IndianLawNotes.com

Live-in Relationship में Maintenance का अधिकार नहीं, यदि विवाह सिद्ध न हो: Supreme Court

Live-in Relationship में Maintenance का अधिकार नहीं, यदि विवाह सिद्ध न हो: Supreme Court द्वारा Murti Devi बनाम Balkar Singh प्रकरण पर महत्वपूर्ण निर्णय

(A Detailed Legal Analysis of the Supreme Court Judgment in Murti Devi & Anr vs. Balkar Singh)


भूमिका :

भारतीय समाज में live-in relationship की स्वीकृति और उसकी विधिक स्थिति पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका के समक्ष एक संवेदनशील और जटिल प्रश्न के रूप में उभरी है। न्यायालयों ने कई अवसरों पर यह स्पष्ट किया है कि प्रत्येक सहजीवन संबंध (live-in relationship) को विवाह के समान दर्जा नहीं दिया जा सकता। इसी परिप्रेक्ष्य में Murti Devi & Anr. बनाम Balkar Singh का मामला एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी महिला का पुरुष के साथ संबंध विवाह पर आधारित नहीं है, तो उसे अंतरिम भरण-पोषण (interim maintenance) का अधिकार नहीं है।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case):

मामला जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के समक्ष आया था, जहाँ Murti Devi ने अपने कथित पति Balkar Singh के विरुद्ध धारा 125 CrPC के अंतर्गत भरण-पोषण की मांग की थी।
Murti Devi का आरोप था कि Balkar Singh ने उससे विवाह का वादा किया और बाद में शारीरिक संबंध बनाए। उसने आगे आरोप लगाया कि उसे गर्भवती होने पर प्रताड़ित किया गया और छोड़ दिया गया।

इस आधार पर उसने Section 376 IPC (बलात्कार) के तहत शिकायत दर्ज कराई, जिसके परिणामस्वरूप Balkar Singh को दोषी ठहराया गया। इसके बाद उसने Maintenance (भरण-पोषण) की याचिका दायर की, जिसे मजिस्ट्रेट ने स्वीकार करते हुए अंतरिम भरण-पोषण की राशि मंजूर कर दी।


ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट के आदेश:

  • ट्रायल कोर्ट (Magistrate Court):
    मजिस्ट्रेट ने माना कि चूंकि प्रतिवादी पुरुष (Balkar Singh) और याचिकाकर्ता महिला (Murti Devi) लंबे समय तक साथ रहे थे और संबंध वैवाहिक जैसे थे, इसलिए महिला को interim maintenance मिलनी चाहिए।
  • Principal Sessions Judge, Kathua:
    इस आदेश को चुनौती दी गई। सेशन जज ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए कहा कि यदि महिला का संबंध केवल “live-in relationship” पर आधारित था और कोई वैध विवाह नहीं हुआ था, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।

जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय का निर्णय:

उच्च न्यायालय ने सेशन जज के निर्णय को सही ठहराया। न्यायालय ने कहा कि:

“भले ही महिला ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई हो और आरोपी को सजा हुई हो, यह स्वतः यह प्रमाणित नहीं करता कि दोनों के बीच वैध विवाह हुआ था।”

न्यायालय ने आगे कहा कि Section 125 CrPC के अंतर्गत भरण-पोषण का अधिकार केवल वैध पत्नी को प्राप्त होता है, न कि live-in partner को, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि वह संबंध विवाह के समान स्थायी और सामाजिक रूप से मान्य था।


सर्वोच्च न्यायालय में अपील (Appeal before the Supreme Court):

Murti Devi ने उच्च न्यायालय के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। उसने तर्क दिया कि:

  • वह लंबे समय तक Balkar Singh के साथ रही,
  • उसे समाज में उसकी पत्नी के रूप में पहचाना गया,
  • और उसने वैवाहिक अधिकारों के समान दायित्व निभाए।

इसलिए उसे maintenance से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।


सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (Supreme Court’s Verdict):

सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील को खारिज कर दिया।

न्यायालय ने कहा कि:

Maintenance under Section 125 CrPC is a statutory right available to a legally wedded wife. A woman in a live-in relationship, without proof of marriage, cannot claim interim maintenance as a matter of right.


मुख्य विधिक बिंदु (Key Legal Points Discussed):

  1. भरण-पोषण का अधिकार (Right to Maintenance):
    धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार केवल “कानूनी रूप से विवाहित पत्नी” को ही भरण-पोषण का अधिकार है। यदि विवाह का प्रमाण न हो, तो यह अधिकार नहीं दिया जा सकता।
  2. Live-in Relationship का स्वरूप:
    न्यायालय ने कहा कि live-in relationship केवल तब विवाह के समान मानी जाएगी जब उसमें स्थायित्व, सार्वजनिक स्वीकृति और सामाजिक मान्यता हो।
  3. Section 376 IPC की सजा और Maintenance का संबंध:
    किसी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार की सजा मिलना यह प्रमाण नहीं है कि विवाह हुआ था। दोनों मुद्दे अलग-अलग विधिक पहलू हैं।
  4. विवाह का प्रमाण (Proof of Marriage):
    विवाह का प्रमाण केवल कथन से नहीं, बल्कि ठोस साक्ष्य (ceremonial proof, witnesses, documents, etc.) से होना चाहिए।

पूर्ववर्ती निर्णयों से तुलना (Reference to Previous Judgments):

  1. Chanmuniya vs. Virendra Kumar Singh Kushwaha (2011) 1 SCC 141:
    इसमें कहा गया था कि ऐसी महिला जो लंबे समय तक पुरुष के साथ “विवाह-समान संबंध” में रही है, उसे भी maintenance मिल सकता है।
    परंतु इस मामले में न्यायालय ने कहा कि Murti Devi का संबंध “marriage-like” नहीं था, बल्कि केवल live-in था।
  2. D. Velusamy vs. D. Patchaiammal (2010) 10 SCC 469:
    इस निर्णय में यह कहा गया था कि केवल casual relationship या keep जैसी स्थिति को marriage-like relationship नहीं कहा जा सकता।
  3. Indra Sarma vs. V.K.V. Sarma (2013) 15 SCC 755:
    सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि live-in relationship तभी वैधानिक मानी जाएगी जब उसमें वैवाहिक समानता हो — जैसे दीर्घकालीन साथ रहना, साझा संपत्ति, समाज में पति-पत्नी के रूप में पहचान आदि।

न्यायालय की टिप्पणी (Observations of the Supreme Court):

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि:

“Live-in relationship का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मान्यता देना है, न कि उसे वैवाहिक अधिकारों के समान बनाना। यदि समाज में वैवाहिक मान्यता नहीं है, तो विधिक संरक्षण केवल सीमित दायरे में मिलेगा।”

न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि:

“भले ही कानून सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ा हो, परंतु न्यायालय को विधि की सीमाओं का पालन करना होता है। धारा 125 CrPC का विस्तार केवल ‘कानूनी पत्नी’ तक ही सीमित है।”


महत्वपूर्ण निष्कर्ष (Important Takeaways):

  1. Live-in relationship में रहने वाली महिला को maintenance का अधिकार तभी मिलेगा जब यह सिद्ध हो कि संबंध विवाह-समान था।
  2. केवल साथ रहना या शारीरिक संबंध विवाह का प्रमाण नहीं होता।
  3. बलात्कार की सजा और भरण-पोषण का दावा दो अलग विधिक क्षेत्र हैं।
  4. धारा 125 CrPC का संरक्षण केवल “कानूनी पत्नी” तक सीमित है।

सामाजिक और विधिक प्रभाव (Socio-Legal Impact):

यह निर्णय उन मामलों में स्पष्ट दिशा देता है जहाँ महिलाएँ live-in relationships में रही हैं और बाद में maintenance का दावा करती हैं। यह समाज को यह संकेत देता है कि सहजीवन का संबंध भले ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के तहत मान्य हो, परंतु इसे विवाह का वैधानिक दर्जा नहीं माना जा सकता जब तक कि वैवाहिक रीति-रिवाजों और प्रमाणों का पालन न किया जाए।

यह निर्णय एक ओर न्यायालयों के विधिक अनुशासन को दर्शाता है, तो दूसरी ओर यह live-in relationships में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चल रही बहस को भी फिर से जीवित करता है।


निष्कर्ष (Conclusion):

Murti Devi बनाम Balkar Singh का निर्णय इस सिद्धांत को पुनः स्थापित करता है कि भरण-पोषण का अधिकार केवल वैध पत्नी को ही प्राप्त है, न कि live-in संबंध में रहने वाली महिला को। यह फैसला न्यायिक दृष्टि से यह सुनिश्चित करता है कि Section 125 CrPC की भावना और उद्देश्य का विस्तार मनमाने रूप से न किया जाए।

हालाँकि यह निर्णय कुछ लोगों के लिए कठोर प्रतीत हो सकता है, परंतु यह भारतीय पारिवारिक कानून की उस मूलभूत धारणा को पुनः पुष्ट करता है कि विवाह केवल सामाजिक नहीं बल्कि विधिक संस्था है — और उसी से अधिकार एवं दायित्व उत्पन्न होते हैं।


लेखक टिप्पणी:
यह फैसला समाज में विवाह और सहजीवन के बीच की कानूनी रेखा को स्पष्ट करता है। न्यायालय ने इस निर्णय के माध्यम से यह संदेश दिया है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए भी विधिक जिम्मेदारियों का निर्धारण केवल वैध संबंधों में ही किया जा सकता है।