NCLT को पूर्ण अधिकार: परिसमापन संपत्ति खरीदने वाला भुगतान में चूक करे तो संपूर्ण जमा राशि जब्त की जा सकती है — सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
भूमिका
दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) भारत की आर्थिक प्रणाली में एक क्रांतिकारी सुधार साबित हुई है। IBC का उद्देश्य कंपनियों की वित्तीय स्थिति को सुधारना, संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना और दिवालिया कंपनियों की परिसमापन प्रक्रिया को पारदर्शी तथा दक्ष बनाना है।
परिसमापन (Liquidation) प्रक्रिया के दौरान जब कंपनी की संपत्ति को बेचकर ऋणदाताओं का भुगतान किया जाता है, तब खरीदारों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने वादे के अनुसार भुगतान समय पर और पूर्ण रूप से करें। लेकिन क्या होता है जब खरीदार भुगतान में चूक कर देता है? क्या सिर्फ आंशिक राशि की जब्ती संभव है या संपूर्ण जमा राशि (entire deposit) को भी जब्त किया जा सकता है?
इसी प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि—
“यदि परिसमापन प्रक्रिया में भाग लेने वाला कोई बोलीदाता (purchaser) निर्धारित शर्तों का उल्लंघन करता है या भुगतान समय पर नहीं करता, तो NCLT को यह अधिकार है कि वह बोलीदाता की संपूर्ण जमा की गई राशि को जब्त (forfeit) कर सकता है।”
यह निर्णय IBC के ढांचे में स्पष्टता लाता है और परिसमापन प्रक्रियाओं को अधिक अनुशासित बनाता है। आइए इस फैसले का विस्तृत विश्लेषण करते हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
- एक कंपनी परिसमापन प्रक्रिया से गुजर रही थी।
- परिसमापक (Liquidator) ने IBC के तहत कंपनी की संपत्तियों की नीलामी (auction) का आयोजन किया।
- एक सफल बोलीदाता ने नीलामी में जीत हासिल की और कुछ अग्रिम राशि (Earnest Money Deposit – EMD) जमा की।
- लेकिन बाद में बोलीदाता निर्धारित समय में शेष भुगतान नहीं कर पाया।
- परिसमापक ने IBC नियमों के अनुसार उसकी पूरी जमा राशि जब्त कर ली।
खरीदार ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि—
- पूरी जमा राशि जब्त करना “मनमाना” (arbitrary) है,
- केवल वास्तविक क्षति (actual loss) के अनुरूप राशि जब्त होनी चाहिए,
- NCLT को इतनी बड़ी कार्रवाई का अधिकार नहीं है।
NCLT और NCLAT दोनों ने परिसमापक के निर्णय को सही ठहराया।
मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न
- क्या NCLT को संपूर्ण जमा राशि जब्त करने का अधिकार है?
- क्या IBC और संबंधित विनियम (Regulations) परिसमापक को ऐसी कार्रवाई करने की अनुमति देते हैं?
- क्या ऐसी जब्ती (forfeiture) अनुबंध उल्लंघन (breach of contract) के सिद्धांत से मेल खाती है?
- क्या इसका उद्देश्य खरीदारों को अनुशासित करना है या सज़ा देना?
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद निम्न मुख्य बिंदु स्पष्ट किए:
1. IBC में निर्धारित बोली प्रक्रिया “कॉमर्शियल” नहीं बल्कि “स्टैच्यूटरी” है
कोर्ट ने कहा कि:
- परिसमापन प्रक्रिया कानून (Statutory Process) के तहत संचालित होती है।
- यह मात्र “खरीदार–विक्रेता” का साधारण अनुबंध नहीं है।
- इसलिए IBC के दायरे में लिया गया निर्णय केवल अनुबंध कानून से नहीं, बल्कि IBC के उद्देश्यों से संचालित होगा।
2. बोलीदाता द्वारा भुगतान में चूक ‘गंभीर उल्लंघन’ (serious breach) है
कोर्ट ने कहा—
- परिसमापन में देरी से ऋणदाताओं के हित प्रभावित होते हैं।
- भुगतान में चूक प्रक्रिया को बाधित करती है।
- ऐसे व्यवहार के लिए कठोर परिणाम आवश्यक हैं।
3. संपूर्ण जमा राशि की जब्ती “अनुचित” नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
- जब बोलीदाता नीलामी की शर्तों को स्वीकार करता है, तो वह यह भी मान लेता है कि चूक होने पर उसकी जमा राशि जब्त की जा सकती है।
- इसलिए इसे “दंड” (penalty) नहीं बल्कि “संविदा की शर्तों का परिणाम” कहा जाएगा।
- यह जरूरी नहीं कि परिसमापक वास्तविक नुकसान साबित करे।
4. परिसमापक (Liquidator) के पास व्यापक अधिकार है
IBC Regulations परिसमापक को निम्न अधिकार देते हैं—
- नीलामी की शर्तें निर्धारित करना
- शर्तों के उल्लंघन पर कार्रवाई करना
- जमा राशि जब्त करना
सुप्रीम कोर्ट ने इसे पूर्ण रूप से वैध और उचित माना।
5. NCLT का आदेश ‘व्यापारिक निर्णय’ (commercial wisdom) के सिद्धांत के अनुरूप
कोर्ट ने कहा—
“IBC में न्यायालयें और ट्रिब्यूनल, विशेषज्ञ संस्थानों के निर्णय में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं कर सकते, जब तक कि निर्णय मनमाना या दुर्भावनापूर्ण न हो।”
चूंकि परिसमापक और NCLT दोनों ने प्रक्रिया के अनुसार निर्णय लिया था, इसलिए यह पूरी तरह सही है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“परिसमापन प्रक्रिया में बोलीदाता द्वारा भुगतान न करने की स्थिति में उसकी संपूर्ण जमा राशि जब्त करने का आदेश पूरी तरह वैध है। NCLT को ऐसे आदेश पारित करने का पूर्ण अधिकार है।”
इस प्रकार, खरीदार की याचिका को खारिज कर दिया गया और जमा राशि की जब्ती को सही ठहराया गया।
इस निर्णय के प्रभाव
1. परिसमापन प्रक्रियाओं में अनुशासन (Discipline) बढ़ेगा
अब कोई भी बोलीदाता–
- केवल “समय निकालने” के लिए बोली नहीं लगाएगा,
- फिजूल बोली लगाकर प्रक्रिया में बाधा नहीं डाल पाएगा।
2. परिसमापक के अधिकार मजबूत हुए
- परिसमापक को अब अधिक स्पष्टता के साथ कठोर निर्णय लेने का अधिकार है।
- इससे प्रक्रिया तेज और पारदर्शी होगी।
3. ऋणदाताओं (Creditors) को लाभ
- देरी कम होगी।
- परिसंपत्ति के बेहतर मूल्य प्राप्त होने की संभावना बढ़ेगी।
4. धोखाधड़ी और हेरफेर पर रोक
- भुगतान न करने वाले बोलीदाताओं के खिलाफ यह मजबूत निवारक (deterrent) सिद्ध होगा।
कानूनी विश्लेषण
IPC या Contract Act की तुलना में IBC अलग व्यवस्था है
जहाँ Contract Act ‘वास्तविक क्षति’ (actual damages) पर आधारित है, वहीं IBC में—
- प्रक्रिया समयबद्ध है,
- हितधारकों की संख्या अधिक है,
- और प्रक्रिया में देरी पूरे ढांचे को प्रभावित करती है।
इसलिए IBC में “forfeiture” का उद्देश्य केवल क्षति वसूलना नहीं, बल्कि—
- अनुशासन बनाए रखना,
- देरी रोकना,
- प्रक्रिया की गंभीरता सुनिश्चित करना है।
स्टैच्यूटरी ऑक्शन = कठोर नियम
IBC के तहत होने वाले ऑक्शन सामान्य निजी लेन-देन की तरह नहीं, बल्कि—
- पारदर्शी
- नियमबद्ध
- एवं समयबद्ध
औपचारिक प्रक्रिया है।
इसलिए Supreme Court ने माना कि “पूर्ण राशि जब्ती” उचित है।
कानूनी समुदाय की प्रतिक्रिया
कानूनी विशेषज्ञों ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा—
- यह फैसला IBC को और मजबूत करेगा।
- बोली प्रक्रिया में गंभीरता आएगी।
- परिसंपत्तियों की बिक्री अधिक सुचारु होगी।
कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि—
- खरीददारों को अब बोली लगाने से पहले अपनी वित्तीय क्षमता सुनिश्चित करनी होगी,
- अन्यथा बड़ी वित्तीय हानि संभव है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय स्पष्ट करता है कि—
NCLT को संपूर्ण जमा राशि जब्त करने का अधिकार है।
बोलीदाता द्वारा भुगतान में चूक गंभीर उल्लंघन है।
IBC प्रक्रिया में अनुशासन सर्वोपरि है।
परिसमापक के निर्णय में अनावश्यक न्यायिक हस्तक्षेप नहीं होगा।
यह फैसला न केवल IBC को मजबूत करता है, बल्कि परिसमापन प्रक्रियाओं को तेज, पारदर्शी और प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।