Order XXI Rule 90 CPC : नीलामी बिक्री को बाद में उन आधारों पर चुनौती नहीं दी जा सकती जिन्हें नीलामी घोषणा (Proclamation) से पहले उठाया जा सकता था — सुप्रीम कोर्ट
सिविल प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code, 1908) में Order XXI निष्पादन (Execution) से संबंधित विस्तृत प्रावधानों को नियंत्रित करता है। इनमें Rule 90 नीलामी बिक्री (Auction Sale) को रद्द करने (setting aside sale) के लिए आवेदन करने के महत्वपूर्ण आधार बताता है — जैसे अनियमितता (irregularity), धोखाधड़ी (fraud), या गंभीर प्रकृति की कोई प्रक्रिया संबंधी कमी।
हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है कि:
नीलामी बिक्री को उन आधारों पर बाद में चुनौती नहीं दी जा सकती, जिन्हें नीलामी के घोषणा–पत्र (Sale Proclamation) से पहले ही उठाया जा सकता था।
इस फैसले ने Execution Proceedings में कई वर्षों से चल रहे विवाद को स्पष्ट किया है और यह बताया है कि देनदार (Judgment Debtor) अपनी चूक (laches) या चुप्पी (silence) का फायदा बाद में नहीं उठा सकता।
यह लेख इस ऐतिहासिक निर्णय का विस्तृत कानूनी विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. परिचय : Order XXI Rule 90 क्या है?
Order XXI Rule 90 CPC के अनुसार:
- कोई भी व्यक्ति जो नीलामी बिक्री से प्रभावित है,
- यह दावा करते हुए कि बिक्री में भारी अनियमितता, धोखाधड़ी, नियमों का उल्लंघन, या महत्वपूर्ण प्रक्रिया त्रुटि है,
- कोर्ट में बिक्री रद्द करने का आवेदन कर सकता है।
लेकिन इतने वर्षों में अदालतों में यह विवाद बना रहा कि:
- क्या Debtor हर प्रकार की आपत्ति बाद में उठाकर नीलामी को चुनौती दे सकता है?
- या केवल वही grounds मान्य होंगे जो बिक्री के समय सामने आए?
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में इस सिद्धांत को दृढ़ता से स्थापित किया है कि बाद में आपत्ति उठाने की अनुमति तभी होगी जब वह आपत्ति proclamation से पहले नहीं उठाई जा सकती थी।
2. केस का पृष्ठभूमि (Facts of the Case)
मामले में:
- एक डिक्री हो चुकी थी,
- भुगतान न करने पर संपत्ति की नीलामी तय हुई,
- Sale Proclamation जारी हुआ,
- निर्धारित समय पर Auction Sale संपन्न हुई।
देनदार ने:
- Sale Proclamation के समय किसी भी त्रुटि पर आपत्ति नहीं उठाई,
- न नीलामी रोकने का प्रयास किया,
- न किसी प्रक्रिया अनियमितता पर आवेदन किया।
लेकिन बिक्री संपन्न होने के बाद उसने Rule 90 CPC के तहत Auction Sale को रद्द करने का आवेदन दिया, यह कहकर:
- प्रॉपर्टी का गलत मूल्यांकन हुआ,
- बिक्री की नोटिस ठीक से नहीं दी गई,
- नीलामी की प्रक्रिया में अनियमितता थी।
निचली अदालतों ने उसकी आपत्तियों को खारिज कर दिया।
अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
3. सुप्रीम कोर्ट का मुख्य निर्णय (Key Holding)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा:
“Auction Sale को केवल उन्हीं आधारों पर चुनौती दी जा सकती है जो नीलामी के बाद सामने आए हों; ऐसे आधार नहीं माने जाएंगे जिन्हें Proclamation से पहले उठाया जा सकता था।”
अर्थात:
- Proclamation पर कोई आपत्ति नहीं = बाद में वह ground उपलब्ध नहीं
- Debtor ने चुप्पी साधी = वह ground waived माना जाएगा
- बाद में ‘undervaluation’, ‘wrong description’, ‘notice defect’ जैसे grounds स्वीकार नहीं होंगे
Court ने यह मानने से इंकार किया कि Debtor को नीलामी के बाद हर प्रकार का हक रहता है।
4. Supreme Court का तर्क (Reasoning of the Court)
1. Execution Proceedings में Finality बहुत महत्वपूर्ण है
Court ने कहा कि:
- Execution का उद्देश्य Decree का शीघ्र क्रियान्वयन है
- यदि Debtor बाद में अनंत आपत्तियाँ उठाता रहेगा
- तो Execution कभी समाप्त ही नहीं होगा
इसलिए Debtors की “delaying tactics” रोकना आवश्यक है।
2. Debtor नीलामी रोकने का अवसर का उपयोग करने में विफल रहा
Court ने कहा कि Debtor:
- Proclamation stage पर objections उठा सकता था
- Court से reserve price तय करवाने या valuation report पर पुनर्विचार की मांग कर सकता था
- Notice defects पर तुरंत relief ले सकता था
लेकिन ऐसा नहीं किया।
इसका परिणाम यह कि मौन (silence) को “waiver” माना जाएगा।
3. Rule 90 केवल तभी लागू होगा जब irregularity वास्तविक और गंभीर हो
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- हर procedural defect से sale नहीं रद्द होती
- irregularity तब प्रभावशाली है जब उससे substantial injury हो
- “Substantial injury” साबित करना Debtor की जिम्मेदारी है
सिर्फ undervaluation या technical error पर्याप्त नहीं है।
4. Post-sale objections को सीमित करना न्याय और दक्षता के लिए आवश्यक
Court का कहना था:
- Auction Sale बड़े पैमाने पर public interest में होती है
- Auction purchaser के अधिकारों की रक्षा भी न्याय का हिस्सा है
- यदि Debtor sale के बाद objection उठाएगा तो purchaser का अधिकार अनिश्चित रहेगा
इसलिए Post-sale objections सीमित होने चाहिए।
5. निर्णय का कानूनी महत्व
यह फैसला Execution Proceedings में निम्नलिखित सिद्धांत स्थापित करता है:
1. Pre-sale objections अनिवार्य हैं
Debtor को यह अधिकार तभी मिलता है जब वह समय पर objection उठाए।
2. Post-sale challenge केवल rare मामलों में स्वीकार होगा
जैसे—
- स्पष्ट धोखाधड़ी (Fraud)
- जानबूझकर की गई बड़ी irregularity
- Proclamation के बाद की घटना
अन्यथा सामान्य grounds स्वीकार नहीं होंगे।
3. Auction Purchaser की security को संरक्षण
Court ने कहा कि bidder जनता का प्रतिनिधि होता है और उसे कानून की सुरक्षा मिलनी चाहिए।
4. Decree-holder का अधिकार संरक्षित
Execution Proceedings का मकसद Decree की प्राप्ति है, न कि Debtor को अनंत अवसर देना।
6. इस निर्णय का देनदारों पर प्रभाव
(1) अब चुप रहने की रणनीति नहीं चलेगी
Debtors अब:
- Proclamation stage पर
- Valuation stage पर
- Notice stage पर
आपत्तियाँ उठाए बिना बाद में sale को challenge नहीं कर सकेंगे।
(2) Execution Proceedings और तेज़ होंगी
Debtor की देरी वाली याचिकाएँ घटेंगी।
7. Auction Purchasers पर प्रभाव
(1) Sale Certificate अधिक सुरक्षित
अब purchasers को sale cancellation का कम जोखिम होगा।
(2) निवेश अनिश्चितता कम होगी
यह निर्णय bidders के confidence को बढ़ाता है।
8. Courts के लिए मार्गदर्शन
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट दिशा दी कि:
- Rule 90 applications को सख्ती से परखा जाए
- “Substantial injury” के बिना sale न रद्द हो
- Debtor की लापरवाही या देरी को आधार न बनाया जाए
9. संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय (Precedents referred)
Court ने कई पुराने निर्णयों का हवाला दिया:
- Desh Bandhu Gupta v. N.L. Anand (1994)
- Saheb Khan v. Mohd. Yusufuddin (2006)
- Janak Raj v. Gurdial Singh (1967)
इन सभी में सिद्धांत समान था — कि नीलामी को challenge करने के लिए गंभीर, वास्तविक प्रक्रिया त्रुटि और सब्सटैंशियल injury आवश्यक है।
10. निष्कर्ष : सुप्रीम कोर्ट का संदेश स्पष्ट
इस निर्णय से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्पष्ट हो गया है:
नीलामी बिक्री को चुनौती देने का अधिकार असीमित नहीं है।
वह केवल उन्हीं मामलों में स्वीकार होगा जहाँ वास्तविक अनियमितता हो जिसे Debtor समय पर नहीं जान सकता था।
Court ने यह भी स्पष्ट कर दिया:
- Debtor द्वारा Delay = Waiver
- Silence = Consent
- बाद में objection = कमजोर ground
यह फैसला Execution Proceedings में clarity, certainty और efficiency की दिशा में एक बड़ा कदम है।