🔶 1. बीमा अनुबंध क्या होता है? इसके प्रमुख तत्व बताइए।
बीमा अनुबंध एक विशेष अनुबंध होता है जिसमें एक पक्ष (बीमाकर्ता) दूसरे पक्ष (बीमाधारी) को भविष्य में संभावित जोखिम या हानि की भरपाई करने का वचन देता है। इसके लिए बीमाधारी प्रीमियम का भुगतान करता है। यह अनुबंध विश्वास (uberrimae fidei) के सिद्धांत पर आधारित होता है, जिसमें पूर्ण और सच्ची जानकारी देना आवश्यक होता है। इसके प्रमुख तत्व हैं – प्रस्ताव (proposal), स्वीकृति (acceptance), विचार (consideration), जोखिम का प्रकटीकरण, बीमित हित (insurable interest), और प्रतिफल (indemnity)। बीमा दो प्रकार का होता है – जीवन बीमा और सामान्य बीमा (जैसे अग्नि, समुद्री)। बीमा अनुबंध न्यायसंगत और कानूनी रूप से बाध्यकारी होना चाहिए।
🔶 2. जीवन बीमा और सामान्य बीमा में क्या अंतर है?
जीवन बीमा में व्यक्ति की मृत्यु या जीवन की कुछ अवस्था (जैसे 60 वर्ष की आयु) पर भुगतान किया जाता है, जबकि सामान्य बीमा में संपत्ति, वस्तु या दायित्व की क्षति पर मुआवजा दिया जाता है। जीवन बीमा में बीमा की राशि निश्चित होती है, लेकिन सामान्य बीमा में हानि की सीमा तक ही भुगतान होता है। जीवन बीमा दीर्घकालिक अनुबंध होता है जबकि सामान्य बीमा वार्षिक या सीमित अवधि का होता है। जीवन बीमा में बीमाधारी की मृत्यु निश्चित घटना है, जबकि सामान्य बीमा में जोखिम अनिश्चित होता है। जीवन बीमा एक प्रकार की बचत भी होती है, जबकि सामान्य बीमा केवल जोखिम कवर करता है।
🔶 3. गारंटी अनुबंध क्या होता है? इसके आवश्यक तत्व बताइए।
गारंटी अनुबंध वह अनुबंध है जिसमें एक पक्ष (गारंटर या जमानतदार) किसी अन्य व्यक्ति (देयकर्ता) की दायित्वों की पूर्ति के लिए तीसरे पक्ष (ऋणदाता) से वचन देता है। इसका उद्देश्य ऋणदाता को सुरक्षा प्रदान करना होता है। इस अनुबंध में तीन पक्ष होते हैं: (1) मुख्य देयकर्ता, (2) ऋणदाता, और (3) गारंटर। इसके तत्व हैं – कानूनी उत्तरदायित्व, विचार (consideration), सभी पक्षों की सहमति, और मुख्य अनुबंध का अस्तित्व। यदि मुख्य देयकर्ता भुगतान करने में असफल रहता है, तो गारंटर उत्तरदायी होता है। गारंटी लिखित रूप में होना आवश्यक है।
🔶 4. Continuing Guarantee क्या होती है?
Continuing Guarantee एक ऐसा गारंटी अनुबंध होता है जो एक से अधिक लेन-देन या लेन-देन की एक शृंखला के लिए लागू होता है। इसका मतलब है कि गारंटी केवल एक विशेष लेन-देन तक सीमित नहीं होती, बल्कि जब तक गारंटी रद्द नहीं की जाती, यह भविष्य की लेन-देन पर भी लागू रहती है। उदाहरण: यदि कोई व्यापारी किसी ग्राहक को उधार में वस्तुएं देता है, और तीसरा व्यक्ति गारंटी देता है कि वह भुगतान करेगा, तो यह Continuing Guarantee होगी। इसे किसी भी समय पूर्व सूचना देकर वापस लिया जा सकता है, लेकिन वापसी से पहले की देनदारियों के लिए गारंटर जिम्मेदार रहेगा।
🔶 5. गारंटी अनुबंध में गारंटर की देनदारी कब समाप्त होती है?
गारंटी अनुबंध में गारंटर की देनदारी समाप्त होने के कुछ कारण हैं:
- यदि मुख्य देयकर्ता का दायित्व समाप्त हो जाए।
- यदि ऋणदाता और मुख्य देयकर्ता के बीच अनुबंध में परिवर्तन होता है बिना गारंटर की सहमति के।
- यदि गारंटी विशेष गारंटी थी और उद्देश्य पूर्ण हो गया।
- यदि गारंटी निरंतर गारंटी थी और उसे रद्द कर दिया गया।
- यदि ऋणदाता की लापरवाही के कारण गारंटर को हानि होती है।
गारंटी का स्वतः समाप्त होना तभी होता है जब कानूनी या संविदात्मक रूप से उसके तत्व समाप्त हो जाते हैं।
🔶 6. एजेंसी का तात्पर्य क्या है?
एजेंसी वह संबंध है जिसमें एक व्यक्ति (एजेंट) दूसरे व्यक्ति (प्रिंसिपल) की ओर से किसी कार्य को करने के लिए अधिकृत होता है। एजेंट द्वारा किए गए वैध कार्यों के लिए प्रिंसिपल उत्तरदायी होता है। एजेंसी का निर्माण अनुबंध, प्रतिनिधित्व, आवश्यकता, या पूर्व स्वीकृति द्वारा हो सकता है। यह अनुबंध विश्वास पर आधारित होता है। एजेंट का कर्तव्य होता है कि वह प्रिंसिपल के हित में कार्य करे, पूरी निष्ठा और देखभाल से कार्य करे, और उसे सही जानकारी दे। एजेंसी विभिन्न रूपों में हो सकती है जैसे विशेष एजेंट, सामान्य एजेंट, या यूनिवर्सल एजेंट।
🔶 7. एजेंट और नौकर (Servant) में क्या अंतर है?
एजेंट और नौकर में मुख्य अंतर यह है कि एजेंट स्वतंत्र रूप से निर्णय लेकर प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है, जबकि नौकर अपने मालिक के प्रत्यक्ष नियंत्रण में काम करता है। एजेंट का कार्य अधिकतर कानूनी प्रकृति का होता है, जैसे अनुबंध करना, जबकि नौकर सामान्य कार्य करता है। एजेंट के कार्य के लिए प्रिंसिपल उत्तरदायी होता है, लेकिन नौकर की लापरवाही के लिए मालिक सीधे उत्तरदायी होता है। एजेंसी एक व्यावसायिक प्रतिनिधित्व है जबकि नौकर मालिक के अधीनस्थ रूप में होता है।
🔶 8. साझेदारी (Partnership) क्या है? इसके लक्षण बताइए।
साझेदारी एक ऐसा संबंध है जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच व्यापार चलाने और लाभ को बांटने के उद्देश्य से स्थापित होता है। इसे इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 द्वारा विनियमित किया गया है। साझेदारी के प्रमुख लक्षण हैं –
- दो या अधिक व्यक्तियों का होना,
- व्यवसाय का होना,
- लाभ साझा करने का समझौता,
- पारस्परिक एजेंसी (Mutual Agency)।
पार्टनरशिप एक अनुबंध पर आधारित संबंध है न कि स्थिति। सभी साझेदार व्यवसाय के लिए एक-दूसरे के एजेंट होते हैं और उनके द्वारा किए गए कार्य साझेदारी फर्म को बाध्य करते हैं।
🔶 9. साझेदारी और HUF व्यापार में क्या अंतर है?
साझेदारी एक संविदात्मक संबंध है जबकि HUF (हिंदू अविभाजित परिवार) जन्म से स्थापित होता है। साझेदारी में अनुबंध के बिना संबंध नहीं बनता जबकि HUF में सहोदरों का जन्म से ही अधिकार होता है। साझेदारी के सदस्य फर्म छोड़ सकते हैं या शामिल हो सकते हैं, लेकिन HUF में सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है। साझेदारी को कानूनी रूप से पंजीकृत किया जा सकता है जबकि HUF का पंजीकरण वैकल्पिक होता है। साझेदारी व्यापार में सभी साझेदारों की समान जिम्मेदारी होती है, जबकि HUF में ‘कर्ता’ का प्रमुख स्थान होता है।
🔶 10. साझेदारी का पंजीकरण क्यों आवश्यक है?
हालांकि पार्टनरशिप एक्ट के अंतर्गत साझेदारी का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन पंजीकरण से कई कानूनी लाभ प्राप्त होते हैं। बिना पंजीकरण के फर्म न तो अन्य पक्ष पर मुकदमा कर सकती है और न ही अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती है। पंजीकरण से फर्म को यह अधिकार मिल जाता है कि वह साझेदारों या तीसरे पक्ष पर कानूनी कार्रवाई कर सके। इसके अतिरिक्त, विवाद की स्थिति में साझेदारी की वैधता सिद्ध करना सरल होता है। पंजीकरण स्थानीय रजिस्ट्रार कार्यालय में निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया जाता है।
🔶 11. साझेदारों के प्रकार क्या होते हैं? संक्षेप में समझाइए।
साझेदारी में विभिन्न प्रकार के साझेदार हो सकते हैं, जिनकी भूमिका और जिम्मेदारियाँ अलग-अलग होती हैं:
- सक्रिय साझेदार (Active Partner): ये व्यापार में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और फर्म के कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
- निष्क्रिय साझेदार (Sleeping or Dormant Partner): ये पूंजी लगाते हैं, लेकिन व्यापार संचालन में भाग नहीं लेते। फिर भी उत्तरदायी होते हैं।
- नाममात्र साझेदार (Nominal Partner): केवल नाम के लिए साझेदार होते हैं, पूंजी नहीं लगाते, पर उनकी उत्तरदायित्वता होती है।
- गुप्त साझेदार (Secret Partner): इनकी भागीदारी छिपी रहती है, लेकिन वे लाभ में हिस्सेदार और उत्तरदायी होते हैं।
- छलपूर्वक साझेदार (Partner by Estoppel): जो व्यक्ति खुद को साझेदार दर्शाता है, वह उत्तरदायी होता है, भले ही असल में साझेदार न हो।
इन सभी साझेदारों की देनदारी फर्म के कर्जों और दायित्वों के लिए होती है, चाहे वे व्यापार में सक्रिय हों या नहीं।
🔶 12. साझेदारी फर्म को भंग (Dissolution) करने के आधार क्या हैं?
साझेदारी फर्म को भंग करने के कई आधार हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- सभी साझेदारों की आपसी सहमति से।
- समयबद्ध फर्म की अवधि समाप्त होने पर।
- विशेष उद्देश्य की पूर्ति या विफलता पर।
- किसी साझेदार की मृत्यु, दिवालियापन या विक्षिप्तता पर।
- साझेदारों में आपसी विवाद या विश्वासभंग होने पर।
- न्यायालय द्वारा, जब व्यापार चलाना असंभव हो जाए।
- कोई अवैध गतिविधि या कानूनी उल्लंघन।
भंग करने के बाद फर्म की संपत्ति को बेचकर देनदारियों का निपटारा किया जाता है, और शेष राशि साझेदारों में बाँटी जाती है।
🔶 13. एजेंट की प्रमुख जिम्मेदारियाँ क्या होती हैं?
एजेंट की निम्नलिखित प्रमुख जिम्मेदारियाँ होती हैं:
- निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करना।
- प्रिंसिपल के हित में कार्य करना।
- सही और पूर्ण जानकारी देना।
- गोपनीयता बनाए रखना।
- प्राप्त संपत्ति का हिसाब देना।
- अपनी सीमा के भीतर कार्य करना।
- उचित कौशल और परिश्रम दिखाना।
यदि एजेंट इन कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, तो वह हानि के लिए जिम्मेदार होता है। एजेंट को कार्य के लिए उचित पारिश्रमिक भी प्राप्त होता है, जब तक अनुबंध में अन्यथा न कहा गया हो।
🔶 14. बीमा अनुबंध में ‘Indemnity’ का सिद्धांत क्या है?
बीमा अनुबंध में Indemnity का तात्पर्य है बीमाधारी को हुई वास्तविक हानि की क्षतिपूर्ति करना। यह सिद्धांत सामान्य बीमा (जैसे अग्नि, समुद्री बीमा) में लागू होता है, जहाँ बीमाधारी को केवल उतनी ही राशि दी जाती है जितनी हानि हुई है। इस सिद्धांत के अनुसार बीमा लाभ का माध्यम नहीं है बल्कि केवल क्षति की भरपाई है। इसका उद्देश्य बीमाधारी को हानि से पूर्व स्थिति में लाना है। यदि बीमाधारी को अधिक राशि दी जाती है, तो वह अनुचित लाभ कहलाएगा। जीवन बीमा इस सिद्धांत से अलग होता है क्योंकि वहाँ व्यक्ति के जीवन का मूल्यांकन पूर्व निर्धारित राशि से किया जाता है।
🔶 15. एजेंसी का समापन किन कारणों से होता है?
एजेंसी का समापन निम्नलिखित कारणों से हो सकता है:
- प्रिंसिपल या एजेंट की मृत्यु, दिवालियापन या विक्षिप्तता।
- कार्य का संपन्न हो जाना।
- समयबद्ध एजेंसी की अवधि समाप्त होना।
- प्रिंसिपल द्वारा एजेंसी को रद्द करना (Revocation)।
- एजेंट द्वारा त्यागपत्र देना (Renunciation)।
- कार्य का अवैध हो जाना।
- आपसी सहमति से।
समापन के बाद, एजेंट की शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं और वह प्रिंसिपल की ओर से कोई कार्य नहीं कर सकता, सिवाय आवश्यकतानुसार अधिनियमों के।
🔶 16. एजेंसी में ‘Del Credere Agent’ कौन होता है?
Del Credere Agent एक विशेष प्रकार का एजेंट होता है जो एजेंसी के कार्य के साथ-साथ यह गारंटी देता है कि ग्राहक द्वारा मूल्य का भुगतान किया जाएगा। यदि ग्राहक भुगतान करने में असफल रहता है, तो Del Credere Agent स्वयं भुगतान करता है। इसके लिए उसे सामान्य एजेंट की अपेक्षा अधिक कमीशन मिलता है, जिसे “Del Credere Commission” कहते हैं। यह एजेंट व्यापारिक एजेंसी में विश्वास और सुरक्षा बढ़ाता है। इसका कार्य एक प्रकार से एजेंट और गारंटर का मिश्रण होता है।
🔶 17. गारंटी और एजेंसी में क्या अंतर है?
गारंटी में तीन पक्ष होते हैं – ऋणदाता, देयकर्ता और गारंटर, जबकि एजेंसी में दो – प्रिंसिपल और एजेंट।
गारंटी में गारंटर केवल उस स्थिति में उत्तरदायी होता है जब मुख्य देयकर्ता विफल हो, जबकि एजेंसी में एजेंट प्रिंसिपल की ओर से सीधे कार्य करता है।
गारंटी का उद्देश्य सुरक्षा देना है, वहीं एजेंसी का उद्देश्य प्रतिनिधित्व करना है।
गारंटी आमतौर पर लिखित होती है, लेकिन एजेंसी मौखिक, लिखित या आचरण से बन सकती है।
🔶 18. एजेंट की नियुक्ति किन माध्यमों से की जा सकती है?
एजेंट की नियुक्ति निम्न माध्यमों से की जा सकती है:
- अनुबंध द्वारा (Express Agency): लिखित या मौखिक रूप में स्पष्ट सहमति द्वारा।
- व्यवहार द्वारा (Implied Agency): पार्टियों के व्यवहार से, जहाँ स्पष्ट अनुबंध नहीं होता।
- आवश्यकता द्वारा (Agency by Necessity): आपातकालीन परिस्थितियों में, जहाँ प्रिंसिपल की सहमति लेना संभव न हो।
- पूर्व स्वीकृति द्वारा (Agency by Ratification): जब कोई व्यक्ति बिना अधिकार के कार्य करता है और प्रिंसिपल बाद में उसे स्वीकृति देता है।
- कानून द्वारा (Agency by Operation of Law): जैसे पति-पत्नी के संबंधों में कुछ स्थितियों में।
🔶 19. एजेंट और प्रिंसिपल के बीच का संबंध क्या होता है?
एजेंट और प्रिंसिपल के बीच का संबंध एक विश्वास पर आधारित अनुबंधात्मक संबंध होता है। इसमें एजेंट, प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है और उसके निर्देशों का पालन करता है। यह संबंध Section 182–238 तक इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 में विनियमित किया गया है। एजेंट का कार्य प्रिंसिपल के लाभ के लिए करना होता है, और प्रिंसिपल उसे आवश्यक सहायता, सूचना और पारिश्रमिक देता है। एजेंट द्वारा किए गए वैध कार्यों के लिए प्रिंसिपल उत्तरदायी होता है।
🔶 20. बीमा अनुबंध में ‘Uberrimae Fidei’ सिद्धांत क्या है?
‘Uberrimae Fidei’ लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है – “सर्वोच्च सद्भावना”। बीमा अनुबंध इस सिद्धांत पर आधारित होता है, जहाँ बीमाधारी को बीमा कंपनी को सभी आवश्यक तथ्यों की पूरी और सच्ची जानकारी देनी होती है।
यदि कोई भी तथ्य छिपाया गया हो, तो बीमा अनुबंध निरस्त किया जा सकता है। उदाहरण: यदि बीमाधारी अपनी स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में झूठ बोलता है, तो मृत्यु पर क्लेम अस्वीकार किया जा सकता है। यह सिद्धांत बीमा अनुबंध को अन्य सामान्य अनुबंधों से अलग करता है और इसे अत्यधिक विश्वास का अनुबंध बनाता है।
🔶 21. क्या साझेदारी फर्म एक पृथक कानूनी इकाई होती है? स्पष्ट करें।
भारतीय कानून के अंतर्गत साझेदारी फर्म को पृथक कानूनी इकाई (Separate Legal Entity) नहीं माना जाता। इसका अर्थ है कि फर्म की अपनी स्वतंत्र कानूनी पहचान नहीं होती, बल्कि फर्म और उसके साझेदार एक ही माने जाते हैं। साझेदारी फर्म अपने नाम से संपत्ति रख सकती है, लेकिन कानूनी कार्यवाही में साझेदार व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होते हैं। यदि फर्म पर कोई देनदारी आती है तो साझेदारों की व्यक्तिगत संपत्ति तक भी दावे किए जा सकते हैं। इसके विपरीत कंपनी एक पृथक इकाई होती है, जो अपने नाम से मुकदमा दायर कर सकती है और उत्तरदायित्व सीमित होता है।
🔶 22. साझेदारी फर्म के पंजीकरण की प्रक्रिया क्या है?
साझेदारी फर्म का पंजीकरण भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के तहत रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स के पास होता है। प्रक्रिया इस प्रकार है:
- प्रपत्र-1 में आवेदन पत्र भरना।
- फर्म का नाम, व्यापार स्थल, सभी साझेदारों के नाम-पते, आरंभ की तिथि देना।
- सभी साझेदारों द्वारा आवेदन पर हस्ताक्षर।
- रजिस्ट्रार आवश्यक दस्तावेजों की जांच के बाद फर्म का नाम रजिस्टर में दर्ज करता है।
- पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
यह प्रक्रिया स्वैच्छिक है, लेकिन पंजीकरण से अनेक कानूनी लाभ मिलते हैं, जैसे मुकदमा दायर करने का अधिकार।
🔶 23. साझेदारी फर्म में लाभ और हानि का बंटवारा कैसे होता है?
साझेदारी फर्म में लाभ और हानि का बंटवारा साझेदारों के बीच उनके अनुबंध या आपसी सहमति के अनुसार होता है। यदि साझेदारी अनुबंध (Partnership Deed) में कुछ नहीं लिखा है, तो लाभ और हानि को सभी साझेदारों में समान रूप से बाँटा जाता है, भले ही किसी ने अधिक पूंजी लगाई हो। अनुबंध में यह स्पष्ट किया जा सकता है कि किसी साझेदार को लाभ का विशेष हिस्सा मिलेगा या हानि में कोई भाग नहीं होगा। लाभ और हानि का बंटवारा फर्म की लेखा पुस्तकों और वार्षिक खातों के आधार पर किया जाता है।
🔶 24. एजेंट द्वारा की गई ग़लती के लिए क्या प्रिंसिपल जिम्मेदार होता है?
यदि एजेंट ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए कोई कार्य किया है, तो उसकी भूल या लापरवाही के लिए प्रिंसिपल उत्तरदायी होता है। लेकिन यदि एजेंट ने अपनी सीमा से बाहर जाकर कार्य किया है और प्रिंसिपल ने उसे स्वीकृति नहीं दी, तो प्रिंसिपल उत्तरदायी नहीं होगा। यह सिद्धांत vicarious liability कहलाता है।
उदाहरण: यदि एजेंट ने ग्राहक से अनुचित ढंग से अधिक पैसा वसूला, तो प्रिंसिपल उत्तरदायी हो सकता है यदि एजेंट उसके निर्देश पर कार्य कर रहा था। लेकिन धोखाधड़ी जैसी गंभीर ग़लतियाँ यदि एजेंट ने निजी लाभ के लिए की हों, तो प्रिंसिपल जिम्मेदार नहीं होगा।
🔶 25. साझेदारी फर्म और संयुक्त हिंदू परिवार (HUF) व्यापार में उत्तरदायित्व का अंतर स्पष्ट करें।
साझेदारी फर्म में सभी साझेदार सीमाहीन (Unlimited) रूप से उत्तरदायी होते हैं, अर्थात् यदि फर्म की संपत्ति अपर्याप्त हो, तो साझेदारों की व्यक्तिगत संपत्ति से भी ऋण चुकाया जा सकता है। इसके विपरीत HUF में केवल कर्ता (मुख्य सदस्य) की उत्तरदायित्वता असीमित होती है, जबकि अन्य सदस्य केवल संयुक्त परिवार की संपत्ति तक सीमित होते हैं।
साझेदारी अनुबंध पर आधारित होती है, जबकि HUF जन्म पर आधारित है। साझेदारी को कानूनी रूप से समाप्त किया जा सकता है, जबकि HUF केवल विभाजन से समाप्त होती है।
🔶 26. गारंटी अनुबंध में सहगारण्ताओं (Co-sureties) की भूमिका क्या होती है?
जब एक से अधिक व्यक्ति एक ही ऋण के लिए गारंटी देते हैं, तो उन्हें सहगारण्ता (Co-sureties) कहते हैं। वे सभी मुख्य देयकर्ता के दायित्व के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं। यदि कोई एक गारंटर पूरा भुगतान कर देता है, तो उसे अन्य सहगारण्ताओं से समानुपातिक वसूली का अधिकार होता है। सहगारण्ताओं की देनदारी उस सीमा तक होती है जितना उन्होंने अनुबंध में माना हो। यदि कोई सहगारण्ता मर जाए या दिवालिया हो जाए, तो अन्य सहगारण्ताओं की देनदारी बढ़ सकती है।
🔶 27. एजेंट के कार्यों के लिए प्रिंसिपल की क्या सीमाएँ होती हैं?
प्रिंसिपल एजेंट के उन कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है जो एजेंट ने उसके निर्देशों के अनुरूप और अधिकार के भीतर रहकर किए हों। यदि एजेंट सीमा से बाहर जाकर कार्य करता है, और प्रिंसिपल उसे बाद में अनुमोदित (ratify) नहीं करता, तो प्रिंसिपल उत्तरदायी नहीं होगा।
प्रिंसिपल की जिम्मेदारी तभी लागू होती है जब –
- एजेंट ने प्रिंसिपल के नाम से कार्य किया हो,
- कार्य एजेंसी की सीमा के भीतर किया गया हो,
- अनुबंध वैध हो।
अतः प्रिंसिपल की जिम्मेदारी एजेंसी के दायरे में सीमित होती है।
🔶 28. ‘Agency by Ratification’ का अर्थ क्या है?
Agency by Ratification तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति बिना अधिकार के किसी अन्य की ओर से कोई कार्य करता है, और वह व्यक्ति बाद में उस कार्य को स्वीकृति (ratify) दे देता है। यह स्वीकृति मौखिक, लिखित या आचरण से हो सकती है।
Ratification से ऐसा माना जाता है कि एजेंसी पहले से अस्तित्व में थी और एजेंट द्वारा किया गया कार्य अब प्रिंसिपल का कार्य माना जाएगा।
शर्तें:
- कार्य कानूनी होना चाहिए,
- प्रिंसिपल के अस्तित्व में होना आवश्यक है,
- पूर्ण जानकारी के बाद स्वीकृति होनी चाहिए।
Ratification होने पर प्रिंसिपल उस कार्य के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है।
🔶 29. साझेदारी फर्म के साझेदारों की देनदारी की प्रकृति क्या होती है?
साझेदारों की देनदारी संयुक्त और व्यक्तिगत (Joint and Several Liability) होती है। इसका अर्थ है कि फर्म की किसी भी देनदारी के लिए सभी साझेदार सामूहिक रूप से भी और व्यक्तिगत रूप से भी जिम्मेदार होते हैं।
यदि फर्म किसी ऋण को चुकाने में असमर्थ हो, तो लेनदार किसी भी साझेदार से पूरा पैसा वसूल सकता है। उस साझेदार को अन्य साझेदारों से वसूली का अधिकार होता है। यह देनदारी सीमाहीन (Unlimited) होती है, जिससे साझेदारों की व्यक्तिगत संपत्ति भी दांव पर लग जाती है।
🔶 30. बीमा अनुबंध और गारंटी अनुबंध में क्या अंतर है?
| बिंदु | बीमा अनुबंध | गारंटी अनुबंध |
|---|---|---|
| पक्ष | दो – बीमाधारी और बीमाकर्ता | तीन – ऋणदाता, देयकर्ता, गारंटर |
| उद्देश्य | हानि की भरपाई | किसी अन्य की जिम्मेदारी लेना |
| लाभ | बीमाधारी को मिलता है | ऋणदाता को सुरक्षा मिलती है |
| प्रकार | क्षतिपूर्ति का अनुबंध | सहायक अनुबंध |
| जोखिम | बीमाकर्ता स्वयं वहन करता है | गारंटर तभी उत्तरदायी होता है जब देयकर्ता असफल हो |
| इस प्रकार, दोनों अनुबंधों का स्वरूप, उद्देश्य और उत्तरदायित्व अलग-अलग होता है। |
🔶 31. बीमा अनुबंध में ‘Insurable Interest’ का क्या महत्व है?
बीमा अनुबंध में Insurable Interest (बीमित हित) का महत्व यह है कि बीमाधारी को केवल उस वस्तु या व्यक्ति का बीमा करवाने का अधिकार होता है, जिससे उसे वास्तविक आर्थिक हित जुड़ा हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बीमाधारी को हानि होने पर उसे वास्तविक वित्तीय नुकसान हो। उदाहरण के लिए, व्यक्ति का जीवन, संपत्ति या स्वास्थ्य उसका बीमित हित हो सकता है। यदि बीमाधारी का बीमित हित नहीं है, तो बीमा अनुबंध अवैध हो सकता है और वह खाली दस्तावेज की तरह माना जाएगा। यह बीमा के नियमों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
🔶 32. साझेदारी अनुबंध और कंपनी अनुबंध में अंतर क्या है?
साझेदारी अनुबंध और कंपनी अनुबंध में मुख्य अंतर यह है कि साझेदारी में साझेदारों की सीमाहीन (Unlimited) देनदारी होती है, जबकि कंपनी के शेयरधारकों की देनदारी सीमित होती है। साझेदारी अनुबंध व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित होता है, जबकि कंपनी अनुबंध एक पृथक कानूनी इकाई होती है।
साझेदारी का गठन सहमति द्वारा होता है, जबकि कंपनी का गठन विधिक रूप से पंजीकरण द्वारा होता है। साझेदारी में व्यक्तिगत नियंत्रण होता है, जबकि कंपनी में एक बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से प्रबंधन किया जाता है।
साझेदारी अनुबंध में कोई भी साझेदार व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है, जबकि कंपनी में शेयरधारकों की उत्तरदायित्वता कंपनी की संपत्ति तक सीमित होती है।
🔶 33. गारंटी अनुबंध में ‘Continuing Guarantee’ का क्या अर्थ है?
Continuing Guarantee एक ऐसा गारंटी अनुबंध होता है, जो एक से अधिक लेन-देन या लंबी अवधि के लिए होता है। इसका मतलब है कि गारंटर केवल एक विशेष लेन-देन के लिए नहीं, बल्कि पूरे अनुबंध की अवधि के दौरान किसी भी कर्ज या देनदारी के लिए उत्तरदायी होता है।
उदाहरण के लिए, यदि एक बैंक एक व्यापारी को व्यापार के लिए बार-बार ऋण देता है और किसी व्यक्ति ने उसके लिए गारंटी दी है, तो वह गारंटी लंबे समय तक जारी रहती है। इस प्रकार, गारंटी की सीमित अवधि नहीं होती और इसे किसी भी समय रद्द किया जा सकता है, हालांकि रद्द करने के बाद किए गए लेन-देन के लिए गारंटर जिम्मेदार होता है।
🔶 34. बीमा अनुबंध में ‘Utmost Good Faith’ का सिद्धांत क्या है?
बीमा अनुबंध में Utmost Good Faith का सिद्धांत (Uberrimae Fidei) यह कहता है कि बीमाधारी को अपने बीमा अनुबंध में सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा पूरी ईमानदारी से करना होता है। यदि बीमाधारी ने किसी महत्वपूर्ण तथ्य को छुपाया या गलत जानकारी दी, तो बीमा कंपनी उस अनुबंध को निरस्त (void) कर सकती है। यह सिद्धांत बीमा अनुबंध की विशेषता है और यह अनुबंध की वैधता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। उदाहरण: यदि बीमाधारी अपनी बीमारी के बारे में जानकारी छुपाता है, तो बीमा कंपनी उसकी मृत्यु के बाद दावा अस्वीकार कर सकती है।
🔶 35. साझेदारी में पूंजी का योगदान कैसे होता है?
साझेदारी में पूंजी का योगदान साझेदारों द्वारा किया जाता है, और इसका बंटवारा साझेदारी अनुबंध (Partnership Deed) में तय किया जाता है। पूंजी का योगदान सामान्यतः नकद या प्राकृतिक संपत्ति के रूप में किया जा सकता है, जैसे मशीनें, कारखाने की जमीन, या अन्य व्यापारिक संपत्ति।
यदि साझेदारी अनुबंध में पूंजी का योगदान स्पष्ट नहीं किया गया है, तो इसे समान रूप से विभाजित किया जाता है। अनुबंध में यह भी उल्लेख हो सकता है कि लाभ और हानि के बंटवारे के आधार पर पूंजी का योगदान अलग-अलग हो सकता है।
पूंजी का योगदान व्यवसाय की वित्तीय स्थिति और साझेदारों के बीच सहयोग का आधार होता है।
🔶 36. गारंटी अनुबंध और एजेंसी अनुबंध में क्या अंतर है?
गारंटी अनुबंध और एजेंसी अनुबंध दोनों अलग-अलग प्रकार के कानूनी संबंधों को दर्शाते हैं:
- गारंटी अनुबंध में गारंटर तीसरे पक्ष के ऋण या दायित्व की पूर्ति के लिए उत्तरदायी होता है, जबकि एजेंसी अनुबंध में एजेंट प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है।
- गारंटी एक सुरक्षा देने वाला अनुबंध होता है, जिसमें गारंटर को ऋणदाता के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जबकि एजेंसी में एजेंट केवल प्रिंसिपल के हित में कार्य करता है।
- गारंटी का संबंध अधिकतर वित्तीय दायित्वों से होता है, जबकि एजेंसी का संबंध वाणिज्यिक प्रतिनिधित्व से होता है।
- गारंटी में तीन पक्ष होते हैं, जबकि एजेंसी में केवल दो पक्ष होते हैं।
🔶 37. साझेदारी के उन्मूलन (Dissolution) के समय कर्ज का भुगतान कैसे किया जाता है?
साझेदारी के उन्मूलन (Dissolution) के समय, साझेदारी की संपत्ति को बेचा जाता है और कर्ज का भुगतान किया जाता है। सबसे पहले, साझेदारी के सभी देनदारों का भुगतान किया जाता है, और फिर यदि कुछ राशि बचती है, तो उसे साझेदारों के बीच उनके योगदान के आधार पर वितरित किया जाता है।
कर्ज का भुगतान इस क्रम में किया जाता है:
- साझेदारी के लेनदारों को भुगतान किया जाता है,
- साझेदारों द्वारा किए गए ऋण और अन्य देनदारियों का भुगतान होता है,
- शेष धनराशि को साझेदारों के बीच उनकी पूंजी योगदान के अनुसार विभाजित किया जाता है।
यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि सभी कर्ज चुकाए जाएं और साझेदारों को उनके योगदान के अनुसार लाभ मिले।
🔶 38. एजेंसी अनुबंध को समाप्त करने के कारण क्या हो सकते हैं?
एजेंसी अनुबंध को समाप्त करने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख कारण शामिल हैं:
- समाप्ति की तारीख (Expiration): यदि एजेंसी एक निश्चित समय के लिए दी गई है, तो समय समाप्त हो जाने पर यह स्वतः समाप्त हो जाती है।
- कार्य का पूरा होना: यदि एजेंसी किसी विशेष कार्य को पूरा करने के लिए दी गई है, तो कार्य पूरा होने पर यह समाप्त हो जाती है।
- प्रिंसिपल या एजेंट की मृत्यु: यदि प्रिंसिपल या एजेंट में से कोई भी मृत्यु हो जाती है, तो एजेंसी समाप्त हो जाती है।
- समाप्ति की सूचना: यदि प्रिंसिपल या एजेंट एक दूसरे को एजेंसी समाप्त करने की सूचना देता है।
- न्यायिक आदेश: यदि कोई न्यायालय एजेंसी अनुबंध को समाप्त करने का आदेश देता है।
🔶 39. बीमा अनुबंध में ‘Risk’ का क्या मतलब है?
बीमा अनुबंध में Risk का तात्पर्य उस घटना से है जो बीमाधारी को होने वाली हानि या क्षति को संदर्भित करती है। यह घटना असंभव नहीं होती, लेकिन अनिश्चित होती है। बीमा कंपनी बीमाधारी को उन घटनाओं से होने वाली हानि का मुआवजा देती है, जैसे आग, जल, चोरी, दुर्घटनाएँ, आदि।
बीमा के अंतर्गत Risk का माप प्रीमियम की दर निर्धारित करता है। उदाहरण: जीवन बीमा में मृत्यु और सामान्य बीमा में प्राकृतिक या अन्य जोखिम जैसे आग, बाढ़ या चोरी। बीमा अनुबंध में Risk का समावेश उस सुरक्षा का वादा करता है जो बीमाधारी को संभावित नुकसान से बचाता है।
🔶 40. गारंटी अनुबंध में ‘Surety’ का क्या अर्थ है?
Surety वह व्यक्ति होता है जो गारंटी अनुबंध में मुख्य देयकर्ता की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए ऋणदाता को आश्वस्त करता है। अगर मुख्य देयकर्ता अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता, तो Surety उसकी तरफ से भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है।
Surety का कर्तव्य यह होता है कि वह ऋणदाता को गारंटी दे कि यदि देयकर्ता कर्ज चुकाने में असफल होता है, तो वह यह भुगतान करेगा। इस प्रकार, Surety का संबंध कर्ज या किसी अन्य वित्तीय दायित्व से होता है, और यह तीसरे पक्ष के लिए सुरक्षा का कार्य करता है।
🔶 41. एजेंट द्वारा की गई धोखाधड़ी के लिए क्या प्रिंसिपल उत्तरदायी होता है?
यदि एजेंट ने अपने कार्य के दौरान और प्रिंसिपल के अधिकार में रहते हुए धोखाधड़ी की है, तो सामान्यतः प्रिंसिपल उत्तरदायी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एजेंट का कार्य प्रिंसिपल की ओर से माना जाता है। यह स्थिति तब लागू होती है जब एजेंट ने व्यापारिक लेन-देन में, प्रिंसिपल के लाभ या प्रतिनिधित्व में कार्य किया हो।
हालाँकि, यदि एजेंट ने धोखाधड़ी व्यक्तिगत लाभ के लिए की हो और वह प्रिंसिपल की जानकारी या आदेश के बाहर हो, तो प्रिंसिपल उत्तरदायी नहीं होगा। यह निर्णय परिस्थितियों और एजेंट की भूमिका पर निर्भर करता है। कानून में यह ‘vicarious liability’ की श्रेणी में आता है।
🔶 42. गारंटी अनुबंध में ‘Principal Debtor’ कौन होता है?
गारंटी अनुबंध में Principal Debtor वह व्यक्ति होता है जो वास्तविक ऋण का उत्तरदायी होता है और जिसकी जिम्मेदारी गारंटी दी जाती है। उदाहरणतः यदि कोई छात्र बैंक से शिक्षा ऋण लेता है और उसका पिता गारंटी देता है, तो छात्र Principal Debtor है और पिता Surety।
Principal Debtor की जिम्मेदारी मूल दायित्व होती है और यदि वह कर्ज चुकाने में असफल रहता है, तभी गारंटर (Surety) को भुगतान करना होता है। बिना Principal Debtor के, गारंटी अनुबंध अस्थिर होता है। उसकी उपस्थिति अनुबंध की वैधता के लिए आवश्यक होती है।
🔶 43. साझेदारी में ‘Mutual Agency’ का सिद्धांत क्या है?
साझेदारी में Mutual Agency का अर्थ है कि प्रत्येक साझेदार फर्म का एजेंट भी होता है और प्रिंसिपल भी। इसका मतलब यह है कि एक साझेदार द्वारा किए गए व्यापारिक कार्य फर्म को बाध्य करते हैं और अन्य साझेदार भी उन कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं।
यह साझेदारी का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है क्योंकि यह परस्पर विश्वास और जिम्मेदारी पर आधारित होता है। यदि कोई साझेदार अपने अधिकार में रहते हुए कोई अनुबंध करता है, तो फर्म और अन्य साझेदार उसके लिए उत्तरदायी होते हैं।
Mutual Agency के अभाव में साझेदारी अस्तित्व में नहीं मानी जाती।
🔶 44. एजेंसी और सेवक (Servant) में क्या अंतर है?
एजेंसी और सेवक (नौकर) के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं:
- एजेंट स्वतंत्र निर्णय ले सकता है; सेवक नियोक्ता के आदेशों का पालन करता है।
- एजेंट प्रिंसिपल का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि सेवक केवल कार्य करता है।
- एजेंट द्वारा किए गए कार्यों के लिए प्रिंसिपल सीमित रूप से उत्तरदायी होता है; जबकि सेवक की लापरवाही या गलत कार्यों के लिए नियोक्ता पूरी तरह उत्तरदायी होता है।
- एजेंट आमतौर पर विशिष्ट कार्य करता है, जबकि सेवक दैनिक कार्यों में संलग्न रहता है।
इस प्रकार, सेवक और एजेंट के कार्यक्षेत्र और उत्तरदायित्व में स्पष्ट अंतर होता है।
🔶 45. साझेदारी फर्म में नए साझेदार की नियुक्ति कैसे होती है?
साझेदारी फर्म में नए साझेदार की नियुक्ति केवल तब की जा सकती है जब सभी मौजूदा साझेदार इसके लिए सहमत हों। यह Section 31 of the Indian Partnership Act, 1932 में निर्धारित है।
नए साझेदार के साथ नया साझेदारी अनुबंध बनाया जाता है, जिसमें उसकी पूंजी, लाभ-हानि में हिस्सा और जिम्मेदारियाँ तय होती हैं। नए साझेदार को पूर्व की देनदारियों के लिए तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब वह सहमति से स्वीकार करे।
इस प्रक्रिया से साझेदारी का स्वरूप बदलता है और सभी साझेदारों की सहमति आवश्यक होती है।
🔶 46. बीमा अनुबंध में ‘Subrogation’ का सिद्धांत क्या है?
Subrogation का सिद्धांत सामान्य बीमा अनुबंधों (जैसे अग्नि, समुद्री बीमा) में लागू होता है। इसके अनुसार, बीमाधारी को हानि का मुआवजा देने के बाद बीमा कंपनी को वह अधिकार मिल जाता है जो बीमाधारी को किसी तीसरे पक्ष से मुआवजा प्राप्त करने में होता।
उदाहरण: यदि किसी बीमाधारी की गाड़ी को किसी तीसरे व्यक्ति ने क्षतिग्रस्त किया, और बीमा कंपनी ने उसे हानि भरपाई दी, तो कंपनी उस तीसरे व्यक्ति से वह राशि वसूल सकती है।
यह सिद्धांत इस बात को सुनिश्चित करता है कि बीमाधारी को केवल हानि की भरपाई मिले, न कि लाभ।
🔶 47. गारंटी अनुबंध में गारंटर की सहमति के बिना मूल अनुबंध में परिवर्तन के प्रभाव क्या होते हैं?
यदि ऋणदाता और Principal Debtor के बीच हुए मूल अनुबंध में गारंटर की सहमति के बिना कोई भी परिवर्तन किया जाता है, तो गारंटी अनुबंध अमान्य हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गारंटी अनुबंध एक विशिष्ट दायित्व के लिए होता है और उसमें कोई भी परिवर्तन गारंटर के दायित्व को प्रभावित करता है।
यह Section 133 of Indian Contract Act के अंतर्गत आता है।
गारंटर का उत्तरदायित्व केवल उस अनुबंध तक सीमित है जो उसकी सहमति से बना था; किसी भी एकतरफा बदलाव से उसकी जिम्मेदारी समाप्त हो सकती है।
🔶 48. एजेंट की व्यक्तिगत देनदारी कब बनती है?
सामान्यतः एजेंट प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है और व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता। लेकिन कुछ परिस्थितियों में एजेंट स्वयं उत्तरदायी हो सकता है:
- यदि वह यह स्पष्ट न करे कि वह प्रिंसिपल की ओर से कार्य कर रहा है।
- यदि प्रिंसिपल अज्ञात या अस्तित्व में नहीं है।
- यदि एजेंट ने अपनी सीमा से बाहर जाकर कार्य किया हो।
- यदि अनुबंध में ऐसा स्पष्ट लिखा हो।
ऐसे मामलों में एजेंट को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायित्व वहन करना पड़ता है।
🔶 49. साझेदारी फर्म में भागीदारी समाप्त होने के प्रभाव क्या हैं?
जब साझेदार फर्म से अलग होता है, तो उसे Retiring Partner कहा जाता है। इससे निम्नलिखित प्रभाव होते हैं:
- वह भविष्य के अनुबंधों और दायित्वों के लिए उत्तरदायी नहीं रहता।
- पूर्व देनदारियों के लिए, वह तब तक जिम्मेदार होता है जब तक ऋणदाता को उसकी वापसी की सूचना न मिल जाए।
- यदि उसकी पूंजी फर्म में बनी रहती है, तो वह लाभ के हिस्से का हकदार हो सकता है।
- साझेदारी अनुबंध में यदि रिटायरमेंट की प्रक्रिया स्पष्ट हो, तो विवाद नहीं होता।
यह प्रक्रिया साझेदारी के पुनर्गठन का हिस्सा होती है।
🔶 50. बीमा अनुबंध में ‘Contribution’ का सिद्धांत क्या है?
Contribution का सिद्धांत तब लागू होता है जब बीमाधारी ने एक ही वस्तु या जोखिम का बीमा एक से अधिक कंपनियों से करवाया हो। ऐसे में यदि हानि होती है, तो सभी बीमा कंपनियाँ अनुपात के अनुसार मुआवजा देंगी।
उदाहरण: यदि एक संपत्ति का ₹1,00,000 का बीमा दो कंपनियों से करवाया गया है, और हानि ₹40,000 की होती है, तो दोनों कंपनियाँ अपनी बीमा राशि के अनुपात में भुगतान करेंगी।
इस सिद्धांत से यह सुनिश्चित किया जाता है कि बीमाधारी को एक ही हानि के लिए दोहरा लाभ न मिले और बीमा कंपनियों के बीच निष्पक्षता बनी रहे।