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Non-Bailable Warrant (NBW): कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक दिशा-निर्देश

Non-Bailable Warrant (NBW): कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक दिशा-निर्देश
(Non-Bailable Warrant: Legal Procedure and Judicial Guidelines)

       भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में वारंट (Warrant) का प्रयोग अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। वारंट दो प्रकार के होते हैं — जमानती वारंट (Bailable Warrant) और ग़ैर-जमानती वारंट (Non-Bailable Warrant – NBW)। इनमें से ग़ैर-जमानती वारंट (NBW) सबसे कठोर कानूनी प्रक्रिया मानी जाती है, क्योंकि इसके जारी होने के बाद अभियुक्त को गिरफ्तार कर सीधे न्यायालय में पेश किया जाता है, और उसे स्वतः जमानत का अधिकार नहीं मिलता। इस लेख में हम NBW की कानूनी प्रक्रिया, न्यायिक दिशा-निर्देश, तथा इसके दुरुपयोग से संबंधित न्यायालयों के विचारों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


🔹 1. ग़ैर-जमानती वारंट (NBW) का अर्थ और उद्देश्य

ग़ैर-जमानती वारंट (NBW) एक ऐसा न्यायालयीय आदेश है जिसके अंतर्गत पुलिस या अन्य अधिकारी को निर्देश दिया जाता है कि वह संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे।
इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त न्यायिक प्रक्रिया से बच न सके। जब अभियुक्त जमानत योग्य अपराधों में भी न्यायालय में उपस्थित नहीं होता, या जानबूझकर फरार रहता है, तब न्यायालय NBW जारी कर सकता है।


🔹 2. कानूनी आधार: आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धाराएँ

NBW की संपूर्ण प्रक्रिया आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में दी गई है। मुख्य धाराएँ इस प्रकार हैं –

  • धारा 70: वारंट जारी करने का स्वरूप और अवधि।
  • धारा 71: वारंट को जमानती या ग़ैर-जमानती बनाने का अधिकार।
  • धारा 72 से 74: वारंट को निष्पादित करने की प्रक्रिया, पुलिस या अन्य अधिकारी की शक्ति।
  • धारा 82 और 83: यदि अभियुक्त NBW जारी होने के बाद भी फरार रहता है, तो उसकी घोषणा भगोड़ा (Proclaimed Offender) के रूप में की जा सकती है, और उसकी संपत्ति कुर्क की जा सकती है।

इस प्रकार NBW, न्यायालय की एक सशक्त प्रक्रिया है जो अभियुक्त को कानूनी जवाबदेही से भागने से रोकती है।


🔹 3. NBW जारी करने की परिस्थितियाँ

न्यायालय केवल विशेष परिस्थितियों में ही NBW जारी करता है, जैसे:

  1. अभियुक्त को बार-बार समन या जमानती वारंट भेजने के बाद भी उपस्थित न होना।
  2. अभियुक्त का जानबूझकर न्यायालय की कार्यवाही से बचना या फरार होना।
  3. गंभीर अपराध जैसे – हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार आदि के मामलों में अभियुक्त का सहयोग न करना।
  4. जमानत रद्द होने के बाद अभियुक्त का गिरफ्तारी से बचना।

न्यायालय सामान्यतः पहले समन, फिर जमानती वारंट और उसके बाद ही ग़ैर-जमानती वारंट (NBW) जारी करता है।


🔹 4. NBW जारी करने की प्रक्रिया

  1. न्यायालय द्वारा आदेश: जब अभियुक्त को उपस्थित कराने के लिए पहले के सभी उपाय विफल हो जाएँ, तो मजिस्ट्रेट NBW जारी कर सकता है।
  2. वारंट का प्रारूप: CrPC की धारा 70 के अनुसार, वारंट लिखित रूप में न्यायाधीश के हस्ताक्षर से जारी किया जाना चाहिए और उस पर न्यायालय की मुहर होनी चाहिए।
  3. निष्पादन: वारंट किसी भी स्थान पर, दिन या रात में, पुलिस अधिकारी द्वारा निष्पादित किया जा सकता है।
  4. अभियुक्त की गिरफ्तारी: गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त को शीघ्रातिशीघ्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है।
  5. जमानत का विचार: चूंकि यह ग़ैर-जमानती वारंट है, इसलिए अभियुक्त को स्वतः जमानत नहीं मिलती; न्यायालय को विवेकाधिकार से जमानत देने या न देने का अधिकार होता है।

🔹 5. न्यायिक दिशा-निर्देश: सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्णय

न्यायालयों ने कई बार NBW जारी करने की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए हैं ताकि इसका दुरुपयोग न हो।

(a) Inder Mohan Goswami v. State of Uttaranchal (2007) 12 SCC 1

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि —

“ग़ैर-जमानती वारंट एक कठोर प्रक्रिया है जिसे केवल अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए।”

न्यायालय को पहले समन और जमानती वारंट जारी करना चाहिए। NBW केवल तब जारी किया जाना चाहिए जब अभियुक्त जानबूझकर प्रक्रिया से बच रहा हो।

(b) Raghuvansh Dewanchand Bhasin v. State of Maharashtra (2012)

इस केस में न्यायालय ने कहा कि NBW जारी करने से पहले अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियुक्त की अनुपस्थिति जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण है।

(c) Sushila Aggarwal v. State (NCT of Delhi), 2020

सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में कहा कि यदि NBW जारी हो चुका है, तो न्यायालय को अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा के लिए परिस्थितियों का संतुलन ध्यान में रखना चाहिए।


🔹 6. अभियुक्त के अधिकार और कानूनी उपाय

NBW जारी होने के बाद भी अभियुक्त के पास कुछ कानूनी अधिकार और उपाय उपलब्ध होते हैं —

  1. आत्मसमर्पण (Surrender): अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित होकर आत्मसमर्पण कर सकता है।
  2. जमानत आवेदन: अभियुक्त न्यायालय से जमानत की याचिका दायर कर सकता है, जिसमें वह अपनी अनुपस्थिति का कारण बता सकता है।
  3. वारंट रद्द करने की याचिका: CrPC की धारा 70(2) के तहत न्यायालय वारंट को रद्द या परिवर्तित कर सकता है, यदि अभियुक्त पर्याप्त कारण प्रस्तुत करे।
  4. संवैधानिक संरक्षण: अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) अभियुक्त को मनमानी गिरफ्तारी से बचाव प्रदान करता है।

🔹 7. NBW का दुरुपयोग और न्यायालय की सावधानी

NBW का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। कई बार पुलिस या वादी पक्ष, अभियुक्त पर दबाव बनाने के लिए NBW जारी कराने का प्रयास करते हैं।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि:

“NBW का प्रयोग केवल तब होना चाहिए जब अभियुक्त का व्यवहार न्यायालय की अवमानना या न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर रहा हो।”

न्यायालय को यह ध्यान रखना चाहिए कि अभियुक्त की स्वतंत्रता संविधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है और केवल न्यायिक कारणों से ही उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।


🔹 8. NBW और मानवाधिकार

भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” की गारंटी देता है।
NBW की प्रक्रिया इस स्वतंत्रता को सीमित करती है, इसलिए यह आवश्यक है कि इसे न्यायिक विवेक और संवैधानिक मर्यादा के साथ प्रयोग किया जाए।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी इस संबंध में स्पष्ट किया है कि गिरफ्तारी के दौरान अभियुक्त के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।


🔹 9. NBW की समाप्ति या निरस्तीकरण (Cancellation of NBW)

CrPC की धारा 70(2) के अनुसार, न्यायालय किसी भी समय अपने द्वारा जारी किए गए वारंट को रद्द कर सकता है।
इसके लिए अभियुक्त को न्यायालय में उपस्थित होकर उचित कारण बताना होता है कि वह क्यों अनुपस्थित था।
यदि न्यायालय संतुष्ट होता है कि अनुपस्थिति जानबूझकर नहीं थी, तो NBW रद्द कर दिया जाता है और अभियुक्त को व्यक्तिगत बांड पर छोड़ा जा सकता है।


🔹 10. व्यावहारिक उदाहरण

मान लीजिए किसी व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला चल रहा है और उसे तीन बार समन भेजे गए, परंतु वह न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ। चौथी बार न्यायालय ने जमानती वारंट जारी किया, फिर भी वह उपस्थित नहीं हुआ।
ऐसी स्थिति में न्यायालय NBW जारी कर सकता है ताकि पुलिस उसे पकड़कर न्यायालय में प्रस्तुत करे।
यदि वह तब भी नहीं आता, तो न्यायालय उसकी संपत्ति कुर्क कर उसे भगोड़ा घोषित कर सकता है (CrPC धारा 82–83)।


🔹 11. निष्कर्ष

ग़ैर-जमानती वारंट (NBW) न्यायालय की एक सशक्त और अनुशासनात्मक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य अभियुक्त को कानून के दायरे में लाना और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावी बनाना है।
हालाँकि, यह एक कठोर उपाय है, इसलिए इसका प्रयोग केवल अंतिम विकल्प (last resort) के रूप में होना चाहिए।

न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि —

  • अभियुक्त की अनुपस्थिति जानबूझकर हो,
  • सभी वैकल्पिक उपाय (समन, जमानती वारंट) असफल हो चुके हों,
  • और NBW जारी करने से अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का अनुचित हनन न हो।

संक्षेप में, NBW न्यायपालिका की एक ऐसी विधिक शक्ति है जो न्यायिक अनुशासन बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है, किंतु इसका प्रयोग न्यायिक विवेक और संवैधानिक सीमाओं में रहकर किया जाना चाहिए।


🔸 सारांश:
NBW एक कठोर न्यायिक आदेश है जो अभियुक्त को न्यायालय में उपस्थित कराने के लिए जारी किया जाता है। इसे केवल विशेष परिस्थितियों में जारी किया जाना चाहिए, जब अभियुक्त बार-बार अनुपस्थित रहे या न्यायिक प्रक्रिया से बचने का प्रयास करे। सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि NBW जारी करते समय न्यायालय को अभियुक्त की स्वतंत्रता और न्याय के हितों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।