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Law of Contract – I (General Principles) (अनुबंध की उत्पत्ति, तत्व, शर्तें, समाप्ति)

🔷 1. अनुबंध की परिभाषा (Definition of Contract)

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(h) के अनुसार, “अनुबंध वह समझौता है जिसे विधि द्वारा बाध्यकारी बनाया जा सकता है।” अनुबंध दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक कानूनी समझौता होता है जिसमें अधिकार और कर्तव्यों का सृजन होता है। हर अनुबंध एक समझौता होता है, लेकिन हर समझौता अनुबंध नहीं होता। अनुबंध बनने के लिए सभी आवश्यक तत्वों जैसे प्रस्ताव, स्वीकृति, विचार (consideration), पक्षों की विधिक क्षमता आदि का होना अनिवार्य है।


🔷 2. अनुबंध की उत्पत्ति कैसे होती है? (How is a contract formed?)

अनुबंध की उत्पत्ति प्रस्ताव (offer) और स्वीकृति (acceptance) के माध्यम से होती है। जब एक पक्ष कोई प्रस्ताव देता है और दूसरा पक्ष उसे वैध रूप से स्वीकार करता है, तब समझौता बनता है। यदि वह समझौता विधिसम्मत होता है और उसमें विचार होता है, तो वह अनुबंध बन जाता है। इसमें कानूनी उद्देश्य होना आवश्यक है और पक्षों को अनुबंध करने की क्षमता होनी चाहिए।


🔷 3. वैध अनुबंध के तत्व (Essential Elements of a Valid Contract)

वैध अनुबंध के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं:
(1) प्रस्ताव और उसकी स्वीकृति,
(2) विचार (consideration),
(3) पक्षों की क्षमता,
(4) मुक्त सहमति,
(5) वैध उद्देश्य,
(6) विधि द्वारा प्रतिबंधित न हो।
यदि इनमें से कोई भी तत्व अनुपस्थित है, तो अनुबंध अमान्य (void) हो सकता है।


🔷 4. प्रस्ताव (Offer) क्या होता है?

प्रस्ताव वह अभिव्यक्ति है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को कोई कार्य करने या न करने का संकेत देता है और चाहता है कि वह उसे स्वीकार करे। प्रस्ताव विशिष्ट, स्पष्ट और संप्रेषित किया गया होना चाहिए। प्रस्ताव की स्वीकृति से ही अनुबंध की नींव पड़ती है। यह सामान्य या विशेष दोनों प्रकार का हो सकता है।


🔷 5. स्वीकृति (Acceptance) क्या होती है?

स्वीकृति वह कार्य है जिससे प्रस्ताव को बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार किया जाता है। यह स्पष्ट, बिना शर्त और समय पर होनी चाहिए। स्वीकृति मौखिक, लिखित या व्यवहार से हो सकती है। जब स्वीकृति वैध होती है, तब अनुबंध बनता है।


🔷 6. विचार (Consideration) का अर्थ

विचार का अर्थ है कि अनुबंध करने वाले पक्षों के बीच कुछ मूल्य का आदान-प्रदान होना चाहिए। इसे अनुबंध की आत्मा माना जाता है। बिना विचार के अनुबंध सामान्यतः अमान्य होता है (Section 25)। विचार भूतकालीन, वर्तमान या भविष्य का हो सकता है।


🔷 7. अनुबंध की वैधता के लिए मुक्त सहमति क्यों आवश्यक है?

मुक्त सहमति (Free Consent) का अर्थ है कि पक्षों ने अपनी इच्छा से अनुबंध किया हो, ना कि बल, धोखा, दबाव या भ्रम के प्रभाव में। यदि सहमति मुक्त नहीं है, तो अनुबंध अवैध या रद्द योग्य हो सकता है। अनुबंध अधिनियम की धारा 14 मुक्त सहमति को परिभाषित करती है।


🔷 8. अनुबंध की समाप्ति के कारण (Modes of Discharge of Contract)

अनुबंध निम्न कारणों से समाप्त हो सकता है:
(1) प्रदर्शन द्वारा (by performance),
(2) सहमति द्वारा,
(3) उल्लंघन द्वारा,
(4) असंभवता द्वारा,
(5) कानून द्वारा।
समाप्ति का अर्थ है कि पक्षों की जिम्मेदारियाँ समाप्त हो जाती हैं।


🔷 9. अनुबंध का उल्लंघन (Breach of Contract)

जब कोई पक्ष अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करता है, तो उसे अनुबंध का उल्लंघन कहा जाता है। यह आंशिक या पूर्ण हो सकता है। उल्लंघन की स्थिति में क्षतिपूर्ति, विशेष निष्पादन या स्थगन जैसी विधिक राहत प्राप्त की जा सकती है।


🔷 10. निरस्त अनुबंध (Void Contract) क्या है?

निरस्त अनुबंध वह होता है जो शुरू से ही कानूनन बाध्यकारी नहीं होता। जैसे अवैध उद्देश्य वाला अनुबंध। इसका कोई विधिक प्रभाव नहीं होता। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(g) इसके अंतर्गत आती है।


🔷 11. रद्द योग्य अनुबंध (Voidable Contract)

रद्द योग्य अनुबंध वह होता है जिसे एक पक्ष वैध रूप से निरस्त कर सकता है, यदि सहमति दबाव, धोखा या भ्रम के अधीन हो। जब तक निरस्त नहीं किया जाता, यह वैध होता है। उदाहरण: अनुबंध जब डर या जबरदस्ती के तहत किया गया हो।


🔷 12. कानूनन प्रवर्तनीय अनुबंध (Enforceable Contract)

यह वह अनुबंध होता है जिसे अदालत में लागू किया जा सकता है। इसमें सभी आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं। यदि पक्षों में से कोई अपनी शर्तों को नहीं मानता, तो दूसरा पक्ष अदालत में जाकर राहत प्राप्त कर सकता है।


🔷 13. अवैध अनुबंध (Illegal Contract)

अवैध अनुबंध वे होते हैं जो कानून द्वारा निषिद्ध कार्यों पर आधारित होते हैं, जैसे जुआ, तस्करी आदि। इनका कोई कानूनी अस्तित्व नहीं होता और इनसे उत्पन्न कोई अधिकार अदालत द्वारा संरक्षित नहीं किया जाता।


🔷 14. निष्पादन द्वारा अनुबंध की समाप्ति (Discharge by Performance)

जब अनुबंध के सभी पक्ष अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर लेते हैं, तो अनुबंध निष्पादित हो जाता है और समाप्त हो जाता है। यह अनुबंध की सबसे सामान्य समाप्ति विधि है और इसमें कोई विवाद नहीं रहता।


🔷 15. अनुबंध की असंभवता (Impossibility of Performance)

यदि अनुबंध बनने के बाद कोई कार्य करना असंभव हो जाए (प्राकृतिक आपदा, मृत्यु आदि से), तो अनुबंध समाप्त हो जाता है। इसे “Doctrine of Frustration” कहा जाता है और यह धारा 56 में वर्णित है।


🔷 16. द्विपक्षीय और एकपक्षीय अनुबंध में अंतर

द्विपक्षीय अनुबंध में दोनों पक्षों द्वारा कुछ करने का वचन होता है, जैसे – A ने B को सामान बेचा और B ने भुगतान का वचन दिया।
एकपक्षीय अनुबंध में केवल एक पक्ष दायित्व में होता है, जैसे इनाम की घोषणा करना (A ने ₹5000 इनाम की घोषणा की, जो खोया हुआ कुत्ता लाएगा)।
द्विपक्षीय अनुबंध में परस्पर वादा होता है जबकि एकपक्षीय में केवल एक पक्ष बाध्य होता है।


🔷 17. Quasi Contract क्या होता है?

Quasi Contract एक वास्तविक अनुबंध नहीं होता, बल्कि यह न्याय और समता के सिद्धांत पर आधारित एक कानूनी दायित्व होता है। इसमें कोई वास्तविक सहमति नहीं होती, लेकिन कानून पक्षों पर दायित्व थोपता है। जैसे, यदि कोई व्यक्ति गलती से किसी को धन दे देता है, तो प्राप्तकर्ता को वह धन लौटाना होगा (धारा 70–72, भारतीय अनुबंध अधिनियम)।


🔷 18. Wagering Agreement क्या है?

Wagering Agreement (सट्टा अनुबंध) वह होता है जिसमें पक्ष केवल इस बात पर शर्त लगाते हैं कि कोई घटना घटेगी या नहीं। इसमें जीतने या हारने का अधिकार केवल घटना पर निर्भर करता है। जैसे, क्रिकेट मैच पर शर्त लगाना। ऐसे अनुबंध अवैध होते हैं (Section 30)। ये अदालत में प्रवर्तनीय नहीं होते।


🔷 19. Contingent Contract क्या है?

Contingent Contract वह अनुबंध है जो किसी अनिश्चित भविष्य की घटना पर निर्भर करता है (Section 31)। उदाहरण: A ने B से कहा कि यदि X की शादी हो जाती है तो वह ₹10,000 देगा। यदि घटना घटती है, तो अनुबंध प्रवर्तनीय हो जाता है, अन्यथा नहीं।


🔷 20. Express & Implied Contract में अंतर

Express Contract वह होता है जिसमें पक्षों के बीच स्पष्ट रूप से शब्दों में अनुबंध होता है (लिखित या मौखिक)।
Implied Contract में अनुबंध व्यवहार या आचरण से स्थापित होता है। जैसे, होटल में बैठकर खाना मंगाना – यह एक Implied Contract है।
दोनों कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं।


🔷 21. Consideration का अपवाद क्या है?

हालांकि सामान्यतः अनुबंध के लिए Consideration आवश्यक है, लेकिन कुछ अपवाद हैं:

  1. प्राकृतिक प्रेम और स्नेह पर आधारित लिखित व निबंधित वादा
  2. भूतकालीन सेवा का प्रतिफल
  3. वादों को वैधानिक रूप से बाध्य करना
  4. एजेंसी और चैरिटेबल संस्थान से संबंधित वादे
    (Section 25, Indian Contract Act)

🔷 22. Doctrine of Privity of Contract

इस सिद्धांत के अनुसार केवल वही व्यक्ति जो अनुबंध का पक्ष है, वह उस पर अधिकार या कर्तव्य का दावा कर सकता है। तीसरा पक्ष अनुबंध को लागू नहीं कर सकता। अपवादस्वरूप, लाभार्थी को अधिकार दिया जा सकता है। जैसे, ट्रस्ट अनुबंध में लाभार्थी।


🔷 23. अनुबंध का अवसान सहमति द्वारा कैसे होता है?

धारा 62 और 63 के अनुसार, यदि दोनों पक्ष आपसी सहमति से अनुबंध को समाप्त कर दें, बदल दें या नया अनुबंध बना लें, तो पुराना अनुबंध समाप्त हो जाता है। इसे novation, rescission, alteration कहते हैं। यह विधिपूर्ण समाप्ति होती है।


🔷 24. Fraud और Misrepresentation में अंतर

Fraud जानबूझकर धोखा देने की मंशा से किया गया कार्य होता है।
Misrepresentation निर्दोष या अनजाने में दी गई गलत जानकारी होती है।
Fraud में मंशा होती है जबकि Misrepresentation में नहीं। दोनों में अनुबंध रद्द योग्य होता है लेकिन Fraud में क्षतिपूर्ति भी मिल सकती है।


🔷 25. Undue Influence क्या होता है?

जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति अपने प्रभाव का अनुचित प्रयोग कर किसी से अनुबंध करवा लेता है, तो उसे Undue Influence कहते हैं (Section 16)। जैसे, डॉक्टर द्वारा मरीज से संपत्ति का अनुबंध करवाना। यह अनुबंध रद्द योग्य होता है।


🔷 26. Coercion क्या होता है?

Section 15 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अनुबंध करने के लिए बलपूर्वक या धमकी से मजबूर किया जाता है, तो उसे Coercion कहते हैं। जैसे – बंदूक दिखाकर अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाना। यह अनुबंध रद्द योग्य होता है।


🔷 27. Free Consent की कानूनी परिभाषा

Section 14 के अनुसार, यदि सहमति Coercion, Undue Influence, Fraud, Misrepresentation या Mistake से मुक्त हो, तो वह Free Consent मानी जाती है। यदि सहमति इन दोषों से ग्रसित है, तो अनुबंध रद्द योग्य होता है।


🔷 28. Mistake of Fact vs Mistake of Law

यदि अनुबंध वास्तविक तथ्य की गलती के आधार पर हुआ हो (Mistake of Fact), तो वह रद्द हो सकता है (Section 20)। लेकिन यदि गलती कानून की हो (Mistake of Law), तो वह अनुबंध को अमान्य नहीं बनाता। विदेशी कानून की गलती को तथ्य की गलती माना जाता है।


🔷 29. Novation क्या है?

Novation का अर्थ है किसी अनुबंध को एक नए अनुबंध द्वारा प्रतिस्थापित करना, जिससे पुराना अनुबंध समाप्त हो जाता है (Section 62)। इसमें नई शर्तें और पक्ष हो सकते हैं। यह आपसी सहमति से होता है।


🔷 30. Doctrine of Frustration क्या है?

जब अनुबंध बनने के बाद कोई अनिवार्य परिस्थिति उत्पन्न होती है जिससे अनुबंध का पालन असंभव हो जाता है, तो उसे Frustration कहा जाता है (Section 56)। जैसे, वस्तु का विनष्ट हो जाना या युद्ध लग जाना। ऐसे में अनुबंध स्वतः समाप्त हो जाता है।


🔷 31. निषेधात्मक अनुबंध (Restraint of Trade) क्या होता है?

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 27 के अनुसार, ऐसा कोई भी अनुबंध जो व्यापार, व्यवसाय या पेशे में पूर्ण या आंशिक रूप से प्रतिबंध लगाता है, शून्य (Void) होता है। इसका उद्देश्य व्यावसायिक स्वतंत्रता की रक्षा करना है। अपवादस्वरूप, साझेदारी अधिनियम के तहत कुछ प्रतिबंध वैध माने जाते हैं।


🔷 32. निषेधात्मक विवाह अनुबंध (Restraint of Marriage)

कोई भी अनुबंध जो किसी व्यक्ति को विवाह करने से रोकता है, वह भारतीय कानून के अनुसार शून्य होता है। धारा 26 के तहत, विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध अवैध माना जाता है क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विरुद्ध है।


🔷 33. अनिश्चित अनुबंध (Uncertain Agreement)

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 29 के अनुसार, यदि किसी अनुबंध की शर्तें इतनी अनिश्चित या अस्पष्ट हैं कि उन्हें स्पष्ट नहीं किया जा सकता, तो वह अनुबंध अमान्य होता है। उदाहरण: “मैं तुम्हें एक सुंदर वस्तु बेचूंगा” – यह अस्पष्ट है।


🔷 34. सामान्य और विशेष प्रदर्शन (Performance of Contract)

अनुबंध का सामान्य प्रदर्शन वह है जहाँ पक्ष अपनी जिम्मेदारियाँ स्वयं पूरी करता है।
विशेष प्रदर्शन में तीसरा पक्ष या एजेंट अनुबंध की पूर्ति करता है।
धारा 37 के अनुसार, अनुबंध को समय व शर्तों के अनुसार पूर्ण किया जाना चाहिए।


🔷 35. समय की अनिवार्यता (Time as the Essence of Contract)

यदि अनुबंध में समय की अनिवार्यता स्पष्ट रूप से तय की गई हो, तो उसमें देरी अनुबंध के उल्लंघन के समान होती है। यदि समय महत्वपूर्ण नहीं है, तो केवल हर्जाना (damages) का प्रावधान होता है। धारा 55 इस सिद्धांत को नियंत्रित करती है।


🔷 36. मुआवजा और हर्जाना (Compensation and Damages)

जब अनुबंध का उल्लंघन होता है, तो पीड़ित पक्ष हर्जाना पाने का अधिकारी होता है। यह हर्जाना वास्तविक नुकसान की पूर्ति करता है, न कि सजा देने के उद्देश्य से। अनुबंध अधिनियम की धारा 73 इस विषय में मार्गदर्शन देती है।


🔷 37. विशेष हानि के लिए हर्जाना (Special Damages)

विशेष हानि वह होती है जो सामान्यतः उत्पन्न नहीं होती, लेकिन अनुबंध के समय यदि दूसरी पार्टी को संभावित हानि के बारे में बताया गया हो, तो उसके लिए क्षतिपूर्ति की जा सकती है। प्रसिद्ध केस Hadley v. Baxendale इसका उदाहरण है।


🔷 38. दंडात्मक हर्जाना (Punitive Damages)

भारतीय अनुबंध कानून में दंडात्मक हर्जाना सामान्यतः नहीं दिया जाता क्योंकि इसका उद्देश्य नुकसान की भरपाई है, न कि सजा। हालांकि कुछ असाधारण मामलों में, जैसे धोखाधड़ी, उसमें अदालत विशेष क्षतिपूर्ति देने पर विचार कर सकती है।


🔷 39. प्रत्याशित उल्लंघन (Anticipatory Breach of Contract)

जब एक पक्ष प्रदर्शन की नियत तिथि से पूर्व ही अनुबंध का उल्लंघन करने की मंशा व्यक्त करता है, तो उसे प्रत्याशित उल्लंघन कहते हैं। पीड़ित पक्ष तुरंत मुकदमा कर सकता है या प्रदर्शन की तिथि तक प्रतीक्षा कर सकता है (Section 39)।


🔷 40. Accord और Satisfaction का सिद्धांत

यह तब लागू होता है जब पक्ष आपसी सहमति से मूल अनुबंध की जगह नया समझौता कर लेते हैं और उसे पूरा करते हैं। इससे पुराना अनुबंध समाप्त हो जाता है। यह अनुबंध की समाप्ति का एक रूप है।


🔷 41. अकल्प्य घटना (Supervening Impossibility)

अनुबंध बनने के बाद ऐसी घटना का घटित होना जिससे अनुबंध का पालन असंभव हो जाए, उसे अकल्प्य घटना कहते हैं। जैसे – प्राकृतिक आपदा, मृत्यु, कानून में परिवर्तन। इससे अनुबंध स्वतः समाप्त हो जाता है (Section 56)।


🔷 42. Tender of Performance

जब एक पक्ष अनुबंध के तहत अपने कर्तव्यों को पूरा करने की पेशकश करता है, तो उसे प्रदर्शन की पेशकश (tender) कहा जाता है। यदि यह उचित और समय पर किया गया हो, तो उस पक्ष को प्रदर्शन से मुक्त माना जा सकता है।


🔷 43. Joint Promisors और Joint Promisees

जब एक से अधिक व्यक्ति किसी अनुबंध में वादा करते हैं या उनसे वादा किया जाता है, तो वे संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं।
धारा 42–45 संयुक्त प्रतिज्ञाओं और उनके प्रवर्तन का नियमन करती हैं। देनदारी साझा होती है।


🔷 44. Gratuitous Promise क्या है?

वह वादा जिसमें कोई विचार (consideration) नहीं होता, उसे gratuitous (नि:शुल्क) वादा कहते हैं। ऐसा वादा कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता। केवल नैतिक जिम्मेदारी होती है, कानूनी नहीं।


🔷 45. Illegal Object और Unlawful Consideration

यदि अनुबंध का उद्देश्य या विचार अवैध है — जैसे चोरी, जुआ, घूस आदि से संबंधित — तो वह अनुबंध शून्य होता है (Section 23)। ऐसे अनुबंध से कोई विधिक अधिकार प्राप्त नहीं होता और न ही अदालत इसमें सहायता करती है।


🔷 46. विकल्पात्मक अनुबंध (Option Contract) क्या है?

विकल्पात्मक अनुबंध वह होता है जिसमें एक पक्ष को यह विकल्प दिया जाता है कि वह भविष्य में किसी विशेष तिथि तक अनुबंध में प्रवेश करेगा या नहीं। यह सामान्यतः कुछ मूल्य (option money) के बदले में होता है, और इस दौरान प्रस्तावक अपना प्रस्ताव वापस नहीं ले सकता। यह निवेश, अचल संपत्ति, या बौद्धिक संपदा के क्षेत्र में सामान्य है।


🔷 47. अनुबंध में अंशतः अमान्यता (Partial Invalidity)

यदि अनुबंध का कोई भाग अवैध या अमान्य है लेकिन शेष भाग वैध और स्वतंत्र रूप से क्रियान्वित हो सकता है, तो अनुबंध का केवल अवैध भाग शून्य माना जाता है, न कि पूरा अनुबंध। यह सिद्धांत अनुबंध की व्यावहारिकता की रक्षा करता है।


🔷 48. अनुबंध में मानदंड (Standard Form Contracts)

ये अनुबंध पहले से छपे फॉर्मेट में होते हैं, जिन्हें उपभोक्ता बिना बातचीत के स्वीकार करता है, जैसे बीमा पॉलिसी, रेलवे टिकट, मोबाइल सेवा अनुबंध। न्यायालय इन्हें न्यायसंगत व्याख्या और उपभोक्ता संरक्षण के सिद्धांतों द्वारा संतुलित करता है।


🔷 49. Doctrine of Caveat Emptor

इस सिद्धांत के अनुसार “क्रेता सावधान रहे” — विक्रेता पर वस्तु की गुणवत्ता की पूर्ण जिम्मेदारी नहीं होती जब तक कि खरीदार ने विशेष मांग न की हो। हालांकि, आधुनिक कानून में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और अनुबंध की शर्तों के माध्यम से इससे कई अपवाद विकसित हुए हैं।


🔷 50. अनुबंध में Force Majeure क्लॉज का महत्व

Force Majeure वह अनुबंधीय प्रावधान है जो प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध, महामारी, या ऐसी अन्य अनियंत्रित परिस्थितियों में अनुबंध की असफलता के लिए पक्षों को जिम्मेदार नहीं ठहराता। यह व्यावसायिक अनुबंधों में सामान्यतः शामिल किया जाता है।


🔷 51. Tender और Quotation में अंतर

Tender एक औपचारिक प्रस्ताव होता है जो संविदात्मक प्रकृति का हो सकता है, जबकि Quotation केवल मूल्य जानकारी के लिए दिया जाता है और आमतौर पर अनुबंध नहीं बनाता। Tender की स्वीकृति से ही बाध्यकारी अनुबंध बनता है।


🔷 52. Doctrine of Quantum Meruit

इस सिद्धांत के अनुसार यदि कोई पक्ष अनुबंध की पूर्ति नहीं कर पाता परंतु आंशिक कार्य किया गया है जिससे दूसरे पक्ष को लाभ मिला है, तो वह किए गए कार्य का उचित मूल्य मांग सकता है। यह न्यायसंगत क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है।


🔷 53. Implied Terms क्या होते हैं?

Implied Terms वे अनुबंधीय शर्तें होती हैं जो स्पष्ट रूप से लिखित नहीं होतीं लेकिन न्यायालय द्वारा परिस्थिति, व्यवहार, और पूर्व अभ्यास के आधार पर अनुबंध में सम्मिलित मानी जाती हैं। यह अनुबंध को न्यायोचित रूप से क्रियान्वित करने हेतु आवश्यक होती हैं।


🔷 54. Reciprocal Promises क्या हैं?

जब दो पक्ष परस्पर एक-दूसरे से वचन लेते हैं कि वे एक-दूसरे के लिए कोई कार्य करेंगे या नहीं करेंगे, तो इसे पारस्परिक वादा कहते हैं (Section 2(f), 51–54)। इनका क्रियान्वयन एक-दूसरे पर निर्भर करता है।


🔷 55. Conditional Contracts क्या होते हैं?

ये अनुबंध किसी शर्त की पूर्ति पर निर्भर होते हैं। यदि शर्त पूरी होती है, तभी अनुबंध बाध्यकारी होता है। Contingent Contracts इसी श्रेणी में आते हैं। उदाहरण: “यदि वह परीक्षा पास करता है, तो उसे नौकरी दी जाएगी।”


🔷 56. Minor द्वारा किया गया अनुबंध

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, अल्पवयस्क (18 वर्ष से कम) द्वारा किया गया अनुबंध शून्य (void ab initio) होता है। न तो वह अनुबंध बना सकता है, न ही उस पर बाध्य होता है। हालांकि, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए उसे क्षतिपूर्ति देनी पड़ सकती है।


🔷 57. Contract of Guarantee और Contract of Indemnity में अंतर

Guarantee में तीन पक्ष होते हैं — ऋणदाता, उधारकर्ता, और जमानतदार। जमानतदार तब भुगतान करता है जब उधारकर्ता असफल होता है।
Indemnity में दो पक्ष होते हैं और एक पक्ष दूसरे को नुकसान से बचाने का वादा करता है।
(Section 124 – 127, Indian Contract Act)


🔷 58. Communication of Offer और Acceptance

Section 4 के अनुसार प्रस्ताव तब संप्रेषित होता है जब वह प्राप्तकर्ता तक पहुंचता है, और स्वीकृति तब पूरी मानी जाती है जब वह प्रस्तावक के ज्ञान में आती है। डाक द्वारा भेजी गई स्वीकृति विशेष नियमों के अधीन होती है।


🔷 59. Cross Offers और Counter Offers

Cross Offer में दोनों पक्ष एक ही समय पर समान प्रस्ताव देते हैं लेकिन स्वीकृति नहीं होती।
Counter Offer एक नए प्रस्ताव के रूप में होता है जो मूल प्रस्ताव को समाप्त कर देता है। Counter offer की स्वीकृति से ही अनुबंध बनता है।


🔷 60. Silence as Acceptance

मौन को सामान्यतः स्वीकृति नहीं माना जाता है। प्रस्तावक स्वीकृति के लिए मौन को थोप नहीं सकता। अपवाद स्वरूप, यदि पूर्व व्यवहार ऐसा रहा हो कि मौन को स्वीकृति माना जाए, तब यह वैध हो सकता है। उदाहरण: Felthouse v. Bindley केस।


🔷 61. Void Agreement और Void Contract में अंतर

Void Agreement वह है जो प्रारंभ से ही अमान्य होता है (Section 2(g)) – जैसे अवैध उद्देश्य वाला समझौता।
Void Contract वह है जो वैध रूप से बना लेकिन बाद में कुछ कारणों से अमान्य हो गया – जैसे असंभवता।
Void Agreement कभी बाध्यकारी नहीं होती, जबकि Void Contract प्रारंभ में वैध होता है।


🔷 62. Gratuitous Bailment क्या है?

जब कोई वस्तु बिना किसी पारिश्रमिक के दूसरे के संरक्षण हेतु सौंपी जाती है, तो उसे Gratuitous Bailment कहते हैं। जैसे – कोई मित्र अपनी घड़ी कुछ दिनों के लिए आपको देता है। इसमें Bailee को सामान की उचित देखभाल करनी होती है।


🔷 63. Unenforceable Contract क्या है?

Unenforceable Contract वह है जो वैध तो है, लेकिन किसी तकनीकी या कानूनी कमी (जैसे – स्टांप ड्यूटी, दस्तावेज़ीकरण की कमी) के कारण न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं है। यह तब तक बाध्यकारी नहीं होता जब तक कानूनी दोष दूर न हो जाए।


🔷 64. Executed और Executory Contract में अंतर

Executed Contract वह है जिसमें सभी दायित्व पूरे हो चुके हैं।
Executory Contract वह है जिसमें दायित्व अभी बाकी हैं।
उदाहरण: भुगतान हो चुका – Executed; आंशिक आपूर्ति शेष – Executory.


🔷 65. Consideration ‘Past’, ‘Present’, और ‘Future’

  • Past Consideration – पहले से किया गया कार्य।
  • Present Consideration – अनुबंध के साथ-साथ किया गया कार्य।
  • Future Consideration – भविष्य में किया जाने वाला कार्य या भुगतान।
    तीनों भारतीय कानून में मान्य हैं (Section 2(d))।

🔷 66. Reciprocal Promise का निष्पादन कैसे होता है?

यदि वादे एक-दूसरे पर निर्भर हों, तो एक पक्ष के कार्य के बिना दूसरा पक्ष बाध्य नहीं होता (Section 51)। यदि एक पक्ष कार्य करने से मना करता है, तो दूसरा पक्ष अनुबंध समाप्त कर सकता है।


🔷 67. Contracts opposed to Public Policy

ऐसे अनुबंध जो सार्वजनिक नीति के विरुद्ध हों, शून्य होते हैं। जैसे – रिश्वत से जुड़े समझौते, न्याय बाधित करने वाले अनुबंध, विवाह में व्यापार। न्यायालय इनका समर्थन नहीं करता।


🔷 68. Restitution under Void Contract

यदि कोई अनुबंध शून्य हो और एक पक्ष को कुछ लाभ मिला हो, तो उसे वापस करना होता है (Section 65)। यह न्यायसंगत सिद्धांत है जिससे अनुचित लाभ से रोका जाता है।


🔷 69. Contingent Contract और Wagering Agreement में अंतर

  • Contingent Contract में एक वास्तविक और संभव घटना पर अनुबंध आधारित होता है।
  • Wagering Agreement केवल सट्टा होता है, जिसमें परिणाम केवल लाभ/हानि तय करता है।
    Contingent Contract वैध होता है, जबकि Wagering अवैध (Section 30)।

🔷 70. Unlawful Consideration के प्रभाव

यदि विचार अवैध है (जैसे चोरी का सामान), तो अनुबंध शून्य माना जाता है (Section 23)। न तो पक्षों को अधिकार मिलता है और न ही न्यायालय सहायता करता है।


🔷 71. Conditions और Warranties में अंतर

Condition अनुबंध की मूल शर्त होती है – इसका उल्लंघन पूरा अनुबंध समाप्त कर सकता है।
Warranty गौण शर्त होती है – केवल क्षतिपूर्ति की मांग हो सकती है।
यह भिन्नता विशेष रूप से बिक्री अनुबंधों में देखी जाती है।


🔷 72. Tender की वैधता की शर्तें

एक वैध Tender के लिए आवश्यक है कि –

  1. वह समय पर किया जाए,
  2. पूरा हो,
  3. उचित स्थान पर हो,
  4. इच्छानुसार प्रदर्शन हेतु हो।
    यदि ये शर्तें पूरी हैं, तो प्रस्तावक अपने दायित्व से मुक्त हो सकता है।

🔷 73. Doctrine of Waiver

जब एक पक्ष जानबूझकर अनुबंधीय अधिकारों को छोड़ देता है, तो उसे Waiver कहते हैं। इसके बाद वह व्यक्ति उस अधिकार के लिए दावा नहीं कर सकता। यह न्याय के सिद्धांत पर आधारित है।


🔷 74. Liquidated Damages और Penalty

Liquidated Damages पूर्व में तय की गई वास्तविक क्षति है।
Penalty दंडात्मक राशि होती है, जो वास्तविक क्षति से अधिक हो सकती है।
भारतीय कानून (Section 74) केवल यथोचित हर्जाना देता है, न कि अनुचित दंड।


🔷 75. Third Party Beneficiary

हालांकि सामान्यतः तीसरे पक्ष को अनुबंध का लाभ नहीं मिलता (Doctrine of Privity), परंतु यदि अनुबंध में स्पष्ट रूप से किसी तीसरे को लाभ देने का प्रावधान है, तो वह लाभार्थी दावा कर सकता है – जैसे ट्रस्ट अनुबंध।


🔷 76. Discharge by Mutual Agreement

यदि पक्ष आपसी सहमति से अनुबंध को बदलते हैं, रद्द करते हैं या नया अनुबंध बनाते हैं, तो मूल अनुबंध समाप्त हो जाता है (Section 62)। इसे Novation, Alteration, या Rescission कहा जाता है।


🔷 77. Doctrine of Severability

यदि अनुबंध का कोई भाग अवैध हो लेकिन शेष भाग वैध और स्वतंत्र है, तो केवल अवैध भाग को अमान्य किया जाता है। यह न्यायसंगत सिद्धांत अनुबंध की प्रभावशीलता बनाए रखता है।


🔷 78. Capacity to Contract के अंतर्गत कौन अपात्र है?

Section 11 के अनुसार, निम्न व्यक्ति अनुबंध हेतु अपात्र हैं –

  1. अल्पवयस्क,
  2. मानसिक रूप से अस्वस्थ,
  3. विधि द्वारा अपात्र ठहराए गए व्यक्ति (जैसे दिवालिया)।
    इनके अनुबंध शून्य माने जाते हैं।

🔷 79. Communication of Revocation

Section 5 के अनुसार, प्रस्ताव को तब तक वापस लिया जा सकता है जब तक कि स्वीकृति संप्रेषित न हो जाए। इसी प्रकार, स्वीकृति भी वापस ली जा सकती है यदि वापसी पहले पहुंच जाए।


🔷 80. Agreement to Agree in Future

ऐसा समझौता जिसमें भविष्य में समझौता करने का इरादा हो, लेकिन शर्तें स्पष्ट न हों – उसे Agreement to Agree कहते हैं। यह अनुबंध योग्य नहीं होता क्योंकि इसमें आवश्यक निश्चितता नहीं होती।


🔷 81. Bailment और Pledge में अंतर

Bailment में वस्तु को केवल संरक्षण या उपयोग हेतु दिया जाता है जबकि Pledge में वस्तु को ऋण के बदले सुरक्षा के तौर पर रखा जाता है।
Bailment में Bailee का सीमित अधिकार होता है, जबकि Pledgee वस्तु को बेच सकता है यदि भुगतान न हो।


🔷 82. Substituted Performance क्या है?

Contract Act (2021 Amendment) के अनुसार, जब एक पक्ष अनुबंध का उल्लंघन करता है, तो दूसरा पक्ष उसे अदालत में ले जाए बिना अनुबंध का कार्य किसी और से करवा सकता है और खर्च की वसूली कर सकता है। इसे Substituted Performance कहते हैं (Section 20, Specific Relief Act)।


🔷 83. Bailment की आवश्यक शर्तें

  1. वस्तु का सुपुर्द होना
  2. उद्देश्य स्पष्ट होना
  3. सहमति
  4. वस्तु वापस करने की शर्त
  5. Bailee द्वारा उचित देखभाल
    ये Bailment को वैध बनाते हैं।

🔷 84. Surety की देनदारी का स्वरूप

Surety (जमानतदार) की देनदारी मुख्य ऋणकर्ता के बराबर होती है (Section 128)। वह तभी जिम्मेदार होता है जब Principal Debtor भुगतान में चूक करे। उसकी देनदारी सहायक नहीं बल्कि प्राथमिक मानी जाती है।


🔷 85. Agency by Necessity

आपातकालीन परिस्थिति में, जब एजेंट नहीं है, तो कोई व्यक्ति किसी अन्य के हित में कार्य कर सकता है। इसे Agency by Necessity कहते हैं। जैसे – जहाज का कप्तान माल की रक्षा के लिए विक्रय करता है।


🔷 86. Gratuitous Agency क्या है?

जब कोई एजेंट बिना पारिश्रमिक के सेवा प्रदान करता है, तो उसे Gratuitous Agency कहते हैं। ऐसे एजेंट पर भी वही कर्तव्य लागू होते हैं जैसे भुगतान प्राप्त करने वाले एजेंट पर, लेकिन उसकी देनदारी सीमित होती है।


🔷 87. Contract of Agency को समाप्त करने के तरीके

  1. कार्य पूर्ण होना
  2. समय सीमा समाप्त होना
  3. एक पक्ष द्वारा समाप्ति
  4. मृत्यु, पागलपन या दिवालियापन
  5. उद्देश्य असंभव होना
    (Section 201 – 210, Contract Act)

🔷 88. Del-Credere Agent कौन होता है?

Del-Credere Agent सामान्य एजेंट के साथ-साथ खरीदार की ओर से भुगतान की गारंटी भी देता है। यदि खरीदार भुगतान नहीं करता, तो वह स्वयं भुगतान करता है। इसके लिए उसे अतिरिक्त कमीशन मिलता है।


🔷 89. Principal और Agent के बीच विश्वास संबंध

Agent और Principal के बीच विश्वास का संबंध होता है। Agent को Principal के हित में कार्य करना होता है, गुप्त लाभ नहीं लेना होता, और पूरी निष्ठा रखनी होती है (fiduciary duty)।


🔷 90. Undisclosed Principal

जब एजेंट लेन-देन करता है लेकिन Principal की पहचान छुपाता है, तो उसे Undisclosed Principal का मामला कहा जाता है। ऐसे मामलों में तीसरा पक्ष एजेंट या Principal किसी पर भी दावा कर सकता है।


🔷 91. Personal Liability of Agent

सामान्यतः एजेंट व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं होता, लेकिन निम्न स्थितियों में हो सकता है:

  1. यदि वह Principal की पहचान न बताए
  2. यदि वह Principal की शक्ति से अधिक कार्य करे
  3. यदि वह स्वयं को Principal बताकर कार्य करे

🔷 92. Irrevocable Agency

जब एजेंसी किसी प्रतिफल (interest) से जुड़ी हो, तब Principal उसे समाप्त नहीं कर सकता। इसे Agency Coupled with Interest कहते हैं (Section 202)। यह एजेंट को सुरक्षित करता है।


🔷 93. Ostensible Authority क्या है?

जब एजेंट ऐसा व्यवहार करता है जिससे तीसरा पक्ष विश्वास करे कि उसे अधिकार है, और Principal उसे रोकता नहीं, तो उसे Ostensible Authority कहा जाता है। Principal उस पर बाध्य होता है।


🔷 94. Ratification (अनुमोदन) के नियम

Principal किसी एजेंट द्वारा उसकी जानकारी के बिना किए गए कार्य को Ratify कर सकता है। इसके लिए आवश्यक है:

  1. Principal अस्तित्व में हो
  2. पूर्ण ज्ञान हो
  3. वैध कार्य हो
  4. समय सीमा में अनुमोदन हो

🔷 95. Revocation of Offer के नियम

प्रस्ताव वापस लिया जा सकता है जब तक कि वह स्वीकृत न हो जाए (Section 5)। वापसी संप्रेषित होनी चाहिए और स्वीकृति से पहले प्राप्त होनी चाहिए।


🔷 96. Acceptance in Ignorance of Offer

यदि कोई व्यक्ति बिना प्रस्ताव जाने कार्य कर दे, तो उसे स्वीकृति नहीं माना जाएगा। स्वीकृति के लिए प्रस्ताव की जानकारी आवश्यक है। उदाहरण: Lalman Shukla v. Gauri Dutt केस।


🔷 97. Communication of Acceptance by Post

यदि डाक द्वारा स्वीकृति भेजी जाती है, तो जैसे ही पत्र पोस्ट होता है, स्वीकृति पूरी मानी जाती है (Postal Rule)। यह तब लागू होता है जब प्रस्तावक डाक से उत्तर अपेक्षित करता है।


🔷 98. Specific और General Offer में अंतर

Specific Offer किसी विशेष व्यक्ति को किया जाता है, जैसे – नौकरी का प्रस्ताव।
General Offer सबको किया जाता है, जैसे – इनाम की घोषणा। General Offer कोई भी पूरा करके स्वीकृति कर सकता है।


🔷 99. Valid और Invalid Acceptance में अंतर

Valid Acceptance स्पष्ट, बिना शर्त, समयबद्ध, संप्रेषित और विधिसम्मत होती है।
Invalid Acceptance अस्पष्ट, देरी से, शर्तों सहित, या मौन होती है। Valid Acceptance से अनुबंध बनता है, Invalid से नहीं।


🔷 100. Essentials of a Valid Offer

  1. प्रस्ताव का इरादा अनुबंध बनाने का होना चाहिए
  2. स्पष्ट और निश्चित हो
  3. संप्रेषित किया गया हो
  4. कानूनी होना चाहिए
  5. स्वीकृति हेतु तैयार होना चाहिए
    ये सभी शर्तें वैध प्रस्ताव के लिए आवश्यक हैं।