Labour Law II Short Answer

:- लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :-

कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948

(Employees State Insurance Act, 1948)

प्रश्न 1. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अन्तर्गत कर्मचारी को परिभाषित करें। Define ’employee’ under the Employee’s State Insurance Act?

उत्तर – कर्मचारी (Employee) – कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 की धारा 2 में कर्मचारी को परिभाषित किया गया है। कर्मचारी से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी ऐसे स्थापन या कारखाने में, जिसे यह अधिनियम लागू हो, उसके काम के सम्बन्ध में मजदूरी पर नियोजित है, और

(i) जो उस कारखाने या स्थापन के किसी काम पर या उस काम के आनुषंगिक या प्रारम्भिक या उससे सम्बद्ध किसी काम पर प्रधान नियोजक द्वारा सीधे नियोजित है— चाहे ऐसा काम वह उस कारखाने या स्थापन में करता है, या अन्यत्र कहीं या

(ii) जो किसी निकटतम नियोजक के द्वारा या उसके माध्यम से कारखाना या स्थापन के परिसर में, या प्रधान नियोजक या उसके अभिकर्ता के पर्यवेक्षण के अधीन काम पर नियोजित है, जो मामूली तौर पर उस कारखाने या स्थापन के काम का भाग है, या जो उस कार्य का प्रारम्भिक अंश है, जो उस कारखाने या स्थापन में किया जाता है; या स्थापन के प्रयोजन का आनुषंगिक (incidental) है या

(iii) जिसकी सेवायें प्रधान नियोजक को उस व्यक्ति द्वारा अस्थायी रूप से उधार या भाड़े पर दी गयी हैं, जिसके साथ उस व्यक्ति ने जिसकी सेवायें इस प्रकार उधार या भाड़े पर दी गई हैं, कोई सेवा संविदा कर रखी है और इसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता है जो कारखाने या स्थापन के या उसके किसी भाग, विभाग या शाखा के प्रशासन से या उस स्थापन या कारखाने के लिए कच्चे माल के क्रय में या उसके उत्पादों के वितरण या विक्रय से सम्बन्धित किसी काम पर मजदूरी पर नियोजित हो ।

    चूँकि यह सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान का एक महत्वपूर्ण अधिनियम है इसलिए परिभाषित कर्मचारी शब्द का क्षेत्र व्यापक माना जाना चाहिये और उसका अर्थ कारखाना अधिनियम में “कर्मकार” शब्द को दिये जाने वाले अर्थ की अपेक्षा अधिक उदारता से किया जाना चाहिये।

प्रश्न 2. “कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 एक सामाजिक सुरक्षा विधि है।” व्याख्या कीजिए। “Employees State Insurance Act, 1948 is a social security legislation.” Explain.

उत्तर– ” उन व्यक्तियों की, जो नियमित आय पर आश्रित हैं, बीमारी, निर्योग्यता, प्रसूति, वृद्धावस्था, बेरोजगारी आदि के कारण आय के व्यवधान की समस्या गम्भीर है। हर जगह औद्योगिक कर्मकार इस समस्या से ग्रस्त होते हैं। जब तक इन स्थितियों से निपटने लिए सतोषजनक प्रावधान नहीं बना दिया जाता, तब तक कर्मकार आर्थिक असुरक्षा के पद है आक्रान्त रहेंगे और इन स्थितियों में से किसी एक के गम्भीर रूप से घटित होने पर और उनके परिवारों को गम्भीर कठिनाई का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी भूखमरी के का पर आ जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से समृद्ध अधिकांश देशों में अनिवार्य सामाजिक बीमा योजनाओं के माध्यम से इन खतरों के लिये प्रावधान किये गये हैं। भारत में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम अभाव, बीमारी, गन्दगी, अज्ञानता और काहिलपन द्वारा कारित राष्ट्रीय गरीबी के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर उत्पन्न होने वाली बुराइयों के उपचार को उपबन्धित करने की नीति का परिणाम है।

    ट्रान्सपोर्ट कारपोरेशन ऑफ इण्डिया बनाम ई० एस० आई० कारपोरेशन, ए० आई० आर० (2000) सु० को० 1190 में विनिश्चित किया गया है कि “Object of the Act is to provide certain benefits to employees.”

     महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा परियोजनाओं (Social Security Schemes) में इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण स्थान तथा कल्याणकारी राज्य की घोषणा को कार्यरूप में देने की दिशा में एक प्रभावकारी कदम है। मार्च, 1943 में प्रो० सी० पी० अडारकर को औद्योगिक कर्मकारों के स्वास्थ्य बीमा पर रिपोर्ट देने के लिये स्पेशल आफिसर नियुक्त किया गया। उन्होंने सन् 1944 में रिपोर्ट पेश की। मौरिस स्टाक और रघुनाथ राव जो अन्तर्राष्ट्रीय श्रम- संगठन के सदस्य थे, ने उसमें और भी सुधार किये। श्रमिकों की स्थिति में पर्याप्त सुधार लाने के लिए समुचित उपायों की संस्तुति देने के प्रयोजन से भारत सरकार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय श्रम- संगठन (I.L.O.) के उन दो नामोल्लेखनीय आमन्त्रित विशेषज्ञों के सुझावों को ध्यान में रखकर ही स्कीम में सामान्य हित की बातें समाविष्ट की गई। उक्त संगठन से भारत सरकार को इस दिशा में सुधार लाने की पर्याप्त प्रेरणा प्राप्त हुई। 6 नवम्बर, 1946 को रखा गया। विधेयक सन् 1948 में अधिनियम के रूप में पारित हुआ।

      यह अधिनियम भारत सहित समस्त दक्षिणी-पूर्वी एशिया का सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी प्रोग्राम माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक न्याय तथा श्रमिकों के कल्याण हेतु सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी उपबन्ध प्रस्तुत करना है।

प्रश्न 3. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के तहत स्थायी आंशिक निर्योग्यता क्या है? What is permanent partial disablement under Employees State Insurance Act.

उत्तर- स्थायी आंशिक निर्योग्यता – इससे स्थायी प्रकृति की ऐसी निर्योग्यत से मतलब है, जो किसी कर्मकार की प्रत्येक नियोजन के लिए अर्जन-शक्ति कम कर देते है, उस दुर्घटना के समय जिसके परिणामस्वरूप ऐसी निर्योग्यता हुई जब वह करने में समर्थ था।

द्वितीय अधिसूची के भाग दो में निम्न अंग-भंगों का उल्लेख किया गया है, जैसे-

(1) ऊपरी अंगों का अंग-भंग (कोई भी पक्ष):

(2) निचले अंगों का अंग-भंग:

(3) दाहिने बायें अंगुलियों की क्षति

(4) अन्य क्षतियाँ

(5) दायें या बायें पैर के अंगूठे की हानि।

    द्वितीय अनुसूची के भाग दो में उल्लिखित प्रत्येक क्षति को स्थायी आंशिक निर्योग्यता परिणामित करने वाला माना जाएगा।

प्रश्न 4 नियोजक द्वारा अभिदान करने के तरीकों की व्याख्या कीजिए। Explain the method of contributions by the Employers.

उत्तर- नियोजक द्वारा अभिदाय – कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम की धारा 40 के अनुसार नियोजक अपने सभी कर्मचारियों के अंशदान पहले स्वयं जमा करेगा। चाहे भले ही वह किसी तात्कालिक नियोजक द्वारा नियोजित है। बाद में वह कर्मकारों की मजदूरी से उसके अंशदान प्राप्त करेगा।

     अंशदान की विशेषता धारा 94 में दी गई है। इसके अनुसार निगम को अदा किये जाने वाले अंशदान आदि को अन्य ऋणों पर प्राथमिकता दी जायेगी जैसे किसी व्यक्ति के दिवालिया हो जाने पर या कम्पनी के समापन पर आस्तियों या दोनों के वितरण में निगम को देय अंशदान आदि प्राथमिक ऋण समझे जायेंगे। अंशदान का भुगतान प्रथम अनुसूची में दी गयी दरों पर किया जायेगा। ऐसे कर्मचारी किसी कारखाने आदि में हैं और उस ढंग से कि वे अधिनियम के कुछ प्रलाभों से वंचित कर दिये गये हैं, तो उनका अंशदान ऐसी दर पर होगा, जैसा कि निगम निर्धारित करे।

     एक सप्ताह एक इकाई, जिसके सम्बन्ध में सभी अंशदान होते हैं। प्रत्येक सप्ताह के अन्तिम दिन देय होते हैं। इस प्रकार की कटौती अनुच्छेद 31 के अन्तर्गत सम्पत्ति की कटौती नहीं मानी जायेगी, बिना वेतन के अधिकृत छुट्टी के दिनों की मजदूरी से कटौती अवैध होगी।

    किसी दूसरे नियम के अन्यथा रहने पर, किन्तु इस अधिनियम और नियमों के अधीन, मुख्य नियोजक प्रत्यक्षत: अपने द्वारा नियोजित (जो छूट प्राप्त कर्मचारी नहीं है) कर्मचारी की मजदूरी से कटौती करके कर्मकार के अंशदान को वसूल सकता है। किसी अन्य प्रकार से नहीं वसूल सकता। लेकिन यह कटौती देय अवधि के लिए की जा सकती है, अन्य भृत्तियों से नहीं

प्रश्न 5. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत स्थायी समिति के गठन की व्याख्या कीजिए। What are the standing committees constituted under the Employees State Insurance Act, 1948.

उत्तर- स्थायी समिति का गठन – स्थायी समिति का गठन निगम के सदस्यों द्वारा होता है। अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, इसमें निम्न सदस्य रहेंगे-

(1) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष;

(2) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त निगम के तीन सदस्य

(3) निगम में तीन राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन सदस्य जो कि केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त होंगे और तीन राज्य के ऐसे सदस्य होंगे जैसा कि केन्द्रीय सरकार इस प्रयोजन के लिए समय-समय पर निर्दिष्ट करे।

(4) निगम द्वारा चुने गये आठ सदस्य निम्न प्रकार होंगे-

(i) निगम के सदस्यों में से तीन सदस्य जो नियोजक का प्रतिनिधित्व करते हों

(ii) तीन कर्मकारों का प्रतिनिधित्व करते हों:

(iii) एक सदस्य जो चिकित्सकों के पेशे का प्रतिनिधित्व करता हो;

(iv) एक सदस्य जो संसद द्वारा चुना गया हो;

(v) निगम का पदेन महानिदेशक।

प्रश्न 6. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अनतर्गत कौन सी विभिन्न प्रासुविधायें उपलब्ध हैं? State What are the facilities available under the Employees Insurance Act, 1948 ?

उत्तर – कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 का मुख्य उद्देश्य श्रमिकों एवं कर्मचारियों को आर्थिक लाभ व स्वतन्त्रता की स्थिति में लाना है और कर्मचारियों को शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक भय से मुक्ति प्रदान किया है। इस सम्बन्ध में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम की धारा 46 से 73 तक में कर्मचारी व आश्रित को विभिन्न प्रकार से लाभों का प्रावधान किया गया है। इस सम्बन्ध में विभिन्न लाभ जैसे—बीमारी लाभ, प्रसूति लाभ, अयोग्यता लाभ, आश्रित लाभ, चिकित्सा एवं दाह संस्कार व परिवार चिकित्सा लाभ मुख्य हैं। इन लाभों का पृथक- पृथक् विवेचन इस प्रकार किया गया है –

( 1 ) बीमारी लाभ (Sickness benefit ) — बीमित कर्मचारी के बीमार पड़ने पर नियुक्त चिकित्सा या अन्य अनुभवी व्यक्ति के प्रमाणित करने पर यह बीमारी लाभ प्राप्त कर सकेगा। बीमारी लाभ का भुगतान निश्चित अवधि अथवा समयान्तर पर किया जाता है।

(2) प्रसूति लाभ (Maternity Benefit) – एक भीमित महिला को प्रसूति लाभ के पूर्व 12 सप्ताह का प्रसूति लाभ प्राप्त करने का अधिकार है। अधिनियम की प्रथम अनुसूची में दी गयी दरों के अनुसार 12 सप्ताह के लिए सम्भावित प्रसूतावस्था में 6 सप्ताह पूर्व तथा 6 सप्ताह प्रसूतावस्था के बाद लाभ प्राप्त होगा। प्रसवकाल में मृत्यु हो जोने पर और शिशु के जीवित।

( 3 ) अयोग्यता या अशक्तता लाभ (Disablement benefit ) — दुर्घटना घटित हाने के बाद तीस दिन तक कर्मचारी काम करने की स्थिति में न होने पर अयोग्यता अवधि में सामाजिक भुगतान के रूप में लाभ प्रदान किया जायेगा। असमर्थता चाहे पूर्ण या आंशिक या स्थायी अथवा अस्थायी ही क्यों न हो प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट दरों के अनुसार लाभ प्राप्त होगा (धारा 51 ) ।

( 4 ) आश्रित लाभ (Dependent’s Benefit ) — धारा 52 के अनुसार कर्मचारी की नियोजन में दुर्घटना हो जाने पर उसके आश्रितों को आश्रित लाभ प्रथम अनुसूची में दी गई निर्धारित दरों के अनुसार प्राप्त होगा।

(5) चिकित्सा लाभ (Medical Benefit)–धारा 56 के अनुसार, “बीमित व्यक्ति या उसके आश्रित को बाहरी रोगी के नाते अस्पताल, डिस्पेन्सरी आदि में उपचार करके, घर पर इलाज करके आन्तरिक रोगी के रूप में यह सुविधा या लाभ प्रदान किया जायेगा।

प्रश्न 7. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अन्तर्गत निगम बोर्ड के गठन का क्या तरीका है? What is the mode to constitute corporation under Employees State Insurance Act?

उत्तर – निगम बोर्ड का गठन- अधिनियम की धारा 3 के अनुसार निगम की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना जारी कर निम्न प्रकार की जायेगी-

(1) एक अध्यक्ष जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त तथा

(2) एक उपाध्यक्ष केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त

(3) 5 से अनधिक ऐसे व्यक्ति जिन्हें केन्द्र सरकार नियुक्त करेगी

(4) सम्बन्धित सरकारों द्वारा नामित एक-एक व्यक्ति जो कि अपने-अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करेंगे जहाँ कि यह अधिनियम लागू होता है।

(5) संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक व्यक्ति जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त होगा

(6) नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने वाले 10 व्यक्ति जिन्हें केन्द्र सरकार उनके ऐसे संगठनों के परामर्श से नियुक्त करेगी, जैसा कि वह प्रयोजन के लिए मान्यता प्रदान करे

(7) कर्मचारियों का करने के लिए 10 व्यक्ति जिन्हें केन्द्र सरकार उनके ऐसे संगठन के परामर्श से नियुक्त करेगी जिनको कि इस निमित्त वह मान्यता प्रदान करे

(8) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामित चिकित्सा व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करने वाले 2 व्यक्ति जिन्हें सरकार उनके संगठनों के परामर्श से नियुक्त करेंगी, इन्श्योरेन्स मेडिकल अफसर जो इस स्कीम के अन्तर्गत कार्य करते हैं वह राज्य सरकार के नियोजिती नहीं माने जायेंगे।

(9) संसद के तीन सदस्य जो दो लोकसभा एवं एक राज्यसभा से चुने जायेंगे।

(10) निगम का महानिदेशक, लेकिन पदेन सदस्य होगा।

प्रश्न 8. (क) चिकित्सा हितलाभ परिषद क्या है? व्याख्या कीजिए। What is the Medical Benefit Council? Discuss.

(ख) अंशदान के संदाय का ढंग क्या है? समझाइए । What is the mode of payment of contribution? Explain.

उत्तर (क) चिकित्सा हितलाभ परिषद् (Medical Benefit Council) – कर्मचारी राज्य बीमा योजना के अन्तर्गत एक चिकित्सा लाभ परिषद् का गठन किया गया है। चिकित्सा लाभ परिषद् की स्थापना केन्द्रीय सरकार द्वारा चिकित्सा सम्बन्धी सलाह प्राप्त करने के लिए की गई है।

   चिकित्सा लाभ परिषद के सदस्य निम्नलिखित होते हैं-

      इस परिषद् में महानिदेशक, उपमहानिदेशक, निगम का चिकित्सा आयुक्त, राज्य सरकार द्वारा निर्वाचित एक सदस्य, नियोक्ता तथा कर्मचारियों के समुदाय से केन्द्रीय सरकार की सहमति से निर्वाचित 3-3 सदस्य, सरकार द्वारा प्रमाणित मेडिकल प्रैक्टिशनर संख्या के सदस्यों से उनकी सलाह से तीन व्यक्तियों की नियुक्ति में कम से कम एक महिला डॉक्टर होगी।

    उपर्युक्त राज्य सरकार द्वारा निर्वाचित सदस्य, नियोक्ता तथा कर्मचारियों के 3-3 सदस्यों तथा प्रमाणित मेडिकल प्रैक्टिशनर के सदस्यों का अवधिकरण 4 वर्ष माना जायेगा। लेकिन इस अवधिकाल को आगे भी बढ़ाया जा सकता है।

     चिकित्सा लाभ परिषद् के अधिकार व कर्त्तव्य– धारा 22 के अनुसार यह समिति निगम तथा स्थायी समिति (Standing Committee) को स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों में आवश्यक परामर्श देती है। कर्मचारियों के स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों तथा उनके परिवार के सदस्यों की देखभाल करने वाले व्यक्तियों को स्वास्थ्य चिकित्सा सम्बन्धी अधिकार व दायित्वों को पूरा करना, चिकित्सा हित लाभ के लिए प्रमाण-पत्र देना, डॉक्टरी इलाज या डॉक्टरों की उपस्थिति से सम्बन्धित नियमों का पालन करना, अन्य स्पष्ट रूप से बताये गये अधिकार व दायित्वों का पालन करना आदि।

उत्तर (ख ) अंशदान के संदाय का ढंग – कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम की – धारा 40 के अनुसार नियोजक अपने सभी कर्मचारियों के अंशदान पहले स्वयं जमा करेगा। चाहे भले ही वह किसी तत्कालिक नियोजक द्वारा नियोजित है। बाद में वह कर्मकारों की मजदूरी से उसके अंशदान प्राप्त करेगा।

     अंशदान की विशेषता धारा 94 में दी गई है। इसके अनुसार निगम को अदा किये जाने वाले अंशदान आदि को अन्य ऋणों पर प्राथमिकता दी जायेगी जैसे किसी व्यक्ति के दिवालिया हो जाने पर या कम्पनी के समापन पर आस्तियों या धनों के वितरण में निगम को देय अंशदान आदि प्राथमिक ऋण समझे जायेंगे। अंशदान का भुगतान प्रथम अनुसूची में दी गयी दरों पर किया जायेगा। ऐसे कर्मचारी किसी कारखाने आदि में हैं और इस ढंग से कि वे अधिनियम के कुछ प्रलाभों से वंचित कर दिये गये हैं, तो उनका अंशदान ऐसी दर पर होगा, जैसा कि निगम निर्धारित करे।

     एक सप्ताह एक इकाई, जिसके सम्बन्ध में सभी अंशदान होते हैं। प्रत्येक सप्ताह के अन्तिम दिन देय होते हैं। इस प्रकार की कटौती अनुच्छेद 31 के अन्तर्गत सम्पत्ति की कटौती नहीं मानी जायेगी, बिना वेतन के अधिकृत छुट्टी के दिनों की मजदूरी से कटौती अवैध होगी।

    किसी दूसरे नियम के अन्यथा रहने पर, किन्तु इस अधिनियम और नियमों के अधीन, मुख्य नियोजक प्रत्यक्षतः अपने द्वारा नियोजित (जो छूट प्राप्त कर्मचारी नहीं है) कर्मचारी की मजदूरी से कटौती करके कर्मकार के अंशदान को वसूल सकता है। किसी अन्य प्रकार से नहीं वसूल सकता। लेकिन यह कटौती देय अवधि के लिए की जा सकती है, अन्य भृत्तियों से नहीं।

प्रश्न 9. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अन्तर्गत हित लाभ की व्याख्या कीजिए। Discuss the term ‘Benefit’ under Employees State Insurance.

उत्तर- हित लाभ (Benefit)— कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 का मुख्य उद्देश्य श्रमिकों एवं कर्मचारियों को आर्थिक लाभ व स्वतन्त्रता की स्थिति में लाना है और कर्मचारियों को शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक भय से मुक्ति प्रदान किया है। इस सम्बन्ध में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम की धारा 46 से 73 तक में कर्मचारी व आश्रित को विभिन्न प्रकार से लाभों का प्रावधान किया गया है।

इस सम्बन्ध में विभिन्न लाभ निम्न हैं-

(1) बीमारी लाभ

(2) प्रसूति लाभ

(3) अयोग्यता या अशक्तता लाभ

(4) आश्रित लाभ

(5) चिकित्सा लाभ

(6) दाह संस्कार लाभ

प्रात 10. पूर्ण और आंशिक अंगहानि क्या है? What is total and partial disablement?

उत्तर-पूर्ण और आंशिक अंगहानि (Total and Partial disablement)—

पूर्ण अंगहानि – पूर्ण अंगहानि से आशय ऐसी अंगहानि से है जिसके फलस्वरूप श्रमिक की उपार्जन क्षमता बिल्कुल कम हो जाती है जैसे दोनों हाथों या आँखों का चले जाना आदि। यदि पूर्ण अयोग्यता कुछ समय के लिए है तो वह अस्थायी अयोग्यता होगी।

आंशिक अंगहानि- आंशिक अयोग्यता से तात्पर्य ऐसी अयोग्यता या अंगहानि से है जिसमें श्रमिक की उपार्जन क्षमता (Earning Capacity) कम हो जाती है।

आंशिक अयोग्यता दो प्रकार की होती है-

(1) अस्थायी आंशिक अयोग्यता और (2) स्थायी आंशिक अयोग्यता।

(1) अस्थायी आंशिक अयोग्यता यह अयोग्यता है जिसमें श्रमिक जो उस रोजगार में लगा हुआ था, दुर्घटना के परिणामस्वरूप उसकी आय उपार्जन क्षमता में मामूली सी कमी होती है।

(2) स्थायी आंशिक अयोग्यता वह अयोग्यता या अंगहानि है जिसमें श्रमिक की सभी रोजगारों में आय उपार्जन क्षमता में कमी आ जाती है जिसमें वह दुर्घटना होने पर कार्य कर सकता था।