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Prakash v. Phulavati (2016): संशोधन का सीमित प्रभाव, जिसे बाद में Vineeta Sharma ने पलटा – एक विस्तृत विश्लेषण

Prakash v. Phulavati (2016): संशोधन का सीमित प्रभाव, जिसे बाद में Vineeta Sharma ने पलटा – एक विस्तृत विश्लेषण

प्रस्तावना

भारतीय उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Law) का इतिहास महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार दिलाने की लम्बी प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। परंपरागत हिंदू कानून में महिलाओं, विशेषकर बेटियों को संयुक्त हिंदू परिवार (HUF) की संपत्ति में अधिकार नहीं था। 2005 में संसद ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 (Hindu Succession (Amendment) Act, 2005) पारित करके बेटियों को पुत्रों के समान “coparcener” (सहभाजक) का दर्जा दिया।

लेकिन इस संशोधन की व्याख्या को लेकर विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में अलग-अलग मत उभरकर आए। विशेष रूप से, Prakash v. Phulavati (2016) का फैसला इस विषय पर एक अहम मील का पत्थर माना गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 2005 का संशोधन पूर्वव्यापी (retrospective) नहीं है। हालांकि, इस निर्णय को बाद में Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) में पलट दिया गया और बेटियों को जन्म से ही coparcener का अधिकार सुनिश्चित किया गया।

इस लेख में हम Prakash v. Phulavati (2016) के तथ्य, मुद्दा, न्यायालय का निर्णय, प्रभाव और बाद में Vineeta Sharma के फैसले द्वारा लाए गए परिवर्तन का गहन अध्ययन करेंगे।


मामले के तथ्य (Facts of the Case)

  1. फुलावती एक महिला उत्तराधिकारी थी जिसने 1992 में अपने पिता की मृत्यु के बाद संयुक्त परिवार की संपत्ति में अधिकार का दावा किया।
  2. उसने तर्क दिया कि 2005 के संशोधन के बाद बेटियों को coparcener का दर्जा मिला है, इसलिए उसे भी संपत्ति में पुत्रों के बराबर अधिकार मिलना चाहिए।
  3. विवाद यह था कि क्या संशोधन 2005 से पहले मृत पिता की संपत्ति पर भी लागू होगा या केवल उन्हीं मामलों पर लागू होगा जिनमें पिता 2005 के बाद जीवित था।

कानूनी प्रावधान (Relevant Provisions)

  1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6
    • 1956 में मूल अधिनियम के तहत केवल पुत्रों को coparcener का दर्जा प्राप्त था।
  2. हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005
    • संशोधन द्वारा पुत्रियों को भी coparcener का दर्जा दिया गया।
    • उन्हें जन्म से ही संपत्ति में समान अधिकार और दायित्व दिए गए।

मुद्दा (Issue before the Court)

👉 क्या 2005 का संशोधन पूर्वव्यापी (retrospective) प्रभाव रखता है, अर्थात क्या वह उन मामलों पर भी लागू होगा जिनमें पिता की मृत्यु संशोधन से पहले हो चुकी है?


न्यायालय का निर्णय (Judgment of the Court)

सुप्रीम कोर्ट (न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की पीठ) ने 16 अक्टूबर 2015 को (2016 SCC 36) यह निर्णय दिया –

  1. संशोधन का Prospective प्रभाव:
    • अदालत ने कहा कि 2005 का संशोधन पूर्वव्यापी (retrospective) नहीं बल्कि भावी (prospective) है।
    • अर्थात यह केवल उन्हीं मामलों पर लागू होगा जहाँ पिता 9 सितंबर 2005 को जीवित था
  2. संशोधन की शर्त:
    • यदि पिता 2005 से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो चुका था, तो उसकी संपत्ति पर पुत्रियों का coparcener अधिकार लागू नहीं होगा।
  3. कानूनी तर्क:
    • अदालत ने यह माना कि कानून बनाने का उद्देश्य समानता है, लेकिन संसद ने संशोधन को “prospective” रखने का ही इरादा किया।

निर्णय का महत्व (Significance of the Case)

  1. सीमित प्रभाव:
    • इस निर्णय ने बेटियों के अधिकारों को सीमित कर दिया।
    • जिनके पिता 2005 से पहले मर चुके थे, उन्हें संपत्ति में हिस्सा नहीं मिला।
  2. व्यापक आलोचना:
    • इस फैसले की आलोचना हुई क्योंकि इससे संशोधन का वास्तविक उद्देश्य – “लैंगिक समानता” – अधूरा रह गया।
  3. विभिन्न व्याख्याएँ:
    • कई उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट की अन्य बेंचों ने अलग-अलग व्याख्या दी, जिससे कानूनी अनिश्चितता पैदा हुई।

Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) द्वारा पलटना

सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ (न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह) ने 11 अगस्त 2020 को एक ऐतिहासिक निर्णय दिया और Prakash v. Phulavati (2016) तथा अन्य विरोधाभासी फैसलों को पलट दिया।

  1. जन्म से अधिकार:
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुत्रियों को coparcener का अधिकार जन्म से मिलता है, चाहे पिता जीवित हो या न हो।
  2. पूर्वव्यापी प्रभाव की मान्यता:
    • अदालत ने यह स्पष्ट किया कि 2005 का संशोधन केवल “prospective” नहीं बल्कि “retroactive” है।
    • इसका मतलब यह है कि बेटियों को अधिकार उनके जन्म से ही माना जाएगा, भले ही पिता की मृत्यु पहले हो चुकी हो।
  3. लैंगिक समानता की पुष्टि:
    • न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप बेटियों और बेटों को समान अधिकार दिया जाना अनिवार्य है।

तुलनात्मक अध्ययन (Comparison between Prakash v. Phulavati and Vineeta Sharma)

पहलू Prakash v. Phulavati (2016) Vineeta Sharma (2020)
संशोधन की व्याख्या Prospective (सिर्फ 2005 के बाद) Retroactive (जन्म से अधिकार)
पिता की स्थिति पिता 2005 में जीवित होना जरूरी पिता जीवित या मृत, दोनों स्थितियों में अधिकार
बेटियों का अधिकार सीमित, केवल कुछ मामलों में पूर्ण और समान अधिकार
प्रभाव लैंगिक समानता अधूरी रही वास्तविक समानता सुनिश्चित

महत्व और प्रभाव (Impact of These Judgments)

  1. Prakash v. Phulavati (2016):
    • महिलाओं के अधिकारों पर सीमित दृष्टिकोण।
    • सामाजिक आलोचना और न्यायिक भ्रम उत्पन्न हुआ।
  2. Vineeta Sharma (2020):
    • वास्तविक समानता स्थापित हुई।
    • न्यायपालिका ने बेटियों को जन्म से coparcener का अधिकार दिया।
    • इस निर्णय ने संयुक्त परिवार की संपत्ति में बेटियों की स्थिति को सशक्त किया।

निष्कर्ष (Conclusion)

Prakash v. Phulavati (2016) एक ऐसा फैसला था जिसने 2005 के संशोधन की व्याख्या को सीमित रखते हुए बेटियों के अधिकारों को अधूरा कर दिया। अदालत ने संशोधन को prospective मानकर कहा कि केवल वे ही बेटियाँ coparcener बनेंगी जिनके पिता 2005 में जीवित थे।

हालांकि, यह दृष्टिकोण महिलाओं के समान अधिकारों की अवधारणा के विपरीत था। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) में इसे पलटते हुए स्पष्ट किया कि बेटियाँ जन्म से ही coparcener हैं और उन्हें पुत्रों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।

इस प्रकार, Vineeta Sharma का निर्णय वास्तविक लैंगिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम है और इसने भारतीय उत्तराधिकार कानून को आधुनिक संवैधानिक मूल्यों – समानता और न्याय – के अनुरूप बना दिया।