शीर्षक:
“Non-Bailable Warrant (NBW): आरोपी को कोर्ट में पेश कराने का अंतिम कानूनी हथियार”
भूमिका
भारतीय न्यायिक प्रणाली में अदालतों के आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए कई कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। इनमें से एक है Non-Bailable Warrant (NBW), जिसे तब जारी किया जाता है जब आरोपी बार-बार अदालत में हाजिर नहीं होता और उसके खिलाफ पहले जारी किए गए समन (Summons) या बेल वॉरंट (Bailable Warrant) का भी पालन नहीं होता।
NBW का मुख्य उद्देश्य आरोपी को जबरन कोर्ट में पेश कराना है ताकि न्यायिक कार्यवाही बिना देरी के आगे बढ़ सके।
NBW का पूरा नाम और अर्थ
- पूरा नाम: Non-Bailable Warrant
- अर्थ: ऐसा न्यायालय आदेश जिसके तहत पुलिस आरोपी को बिना जमानत दिए गिरफ्तार करके सीधे अदालत में पेश करती है।
- कानूनी प्रकृति: यह एक गंभीर न्यायिक आदेश है, जो आरोपी को न्यायालय में लाने के लिए मजबूर करता है।
NBW जारी करने का उद्देश्य
NBW का मकसद आरोपी की अनिवार्य उपस्थिति सुनिश्चित करना है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब—
- आरोपी बार-बार अदालत में अनुपस्थित रहता है।
- आरोपी समन और बेल वॉरंट के बावजूद पेश नहीं होता।
- आरोपी के खिलाफ मामला गंभीर प्रकृति का होता है और उसकी उपस्थिति आवश्यक होती है।
- आरोपी के फरार होने की संभावना होती है।
NBW जारी करने की प्रक्रिया
1. प्रारंभिक चरण – समन जारी होना
- कोर्ट पहले आरोपी को समन जारी करता है, जो केवल उपस्थिति का आदेश होता है।
- यदि आरोपी उपस्थित नहीं होता, तो अगला कदम बेल वॉरंट होता है।
2. बेल वॉरंट (Bailable Warrant)
- बेल वॉरंट मिलने पर आरोपी जमानत लेकर कोर्ट में आ सकता है।
- अगर आरोपी इसे भी नज़रअंदाज़ करता है, तो अंतिम कदम NBW है।
3. NBW जारी होना
- कोर्ट आदेश देकर NBW जारी करता है।
- आदेश में आरोपी का नाम, पता और गिरफ्तारी का निर्देश होता है।
कौन जारी करता है?
NBW केवल मजिस्ट्रेट या सक्षम न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।
- मजिस्ट्रेट शिकायत और पिछले आदेशों का रिकॉर्ड देखकर तय करता है कि NBW जारी करना उचित है या नहीं।
BNSS, 2023 में प्रावधान
नए Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (BNSS) में NBW का प्रावधान धारा 72 (Section 72) में किया गया है।
- धारा 72 कहती है कि जब आरोपी बार-बार अनुपस्थित रहता है, तो अदालत Non-Bailable Warrant जारी कर सकती है।
- यह आदेश पुलिस के लिए बाध्यकारी होता है और आरोपी को तुरंत गिरफ्तार करना अनिवार्य होता है।
NBW के बाद गिरफ्तारी
1. पुलिस की शक्ति
- NBW मिलने पर पुलिस तुरंत आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।
- पुलिस को गिरफ्तारी के लिए अलग से वारंट या अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।
2. आरोपी का अधिकार
- गिरफ्तारी के बाद आरोपी सीधे जमानत नहीं ले सकता।
- उसे कोर्ट के सामने पेश होकर जमानत के लिए अपील करनी होती है।
NBW में जमानत की स्थिति
- तुरंत जमानत: संभव नहीं।
- प्रक्रिया: आरोपी को कोर्ट में पेश किया जाएगा, जहां जमानत याचिका दायर करनी होगी।
- जमानत मामले की गंभीरता, अनुपस्थिति के कारण और पूर्व रिकॉर्ड पर निर्भर करेगी।
NBW का महत्व
1. न्यायिक कार्यवाही में अनुशासन
NBW आरोपी को कोर्ट की गंभीरता समझाने में मदद करता है।
2. फरार होने से रोक
यह आरोपी को भागने से रोकता है और उसे न्यायिक प्रक्रिया में लाता है।
3. पुलिस और कोर्ट का समय बचाना
बार-बार तिथि बदलने और सुनवाई टालने से बचाव होता है।
NBW जारी होने के सामान्य कारण
- कोर्ट में अनुपस्थिति: बिना अनुमति या कारण बताए।
- समन और बेल वॉरंट का उल्लंघन।
- गंभीर अपराध: जैसे हत्या, डकैती, आर्थिक अपराध आदि में आरोपी के न आने पर।
- फरार होने की संभावना: आरोपी की गतिविधियों से संदेह होना।
NBW के दुरुपयोग से बचाव
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई बार कहा है कि—
- NBW केवल अत्यधिक आवश्यक होने पर ही जारी होना चाहिए।
- आरोपी की अनुपस्थिति का कारण पहले देखा जाना चाहिए।
- मामूली मामलों में NBW का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
महत्वपूर्ण न्यायिक उदाहरण
- Inder Mohan Goswami v. State of Uttaranchal (2007): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NBW का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए ताकि आरोपी के मौलिक अधिकारों का हनन न हो।
- Raghuvansh Dewanchand Bhasin v. State of Maharashtra (2012): कोर्ट ने कहा कि पहले समन और बेल वॉरंट के विकल्प अपनाने चाहिए।
निष्कर्ष
Non-Bailable Warrant (NBW) न्यायालय का एक शक्तिशाली आदेश है जिसका उद्देश्य आरोपी को जबरन अदालत में लाना है। यह केवल तब जारी किया जाता है जब आरोपी ने समन और बेल वॉरंट की अनदेखी की हो और उसके कोर्ट में पेश होने की संभावना न हो।
नए BNSS, 2023 में धारा 72 के तहत NBW की प्रक्रिया और भी स्पष्ट कर दी गई है।
NBW का प्रयोग न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता बनाए रखने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है, लेकिन इसे केवल जरूरत पड़ने पर और संतुलित तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि आरोपी के अधिकार और न्याय के सिद्धांत दोनों सुरक्षित रहें।