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“NEET-UG 2025: फीस भुगतान की समय-सीमा चूकने पर MBBS सीट खोने वाले तमिलनाडु छात्रों को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत

“NEET-UG 2025: फीस भुगतान की समय-सीमा चूकने पर MBBS सीट खोने वाले तमिलनाडु छात्रों को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत — प्रक्रिया, न्याय और शिक्षा अधिकार पर असर”


प्रस्तावना

        भारत में हर वर्ष, NEET-UG परीक्षा के माध्यम से हजारों छात्र मेडिकल (MBBS/BDS) पाठ्यक्रमों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। कट-ऑफ, दाखिले, फीस भुगतान तथा काउंसलिंग की समय-सीमाओं का सख्ती से पालन होता है।

        हालाँकि — कभी-कभी, व्यवस्था, तकनीकी खामियों या व्यक्तिगत आर्थिक समस्याओं के कारण — उम्मीदवार असमय फीस जमा न कर पाते, और इस वजह से उनकी सीट “शून्य (vacant)” घोषित कर दी जाती है। इस वर्ष (2025) ऐसा ही एक मामला सामने आया, जहाँ कुछ तमिलनाडु के NEET-UG 2025 के छात्र — जिनका अंक व योग्यता पर्याप्त थी — फीस समय पर जमा न कर पाने के कारण अपना MBBS सीट गंवा बैठे।

परंतु, 5 दिसंबर 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने — विशेष परिस्थितियों को देखते हुए — इन छात्रों को राहत दी।

यह फैसला शिक्षा-प्रवेश प्रक्रिया, न्यायिक संवेदनशीलता तथा “merit vs procedural strictness” के बीच संतुलन के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण है।


घटना-परिचय: मामला क्या था?

  • एक मुख्य याचिका — Shilpa Suresh नामक छात्रा द्वारा — दायर की गई थी। उसने NEET-UG 2025-26 में भाग लिया और 251 अंक हासिल किए। तीसरी राउंड में उसे Madha Medical College and Research Institute में MBBS सीट अलॉट की गई थी।
  • सीट मिलने के बाद, आलॉटमेंट ऑर्डर डाउनलोड करना और कॉलेज में रिपोर्ट करना था। निर्धारित अंतिम तिथि थी 8 नवंबर 2025। उसी दिन समुचित फीस (₹15 लाख) जमा करनी थी। परन्तु, परिवार आर्थिक रूप से कठिनाई में था। मां ने कुछ आभूषण गिरवी रख कर रकम जुटाई — लेकिन फीस जमा करने की सुविधा (NEFT / RTGS) उपलब्ध न थी, क्योंकि 8 नवम्बर 2025 “द्वितीय शनिवार (Second Saturday)” था — बैंक बंद थे।
  • छात्रा और उसके परिवार ने कॉलेज को सूचित करने की कोशिश की, लेकिन कॉलेज की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इस कारण, सीट को खाली माना गया और “stray vacancy” में जोड़ दिया गया।
  • इस प्रकार, एक मेरिट-अच्छा छात्र — जिसकी योग्यता पर्याप्त थी — केवल इस कारण से प्रवेश से वंचित हो गया कि तकनीकी / बैंकिंग कारणों और आर्थिक कठिनाईयों ने फीस समय पर जमा कराने से रोका।

इस असंतुलित परिस्थितिको देखते हुए, छात्रा ने पहले Madras High Court में याचिका दायर की — जहाँ प्रारंभिक एकल न्यायाधीश (Single Judge) ने राहत दी और छात्रा को दाखिला देने का आदेश दिया।
लेकिन अगले दिन, डिवीजन बेंच ने उस आदेश को पलट दिया — यह कहकर कि प्रवेश-प्रक्रिया की समय-सारिणी (Prospectus timetable) सार्वभौमिक रूप से लागू होती है, और सभी उम्मीदवारों को उसका पालन करना चाहिए।

न्यायालय ने छात्रा से बात करते हुए उसे सुझाव दिया कि वह अन्य पाठ्यक्रम देखें। इस तरह, मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश: राहत और दिशा

5 दिसंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की पीठ — जिसमें शामिल थे Justice PS Narasimha और Justice AS Chandurkar — ने याचिकाकर्ताओं (तीन छात्रों) को राहत दी। अदालत ने कहा कि उन्हें बुधवार, 10 दिसंबर 2025 तक फीस जमा करने का मौका दिया जाए, और यदि भुगतान हो जाता है, तो उनसे MBBS सीट फिर से अलॉट की जाए।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल “विशेष परिस्थितियों” के आधार पर है — इसे एक सामान्य मिसाल (precedent) न माना जाए।

साथ ही, कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य (तमिलनाडु) — यदि उपलब्ध हों — मैनेजमेंट कोटा (management-quota) की खाली सीटों से इन्हें असाइन करे, ताकि वे दिग्भ्रमित न रहें।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने — न्यायिक संवेदनशीलता व सामूहिक न्याय (equity) के आधार पर — शिक्षा प्रवेश प्रक्रिया में मानवता, परिस्थिति-विशेष और merit को प्राथमिकता दी।


तर्क, समस्या, और न्यायिक विवेक — क्यों हुआ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय?

1. मकसद: merit over mere procedural compliance

कानून या नियम केवल formalities नहीं होते — उनका उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है। यहाँ छात्रा ने NEET-UG में परीक्षा दी, अंक हासिल किए, सीट अलॉट हुई — लेकिन बैंकिंग व्यवस्था व समय-सीमा के कारण फीस जमा न हो सकी। वास्तविक योग्यता (merit) थी, लेकिन procedural technicality ने प्रवेश रोका।

सुप्रीम कोर्ट ने समझा कि ऐसे मामले में — जहाँ genuine difficulty हो — न्याय की दृष्टि से flexibility दिखाना उचित है, न कि rigidता।

2. भावनात्मक और आर्थिक कमजोर पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता का पारिवारिक परिवेश — आर्थिक रूप से कमजोर, मां-पिता सामान्य श्रमिक, माँ ने आभूषण गिरवी रखाए — इस बात को दर्शाता है कि फीस जमा करना उनके लिए आसान नहीं था। नियमों का पालन इसलिए संभव न हो सका। ऐसा व्यक्ति, जिसे हार्डवर्क के बाद अवसर मिला हो, किसी तकनीकी कारण से वंचित हो जाए — यह न्याय की भावना के विरुद्ध है।

3. प्रशासनिक प्रणाली व बैंकिंग अव्यवस्था

कि फीस जमा करने की तिथि बैंक बंद होने की वजह से थी, और चयन प्रक्रिया में यह पूर्व-जानकारी या वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था न दी गई थी — यह Admissions authorities की प्रणाली में कमी दर्शाता है।

निष्क्रियता, सूचना की कमी — इन सबका परिणाम एक योग्य छात्र के भविष्य के साथ अन्याय था।

4. न्यायालय का संवेदनशील एवं अनुक्रमिक विवेक (equitable discretion)

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश सामान्य उदाहरण नहीं, बल्कि “विशेष परिस्थिति” में दिया गया है। यह विवेक प्रदर्शित करता है कि न्यायालय — नियमों के कठोर पालन के बजाय — वास्तविक परिस्थिति और मानव पहलुओं को भी महत्व देता है।


संभावित बहस और आलोचनाएँ

हालाँकि यह निर्णय कई के लिए न्यायपूर्ण और राहत देने वाला है, फिर भी कुछ आलोचनाएँ हो सकती हैं:

  • नियमों की पालना व समानता: यदि समय-सीमा के पालन में ढील दी जाती है, तो अन्य कई विद्यार्थी भी इसी आधार पर अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं। Admission प्रक्रिया में अनुशासन व समान अवसर का सिद्धांत कमजोर हो सकता है।
  • प्रक्रिया की निश्चितता (certainty): कॉलेजों, सांस्थानिक चयन समितियों (selection committees) और admission authorities के लिए स्पष्ट प्रक्रिया का अस्तित्व जरूरी है। नियमितता में छेड़-छाड़ से chaos या असुनियोजित प्रवेश हो सकते हैं।
  • ‘फ्लडगेट’ अपीलों का डर: यदि इस तरह की राहत सर्वसाधारण रूप से दी जाने लगी, तो हर छात्र — भौतिक/आर्थिक कारणों का हवाला देकर — late payment के बाद भी admission की मांग करेगा, जिससे entire admissions calendar प्रभावित हो सकता है।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि — यह आदेश precedent नहीं, बल्कि exceptional case की विवेचना है।


इस फैसले का प्रभाव — छात्रों, शिक्षा नीति और न्याय की दृष्टि से

— छात्रों को संदेश और उम्मीद

यह फैसला उन लाखों aspirants के लिए एक उम्मीद जगाता है, जो NEET के द्वारा अपनी MBBS/BDS की ड्रीम देख रहे हैं। यह दिखाता है कि — जब genuine hardship हो, तो न्यायालय सुनेगा; सिर्फ नियमों के नाम पर केवल rigid पालन नहीं।

— शिक्षा प्रवेश व्यवस्था में सुधार की जरूरत

Admission authorities, selection committees, medical colleges — उन्हें चाहिए कि वे ऐसी गलतियों या असुविधाओं को देखें: बैंकिंग छुट्टियाँ, ऑनलाइन भुगतान विकल्प, व्यावहारिक सहूलियतें आदि। ताकि कोई योग्य छात्र administrative technicality के कारण वंचित न हो।

— न्याय की संवेदनशीलता व संवैधानिक न्याय

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां संविधान का उद्देश्य न्याय, समानता व अवसर प्रदान करना है — ऐसा संवेदनशील judicial discretion जरूरी है। यह मामला इसी की मिसाल है।

— सीमित दायरा, लेकिन दिशा तय करने वाला फैस़ा

चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश “prece dent नहीं” माना, इसका मतलब है कि हर केस में यही verdict नहीं मिलेगा। परन्तु — यह दिखा दिया कि कोर्ट नियमों से ऊपर जाकर — परिस्थिति, न्याय और मानव हित को देखते हुए फैसला दे सकती है।


निष्कर्ष

      2025 के इस NEET-UG प्रवेश विवाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राहत — सिर्फ तीन छात्रों के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रवेश प्रक्रिया, छात्रों के अधिकार, और न्याय-संवेदनशीलता के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है।

यह दिखाता है कि—

  • merit,
  • परिस्थिति,
  • और मानवता — तीनों का समन्वय संभव है।

    जहाँ rigid procedural rules हों, वहाँ exceptions देना हमेशा जोखिम भरा हो सकता है; परंतु न्याय — केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि इंसानियत, इक्विटी और वास्तविकता की समझ है।

       यह निर्णय हमें याद दिलाता है कि — शिक्षा केवल अंक व कट-ऑफ नहीं, भविष्य व सपनों की डगर है। जब इसके रास्ते में तकनीकी कठिनाइयाँ या बैंकिंग छुट्टियाँ हों — तो न्याय की सड़क बंद नहीं होनी चाहिए।