“Order 6 Rule 17 CPC के अंतर्गत लिखित कथन (Written Statement) में संशोधन का प्रयास: Jagdish v. Harish Chander (2025) के आलोक में न्यायालय की विवेचना”
🔷 प्रस्तावना:
नागरिक वादों में Order 6 Rule 17 CPC एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो वादपत्रों (pleadings) में संशोधन की अनुमति देता है। परंतु, इसके प्रावधान में वर्ष 2002 में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया जिसके अनुसार यदि वाद का ट्रायल (Trial) प्रारंभ हो चुका हो तो संशोधन तभी स्वीकृत किया जा सकता है जब न्यायालय यह माने कि उचित परिश्रम (due diligence) के बावजूद पक्षकार वाद प्रारंभ होने से पहले संशोधन नहीं कर सका।
🔷 केस शीर्षक:
Jagdish v. Harish Chander and Others, 2025 PbHr (CR-2000-2025)
मामला: Jagdish v. Harish Chander and Others, 2025 PbHr (CR-2000-2025)
प्रावधान: Order 6 Rule 17 CPC – Written Statement में संशोधन
निर्णय देने वाली न्यायालय:
👉 पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (Punjab and Haryana High Court)
यह निर्णय पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा 2025 में पारित किया गया है, जो सिविल रिवीजन याचिका संख्या CR-2000-2025 के अंतर्गत आया था।
🔷 मुख्य तथ्य:
- प्रतिवादी ने एक आवेदन Order 6 Rule 17 CPC के तहत दाखिल किया, जिसमें उसने अपने मूल लिखित कथन (Written Statement) में भ्रमवश “धोखाधड़ी (fraud)” का महत्वपूर्ण प्रतिरक्षण (defence) न लेने की बात कही।
- प्रतिवादी अब चाह रहा था कि उसे धोखाधड़ी का प्रतिरक्षण जोड़ने की अनुमति दी जाए।
🔷 न्यायालय का निर्णय:
- न्यायालय ने यह देखा कि वाद का ट्रायल पूरा हो चुका है और पक्षकारों की गवाही हो चुकी है।
- Order 6 Rule 17 के प्रोविज़ो के अनुसार, जब एक बार ट्रायल प्रारंभ हो जाता है, तब संशोधन केवल तभी स्वीकार किया जा सकता है जब यह स्पष्ट हो कि उचित परिश्रम के बावजूद पक्षकार संशोधन नहीं कर सका।
- इस मामले में “धोखाधड़ी का प्रतिरक्षण” पहले से ही प्रतिवादी के संज्ञान में था और उसे मूल लिखित कथन में शामिल किया जा सकता था।
- न्यायालय ने यह माना कि यदि इस स्तर पर संशोधन की अनुमति दी जाती है, तो इससे पूरे ट्रायल की प्रक्रिया फिर से शुरू करनी पड़ेगी (de novo trial) जो न्यायप्रणाली की दक्षता के विरुद्ध है।
🔷 निष्कर्ष:
न्यायालय ने प्रतिवादी का संशोधन आवेदन अस्वीकार कर दिया क्योंकि:
- यह प्रोविज़ो के विरुद्ध था।
- आवश्यक due diligence नहीं दिखाई गई थी।
- इससे मुकदमे में अनावश्यक देरी और पुनः परीक्षण की आवश्यकता उत्पन्न होती।
🔷 विधिक महत्व (Legal Significance):
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि Order 6 Rule 17 के तहत संशोधन का अधिकार असीमित नहीं है। संशोधन का उद्देश्य केवल न्याय को सुगम बनाना है, ना कि मुकदमे को अनिश्चितकाल तक खींचना।
🔷 प्रमुख बिंदु:
- Order 6 Rule 17 CPC वादपत्रों में संशोधन का प्रावधान देता है।
- प्रोविज़ो (Proviso) कहता है कि ट्रायल शुरू होने के बाद केवल due diligence की स्थिति में संशोधन स्वीकार होगा।
- यदि संशोधन से वाद की प्रकृति या प्रक्रिया में fundamental change आता है, तो उसे रोका जा सकता है।
- Jagdish v. Harish Chander (2025) यह सिद्धांत स्थापित करता है कि देरी और जानबूझकर छुपाए गए तथ्यों के आधार पर संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती।