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Law of Evidence (Indian Evidence Act, 1872) (प्रासंगिकता, गवाही, साक्ष्य के प्रकार) part -1

1. भारतीय साक्ष्य अधिनियम का उद्देश्य क्या है?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य की प्रस्तुति, स्वीकृति और मूल्यांकन के लिए एक समान विधिक ढांचा प्रदान करना है। यह अधिनियम यह निर्धारित करता है कि कौन-से तथ्य न्यायालय में प्रासंगिक हैं और किस प्रकार के साक्ष्य स्वीकार्य हैं। इससे न्यायपालिका को निष्पक्ष और तर्कसंगत निर्णय लेने में सहायता मिलती है।


2. साक्ष्य की परिभाषा और प्रकार क्या हैं?
धारा 3 के अनुसार, ‘साक्ष्य’ में मौखिक साक्ष्य (oral evidence) और दस्तावेजी साक्ष्य (documentary evidence) दोनों शामिल होते हैं। यह तथ्य की सत्यता को सिद्ध करने का माध्यम है। साक्ष्य दो प्रकार के होते हैं – प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence) और परोक्ष साक्ष्य (Circumstantial Evidence)। प्रत्यक्ष साक्ष्य घटना को प्रत्यक्ष देखने या सुनने वाले गवाह से मिलता है, जबकि परोक्ष साक्ष्य परिस्थितियों के आधार पर अनुमानित होता है।


3. प्रासंगिकता का सिद्धांत क्या है?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की एक मूलभूत विशेषता यह है कि केवल “प्रासंगिक” तथ्यों को ही साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। धारा 5 से 55 तक वे परिस्थितियाँ बताई गई हैं जिनमें कोई तथ्य प्रासंगिक माना जाएगा। उदाहरण के लिए, किसी अपराध के लिए की गई तैयारी, उद्देश्य, योजना, या परिणामी कार्यवाही प्रासंगिक हो सकती है। इस सिद्धांत से न्यायालय अनावश्यक और भ्रामक तथ्यों से बचता है।


4. प्रत्यक्ष साक्ष्य क्या होता है?
प्रत्यक्ष साक्ष्य वह होता है जिसमें कोई गवाह घटना को स्वयं देखता, सुनता या अनुभव करता है। जैसे किसी हत्या के मामले में कोई व्यक्ति यदि हत्या को होते हुए देखता है, तो उसकी गवाही प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाती है। प्रत्यक्ष साक्ष्य को सबसे विश्वसनीय माना जाता है क्योंकि इसमें अनुमान की आवश्यकता नहीं होती।


5. परोक्ष साक्ष्य क्या होता है?
परोक्ष साक्ष्य वह होता है जिससे घटना की परिस्थितियों के माध्यम से किसी तथ्य का अनुमान लगाया जाता है। जैसे, किसी आरोपी को हत्या से कुछ समय पहले पीड़ित के घर के पास देखा जाना, खून से सने कपड़े मिलना आदि। यह साक्ष्य प्रत्यक्ष नहीं होते, परंतु एक सुसंगत श्रृंखला में होने पर यह बहुत प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं।


6. मौखिक साक्ष्य क्या होता है?
मौखिक साक्ष्य वह होता है जिसमें गवाह न्यायालय के समक्ष तथ्यात्मक बयानों के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करता है। धारा 59-60 के अनुसार, मौखिक साक्ष्य केवल उसी तथ्य के लिए दिया जा सकता है जिसे गवाह ने प्रत्यक्ष अनुभव किया हो। यह साक्ष्य प्रत्यक्ष गवाही (direct testimony) के रूप में होता है।


7. दस्तावेजी साक्ष्य की परिभाषा दीजिए।
दस्तावेजी साक्ष्य का तात्पर्य उन दस्तावेजों से है जिनसे किसी तथ्य की पुष्टि होती है। उदाहरणस्वरूप, अनुबंध, वसीयत, खातों की पुस्तिकाएं, ईमेल, वीडियो रिकॉर्डिंग आदि। धारा 61 से 73 तक दस्तावेजी साक्ष्य के प्रकार और उन्हें सिद्ध करने की विधि का विवरण दिया गया है।


8. प्राथमिक एवं द्वितीयक साक्ष्य में अंतर स्पष्ट करें।
प्राथमिक साक्ष्य किसी दस्तावेज का मूल (original) होता है, जैसे मूल अनुबंध या असली वसीयत। जबकि द्वितीयक साक्ष्य उसके प्रतिलिपि, फोटोकॉपी, टाइप की गई प्रति आदि होते हैं। धारा 62-65 में यह स्पष्ट किया गया है कि प्राथमिक साक्ष्य को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि द्वितीयक साक्ष्य केवल विशेष परिस्थितियों में ही स्वीकार्य होता है।


9. न्यायालय में गवाह की भूमिका क्या होती है?
गवाह न्यायालय में तथ्य की पुष्टि करता है और घटनाओं को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्रस्तुत करता है। गवाह की गवाही साक्ष्य का महत्वपूर्ण अंग होती है। गवाह को सत्य बोलने की शपथ दिलाई जाती है और उसकी जिरह (cross-examination) की जाती है जिससे गवाही की विश्वसनीयता की जांच हो सके।


10. विशेषज्ञ गवाह कौन होता है?
विशेषज्ञ गवाह वह व्यक्ति होता है जो किसी विशेष विषय में तकनीकी या वैज्ञानिक ज्ञान रखता है, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, फॉरेंसिक विशेषज्ञ आदि। धारा 45 के अंतर्गत विशेषज्ञ गवाह की राय को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है, परंतु यह निर्णायक नहीं होता बल्कि केवल मार्गदर्शक होता है।


11. इलेक्टॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में कैसे स्वीकार किया जाता है?
धारा 65B के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड जैसे ईमेल, सीसीटीवी फुटेज, कंप्यूटर डेटा आदि को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके लिए यह प्रमाण देना आवश्यक है कि रिकॉर्ड को उचित तरीके से तैयार किया गया है और उसकी प्रामाणिकता को प्रमाणित किया जा सके।


12. कबूलनामे की साक्ष्य में क्या भूमिका होती है?
कबूलनामा (confession) आरोपी द्वारा स्वयं अपराध स्वीकार करने का बयान होता है। यदि यह स्वेच्छा से और दबाव के बिना दिया गया है, तो इसे बहुत महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जाता है। धारा 24 से 30 तक कबूलनामे की वैधता और उपयोग के नियम दिए गए हैं।


13. धारा 6 के अंतर्गत ‘संपूर्ण लेन-देन का भाग’ सिद्धांत क्या है?
धारा 6 के अनुसार, किसी घटना से जुड़ी वह प्रत्येक बात जो घटना का हिस्सा हो, चाहे वह तुरंत पहले या बाद में घटी हो, प्रासंगिक होती है। उदाहरण के लिए, किसी हत्या के समय हुई चिल्लाहट या आवाज़ें घटना की श्रृंखला का हिस्सा होती हैं और इन्हें साक्ष्य के रूप में माना जाता है।


14. सुनी-सुनाई बात (Hearsay Evidence) क्या होती है?
सुनी-सुनाई बात वह साक्ष्य है जो गवाह ने स्वयं नहीं देखा या सुना, बल्कि किसी और से सुनी होती है। सामान्यतः यह साक्ष्य स्वीकार्य नहीं होती क्योंकि यह असत्य या पक्षपातपूर्ण हो सकती है। केवल कुछ अपवादों में ही इसे स्वीकार किया जाता है, जैसे मरने से पहले दिए गए बयान (dying declaration) के रूप में।


15. गुप्त सूचना और पूर्ववर्ती आचरण की प्रासंगिकता क्या होती है?
किसी आरोपी के पूर्ववर्ती आचरण, मंशा या तैयारी का प्रमाण घटना से पहले या बाद में मिला हो, तो वह धारा 8 के अंतर्गत प्रासंगिक होता है। जैसे, हत्या से पहले हथियार खरीदना या हत्या के बाद छिपना, आरोपी की मानसिक स्थिति और अपराध की मंशा को स्पष्ट करता है।


16. मृत्यु पूर्व कथन (Dying Declaration) क्या होता है?
धारा 32 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति मृत्यु से पूर्व किसी अपराध से संबंधित तथ्य बताता है, तो उसे मृत्यु पूर्व कथन कहा जाता है। इसे ‘dying declaration’ कहा जाता है और यह सुनी-सुनाई बात का अपवाद है। यदि कथन करने वाला मृत्यु के निकट हो और उसका बयान किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष या किसी विश्वसनीय व्यक्ति द्वारा लिया गया हो, तो न्यायालय इसे महत्वपूर्ण साक्ष्य मान सकता है। इसकी सत्यता और परिस्थितियों की जांच आवश्यक होती है।


17. कबूलनामे और प्रवेश (Admission) में अंतर स्पष्ट करें।
कबूलनामा (Confession) अपराध को स्वीकार करना होता है जबकि प्रवेश (Admission) किसी तथ्य को आंशिक रूप से स्वीकार करना। कबूलनामा केवल अभियुक्त के द्वारा किया जा सकता है, जबकि प्रवेश पक्षकार, एजेंट या अन्य व्यक्ति भी कर सकते हैं। कबूलनामा धारा 24-30 में और प्रवेश धारा 17-23 में विनियमित हैं।


18. क्रॉस एग्ज़ामिनेशन (Cross Examination) का उद्देश्य क्या होता है?
क्रॉस एग्ज़ामिनेशन का उद्देश्य गवाह की गवाही की सच्चाई, विश्वसनीयता और संगति की परीक्षा करना होता है। यह प्रक्रिया प्रतिपक्ष द्वारा की जाती है और इसमें गवाह से तीखे व तर्कपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं। यह निष्पक्ष निर्णय लेने के लिए आवश्यक प्रक्रिया है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 137-138 के अंतर्गत आती है।


19. प्रतिपरीक्षण (Re-Examination) क्या होता है?
प्रतिपरीक्षण तब होता है जब क्रॉस एग्जामिनेशन के बाद मूल पक्ष (जिसने गवाह प्रस्तुत किया) पुनः गवाह से प्रश्न पूछता है, जिससे गवाह की स्थिति स्पष्ट की जा सके। इसका उद्देश्य गवाह की विश्वसनीयता की रक्षा करना होता है। यह प्रक्रिया भी न्यायालय की निगरानी में होती है।


20. गवाहों के प्रकार कौन-कौन से होते हैं?
गवाह कई प्रकार के होते हैं:

  1. प्रत्यक्ष गवाह – जो घटना को स्वयं देखता/सुनता है।
  2. परोक्ष गवाह – जो परिस्थितियों के आधार पर जानकारी देता है।
  3. विशेषज्ञ गवाह – जो तकनीकी ज्ञान रखता है।
  4. पात्रता गवाह – जो दस्तावेजों पर साक्ष्य देता है।
  5. पक्षपाती गवाह – जो किसी पक्ष के हित में गवाही देता है।

21. न्यायालय साक्ष्य को कैसे मूल्यांकित करता है?
न्यायालय साक्ष्य को उसकी विश्वसनीयता, संगति और प्रासंगिकता के आधार पर मूल्यांकित करता है। न्यायालय यह देखता है कि साक्ष्य कैसे प्राप्त किया गया, क्या गवाह विश्वसनीय है, और क्या साक्ष्य न्यायिक मानकों पर खरा उतरता है। यदि साक्ष्य संदेह से परे है, तभी उसे स्वीकार किया जाता है।


22. दस्तावेज की सिद्धता (Proof of Documents) कैसे की जाती है?
धारा 67 से 73 के अंतर्गत दस्तावेजों की सिद्धता के नियम दिए गए हैं। दस्तावेज को प्रमाणित करने के लिए गवाह को दस्तावेज की लेखनी, हस्ताक्षर या सील की पहचान करनी होती है। कभी-कभी हस्तलेखन विशेषज्ञ या वैज्ञानिक विश्लेषण की सहायता भी ली जाती है।


23. जब्ती सूची और पंचनामा की साक्ष्य में क्या भूमिका है?
जब्ती सूची और पंचनामा पुलिस द्वारा घटनास्थल पर की गई कार्यवाही का प्रमाण होते हैं। इन्हें दस्तावेजी साक्ष्य माना जाता है, परंतु ये तभी सशक्त होते हैं जब स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति में तैयार किए गए हों और उनका विधिपूर्ण सत्यापन हो।


24. साक्ष्य अधिनियम में न्यायालय को कौन-से विवेकाधिकार प्राप्त हैं?
न्यायालय को यह अधिकार है कि वह साक्ष्य को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है, साक्ष्य की विश्वसनीयता की जांच कर सकता है, और यह निर्धारित कर सकता है कि कोई तथ्य कितना प्रासंगिक है। न्यायालय झूठे गवाहों को दंडित करने का अधिकार भी रखता है।


25. पुनः परीक्षण कब किया जाता है?
यदि किसी साक्ष्य पर संदेह हो या साक्ष्य ठीक से नहीं प्रस्तुत हुआ हो, तो न्यायालय पुनः परीक्षण (Re-Trial) का आदेश दे सकता है। यह तभी होता है जब न्यायिक प्रक्रिया में कोई भारी चूक हो गई हो जिससे आरोपी को गंभीर नुकसान पहुँचा हो।


26. मुख्य परीक्षा (Examination-in-Chief) क्या होती है?
यह वह प्रक्रिया है जिसमें गवाह से उसके पक्षकार द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं। इसका उद्देश्य गवाह से तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त करना होता है। इसमें कोई प्रतिवादात्मक प्रश्न नहीं पूछे जाते। यह प्रक्रिया साक्ष्य अधिनियम की धारा 137 में विनियमित है।


27. दस्तावेजी साक्ष्य में प्रमाणपत्रों की भूमिका क्या होती है?
प्रमाणपत्र जैसे जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, शैक्षणिक प्रमाणपत्र आदि दस्तावेजी साक्ष्य होते हैं जो किसी विशेष तथ्य को प्रमाणित करते हैं। यदि वे विधिपूर्वक जारी किए गए हों और सार्वजनिक रिकॉर्ड से संबंधित हों, तो वे प्रमाणित साक्ष्य माने जाते हैं।


28. अग्रिम बयान (Previous Statement) का क्या महत्व है?
यदि कोई गवाह पहले पुलिस के समक्ष या अन्यत्र कोई बयान दे चुका है और अब न्यायालय में भिन्न बयान दे रहा है, तो पूर्ववर्ती बयान का उपयोग उसकी गवाही की सच्चाई की जांच के लिए किया जा सकता है। यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 में वर्णित है।


29. तटस्थ गवाह (Independent Witness) कौन होता है?
तटस्थ गवाह वह होता है जो न तो आरोपी पक्ष से संबंधित होता है और न ही शिकायतकर्ता से। उसकी गवाही को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वह निष्पक्ष होता है। न्यायालय ऐसे गवाह की विश्वसनीयता को अधिक महत्व देता है।


30. न्यायालय कब किसी गवाह की गवाही को अस्वीकार कर सकता है?
यदि गवाह झूठ बोलता है, पक्षपाती है, या विरोधाभासी बयान देता है, तो न्यायालय उसकी गवाही को अस्वीकार कर सकता है। साथ ही यदि गवाह की गवाही के समर्थन में कोई अन्य स्वतंत्र साक्ष्य न हो, तो भी गवाही को महत्व नहीं दिया जाता।


31. कबूलनामे को कब अस्वीकार किया जाता है?
कबूलनामा तभी मान्य होता है जब वह स्वेच्छा से और बिना किसी डर, प्रलोभन या दबाव के दिया गया हो। धारा 24 के अनुसार, यदि यह सिद्ध हो जाए कि आरोपी से जबरदस्ती, धमकी या अनुचित प्रभाव के कारण कबूलनामा लिया गया है, तो न्यायालय उसे अस्वीकार कर सकता है। पुलिस के समक्ष दिए गए कबूलनामे को भी साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।


32. पुलिस अधिकारी की गवाही की विश्वसनीयता क्या होती है?
पुलिस अधिकारी की गवाही केवल इस आधार पर अविश्वसनीय नहीं मानी जा सकती कि वह पुलिस का कर्मचारी है। यदि उसकी गवाही स्पष्ट, संगत और परिस्थितियों से मेल खाती हो, तो न्यायालय उसे स्वीकार कर सकता है। लेकिन सामान्यतः स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति को प्राथमिकता दी जाती है।


33. न्यायालय कब गवाह की साख की जांच कर सकता है?
साक्ष्य अधिनियम की धारा 155 के अनुसार, यदि गवाह पक्षपाती, असंगत या पूर्व में झूठा पाया गया हो, तो न्यायालय उसकी साख की जांच कर सकता है। प्रतिपक्ष गवाह से विरोधाभासी बयानों के आधार पर उसकी साख पर प्रश्न उठा सकता है और उसे कमजोर कर सकता है।


34. न्यायालय क्या किसी साक्ष्य को नकार सकता है?
हां, न्यायालय के पास अधिकार है कि वह किसी साक्ष्य को अस्वीकार कर सकता है यदि वह अविश्वसनीय, अप्रासंगिक या गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया हो। यह साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय का विवेकाधिकार है, ताकि निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित हो सके।


35. साक्ष्य अधिनियम में ‘Best Evidence Rule’ क्या है?
‘Best Evidence Rule’ के अनुसार, किसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए सबसे मूल और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना चाहिए। उदाहरणतः, यदि कोई दस्तावेजी तथ्य है, तो उसका मूल दस्तावेज प्रस्तुत किया जाना चाहिए न कि उसकी प्रति, जब तक कि विशेष परिस्थितियाँ न हों। यह सिद्धांत साक्ष्य की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।


36. प्रत्यक्ष और परोक्ष साक्ष्य में किसे अधिक महत्व दिया जाता है?
सामान्यतः प्रत्यक्ष साक्ष्य को अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि इसमें गवाह घटना को स्वयं देखता या सुनता है। परोक्ष साक्ष्य परिस्थितियों पर आधारित होता है और अनुमान पर निर्भर करता है। लेकिन यदि परोक्ष साक्ष्य एक मजबूत श्रृंखला के रूप में स्थापित हो जाए, तो वह भी दोष सिद्ध करने में पर्याप्त हो सकता है।


37. साक्ष्य अधिनियम में ‘Hostile Witness’ किसे कहते हैं?
Hostile Witness वह गवाह होता है जो अदालत में उस पक्ष के विरुद्ध गवाही देता है जिसने उसे बुलाया था। यदि कोई गवाह अपने बयान से मुकर जाता है या विपरीत बात कहता है, तो न्यायालय उसे Hostile घोषित कर सकता है। ऐसे गवाह से प्रतिपक्षीय ढंग से प्रश्न पूछे जा सकते हैं (cross-examination allowed)।


38. न्यायालय साक्ष्य की रिकॉर्डिंग कैसे करता है?
न्यायालय गवाह की गवाही को प्रश्नोत्तर रूप में लिखता है या रिकॉर्ड करता है। अब अनेक न्यायालयों में गवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है। इससे गवाही की प्रामाणिकता सुनिश्चित होती है और अपील या पुनर्विचार में सटीक विश्लेषण संभव होता है।


39. ‘Presumption’ का क्या अर्थ है?
Presumption का अर्थ है किसी तथ्य को तब तक सत्य मानना जब तक कि उसका खंडन न हो। साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 और अन्य में विभिन्न प्रकार की विधिक उपधारणाएं (legal presumptions) दी गई हैं। जैसे, कोई पत्र सही तरीके से डाक से भेजा गया हो, तो यह माना जाएगा कि वह प्राप्त हुआ होगा।


40. धारा 114 के अंतर्गत न्यायिक उपधारणाएं क्या होती हैं?
धारा 114 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह सामान्य अनुभव और तर्क के आधार पर कुछ उपधारणाएं (presumptions) कर सके। जैसे, यदि कोई व्यक्ति चोरी के तुरंत बाद पकड़ा जाए और उसके पास सामान मिले, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उसी ने चोरी की होगी।


41. पुनः परीक्षण में साक्ष्य का क्या महत्व होता है?
पुनः परीक्षण (Re-Trial) तब किया जाता है जब पूर्व सुनवाई में कोई गंभीर त्रुटि हो या न्यायिक प्रक्रिया में दोष हो। इसमें पुनः साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं, गवाहों से फिर से पूछताछ होती है। ऐसे मामलों में साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन न्याय के हित में आवश्यक हो जाता है।


42. क्या बिना गवाह के साक्ष्य के आधार पर दोष सिद्ध किया जा सकता है?
हां, यदि परिस्थितिजन्य साक्ष्य इतना मजबूत हो कि वह किसी अन्य निष्कर्ष की संभावना को न छोड़े, तो केवल परोक्ष साक्ष्य के आधार पर भी दोष सिद्ध किया जा सकता है। परंतु यह आवश्यक है कि साक्ष्य की श्रृंखला पूरी और संगत हो।


43. न्यायालय में Expert Evidence की भूमिका क्या है?
Expert Evidence किसी तकनीकी या वैज्ञानिक प्रश्न पर न्यायालय को निर्णय लेने में सहायता करता है। उदाहरण के लिए, फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ, मेडिकल ऑफिसर, फॉरेंसिक रिपोर्ट आदि। परंतु न्यायालय विशेषज्ञ की राय को अंतिम नहीं मानता, यह केवल एक सहायक तत्व होता है।


44. धारा 27 में कबूलनामे का विशेष अपवाद क्या है?
धारा 27 के अनुसार, यदि आरोपी की जानकारी से कोई तथ्य बरामद किया जाता है, तो उस तथ्य की सीमा तक दिया गया बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार होता है। उदाहरण: यदि आरोपी बताए कि उसने चाकू कहाँ छिपाया और वहीं से वह बरामद हो, तो यह हिस्सा मान्य होगा।


45. न्यायालय किसी साक्ष्य को कब “inadmissible” घोषित करता है?
यदि कोई साक्ष्य कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना प्राप्त किया गया हो, जैसे अवैध तरीके से लिया गया कबूलनामा या अस्वीकृत दस्तावेज, तो न्यायालय उसे “inadmissible” घोषित कर सकता है। इसका उद्देश्य निष्पक्ष और न्यायोचित प्रक्रिया बनाए रखना है।


46. धारा 91 और 92 के अंतर्गत दस्तावेज़ी साक्ष्य का सिद्धांत क्या है?
धारा 91 और 92 भारतीय साक्ष्य अधिनियम में दस्तावेज़ी साक्ष्य से संबंधित महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। धारा 91 के अनुसार, जब किसी तथ्य को साबित करने के लिए कोई लिखित दस्तावेज मौजूद हो, तो मौखिक साक्ष्य की बजाय वही दस्तावेज प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यह “best evidence rule” कहलाता है। वहीं, धारा 92 कहती है कि किसी दस्तावेज़ के आशय को स्पष्ट या परिवर्तित करने के लिए मौखिक साक्ष्य स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक कि कुछ विशेष अपवाद लागू न हों। ये धाराएँ दस्तावेज़ी प्रमाणों की प्राथमिकता और स्थायित्व सुनिश्चित करती हैं।


47. पुनः प्रस्तुत साक्ष्य (Secondary Evidence) किन परिस्थितियों में स्वीकार होता है?
धारा 65 के अनुसार, जब मूल दस्तावेज उपलब्ध न हो, नष्ट हो गया हो, या अदालत में लाना असंभव हो, तब द्वितीयक साक्ष्य (Secondary Evidence) स्वीकार किया जा सकता है। इसके अंतर्गत फोटोकॉपी, टाइप की हुई प्रति, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड आदि शामिल होते हैं। लेकिन यह तभी मान्य होता है जब प्रस्तुतकर्ता यह सिद्ध कर दे कि उसने यथासंभव मूल दस्तावेज प्राप्त करने की कोशिश की थी। न्यायालय केवल उन्हीं परिस्थितियों में इसे स्वीकार करता है जहाँ प्राथमिक साक्ष्य लाना संभव न हो।


48. गवाह की प्रत्यक्ष जानकारी (Direct Knowledge) की क्या आवश्यकता है?
साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के अनुसार, मौखिक साक्ष्य वही होना चाहिए जिसे गवाह ने प्रत्यक्ष देखा, सुना या अनुभव किया हो। किसी भी तथ्य की पुष्टि के लिए प्रत्यक्ष जानकारी आवश्यक होती है, जिससे साक्ष्य की विश्वसनीयता बढ़ती है। यदि गवाह स्वयं घटना का प्रत्यक्षदर्शी नहीं है और सिर्फ सुनी-सुनाई बात बता रहा है, तो उसकी गवाही स्वीकार्य नहीं मानी जाती (except in specific exceptions)। प्रत्यक्ष जानकारी वाले गवाह को न्यायालय अधिक प्राथमिकता देता है।


49. न्यायालय गवाह को शत्रु गवाह (Hostile Witness) कब घोषित करता है?
यदि कोई गवाह अदालत में अपने पूर्व बयान से मुकर जाता है या पक्ष बदलकर झूठ बोलता है, तो न्यायालय उसे शत्रु गवाह (Hostile Witness) घोषित कर सकता है। यह निर्णय न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। शत्रु गवाह की गवाही को पूरी तरह अस्वीकार नहीं किया जाता, बल्कि उसका उपयोग साख की जांच और अन्य समर्थन साक्ष्य के साथ किया जा सकता है। क्रॉस एग्जामिनेशन की अनुमति मिलने पर उस गवाह से तीखे प्रश्न पूछे जा सकते हैं।


50. क्या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य स्वतंत्र रूप से दोष सिद्ध कर सकता है?
हां, यदि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जैसे CCTV फुटेज, कॉल रिकॉर्डिंग, ईमेल या चैट प्रमाणिक और वैध रूप से प्राप्त हों तथा धारा 65B के तहत सर्टिफिकेट के साथ प्रस्तुत किए गए हों, तो ये साक्ष्य स्वतंत्र रूप से दोष सिद्ध कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों ने भी इसे मान्यता दी है। परंतु साक्ष्य की शुद्धता, छेड़छाड़ न होना, और कानूनी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य आधुनिक न्याय प्रणाली में अत्यधिक प्रभावशाली हो गए हैं।