Nichols v. Marsland (1876) – Act of God अपवाद की मान्यता
भूमिका
Tort Law के इतिहास में Rylands v. Fletcher (1868) का निर्णय सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी से Strict Liability का सिद्धांत जन्मा। लेकिन इसके कुछ वर्षों बाद, Nichols v. Marsland (1876) नामक प्रकरण में न्यायालय ने इस सिद्धांत पर एक महत्वपूर्ण सीमा (limitation) लगाई और यह स्पष्ट किया कि यदि हानि किसी Act of God अर्थात प्राकृतिक आपदा के कारण होती है, तो प्रतिवादी (Defendant) को उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
यह निर्णय विशेष महत्व का इसलिए भी है क्योंकि इसने “No Fault Liability” की अवधारणा को सीमित कर दिया और यह बताया कि प्रत्येक नुकसान के लिए प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, यदि वह नुकसान मानव नियंत्रण से बाहर प्राकृतिक शक्तियों के कारण हुआ हो। इस प्रकार Nichols v. Marsland ने Strict Liability के सिद्धांत में Act of God अपवाद को औपचारिक मान्यता प्रदान की।
मामले की पृष्ठभूमि (Facts of the Case)
इस मामले में प्रतिवादी Marsland ने अपनी भूमि पर कई कृत्रिम तालाब (artificial ornamental lakes) बनाए थे। ये तालाब प्राकृतिक जलधारा से भरते थे और सजावटी उद्देश्यों के लिए बनाए गए थे।
1874 में अचानक अत्यधिक वर्षा हुई, जिसे “extraordinary rainfall” कहा गया, और यह वर्षा प्राकृतिक रूप से अप्रत्याशित और असाधारण थी। इस अत्यधिक वर्षा के कारण तालाबों का बाँध टूट गया और उनमें संग्रहीत पानी निकलकर नीचे की ओर बह गया।
इस घटना से वादी Nichols की कई पुलिया (bridges) नष्ट हो गईं और उसे गंभीर नुकसान उठाना पड़ा। Nichols ने Marsland के खिलाफ मुकदमा दायर किया और दावा किया कि यह नुकसान Rylands v. Fletcher के सिद्धांत के अंतर्गत Strict Liability में आता है, अतः Marsland को क्षतिपूर्ति देनी चाहिए।
विवाद का प्रश्न (Legal Issue)
मुख्य प्रश्न यह था कि—
- क्या Marsland, जिसने अपनी भूमि पर कृत्रिम तालाब बनाए थे, उनके फटने से हुए नुकसान के लिए Strict Liability के तहत उत्तरदायी होगा,
- या यह नुकसान प्राकृतिक आपदा (Act of God) के कारण हुआ माना जाएगा और प्रतिवादी को जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाएगा?
निर्णय (Judgment)
न्यायालय ने प्रतिवादी Marsland के पक्ष में निर्णय दिया और कहा—
- यह नुकसान प्रतिवादी की लापरवाही (Negligence) से नहीं हुआ।
- तालाब के फटने का कारण असाधारण और अप्रत्याशित वर्षा थी, जिसे मानव पूर्वानुमान से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
- जब कोई नुकसान Act of God के कारण होता है, तो Strict Liability लागू नहीं होगी।
- प्रतिवादी केवल उसी स्थिति में उत्तरदायी होगा जब उसने स्वयं लापरवाही की हो या नुकसान उसके कार्य से स्वाभाविक रूप से होने की संभावना हो।
इस प्रकार न्यायालय ने Act of God को Strict Liability का एक महत्वपूर्ण अपवाद (Exception) माना।
Act of God का अर्थ
Act of God वह घटना है—
- जो पूरी तरह से प्राकृतिक शक्तियों (Natural Forces) से घटित हो,
- जिसका होना असाधारण और अप्रत्याशित हो,
- जिसे कोई भी मानव सावधानी या कौशल रोक नहीं सकता।
उदाहरण: भूकंप, असाधारण वर्षा, आंधी, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट, आदि।
Strict Liability और Act of God अपवाद
Rylands v. Fletcher (1868) में यह सिद्धांत स्थापित हुआ कि—
यदि कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर कोई खतरनाक वस्तु लाता है और वह बाहर निकलकर दूसरों को नुकसान पहुँचाती है, तो वह व्यक्ति उत्तरदायी होगा, चाहे उसकी कोई गलती न हो।
लेकिन Nichols v. Marsland (1876) ने स्पष्ट किया कि—
यदि Escape पूरी तरह से Act of God के कारण हो, तो प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं होगा।
Nichols v. Marsland का महत्व
- इस मामले ने यह सिद्ध किया कि Strict Liability का सिद्धांत पूर्णतः निरपेक्ष (Absolute) नहीं है।
- इसने प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए एक मानवीय दृष्टिकोण अपनाया।
- इस निर्णय ने Liability और Natural Calamity के बीच अंतर स्थापित किया।
- यह मामला उन अपवादों की नींव बना, जिन्हें आगे चलकर Strict Liability में शामिल किया गया।
Strict Liability के अपवादों में योगदान
इस मामले के बाद न्यायालयों ने निम्न अपवाद मान्य किए—
- Act of God – जैसा कि Nichols v. Marsland में मान्यता दी गई।
- Plaintiff की गलती – यदि नुकसान Plaintiff की ही लापरवाही से हुआ।
- Act of Stranger – यदि किसी तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप से नुकसान हुआ।
- Consent of Plaintiff – यदि Plaintiff ने उस कार्य को अनुमति दी।
- Statutory Authority – यदि कार्य कानून द्वारा अनुमत हो।
भारतीय विधि में प्रभाव
भारत में भी न्यायालयों ने Nichols v. Marsland के सिद्धांत को अपनाया। उदाहरण के लिए—
- Madras Railway Co. v. Zamindar (1874): जहाँ असाधारण वर्षा से नुकसान हुआ और न्यायालय ने इसे Act of God माना।
- M.C. Mehta v. Union of India (Oleum Gas Leak Case, 1987): यहाँ Supreme Court ने कहा कि भारतीय परिस्थितियों में औद्योगिक दुर्घटनाओं को Act of God कहकर उद्योगों को मुक्त नहीं किया जा सकता। इसलिए Court ने Absolute Liability का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
Strict Liability बनाम Absolute Liability (तुलनात्मक सारणी)
आधार | Strict Liability | Absolute Liability |
---|---|---|
उत्पत्ति | Rylands v. Fletcher (1868) | M.C. Mehta v. Union of India (1987) |
अपवाद | Act of God, Stranger, Plaintiff की गलती, Statutory Authority आदि | कोई अपवाद नहीं |
स्वरूप | सीमित उत्तरदायित्व (Limited Liability) | पूर्ण उत्तरदायित्व (Complete Liability) |
उद्देश्य | दोषरहित उत्तरदायित्व, लेकिन कुछ परिस्थितियों में बचाव उपलब्ध | खतरनाक उद्योगों को पूर्ण दायित्व देना |
प्रकृति | अंग्रेजी विधि पर आधारित | भारतीय विधि में विकसित सिद्धांत |
विश्लेषण
Nichols v. Marsland ने यह स्पष्ट किया कि व्यक्ति को केवल उन्हीं परिस्थितियों में उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जहाँ नुकसान मानव-नियंत्रण में हो या उसकी लापरवाही से हुआ हो। लेकिन यदि घटना पूरी तरह से प्रकृति की अप्रत्याशित शक्ति का परिणाम है, तो व्यक्ति को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
हालाँकि, आधुनिक युग में औद्योगिक गतिविधियों और तकनीकी विकास के कारण न्यायालयों ने यह महसूस किया कि यदि Act of God को हर दुर्घटना का आधार बनाकर प्रतिवादी को मुक्त कर दिया जाए, तो पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाएगा। यही कारण था कि भारतीय न्यायालयों ने आगे चलकर Absolute Liability का सिद्धांत विकसित किया।
निष्कर्ष
Nichols v. Marsland (1876) ने Tort Law में Strict Liability के सिद्धांत को एक संतुलन प्रदान किया और यह स्थापित किया कि हर नुकसान के लिए प्रतिवादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यदि नुकसान किसी प्राकृतिक आपदा या Act of God से हुआ हो, तो यह Strict Liability के अपवादों में आता है।
फिर भी, भारतीय न्यायशास्त्र ने औद्योगिक और पर्यावरणीय मामलों में Act of God की सीमाओं को पार कर Absolute Liability का सिद्धांत विकसित किया, ताकि पीड़ितों को समुचित न्याय मिल सके।
इस प्रकार, Nichols v. Marsland न केवल अंग्रेजी विधि में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, बल्कि भारतीय विधि में भी इसने जिम्मेदारी और अपवादों के बीच संतुलन स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।