत्यु के समय अस्तित्व में आ जाये तथा जिसे सम्पूर्ण हित मिलना है।
कोई सम्पत्ति का स्वामी अपनी सम्पत्ति को जीवन भर प्रयोग करने तथा अपनी मृत्यु के बाद अपने कितने ही मित्रों और सम्बन्धियों को देने के लिए स्वतन्त्र है जो उसकी मृत्यु के समय जीवित हो किन्तु यदि वह अजन्मे व्यक्ति को सम्पत्ति देना चाहता है तो वह धारा 13 और 14 में वर्णित सीमाओं के अन्तर्गत ही ऐसा कर पायेगा अन्यथा उसका अन्तरण अवैध होगा।
प्रश्न 3. शाश्वतता के विरुद्ध नियम की समलोचनात्मक व्याख्या करते हुए उसके अपवादों को बताइए। इस नियम का आधार क्या है? Critically discuss the rule against perpetuity and point out its exceptions. What is the basis of this rule?
अथवा
शाश्वतता के विरुद्ध नियम की आलोचनात्मक व्याव्या करते हुए उसके अपवादों को बताइये। Critically discuss the rule against perpetuity and point out its exceptions.
उत्तर- शाश्वतता के विरुद्ध नियम के आधार इस शीर्षक लिये दीर्घ उत्तरीय प्रश्न सं. 1 देखें।
शाश्वतता के विरुद्ध नियम के अपवाद (Exception to Rule against Perpetuity): संपत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 14 में उपबंधित शाश्वतता के विरुद्ध नियम के निम्न अपवाद है-
1. व्यक्तिगत संविदा (Personal Contract) – व्यक्तिगत संविदाओं पर शाश्वतता के विरुद्ध नियम का कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि ऐसी संविदाओं से संपत्ति में किसी प्रकार के हित का निर्माण नहीं होता हैं। यह नियम विक्रय की संविदा तथा शुफा पर भी लागू नहीं होता क्योंकि ये भी विशेष या व्यक्तिगत संविदा के ही अन्तगर्त आते है।
2. भार (Charge) – शाश्वतता का नियम भार पर भी लागू नहीं होता क्योंकि इसमें केवल वर्तमान हित की ही स्थापना होती है और संपत्ति के हित का अन्तरण नहीं किया जाता। वास्तव में भार के अन्तर्गत संपत्ति केवल एक प्रत्याभूत धन की अदायगी के लिए ही होती हैं।
3. दान अथवा धर्मार्थ संपत्ति- यह नियम उस संपत्ति के अन्तरण पर भी लागू नहीं होता जिसका अन्तरण जनता के कल्याण, शिक्षा की उन्नति, धर्म के कार्य तथा अन्य मानव भलाई के ध्येय से किया गया हो ।
4. निहित हित (Vested)- जब कोई भी हित निहित हो जाता है तो शाश्वतता के विरुद्ध नियम उस पर लागू नहीं होता क्योंकि यह नियम भूत-कालीन हित पर लागू न होकर केवल उस संपत्ति के अन्तरण पर लागू होता है जहाँ पर कि नये हितों का सृजन किया जाता है।
5. पट्टे का अनुबंध- शाश्वतता के विरुद्ध नियम पट्टों के अनुबंधों पर भी लागू नहीं होता क्योंकि पट्टे के नवीनीकरण से किसी नये हित का सृजन नहीं होता और नवीनीकरण करने से संपत्ति का अन्तरण भी नहीं होता है।
6. निगम द्वारा खरीदी गयी संपत्ति- यदि निगम द्वारा कोई भूमि खरीदी गयी हो अथवा निगम की कोई संपत्ति हो तो उस पर भी शाश्वतता के विरुद्ध नियम लागू नहीं होता है।
7. बंधक (Mortgage)- शाश्वतता के विरुद्ध नियम केवल उन मामलों में लागू होता है। जहाँ पर अचल संपत्ति में नये हित का सृजन होता है और इस कारण शाश्वतता के विरुद्ध नियम इस पर लागू नहीं होता।
प्रश्न 4. उस वर्ग को अन्तरण जिसमें से कुछ धारा 13 तथा धारा 14 के अन्तर्गत आते हैं, से सम्बन्धित नियमों की व्याख्या कीजिए। Explain rules relating to a class, some of whom come under sec- tion-13 and 14.
अथवा
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 15 के प्रावधानों का वर्णन कीजिए। Describe provisions of section 15 of Transfer of Property Act.
उत्तर- अधिनियम की धारा 15 के अनुसार यदि संपत्ति अन्तरण से उस संपत्ति में किसी हित का सृजन ऐसे व्यक्तियों के किसी वर्ग के फायदे के लिए किया जाता है जिनमें से कुछ के सम्बन्ध में ऐसा हित धारा 13 तथा धारा 14 में अन्तर्विष्ट नियमों में से किसी के कारण निष्फल हो जाता है तो ऐसा हित केवल उन्हीं व्यक्तियों के सम्बन्ध में न कि सम्पूर्ण वर्ग के सम्बन्ध में निष्फल हो जाता है।
ध्यातव्य है कि इस धारा (धारा 15 में सन् 1929 में संशोधन किया गया। इस संशोधन के पहले सिद्धान्त यह था कि जब किसी हित का सृजन किसी श्रेणी के व्यक्तियों के लिए किया जाये तथा ऐसा सृजित हित उनमें से कुछ व्यक्तियों की श्रेणी के लिए शाश्वतता के परिणामस्वरूप निष्फल हो जाता है तो इस प्रकार का हित पूरी श्रेणी के लिए ही निष्फल हो जाता है।
यह सिद्धान्त लीक बनाम रॉबिन्सन के बाद में प्रतिपादित किया गया था। इसमें धारित किया गया कि दान के मामले में एक श्रेणी के किसी एक सदस्य को शाश्वतता के नियम के विरुद्ध संपत्ति अन्तरित होती है। उदाहरण के लिए एक जीवित व्यक्ति के लड़कों के लिए जो कि 25 वर्ष की उम्र में उस हित को प्राप्त तो सम्पूर्ण दान में अन्तरित हुई संपत्ति शून्य होगी।
ऐसा होने का मुख्य कारण यह था कि दान रूपी मुख्य अन्तरण को भिन्न-भिन्न टुकड़ों में विभाजित करके प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को उस समय नहीं दी जा सकती थी जबकि वह उल्लिखित शर्त को पूरी करता जाये। ऐसा करने का तात्पर्य एक नई वसीयत का सृजन करना होगा।
अंग्रेजी विधि के इस लीक बनाम रॉबिन्सन के बाद में प्रतिपादित सिद्धान्त की भारतीय उच्च न्यायालयों द्वारा आलोचना की गयी। कठिनाई उस समय उत्पन्न हुई जबकि दान उस वर्ण के व्यक्तियों के हित में सृजित किया गया जिनमें से दान देने के समय कुछ अस्तित्व में थे तथा कुछ व्यक्ति नहीं थे।
इस नियम के विरुद्ध दिये गये तर्कों को प्रीवी का सिल ने नहीं माना परन्तु आगे चलकर प्रीवी कौंसिल ने भगवती बनाम कालीचरन तथा राधा बनाम रानीमोनी के बाद में धारित किया कि उक्त अंग्रेजी सिद्धान्त भारत में लागू नहीं किया जायेगा।
बजरंग भारतीय उच्चतम न्यायालय ने भी आगे चलकर इसी सिद्धान्त का अनुमोदन राजा बहादुर सिंह बनाम ठकुरायन बलराज कुंवर AIR 1963 S. C. के बाद में कर दिया और कहा कि-
“यदि दान रूपी संपत्ति का अन्तरण अनेक व्यक्तियों के पक्ष में किया जाता है तो जो व्यक्ति वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के समय अस्तित्व में होंगे, उनके हित में अन्तरण मान्य होगा परन्तु जो अस्तित्व में नहीं होंगे केवल उन्हीं के हित में अन्तरण शून्य होगा।
इस धारा के सम्बन्ध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि आज भी अंग्रेजी विधि में जो सिद्धान्त लीक बनाम रॉबिन्सन के उक्त बाद में प्रतिपादित किया गया वह मान्य है जबकि भारत में 1929 में इसे संशोधित कर दिया गया है।
इस धारा में दूसरी बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह कि धारा 15 में संशोधित मुसलमानों के लिए लागू नहीं होता, यह केवल हिन्दुओं पर ही लागू होता है।
प्रश्न 5. अन्तरण का किसी पूर्विक हित की निष्फलता प्रभावी होने के बारे में नियम पर प्रकाश ‘डालिये। Throw light on the rule relating to transfer to effection failure of failure prior interest.
उत्तर- इस सम्बन्ध में प्रावधान अधिनियम की धारा 16 में किया गया है।
धारा 16 के अनुसार जहाँ कि व्यक्ति ख व्यक्तियों के किसी वर्ग के फायदे के लिए सृष्ट हित धाराओं 13 तथा 14 में अन्तर्विष्ट नियमों में से किसी के कारण ऐसे व्यक्ति या सम्पूर्ण वर्ग के सम्बन्ध में निष्फल हो जाता है वहाँ उसी संव्यवहार में सृष्ट और ऐसे पूर्विक हित की निष्फलता के पश्चात् या पर प्रभावी होने के लिए आशयित कोई हित भी निष्फल हो जाता है।
इस प्रकार धारा 17 के अनुसार आवश्यक तत्व निम्न हैं-
(1) पूर्व हित का निष्फल होना आवश्यक है।
(2) पूर्व हित धारा 13 तथा 14 में वर्णित नियमों के कारण असफल होना चाहिए।
(3) पूर्व हित के असफल होने पर ही बाद वाला हित भी असफल हो जाता है। ऐसा होने का मुख्य कारण यह है कि शून्य अन्तरण के आधार पर एक मान्य अन्तरण को मान्य किये जाने के लिए।
धारा 16 को तभी लागू किया जा सकता है जबकि पूर्व हित एक व्यक्ति के लाभार्थ हो तो उस व्यक्ति के लिए, उस लाभ का असफल होना आवश्यक है। यदि उक्त प्रकार का हित, एक वर्ग के लिए हो तो उस वर्ग के लिए, उस लाभ का असफल होना है।
धारा 16 में वर्णित सिद्धान्त संक्षेप में निम्न प्रकार से है- “पूर्व हित के निष्फलने पर पश्चात् हित भी असफल हो जाता है।”
उदाहरणस्वरूप, यदि क, ख को इस शर्त पर उसकी संपत्ति का अन्तरण जीवन के लिए करता है कि वह ग का कत्ल कर दे। इसके बाद अन्तरण घ को जायेगा। चूँकि घ के अन्तरण का आधार अवैध शर्त है जो कि ख का हित है, पर आधारित है, अतः ख का हित निष्फल होने के कारण घ का हित भी असफल हो जायेगा।
धारा 16 के अपवाद
(Exception to Rule of Section 16)
धारा 16 में वर्णित नियम उन परिस्थितियों में लागू नहीं होगा जब कि किसी वैकल्पिक दान का अन्तरण किया गया हो।
उदाहरण के लिए यदि दो अलग-अलग दानों का अन्तरण दो अलग-अलग घटनाओं के आधार पर निर्भर करता हो और उन दोनों में से एक घटना शाश्वतता के विरुद्ध नियम (धारा 14) के अन्तर्गत आने के कारण शून्य हो तथा अन्य घटना धारा 14 के विरुद्ध हो, तो धारा 16 में उल्लिखित सिद्धान्त लागू नहीं होगा।
इस प्रकार यदि किसी दान के अन्तरण का अधिकार किसी ऐसी घटना के घटने पर आधारित है जो अधिक दूरवर्ती हो तथा उसके विकल्प में वह दूसरे दान का अन्तरण ऐसे आधार पर करता है जो पहले दान की अपेक्षाकृत कम दूरवर्ती घटना के घटने पर आधारित हो, तो दूसरा वाला दान जो कि पहले दानों की अपेक्षा दूरवर्ती घटना पर आधारित है, प्रभावी होगा।
इस संदर्भ में एक वाद जावेर बाई बनाम कांबलीबाई एण्ड अदर्स AIR 1982 Bom 492 का है।
इस वाद में अन्तरकर्त्ता द्वारा दान, के तथा ख को जीवनकाल के लिए किया गया। इसके बाद क के पुत्रों को, तथा पुत्रों के न होने पर अन्तरण उसको होगा जिसको क नियुक्त करे। के के कोई पुत्र नहीं था। अतः अन्तरण के लिए उसने अपनी पुत्री को नियुक्त किया। यहाँ पर क के पुत्रों के हित में किया हुआ दान का अन्तरण व शून्य घोषित किया जायेगा परन्तु क ने जो दान अपनी पुत्री के हित में किया था वह एक स्वतन्त्र एवं वैकल्पिक होने के कारण वैध था।