“NDPS मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती: सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट रुख”
पूरा लेख:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में NDPS Act, 1985 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के मामलों में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की व्यवस्था को लेकर एक महत्वपूर्ण और सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि इस अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत प्रदान नहीं की जा सकती, विशेषकर तब जब अपराध गंभीर प्रकृति का हो और भारी मात्रा में मादक पदार्थ (commercial quantity) जब्त किए गए हों।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि NDPS अधिनियम एक विशेष कानून है जिसमें धारा 37 के अंतर्गत जमानत देने की प्रक्रिया और सीमाएं विशिष्ट रूप से निर्धारित की गई हैं। यह धारा यह कहती है कि जब तक न्यायालय यह संतुष्ट नहीं हो जाता कि
- अभियुक्त दोषी नहीं पाया जाएगा, और
- वह जमानत पर रहते हुए अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करेगा,
तब तक उसे जमानत नहीं दी जा सकती — और यह कसौटी अग्रिम जमानत के मामलों में भी लागू होती है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि NDPS के तहत दर्ज मामलों में अभियुक्त को अग्रिम जमानत देना “विधि के प्रावधानों और समाज के हित के प्रतिकूल” है, क्योंकि यह अपराध न केवल व्यक्तिगत बल्कि समाज को समग्र रूप से प्रभावित करता है।
प्रमुख बिंदु:
- NDPS एक्ट की धारा 37, जमानत को लेकर एक कठोर सीमा निर्धारित करती है।
- अग्रिम जमानत की अवधारणा, CrPC की धारा 438 के अंतर्गत दी जाती है, लेकिन NDPS अधिनियम एक विशेष विधि होने के कारण इसकी प्राथमिकता होती है।
- गंभीर मादक पदार्थों की बरामदगी के मामलों में अदालतों को अत्यंत सावधानी और सख्ती से कार्य करना होता है।
न्यायालय की टिप्पणी:
“NDPS Act के तहत अपराधों की प्रकृति इतनी गंभीर है कि उसमें अग्रिम जमानत की अनुमति देना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा, जब तक कि असाधारण परिस्थितियां सिद्ध न हो जाएं।”
निष्कर्ष:
यह निर्णय NDPS मामलों में अदालतों को अत्यंत सतर्कता बरतने की हिदायत देता है और यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे गंभीर अपराधों में आरोपी व्यक्ति को अग्रिम राहत देकर समाज को खतरे में न डाला जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह दृष्टिकोण विशेष रूप से उन मामलों में मार्गदर्शक सिद्ध होगा जहां मादक पदार्थों की तस्करी, आपूर्ति और उपभोग से संबंधित गहन साक्ष्य हों।