शीर्षक: POCSO अधिनियम के तहत यौन आशय की व्याख्या: ‘X Etc. बनाम राजेश कुमार’ केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
(Title: Interpretation of Sexual Intent under POCSO Act: Supreme Court’s Verdict in X Etc. vs. Rajesh Kumar Case)
प्रस्तावना:
भारत में बच्चों की यौन सुरक्षा के लिए बनाए गए POCSO अधिनियम, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में न्याय सुनिश्चित किया जाए और अपराधियों को कड़ी सजा मिले।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2025 में दिए गए X Etc. बनाम राजेश कुमार एवं अन्य मामले का निर्णय इस अधिनियम की व्याख्या के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि यौन आशय (sexual intent) की व्याख्या संदर्भ, सत्ता के असंतुलन, और पीड़ित की भौतिक स्थिति को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए, विशेषकर शिक्षक-छात्र संबंध जैसे संवेदनशील परिदृश्य में।
मामले का पृष्ठभूमि:
- यह मामला एक छात्रा की ओर से अपने शिक्षक के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी (FIR) से जुड़ा है, जिसमें शिक्षक पर शारीरिक संपर्क, अश्लील प्रश्न पूछना (जैसे सैनिटरी नैपकिन से संबंधित), तथा अश्लील चित्र भेजने जैसे आरोप लगे।
- मामला POCSO अधिनियम की धारा 7 और 8 के अंतर्गत दर्ज किया गया था, जो कि यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) और उसकी सजा (Punishment) से संबंधित हैं।
हाईकोर्ट का निर्णय:
- हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान, तथ्यों की व्यापक जांच करते हुए एक प्रकार का ‘मिनी ट्रायल’ किया।
- अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी द्वारा किया गया कार्य यौन आशय से किया गया था, यह स्पष्ट रूप से सिद्ध नहीं होता।
- परिणामस्वरूप, प्राथमिकी (FIR) को रद्द कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश को कड़ा रूप से अस्वीकार कर दिया और निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर अपना निर्णय आधारित किया:
- प्रथम दृष्टया (Prima Facie) सबूतों की पर्याप्तता:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर, मुकदमे को खारिज करना अनुचित है जब प्रथम दृष्टया POCSO अधिनियम की धाराओं के तत्व सिद्ध हो रहे हों। - शिक्षक-छात्र संबंध की संवेदनशीलता:
शिक्षक एक सत्ता, विश्वास और मार्गदर्शन की स्थिति में होता है। यदि ऐसे व्यक्ति द्वारा किसी छात्रा को छुआ जाता है या उससे अनुचित प्रश्न पूछे जाते हैं, तो यह गंभीर संदेह उत्पन्न करता है। - यौन आशय की व्याख्या:
जब शारीरिक संपर्क के साथ अश्लील आचरण, जैसे अश्लील तस्वीरें भेजना और निजता भंग करने वाले प्रश्न पूछना शामिल हो, तो ऐसे व्यवहार से यौन आशय को स्थापित करने के लिए पर्याप्त आधार होता है। - ट्रायल का महत्व:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल आरोपों की गहराई से जांच करने और निष्कर्ष निकालने का कार्य ट्रायल कोर्ट का है, न कि उच्च न्यायालय का जब मामला FIR की वैधता से जुड़ा हो।
अंतिम निर्णय:
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा FIR रद्द करने के आदेश को निरस्त किया।
- साथ ही, ट्रायल कोर्ट को मुकदमे की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।
- यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप की सीमा को परिभाषित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि गंभीर आरोपों की निष्पक्ष सुनवाई हो।
कानूनी महत्व:
- यह फैसला POCSO अधिनियम की धारा 7 (यौन उत्पीड़न की परिभाषा) और धारा 8 (उसकी सजा) की व्याख्या में यौन आशय की अवधारणा को विस्तारित करता है।
- यह निर्णय उन मामलों में मार्गदर्शक है जहाँ सत्ता और विश्वास की स्थिति का दुरुपयोग किया जाता है।
- यह स्पष्ट करता है कि POCSO मामलों में FIR को केवल तभी रद्द किया जा सकता है जब आरोप प्रथम दृष्टया भी असंगत हों, अन्यथा मुकदमा चलने देना चाहिए।
निष्कर्ष:
X Etc. बनाम राजेश कुमार प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल न्यायिक प्रक्रिया की रक्षा करता है, बल्कि बच्चों की गरिमा और सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए, यौन अपराधों के मामलों में संवेदनशीलता और निष्पक्षता की महत्ता को भी रेखांकित करता है। यह निर्णय अन्य न्यायालयों के लिए एक न्यायिक मिसाल (judicial precedent) के रूप में कार्य करेगा, जहाँ यौन आशय की जांच के लिए संदर्भ और आचरण का संपूर्ण मूल्यांकन आवश्यक है।