“NDPS Act के तहत जब्त वाहन की अंतरिम रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: 2022 के नए नियम विशेष अदालतों की शक्ति नहीं छीनते”
भूमिका
27 अक्टूबर 2025 को Supreme Court of India ने Denash v. State of Tamil Nadu मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसने NDPS (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) Act, 1985 की न्यायिक व्याख्या में एक नई दिशा दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (Seizure, Storage, Sampling and Disposal) Rules, 2022 — जिन्हें केंद्रीय सरकार ने जारी किया था — किसी भी स्थिति में NDPS अधिनियम के तहत गठित Special Courts की शक्ति को सीमित या समाप्त नहीं करते हैं।
यह निर्णय उन सभी मामलों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है जिनमें मादक पदार्थों के मामलों के दौरान वाहन या संपत्ति जब्त की जाती है और आरोपी उनकी interim custody (अंतरिम रिहाई) की मांग करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
मामले की उत्पत्ति तमिलनाडु राज्य से हुई, जहाँ पुलिस ने NDPS अधिनियम के तहत एक वाहन को जब्त किया था, यह कहते हुए कि उस वाहन का उपयोग अवैध नशीले पदार्थों के परिवहन में किया गया था।
वाहन के स्वामी — Denash — ने Special Court (NDPS) के समक्ष एक आवेदन दाखिल किया जिसमें उसने वाहन की interim custody की मांग की। अदालत ने प्रारंभ में इस पर विचार करने से इंकार किया यह कहते हुए कि 2022 के Seizure, Storage, Sampling and Disposal Rules के अनुसार अब जब्त किए गए वाहन की रिहाई का अधिकार केवल अधिकृत अधिकारियों के पास है, न कि अदालत के पास।
Denash ने इस आदेश को Madras High Court में चुनौती दी, लेकिन वहाँ भी उसकी याचिका खारिज कर दी गई। अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ इस मुद्दे पर एक ठोस कानूनी व्याख्या की आवश्यकता थी कि क्या 2022 के नए नियम Special Courts की शक्तियों को सीमित करते हैं या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था —
“क्या NDPS (Seizure, Storage, Sampling and Disposal) Rules, 2022 के लागू होने के बाद NDPS Act की विशेष अदालतें अब जब्त वाहन या संपत्ति की अंतरिम रिहाई का आदेश देने की अधिकारिता खो देती हैं?”
पक्षकारों के तर्क
याचिकाकर्ता (Denash) की ओर से तर्क:
- NDPS अधिनियम की धारा 36C यह स्पष्ट करती है कि Special Court के पास Criminal Court के समान सभी अधिकार हैं, जिसमें interim custody या release of property का अधिकार भी शामिल है।
- 2022 के नियम प्रशासनिक प्रकृति के हैं, जो केवल जब्त किए गए माल के भंडारण और नष्ट करने की प्रक्रिया बताते हैं।
- किसी अधिसूचना या नियम के द्वारा विशेष अदालत की statutory jurisdiction को समाप्त नहीं किया जा सकता जब तक कि अधिनियम में स्पष्ट संशोधन न हो।
राज्य (Tamil Nadu) की ओर से तर्क:
- नए नियमों ने जब्त वस्तुओं की सुरक्षा, सैंपलिंग और नष्ट करने की विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की है।
- यदि अदालतें रिहाई का आदेश देने लगें तो वह प्रक्रिया बाधित होगी।
- इसलिए यह नियम अपने आप में exclusive mechanism तैयार करता है और अदालतों को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट की पीठ — जिसमें जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस पमीडी जयश्री शामिल थे — ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद विस्तृत विश्लेषण किया।
अदालत ने कहा कि:
- NDPS Act की धारा 36C स्पष्ट रूप से कहती है कि Special Court को Court of Session के सभी अधिकार प्राप्त हैं। इसका अर्थ है कि वह Criminal Procedure Code (CrPC) की धारा 451 और 457 के अंतर्गत जब्त संपत्ति या वाहन की अंतरिम रिहाई का आदेश दे सकती है।
- 2022 के नियम केवल प्रशासनिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं ताकि जब्त की गई वस्तुएँ सुरक्षित रखी जा सकें, उनका सैंपल सही तरीके से लिया जाए, और नष्ट करने की प्रक्रिया पारदर्शी हो। इन नियमों में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि अदालतें अब अंतरिम रिहाई का आदेश नहीं दे सकतीं।
- नियम कानून को नहीं बदल सकते। कोर्ट ने कहा कि जब तक संसद द्वारा NDPS अधिनियम में संशोधन नहीं किया जाता, कोई भी अधिसूचना या नियम अदालत की वैधानिक शक्ति को खत्म नहीं कर सकता।
- अदालत ने यह भी कहा कि अदालतें रिहाई के आदेश देते समय यह सुनिश्चित करें कि वाहन दोबारा अपराध में उपयोग न हो और उसका स्वामी गारंटी दे कि वह अदालत की शर्तों का पालन करेगा।
महत्वपूर्ण न्यायिक उद्धरण
सुप्रीम कोर्ट ने Sunderbhai Ambalal Desai v. State of Gujarat (2002) 10 SCC 283 का हवाला देते हुए कहा कि:
“कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जब्त की गई संपत्ति लंबे समय तक पुलिस या प्रशासनिक कब्जे में न रहे क्योंकि इससे संपत्ति नष्ट हो जाती है। उचित सुरक्षा शर्तों के साथ अंतरिम रिहाई न्यायोचित है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि NDPS मामलों में भी यह सिद्धांत लागू होगा, जब तक कि विशेष रूप से कानून द्वारा अन्यथा न कहा जाए।
फैसले का निष्कर्ष
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने कहा —
“The Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (Seizure, Storage, Sampling and Disposal) Rules, 2022 do not divest the jurisdiction of the Special Courts under the NDPS Act to grant interim custody of seized vehicles or property. The Rules are procedural and administrative in nature and cannot override the substantive powers conferred upon the judiciary.”
इस प्रकार Madras High Court और Special Court के आदेशों को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने Denash को वाहन की अंतरिम रिहाई की अनुमति दी, उचित शर्तों के साथ।
फैसले के प्रभाव
यह निर्णय NDPS मामलों में एक मिसाल बन गया है। इसके कुछ प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं —
- Special Courts की शक्ति बरकरार: अब किसी भी NDPS मामले में विशेष अदालतें यह कहकर रिहाई से इंकार नहीं कर सकतीं कि 2022 के नियमों ने उनकी शक्ति छीन ली है।
- व्यावहारिक राहत: कई बार जब्त वाहन या संपत्ति सालों तक पुलिस थानों में खड़ी रहती है और खराब हो जाती है। यह फैसला ऐसे मामलों में व्यावहारिक राहत प्रदान करता है।
- अदालतों की स्वतंत्रता: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को रेखांकित किया कि subordinate legislation (जैसे नियम या अधिसूचना) कभी भी अदालत की statutory jurisdiction को नहीं छीन सकती।
- प्रशासनिक स्पष्टता: हालांकि नियम अब भी लागू रहेंगे, लेकिन वे अदालत के आदेशों के अधीन रहेंगे, न कि उनके समान या उनसे ऊपर।
संतुलन का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया — उसने न तो नियमों को निरस्त किया और न ही पुलिस की भूमिका को कम किया। बल्कि उसने यह सुनिश्चित किया कि प्रशासनिक प्रक्रिया और न्यायिक अधिकार एक-दूसरे के पूरक बने रहें।
नियमों का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही है, जबकि अदालत की भूमिका न्याय सुनिश्चित करना है। दोनों का संतुलन ही विधि के शासन (Rule of Law) की आत्मा है।
निष्कर्ष
Denash v. State of Tamil Nadu (2025) का निर्णय NDPS कानून के न्यायिक और प्रशासनिक तंत्र के बीच संतुलन का उत्कृष्ट उदाहरण है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि “कानून के तहत स्थापित न्यायालयों की शक्ति को कोई नियम या अधिसूचना सीमित नहीं कर सकती।”
यह फैसला न केवल NDPS मामलों में बल्कि उन सभी मामलों में मार्गदर्शक रहेगा जहाँ प्रशासनिक नियमों के कारण अदालतों की शक्तियों पर प्रश्न उठाए जाते हैं।
🔹न्याय का सार:
“न्यायालय की शक्ति संविधान और विधायिका द्वारा निर्धारित होती है — न कि नियमों या अधिसूचनाओं द्वारा।”