51. अभियुक्त और पीड़ित के बीच संतुलन का क्या महत्व है?
न्याय प्रक्रिया में अभियुक्त (Accused) के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है, परंतु पीड़ित के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। संतुलन से ही न्याय की पूर्णता सुनिश्चित होती है। यदि केवल अभियुक्त की रक्षा हो और पीड़ित को न्याय न मिले, तो न्याय अधूरा रह जाता है। अतः दोनों के अधिकार, सम्मान, और भागीदारी सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।
52. अपराध की रिपोर्टिंग में पीड़ितों की क्या समस्याएँ होती हैं?
अनेक पीड़ित अपराध की रिपोर्ट नहीं करते क्योंकि:
- पुलिस की असंवेदनशीलता,
- सामाजिक कलंक का भय,
- बदले की आशंका,
- लंबी न्याय प्रक्रिया,
- असहयोगी पारिवारिक या सामाजिक वातावरण।
इन बाधाओं को दूर करने के लिए संवेदनशील पुलिसिंग, गोपनीयता, महिला हेल्पलाइन और विधिक सहायता आवश्यक है।
53. सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदी में क्या अंतर है?
विचाराधीन कैदी (Undertrial) वह होता है जिसकी सुनवाई अभी जारी है और दोष सिद्ध नहीं हुआ।
सजायाफ्ता कैदी (Convict) वह होता है जिसे न्यायालय द्वारा दोषी ठहराकर सजा दी जा चुकी है।
विचाराधीन कैदी को दोषी मानना कानून के खिलाफ है क्योंकि वह “निर्दोष जब तक सिद्ध न हो” के सिद्धांत के अंतर्गत आता है।
54. महिला अपराधियों के लिए जेलों में विशेष व्यवस्था क्यों आवश्यक है?
महिला कैदियों को पुरुषों से भिन्न आवश्यकताएँ होती हैं – जैसे मासिक धर्म से संबंधित सुविधाएँ, मातृत्व, गर्भावस्था और बच्चों की देखभाल। इसके लिए अलग जेल, महिला स्टाफ, स्वास्थ्य सुविधा, और परामर्श केंद्र आवश्यक हैं ताकि उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुरक्षित रहे।
55. पीड़ित के अधिकारों के संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका क्या है?
भारतीय न्यायपालिका ने कई निर्णयों में पीड़ितों के अधिकारों को मजबूत किया है –
जैसे Delhi Domestic Workers Case, Nipun Saxena v. Union of India (महिला सुरक्षा), आदि में पुनर्वास, गोपनीयता और मुआवज़ा सुनिश्चित किया गया। न्यायपालिका ने Section 357A CrPC के कार्यान्वयन पर भी बल दिया है।
56. सामूहिक बलात्कार के मामलों में पीड़ित की रक्षा के लिए क्या प्रावधान हैं?
- गोपनीयता बनाए रखना,
- इन-कैमरा कार्यवाही,
- मनोवैज्ञानिक परामर्श,
- मुआवज़ा योजना,
- फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई,
- Nirbhaya Fund के अंतर्गत पुनर्वास,
ये सभी उपाय पीड़िता को न्याय और सुरक्षा प्रदान करने हेतु लागू किए गए हैं।
57. Probation Officer की भूमिका क्या होती है?
Probation Officer न्यायालय के आदेश के अनुसार दोषी की निगरानी करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दोषी निर्धारित शर्तों का पालन कर रहा है। वह अपराधी को परामर्श, समाज में पुनर्वास, रोजगार से जोड़ने आदि में सहायता करता है। उसकी रिपोर्ट पर ही Probation को जारी या समाप्त करने का निर्णय लिया जाता है।
58. अपराध शिकार महिला को न्याय दिलाने में मीडिया की क्या भूमिका है?
मीडिया पीड़ित को आवाज़ देने, जनजागरूकता फैलाने और प्रशासन को उत्तरदायी बनाने का माध्यम हो सकता है। परंतु गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिंग, पहचान उजागर करना, और सनसनी फैलाना पीड़िता को नुकसान भी पहुँचा सकता है। अतः मीडिया को संयम और गोपनीयता बनाए रखते हुए संवेदनशील भूमिका निभानी चाहिए।
59. कैदी के पुनर्वास में NGO की भूमिका क्या है?
NGO जेलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परामर्श, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कानूनी सहायता प्रदान करते हैं। वे जेल से छूटे अपराधियों को समाज में पुनः स्थापित करने में सहायता करते हैं – जैसे रोजगार दिलवाना, परिवार से पुनः जोड़ना और मानसिक स्वास्थ्य सेवा देना। ये संस्थाएं सरकार और समाज के बीच सेतु का कार्य करती हैं।
60. भारत में मृत्युदंड के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?
पक्ष में तर्क:
– यह गंभीर अपराधों के लिए प्रतिरोधक है।
– पीड़ित के परिजनों को न्याय की अनुभूति देता है।
विपक्ष में तर्क:
– सुधार की संभावना समाप्त हो जाती है।
– न्यायिक भूल का खतरा।
– यह मानवाधिकारों के विरुद्ध है।
भारत में Supreme Court ने इसे केवल “rarest of rare” मामलों में उचित माना है।
61. अपराध के शिकार वृद्धजन के लिए क्या उपाय हैं?
- वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007,
- पुलिस में वरिष्ठ नागरिक सेल,
- HelpAge India जैसे NGO,
- हेल्पलाइन (1090/14567),
- पेंशन योजना और कानूनी सहायता।
इन सभी उपायों से वृद्धजन की सुरक्षा, गरिमा और न्याय सुनिश्चित किया जाता है।
62. भारत में पीड़ित न्याय की दशा कैसी है?
हालाँकि भारत में पीड़ितों के लिए कई विधिक प्रावधान हैं (जैसे Section 357A CrPC, POCSO Act, DV Act), परंतु व्यवहारिक स्तर पर कई कमियाँ हैं – जैसे मुआवज़ा में देरी, पीड़ित के साथ दुर्व्यवहार, न्याय प्रक्रिया में भागीदारी की कमी आदि। सुधार हेतु विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को समन्वय करना होगा।
63. सुधारात्मक न्याय का उदाहरण दीजिए।
सुधारात्मक न्याय में अपराधी को समाज के लिए उपयोगी बनाया जाता है। जैसे – किसी युवक द्वारा चोरी करने पर उसे जेल भेजने की बजाय उसे 6 महीने की सामुदायिक सेवा और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके। इस प्रकार न्याय से न केवल सजा बल्कि सुधार भी होता है।
64. अपराध के पीड़ित बच्चों के लिए परामर्श सेवा क्यों आवश्यक है?
अपराध के कारण बच्चे मानसिक आघात, डर, अविश्वास, और PTSD जैसे समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं। परामर्श सेवा उन्हें सुरक्षित वातावरण, आत्मबल, और धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौटने में सहायता करती है। प्रशिक्षित परामर्शदाता बच्चों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को समझकर सहानुभूति से मार्गदर्शन करते हैं।
65. भारत में पीड़ित सहायता के क्षेत्र में सुधार के सुझाव दीजिए।
- मुआवज़ा योजना का प्रभावी क्रियान्वयन,
- हर जिले में विक्टिम हेल्प सेंटर,
- पीड़ितों के लिए कानूनी और मानसिक स्वास्थ्य सेवा,
- साक्ष्य रिकॉर्डिंग में संवेदनशीलता,
- फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या बढ़ाना,
- पीड़ित सहायता कोष की निगरानी।
इन उपायों से भारत में पीड़ित उन्मुख न्याय प्रणाली को सशक्त किया जा सकता है।
66. अपराध पीड़ितों के लिए विधिक सहायता का महत्व क्या है?
अपराध पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए विधिक सहायता (Legal Aid) अत्यंत आवश्यक है। अक्सर पीड़ित गरीब, अशिक्षित या कमजोर वर्ग से होते हैं जिन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती। विधिक सहायता उन्हें कानून की जानकारी देने, मुकदमा लड़ने, शिकायत दर्ज कराने और मुआवजा प्राप्त करने में सहायता करती है। यह संवैधानिक अधिकार है (अनुच्छेद 39A)।
67. अपराधियों में पुनर्वृत्ति (Recidivism) के कारण क्या हैं?
- समाज द्वारा अस्वीकार किया जाना,
- बेरोजगारी और गरीबी,
- मानसिक अस्थिरता,
- अपराधियों का गिरोह या संगठित नेटवर्क,
- जेल में सुधारात्मक उपायों की कमी।
जब अपराधी को समाज में पुनः स्थान नहीं मिलता, तो वह पुनः अपराध की ओर लौट जाता है।
68. मुआवज़ा योजना के क्रियान्वयन में क्या समस्याएँ हैं?
- योजना की जटिल प्रक्रिया,
- अधिकारियों की असंवेदनशीलता,
- पीड़ित को जानकारी का अभाव,
- समय पर राशि का भुगतान न होना,
- भ्रष्टाचार और कागजी कार्रवाई।
सरकारी तंत्र को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाकर इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
69. दण्डशास्त्र का उद्देश्य क्या होना चाहिए – सजा या सुधार?
दण्डशास्त्र का आदर्श उद्देश्य सुधार होना चाहिए। सजा केवल अपराध को रोकने का एक तरीका है, लेकिन यदि सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाए तो अपराधी को समाज का उपयोगी नागरिक बनाया जा सकता है। यह पुनरावृत्ति को रोकने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में सहायक होता है।
70. बाल यौन अपराधों से निपटने हेतु POCSO अधिनियम की विशेषताएँ क्या हैं?
- बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की स्पष्ट परिभाषा,
- विशेष अदालतों की स्थापना,
- इन-कैमरा कार्यवाही,
- पीड़ित की पहचान की गोपनीयता,
- अपराध की रिपोर्टिंग अनिवार्य,
- मनोवैज्ञानिक सहायता की व्यवस्था।
यह कानून बाल पीड़ितों को केंद्र में रखकर न्याय सुनिश्चित करता है।
71. अपराध पीड़ितों के लिए FAST TRACK COURT का क्या महत्व है?
Fast Track Courts त्वरित न्याय की दिशा में एक प्रयास हैं। पीड़ितों को लंबी और मानसिक रूप से थकाऊ प्रक्रिया से गुजरना न पड़े, इसके लिए ये विशेष न्यायालय बनाए गए हैं। विशेष रूप से बलात्कार, POCSO, घरेलू हिंसा जैसे मामलों में इनका महत्व अधिक है।
72. सामुदायिक आधारित दण्ड प्रणाली क्या है?
यह प्रणाली अपराधियों को जेल भेजने की बजाय समाज के भीतर रखकर दण्ड देने पर आधारित है। जैसे – Probation, Community Service, Open Prisons आदि। इससे अपराधी समाज से अलग नहीं होता, सुधार की संभावना अधिक होती है और जेलों पर बोझ भी घटता है।
73. पीड़ित को न्याय से वंचित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- न्यायिक प्रक्रिया में देरी,
- भ्रष्टाचार,
- पुलिस की निष्क्रियता,
- सामाजिक दबाव और डर,
- कानून की जानकारी का अभाव।
इन कारकों को समाप्त किए बिना पीड़ित-उन्मुख न्याय संभव नहीं।
74. पीड़ित सहायता केंद्र (Victim Assistance Centres) की आवश्यकता क्यों है?
ये केंद्र पीड़ित को एक ही स्थान पर कानूनी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सा, परामर्श और मुआवज़ा सहायता प्रदान करते हैं। इससे पीड़ित को बार-बार अलग-अलग संस्थाओं के चक्कर नहीं काटने पड़ते। यह प्रणाली पीड़ित को न्याय तक शीघ्र पहुँचाने में सहायक है।
75. दण्ड का आर्थिक सिद्धांत (Economic Theory of Punishment) क्या है?
इस सिद्धांत के अनुसार दण्ड का उद्देश्य केवल प्रतिशोध नहीं बल्कि समाज की भलाई है। यदि किसी अपराध को रोकने में दण्ड की लागत अधिक है और लाभ कम, तो वह दण्ड अनुचित है। इसलिए सजा का निर्धारण आर्थिक और सामाजिक संतुलन के आधार पर होना चाहिए।
76. भारत में अपराध पीड़ितों के लिए नीति निर्माण में कौन-कौन सी संस्थाएँ कार्यरत हैं?
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
- राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण
- महिला आयोग, बाल अधिकार आयोग
- विभिन्न NGOs और हेल्पलाइन
ये संस्थाएं पीड़ितों को सहायता, जागरूकता, पुनर्वास और कानूनी समर्थन प्रदान करती हैं।
77. अपराधियों के लिए शिक्षा क्यों जरूरी है?
शिक्षा अपराधी को आत्मविश्लेषण, नैतिकता और वैकल्पिक जीवन का मार्ग दिखाती है। शिक्षित अपराधी में सुधार और पुनर्वास की संभावना अधिक होती है। जेलों में शिक्षा कार्यक्रमों से अपराध दर में गिरावट और पुनरावृत्ति की दर में कमी आती है।
78. महिला कैदियों के बच्चों के लिए क्या व्यवस्था होनी चाहिए?
महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चों के लिए विशेष आवास, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। बाल अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें उपयुक्त देखभाल मिलना आवश्यक है। कुछ जेलों में बाल संरक्षण गृह की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई है।
79. पीड़ितों के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता कितनी महत्वपूर्ण है?
अपराध के बाद पीड़ित मानसिक आघात, अवसाद, PTSD आदि से ग्रसित हो सकते हैं। उचित परामर्श से वे भय, ग़लतफहमी, आत्मग्लानि से बाहर आ सकते हैं। यह उनके आत्मविश्वास, सामाजिक पुनर्स्थापन और न्याय की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक होता है।
80. अपराध और दण्ड में असमानता से पीड़ित पर क्या प्रभाव पड़ता है?
यदि अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा नहीं मिलती, तो पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता। इससे समाज में अविश्वास, निराशा, प्रतिशोध की भावना और कानून के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। दण्ड की निष्पक्षता, पारदर्शिता और समानता अत्यंत आवश्यक है।
81. अपराधियों के सामाजिक पुनर्वास में समाज की भूमिका क्या है?
समाज यदि अपराधी को स्वीकार करे, उसे रोजगार, सम्मान और पुनः जीवन जीने का अवसर दे, तभी वह सुधर सकता है। सामाजिक भेदभाव, उपेक्षा और बहिष्कार अपराध को बढ़ावा दे सकते हैं। समाज का दायित्व है कि वह सुधार की प्रक्रिया में सहयोग दे।
82. भारत में दण्ड व्यवस्था की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?
- जेलों की भीड़,
- धीमी न्याय प्रक्रिया,
- सुधारात्मक कार्यक्रमों की कमी,
- पुनरावृत्ति की अधिकता,
- मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी।
इन समस्याओं को दूर किए बिना न्याय प्रणाली को प्रभावी नहीं बनाया जा सकता।
83. “दण्ड का मानवीकरण” (Humanisation of Punishment) क्या है?
यह विचार सजा को मानवीय दृष्टिकोण से देखने पर बल देता है। सजा का उद्देश्य प्रतिशोध नहीं बल्कि सुधार होना चाहिए। इसमें कठोर दंड की जगह शिक्षा, चिकित्सा, परामर्श और पुनर्वास को प्राथमिकता दी जाती है। यह दृष्टिकोण आधुनिक दण्डशास्त्र का आधार बनता जा रहा है।
84. अपराध पीड़ितों के लिए राष्ट्रीय नीति (National Policy for Victims) की आवश्यकता क्यों है?
भारत में पीड़ितों के लिए एक समग्र और राष्ट्रीय नीति का अभाव है। अलग-अलग राज्य अपनी योजनाएँ चलाते हैं, जिससे असमानता और भ्रम की स्थिति बनती है। एक एकीकृत राष्ट्रीय नीति पीड़ितों को समान अधिकार, सहायता और मुआवज़ा दिलाने में सहायक होगी।
85. विक्टिमोलॉजी और क्रिमिनोलॉजी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
Criminology अपराधी और अपराध के कारणों का अध्ययन करता है, जबकि Victimology अपराध पीड़ित और उसके अधिकारों, अनुभवों तथा न्याय की आवश्यकता पर केंद्रित होता है। Victimology न्याय प्रणाली को पीड़ित-केंद्रित बनाने की दिशा में कार्य करता है।
86. दण्डशास्त्र के विकास में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका क्या है?
संयुक्त राष्ट्र, Amnesty International, Human Rights Watch जैसे संगठन सजा की मानवीयता, मृत्युदंड विरोध, कैदियों के अधिकार, और पीड़ितों के अधिकारों पर कार्य करते हैं। इनका योगदान दण्डशास्त्र को वैश्विक स्तर पर सुधारात्मक व मानवीय बनाने में महत्वपूर्ण है।
87. अपराध पीड़ितों के पुनर्वास में राज्य की भूमिका क्या है?
राज्य का कर्तव्य है कि वह अपराध पीड़ितों के लिए पुनर्वास की समुचित व्यवस्था करे। इसमें वित्तीय मुआवज़ा, मानसिक व सामाजिक परामर्श, चिकित्सा सेवा, अस्थायी आवास और कानूनी सहायता जैसे उपाय शामिल हैं। CrPC की धारा 357A के तहत राज्य सरकारें पीड़ित मुआवजा योजनाएं संचालित करती हैं। न्यायपालिका के निर्देशों के अनुरूप, राज्य को संवेदनशील और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
88. सुधारात्मक दण्ड के मुख्य प्रकार क्या हैं?
सुधारात्मक दंड वे होते हैं जिनका उद्देश्य अपराधी को बदलना होता है। इसके प्रकार:
- Probation – जेल भेजे बिना निगरानी में छोड़ना,
- Parole – आचरण सुधार पर अस्थायी रिहाई,
- Open Prisons,
- Community Service,
- Counselling & Rehabilitation Programs,
- Educational & Vocational Training।
इनसे अपराधी को समाज से जोड़ने में मदद मिलती है।
89. पीड़ितों को मुआवजा न मिलने के दुष्परिणाम क्या हैं?
जब पीड़ितों को समय पर मुआवजा नहीं मिलता, तो वे दोहरी पीड़ा सहते हैं – एक अपराध की और दूसरी न्याय प्रणाली की उदासीनता की। इससे उनमें व्यवस्था के प्रति अविश्वास बढ़ता है, मानसिक आघात गहरा होता है और सामाजिक पुनर्स्थापन कठिन हो जाता है। कई बार वे न्याय की प्रक्रिया से ही विमुख हो जाते हैं।
90. जेल में सुधारात्मक गतिविधियों की आवश्यकता क्यों है?
जेल को केवल दंड स्थल नहीं, बल्कि सुधार गृह होना चाहिए। सुधारात्मक गतिविधियाँ जैसे – शिक्षा, कुटीर उद्योग, ध्यान/योग, मनोवैज्ञानिक परामर्श, और पुनर्वास प्रशिक्षण – अपराधी को आत्मविश्लेषण और आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करती हैं। इससे समाज में दोबारा स्थापित होना आसान होता है।
91. पीड़ित को ‘द्वितीयक पीड़न’ (Secondary Victimization) से कैसे बचाया जा सकता है?
द्वितीयक पीड़न तब होता है जब न्याय प्रणाली, पुलिस, मीडिया या समाज खुद पीड़ित को दोषी ठहराते हैं या संवेदनहीन व्यवहार करते हैं। इससे बचाव हेतु:
- पुलिस और न्यायाधीशों की संवेदनशीलता,
- गोपनीयता की रक्षा,
- मीडिया को निर्देश,
- परामर्श सहायता,
- विशेष प्रशिक्षण आवश्यक है।
92. किशोर अपराधियों के सुधार हेतु विशेष न्याय प्रणाली की आवश्यकता क्यों है?
किशोरों में सुधार की संभावना अधिक होती है। इसलिए उनके लिए अलग Juvenile Justice System की व्यवस्था की गई है। इसमें सुधार गृह, परामर्श, शिक्षा और सामाजिक पुनर्स्थापन पर बल दिया जाता है। कठोर दंड देने के बजाय उन्हें समाज के साथ जोड़ने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
93. पीड़ित और अपराधी के बीच सुलह की भूमिका क्या हो सकती है?
Restorative Justice में पीड़ित और अपराधी के बीच संवाद और सुलह को महत्व दिया जाता है। इससे अपराधी अपने कार्य की जिम्मेदारी लेता है और पीड़ित को संतोष मिलता है। यह प्रक्रिया अपराध के भावनात्मक पहलू को भी संबोधित करती है और समाज में पुनः विश्वास निर्माण करती है।
94. कारावास के स्थान पर वैकल्पिक दंड का महत्त्व क्या है?
छोटे अपराधों में कैद देने के स्थान पर वैकल्पिक दंड (जैसे probation, community service, फाइन) अधिक प्रभावी हो सकते हैं। इससे जेलों की भीड़ कम होती है, राज्य का खर्च घटता है, और अपराधी समाज से कटा हुआ महसूस नहीं करता। इससे पुनरावृत्ति की संभावना भी कम होती है।
95. न्यायिक सक्रियता का पीड़ित अधिकारों की रक्षा में क्या योगदान है?
भारतीय न्यायपालिका ने अनेक फैसलों में पीड़ितों को मुआवजा दिलाने, उनकी पहचान सुरक्षित रखने और संवेदनशील सुनवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। जैसे Bodhisattwa Gautam v. Subhra Chakraborty मामले में बलात्कार पीड़िता को अंतरिम मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया। इससे पीड़ित अधिकारों को संवैधानिक संरक्षण मिला है।
96. पीड़ितों के लिए डिजिटल पोर्टल्स और तकनीकी उपायों की क्या उपयोगिता है?
डिजिटल पोर्टल जैसे e-Courts, NALSA Portal, 112 Helpline, One Stop Centres, आदि से पीड़ितों को शिकायत दर्ज करने, केस की स्थिति देखने, और सहायता प्राप्त करने में सुविधा होती है। तकनीक के माध्यम से पारदर्शिता, गति और जवाबदेही बढ़ाई जा सकती है।
97. “पीड़ित अधिकारों का चार्टर” क्या है?
यह एक प्रस्तावित दस्तावेज है जो अपराध पीड़ितों को उनके मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है – जैसे सूचना का अधिकार, मुआवजा, सुरक्षा, परामर्श, त्वरित न्याय, और सम्मानजनक व्यवहार। कई देशों में यह चार्टर लागू है, भारत में भी इसकी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है।
98. अपराध और सजा के बीच संतुलन क्यों आवश्यक है?
यदि अपराध की तुलना में सजा अत्यधिक कठोर या अत्यधिक हल्की हो, तो यह न्याय की भावना को ठेस पहुंचाता है। संतुलन से ही न्याय में निष्पक्षता और समाज का विश्वास बना रहता है। यह अपराधी में सुधार की संभावना भी बनाए रखता है और पीड़ित को संतोष प्रदान करता है।
99. पीड़ितों के लिए समाजिक सहयोग की क्या भूमिका है?
समाज पीड़ित को स्वीकार कर, उसकी मदद कर, और न्याय की राह में साथ देकर उसे फिर से सशक्त बना सकता है। सामाजिक बहिष्कार या दोषारोपण पीड़ित को और अधिक आघात पहुंचाता है। अतः समाज को संवेदनशील, सहायक और समझदार भूमिका निभानी चाहिए।
100. भारत में दण्ड नीति में सुधार के सुझाव दीजिए।
- सजा की वैकल्पिक प्रणाली को बढ़ावा,
- जेल सुधार,
- पुनर्वास और परामर्श केंद्रों की स्थापना,
- मृत्युदंड की पुनर्समीक्षा,
- फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या में वृद्धि,
- पीड़ित केंद्रित नीतियों का निर्माण,
- समाज-आधारित पुनःस्थापन।
दण्ड नीति को मानवीय, व्यावहारिक और न्यायसंगत बनाना समय की मांग है।