Kehar Singh v. State of Haryana (2013): निजी स्थान पर बोले गए अपमानजनक शब्द और SC-ST Act का दायरा
प्रस्तावना
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC-ST Act) का मुख्य उद्देश्य समाज में कमजोर वर्गों को जातिगत भेदभाव, उत्पीड़न और अपमान से संरक्षण प्रदान करना है। इस अधिनियम में जातिसूचक शब्दों या अपमानजनक आचरण को दंडनीय अपराध माना गया है, विशेषकर तब जब यह कार्य “सार्वजनिक दृष्टि” (public view) में किया जाए। इस अधिनियम की व्याख्या करते हुए न्यायालयों ने कई महत्त्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि किन परिस्थितियों में यह अपराध सिद्ध होगा और किन परिस्थितियों में नहीं।
इसी सन्दर्भ में Kehar Singh v. State of Haryana (2013) का निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह कहा कि यदि अपमानजनक या जातिसूचक शब्द घर के भीतर, निजी तौर पर कहे गए हों, तो वे SC-ST Act की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएंगे, क्योंकि इस अधिनियम की मूल भावना है कि अपमान या उत्पीड़न सार्वजनिक दृष्टि (public view) में होना चाहिए।
प्रकरण की संक्षिप्त पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता केहर सिंह पर आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता को जातिसूचक अपमानजनक शब्द कहे।
- यह घटना घर के भीतर हुई थी और इसका कोई स्वतंत्र प्रत्यक्षदर्शी (public witness) मौजूद नहीं था।
- शिकायतकर्ता ने इस आधार पर SC-ST Act के अंतर्गत कार्यवाही प्रारंभ करने की मांग की।
- ट्रायल कोर्ट ने मामला दर्ज करने की अनुमति दी, जिसके खिलाफ केहर सिंह ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्च न्यायालय में उठे प्रमुख प्रश्न
- क्या घर के भीतर, निजी तौर पर कहे गए जातिसूचक शब्द SC-ST Act के अंतर्गत अपराध माने जाएंगे?
- क्या “public view” की शर्त केवल सार्वजनिक स्थान (public place) तक सीमित है या घर में भी लागू हो सकती है?
- क्या शिकायतकर्ता के कथन मात्र से अपराध सिद्ध हो जाता है या स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति आवश्यक है?
न्यायालय की दलीलें और विवेचना
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आधारों पर निर्णय दिया—
- “Public View” की अनिवार्यता
- अधिनियम की धारा 3(1)(x) (अब संशोधित होकर धारा 3(1)(r)) के अनुसार, अपराध तभी सिद्ध होगा जब जातिसूचक शब्द या अपमान “public view” में किया गया हो।
- इसका अर्थ केवल सार्वजनिक स्थान (public place) नहीं है, बल्कि ऐसी स्थिति जहां अन्य लोग मौजूद हों और प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।
- निजी स्थान और सार्वजनिक दृष्टि में अंतर
- यदि कोई अपमानजनक शब्द केवल घर के अंदर निजी तौर पर, बिना किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति के कहे जाते हैं, तो यह अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
- न्यायालय ने कहा कि कानून का उद्देश्य व्यक्तिगत झगड़ों को इस अधिनियम के दायरे में लाना नहीं है, बल्कि समाज में अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के लोगों को सार्वजनिक रूप से होने वाले जातिगत अपमान से बचाना है।
- गवाह की भूमिका
- शिकायतकर्ता के कथन अकेले पर्याप्त नहीं माने जाएंगे जब तक कि यह साबित न हो कि घटना सार्वजनिक दृष्टि में घटी।
- अदालत ने कहा कि यदि “public view” नहीं है तो अधिनियम लागू नहीं होगा, भले ही शिकायतकर्ता को व्यक्तिगत अपमान महसूस हुआ हो।
निर्णय (Judgment)
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि—
- घर के भीतर, निजी तौर पर कहे गए अपमानजनक शब्द SC-ST Act की धारा 3(1)(x) (अब 3(1)(r)) के तहत अपराध नहीं हैं।
- इस अधिनियम का दायरा केवल उसी स्थिति में लागू होगा, जब अपमानजनक शब्द या आचरण सार्वजनिक दृष्टि (public view) में हों।
- अतः केहर सिंह के खिलाफ SC-ST Act के अंतर्गत कार्यवाही उचित नहीं थी और आरोप से उन्हें राहत दी गई।
कानूनी महत्व (Legal Significance)
- Public View की परिभाषा स्पष्ट की – इस केस ने यह स्पष्ट कर दिया कि “public view” का मतलब केवल “public place” नहीं है, बल्कि किसी भी ऐसी स्थिति से है जहां अन्य लोग प्रत्यक्षदर्शी हों।
- निजी विवाद और SC-ST Act का दुरुपयोग रोकना – यह निर्णय इस बात पर भी जोर देता है कि अधिनियम का उपयोग व्यक्तिगत या निजी झगड़ों में हथियार की तरह नहीं किया जा सकता।
- समान मामलों पर प्रभाव – इस निर्णय का हवाला आगे के कई मामलों में दिया गया, जैसे Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) और Swaran Singh v. State (2008), जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी सिद्धांत की पुष्टि की।
आलोचनात्मक विश्लेषण
- सकारात्मक पक्ष
- यह निर्णय अधिनियम के उद्देश्य और वास्तविक दायरे की रक्षा करता है।
- न्यायालय ने दुरुपयोग की संभावना को कम करने का प्रयास किया।
- इससे यह सुनिश्चित हुआ कि अधिनियम केवल सार्वजनिक अपमान और उत्पीड़न पर केंद्रित रहे।
- नकारात्मक पक्ष
- आलोचक यह तर्क देते हैं कि कभी-कभी घर के भीतर हुआ अपमान भी पीड़ित के आत्मसम्मान को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
- यदि केवल सार्वजनिक दृष्टि की शर्त रखी जाए, तो कई वास्तविक उत्पीड़न के मामले अधिनियम के दायरे से बाहर हो सकते हैं।
निष्कर्ष
Kehar Singh v. State of Haryana (2013) का निर्णय SC-ST Act की व्याख्या के दृष्टिकोण से एक मील का पत्थर माना जाता है। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल घर के भीतर, निजी तौर पर कहे गए जातिसूचक शब्द इस अधिनियम के तहत अपराध नहीं होंगे, क्योंकि अधिनियम का उद्देश्य केवल सार्वजनिक दृष्टि में होने वाले अपमान और उत्पीड़न को रोकना है।
यह निर्णय न्यायालय की उस संतुलनकारी भूमिका को भी दर्शाता है, जिसमें एक ओर अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के अधिकारों की रक्षा की जाती है और दूसरी ओर इस अधिनियम के दुरुपयोग की संभावनाओं को सीमित किया जाता है।
Kehar Singh v. State of Haryana (2013) – प्रश्नोत्तर (Q&A फॉर्मेट, परीक्षा उपयोगी)
प्रश्न 1. Kehar Singh v. State of Haryana (2013) का मूल विवाद क्या था?
उत्तर: इस मामले में आरोप था कि आरोपी (केहर सिंह) ने शिकायतकर्ता को जातिसूचक अपमानजनक शब्द कहे, लेकिन यह घटना घर के भीतर, निजी तौर पर हुई थी। प्रश्न यह था कि क्या ऐसे निजी स्थान पर कहे गए शब्द SC-ST Act की धारा 3(1)(x) के अंतर्गत अपराध माने जाएंगे?
प्रश्न 2. इस मामले में प्रमुख कानूनी प्रश्न कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- क्या घर के भीतर निजी तौर पर कहे गए जातिसूचक शब्द SC-ST Act के अंतर्गत अपराध होंगे?
- “Public view” की परिभाषा क्या है?
- क्या केवल शिकायतकर्ता का कथन पर्याप्त है या अन्य गवाह आवश्यक हैं?
प्रश्न 3. SC-ST Act की धारा 3(1)(x) (अब 3(1)(r)) क्या प्रावधान करती है?
उत्तर: धारा 3(1)(x) (अब 3(1)(r)) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य का सार्वजनिक दृष्टि (public view) में जातिसूचक शब्दों द्वारा अपमान करता है, तो वह दंडनीय अपराध होगा।
प्रश्न 4. ‘Public View’ का अर्थ न्यायालय ने कैसे स्पष्ट किया?
उत्तर: न्यायालय ने कहा कि “public view” का मतलब केवल “public place” नहीं है, बल्कि ऐसी स्थिति है जहां अन्य लोग मौजूद हों और प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।
प्रश्न 5. न्यायालय ने निजी स्थान और सार्वजनिक दृष्टि में क्या अंतर बताया?
उत्तर:
- निजी स्थान: घर या बंद कमरे में केवल पक्षकारों के बीच कहा गया अपमान, जिसमें कोई अन्य व्यक्ति मौजूद न हो।
- सार्वजनिक दृष्टि: ऐसी स्थिति जिसमें घटना अन्य लोगों की उपस्थिति में हो और वे प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।
प्रश्न 6. न्यायालय ने गवाह की भूमिका पर क्या कहा?
उत्तर: न्यायालय ने कहा कि केवल शिकायतकर्ता का कथन पर्याप्त नहीं है। यह साबित करना आवश्यक है कि घटना सार्वजनिक दृष्टि में घटी और स्वतंत्र गवाह मौजूद थे।
प्रश्न 7. उच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय क्या था?
उत्तर: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि घर के भीतर निजी तौर पर कहे गए जातिसूचक शब्द SC-ST Act के अंतर्गत अपराध नहीं हैं, क्योंकि यह “public view” में नहीं हुआ। अतः केहर सिंह को अधिनियम के तहत राहत दी गई।
प्रश्न 8. इस निर्णय का कानूनी महत्व क्या है?
उत्तर:
- “Public view” की परिभाषा स्पष्ट की।
- निजी विवादों में SC-ST Act के दुरुपयोग की संभावना को कम किया।
- आगे के कई मामलों जैसे Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) में इस सिद्धांत को दोहराया गया।
प्रश्न 9. इस निर्णय की आलोचना किन आधारों पर की गई?
उत्तर:
- आलोचकों के अनुसार, कभी-कभी घर के भीतर हुआ अपमान भी पीड़ित के आत्मसम्मान को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
- “Public view” की सख्त शर्त लगाने से कई वास्तविक उत्पीड़न के मामले अधिनियम के दायरे से बाहर हो सकते हैं।
प्रश्न 10. संक्षेप में इस केस का निष्कर्ष लिखिए।
उत्तर: Kehar Singh v. State of Haryana (2013) में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल घर के भीतर निजी तौर पर कहे गए जातिसूचक शब्द SC-ST Act के अंतर्गत अपराध नहीं होंगे। यह अधिनियम केवल उसी स्थिति में लागू होगा जब अपमानजनक शब्द या आचरण सार्वजनिक दृष्टि में हो।
📘 1. Kehar Singh v. State of Haryana (2013) – Q&A
(यह मैंने पहले दिया था, यहाँ संक्षेप में दोहरा रहा हूँ)
प्रश्न 1. केस का मूल विवाद क्या था?
👉 घर के भीतर जातिसूचक शब्द कहे गए, प्रश्न था कि क्या यह SC-ST Act के तहत अपराध है।
प्रश्न 2. कानूनी प्रश्न कौन से थे?
👉 (i) निजी स्थान पर अपमान अपराध है या नहीं? (ii) “public view” का अर्थ क्या है?
प्रश्न 3. SC-ST Act धारा 3(1)(x) क्या कहती है?
👉 सार्वजनिक दृष्टि में जातिसूचक अपमान अपराध है।
प्रश्न 4. “Public view” का अर्थ क्या बताया गया?
👉 केवल “public place” नहीं, बल्कि ऐसी स्थिति जहाँ अन्य लोग मौजूद हों।
प्रश्न 5. निजी स्थान और सार्वजनिक दृष्टि में अंतर?
👉 घर में अकेले बोला गया अपमान अपराध नहीं, लेकिन गवाहों की मौजूदगी में अपराध है।
प्रश्न 6. गवाह की भूमिका क्या रही?
👉 स्वतंत्र गवाह आवश्यक, केवल शिकायतकर्ता का कथन पर्याप्त नहीं।
प्रश्न 7. अदालत का निर्णय क्या था?
👉 निजी तौर पर कहे गए शब्द अपराध नहीं।
प्रश्न 8. कानूनी महत्व क्या है?
👉 “public view” की शर्त स्पष्ट की।
प्रश्न 9. आलोचना किन आधारों पर?
👉 निजी अपमान भी गंभीर हो सकता है, पर कानून से बाहर रह जाता है।
प्रश्न 10. निष्कर्ष?
👉 केवल “public view” में हुआ अपमान ही अपराध है।
📘 2. Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) – Q&A
प्रश्न 1. इस केस की पृष्ठभूमि क्या थी?
👉 भूमि विवाद के दौरान शिकायतकर्ता को जातिसूचक शब्द कहे गए। घटना निजी जगह पर हुई।
प्रश्न 2. प्रमुख प्रश्न क्या था?
👉 क्या निजी विवाद में कहे गए अपमानजनक शब्द SC-ST Act के तहत अपराध माने जाएंगे?
प्रश्न 3. शिकायतकर्ता ने क्या आरोप लगाया?
👉 आरोपी ने भूमि विवाद के दौरान जातिसूचक शब्द कहकर अपमान किया।
प्रश्न 4. ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट का क्या दृष्टिकोण था?
👉 दोनों ने अपराध मानकर कार्यवाही जारी रखी।
प्रश्न 5. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य तर्क क्या दिया गया?
👉 यह निजी विवाद था, इसमें जातिगत आधार पर अपमान नहीं हुआ।
प्रश्न 6. सुप्रीम कोर्ट ने “public view” के बारे में क्या कहा?
👉 यदि जातिसूचक शब्द निजी स्थान पर बोले जाएँ और कोई स्वतंत्र व्यक्ति मौजूद न हो, तो यह अधिनियम लागू नहीं होगा।
प्रश्न 7. भूमि विवाद और जातिगत अपमान के बीच अदालत ने क्या भेद बताया?
👉 यदि विवाद केवल संपत्ति/निजी झगड़े का है, तो SC-ST Act लागू नहीं होता, जब तक कि जातिगत भेदभाव का स्पष्ट उद्देश्य न हो।
प्रश्न 8. अंतिम निर्णय क्या रहा?
👉 सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही रद्द की, कहा कि यह निजी विवाद था और “public view” नहीं था।
प्रश्न 9. इस निर्णय का महत्व क्या है?
👉 इसने स्पष्ट किया कि केवल निजी विवाद में जातिसूचक शब्द बोलना अधिनियम के अंतर्गत अपराध नहीं है।
प्रश्न 10. निष्कर्ष?
👉 SC-ST Act का प्रयोग केवल तब होगा जब अपमान जातिगत कारण से और “public view” में हुआ हो।
📘 3. Swaran Singh v. State (2008) – Q&A
प्रश्न 1. इस केस की पृष्ठभूमि क्या थी?
👉 आरोप था कि शिकायतकर्ता को जातिसूचक शब्द कहकर अपमानित किया गया।
प्रश्न 2. कानूनी प्रश्न क्या था?
👉 क्या “public view” का अर्थ केवल “public place” तक सीमित है?
प्रश्न 3. ट्रायल कोर्ट ने क्या कहा?
👉 अपमानजनक शब्द कहे गए, इसलिए अपराध बनता है।
प्रश्न 4. सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रश्न कैसे रखा गया?
👉 “public view” की व्याख्या करने की आवश्यकता पड़ी।
प्रश्न 5. “Public place” और “public view” में क्या अंतर बताया गया?
👉 “Public place” का अर्थ है कोई भी सार्वजनिक जगह, जबकि “public view” का अर्थ है ऐसी स्थिति जहाँ अन्य लोग प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।
प्रश्न 6. अदालत ने क्या स्पष्ट किया?
👉 यदि घटना केवल घर के अंदर और निजी तौर पर होती है, तो यह अधिनियम लागू नहीं होगा।
प्रश्न 7. निर्णय का मुख्य आधार क्या था?
👉 कानून का उद्देश्य केवल समाज में जातिगत अपमान को रोकना है, न कि निजी झगड़ों को अधिनियम के तहत लाना।
प्रश्न 8. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या था?
👉 घटना “public view” में नहीं थी, इसलिए SC-ST Act लागू नहीं होगा।
प्रश्न 9. इस केस का महत्व क्या है?
👉 इसने “public view” शब्द की पहली बार विस्तृत व्याख्या की, जिसे आगे के मामलों में उद्धृत किया गया।
प्रश्न 10. निष्कर्ष?
👉 SC-ST Act तभी लागू होगा जब जातिसूचक अपमान “public view” में हो, केवल निजी स्थान में नहीं।