Law of Trust & Equity (“न्यास एवं इक्विटी का विधि” या “न्यासी विधि एवं समत्व का सिद्धांत”) Part-1

1. न्यास (Trust) क्या होता है?

न्यास एक विधिक व्यवस्था है जिसमें एक व्यक्ति (जिसे न्यासी कहा जाता है) किसी संपत्ति को दूसरे व्यक्ति (लाभार्थी) के लाभ हेतु नियंत्रित करता है। इसका उद्देश्य संपत्ति का संरक्षण और उसका नियमानुसार प्रयोग सुनिश्चित करना होता है। न्यास दो प्रकार के होते हैं: निजी न्यास (Private Trust) और सार्वजनिक न्यास (Public Trust)। न्यास की स्थापना किसी वसीयत, दस्तावेज या न्यायिक आदेश से हो सकती है। न्यासी का कर्तव्य है कि वह संपत्ति का सदुपयोग केवल लाभार्थी के हित में करे। भारत में न्यास से संबंधित विधियों का संचालन मुख्यतः भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के तहत होता है।


2. इक्विटी (Equity) का अर्थ और महत्व क्या है?

इक्विटी का अर्थ होता है “न्याय, विवेक और समत्व पर आधारित न्याय।” यह कठोर विधिक नियमों से परे जाकर ऐसे मामलों में न्याय करने का माध्यम है जहाँ विधि मौन हो या कठोर निर्णय दे। इंग्लैंड की पारंपरिक विधि प्रणाली में इक्विटी का विकास चांसरी कोर्ट के माध्यम से हुआ था। इक्विटी न्यायसंगत सिद्धांतों पर आधारित होती है और यह यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति को न्याय मिले, भले ही विधिक प्रक्रिया में कोई त्रुटि हो। भारत में भी न्यायपालिका ने कई मामलों में इक्विटी के सिद्धांतों को अपनाया है।


3. न्यास के प्रमुख तत्व क्या होते हैं?

न्यास की स्थापना के लिए मुख्यतः तीन तत्व आवश्यक होते हैं: (1) नियत उद्देश्य (Intention) – यह स्पष्ट होना चाहिए कि न्यास स्थापित किया गया है; (2) न्यासी (Trustee) – वह व्यक्ति जो संपत्ति का नियंत्रण संभालेगा; और (3) लाभार्थी (Beneficiary) – वह व्यक्ति जिसके लाभ हेतु न्यास बनाया गया है। साथ ही, न्यास के लिए कोई संपत्ति (Trust Property) होनी चाहिए और उसकी स्पष्ट रूप से पहचान होनी चाहिए। इन तत्वों के अभाव में न्यास को विधिक रूप नहीं माना जाता।


4. न्यासी के कर्तव्य क्या होते हैं?

न्यासी का प्रमुख कर्तव्य है कि वह न्यास की संपत्ति का संचालन ईमानदारी, निष्ठा और विवेक से करे। उसे लाभार्थी के हितों की रक्षा करनी होती है और निजी हित से बचना चाहिए। न्यासी को पारदर्शिता बनाए रखनी होती है और सभी वित्तीय विवरणों का रिकॉर्ड रखना चाहिए। वह संपत्ति को नष्ट नहीं कर सकता और न ही उसका दुरुपयोग कर सकता है। न्यासी को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उसके सभी कार्य न्यास के उद्देश्य की पूर्ति के लिए हों।


5. लाभार्थी के अधिकार क्या होते हैं?

लाभार्थी वह व्यक्ति होता है जो न्यास की संपत्ति या उससे उत्पन्न आय का वास्तविक लाभार्थी होता है। उसे यह अधिकार होता है कि वह न्यासी से पारदर्शिता, हिसाब-किताब और निष्पक्षता की अपेक्षा रखे। यदि न्यासी अपने कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, तो लाभार्थी न्यायालय में वाद दाखिल कर सकता है। लाभार्थी संपत्ति की सुरक्षा और न्यास के उद्देश्य की पूर्ति की मांग कर सकता है। भारत में यह अधिकार भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 द्वारा संरक्षित हैं।


6. इक्विटी और विधि (Law) में क्या अंतर है?

विधि (Law) कठोर नियमों और पूर्व निर्धारित सिद्धांतों पर आधारित होती है जबकि इक्विटी (Equity) विवेक, न्याय और नैतिकता के सिद्धांतों पर आधारित होती है। जब विधि से न्याय नहीं हो पाता, तब इक्विटी सहायता करती है। उदाहरण के लिए, जहाँ कोई व्यक्ति अनुचित लाभ उठा रहा हो, लेकिन विधिक रूप से दोषी न हो, वहाँ इक्विटी हस्तक्षेप करती है। इक्विटी न्यायाधीश को विवेक के आधार पर निर्णय लेने की शक्ति देती है। दोनों का उद्देश्य न्याय करना है, परंतु उनके दृष्टिकोण अलग होते हैं।


7. इक्विटी के प्रमुख सिद्धांत कौन से हैं?

इक्विटी के कई सिद्धांत हैं, जैसे:
(1) He who seeks equity must do equity – जो व्यक्ति इक्विटी चाहता है, उसे स्वयं भी न्यायपूर्ण होना चाहिए।
(2) Equity follows the law – इक्विटी विधि का पालन करती है, परंतु उसे सुधारने का कार्य करती है।
(3) Delay defeats equity – अत्यधिक विलंब न्याय प्राप्ति में बाधा बनता है।
(4) Equity looks to the intent rather than the form – इक्विटी रूप से अधिक उद्देश्य को महत्व देती है।
ये सिद्धांत न्यायपालिका को विवेक और नैतिकता के साथ निर्णय लेने में मार्गदर्शन करते हैं।


8. निजी न्यास और सार्वजनिक न्यास में क्या अंतर है?

निजी न्यास एक विशेष व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के हित के लिए बनाया जाता है, जैसे परिवार के लिए संपत्ति सुरक्षित करना। वहीं, सार्वजनिक न्यास समाज के व्यापक हित के लिए होता है, जैसे मंदिर, स्कूल, या अस्पताल का संचालन। निजी न्यास में लाभार्थी ज्ञात होते हैं जबकि सार्वजनिक न्यास में लाभार्थी अनिश्चित होते हैं। सार्वजनिक न्यास पर अधिक विधिक और सामाजिक उत्तरदायित्व होता है।


9. न्यास की संपत्ति किसे कहा जाता है?

न्यास की संपत्ति वह संपत्ति होती है जिसे न्यास के अंतर्गत रखा गया है और जिसका नियंत्रण न्यासी के पास होता है। यह संपत्ति अचल (जैसे भूमि) या चल (जैसे धन, शेयर आदि) हो सकती है। न्यासी को यह संपत्ति अपने निजी हित के लिए प्रयोग करने की अनुमति नहीं होती है। संपत्ति का प्रयोग केवल लाभार्थी के हित में करना आवश्यक होता है। इस संपत्ति की रक्षा और प्रबंधन न्यासी का प्रमुख कर्तव्य होता है।


10. न्यास की स्थापना कैसे होती है?

न्यास की स्थापना प्रायः किसी दस्तावेज या वसीयत के माध्यम से की जाती है, जिसे Trust Deed कहा जाता है। इसमें न्यास का उद्देश्य, न्यासी के कर्तव्य, लाभार्थी, संपत्ति का विवरण आदि दर्ज होता है। सार्वजनिक न्यास के मामले में न्यास पंजीकृत कराना अनिवार्य होता है। भारत में यह प्रक्रिया भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 तथा संबंधित राज्य कानूनों के अंतर्गत होती है।


11. न्यासी की नियुक्ति और समाप्ति कैसे होती है?

न्यासी की नियुक्ति न्यास दस्तावेज़ के अनुसार होती है। यदि कोई न्यासी असमर्थ हो जाता है, त्यागपत्र देता है या मृत्यु को प्राप्त होता है, तो नया न्यासी नियुक्त किया जा सकता है। यह प्रक्रिया न्यास दस्तावेज़ या न्यायालय के आदेश से होती है। न्यासी की समाप्ति तब होती है जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असफल रहता है या कानूनन अयोग्य घोषित होता है।


12. इक्विटी न्यायिक प्रणाली में क्यों आवश्यक है?

इक्विटी न्यायिक प्रणाली में इसलिए आवश्यक है क्योंकि विधि में कई बार कठोरता होती है और सभी मामलों को समान रूप से नहीं सुलझाया जा सकता। इक्विटी न्यायाधीश को विवेक के आधार पर निष्पक्ष निर्णय लेने की शक्ति देती है। यह न्याय को मानवीय दृष्टिकोण से देखती है और कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करती है। विशेषतः सिविल मामलों में, जहाँ कानूनी अधिकार स्पष्ट न हों, इक्विटी का सिद्धांत न्याय दिलाने में सहायक होता है।


13. न्यास का उल्लंघन (Breach of Trust) क्या है?

जब न्यासी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता या संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो उसे न्यास का उल्लंघन कहा जाता है। इसमें न्यासी लाभार्थी के हित के विरुद्ध कार्य करता है या पारदर्शिता नहीं रखता। ऐसी स्थिति में लाभार्थी न्यायालय से राहत प्राप्त कर सकता है और नुकसान की भरपाई की मांग कर सकता है। न्यास उल्लंघन एक गंभीर विधिक अपराध है और इसके लिए दंड का प्रावधान हो सकता है।


14. न्यास और अनुबंध (Contract) में क्या अंतर है?

न्यास और अनुबंध दोनों ही विधिक संबंध हैं, लेकिन इनका स्वरूप भिन्न होता है। अनुबंध दो पक्षों के बीच सहमति पर आधारित होता है, जबकि न्यास में एक पक्ष संपत्ति को नियंत्रित करता है और दूसरा पक्ष लाभार्थी होता है। अनुबंध में दोनों पक्षों के अधिकार और दायित्व स्पष्ट होते हैं, जबकि न्यास में न्यासी को एकतरफा कर्तव्य निभाना होता है। अनुबंध के लिए विचार (consideration) आवश्यक है, जबकि न्यास में यह अनिवार्य नहीं है।


15. भारत में न्यास अधिनियम, 1882 की भूमिका क्या है?

भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 भारत में निजी न्यास से संबंधित विधिक ढांचा प्रदान करता है। इसमें न्यास की स्थापना, न्यासी के कर्तव्य, अधिकार, लाभार्थी के अधिकार, संपत्ति का प्रबंधन आदि का विस्तृत विवरण है। यह अधिनियम न्यास व्यवस्था को पारदर्शिता और विधिक सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि सार्वजनिक न्यास इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते, लेकिन निजी न्यासों की निगरानी के लिए यह एक प्रमुख कानून है।


16. न्यासी की शक्तियाँ क्या होती हैं?

न्यासी को न्यास संपत्ति के उचित प्रबंधन हेतु कुछ विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं, जैसे कि संपत्ति को किराए पर देना, निवेश करना, मरम्मत कराना, और आवश्यक होने पर संपत्ति को बेचना या स्थानांतरित करना। ये शक्तियाँ न्यास विलेख में उल्लिखित होती हैं या भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 द्वारा नियंत्रित होती हैं। यदि न्यासी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है या लाभार्थी के हितों के विरुद्ध कार्य करता है, तो उसे न्यायालय द्वारा उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। न्यासी को विवेकपूर्वक और ईमानदारी से कार्य करना होता है।


17. इक्विटेबल रेमेडीज (Equitable Remedies) क्या होती हैं?

इक्विटेबल रेमेडीज ऐसे न्यायिक उपाय होते हैं जो किसी पक्ष को वास्तविक न्याय दिलाने हेतु दिए जाते हैं, भले ही वह विधिक क्षतिपूर्ति से संभव न हो। इनमें मुख्यतः निषेधाज्ञा (Injunction), विशेष निष्पादन (Specific Performance), रद्दीकरण (Rescission), सुधार (Rectification), और लेखा (Account) शामिल हैं। ये उपाय न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करते हैं और तभी दिए जाते हैं जब पक्ष न्यायसंगत आचरण करता हो। भारत में विशेष निष्पादन अधिनियम, 1963 ऐसे उपायों को नियंत्रित करता है।


18. निषेधाज्ञा (Injunction) क्या होती है?

निषेधाज्ञा एक इक्विटेबल उपाय है जिसके माध्यम से न्यायालय किसी व्यक्ति को कोई विशेष कार्य करने से रोकता है या कोई कार्य करने का आदेश देता है। यह अंतरिम (Interim) या स्थायी (Permanent) हो सकती है। इसका प्रयोग उन मामलों में किया जाता है जहाँ विधिक क्षतिपूर्ति पर्याप्त नहीं होती, जैसे संपत्ति पर अतिक्रमण, गोपनीय जानकारी का दुरुपयोग, या बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन। निषेधाज्ञा का उद्देश्य क्षति को रोकना है, न कि उसे घटाना।


19. विशेष निष्पादन (Specific Performance) क्या है?

विशेष निष्पादन एक इक्विटेबल उपाय है, जिसमें न्यायालय पक्षकार को अनुबंध की शर्तों के अनुसार कार्य करने का आदेश देता है। यह उपाय तब दिया जाता है जब धन के द्वारा हानि की भरपाई संभव न हो, जैसे किसी विशिष्ट संपत्ति की बिक्री का मामला। यह न्यायालय का विवेकाधीन उपाय है, और तभी लागू होता है जब अनुबंध वैध हो, निष्पक्ष हो और सभी आवश्यक तत्वों को पूरा करता हो। भारत में इसका प्रावधान विशेष निष्पादन अधिनियम, 1963 में किया गया है।


20. इक्विटी फॉलोज़ द लॉ (Equity Follows the Law) सिद्धांत क्या है?

यह सिद्धांत कहता है कि इक्विटी विधि का अनुसरण करती है, न कि उसका उल्लंघन। इसका मतलब है कि जहाँ स्पष्ट कानूनी नियम उपलब्ध हों, वहाँ इक्विटी उन्हें बदलने का प्रयास नहीं करती, बल्कि केवल उन्हें न्यायोचित रूप से लागू करने में सहायता करती है। इक्विटी केवल वहाँ हस्तक्षेप करती है जहाँ विधि मौन हो या कठोर निर्णय दे रही हो। इस सिद्धांत का उद्देश्य विधि और इक्विटी के बीच संतुलन बनाए रखना है।


21. न्यासी की उत्तरदायित्व क्या है?

न्यासी को न्यास संपत्ति का प्रबंधन इस प्रकार करना होता है जैसे वह किसी और के लाभ के लिए काम कर रहा हो। उसकी उत्तरदायित्वों में ईमानदारी, पारदर्शिता, विवेकशीलता, निष्पक्षता और लाभार्थियों के हितों की सुरक्षा शामिल होती है। यदि न्यासी कर्तव्य का उल्लंघन करता है, तो उसे न्यायालय द्वारा हटाया जा सकता है और क्षतिपूर्ति हेतु बाध्य किया जा सकता है। न्यासी को निजी लाभ नहीं लेना चाहिए और सभी निर्णय न्यास के उद्देश्य के अनुरूप लेने चाहिए।


22. लाभार्थी और न्यासी के बीच संबंध कैसा होता है?

लाभार्थी और न्यासी के बीच विश्वास और विधिक संबंध होता है। न्यासी को लाभार्थी के हित में कार्य करना होता है और उसे पूर्ण निष्ठा, पारदर्शिता और ईमानदारी दिखानी होती है। लाभार्थी को यह अधिकार होता है कि वह न्यासी से नियमित जानकारी मांगे, आय का वितरण प्राप्त करे और किसी उल्लंघन पर न्यायिक राहत की मांग करे। इस संबंध को “fiduciary relationship” भी कहा जाता है, जो उच्चतम स्तर की ईमानदारी की अपेक्षा करता है।


23. इक्विटी का सिद्धांत – “He who comes to equity must come with clean hands” क्या है?

इस सिद्धांत के अनुसार, जो व्यक्ति इक्विटी का लाभ लेना चाहता है, उसे स्वयं भी ईमानदार, निष्पक्ष और नैतिक आचरण करना होगा। यदि कोई पक्ष न्यायालय के समक्ष गलत जानकारी, धोखा या अनैतिकता के साथ आता है, तो उसे इक्विटी से राहत नहीं मिलेगी। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि न्याय उन्हीं को मिले जो स्वयं न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं। भारतीय न्यायपालिका ने भी कई मामलों में इस सिद्धांत को मान्यता दी है।


24. इक्विटी का सिद्धांत – “Delay defeats equity” का क्या अर्थ है?

इस सिद्धांत का अर्थ है कि यदि कोई पक्ष न्याय की मांग में अत्यधिक विलंब करता है, तो उसे इक्विटी राहत नहीं देगी। न्याय पाने की इच्छा में विलंब करना न्याय के विरुद्ध होता है, क्योंकि इससे परिस्थितियाँ बदल सकती हैं और प्रतिवादी को अनुचित हानि हो सकती है। इस सिद्धांत का प्रयोग विशेष निष्पादन, निषेधाज्ञा जैसे मामलों में किया जाता है। यह न्याय की समयबद्धता और निष्पक्षता को बनाए रखने हेतु आवश्यक है।


25. इक्विटी का सिद्धांत – “Equity looks to the intent rather than the form” क्या है?

इस सिद्धांत के अनुसार, इक्विटी किसी दस्तावेज या कार्य की बाहरी रूपरेखा के बजाय उसके वास्तविक उद्देश्य और मंशा को देखती है। इसका उद्देश्य यह है कि यदि किसी कार्य में तकनीकी त्रुटि हो लेकिन मंशा न्यायपूर्ण हो, तो इक्विटी न्याय करेगी। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी व्यक्ति ने वसीयत में संपत्ति देने का स्पष्ट इरादा दिखाया है, परंतु भाषा अस्पष्ट है, तो इक्विटी उसका मंतव्य लागू कर सकती है।


26. क्या न्यास को समाप्त किया जा सकता है?

हाँ, न्यास को समाप्त किया जा सकता है यदि उसका उद्देश्य पूरा हो चुका हो, वह असंभव हो गया हो, या न्यायालय के आदेश से उसकी समाप्ति आवश्यक हो। निजी न्यास में, यदि सभी लाभार्थी सहमत हों और वे विधिक रूप से सक्षम हों, तो न्यास को समाप्त किया जा सकता है। सार्वजनिक न्यास की समाप्ति अधिक जटिल होती है और इसके लिए न्यायालय या न्यास बोर्ड की अनुमति आवश्यक होती है। समाप्ति के बाद संपत्ति का वितरण न्यास विलेख के अनुसार होता है।


27. रिडेम्पशन (Redemption) की इक्विटी का क्या अर्थ है?

रिडेम्पशन की इक्विटी वह सिद्धांत है जिसके अनुसार बंधककर्ता (Mortgagor) को यह अधिकार होता है कि वह ऋण चुकाने पर संपत्ति को पुनः प्राप्त कर सकता है, भले ही बंधक की समय-सीमा समाप्त हो चुकी हो। यह अधिकार न्यायालय द्वारा संरक्षित होता है और बंधकधारी (Mortgagee) इसका उल्लंघन नहीं कर सकता। इस सिद्धांत का उद्देश्य बंधककर्ता की सुरक्षा करना और अत्यधिक कठोरता से उसे वंचित होने से बचाना है।


28. इक्विटी में रेस्किशन (Rescission) क्या होता है?

रेस्किशन एक इक्विटेबल उपाय है जिसके द्वारा अनुबंध को रद्द किया जाता है जब वह धोखे, गलत बयानी, या अनुचित प्रभाव के तहत किया गया हो। इसका उद्देश्य पक्षों को उस स्थिति में वापस लाना होता है जहाँ वे अनुबंध से पहले थे। यह उपाय न्यायालय द्वारा विवेक से दिया जाता है और उन मामलों में लागू होता है जहाँ विधिक उपचार पर्याप्त नहीं होता। यह विशेषतः संपत्ति और अनुबंध विवादों में प्रयोग होता है।


29. इक्विटी में रेक्टिफिकेशन (Rectification) क्या है?

रेक्टिफिकेशन वह इक्विटेबल उपाय है जिसके अंतर्गत न्यायालय किसी दस्तावेज़ की त्रुटिपूर्ण भाषा को सुधारने का आदेश देता है ताकि वह वास्तविक इरादे को प्रतिबिंबित कर सके। यह तब प्रयोग किया जाता है जब दोनों पक्षों की सम्मति से किया गया कोई दस्तावेज गलती से गलत रूप में तैयार हो गया हो। रेक्टिफिकेशन का उद्देश्य दस्तावेज को वैध बनाना नहीं, बल्कि त्रुटियों को ठीक करना होता है।


30. इक्विटी और नैतिकता (Morality) में क्या अंतर है?

इक्विटी विधिक प्रक्रिया का हिस्सा होते हुए भी नैतिकता के निकट होती है, परंतु दोनों समान नहीं हैं। इक्विटी न्यायपालिका द्वारा स्थापित सिद्धांतों पर आधारित होती है और उसे विधिक मान्यता प्राप्त है। जबकि नैतिकता सामाजिक मानदंडों और व्यक्तिगत आचरण पर आधारित होती है, जिसका उल्लंघन हमेशा कानूनी अपराध नहीं होता। इक्विटी कानून के कठोर नियमों में लचीलापन लाकर न्याय करती है, जबकि नैतिकता समाज की दृष्टि में “सही और गलत” का निर्धारण करती है।


31. क्या एक व्यक्ति एक साथ न्यासी और लाभार्थी हो सकता है?

सैद्धांतिक रूप से, एक व्यक्ति न्यासी और लाभार्थी दोनों हो सकता है, परंतु यह तभी संभव है जब उसका हित न्यास के सभी उद्देश्यों से मेल खाता हो और कोई हितों का टकराव न हो। उदाहरण के लिए, यदि एक पिता अपने बेटे के लिए न्यास स्थापित करता है और स्वयं न्यासी रहता है, तो वह अपने बेटे के लाभ हेतु संपत्ति का संचालन करता है। लेकिन यदि वही व्यक्ति एकमात्र लाभार्थी हो, तो न्यास की विधिक आवश्यकता समाप्त हो जाती है।


32. इक्विटी कोर्ट और विधि कोर्ट में क्या अंतर है?

विधि कोर्ट (Courts of Law) केवल कानून के आधार पर निर्णय लेते हैं, जबकि इक्विटी कोर्ट (Courts of Equity) न्याय, विवेक और नैतिकता के आधार पर निर्णय देते हैं। इंग्लैंड में पहले दोनों कोर्ट अलग-अलग होते थे, परंतु अब अधिकांश न्यायालय दोनों अधिकारों का प्रयोग करते हैं। भारत में सभी अदालतें दोनों सिद्धांतों को अपनाती हैं। विधि कोर्ट मुआवजा (Damages) प्रदान करती है, जबकि इक्विटी कोर्ट विशेष निष्पादन, निषेधाज्ञा जैसे उपाय देती है।


33. सार्वजनिक न्यास के उदाहरण क्या हो सकते हैं?

सार्वजनिक न्यास समाज के कल्याण हेतु स्थापित किए जाते हैं। इनके प्रमुख उदाहरण हैं: मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, स्कूल, अस्पताल, वृद्धाश्रम, अनाथालय आदि। इनमें आम जनता लाभार्थी होती है और इनका प्रबंधन न्यासी या न्यास समिति द्वारा किया जाता है। इन न्यासों को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर छूट भी मिलती है। सार्वजनिक न्यास की स्थापना और संचालन में पारदर्शिता, नियमन और सामाजिक उत्तरदायित्व अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।


34. क्या इक्विटी कानून से ऊपर है?

नहीं, इक्विटी कानून से ऊपर नहीं है, बल्कि उसका पूरक है। इक्विटी कानून की सीमाओं को समझते हुए, न्यायसंगत समाधान प्रदान करती है। सिद्धांततः, जहाँ स्पष्ट विधिक प्रावधान हैं, वहाँ इक्विटी हस्तक्षेप नहीं करती। परंतु जहाँ विधि मौन है या अन्यायपूर्ण परिणाम देती है, वहाँ इक्विटी हस्तक्षेप कर सकती है। इक्विटी न्यायिक विवेक पर आधारित होती है, परंतु उसे कानून के अनुरूप ही रहना होता है।


35. न्यास संपत्ति का निवेश कैसे किया जा सकता है?

भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 20 के अनुसार, न्यास संपत्ति का निवेश केवल उन क्षेत्रों में किया जा सकता है जो सुरक्षित और लाभार्थी के हित में हों। जैसे कि सरकारी प्रतिभूतियाँ, बचत पत्र, या अन्य विश्वसनीय निवेश। न्यासी को निवेश करते समय विवेक और ईमानदारी से काम लेना चाहिए। किसी अनावश्यक जोखिम या निजी लाभ की संभावना से बचना आवश्यक है। निवेश से प्राप्त लाभ का वितरण न्यास विलेख के अनुसार होना चाहिए।


यह रहे Law of Trust & Equity (“न्यास एवं इक्विटी का विधि” या “न्यासी विधि एवं समत्व का सिद्धांत”) से संबंधित शॉर्ट आंसर – प्रश्न 36 से 50 तक (प्रत्येक 150–170 शब्दों में) हिंदी में:


36. न्यासी को लाभ लेने की अनुमति क्यों नहीं होती?

न्यासी एक फिड्यूशियरी पद पर होता है, जिसका कार्य केवल लाभार्थी के हित में कार्य करना होता है। यदि न्यासी निजी लाभ लेता है, तो यह उसके कर्तव्यों का उल्लंघन माना जाता है। न्यास की व्यवस्था विश्वास पर आधारित होती है, और न्यासी से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्षता, ईमानदारी और पारदर्शिता से कार्य करे। निजी लाभ लेने से हितों का टकराव (Conflict of Interest) उत्पन्न होता है, जिससे लाभार्थी के अधिकारों को हानि पहुँच सकती है। इसलिए भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के अंतर्गत न्यासी को व्यक्तिगत लाभ लेना सख्त वर्जित है।


37. भारतीय न्यायालयों में इक्विटी की भूमिका क्या है?

भारतीय न्यायालय विधि और इक्विटी दोनों के सिद्धांतों को मान्यता देते हैं। जहाँ विधिक नियम कठोर या मौन होते हैं, वहाँ न्यायालय इक्विटी सिद्धांतों के आधार पर निष्पक्ष न्याय देने का प्रयास करते हैं। उदाहरणस्वरूप, निषेधाज्ञा, विशेष निष्पादन, और गलतियों की सुधार (Rectification) जैसे उपायों में न्यायालय इक्विटी का सहारा लेते हैं। संविधान का अनुच्छेद 142 भी सुप्रीम कोर्ट को व्यापक अधिकार देता है कि वह “पूर्ण न्याय” कर सके, जो इक्विटी आधारित निर्णयों को प्रोत्साहित करता है।


38. न्यास संपत्ति का रक्षण कैसे किया जाता है?

न्यास संपत्ति का रक्षण न्यासी की मुख्य जिम्मेदारी होती है। उसे संपत्ति की सुरक्षा, रख-रखाव, और वैधानिक प्रयोग सुनिश्चित करना होता है। यदि संपत्ति अचल है तो उसका किराया व मरम्मत, और यदि चल संपत्ति है तो उसका सुरक्षित निवेश आवश्यक होता है। किसी अवैध कब्जे या हानि की स्थिति में न्यासी को विधिक कार्रवाई करनी होती है। न्यासी को नियमित लेखा-जोखा रखना होता है और संपत्ति को व्यर्थ नहीं छोड़ सकता। उसका प्रत्येक कार्य लाभार्थी के हित में होना चाहिए।


39. क्या न्यायालय न्यास की व्याख्या कर सकता है?

हाँ, यदि न्यास विलेख में कोई अस्पष्टता हो या विवाद उत्पन्न हो जाए, तो न्यायालय न्यास की व्याख्या कर सकता है। न्यायालय न्यासकर्ता की मंशा, दस्तावेज की भाषा, और लाभार्थियों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय करता है। यह व्याख्या इक्विटी के सिद्धांतों पर आधारित होती है, जहाँ न्याय और उद्देश्य को महत्व दिया जाता है। न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि न्यास का उद्देश्य पूरा हो और लाभार्थियों को वास्तविक लाभ मिले।


40. चैरिटेबल ट्रस्ट (धार्मिक या परोपकारी न्यास) क्या होते हैं?

चैरिटेबल ट्रस्ट ऐसे न्यास होते हैं जो धर्म, शिक्षा, चिकित्सा, गरीबी उन्मूलन, और समाज कल्याण जैसे परोपकारी कार्यों के लिए बनाए जाते हैं। इन ट्रस्टों के लाभार्थी कोई विशेष व्यक्ति नहीं होते, बल्कि समाज का एक बड़ा वर्ग होता है। इन्हें कर में छूट मिलती है और इनके संचालन हेतु पंजीकरण आवश्यक होता है। इनका संचालन न्यासी मंडल द्वारा किया जाता है जो पारदर्शिता और ईमानदारी से कार्य करता है। भारत में सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट विभिन्न राज्यों के न्यास अधिनियमों के अधीन पंजीकृत होते हैं।


41. क्या न्यास संपत्ति को बेचा जा सकता है?

सामान्यतः न्यास संपत्ति को तब तक नहीं बेचा जा सकता जब तक न्यास विलेख में इसकी अनुमति न हो या उद्देश्य की पूर्ति हेतु आवश्यक न हो। यदि विक्रय की अनुमति हो, तो न्यासी को यह सुनिश्चित करना होता है कि यह विक्रय लाभार्थी के हित में हो और न्यायालय की अनुमति ली गई हो। चैरिटेबल ट्रस्टों के मामलों में संपत्ति बेचने के लिए अक्सर ट्रस्ट बोर्ड या कमिश्नर की अनुमति आवश्यक होती है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और हितों की रक्षा हेतु अपनाई जाती है।


42. इक्विटी का सिद्धांत “Equality is equity” क्या है?

इस सिद्धांत के अनुसार, यदि कोई स्पष्ट प्राथमिकता न हो तो संपत्ति या अधिकारों का वितरण सभी संबंधित पक्षों में समान रूप से होना चाहिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी लाभार्थियों को निष्पक्षता से अधिकार मिले और कोई पक्ष अनुचित लाभ न उठाए। यह सिद्धांत विशेष रूप से उन मामलों में लागू होता है जहाँ कई लाभार्थी हों और संसाधन सीमित हों। भारतीय न्यायालय इस सिद्धांत को संपत्ति विवाद, वसीयत और ट्रस्ट मामलों में लागू करते हैं।


43. ट्रस्ट डीड (Trust Deed) क्या होता है?

ट्रस्ट डीड एक लिखित दस्तावेज होता है जिसके द्वारा न्यास की स्थापना होती है। इसमें न्यासकर्ता, न्यासी, लाभार्थी, न्यास संपत्ति, उद्देश्य, कार्य प्रणाली और समाप्ति की शर्तें निर्धारित होती हैं। यह दस्तावेज न्यास की वैधानिकता और संचालन के लिए मूल आधार होता है। सार्वजनिक ट्रस्टों के लिए इसे पंजीकृत कराना आवश्यक होता है। ट्रस्ट डीड न्यायालय में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है और इससे न्यास के सभी पक्षों के अधिकार और दायित्व निर्धारित होते हैं।


44. क्या बिना लिखित दस्तावेज के ट्रस्ट बनाया जा सकता है?

निजी न्यासों के मामले में मौखिक न्यास (Oral Trust) संभव है, बशर्ते न्यासकर्ता की मंशा स्पष्ट हो और न्यास संपत्ति का हस्तांतरण न्यासी को कर दिया गया हो। हालांकि लिखित दस्तावेज न्यायिक विवाद की स्थिति में सशक्त प्रमाण होता है। सार्वजनिक न्यासों के लिए लिखित ट्रस्ट डीड और उसका पंजीकरण आवश्यक है। बिना लिखित दस्तावेज के ट्रस्ट को सिद्ध करना कठिन होता है और कानूनी मान्यता प्राप्त करना भी चुनौतीपूर्ण होता है।


45. इक्विटी की उत्पत्ति कहाँ से हुई?

इक्विटी की उत्पत्ति इंग्लैंड में हुई, जहाँ लोग कठोर सामान्य विधि (Common Law) के विरुद्ध राजा से न्याय की याचना करते थे। राजा ने ऐसे मामलों के लिए लॉर्ड चांसलर को नियुक्त किया, जिसने न्याय, विवेक और नैतिकता के आधार पर निर्णय देना शुरू किया। इससे चांसरी कोर्ट (Court of Chancery) की स्थापना हुई, जो इक्विटी आधारित निर्णय देती थी। बाद में इक्विटी सिद्धांत विधि के पूरक बन गए और आधुनिक न्यायालयों ने दोनों को एक साथ अपनाया।


46. क्या ट्रस्ट रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है?

सार्वजनिक ट्रस्टों के लिए रजिस्ट्रेशन अधिकांश राज्यों में अनिवार्य होता है, विशेष रूप से यदि वे चैरिटेबल या धार्मिक उद्देश्य के लिए बनाए गए हों। निजी ट्रस्टों के लिए पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, परंतु यदि संपत्ति अचल है, तो रजिस्ट्रेशन भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 के अंतर्गत आवश्यक हो जाता है। पंजीकरण से ट्रस्ट को वैधता, पारदर्शिता, और कर में छूट मिलती है। यह लाभार्थियों और दानदाताओं दोनों के लिए भरोसेमंद प्रक्रिया होती है।


47. ट्रस्ट के प्रकार कौन-कौन से होते हैं?

ट्रस्ट मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
(1) निजी ट्रस्ट – जो किसी निश्चित व्यक्ति या समूह के हित में बनाया जाता है।
(2) सार्वजनिक ट्रस्ट – जो जनसामान्य के लाभ के लिए होता है, जैसे धार्मिक या चैरिटेबल ट्रस्ट।
सार्वजनिक ट्रस्ट आगे चलकर चैरिटेबल, धार्मिक, शैक्षणिक आदि उद्देश्यों में वर्गीकृत हो सकते हैं। प्रत्येक ट्रस्ट का उद्देश्य और संचालन भिन्न होता है और वह अलग-अलग कानूनी प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होता है।


48. ट्रस्ट और वसीयत (Will) में क्या अंतर है?

वसीयत (Will) एक मृत्यु के बाद प्रभावी होने वाला दस्तावेज होता है जिसमें संपत्ति का वितरण निर्धारित किया जाता है, जबकि ट्रस्ट जीवनकाल में या मृत्यु के बाद लागू किया जा सकता है और इसमें न्यासी द्वारा संपत्ति का नियंत्रण किया जाता है। वसीयत में लाभार्थियों को प्रत्यक्ष अधिकार मिलता है, जबकि ट्रस्ट में संपत्ति न्यासी के नियंत्रण में रहती है। ट्रस्ट अधिक संरचित और दीर्घकालिक व्यवस्था होती है, जबकि वसीयत सरल और व्यक्तिगत होती है।


49. ट्रस्ट और एजेंसी (Agency) में क्या अंतर है?

एजेंसी वह संबंध है जिसमें एक एजेंट किसी अन्य व्यक्ति (प्रिंसिपल) के लिए कार्य करता है, और उसकी अनुमति से कार्य करता है। जबकि ट्रस्ट में न्यासी संपत्ति को लाभार्थी के हित में नियंत्रित करता है, परंतु वह किसी के अधीन नहीं होता। एजेंसी अनुबंध पर आधारित होती है जबकि ट्रस्ट विश्वास (fiduciary relationship) पर आधारित होता है। एजेंट को प्रिंसिपल निर्देश दे सकता है, लेकिन न्यासी स्वतंत्र विवेक से कार्य करता है।


50. क्या लाभार्थी ट्रस्ट को समाप्त कर सकता है?

यदि ट्रस्ट निजी है और सभी लाभार्थी वयस्क एवं सक्षम हैं, तथा वे सर्वसम्मति से ट्रस्ट को समाप्त करना चाहते हैं, तो वे न्यास को समाप्त कर सकते हैं। इस स्थिति को “doctrine of merger” या “termination by consent” कहा जाता है। परंतु यदि न्यास सार्वजनिक है या न्यासकर्ता ने स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित किया है, तो केवल न्यायालय की अनुमति से ही ट्रस्ट को समाप्त किया जा सकता है। चैरिटेबल ट्रस्टों में लाभार्थियों की संख्या अनिश्चित होती है, अतः यह अधिक जटिल होता है।