“Madras High Court ने क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति (Property) के रूप में स्वीकार किया—‘ट्रस्ट में रखी जा सकती’ वस्तु”
1. प्रस्तावना
डिजिटल संपत्ति-दुनिया में तेजी से विकास कर रही हैं, और अपनी कानूनी स्थिति तय करने की दिशा में बड़ी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, मद्रास उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को भारतीय कानून के अंतर्गत “संपत्ति (property)” के रूप में माना जाना चाहिए, तथा यह कि इसे ट्रस्ट (trust) में रखा जाना भी संभव है।
इस लेख में हम इस निर्णय का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे — उसके तथ्य-परिस्थितियों से लेकर कानूनी तर्क, प्रासंगिक कानून, अन्य न्यायालयों के दृष्टिकोण, निहितार्थ और चुनौतियों तक।
2. मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्णय قضية Rhutikumari v. Zanmai Labs Pvt Ltd में आया है। निम्नलिखित तथ्य सामने आए हैं:
- याचिकाकर्ता (Applicant) ने जनवरी 2024 में लगभग ₹ 1,98,516 की राशि से 3,532.30 XRP सिक्के खरीदे थे, जो कि WazirX मंच (platform) के माध्यम से संचालित थे।
- जुलाई 2024 में WazirX ने सूचना दी कि उसके एक कोल्ड वॉलेट को साइबर हमला हुआ है, जिसमें लगभग US$ 230 मिलियन मूल्य के ईथेरियम और ERC-20 टोकन्स खो गए।
- WazirX ने सब उपयोगकर्ता खातों को फ्रीज (freeze) कर दिया और पुनर्गठन (restructuring) योजना के अंतर्गत कहा कि सभी उपयोगकर्ताओं को सम-सामान्य (pro-rata) नुकसान सहना होगा। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके XRP सिक्के उस हमले से प्रभावित नहीं थे और WazirX ने उसे एक ट्रस्ट आधार पर (custodian/trustee) रखा था।
- WazirX एवं उसकी मातृ कंपनी (Singapore आधारित) ने यह तर्क दिया कि इस मामले में सिंगापुर का पुनर्गठन न्यायालय का निर्णय लागू है और मद्रास न्यायालय का क्षेत्राधिकार (jurisdiction) नहीं है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने इन तथ्यों को खंगालते हुए निर्णय दिया कि क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति माना जाना चाहिए, तथा विवेचना की जरूरत है कि क्या WazirX उनके ऊपर ट्रस्ट-धारक (trustee) का कर्तव्य निभा रहा था।
3. मुख्य कानूनी प्रश्न
इस निर्णय के प्रकाश में मुख्य विधिक प्रश्न निम्नलिखित हैं:
- क्या क्रिप्टोकरेंसी भारतीय कानून के अंतर्गत “संपत्ति (property)” की संकल्पना में आती है?
- यदि ऐसा है, तो क्या इसे ट्रस्ट (trust) या कस्टोडियल (custodial) व्यवस्था में रखा जा सकता है?
- इस तरह के मामले में न्यायालय का क्षेत्राधिकार (jurisdiction) कैसे निर्धारित होगा, विशेष रूप से जब विदेशी घटक शामिल हों?
- इस निर्णय का भविष्य-दृष्टि से क्या निहितार्थ होंगे — निवेशकों, क्रिप्टो एक्सचेंजों एवं नियामक प्रणाली के लिए?
4. प्रासंगिक कानून एवं न्यायिक दृष्टिकोण
4.1 संपत्ति (Property) की परिभाषा
भारतीय विधि में “संपत्ति” की अवधारणा विस्तृत है। उदाहरणतः, Ahmed GH Ariff v. CWT तथा Jilubhai Nanbhai Khachar v. State of Gujarat जैसे निर्णयों में “property” को “every species of valuable right and interest” के रूप में देखा गया है।
इसके अलावा, भारत के Income‑tax Act, 1961 की धारा 2(47A) में “virtual digital asset” के रूप में क्रिप्टोकरेंसी को परिभाषित किया गया है।
4.2 ट्रस्ट (Trust) की संकल्पना
ट्रस्ट की कानूनात्मक अवधारणा के अंतर्गत, एक व्यक्ति (ट्रस्टी) दूसरे व्यक्ति/लाभार्थी (बेनिफिशियरी) के हित में संपत्ति को रखता है। उस मामले में यह आवश्यक है कि संपत्ति को “चिन्हित, निश्चित, अदायगी योग्य” (identifiable) होना चाहिए। विदेशी निर्णयों ने यह माना है कि क्रिप्टोकरेंसी इस तरह की संपत्ति हो सकती है क्योंकि यह “परिभाषित, पहचान योग्य, हस्तांतरण योग्य, नियंत्रण योग्य” है।
4.3 विदेशी प्रीसिडेंट (Precedents)
- यूके में AA v Persons Unknown में क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति माना गया।
- न्यूजीलैंड में Ruscoe v Cryptopia Ltd में भी इसी प्रकार का रुख था।
5. मद्रास हाईकोर्ट का निर्णय और तर्क
5.1 संपत्ति स्वीकार करना
न्यायमूर्ति N. Anand Venkatesh ने कहा:
“There can be no doubt that ‘crypto currency’ is a property. It is not a tangible property nor is it a currency. However, it is a property, which is capable of being enjoyed and possessed (in a beneficial form). It is capable of being held in trust.”
तर्क इस प्रकार था:
- क्रिप्टोकरेंसी भौतिक नहीं है, लेकिन यह डिजिटल वर्चुअल डाटा नहीं केवल, बल्कि वह ऐसे गुण रखती है — पहचान योग्य (identifiable) है, हस्तांतरण योग्य (transferable) है, स्व-नियंत्रण (via private keys) संभव है।
- भारतीय कानून में “संपत्ति” की परिभाषा इतनी संकीर्ण नहीं कि वर्चुअल संपत्ति बाहर हो जाए।
- इसलिए इसे संपत्ति माना जाना चाहिए, जिसे कानूनी संरक्षण दिया जा सकता है।
5.2 ट्रस्ट-धारिता (Holding in Trust) का विचार
न्यायालय ने यह माना कि जब किसी एक्सचेंज (या प्लेटफॉर्म) ने उपयोगकर्ता की क्रिप्टो-होल्डिंग्स को अलग से रखा हो, नियंत्रण किया हो, या उसे पुनः लाभार्थी के लिए संरक्षित रखा हो, तो उस स्थिति में ट्रस्ट-स्तर की जिम्मेदारी बन सकती है।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि WazirX ने उसके XRP सिक्कों को अलग खाते (wallet) में रखा था और पुनर्गठन योजना के अंतर्गत अन्य उपयोगकर्ताओं के नुकसान के लिए उनकी हानि-वितरण नहीं करनी चाहिये थी। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के सिक्के उस हमले से प्रभावित नहीं थे जो अन्य ERC-20 टोकन्स में हुआ था।
5.3 क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) का निर्णय
WazirX ने तर्क दिया कि मध्यस्थता (arbitration) सिंगापुर में हुई है और न्यायालय का दायित्व नहीं। पर न्यायालय ने माना कि:
- याचिकाकर्ता ने चेन्नई के बैंक खाते से प्रस्थान किया था एवं प्लेटफॉर्म का उपयोग भारत से हुआ था।
- WazirX की भारतीय इकाई Zanmai Labs Pvt Ltd भारत में ‘रिपोर्टिंग एजेंसी’ (reporting entity) के रूप में पंजीकृत है, जबकि उसकी सिंगापुर की मूल कंपनी नहीं है।
- इन आधारों पर, भारतीय न्यायाधिकरण को अस्थायी (interim) निर्देश जारी करने का अधिकार था (अर्बिट्रेशन अधिनियम की धारा 9 के तहत)।
5.4 निष्कर्षात्मक आदेश
- न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अंतरिम संरक्षण (injunction) दिया कि उसकी XRP होल्डिंग्स को अन्य उपयोगकर्ताओं के पुनर्गठन-योजना अंतर्गत पुनः वितरित नहीं किया जाए।
- यह आदेश इस आधार पर था कि यदि उसकी विशिष्ट संपत्ति (3,532.30 XRP) अन्य टोकन्स के साथ मिश्रित हो जाती, तो वह असुरक्षित पक्ष बन जाती।
6. निर्णय के निहितार्थ
6.1 निवेशक-हित में
- इस निर्णय से क्रिप्टो-होल्डर्स को कानूनी सुरक्षा-परिभाषा मिली है: उनके डिजिटल एसेट्स संपत्ति के रूप में मान्य हैं।
- एक्सचेंजों एवं प्लेटफॉर्म्स पर भरोसा करते समय यह बन जाता है कि वे उपयोगकर्ता-एसेट्स को स्पष्ट रूप से अलग रखें, सुरक्षित रखें।
- यदि एक्सचेंज किसी साइबर हमला या पुनर्गठन योजना में फंसे, तब उपयोगकर्ताओं के विशेष एसेट्स को अलग दिखाना आसान होगा।
6.2 प्लेटफॉर्म्स एवं नियम-व्यवस्था के लिए
- एक्सचेंजों के लिए यह संकेत है कि उन्हें क्रिप्टो वॉलेट्स, कस्टोडियल व्यवस्था, लाभार्थी विवरण, नियंत्रण व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।
- नियामकों (Regulators) को यह स्पष्ट हो गया कि डिजिटल एसेट्स को पारंपरिक संपत्ति-प्रकार के अनुरूप देखने की जरूरत है।
- भविष्य में, ट्रेडिंग, सिक्योरिटी, टैक्सेशन, संपत्ति हस्तांतरण आदि के लिए नियम-ढाँचा विकसित होने की दिशा में यह फैसला महत्वपूर्ण बेंचमार्क बनेगा।
6.3 विधि-विज्ञान एवं न्याय-प्रेरणा
- यह निर्णय इस विचार को पुष्ट करता है कि व्यापक अर्थ में संपत्ति की परिभाषा “मूर्त या अमूर्त” को स्वीकार करती है।
- ट्रस्ट न्यायशास्त्र में यह सवाल पहले से था कि क्या वर्चुअल/डिजिटल एसेट्स पर ट्रस्ट लगाया जा सकता है; अब भारत में इसका संकेत मिल गया है।
- भविष्य में और मामले सामने आ सकते हैं जैसे – इनहेरिटेंस (विरासत), दिवालियापन (insolvency), संपत्ति बंदी (asset freezing) में क्रिप्टो की स्थिति।
7. चुनौतियाँ एवं प्रश्न
- वैधानिक स्पष्टता का अभाव
अभी तक भारत में क्रिप्टोक्यूरेंसी संबंधी समग्र कानून नहीं है। इस प्रकार, उच्च न्यायालय का निर्णय महत्वपूर्ण है पर पूर्ण समाधान नहीं। - निर्धारित सीमाएँ
संपत्ति मानने का अर्थ यह नहीं कि कर-विभाजन, सिक्योरिटीज नियम, विदेशी मुद्रा कानून आदि सभी स्वतः लागू हो जाएँ। - निगरानी एवं कस्टोडियल जोखिम
डिजिटल एसेट्स में साइबर हमले, एक्सचेंज की विफलता आदि जोखिम प्रबल हैं। कानूनी सुरक्षा से पूर्व प्लेटफॉर्म की विश्वसनीयता महत्वपूर्ण होगी। - न्याय-क्षेत्राधिकार एवं अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
जैसे इस मामले में सिंगापुर की कंपनी, अंतर्राष्ट्रीय संरचना, क्रॉस-बॉर्डर सवाल थे, भविष्य में ऐसे मामले अधिक होंगे जहाँ न्याय क्षेत्राधिकार और लागू कानून पेचिदा होंगे। - अन्य डिजिटल एसेट्स का स्थान
क्या सिर्फ “क्रिप्टोकरेंसी” ही या NFTs, टोकन्स, वर्चुअल वर्ल्ड एसेट्स भी उसी श्रेणी में आएँगे? न्यायालय ने संकेत दिया है कि यह विचार अच्छा है।
8. परीक्षा-नोट्स एवं अध्ययन की दृष्टि से प्रमुख बिंदु
- मुकदमाः Rhutikumari v. Zanmai Labs Pvt Ltd (Madras HC)
- न्यायमूर्ति: N. Anand Venkatesh
- मुख्य निर्देश: क्रिप्टोकरेंसी संपत्ति है — न मूद्रणीय मुद्रा, न केवल सॉफ़्टवेयर; इसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है।
- प्रमुख प्रावधान: Income-tax Act धारा 2(47A) (virtual digital assets)
- प्रमुख तर्क:
- संपत्ति = “valuable right and interest”
- क्रिप्टो = पहचान योग्य, नियंत्रण योग्य, हस्तांतरण योग्य
- ट्रस्ट की स्थिति संभव
- महत्वपूर्ण बिंदु: न्यायालय ने क्षेत्राधिकार का सवाल भी हल किया (भारतीय बैंक को उपयोग करना, प्लेटफॉर्म एक्सेस भारत से)
- निहितार्थ: निवेशकों के संरक्षण में वृद्धि, एक्सचेंजों के लिए जिम्मेदारी, विधि-रूपरेखा की दिशा।
- चुनौतियाँ: कानून-अस्पष्टता, क्रॉस-बॉर्डर जटिलताएँ, जोखिम प्रबंधन।
9. निष्कर्ष
मद्रास उच्च न्यायालय का यह निर्णय डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं संपत्ति-कानून के दृष्टिकोण से निर्णायक मोड़ है। यह दिखाता है कि भारतीय न्यायपालिका धीरे-धीरे डिजिटल एसेट्स को पारंपरिक संपत्ति-धारणा के अंतर्गत स्वीकार कर रही है, जिससे निवेश-उपभोक्ताओं को कानूनी आधार मिलता है।
हालाँकि, यह निर्णय अपने आप में संपूर्ण समाधान नहीं है — विधायी सुधार, प्लेटफॉर्म नियमन, साइबर सुरक्षा, वैश्विक समन्वय आदि की आवश्यकता बनी हुई है। भविष्य में क्रिप्टोकरेंसी, NFTs, अन्य वर्चुअल एसेट्स की कानूनी स्थिति अधिक स्पष्ट होगी।