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Order 33 CPC (J&K Code) – Requirements for Pleading Indigency Must Be Strictly Complied With Case Analysis: Dr. Anita Baroo W/o Dr. Kulbhushan Pandotra Versus Nahida Bibi W/o Mohd. Hanif and Others

Order 33 CPC (J&K Code) – Requirements for Pleading Indigency Must Be Strictly Complied With
Case Analysis: Dr. Anita Baroo W/o Dr. Kulbhushan Pandotra Versus Nahida Bibi W/o Mohd. Hanif and Others

परिचय

भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code, 1908) का उद्देश्य न्याय की सुलभता और समान अवसर सुनिश्चित करना है। न्याय तक पहुँच (Access to Justice) हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार माना जाता है। किन्तु, जब कोई व्यक्ति निर्धन (indigent) होता है और वह न्यायालय शुल्क (Court Fee) अदा करने में असमर्थ रहता है, तो उसके लिए विशेष प्रावधान Order 33 CPC में दिए गए हैं।

जम्मू एवं कश्मीर राज्य (अब केन्द्र शासित प्रदेश) में लागू J&K Civil Procedure Code में भी Order 33 का यही स्वरूप है। इसमें यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति वास्तव में निर्धन है, तो उसे “sue as an indigent person” का अधिकार मिल सकता है।

लेकिन, यह छूट केवल तभी दी जा सकती है जब आवेदक यह साबित करे कि वह वास्तव में फीस अदा करने में असमर्थ है। इसलिए, indigency के pleading की आवश्यकताओं का कड़ाई से अनुपालन आवश्यक माना गया है।

इसी कानूनी सिद्धांत को स्पष्ट करने वाला महत्वपूर्ण निर्णय है –
Dr. Anita Baroo W/o Dr. Kulbhushan Pandotra Versus Nahida Bibi W/o Mohd. Hanif and Others.


मामले के तथ्य (Facts of the Case)

  • वादिनी (Plaintiff) डॉ. अनीता बरू ने न्यायालय में मुकदमा दायर करने की कोशिश की।
  • उन्होंने प्रार्थना की कि उन्हें Order 33 CPC के तहत indigent person मानकर अदालत शुल्क से छूट दी जाए।
  • वादिनी का कहना था कि वह मुकदमा चलाने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।
  • प्रतिवादी (Defendants), जिनमें नाहिदा बीबी और अन्य शामिल थे, ने इस पर आपत्ति की। उनका तर्क था कि वादिनी वास्तव में संपन्न हैं और अदालत शुल्क अदा करने में सक्षम हैं।
  • ट्रायल कोर्ट ने वादिनी का आवेदन स्वीकार कर लिया और उन्हें indigent person मान लिया।

प्रतिवादियों ने इस आदेश को चुनौती दी और उच्चतर न्यायालय में मामला पहुँचा।


कानूनी प्रश्न (Legal Issue)

मुख्य प्रश्न यह था कि –

“क्या ट्रायल कोर्ट ने केवल औपचारिक रूप से आवेदन स्वीकार करके गलती की, जबकि वादिनी ने indigency साबित करने के लिए आवश्यक विवरण और तथ्य प्रस्तुत नहीं किए थे?”


प्रासंगिक विधिक प्रावधान (Relevant Provisions)

Order 33 Rule 1 (CPC – J&K Code)

  • कोई भी व्यक्ति, जो आवश्यक न्यायालय शुल्क (court fee) अदा करने में असमर्थ है, वह अदालत से अनुमति प्राप्त कर सकता है कि वह as an indigent person मुकदमा दायर करे।

Explanation to Rule 1

  • “Indigent person” वह है जिसके पास इतनी संपत्ति नहीं है जिससे वह आवश्यक अदालत शुल्क चुका सके।

Order 33 Rule 2 & 3

  • आवेदन (application) में सभी आवश्यक तथ्य और विवरण होना चाहिए, जैसे –
    • संपत्ति का विवरण,
    • आय का स्रोत,
    • चल-अचल सम्पत्ति,
    • बैंक खातों की जानकारी,
    • अन्य वित्तीय साधन।
  • आवेदन पर शपथ (verification) होनी चाहिए।

Rule 5

  • यदि आवेदन में आवश्यक विवरण नहीं है या यदि व्यक्ति वास्तव में indigent नहीं है, तो अदालत उसे खारिज कर सकती है।

न्यायालय का दृष्टिकोण (Court’s Observations)

  1. Indigency को साबित करना आवेदक की जिम्मेदारी है।
    • व्यक्ति को केवल मौखिक रूप से यह कह देने का अधिकार नहीं है कि वह गरीब है।
    • उसे ठोस तथ्य और विवरण प्रस्तुत करने होंगे।
  2. सख्त अनुपालन आवश्यक है।
    • Order 33 CPC के प्रावधानों का शिथिल पालन (casual compliance) पर्याप्त नहीं है।
    • क्योंकि अदालत शुल्क से छूट का सीधा संबंध राजस्व और न्यायिक अनुशासन से है।
  3. ट्रायल कोर्ट की गलती।
    • ट्रायल कोर्ट ने वादिनी का आवेदन यांत्रिक रूप से स्वीकार कर लिया।
    • अदालत ने यह जाँच नहीं की कि क्या वादिनी वास्तव में अदालत शुल्क अदा करने में असमर्थ हैं।
  4. मुकदमेबाजी का दुरुपयोग रोकना।
    • यदि निर्धनता साबित किए बिना कोई भी व्यक्ति अदालत शुल्क से छूट प्राप्त कर ले, तो इसका दुरुपयोग होगा।
    • यह ईमानदार वादियों के अधिकारों के विरुद्ध होगा।

निर्णय (Judgement)

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि Order 33 CPC के तहत indigent person के रूप में वाद दाखिल करने के लिए, सभी आवश्यक विवरण और averments का उल्लेख करना अनिवार्य है।
  • यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो आवेदन defective माना जाएगा और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  • अदालत ने स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट को आवेदन mechanically स्वीकार करने का अधिकार नहीं है।
  • इस आधार पर, ट्रायल कोर्ट का आदेश निरस्त किया गया और मामले को पुनः विचार के लिए भेजा गया।

महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत (Legal Principles Laid Down)

  1. Pleading Indigency का दायित्व
    • आवेदक को अपनी निर्धनता स्पष्ट, ठोस और विस्तृत रूप से बतानी होगी।
  2. Strict Compliance Rule
    • Order 33 CPC का अनुपालन कठोरता से किया जाएगा।
    • Formal या अधूरी pleadings पर indigent status नहीं दिया जा सकता।
  3. Judicial Duty
    • ट्रायल कोर्ट पर यह दायित्व है कि वह सावधानीपूर्वक जांच करे।
    • केवल सहानुभूति या अनुमान के आधार पर निर्णय नहीं दिया जा सकता।
  4. Access to Justice बनाम Abuse of Process
    • कानून का उद्देश्य गरीबों को न्याय दिलाना है, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि सुविधा का दुरुपयोग न हो।

न्यायिक नज़ीरें (Judicial Precedents)

  • Union Bank of India v. Khader International (2001) 5 SCC 22
    • अदालत ने कहा कि indigency साबित करना आवश्यक है, और application में पूरी transparency होनी चाहिए।
  • Mathai M. Paikeday v. C.K. Antony (2011) 13 SCC 174
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि indigent person वह है जिसके पास इतना साधन न हो कि वह मुकदमा दायर करने का खर्च उठा सके।
  • P.K. Kuriakose v. Asgar Shakoor Patel, AIR 2011 SC 308
    • यह दोहराया गया कि mere assertion of poverty पर्याप्त नहीं है।

आलोचनात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)

इस मामले ने यह स्पष्ट किया कि –

  1. सहानुभूति बनाम साक्ष्य
    • अदालतें सहानुभूति के आधार पर निर्णय नहीं दे सकतीं।
    • निर्धनता के लिए documentary proof आवश्यक है।
  2. न्याय और प्रशासनिक संतुलन
    • यदि हर व्यक्ति बिना जांच के indigent घोषित हो जाए, तो राजस्व का नुकसान और झूठे मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी।
    • इसलिए, कानून ने इसे exceptional provision बनाया है।
  3. महिलाओं और निर्धनों के लिए न्याय तक पहुँच
    • इस प्रावधान का असली उद्देश्य है कि महिलाएं, निर्धन और हाशिए पर खड़े लोग भी न्याय पा सकें।
    • परंतु, अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वास्तविक गरीब को ही यह लाभ मिले।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस निर्णय का महत्व यह है कि इसने Order 33 CPC (J&K Code) के तहत indigency pleadings की आवश्यकताओं को सख्ती से लागू करने का सिद्धांत स्थापित किया।

  • कोई भी व्यक्ति केवल दावा करके indigent नहीं बन सकता, बल्कि उसे अपनी संपत्ति, आय और संसाधनों का स्पष्ट विवरण प्रस्तुत करना होगा।
  • ट्रायल कोर्ट को इस पर गहन जांच करनी चाहिए और mechanically (यांत्रिक रूप से) आवेदन स्वीकार नहीं करना चाहिए।

यह केस न्यायिक अनुशासन, पारदर्शिता और न्याय तक समान पहुँच (access to justice) के बीच संतुलन का उत्कृष्ट उदाहरण है।