Media and Law (“मीडिया और विधि” या “मीडिया एवं कानून”) Part -2

51. मीडिया और सूचना का अधिकार (RTI) के दायरे में सरकारी विज्ञापन कैसे आते हैं?
सरकारी विज्ञापनों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु सूचना का अधिकार (RTI) अत्यंत प्रभावी उपकरण है। जब सरकार किसी मीडिया संस्थान को विज्ञापन देती है, तो उसका उद्देश्य, व्यय, चयन मानदंड और प्रसार का विवरण सार्वजनिक धन से संबंधित होता है। इसलिए नागरिक या पत्रकार RTI के तहत पूछ सकते हैं कि किस मीडिया चैनल या अखबार को कितने मूल्य के विज्ञापन दिए गए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकारी विज्ञापन निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और सार्वजनिक हित पर आधारित होने चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ हेतु। यदि कोई सरकारी विज्ञापन केवल पक्षपाती मीडिया को दिया गया हो, तो RTI के माध्यम से उस पर सवाल उठाया जा सकता है। यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग को रोकता है।


52. मीडिया द्वारा रिपोर्टिंग में संपादकीय स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व का संतुलन कैसे हो?
संपादकीय स्वतंत्रता मीडिया को यह अधिकार देती है कि वह अपने दृष्टिकोण से खबरों का चयन और प्रस्तुति कर सके। परंतु इस स्वतंत्रता के साथ उत्तरदायित्व भी जुड़ा है—सत्यता, निष्पक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी का। यदि कोई मीडिया संस्था केवल टीआरपी या राजनीतिक दबाव के कारण झूठी, अपुष्ट या भड़काऊ खबरें दिखाती है, तो यह न केवल पत्रकारिता की मर्यादा के विरुद्ध है, बल्कि समाज को नुकसान भी पहुंचाता है। प्रेस परिषद और न्यायालयों ने स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि मनमानी की जाए। संपादकीय निर्णयों को तथ्यों और जनहित के आधार पर ही लिया जाना चाहिए। ऐसा संतुलन ही मीडिया को विश्वसनीय और प्रभावशाली बनाता है।


53. क्या सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘प्रेस’ की परिभाषा में आते हैं?
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, जैसे फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब आदि पर पत्रकारों, नागरिकों और संगठनों द्वारा समाचार, विचार और रिपोर्ट साझा किए जाते हैं। हालांकि पारंपरिक अर्थ में ‘प्रेस’ उन संस्थाओं को माना जाता है जिनके पास संपादकीय नियंत्रण, प्रमाणिकता और पत्रकारिता संरचना होती है। परंतु आज की डिजिटल युग में सोशल मीडिया भी समाचार का सशक्त माध्यम बन गया है। आईटी नियम 2021 के अनुसार, डिजिटल न्यूज़ पोर्टल्स और सोशल मीडिया न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स को भी प्रेस की सीमित श्रेणी में मान्यता दी गई है और उन पर नियमन लागू किया गया है। अतः जबकि सोशल मीडिया ‘प्रेस’ का पूर्ण विकल्प नहीं है, फिर भी डिजिटल युग में इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।


54. मीडिया में लैंगिक समानता (Gender Equality) की स्थिति क्या है?
मीडिया में लैंगिक समानता का अर्थ है – महिला, पुरुष और अन्य लिंगों के प्रतिनिधित्व और अधिकारों को समान अवसर और सम्मान देना। भारतीय मीडिया में महिला पत्रकारों की संख्या बढ़ी है, लेकिन संपादकीय और नेतृत्व स्तर पर अभी भी प्रतिनिधित्व सीमित है। रिपोर्टिंग में भी महिलाओं से संबंधित विषयों को कई बार स्टीरियोटाइप या सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। ‘NCW’ और ‘Press Council’ ने सुझाव दिए हैं कि महिला से जुड़ी खबरों में संवेदनशीलता और गोपनीयता बनाए रखी जाए। साथ ही, मीडिया संस्थानों को आंतरिक शिकायत तंत्र और कार्यस्थल पर लैंगिक सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। लैंगिक समानता केवल सामाजिक उत्तरदायित्व ही नहीं, बल्कि एक स्वस्थ पत्रकारिता की पहचान भी है।


55. मीडिया और चुनावों में ‘न्यूट्रल रिपोर्टिंग’ का महत्व क्या है?
चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं और मीडिया उस आत्मा का दर्पण। न्यूट्रल रिपोर्टिंग का अर्थ है—बिना किसी राजनीतिक झुकाव या पक्षपात के निष्पक्ष सूचना देना। यदि मीडिया किसी विशेष पार्टी या प्रत्याशी को बढ़ावा देता है, तो वह चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करता है। चुनाव आयोग की आचार संहिता मीडिया को संतुलन बनाए रखने के निर्देश देती है। साथ ही, ‘पेड न्यूज़’ और झूठे प्रचार को निषिद्ध किया गया है। न्यूट्रल रिपोर्टिंग मतदाताओं को सूचित निर्णय लेने में सहायता करती है और लोकतंत्र की विश्वसनीयता को बनाए रखती है। मीडिया को जनमत को दिशा देने की शक्ति प्राप्त है, अतः वह निष्पक्ष और जिम्मेदार भूमिका निभाए—यह उसकी नैतिक और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है।


56. क्या मूकदर्शक मीडिया भी कानूनी रूप से दोषी माना जा सकता है?
मीडिया का कार्य केवल घटनाओं की जानकारी देना ही नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी निभाना भी है। यदि कोई गंभीर अपराध या मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है और मीडिया उसे देखकर भी चुप रहता है या रिपोर्ट नहीं करता, तो वह नैतिक रूप से दोषी हो सकता है। कुछ मामलों में यदि मीडिया जानबूझकर अपराध की जानकारी छिपाता है या अपराधियों की मदद करता है, तो भारतीय दंड संहिता के तहत वह अपराध में भागीदार माने जा सकते हैं। हालाँकि केवल निष्क्रिय रहने मात्र से वह कानूनी रूप से दोषी नहीं होता, लेकिन यदि उसकी चुप्पी से न्याय बाधित हो या अपराध को समर्थन मिले, तो उसे आलोचना और सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।


57. मीडिया और आपदा प्रबंधन में उसकी भूमिका क्या होती है?
आपदा के समय मीडिया की भूमिका जन-जीवन की रक्षा, राहत कार्यों की जानकारी और जागरूकता फैलाने में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जैसे – भूकंप, बाढ़, महामारी या आगजनी जैसी घटनाओं में मीडिया प्रशासन और जनता के बीच सेतु बनता है। NDMA और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण मीडिया को अधिकृत जानकारी प्रदान करते हैं ताकि अफवाहें न फैलें। मीडिया को ऐसे समय में सनसनीखेज रिपोर्टिंग से बचना चाहिए और केवल सत्यापित और आवश्यक जानकारी ही प्रसारित करनी चाहिए। COVID-19 महामारी के दौरान मीडिया ने जागरूकता, नियमों का प्रचार और हेल्पलाइन की जानकारी देकर सकारात्मक भूमिका निभाई। आपदा में मीडिया की जिम्मेदार रिपोर्टिंग न केवल जन-जीवन को बचाती है, बल्कि समाज में एकता और विश्वास भी पैदा करती है।


58. मीडिया और संस्कृति संरक्षण के बीच क्या संबंध है?
मीडिया केवल समाचार का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति का संवाहक भी है। यह देश की भाषा, परंपरा, लोककला, संगीत, नृत्य, खानपान और सामाजिक मूल्यों को प्रसारित और संरक्षित करने का कार्य करता है। टीवी, रेडियो, प्रिंट और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से मीडिया विविधता को दर्शकों तक पहुंचाता है। दूरदर्शन जैसे संस्थानों ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाई है। मीडिया के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं और लोककलाओं को नई पहचान मिलती है। साथ ही, मीडिया का दायित्व है कि वह अश्लील, हिंसात्मक या सांस्कृतिक रूप से अपमानजनक सामग्री न दिखाए जिससे सामाजिक असंतुलन उत्पन्न हो। संस्कृति की रक्षा मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी है।


59. मीडिया और व्यावसायिक दबाव (Corporate Pressure) की भूमिका क्या है?
मीडिया संस्थाएं भी आज व्यापारिक संरचनाओं का हिस्सा हैं, जिनका संचालन विज्ञापनों और कॉर्पोरेट निवेश से होता है। कई बार यह आर्थिक निर्भरता संपादकीय स्वतंत्रता को प्रभावित करती है। यदि किसी बड़े विज्ञापनदाता कंपनी के विरुद्ध खबरें दबा दी जाती हैं या उसके पक्ष में रिपोर्टिंग की जाती है, तो यह पत्रकारिता की निष्पक्षता को नुकसान पहुंचाता है। व्यावसायिक दबाव के कारण कई बार TRP या लाभ के लिए सनसनीखेज और भ्रामक खबरें भी दिखाई जाती हैं। प्रेस परिषद और वरिष्ठ पत्रकारों ने ऐसे दबाव से मुक्त संपादकीय स्वतंत्रता की वकालत की है। मीडिया संस्थानों को अपनी आर्थिक और पत्रकारिता शाखाओं को अलग रखना चाहिए ताकि जनता तक निष्पक्ष और निर्भीक खबरें पहुंचें।


60. मीडिया और भाषायी विविधता को बढ़ावा देने में उसकी भूमिका क्या है?
भारत एक बहुभाषी देश है और मीडिया इस भाषायी विविधता को बनाए रखने और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्षेत्रीय अखबार, रेडियो चैनल, टीवी समाचार और डिजिटल पोर्टल्स स्थानीय भाषाओं में सूचना प्रदान कर न केवल जनता को जोड़ते हैं, बल्कि भाषा और संस्कृति को संरक्षित भी करते हैं। उदाहरणस्वरूप – असमिया, कश्मीरी, मराठी, तमिल, मैथिली जैसी भाषाओं में मीडिया ने जनजागरण, शिक्षा और संस्कृति को व्यापक रूप से फैलाया है। साथ ही, विविध भाषाओं में समाचारों की उपलब्धता लोकतंत्र को मजबूती देती है। भाषा के माध्यम से मीडिया न केवल संप्रेषण करता है, बल्कि भावनाओं, पहचान और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखता है।


61. मीडिया और नैतिक पत्रकारिता के सिद्धांत क्या हैं?
नैतिक पत्रकारिता वे मानक हैं जिनका पालन मीडिया को रिपोर्टिंग करते समय करना चाहिए। इसमें सत्यता, निष्पक्षता, संतुलन, गोपनीयता, सार्वजनिक हित और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे सिद्धांत शामिल हैं। पत्रकारों को तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए, न कि अफवाह या अटकलबाज़ी। रिपोर्टिंग में व्यक्तिगत आक्षेप, भेदभाव या पूर्वाग्रह से बचना चाहिए। प्रेस परिषद ने एक आचार संहिता निर्धारित की है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि पत्रकारिता को समाज में नफरत, हिंसा या भ्रांति नहीं फैलानी चाहिए। पीड़ितों, बच्चों और महिलाओं से संबंधित मामलों में विशेष संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। नैतिक पत्रकारिता केवल कानूनी दायित्व नहीं, बल्कि समाज और लोकतंत्र के प्रति पत्रकार की जिम्मेदारी भी है।


62. मीडिया का टीआरपी (TRP) दबाव और उसका प्रभाव क्या होता है?
टीआरपी (Television Rating Point) दर्शकों की संख्या को मापने का पैमाना है, जो विज्ञापन से मिलने वाले राजस्व पर प्रभाव डालता है। इस दबाव में आकर मीडिया संस्थान कभी-कभी सनसनीखेज, भ्रामक या असंवेदनशील खबरें दिखाते हैं ताकि अधिक दर्शक जुट सकें। इससे पत्रकारिता की गुणवत्ता, सत्यता और नैतिकता प्रभावित होती है। कई बार गंभीर मुद्दों की जगह ‘ग्लैमर’, ‘विवाद’, या ‘भय’ आधारित खबरें दिखाई जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी टीआरपी की अंधी दौड़ पर चिंता व्यक्त की है। मीडिया संस्थानों को केवल टीआरपी के बजाय जनहित, सूचना की गुणवत्ता और पत्रकारिता के मूल्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए।


63. मीडिया और ‘फेक न्यूज’ का कानूनी पक्ष क्या है?
फेक न्यूज, अर्थात झूठी या भ्रामक जानकारी को जानबूझकर फैलाना, एक गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्या है। भारत में आईटी अधिनियम 2000, भारतीय दंड संहिता की धारा 505, और धारा 66D के तहत फेक न्यूज फैलाने वाले व्यक्ति को दंडित किया जा सकता है। विशेषकर जब ऐसी खबरें सांप्रदायिक तनाव, दंगे, या सामाजिक अस्थिरता को जन्म देती हैं, तो प्रशासन कड़ी कार्रवाई करता है। सरकार ने ‘PIB Fact Check’ और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर निगरानी समितियां गठित की हैं जो गलत जानकारी को ट्रैक करती हैं। मीडिया को किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से पहले उसकी तथ्य-जांच अवश्य करनी चाहिए। फेक न्यूज से लोकतंत्र, शांति और विश्वास को गहरी क्षति हो सकती है।


64. क्या प्रेस की आजादी असीमित है?
प्रेस की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आती है, लेकिन यह पूर्णतः असीमित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) के तहत राज्य कुछ उचित प्रतिबंध लगा सकता है—जैसे कि राष्ट्र की सुरक्षा, नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि और न्यायपालिका की अवमानना से जुड़े विषयों पर। प्रेस को स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार है, परंतु जब वह कानून या सामाजिक संतुलन को प्रभावित करता है, तब उस पर नियंत्रण संभव है। उदाहरण के लिए, आतंकवाद से जुड़े मामलों में लाइव रिपोर्टिंग या पीड़ित की पहचान उजागर करना प्रतिबंधित है। अतः प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, परंतु वह संवैधानिक और सामाजिक दायरे में रहकर ही सार्थक बनती है।


65. मीडिया और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन कैसे बनाएं?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। मीडिया का कार्य है धर्म से संबंधित जानकारी देना, परंतु इस प्रक्रिया में किसी भी धर्म, मान्यता या धार्मिक भावना का अपमान नहीं होना चाहिए। मीडिया को विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह किसी धर्म को गलत रूप में प्रस्तुत न करे या किसी विशेष समुदाय को लक्षित कर विवादास्पद रिपोर्टिंग न करे। भारतीय दंड संहिता की धारा 295A के तहत किसी धर्म का अपमान दंडनीय अपराध है। धार्मिक विषयों पर रिपोर्टिंग करते समय संतुलन, तथ्य और संवेदनशीलता आवश्यक होती है। मीडिया को यह याद रखना चाहिए कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है और उसका सम्मान करना ही एक जिम्मेदार पत्रकारिता की पहचान है।


66. मीडिया और लोकतंत्र के बीच संबंध को स्पष्ट करें।
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह जनता और सरकार के बीच सेतु का कार्य करता है। मीडिया सरकार की नीतियों, कार्यप्रणाली और निर्णयों की समीक्षा करता है और जनता की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाता है। यह जनमत निर्माण, जवाबदेही सुनिश्चित करने और पारदर्शिता लाने में सहायक होता है। यदि मीडिया निष्पक्ष, निर्भीक और स्वतंत्र रूप से कार्य करे, तो वह लोकतंत्र को मजबूत करता है। परंतु जब मीडिया पक्षपात, अफवाह या कॉर्पोरेट दबाव में कार्य करता है, तो लोकतंत्र को हानि पहुंचती है। एक सशक्त लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष और जवाबदेह मीडिया आवश्यक है।


67. मीडिया और महिला सशक्तिकरण में उसका योगदान क्या है?
मीडिया महिलाओं के अधिकारों, उपलब्धियों और संघर्षों को उजागर कर समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। मीडिया ने दहेज, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। नारी शक्ति अभियान, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, #MeToo आंदोलन जैसे विषयों को मीडिया ने मंच प्रदान किया जिससे महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने का बल मिला। साथ ही, फिल्मों, विज्ञापनों और रिपोर्टिंग में यदि महिलाओं को सशक्त रूप में दिखाया जाए, तो वह सामाजिक सोच में बदलाव लाने में सहायक होता है। मीडिया को महिलाओं को केवल पीड़िता नहीं, बल्कि नेतृत्वकर्ता, निर्णयकर्ता और सशक्त नागरिक के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।


68. मीडिया और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का पालन कैसे करता है?
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणापत्र (UDHR) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सूचना का अधिकार, निजता और गरिमा जैसे अधिकार दिए गए हैं, जो मीडिया की कार्यशैली से सीधे जुड़े हैं। मीडिया को रिपोर्टिंग करते समय इन मूल अधिकारों का पालन करना चाहिए। उदाहरण के लिए—संघर्ष क्षेत्र, शरणार्थियों, अल्पसंख्यकों या पीड़ितों की रिपोर्टिंग करते समय गरिमा और संवेदनशीलता जरूरी होती है। संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देश मीडिया से उम्मीद करते हैं कि वह युद्ध, हिंसा और मानवीय त्रासदी की रिपोर्टिंग में मानवीय गरिमा बनाए रखे। मीडिया को स्वतंत्र रहते हुए भी ऐसे मानकों का पालन करना चाहिए ताकि वह मानवाधिकारों का संरक्षक बन सके।


69. क्या मीडिया जनता में ‘मोरल पैनिक’ (नैतिक घबराहट) फैला सकता है?
‘मोरल पैनिक’ वह सामाजिक स्थिति है जब मीडिया किसी घटना या व्यक्ति को इस तरह प्रस्तुत करता है कि समाज में डर, चिंता या घबराहट उत्पन्न हो जाती है। उदाहरणस्वरूप—सांप्रदायिक घटनाओं, महामारी या अपराधों को अतिरंजित कर प्रस्तुत करना। इससे सामाजिक तनाव और पूर्वाग्रह उत्पन्न हो सकते हैं। मीडिया को अपनी भूमिका एक जागरूक प्रहरी की तरह निभानी चाहिए, न कि सनसनी फैलाने वाले मंच के रूप में। प्रेस परिषद और सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर बल दिया है कि खबरों की प्रस्तुति संतुलित, तथ्यात्मक और संयमित होनी चाहिए ताकि समाज में भ्रम या भय न फैले।


70. प्रेस परिषद क्या है और इसकी भूमिका क्या है?
प्रेस परिषद (Press Council of India) एक वैधानिक निकाय है जिसे 1978 में Press Council Act के तहत गठित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य प्रिंट मीडिया की स्वतंत्रता को बनाए रखना और पत्रकारिता में नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित करना है। यह एक प्रकार का मीडिया निगरानी तंत्र है जो पत्रकारिता में अनैतिक आचरण, झूठी खबरें या पक्षपात पर ध्यान देता है। प्रेस परिषद को शिकायतें सुनने, जांच करने और चेतावनी देने का अधिकार है, परंतु यह दंडात्मक शक्ति नहीं रखता। यह पत्रकारों और समाचार पत्रों को दिशा-निर्देश और आचार संहिता प्रदान करता है। प्रेस परिषद पत्रकारिता को स्वतंत्र और जिम्मेदार बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

71. ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कम्प्लेंट्स काउंसिल (BCCC) क्या है?
BCCC, यानी ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कम्प्लेंट्स काउंसिल एक स्व-नियामक निकाय है, जिसे इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (IBF) द्वारा स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य टेलीविजन कार्यक्रमों की सामग्री पर निगरानी रखना और किसी भी आपत्तिजनक, अश्लील, हिंसक या असंवेदनशील कंटेंट पर जनता की शिकायतों की जांच करना है। यह मुख्यतः जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों की सामग्री से संबंधित होता है, जैसे – धारावाहिक, रियलिटी शो आदि। BCCC को अधिकार है कि वह संबंधित चैनल को चेतावनी दे, जुर्माना लगाए या कार्यक्रम को हटाने की सिफारिश करे। हालाँकि इसके निर्णय बाध्यकारी नहीं होते, परंतु इसका नैतिक प्रभाव बहुत होता है। यह संस्था भारतीय समाज की सांस्कृतिक संवेदनशीलता और दर्शकों की नैतिक अपेक्षाओं की रक्षा करती है।


72. मीडिया की भूमिका ‘पब्लिक वॉचडॉग’ (जन प्रहरी) के रूप में कैसे होती है?
मीडिया को ‘पब्लिक वॉचडॉग’ इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यह सत्ता, प्रशासन और संस्थानों पर निगरानी रखता है और जनता को सच्चाई से अवगत कराता है। मीडिया भ्रष्टाचार, अनियमितता, सामाजिक अन्याय, मानवाधिकार हनन आदि को उजागर कर जनता के अधिकारों की रक्षा करता है। उदाहरण के लिए, घोटालों की खोजी रिपोर्टिंग या जनहित से जुड़ी खबरें मीडिया द्वारा उजागर की जाती हैं। यह लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को बनाए रखने का माध्यम बनता है। एक सजग मीडिया सरकार को उत्तरदायी बनाता है और जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता है। परंतु जब मीडिया खुद पूर्वाग्रहपूर्ण हो जाए या सत्ता का समर्थक बन जाए, तो यह भूमिका प्रभावित हो जाती है।


73. मीडिया और विज्ञापन के बीच क्या कानूनी अंतर होता है?
मीडिया का कार्य तथ्यात्मक जानकारी, समाचार और विचार प्रस्तुत करना है, जबकि विज्ञापन एक व्यावसायिक संदेश होता है जिसका उद्देश्य उत्पाद या सेवा का प्रचार करना होता है। विज्ञापन की सामग्री उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत नियंत्रित होती है, जबकि समाचार रिपोर्टिंग संविधान और प्रेस परिषद की आचार संहिता से संचालित होती है। यदि कोई विज्ञापन झूठा, भ्रामक या अप्रमाणित हो, तो उस पर वैधानिक कार्रवाई हो सकती है। वहीं मीडिया को विज्ञापन और खबर के बीच स्पष्ट भेद बनाए रखना होता है। ‘पेड न्यूज’ इसी अंतर को खत्म करने का एक उदाहरण है, जो अवैध और अनैतिक दोनों है। पत्रकारिता की स्वतंत्रता तभी बनी रहती है जब विज्ञापन से उसका संपादकीय पक्ष प्रभावित न हो।


74. भारत में ‘पेड न्यूज’ की कानूनी स्थिति क्या है?
‘पेड न्यूज’ वह स्थिति है जब पैसे लेकर समाचार के रूप में प्रचार प्रकाशित किया जाता है, जिससे पाठकों या दर्शकों को भ्रम होता है कि यह स्वतंत्र रिपोर्टिंग है। यह चुनावों में सबसे अधिक देखा गया है, जब प्रत्याशी पैसे देकर मीडिया में अपना पक्ष सकारात्मक रूप में छपवाते हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना है। साथ ही, प्रेस परिषद और PCI Act के तहत भी यह एक अनैतिक पत्रकारिता की श्रेणी में आता है। ‘पेड न्यूज’ लोकतंत्र को कमजोर करता है, क्योंकि यह जनता को गलत जानकारी देता है और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यह मीडिया की विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल उठाता है।


75. ‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ मीडिया को कैसे सशक्त बनाता है?
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) पत्रकारों और मीडिया को सरकारी दस्तावेज़ों, नीतियों, खर्चों और निर्णयों से संबंधित जानकारी प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार प्रदान करता है। इससे मीडिया सरकारी पारदर्शिता को सुनिश्चित कर सकता है और जनहित में रिपोर्टिंग कर सकता है। उदाहरणस्वरूप – सरकारी योजनाओं में घोटाले, नियुक्तियों में अनियमितता, सार्वजनिक धन का दुरुपयोग आदि को उजागर करने में RTI एक प्रभावी साधन है। यह कानून प्रेस को सिर्फ सरकारी प्रेस नोट पर निर्भर नहीं रहने देता, बल्कि स्वतंत्र रूप से साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग करने का मार्ग खोलता है। RTI के माध्यम से मीडिया लोकतंत्र को और अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बनाने में भूमिका निभाता है।


76. क्या मीडिया रिपोर्टिंग के लिए ‘पूर्व सेंसरशिप’ (Pre-censorship) कानूनी है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत प्रेस की स्वतंत्रता सुरक्षित है, और सामान्यतः पूर्व सेंसरशिप (Pre-censorship) लागू नहीं की जा सकती। यानी, सरकार किसी समाचार को प्रकाशित होने से पहले रोक नहीं सकती, जब तक कोई आपात स्थिति न हो या सुरक्षा से जुड़ा मामला न हो। हालाँकि कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे – युद्ध, सार्वजनिक शांति को खतरा, या अदालत के आदेश के अंतर्गत, कुछ सामग्री के प्रसारण पर अस्थायी रोक लगाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सेंसरशिप को लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध माना है। अतः मीडिया को संवैधानिक स्वतंत्रता प्राप्त है, परंतु इसका प्रयोग जिम्मेदारी और संयम के साथ किया जाना चाहिए।


77. भारत में ‘मीडिया ट्रायल’ की सीमाएं क्या हैं?
‘मीडिया ट्रायल’ उस स्थिति को कहते हैं जब कोई मामला न्यायालय में लंबित होता है और मीडिया आरोपी को पहले ही दोषी या निर्दोष घोषित कर देता है। यह न्यायपालिका की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है और आरोपी के न्याय के अधिकार (Right to Fair Trial) का उल्लंघन करता है। भारतीय संविधान और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अनुसार, केवल अदालत को ही निर्णय देने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने भी मीडिया से संयम बरतने की अपील की है और कहा है कि मीडिया ‘जनता की अदालत’ बनकर न्याय प्रक्रिया को प्रभावित न करे। यदि मीडिया ट्रायल के कारण कोई केस प्रभावित होता है, तो यह न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) के अंतर्गत आ सकता है।


78. मीडिया और बाल अधिकारों की रक्षा में उसकी भूमिका क्या है?
मीडिया बच्चों से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग करते समय विशेष सतर्कता और संवेदनशीलता बरते, यह कानूनी और नैतिक दोनों दृष्टिकोण से आवश्यक है। POCSO Act, 2012 और Juvenile Justice Act, 2015 के तहत बच्चों की पहचान, नाम, स्कूल, या अन्य विवरण का प्रकटीकरण प्रतिबंधित है। मीडिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी रिपोर्ट बच्चों की गरिमा या सुरक्षा को खतरे में न डाले। साथ ही, मीडिया शिक्षा, बाल श्रम, बाल विवाह, शोषण, और टीकाकरण जैसे विषयों पर जागरूकता फैलाकर बच्चों के अधिकारों की रक्षा में सहायक हो सकता है। मीडिया एक ऐसा मंच है जो बच्चों की आवाज़ को समाज और नीति निर्माताओं तक पहुंचा सकता है।


79. डिजिटल मीडिया के लिए लागू IT Rules, 2021 क्या हैं?
सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021, भारत सरकार द्वारा डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म को विनियमित करने हेतु बनाए गए हैं। इनके अंतर्गत डिजिटल न्यूज़ मीडिया को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत पंजीकरण करना होता है। नियमों में 3-स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली, फैक्ट चेक तंत्र, और नियमित निगरानी की व्यवस्था की गई है। यदि कोई सामग्री राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अश्लीलता को प्रभावित करती है, तो सरकार उसे हटाने का आदेश दे सकती है। इन नियमों का उद्देश्य डिजिटल मीडिया की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है, साथ ही उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना भी है।


80. मीडिया में ‘ओम्बड्समैन’ (Ombudsman) की अवधारणा क्या है?
‘ओम्बड्समैन’ एक स्वतंत्र शिकायत अधिकारी होता है जो मीडिया उपभोक्ताओं की शिकायतों, सुझावों और आलोचनाओं पर निष्पक्षता से कार्य करता है। यह संस्था पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं को एक मंच देती है जहां वे रिपोर्टिंग की त्रुटि, पक्षपात, अशुद्धि या नैतिक उल्लंघन की शिकायत कर सकते हैं। कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और चैनलों ने स्वेच्छा से ओम्बड्समैन नियुक्त किए हैं, जो संपादकीय नीति की समीक्षा करते हैं। यह पत्रकारिता में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और विश्वास को बढ़ाता है। भारत में यह अभी वैकल्पिक है, लेकिन इसकी आवश्यकता बढ़ रही है ताकि मीडिया स्वयं को नियंत्रित और जनता के प्रति जवाबदेह बना सके।


81. मीडिया और गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy) में संतुलन कैसे हो?
गोपनीयता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है। मीडिया को सूचनाएं प्रकाशित करने की स्वतंत्रता है, परंतु यह निजता के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकती। किसी व्यक्ति की निजी जानकारी जैसे स्वास्थ्य, वैवाहिक स्थिति, व्यक्तिगत रिश्ते या वित्तीय विवरण बिना सहमति के प्रकाशित करना अवैध हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के Puttaswamy बनाम भारत सरकार निर्णय (2017) ने गोपनीयता को मौलिक अधिकार घोषित किया। मीडिया को सार्वजनिक हित और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। यदि कोई जानकारी सार्वजनिक हित में नहीं है, तो उसका प्रकटीकरण गोपनीयता का उल्लंघन माना जा सकता है। अतः पत्रकारिता में निजता का सम्मान अनिवार्य है।


82. मीडिया और राष्ट्र की सुरक्षा के बीच संबंध क्या है?
राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित मामलों में मीडिया को अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। सैन्य गतिविधियों, आतंकवादी हमलों या सुरक्षा रणनीतियों की रिपोर्टिंग करते समय, मीडिया को जानकारी की सत्यता, स्रोत और राष्ट्रहित को प्राथमिकता देनी चाहिए। यदि मीडिया द्वारा असावधानी से संवेदनशील जानकारी प्रसारित की जाती है, तो इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। Official Secrets Act, 1923 और Unlawful Activities (Prevention) Act के तहत राष्ट्रविरोधी रिपोर्टिंग दंडनीय हो सकती है। मीडिया की स्वतंत्रता आवश्यक है, लेकिन सुरक्षा से संबंधित खबरों में संतुलन और जिम्मेदारी उतनी ही जरूरी है।


83. मीडिया और अदालतों में लाइव रिपोर्टिंग की वैधानिक स्थिति क्या है?
अदालतों में लाइव रिपोर्टिंग पर कोई स्पष्ट निषेध नहीं है, परंतु यह न्याय के निष्पक्ष संचालन को प्रभावित कर सकती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि न्यायालय की कार्यवाही की रिपोर्टिंग की अनुमति है, परंतु कुछ संवेदनशील मामलों—जैसे बलात्कार, नाबालिगों के मामले या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी सुनवाई—में रिपोर्टिंग सीमित की जा सकती है। कोर्ट की अनुमति के बिना कैमरे ले जाना आमतौर पर प्रतिबंधित होता है। न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखना, विचाराधीन मामलों में पूर्वाग्रह न फैलाना और निष्पक्ष सुनवाई में बाधा न डालना आवश्यक है। अतः मीडिया को रिपोर्टिंग करते समय संतुलन बनाए रखना चाहिए।


84. क्या प्रेस फ्रीडम केवल पत्रकारों का अधिकार है?
प्रेस की स्वतंत्रता पत्रकारों, मीडिया संस्थानों, नागरिकों और जनता के सूचना पाने के अधिकार से जुड़ी हुई है। संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता अलग से उल्लिखित नहीं है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) का ही हिस्सा है। अतः प्रेस फ्रीडम केवल पत्रकारों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष और सत्य जानकारी पाने का अधिकार है। पत्रकार और मीडिया संस्थान इस स्वतंत्रता के माध्यम से समाज की आवाज़ बनते हैं। यह अधिकार जनसंचार माध्यमों को ही नहीं, बल्कि किसी भी व्यक्ति को ब्लॉग, डिजिटल प्लेटफॉर्म या सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी साझा करने का अधिकार देता है—जब तक वह कानूनी सीमाओं में हो।


85. मीडिया और मानहानि कानून (Defamation) के बीच क्या संबंध है?
यदि मीडिया किसी व्यक्ति के बारे में झूठी, अपमानजनक या तथ्यहीन जानकारी प्रकाशित करता है जिससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचती है, तो वह मानहानि (Defamation) के अंतर्गत आता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के अनुसार, मानहानि एक दंडनीय अपराध है। मीडिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रकाशित सामग्री तथ्यात्मक, संतुलित और अपमान रहित हो। आलोचना और रिपोर्टिंग की स्वतंत्रता के साथ यह उत्तरदायित्व भी जुड़ा है कि वह किसी की छवि को बिना प्रमाण हानि न पहुँचाए। यदि मानहानि साबित होती है, तो मीडिया संस्था और संबंधित पत्रकार को जुर्माना या कारावास तक का दंड मिल सकता है।


86. ‘न्यूज़ फेक्टर’ और मीडिया एथिक्स में उसका महत्व क्या है?
‘न्यूज़ फेक्टर’ उन तत्वों को कहते हैं जो किसी समाचार को महत्वपूर्ण, रोचक और जनहित से जुड़ा बनाते हैं—जैसे ताजगी (timeliness), महत्व (significance), असामान्यता (novelty), मानवीय रुचि (human interest), और टकराव (conflict)। परंतु केवल इन तत्वों के आधार पर यदि मीडिया खबरों को सनसनीखेज बनाता है, तो वह एथिकल जर्नलिज़्म के विरुद्ध जाता है। समाचार की गुणवत्ता, सत्यता और निष्पक्षता को बनाए रखते हुए ही न्यूज़ फेक्टर का प्रयोग होना चाहिए। केवल टीआरपी या क्लिक-बेट के लिए खबरों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना पत्रकारिता की नैतिकता को हानि पहुंचाता है। अतः न्यूज़ फेक्टर और एथिक्स के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।


87. मीडिया और प्रेस फोटोग्राफी – कानूनी एवं नैतिक सीमाएं क्या हैं?
प्रेस फोटोग्राफी पत्रकारिता का अहम हिस्सा है, परंतु इसमें निजता, गरिमा और कानूनी अधिकारों का पालन आवश्यक होता है। किसी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी तस्वीर खींचना, विशेष रूप से निजी स्थानों पर, गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है। आपदाओं, अपराध स्थलों, या पीड़ितों की तस्वीरें लेते समय विशेष सावधानी आवश्यक है। बच्चों, महिलाओं और मृतकों की तस्वीरें प्रकाशित करने से पहले पत्रकारों को नैतिक सोच रखनी चाहिए। फोटोग्राफ को गलत संदर्भ में प्रस्तुत करना भी भ्रामक हो सकता है। प्रेस काउंसिल की आचार संहिता और अंतरराष्ट्रीय फोटोजर्नलिज़्म नियम इन बातों को स्पष्ट करते हैं। फोटोग्राफ शक्ति है—परंतु जिम्मेदारी के साथ।


88. मीडिया और वैचारिक विविधता (Ideological Pluralism) क्या है?
वैचारिक विविधता का अर्थ है—विभिन्न दृष्टिकोणों, विचारधाराओं और दृष्टिसंपन्न आवाजों को समान रूप से प्रस्तुत करना। मीडिया का यह उत्तरदायित्व है कि वह केवल एक पक्ष की नहीं, बल्कि सभी पक्षों की बातों को सामने लाए। इससे लोकतंत्र में बहस, आलोचना और संवाद की संस्कृति बनती है। यदि मीडिया केवल एक विचारधारा या राजनीतिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, तो यह समाज में एकपक्षीयता और पूर्वाग्रह फैलाता है। वैचारिक विविधता दर्शकों को व्यापक दृष्टिकोण देती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। एक स्वतंत्र और विविध मीडिया लोकतंत्र की मजबूती की पहचान है।


89. प्रेस की आजादी और आपातकाल (Emergency) के दौरान भारत में क्या हुआ था?
भारत में 1975 से 1977 तक लगे आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर अंकुश लगाए गए थे। तत्कालीन सरकार ने प्रेस को सेंसर कर दिया था, कई अखबारों पर रोक लगी, संपादकों को जेल भेजा गया, और आलोचनात्मक लेखन को प्रतिबंधित कर दिया गया। The Indian Express और The Statesman जैसे अखबारों ने प्रतिरोध भी किया, लेकिन ज्यादातर मीडिया संस्थानों को झुकना पड़ा। यह कालखंड भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी रहा कि प्रेस की स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है। आपातकाल के बाद संविधान में 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 352–359 में संशोधन किए गए ताकि मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके। यह घटना आज भी प्रेस की आजादी के महत्व को रेखांकित करती है।


90. मीडिया और न्यायिक निष्पक्षता – टकराव या सहयोग?
मीडिया और न्यायपालिका दोनों ही लोकतंत्र के स्तंभ हैं। मीडिया का कार्य है – न्यायपालिका के कार्यों की रिपोर्टिंग और जनजागरूकता, जबकि न्यायपालिका का कार्य है – निष्पक्ष निर्णय देना। परंतु यदि मीडिया किसी मामले को पहले ही फैसला कर दे या आरोपी को दोषी साबित कर दे, तो यह न्यायिक निष्पक्षता में हस्तक्षेप माने जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मीडिया को रिपोर्टिंग की स्वतंत्रता है, परंतु वह न्याय प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकता। वहीं, न्यायपालिका को भी चाहिए कि वह मीडिया की भूमिका को दबाने के बजाय संतुलन बनाए। दोनों संस्थाओं को संविधान के दायरे में रहकर सहयोग और संतुलन के साथ कार्य करना चाहिए।

91. भारत में सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के कानूनी उपाय क्या हैं?
भारत में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने हेतु आईटी अधिनियम, 2000 और आईटी नियम, 2021 लागू हैं। इन नियमों के अंतर्गत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को “मध्यवर्ती” (intermediaries) माना गया है, जिन पर कुछ वैधानिक उत्तरदायित्व हैं। इसमें उपयोगकर्ताओं की शिकायतों के समाधान के लिए ग्रिवेंस ऑफिसर, साप्ताहिक रिपोर्टिंग, तथा फर्जी समाचार और आपत्तिजनक सामग्री को हटाने की प्रक्रिया शामिल है। यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर राष्ट्रविरोधी, धार्मिक घृणा फैलाने वाला या अश्लील कंटेंट पोस्ट करता है, तो उसे आईपीसी की धारा 153A, 295A, 499 आदि के तहत दंडित किया जा सकता है। सरकार को यह भी अधिकार है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए किसी सामग्री को ब्लॉक कर सके।


92. क्या मीडिया कॉर्पोरेट हितों के प्रभाव में आ जाता है?
वर्तमान समय में कई मीडिया हाउस बड़े कॉर्पोरेट समूहों के स्वामित्व में हैं, जिससे कभी-कभी खबरों की निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं। कॉर्पोरेट विज्ञापन और निवेश, मीडिया की संपादकीय स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में मीडिया कुछ मुद्दों पर मौन रह जाता है या खबरों को एकतरफा प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए, बड़ी कंपनियों से जुड़े घोटालों की रिपोर्टिंग में विलंब या पक्षपात देखने को मिला है। हालांकि, भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता और जनहित पत्रकारिता का भी अस्तित्व है जो कॉर्पोरेट दबाव के बावजूद सच्चाई सामने लाने का प्रयास करती है। मीडिया को चाहिए कि वह कॉर्पोरेट हितों से ऊपर उठकर जनहित को प्राथमिकता दे।


93. ‘संपादकीय स्वतंत्रता’ (Editorial Freedom) का क्या महत्व है?
संपादकीय स्वतंत्रता का अर्थ है कि समाचार संपादक किसी बाहरी दबाव, जैसे—सरकार, विज्ञापनदाता, राजनीतिक दल या कॉर्पोरेट—के बिना स्वतंत्र रूप से खबरों का चयन और प्रस्तुति कर सके। यह स्वतंत्रता एक निष्पक्ष और विश्वसनीय मीडिया की रीढ़ होती है। यदि संपादकीय निर्णय दबाव में लिए जाएं, तो पत्रकारिता की साख और लोकतंत्र दोनों को नुकसान होता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि स्वतंत्र मीडिया एक लोकतंत्र का आवश्यक अंग है। संपादकीय स्वतंत्रता से ही जनहित में साहसिक और ईमानदार रिपोर्टिंग संभव हो पाती है। इस स्वतंत्रता के साथ पत्रकारों को जिम्मेदारी और नैतिकता का पालन भी अनिवार्य रूप से करना चाहिए।


94. मीडिया में ‘सेल्फ-रेगुलेशन’ का क्या तात्पर्य है?
‘सेल्फ-रेगुलेशन’ का अर्थ है कि मीडिया संस्थान स्वयं ही अपनी आचार संहिता, नैतिक मानकों और जिम्मेदारी का पालन करें, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के। भारत में न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA), प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और BCCC जैसे संस्थान इसी अवधारणा पर कार्य करते हैं। इसका उद्देश्य सरकारी सेंसरशिप से बचते हुए मीडिया को जिम्मेदार और आत्मनिर्भर बनाना है। हालांकि, जब मीडिया सेल्फ-रेगुलेशन में विफल होता है—जैसे फेक न्यूज, पेड न्यूज, या भ्रामक रिपोर्टिंग—तो सरकार बाध्य होकर नियम लागू करती है। इसलिए, सेल्फ-रेगुलेशन एक आदर्श प्रणाली है, लेकिन उसके सफल क्रियान्वयन के लिए मीडिया की ईमानदारी और पारदर्शिता जरूरी है।


95. मीडिया और ट्रायल बाय मीडिया (Trial by Media) में अंतर स्पष्ट करें।
मीडिया का कार्य है—जनता को सूचित करना, जबकि ट्रायल बाय मीडिया वह स्थिति है जब मीडिया किसी आरोपित को कोर्ट के निर्णय से पहले ही दोषी या निर्दोष घोषित कर देता है। यह न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है क्योंकि भारत की न्याय प्रणाली ‘निर्दोष सिद्ध होने तक दोषी नहीं’ की अवधारणा पर आधारित है। मीडिया ट्रायल से आरोपी की छवि, सामाजिक जीवन और मुकदमे की निष्पक्षता प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि विचाराधीन मामलों में मीडिया को संयम बरतना चाहिए और किसी भी खबर को निर्णय की तरह प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। इसलिए निष्पक्ष रिपोर्टिंग और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन आवश्यक है।


96. क्या सोशल मीडिया पत्रकारिता का हिस्सा माना जा सकता है?
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया पत्रकारिता का एक प्रभावी उपकरण बन चुका है। कई पत्रकार, समाचार संस्थान और स्वतंत्र लेखक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर समाचार साझा करते हैं। यह सूचना के तेज प्रसार, तात्कालिक रिपोर्टिंग और सीधे संवाद का साधन बन गया है। हालांकि, सोशल मीडिया पर फेक न्यूज, बिना सत्यापन के सामग्री, और पक्षपातपूर्ण राय भी बड़ी चुनौती है। इसलिए पत्रकारिता के मूल तत्व—जैसे सत्यता, निष्पक्षता और स्रोत की पुष्टि—का पालन सोशल मीडिया पत्रकारिता में भी अनिवार्य है। उचित आचार संहिता और वैधानिक नियंत्रण से ही सोशल मीडिया को पत्रकारिता के सकारात्मक भाग के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।


97. क्या ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़ी हुई है?
‘नेट न्यूट्रैलिटी’ का अर्थ है कि इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) सभी वेबसाइटों, एप्लिकेशनों और कंटेंट को समान रूप से उपलब्ध कराएं, बिना किसी भेदभाव या प्राथमिकता के। यदि किसी विशेष वेबसाइट या प्लेटफॉर्म को तेज गति, मुफ्त डेटा या एक्सेस में विशेष सुविधा दी जाए, तो यह डिजिटल असमानता और मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालता है। भारत सरकार ने 2018 में नेट न्यूट्रैलिटी का समर्थन करते हुए टेलीकॉम कंपनियों को इस प्रकार का भेदभाव करने से रोका है। नेट न्यूट्रैलिटी से डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता को समान अवसर मिलता है, जो सूचना के लोकतंत्रीकरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूती देता है।


98. भारत में मीडिया शिक्षण (Media Literacy) की आवश्यकता क्यों है?
मीडिया शिक्षण का तात्पर्य है—जनता को यह सिखाना कि वे समाचारों, सोशल मीडिया पोस्ट्स और अन्य मीडिया सामग्री को कैसे समझें, उसका मूल्यांकन करें और फर्जी खबरों से बचें। फेक न्यूज, ट्रोलिंग, घृणा फैलाने वाले संदेश और प्रचार का मुकाबला तभी किया जा सकता है जब नागरिकों को सूचना की समझ हो। स्कूल, कॉलेज, पत्रकारिता संस्थान और स्वयंसेवी संगठन मीडिया साक्षरता के कार्यक्रम चला सकते हैं। इससे लोकतांत्रिक नागरिक अधिक सचेत, उत्तरदायी और तथ्य-आधारित निर्णय लेने में सक्षम होंगे। एक मीडिया साक्षर समाज ही स्वतंत्र और जवाबदेह मीडिया की नींव को मजबूत कर सकता है।


99. क्या डिजिटल मीडिया को पारंपरिक मीडिया के समान अधिकार और जिम्मेदारियां हैं?
डिजिटल मीडिया, जैसे न्यूज़ पोर्टल्स, यूट्यूब चैनल्स और ब्लॉग्स, तेजी से पारंपरिक मीडिया जैसे टीवी और अखबारों की जगह ले रहे हैं। इन दोनों के बीच अंतर माध्यम का है, पर उद्देश्य एक ही—सूचना का संप्रेषण। इसलिए डिजिटल मीडिया पर भी वही जिम्मेदारियां लागू होती हैं—सत्यता, निष्पक्षता, गोपनीयता, और सार्वजनिक हित। भारत सरकार ने आईटी नियम, 2021 के माध्यम से डिजिटल मीडिया को भी वैधानिक दायरे में लाने का प्रयास किया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि डिजिटल माध्यमों पर कोई नियंत्रण नहीं होने से फेक न्यूज का खतरा अधिक है। अतः डिजिटल मीडिया को भी पारंपरिक मीडिया जैसी ही नैतिक और कानूनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए।


100. मीडिया की भूमिका ‘सिविक एजुकेशन’ (Civic Education) में क्या है?
मीडिया केवल सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि एक सशक्त ‘सिविक एजुकेटर’ भी है। यह नागरिकों को उनके अधिकार, कर्तव्य, संवैधानिक व्यवस्था, चुनाव प्रक्रिया, नीतियों और जन कल्याणकारी योजनाओं के बारे में शिक्षित करता है। उदाहरणस्वरूप, मीडिया ने मतदाता जागरूकता अभियान, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण सुरक्षा, कोविड-19 वैक्सीनेशन आदि विषयों पर प्रभावी कार्य किया। एक सशक्त मीडिया नागरिकों को लोकतंत्र में भागीदारी के लिए प्रेरित करता है और उन्हें सही जानकारी देकर जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करता है। सिविक एजुकेशन के क्षेत्र में मीडिया की भूमिका जनतंत्र को जागरूक, उत्तरदायी और भागीदारीपूर्ण बनाने में अहम होती है।