POCSO अधिनियम की सीमाएं और चिकित्सकीय परिक्षण: डॉ. सी.एम. अबूबकर बनाम केरल राज्य एवं अन्य, 2025 — एक विवेचनात्मक विश्लेषण

POCSO अधिनियम की सीमाएं और चिकित्सकीय परिक्षण: डॉ. सी.एम. अबूबकर बनाम केरल राज्य एवं अन्य, 2025 — एक विवेचनात्मक विश्लेषण

भूमिका
POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न से जुड़े शोषण और अश्लीलता से संरक्षण देने के उद्देश्य से बनाया गया था। इस कानून के अंतर्गत, किसी भी बच्चे (18 वर्ष से कम आयु) के साथ किसी भी प्रकार का यौन स्पर्श, संकेत, या हरकत कड़ी सजा के दायरे में आता है।
हालांकि, 2025 के एक चर्चित मामले डॉ. सी.एम. अबूबकर बनाम केरल राज्य एवं अन्य (CRL.MC No. 3538/2025, केरल उच्च न्यायालय) ने यह स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम का दायरा अनुमत चिकित्सकीय परिक्षण पर लागू नहीं होता।


मामले की पृष्ठभूमि
एक बालिका और उसके माता-पिता ने आरोप लगाया कि एक वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सी.एम. अबूबकर ने बालिका की चिकित्सकीय जांच के दौरान “बुरा स्पर्श” (Bad Touch) किया। पीड़िता ने शिकायत में उल्लेख किया कि डॉक्टर की एक हरकत उसे “असामान्य” और “असहज” लगी।

इस कथन के आधार पर आरोपी डॉक्टर पर POCSO अधिनियम की धाराओं के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई। इसके विरोध में डॉक्टर ने केरल उच्च न्यायालय में CRL.MC (क्रिमिनल मिसलेनियस केस) दायर कर FIR को निरस्त करने की मांग की।


न्यायालय का अवलोकन और निर्णय
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बल दिया:

  1. संदेहास्पद इरादा स्थापित नहीं होता:
    अदालत ने कहा कि महज पीड़िता के “एकाकी और आकस्मिक” कथन को पूरे अपराध का आधार नहीं माना जा सकता, विशेषकर तब जब कथन में यौन उद्देश्यता का स्पष्ट उल्लेख न हो।
  2. चिकित्सकीय जाँच के अपवाद (Exception):
    कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि POCSO अधिनियम की धारा 3 से 13 तक के प्रावधान उस स्थिति में लागू नहीं होते जब कोई चिकित्सकीय जांच या उपचार माता-पिता/अभिभावक की सहमति से किया गया हो।
  3. FIR की निरस्तीकरण का आदेश:
    चूंकि कोई ठोस प्रमाण या साक्ष्य मौजूद नहीं था कि डॉक्टर ने यौन उद्देश्यता से कार्य किया, कोर्ट ने FIR को क्वैश (quash) कर दिया और कहा कि इस प्रकार के मामलों में overreach से चिकित्सकों की प्रतिष्ठा और चिकित्सा पेशे की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।

POCSO अधिनियम की धारा 34 का संदर्भ:
POCSO Act की धारा 34 में यह स्पष्ट प्रावधान है कि यदि किसी बच्चे की चिकित्सकीय जांच माता-पिता या अभिभावक की सहमति से हो रही हो, तो डॉक्टर पर इस अधिनियम के यौन अपराध संबंधी प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि यौन उद्देश्यता स्पष्ट न हो।


न्यायिक विवेक और संतुलन की आवश्यकता
इस निर्णय में न्यायालय ने यह संतुलन स्थापित किया कि:

  • एक ओर, बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है।
  • दूसरी ओर, गैर-इरादतन या चिकित्सकीय परिप्रेक्ष्य में की गई किसी भी हरकत को अपराध मान लेना, बिना यथोचित जांच के, न केवल निर्दोषों को परेशान कर सकता है, बल्कि चिकित्सकों के मनोबल और व्यावसायिक स्वतंत्रता पर भी प्रहार कर सकता है।

मामले का महत्व
यह निर्णय देशभर के चिकित्सकों के लिए एक मार्गदर्शक दृष्टांत (precedent) बनकर उभरा है। इसने स्पष्ट किया कि न्यायिक विवेक और कानूनी समझदारी ही किसी आरोप को अपराध मानने का आधार होना चाहिए, न कि केवल भावनात्मक या संदेहास्पद आरोप।


निष्कर्ष
डॉ. सी.एम. अबूबकर का यह मामला यह दर्शाता है कि POCSO जैसे संवेदनशील कानूनों का प्रयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
जहां एक ओर बच्चों की रक्षा के लिए कठोरता आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर निर्दोष चिकित्सकों, शिक्षकों, या सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों से बचाना भी उतना ही आवश्यक है।

यह निर्णय एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि कानून का उद्देश्य न केवल अपराधी को दंड देना है, बल्कि निर्दोष की रक्षा करना भी है।