📰 लेख शीर्षक:
Navneet Singh Gogia बनाम महाराष्ट्र राज्य: जब आरोपी पेश न हो, तो मजिस्ट्रेट धारा 138 NI Act के तहत ट्रायल कर सकता है – सुप्रीम कोर्ट की पुष्टि
⚖️ प्रमुख निर्णय: Navneet Singh Gogia & Anr. Vs. State of Maharashtra & Anr.
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
मामला संबंधित: धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act)
प्रमुख विषय: अभियुक्त की गैर-हाजिरी में भी ट्रायल वैध
📌 मामले की पृष्ठभूमि:
महाराष्ट्र राज्य में Navneet Singh Gogia और अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध धारा 138 NI Act के अंतर्गत शिकायत दायर की गई थी, जो चेक बाउंस से संबंधित अपराध है। ट्रायल के दौरान, आरोपी व्यक्तियों की ओर से या उनके वकीलों की ओर से न तो व्यक्तिगत पेशी से छूट (dispensing of personal appearance) का कोई आवेदन दिया गया और न ही वे स्वयं अदालत में उपस्थित हुए।
मजिस्ट्रेट ने, आरोपी की अनुपस्थिति में, ट्रायल आगे बढ़ाया और धारा 313 CrPC के तहत बयान रिकॉर्ड किए बिना ही मामला निपटाया। इस पर प्रश्न उठाया गया कि क्या यह कानूनी रूप से वैध है?
🧑⚖️ बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय:
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहा कि:
“अगर आरोपी या उसके वकील ट्रायल में उपस्थित नहीं होते हैं, और उन्होंने व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट नहीं मांगी है, तो मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह ट्रायल को जारी रखे और आरोपी की अनुपस्थिति में भी निर्णय दे।”
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और पुष्टि:
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस अवलोकन को सही माना और निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया:
🔹 1. धारा 138 NI Act के मामले अपेक्षाकृत संक्षिप्त ट्रायल होते हैं।
🔹 2. यदि आरोपी बार-बार अनुपस्थित रहता है, और कोई आवेदन नहीं देता, तो मजिस्ट्रेट को ट्रायल आगे बढ़ाने का अधिकार है।
🔹 3. धारा 313 CrPC के तहत बयान दर्ज करना अनिवार्य तो है, लेकिन यदि आरोपी जानबूझकर पेश नहीं हो रहा, तो उस आवश्यकता से छूट मिल सकती है।
📚 प्रासंगिक विधिक प्रावधान:
धारा | विवरण |
---|---|
धारा 138 NI Act | चेक बाउंस होने पर सज़ा और जुर्माने का प्रावधान |
धारा 313 CrPC | आरोपी का कथन दर्ज करने की प्रक्रिया |
धारा 273 CrPC | अभियोजन साक्ष्य की उपस्थिति में दर्ज करना |
❗ महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
- आरोपी यदि जानबूझकर अदालत की कार्यवाही से बचता है, तो वह अपने विधिक अधिकारों से वंचित हो सकता है।
- ट्रायल को बाधित न करने हेतु मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह अनुपस्थित अभियुक्त की गैर-हाजिरी में भी ट्रायल जारी रखे।
- धारा 313 CrPC का अनुपालन अभियुक्त की भागीदारी पर भी निर्भर करता है। यदि वह अनुपस्थित है और कोर्ट को उसकी उपस्थिति आवश्यक नहीं लगती, तो मजिस्ट्रेट बयान को छोड़ सकता है।
📝 इस निर्णय का महत्व:
यह फैसला साफ करता है कि अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करके अभियुक्त ट्रायल में देरी नहीं कर सकते। यदि आरोपी बार-बार गैर-हाजिर रहता है, तो अदालत को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक हित और न्यायिक दक्षता को ध्यान में रखते हुए ट्रायल को आगे बढ़ाए और निर्णय दे।
🧭 निष्कर्ष:
इस फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि न्याय प्रक्रिया में देरी एक प्रकार की अन्याय है। आरोपी को यदि ट्रायल में भाग लेना है और अपने अधिकारों की रक्षा करनी है, तो उसे अदालत की प्रक्रियाओं का सम्मान करना होगा।