🔶 51. गारंटी अनुबंध में ‘Discharge of Surety’ किन परिस्थितियों में होता है?
गारंटी अनुबंध में Surety (गारंटर) को मुक्त करने (Discharge) के कई आधार होते हैं:
- Principal Debtor के अनुबंध में परिवर्तन – यदि ऋणदाता और देयकर्ता बिना गारंटर की सहमति के अनुबंध की शर्तें बदलते हैं।
- ऋण माफ करना या समय बढ़ाना – बिना गारंटीकर्ता की अनुमति के यदि ऋणदाता समय देता है या ऋण माफ कर देता है।
- गारंटी की मियाद पूरी होना – यदि गारंटी समय-सीमा तक सीमित थी।
- ऋण का भुगतान हो जाना – जब Principal Debtor ने ऋण चुका दिया हो।
- किसी भी अनुचित कार्य या धोखाधड़ी से गारंटी प्राप्त करना।
यह प्रावधान गारंटर को अनावश्यक दायित्व से बचाने के लिए बनाया गया है।
🔶 52. बीमा अनुबंध की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?
बीमा अनुबंध की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- सर्वोच्च सद्भावना (Utmost Good Faith): दोनों पक्षों को सही जानकारी देनी होती है।
- बीमित हित (Insurable Interest): बीमाधारी का बीमित संपत्ति या व्यक्ति से आर्थिक संबंध होना चाहिए।
- क्षतिपूर्ति (Indemnity): केवल हुई हानि की भरपाई की जाती है (जीवन बीमा अपवाद है)।
- जोखिम का स्थानांतरण (Transfer of Risk): बीमाधारी से बीमा कंपनी को जोखिम स्थानांतरित होता है।
- प्रीमियम: बीमाधारी द्वारा नियमित भुगतान किया जाता है।
- कानूनी अनुबंध: यह एक वैध, बाध्यकारी अनुबंध होता है।
इन विशेषताओं के कारण बीमा अनुबंध अन्य अनुबंधों से अलग होता है।
🔶 53. साझेदारी में ‘Partnership Deed’ क्या है? इसकी आवश्यकता क्यों है?
Partnership Deed साझेदारों के बीच एक लिखित अनुबंध होता है जिसमें उनके अधिकार, दायित्व, लाभ-हानि का बंटवारा, पूंजी का योगदान आदि का उल्लेख होता है।
इसकी आवश्यकता इसलिए है:
- विवादों को रोकने के लिए।
- साझेदारों के दायित्वों को स्पष्ट करने के लिए।
- पूंजी और लाभ के अनुपात को निश्चित करने के लिए।
- कानून में इसकी वैधता होती है और यह न्यायालय में साक्ष्य के रूप में मान्य होता है।
यदि Deed नहीं होता है, तो Indian Partnership Act के सामान्य नियम लागू होते हैं, जो हर स्थिति के लिए उपयुक्त नहीं होते।
🔶 54. एजेंसी में ‘Delegation of Authority’ की क्या सीमाएँ हैं?
एजेंट सामान्यतः अपनी शक्ति को किसी अन्य को सौंप (Delegate) नहीं सकता है क्योंकि यह कार्य विश्वास पर आधारित होता है। परंतु कुछ परिस्थितियों में Delegation मान्य होता है:
- Principal की अनुमति हो।
- व्यवसाय की प्रकृति में यह आवश्यक हो।
- न्याय द्वारा मान्यता प्राप्त हो (Necessity)।
- Custom or Usage के अनुसार हो।
Section 190 of Indian Contract Act के अनुसार, एजेंट के पास sub-agent नियुक्त करने की अनुमति तभी होती है जब विशेष परिस्थितियाँ हों।
अन्यथा, एजेंट द्वारा किया गया Delegation अमान्य माना जा सकता है।
🔶 55. गारंटी अनुबंध में ‘Misrepresentation’ का क्या प्रभाव होता है?
यदि गारंटी अनुबंध झूठे तथ्यों (Misrepresentation) के आधार पर किया गया हो, तो वह अमान्य (Voidable) हो सकता है। Section 142 of Indian Contract Act के अनुसार यदि गारंटी अनुबंध किसी भ्रामक सूचना पर आधारित है, तो गारंटीकर्ता को मुक्त किया जा सकता है।
उदाहरण: यदि ऋणदाता यह छुपा ले कि Principal Debtor पहले से दिवालिया है और गारंटी प्राप्त कर ले, तो यह अनुचित होगा।
इस प्रकार, गारंटी अनुबंध में पारदर्शिता और उचित सूचना का अत्यधिक महत्व होता है।
🔶 56. साझेदारी और सहकारी संस्था में अंतर स्पष्ट करें।
| बिंदु | साझेदारी | सहकारी संस्था |
|---|---|---|
| गठन | आपसी सहमति से | सहकारी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकरण से |
| उद्देश्य | लाभ कमाना | सामाजिक-आर्थिक कल्याण |
| सदस्य | 2 से 50 | न्यूनतम 10, अधिकतम सीमा अधिक |
| प्रबंधन | साझेदार | चुना गया प्रबंधन मंडल |
| लाभ का बंटवारा | पूंजी या समझौते के अनुसार | एक समान या नियम अनुसार |
| कानूनी पहचान | पृथक नहीं | पृथक कानूनी इकाई |
| सहकारी संस्था अधिक लोकतांत्रिक होती है, जबकि साझेदारी व्यक्तिगत होती है। |
🔶 57. एजेंट और सब-एजेंट में अंतर क्या है?
| आधार | एजेंट | सब-एजेंट |
|---|---|---|
| नियुक्ति | प्रिंसिपल द्वारा | एजेंट द्वारा |
| नियंत्रण | प्रिंसिपल का | एजेंट के अधीन |
| उत्तरदायित्व | सीधे प्रिंसिपल से | प्रिंसिपल के प्रति नहीं, एजेंट के प्रति जिम्मेदार |
| संबंध | अनुबंध द्वारा | अप्रत्यक्ष संबंध |
| Sub-agent को केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में नियुक्त किया जा सकता है। एजेंट उसकी कार्यशैली के लिए जिम्मेदार होता है। |
🔶 58. क्या साझेदार व्यक्तिगत रूप से फर्म के कर्ज के लिए जिम्मेदार होते हैं?
हाँ, साझेदार व्यक्तिगत रूप से और संयुक्त रूप से फर्म के कर्ज और दायित्वों के लिए जिम्मेदार होते हैं। यदि फर्म ऋण नहीं चुका पाती, तो साझेदार की निजी संपत्ति से भी वसूली की जा सकती है।
यह Unlimited Liability कहलाती है और यह Indian Partnership Act के तहत लागू होती है।
यह दायित्व उस साझेदार पर भी लागू होता है जो निष्क्रिय हो लेकिन नाम फर्म में शामिल हो। इसलिए साझेदारी का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
🔶 59. गारंटी अनुबंध में गारंटर के अधिकार क्या हैं?
गारंटी अनुबंध में गारंटर के निम्नलिखित अधिकार होते हैं:
- Reimbursement का अधिकार: गारंटर ने जो भुगतान किया, उसे Principal Debtor से वसूल कर सकता है।
- Subrogation का अधिकार: ऋणदाता के अधिकारों को अपनाकर कार्रवाई कर सकता है।
- Indemnity का अधिकार: यदि Principal Debtor ने वादा किया हो तो गारंटर हानि के लिए क्षतिपूर्ति मांग सकता है।
- संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार – यदि Principal Debtor दिवालिया हो जाए।
इन अधिकारों से गारंटर को न्यायिक संरक्षण मिलता है और अनावश्यक बोझ से बचाव होता है।
🔶 60. बीमा अनुबंध और सट्टा अनुबंध (Wagering Agreement) में अंतर स्पष्ट करें।
| आधार | बीमा अनुबंध | सट्टा अनुबंध |
|---|---|---|
| उद्देश्य | जोखिम का संरक्षण | लाभ की आशा |
| वैधता | वैध अनुबंध | भारतीय कानून में अमान्य |
| हित | बीमाधारी को बीमित वस्तु से आर्थिक हित होता है | कोई वास्तविक हित नहीं होता |
| कानूनी अधिकार | दावे का अधिकार होता है | कोई कानूनी प्रवर्तन नहीं |
| बीमा अनुबंध कानून द्वारा संरक्षित होते हैं, जबकि सट्टा अनुबंध केवल अनुमान और भाग्य पर आधारित होते हैं। |
🔶 61. साझेदारी फर्म को पंजीकृत न कराने के क्या प्रभाव हैं?
यदि साझेदारी फर्म पंजीकृत नहीं है, तो उसे निम्नलिखित नुकसान होते हैं:
- वह किसी साझेदार या तीसरे पक्ष के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकती।
- उसे न्यायालय से कानूनी राहत नहीं मिल सकती।
- कानूनी अधिकारों की सुरक्षा सीमित होती है।
- केवल फर्म के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सकता है, लेकिन फर्म खुद दावा नहीं कर सकती।
हालांकि, यह पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन कानूनी लाभ के लिए आवश्यक है।
🔶 62. एजेंसी अनुबंध में ‘Implied Authority’ क्या होती है?
Implied Authority वह शक्ति है जो एजेंट को स्पष्ट रूप से नहीं दी जाती, लेकिन परिस्थितियों, व्यवहार या व्यवसाय की प्रकृति से मानी जाती है।
उदाहरण: यदि कोई एजेंट किसी दुकान का प्रबंधक है, तो उसे वस्तुएँ खरीदने-बेचने, रसीद देने, स्टाफ का संचालन करने का अधिकार स्वाभाविक रूप से मिल जाता है।
Section 186 of Indian Contract Act के अंतर्गत यह मान्यता प्राप्त है।
यदि एजेंट इस अधिकार के दायरे में कार्य करता है, तो प्रिंसिपल उस कार्य के लिए उत्तरदायी होता है।
🔶 63. क्या एजेंट प्रिंसिपल के बिना अनुबंध कर सकता है?
सामान्यतः एजेंट प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है, लेकिन कुछ स्थितियों में वह बिना स्पष्ट आदेश के भी अनुबंध कर सकता है:
- Emergencies में, जहाँ समय पर संपर्क संभव न हो।
- Implied Authority के तहत, जहाँ कार्य व्यवसाय का हिस्सा हो।
- यदि एजेंट ने अनुबंध किया और बाद में प्रिंसिपल ने उसे Ratify कर दिया हो।
हालाँकि, यदि एजेंट ने बिना अधिकार कार्य किया और प्रिंसिपल ने उसे स्वीकृत नहीं किया, तो वह कार्य अमान्य हो सकता है और एजेंट स्वयं जिम्मेदार होगा।
🔶 64. बीमा अनुबंध में ‘Proximate Cause’ का क्या महत्व है?
Proximate Cause वह निकटतम और प्रभावी कारण होता है जिससे हानि हुई हो। बीमा कंपनी केवल उसी हानि की भरपाई करती है जिसका कारण बीमित जोखिम हो।
उदाहरण: यदि समुद्री बीमा में जहाज तूफान के कारण डूब गया, तो तूफान Proximate Cause है और बीमा देय होगा।
यदि हानि का कारण बीमित जोखिम नहीं है, तो कंपनी उत्तरदायी नहीं होगी। यह सिद्धांत यह तय करता है कि किस कारण से बीमा दायित्व लागू होगा।
🔶 65. साझेदारों के बीच विश्वास का क्या महत्व है?
साझेदारी Trust (विश्वास) पर आधारित संबंध होता है। प्रत्येक साझेदार को यह विश्वास होता है कि अन्य साझेदार ईमानदारी, निष्ठा और साझा हितों के साथ कार्य करेंगे।
यदि यह विश्वास टूट जाए, तो फर्म में विवाद, धोखा और आर्थिक नुकसान हो सकता है।
Section 9 of Indian Partnership Act, 1932 में कहा गया है कि सभी साझेदारों को फर्म के कार्यों में सच्चाई और पारदर्शिता रखनी चाहिए।
विश्वास साझेदारी की नींव है और उसी पर फर्म का भविष्य निर्भर करता है।
🔶 66. एजेंसी में ‘Agency by Necessity’ क्या है?
Agency by Necessity वह स्थिति होती है जहाँ एक व्यक्ति बिना पूर्व अनुमति के किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति या हित की रक्षा हेतु कार्य करता है, और वह कार्य एजेंसी के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।
यह तब मान्य होता है जब:
- आपातकालीन स्थिति हो।
- कार्य करना आवश्यक हो।
- प्रिंसिपल से संपर्क संभव न हो।
- कार्य भले-भले नीयत से हो।
उदाहरण: यदि कोई ड्राइवर प्रिंसिपल की कार के खराब हो जाने पर अपने खर्चे से मरम्मत करवाता है, तो वह ‘Agency by Necessity’ कहलाती है और प्रिंसिपल को वह खर्च वहन करना होता है।
🔶 67. गारंटी अनुबंध में ‘Co-surety’ के अधिकार क्या होते हैं?
जब एक ही ऋण के लिए दो या अधिक गारंटर होते हैं, तो वे Co-sureties कहलाते हैं। यदि कोई एक गारंटर पूरा भुगतान कर देता है, तो उसे अन्य Co-sureties से समानुपात में वसूली का अधिकार होता है।
यदि गारंटी अनुबंध में विशेष प्रावधान नहीं हो, तो प्रत्येक Co-surety समान रूप से उत्तरदायी होता है।
Section 146 & 147 of Indian Contract Act के अनुसार Co-surety को न्यायपूर्ण भागीदारी का अधिकार होता है। यह प्रावधान Co-surety को वित्तीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
🔶 68. बीमा अनुबंध में ‘Double Insurance’ क्या है?
Double Insurance वह स्थिति है जब बीमाधारी एक ही विषय-वस्तु (जैसे घर, वाहन आदि) का बीमा एक से अधिक बीमा कंपनियों से करवा लेता है और कुल बीमा राशि उस संपत्ति के मूल्य से अधिक हो जाती है।
यदि हानि होती है, तो बीमाधारी सभी कंपनियों से दावा कर सकता है, लेकिन कुल मुआवजा वास्तविक हानि से अधिक नहीं हो सकता। सभी कंपनियाँ Contribution के सिद्धांत के अनुसार अपने हिस्से का भुगतान करती हैं।
Double Insurance अवैध नहीं है, पर बीमाधारी को मुनाफा नहीं मिल सकता – केवल हानि की भरपाई की जाती है।
🔶 69. साझेदारी फर्म में ‘Dissolution by Agreement’ क्या होता है?
जब सभी साझेदार आपसी सहमति से साझेदारी फर्म को समाप्त करते हैं, तो उसे Dissolution by Agreement कहते हैं।
Section 40 of Indian Partnership Act, 1932 इसको मान्यता देता है।
यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब सभी साझेदार आगे फर्म का संचालन नहीं करना चाहते। Dissolution की शर्तें Partnership Deed में लिखी जा सकती हैं या आपसी निर्णय से तय की जाती हैं।
इसमें लेनदारों का भुगतान, संपत्ति का वितरण और हिसाब-किताब के बाद साझेदारी समाप्त हो जाती है।
🔶 70. एजेंट और इंडिपेंडेंट कॉन्ट्रैक्टर में अंतर स्पष्ट करें।
| आधार | एजेंट | स्वतंत्र संविदाकार (Independent Contractor) |
|---|---|---|
| नियंत्रण | प्रिंसिपल का नियंत्रण रहता है | कार्य में पूर्ण स्वतंत्रता होती है |
| प्रतिनिधित्व | एजेंट प्रिंसिपल का प्रतिनिधि होता है | नहीं होता |
| अनुबंध की प्रकृति | एजेंसी अनुबंध | सेवा/कार्य अनुबंध |
| दायित्व | प्रिंसिपल एजेंट के कार्यों का उत्तरदायी होता है | नहीं होता |
| उदाहरण: वकील क्लाइंट का एजेंट होता है; जबकि इमारत बनाने वाला ठेकेदार स्वतंत्र संविदाकार होता है। |
🔶 71. क्या एजेंसी मौखिक रूप से बनाई जा सकती है?
हाँ, एजेंसी अनुबंध मौखिक रूप से भी बनाया जा सकता है। Indian Contract Act, 1872 के अनुसार एजेंसी बनाने के लिए कोई विशेष रूप या लिखित अनुबंध आवश्यक नहीं है, जब तक कि कार्य का स्वरूप ऐसा न हो कि वह लिखित में होना चाहिए।
एजेंसी मौखिक, लिखित या व्यवहार (conduct) से भी उत्पन्न हो सकती है।
उदाहरण: यदि कोई दुकानदार अपने कर्मचारी को माल खरीदने भेजता है, तो वह भी एजेंसी मानी जाती है – भले ही कोई लिखित अनुबंध न हो।
हालाँकि, जटिल और उच्च मूल्य के मामलों में लिखित अनुबंध होना बेहतर होता है।
🔶 72. बीमा अनुबंध में ‘Contribution’ और ‘Subrogation’ में क्या अंतर है?
| तत्व | Contribution | Subrogation |
|---|---|---|
| अर्थ | हानि के मुआवजे को कई बीमा कंपनियों के बीच बाँटना | बीमा कंपनी का बीमाधारी के स्थान पर तीसरे पक्ष से वसूली करना |
| उद्देश्य | बीमाधारी को दोगुना मुआवजा न मिले | बीमा कंपनी को वसूली का अधिकार देना |
| समय | भुगतान के समय | भुगतान के बाद |
| लागू | Double insurance में | तीसरे पक्ष द्वारा हानि में |
| ये दोनों सिद्धांत बीमा अनुबंध की न्यायिकता और निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं। |
🔶 73. साझेदारी फर्म में ‘Goodwill’ का महत्व क्या है?
Goodwill किसी फर्म की प्रतिष्ठा, ग्राहक विश्वास और भविष्य के लाभ अर्जन की क्षमता को कहते हैं। फर्म के विघटन या साझेदार के बाहर जाने पर Goodwill का मूल्यांकन करके उसे बेचा या साझा किया जाता है।
यह अमूर्त संपत्ति (Intangible Asset) है, लेकिन इसका मूल्य व्यापार की सफलता में महत्वपूर्ण होता है।
नए साझेदार को Goodwill में हिस्सा खरीदना पड़ सकता है। Goodwill का संरक्षण व्यवसाय की स्थिरता और ग्राहक संतुष्टि के लिए आवश्यक होता है।
🔶 74. एजेंसी अनुबंध में ‘Termination by Operation of Law’ क्या है?
एजेंसी अनुबंध कानून द्वारा स्वतः समाप्त हो सकता है, जिसे Termination by Operation of Law कहा जाता है।
प्रमुख परिस्थितियाँ:
- प्रिंसिपल या एजेंट की मृत्यु
- दिवालियापन (Insolvency)
- कार्य का अवैध हो जाना
- एजेंसी का उद्देश्य पूरा हो जाना
उदाहरण: यदि एजेंसी किसी वस्तु की बिक्री हेतु बनाई गई थी और वह वस्तु नष्ट हो जाती है, तो एजेंसी स्वतः समाप्त हो जाएगी।
यह नियम एजेंसी की सीमा और वैधता को सुनिश्चित करता है।
🔶 75. गारंटी अनुबंध में ‘Revocation of Continuing Guarantee’ कैसे होती है?
Continuing Guarantee को दो तरीकों से रद्द (Revoke) किया जा सकता है:
- नोटिस द्वारा: गारंटर लिखित सूचना देकर भविष्य के लेनदेन के लिए गारंटी समाप्त कर सकता है।
- गारंटर की मृत्यु: उसकी मृत्यु के बाद भविष्य की जिम्मेदारी समाप्त मानी जाती है, जब तक ऋणदाता को सूचना प्राप्त न हो।
Section 130 & 131 of Indian Contract Act के अनुसार रद्दीकरण केवल भविष्य की जिम्मेदारियों को समाप्त करता है, पूर्व की नहीं।
यह प्रावधान गारंटर को अनिश्चितकालीन जिम्मेदारी से सुरक्षा देता है।
🔶 76. बीमा अनुबंध में ‘Reinsurance’ का क्या अर्थ है?
Reinsurance एक प्रक्रिया है जिसमें बीमा कंपनी अपने द्वारा लिए गए जोखिम का कुछ हिस्सा किसी दूसरी बीमा कंपनी को हस्तांतरित कर देती है। इसका उद्देश्य बीमा कंपनी पर अत्यधिक जोखिम का बोझ कम करना होता है।
उदाहरण: एक बीमा कंपनी ने ₹10 करोड़ का बीमा किया है, तो वह ₹6 करोड़ का जोखिम Reinsurance द्वारा किसी अन्य कंपनी को सौंप सकती है।
इससे जोखिम का संतुलन और वित्तीय स्थिरता बनी रहती है। Reinsurance भी एक स्वतंत्र अनुबंध होता है।
🔶 77. साझेदारी फर्म में ‘Minor Partner’ की भूमिका क्या होती है?
Indian Partnership Act के अनुसार अवयस्क (Minor) साझेदार नहीं बन सकता, लेकिन उसे लाभ के हिस्सेदार (beneficiary) के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
Minor को:
- लाभ मिल सकता है, पर हानि में भाग नहीं होता।
- उसे फर्म की पुस्तकों की जाँच का अधिकार होता है।
- 18 वर्ष की आयु पूरी होने पर उसे 6 महीने में यह तय करना होता है कि वह पूर्ण साझेदार बनेगा या नहीं।
यदि वह निर्णय न ले, तो उसे पूर्ण साझेदार मान लिया जाता है और फिर उसका उत्तरदायित्व सीमित नहीं रहता।
🔶 78. एजेंसी अनुबंध में ‘Ratification’ के लिए आवश्यक शर्तें क्या हैं?
Ratification यानी स्वीकृति की प्रक्रिया के लिए ये शर्तें आवश्यक हैं:
- कार्य प्रिंसिपल के नाम पर किया गया हो।
- कार्य वैध और अनुबंध योग्य हो।
- प्रिंसिपल उस समय अस्तित्व में हो।
- पूरी जानकारी के बाद ही स्वीकृति दी गई हो।
- स्वीकृति समयबद्ध हो।
- Ratification एक बार में पूरी होनी चाहिए – आंशिक नहीं।
यदि ये शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो Ratification अमान्य हो सकती है और एजेंट स्वयं जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
🔶 79. गारंटी अनुबंध में ‘Contract of Indemnity’ से क्या संबंध है?
गारंटी अनुबंध Contract of Indemnity का एक विशेष रूप है।
Indemnity में एक पक्ष दूसरे को हानि से बचाने का वादा करता है; जबकि गारंटी में एक व्यक्ति तीसरे व्यक्ति के ऋण या दायित्व की पूर्ति का वादा करता है।
गारंटी में तीन पक्ष होते हैं (Creditor, Principal Debtor, Surety), जबकि Indemnity में केवल दो।
यदि गारंटर भुगतान करता है, तो उसे Principal Debtor से Indemnity लेने का अधिकार होता है। इस प्रकार, गारंटी अनुबंध Indemnity के तत्व को समाहित करता है।
🔶 80. क्या बीमा अनुबंध में धोखाधड़ी से दावा किया जा सकता है?
नहीं। यदि बीमा अनुबंध के अंतर्गत बीमाधारी ने कोई झूठी जानकारी, तथ्य छुपाया, या धोखाधड़ी से दावा किया, तो बीमा कंपनी दावे को अस्वीकार कर सकती है और अनुबंध को रद्द भी किया जा सकता है।
Utmost Good Faith के सिद्धांत के अनुसार, बीमाधारी को सभी तथ्य सही रूप में बताने होते हैं।
यदि धोखाधड़ी सिद्ध हो जाए, तो बीमा कंपनी को भुगतान नहीं करना पड़ता और बीमाधारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
🔶 81. एजेंसी अनुबंध में ‘Agency Coupled with Interest’ का क्या अर्थ है?
जब किसी एजेंट को एजेंसी के साथ-साथ उस संपत्ति या अनुबंध में स्वयं का हित (interest) भी प्राप्त होता है, तो उसे Agency Coupled with Interest कहते हैं।
उदाहरण: यदि एजेंट को कुछ धन उधार दिया गया और उस उधार के बदले में एजेंसी दी गई कि वह कोई संपत्ति बेचकर भुगतान वसूल कर ले – तब वह एजेंसी एजेंट के हित से जुड़ी होती है।
इस प्रकार की एजेंसी को सामान्य परिस्थितियों में समाप्त नहीं किया जा सकता, जब तक एजेंट का हित समाप्त न हो जाए।
🔶 82. साझेदारी फर्म में ‘Partnership at Will’ क्या होती है?
जब साझेदारी फर्म का गठन किसी निश्चित काल या कार्य हेतु नहीं किया गया हो, और कोई विशेष समाप्ति की शर्तें न हों, तो उसे Partnership at Will कहा जाता है।
Section 7 of Indian Partnership Act, 1932 के अनुसार, ऐसी साझेदारी को कोई भी साझेदार उचित नोटिस देकर समाप्त कर सकता है।
यह लचीलापन प्रदान करती है और आमतौर पर छोटे व्यापारों में अपनाई जाती है।
🔶 83. बीमा अनुबंध में ‘Material Fact’ का क्या महत्व है?
बीमा अनुबंध में Material Fact वह तथ्य होता है जो बीमा कंपनी के जोखिम मूल्यांकन को प्रभावित करता है। जैसे – स्वास्थ्य, पूर्व में क्लेम, व्यवसाय का प्रकार आदि।
यदि बीमाधारी कोई Material Fact छुपाता है या गलत जानकारी देता है, तो बीमा कंपनी अनुबंध को रद्द कर सकती है या दावा अस्वीकार कर सकती है।
Utmost Good Faith का सिद्धांत इसी पर आधारित है।
🔶 84. गारंटी अनुबंध में ‘Implied Guarantee’ क्या होती है?
Implied Guarantee वह गारंटी होती है जो किसी विशेष परिस्थिति, व्यवहार, या परंपरा से मानी जाती है, भले ही वह स्पष्ट रूप से लिखित न हो।
उदाहरण: एक व्यापारी बार-बार एक ग्राहक के लिए उधारी लेकर किसी अन्य व्यापारी से माल खरीदता है – तो उसे एक प्रकार की Implied Guarantee माना जा सकता है।
ऐसी गारंटी न्यायालय द्वारा परिस्थिति के अनुसार तय की जाती है।
🔶 85. एजेंसी अनुबंध में एजेंट के प्रति प्रिंसिपल के कर्तव्य क्या हैं?
प्रिंसिपल के प्रमुख कर्तव्य:
- एजेंट को उचित पारिश्रमिक देना।
- सभी आवश्यक सूचनाएँ देना।
- एजेंट द्वारा वैध कार्यों के लिए उत्तरदायित्व वहन करना।
- एजेंट द्वारा किए गए खर्चों की प्रतिपूर्ति करना।
- एजेंट के हित की रक्षा करना।
इन कर्तव्यों की पूर्ति न होने पर एजेंट क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।
🔶 86. साझेदारी फर्म में भागीदारों की आपसी जवाबदेही का क्या स्वरूप है?
साझेदारों की आपसी जिम्मेदारी संयुक्त और व्यक्तिगत (Joint and Several Liability) होती है। इसका अर्थ है कि यदि फर्म कोई ऋण नहीं चुका पाती, तो प्रत्येक साझेदार व्यक्तिगत रूप से भी पूरी देनदारी चुकाने के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
साझेदारों को फर्म के हर कार्य में ईमानदारी से काम करना होता है और एक-दूसरे के प्रति पारदर्शिता रखनी होती है।
🔶 87. बीमा अनुबंध में ‘Uberrimae Fidei’ सिद्धांत क्या है?
‘Uberrimae Fidei’ एक लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ है – सर्वोच्च सद्भावना। बीमा अनुबंध इस सिद्धांत पर आधारित होता है।
बीमाधारी को सभी आवश्यक तथ्यों को पूरी ईमानदारी से बीमा कंपनी को बताना होता है। यदि वह कोई जानकारी छुपाता है या गलत देता है, तो बीमा अनुबंध रद्द किया जा सकता है।
यह बीमा अनुबंधों की सबसे प्रमुख विशेषता है।
🔶 88. गारंटी अनुबंध में ‘Novation’ का क्या प्रभाव होता है?
Novation का अर्थ है – एक नए अनुबंध द्वारा पुराने अनुबंध को समाप्त करना। यदि गारंटी अनुबंध में मूल अनुबंध को किसी नए अनुबंध से बदल दिया जाता है, तो पुरानी गारंटी समाप्त मानी जाती है।
Section 62 of Indian Contract Act के अनुसार, गारंटी की वैधता तभी रहती है जब वह नए अनुबंध में भी स्थानांतरित की गई हो।
🔶 89. एजेंट द्वारा कार्य की अस्वीकृति (Renunciation) किन परिस्थितियों में वैध होती है?
एजेंट यदि एजेंसी समाप्त करना चाहता है, तो उसे उचित कारण और पूर्व सूचना देना होता है।
यदि वह अचानक एजेंसी त्यागता है और इससे प्रिंसिपल को हानि होती है, तो एजेंट उत्तरदायी हो सकता है।
Section 201–210 of Indian Contract Act में एजेंसी की समाप्ति की शर्तें वर्णित हैं। न्यायोचित कारणों जैसे धोखा, जोखिम या गैर-कानूनी कार्य हो तो एजेंट अनुबंध से मुक्त हो सकता है।
🔶 90. साझेदारी फर्म का अनिवार्य पंजीकरण क्यों आवश्यक नहीं है?
Indian Partnership Act, 1932 के अनुसार, साझेदारी फर्म का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है।
फिर भी, यदि फर्म पंजीकृत नहीं होती, तो वह:
- किसी साझेदार या तीसरे पक्ष पर मुकदमा नहीं कर सकती।
- न्यायिक अधिकारों से वंचित हो सकती है।
- सीमित विधिक संरक्षण मिल पाता है।
इसलिए, यद्यपि पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, यह व्यावसायिक रूप से अत्यंत लाभकारी है।
🔶 91. बीमा अनुबंध में ‘Assignment’ का क्या अर्थ है?
Assignment का अर्थ है – बीमा पॉलिसी को किसी अन्य व्यक्ति के नाम स्थानांतरित करना।
उदाहरण: जीवन बीमा पॉलिसी को बैंक के नाम ट्रांसफर करना, ताकि वह ऋण की सुरक्षा के रूप में काम आए।
Assignment के लिए बीमाधारी और बीमा कंपनी की अनुमति आवश्यक होती है। यह हस्तांतरण वैध और लिखित रूप में होना चाहिए।
🔶 92. गारंटी अनुबंध में ‘Surety’s Right of Subrogation’ क्या है?
जब Surety (गारंटर) ऋण का भुगतान करता है, तो उसे Creditor के सारे अधिकार मिल जाते हैं। इसे Right of Subrogation कहते हैं।
अब Surety उसी प्रकार Principal Debtor से पैसा वसूल कर सकता है, जैसे खुद Creditor करता।
यह अधिकार Surety को हानि से सुरक्षा प्रदान करता है और उसे न्यायिक रूप से सशक्त बनाता है।
🔶 93. एजेंसी में ‘Termination by Revocation’ क्या है?
जब प्रिंसिपल स्वयं एजेंट को नियुक्त करने के बाद उसका अधिकार रद्द करता है, तो उसे Termination by Revocation कहते हैं।
यह रद्दीकरण:
- एजेंसी के शुरू होने से पहले कभी भी हो सकता है।
- एजेंट को पूर्व सूचना देकर किया जाना चाहिए।
- यदि एजेंसी में हित जुड़ा हो (Agency Coupled with Interest), तो Revocation नहीं किया जा सकता।
Revocation उचित और वैध होना चाहिए।
🔶 94. साझेदारी फर्म में ‘Implied Authority of Partner’ क्या होती है?
साझेदारी में प्रत्येक साझेदार को व्यापार के संचालन हेतु कुछ अधिकार स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं, जिन्हें Implied Authority कहते हैं।
जैसे: माल खरीदना-बेचना, रसीद देना, बैंक से धन निकालना आदि।
परंतु यह अधिकार फर्म के स्वभाव के अनुसार सीमित होता है। साझेदार फर्म को अदालत में नहीं ले जा सकता, जब तक उसे विशेष अधिकार न दिया जाए।
🔶 95. बीमा अनुबंध में ‘Insurable Interest’ का क्या महत्व है?
बीमाधारी का बीमित वस्तु, संपत्ति या व्यक्ति में वास्तविक और वैध आर्थिक हित होना आवश्यक है। इसे ही Insurable Interest कहते हैं।
उदाहरण: कोई व्यक्ति अपने मकान, वाहन या जीवन साथी का बीमा कर सकता है क्योंकि उसमें उसका आर्थिक/संबंधित हित होता है।
यदि यह हित नहीं है, तो बीमा अनुबंध अमान्य माना जाएगा।
🔶 96. गारंटी अनुबंध में ‘Continuing Guarantee’ क्या है?
Continuing Guarantee वह गारंटी होती है जो एक से अधिक लेन-देन को कवर करती है। यह तब तक प्रभावी रहती है जब तक उसे रद्द न किया जाए या उसकी अवधि पूरी न हो जाए।
उदाहरण: एक व्यापारी को बार-बार उधार देने हेतु गारंटी दी गई हो।
Section 129 of Indian Contract Act इसके अंतर्गत आता है। इसे विशेष नोटिस देकर भविष्य की जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है।
🔶 97. एजेंसी अनुबंध में ‘Agent’s Personal Liability’ कब बनती है?
सामान्यतः एजेंट प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है, परंतु ये स्थितियाँ होने पर वह व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होता है:
- जब वह स्पष्ट न करे कि वह एजेंट है।
- जब प्रिंसिपल अस्तित्व में न हो या अज्ञात हो।
- जब एजेंट अपने अधिकार से अधिक कार्य करे।
- जब अनुबंध में यह शर्त हो।
इस स्थिति में एजेंट पर मुकदमा चल सकता है।
🔶 98. साझेदारी फर्म में ‘Incoming Partner’ की देनदारी क्या होती है?
नए साझेदार की देनदारी केवल उस समय के बाद उत्पन्न होने वाले दायित्वों तक सीमित होती है जब वह साझेदारी में शामिल हुआ हो।
पूर्व दायित्वों के लिए वह तभी जिम्मेदार होगा जब वह विशेष रूप से उसे स्वीकार करे या ऐसा Partnership Deed में लिखा हो।
यह प्रावधान नए साझेदार को अनावश्यक जोखिम से बचाने के लिए है।
🔶 99. बीमा अनुबंध में ‘Claim Settlement’ की प्रक्रिया क्या होती है?
बीमा दावा प्राप्त करने हेतु निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:
- बीमाधारी द्वारा बीमा कंपनी को सूचना देना।
- आवश्यक दस्तावेज़ों जैसे पॉलिसी, पहचान पत्र, हानि प्रमाण प्रस्तुत करना।
- कंपनी द्वारा निरीक्षण और मूल्यांकन।
- दावा स्वीकृति और भुगतान।
समय पर और सही दस्तावेज़ प्रस्तुत करने पर प्रक्रिया सरल होती है।
🔶 100. एजेंसी अनुबंध में ‘Termination by Death’ का क्या प्रभाव है?
यदि एजेंट या प्रिंसिपल की मृत्यु हो जाती है, तो सामान्यतः एजेंसी अनुबंध स्वतः समाप्त हो जाता है।
Section 201 of Indian Contract Act के अनुसार, मृत्यु के पश्चात एजेंसी संबंध समाप्त हो जाता है, जब तक कि एजेंट को मृत्यु की जानकारी न हो, तब तक उसका कार्य वैध माना जा सकता है।
कुछ विशेष परिस्थितियों में एजेंसी जीवित रह सकती है, जैसे यदि एजेंसी ‘interest’ से जुड़ी हो।