“गर्भपात (चिकित्सा समाप्ति) संशोधन अधिनियम, 2021: महिला अधिकारों और प्रजनन स्वतंत्रता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम”
प्रस्तावना
भारत में महिलाओं के प्रजनन अधिकारों और स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण कानून है — गर्भपात (चिकित्सा समाप्ति) अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971)। इस कानून ने महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी रूप से गर्भपात का अधिकार प्रदान किया था।
समय के साथ समाज, चिकित्सा तकनीक, और सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन आया, जिससे यह कानून अपर्याप्त साबित होने लगा।
इन्हीं परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने गर्भपात (संशोधन) अधिनियम, 2021 (MTP Amendment Act, 2021) पारित किया, जो महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और प्रजनन स्वायत्तता को और सशक्त बनाता है।
यह अधिनियम महिला सशक्तिकरण, लैंगिक समानता और आधुनिक चिकित्सा प्रथाओं के अनुरूप एक बड़ा सुधारात्मक कदम माना जाता है।
1. पृष्ठभूमि: 1971 के अधिनियम की आवश्यकता और सीमाएँ
गर्भपात अधिनियम, 1971 उस समय लागू हुआ जब भारत में असुरक्षित गर्भपात से मातृ मृत्यु दर बहुत अधिक थी।
इस कानून का उद्देश्य था —
- असुरक्षित और अवैध गर्भपात की घटनाओं को रोकना,
- महिलाओं को कानूनी और सुरक्षित चिकित्सा सहायता प्रदान करना,
- चिकित्सकों को कानूनी संरक्षण देना।
1971 अधिनियम की सीमाएँ:
- गर्भपात की सीमा केवल 20 सप्ताह तक थी।
- 20 सप्ताह से अधिक गर्भ के मामलों में अदालत की अनुमति लेनी पड़ती थी।
- अविवाहित या बलात्कार पीड़ित महिलाओं के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं थे।
- चिकित्सक की राय पर अत्यधिक निर्भरता थी, जिससे कई बार महिला की इच्छा गौण रह जाती थी।
इन सीमाओं ने महिला की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार (Right to Privacy & Autonomy) को प्रभावित किया। इसी कारण कानून में संशोधन की माँग बढ़ी।
2. संशोधन की आवश्यकता
भारत में हर वर्ष हजारों महिलाएँ असुरक्षित गर्भपात के कारण अपनी जान गंवाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में लगभग 8-10% मातृ मृत्यु दर असुरक्षित गर्भपात से होती है।
कई सामाजिक और कानूनी कारकों के कारण महिलाएँ अक्सर वैध चिकित्सकीय संस्थानों की बजाय असुरक्षित स्थानों पर गर्भपात करवाने को मजबूर होती थीं।
इस स्थिति को बदलने के लिए कानून में सुधार की अत्यंत आवश्यकता थी।
इसके अतिरिक्त, न्यायपालिका ने भी बार-बार संकेत दिया कि मौजूदा प्रावधान आधुनिक युग के अनुरूप नहीं हैं।
उदाहरण के लिए,
- Suchita Srivastava v. Chandigarh Administration (2009) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “प्रजनन विकल्प का अधिकार महिला के Article 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के अंतर्गत आता है।”
- X v. Union of India (2017) और Murugan Nayakkar v. Union of India (2017) जैसे मामलों में अदालत ने गर्भपात की समय सीमा से अधिक होने पर भी मानवीय आधार पर अनुमति दी।
इन न्यायिक निर्णयों ने स्पष्ट कर दिया कि कानून को समयानुकूल संशोधित करना आवश्यक है।
3. गर्भपात (संशोधन) अधिनियम, 2021 की प्रमुख विशेषताएँ
संशोधन अधिनियम, 2021 ने महिलाओं को अधिक अधिकार, चिकित्सकों को स्पष्ट दिशा-निर्देश, और समाज को एक प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रदान किया है।
मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं —
(a) गर्भपात की समय सीमा में वृद्धि
- पहले सीमा 20 सप्ताह थी।
- अब यह सीमा बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई है।
- यह सीमा विशेष रूप से निम्नलिखित श्रेणी की महिलाओं पर लागू होती है —
- बलात्कार या अनाचार की पीड़ित महिलाएँ,
- नाबालिग लड़कियाँ,
- विकलांग महिलाएँ,
- विधवा या तलाकशुदा महिलाएँ,
- ऐसी महिलाएँ जिनके पति अनुपस्थित हों।
(b) चिकित्सा विशेषज्ञों की राय की आवश्यकता
- 20 सप्ताह तक: केवल एक डॉक्टर की राय पर्याप्त होगी।
- 20 से 24 सप्ताह तक: दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक होगी।
(c) गोपनीयता की सुरक्षा
- अधिनियम के Section 5A के अनुसार, किसी भी महिला की पहचान या विवरण को गोपनीय रखना अनिवार्य है।
- किसी भी व्यक्ति द्वारा महिला की पहचान सार्वजनिक करना दंडनीय अपराध है।
(d) विशेष चिकित्सा बोर्ड का गठन
- प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में “Medical Board” का गठन किया जाएगा।
- बोर्ड का कार्य 24 सप्ताह से अधिक गर्भ वाले मामलों की चिकित्सा जांच कर यह तय करना होगा कि गर्भपात सुरक्षित है या नहीं।
(e) विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच समानता
- पहले केवल विवाहित महिलाओं को ही गर्भपात का अधिकार था यदि गर्भनिरोधक असफल हो जाए।
- अब अविवाहित महिलाएँ भी इस आधार पर गर्भपात करवा सकती हैं।
यह प्रावधान लैंगिक समानता और प्रजनन स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से अत्यंत प्रगतिशील है।
4. महिला अधिकारों और प्रजनन स्वतंत्रता पर प्रभाव
संशोधित अधिनियम ने भारतीय महिलाओं को “स्वतंत्र निर्णय लेने का संवैधानिक अधिकार” प्रदान किया है।
यह केवल स्वास्थ्य का प्रश्न नहीं, बल्कि गरिमा (dignity), निजता (privacy) और स्वायत्तता (autonomy) का विषय है।
संविधानिक दृष्टि से:
- अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
इन तीनों के सम्मिलित प्रभाव से महिला को यह निर्णय लेने का अधिकार है कि उसे मातृत्व स्वीकार करना है या नहीं।
MTP (संशोधन) अधिनियम, 2021 ने इस संवैधानिक अधिकार को विधिक रूप में स्थापित किया है।
5. सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण: 2022 और 2023 के निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में (X बनाम भारत संघ, 2022) एक ऐतिहासिक फैसला दिया,
जिसमें कहा गया —
“विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात के अधिकार को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “महिला के शरीर और गर्भ से संबंधित निर्णय उसी का मौलिक अधिकार है।”
मुख्य बिंदु:
- अविवाहित महिलाएँ भी 24 सप्ताह तक गर्भपात करवा सकती हैं।
- बलात्कार को केवल “वैवाहिक बलात्कार” तक सीमित नहीं माना गया।
- डॉक्टरों को महिला की इच्छा का सम्मान करना होगा।
यह निर्णय MTP (संशोधन) अधिनियम, 2021 के उद्देश्यों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करता है।
6. अधिनियम की आलोचनाएँ और सीमाएँ
यद्यपि यह अधिनियम प्रगतिशील है, परंतु कुछ चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं —
- 24 सप्ताह की सीमा:
कई मामलों में भ्रूण की असामान्यता (foetal abnormality) 24 सप्ताह के बाद सामने आती है, जबकि कानून उस समय सीमा के बाद सीमित अनुमति देता है। - चिकित्सा बोर्ड की प्रक्रिया:
मेडिकल बोर्ड की राय प्राप्त करने में देरी से गर्भपात जोखिमपूर्ण हो सकता है। - ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी:
ग्रामीण महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएँ उपलब्ध नहीं हो पातीं। - सामाजिक कलंक और शर्म:
अविवाहित या यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएँ अब भी सामाजिक भय से चिकित्सा सहायता नहीं ले पातीं।
इन समस्याओं के समाधान के बिना अधिनियम का उद्देश्य पूर्ण रूप से साकार नहीं हो सकता।
7. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
भारत का MTP संशोधन कानून अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है।
कई देशों में महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया गया है —
- फ्रांस: 14 सप्ताह तक
- कनाडा: बिना किसी सीमा के
- अमेरिका: (Roe v. Wade, 1973 के बाद) अब राज्यों के अधीन
- आयरलैंड और अर्जेंटीना: हाल ही में वैध किया गया
भारत का 2021 संशोधन विश्व के उन प्रगतिशील देशों की श्रेणी में आता है जहाँ महिला की स्वायत्तता सर्वोपरि मानी जाती है।
8. सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण
गर्भपात केवल कानूनी या चिकित्सीय विषय नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ मुद्दा है।
कई धार्मिक और पारंपरिक समूह इसे “जीवन की समाप्ति” मानते हैं, जबकि महिला अधिकार कार्यकर्ता इसे “शारीरिक स्वायत्तता” का प्रतीक कहते हैं।
दोनों दृष्टिकोणों के बीच संतुलन बनाते हुए अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि —
- महिला के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा प्राथमिक हो।
- भ्रूण के अधिकारों का भी मानवीय सम्मान बना रहे।
9. भविष्य की दिशा
भारत को अब निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए —
- ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में सुरक्षित गर्भपात सुविधाएँ बढ़ाना।
- लैंगिक शिक्षा (Sex Education) और प्रजनन स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देना।
- मेडिकल बोर्ड की प्रक्रिया को तेज और डिजिटल बनाना।
- समाज में गर्भपात से जुड़े कलंक को समाप्त करना।
- महिलाओं को कानूनी सहायता और गोपनीयता संरक्षण सुनिश्चित करना।
10. निष्कर्ष
MTP (संशोधन) अधिनियम, 2021 भारत के कानूनी इतिहास में एक मील का पत्थर (Milestone) है।
यह कानून केवल गर्भपात की अनुमति नहीं देता, बल्कि महिलाओं की स्वतंत्रता, सम्मान और आत्मनिर्णय के अधिकार को स्वीकार करता है।
यह अधिनियम भारत की न्यायिक और सामाजिक सोच में आए गहरे परिवर्तन का प्रतीक है —
जहाँ महिला अब किसी के अधीन नहीं, बल्कि स्वयं अपने शरीर और भविष्य की निर्णयकर्ता है।
अंततः कहा जा सकता है —
“MTP संशोधन अधिनियम, 2021 न केवल कानून में बदलाव है, बल्कि यह भारतीय महिला की गरिमा और आत्मनिर्भरता की घोषणा है।”