Juvenile Justice Act (किशोर न्याय अधिनियम, 2015) Short Answer
प्रश्न 1. किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का उद्देश्य क्या है?
किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का मुख्य उद्देश्य उन बच्चों की सुरक्षा, पुनर्वास और सामाजिक पुनर्स्थापन सुनिश्चित करना है जो अपराध में शामिल हैं या जिन्हें देखभाल की आवश्यकता है। यह अधिनियम इस विचार पर आधारित है कि बच्चा स्वभावतः सुधार योग्य होता है और उसे दंड नहीं बल्कि मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार की क्रूर सज़ा न दी जाए, बल्कि उन्हें सुधार गृहों, शिक्षा और परामर्श के माध्यम से समाज में पुनः स्थापित किया जाए। इसके अलावा, यह कानून गोद लेने, देखभाल और संरक्षण की व्यवस्थाओं को भी विधिक मान्यता देता है।
प्रश्न 2. ‘कानून से टकराव में आए बच्चे’ (Child in Conflict with Law) से क्या तात्पर्य है?
‘कानून से टकराव में आया बच्चा’ वह होता है जो 18 वर्ष से कम आयु का है और जिस पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है या उसने कोई अपराध किया है। ऐसे बच्चों के लिए विशेष रूप से किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) की स्थापना की गई है, जो न केवल अपराध की जांच करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि बच्चे के साथ मानवीय व्यवहार हो। अधिनियम के अनुसार, बच्चे के मामले की सुनवाई बाल-मित्र वातावरण में होनी चाहिए और उसे अपने पक्ष में वकील की सहायता मिलनी चाहिए। इस प्रकार, कानून का उद्देश्य उसे सुधारना है, न कि दंडित करना।
प्रश्न 3. ‘देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे’ (Child in Need of Care and Protection) कौन होते हैं?
ऐसे बच्चे जो अपने माता-पिता या परिवार के संरक्षण से वंचित हैं, सड़क पर जीवन जीते हैं, या जिनका शारीरिक या मानसिक शोषण हुआ है, उन्हें ‘देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे’ कहा जाता है। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(14) में इनकी परिभाषा दी गई है। ऐसे बच्चों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) की स्थापना की गई है। समिति का कर्तव्य होता है कि बच्चे को उचित देखभाल, शिक्षा और पुनर्वास गृह उपलब्ध कराया जाए ताकि वह सम्मानपूर्वक जीवन जी सके।
प्रश्न 4. किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) की भूमिका क्या है?
किशोर न्याय बोर्ड (JJB) का गठन धारा 4 के अंतर्गत किया गया है, जिसमें एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दो सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं, जिनमें से एक महिला होनी चाहिए। यह बोर्ड उन मामलों की सुनवाई करता है जहाँ बच्चे पर अपराध का आरोप हो। बोर्ड का कार्य केवल अपराध की जांच करना नहीं, बल्कि बच्चे के मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक और सामाजिक पहलुओं को समझकर उचित सुधारात्मक कदम उठाना भी है। बोर्ड यह निर्णय करता है कि क्या बच्चे का ट्रायल वयस्क की तरह होना चाहिए या नहीं। इसका उद्देश्य दंड नहीं, बल्कि पुनर्वास है।
प्रश्न 5. बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) के कार्य क्या हैं?
बाल कल्याण समिति (CWC) का गठन धारा 27 के अंतर्गत किया गया है। इसका कार्य उन बच्चों की देखभाल और संरक्षण करना है जो अनाथ हैं, परित्यक्त हैं या शोषण के शिकार हैं। समिति बच्चे की स्थिति का मूल्यांकन करती है और उसके लिए पुनर्वास की व्यवस्था करती है जैसे कि पालक देखभाल, गोद लेना, या सुधार गृह में भेजना। समिति यह सुनिश्चित करती है कि बच्चे को शिक्षा, चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता प्राप्त हो। इसके निर्णय न्यायिक शक्ति रखते हैं और यह बच्चों के कल्याण के लिए सर्वोच्च संस्था है।
प्रश्न 6. धारा 15 के अंतर्गत 16 से 18 वर्ष के किशोरों के साथ क्या प्रावधान हैं?
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, यदि 16 से 18 वर्ष के किसी किशोर पर जघन्य अपराध (Heinous Offence) का आरोप है, तो किशोर न्याय बोर्ड यह जांच करता है कि क्या वह बच्चा वयस्क की तरह मुकदमे का सामना करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम है। यदि बोर्ड को लगता है कि वह अपराध की प्रकृति समझने में सक्षम है, तो उसे सत्र न्यायालय में वयस्क के रूप में ट्रायल के लिए भेजा जा सकता है। यह प्रावधान निर्भया कांड के बाद आया था ताकि गंभीर अपराधों में न्याय सुनिश्चित हो सके।
प्रश्न 7. बच्चों की गोपनीयता (Privacy) की सुरक्षा कैसे की गई है?
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 74 के अनुसार, किसी भी बच्चे की पहचान को सार्वजनिक करना निषिद्ध है। इसका अर्थ है कि बच्चे का नाम, पता, फोटो या कोई भी विवरण मीडिया, सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम में प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इस प्रावधान का उद्देश्य बच्चे को सामाजिक कलंक से बचाना और उसके पुनर्वास में सहायता करना है। यदि कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। न्यायालयों ने भी कई बार कहा है कि बच्चे की गोपनीयता उसकी सुरक्षा से जुड़ी है।
प्रश्न 8. पुनर्वास (Rehabilitation) का क्या महत्व है?
किशोर न्याय अधिनियम में पुनर्वास को सबसे प्रमुख स्थान दिया गया है। इसका उद्देश्य बच्चे को अपराध की दुनिया से निकालकर समाज में पुनः स्थापित करना है। इसके लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और मनोवैज्ञानिक सहायता दी जाती है। पुनर्वास गृहों में बच्चों को ऐसा वातावरण प्रदान किया जाता है जिससे उनमें आत्मविश्वास और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास हो सके। यह सिद्धांत अधिनियम का हृदय है क्योंकि इसका उद्देश्य दंड नहीं बल्कि सुधार है।
प्रश्न 9. हाल का एक महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय बताइए।
Shilpa Mittal v. State (NCT of Delhi) (2020) एक महत्वपूर्ण निर्णय है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल वही अपराध “जघन्य अपराध” कहलाएंगे जिनकी न्यूनतम सज़ा सात वर्ष या उससे अधिक है। इससे पहले कई मामलों में कम सज़ा वाले अपराधों को भी जघन्य श्रेणी में रख दिया जाता था। यह फैसला किशोरों के हित में था क्योंकि इससे यह सुनिश्चित हुआ कि किसी बच्चे को केवल गंभीर अपराधों के लिए ही वयस्क की तरह ट्रायल दिया जा सके।
प्रश्न 10. किशोर न्याय अधिनियम के कार्यान्वयन में क्या प्रमुख चुनौतियाँ हैं?
किशोर न्याय अधिनियम के क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी समस्या है सुधार गृहों और बाल कल्याण समितियों में संसाधनों की कमी। कई जगह पर्याप्त प्रशिक्षित अधिकारी नहीं हैं। बच्चों को उचित परामर्श, शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएँ नहीं मिल पातीं। समाज में अपराधी बच्चों को पुनः स्वीकार करने की मानसिकता भी कमजोर है। इसके अतिरिक्त, कानून के प्रति जागरूकता का अभाव और आर्थिक असमानता भी एक बड़ी समस्या है। इन चुनौतियों को दूर किए बिना अधिनियम का वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।
प्रश्न 11. किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और 2000 के अधिनियम में क्या अंतर है?
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 और 2015 में सबसे बड़ा अंतर “16 से 18 वर्ष” के किशोरों के प्रति दृष्टिकोण में है। 2000 के अधिनियम के तहत सभी 18 वर्ष से कम बच्चे समान रूप से संरक्षित थे, जबकि 2015 अधिनियम में गंभीर अपराध करने वाले 16–18 वर्ष के किशोरों को वयस्क की तरह ट्रायल देने की अनुमति दी गई। इसके अलावा, 2015 अधिनियम में गोद लेने (Adoption) की प्रक्रिया को यूनिफॉर्म बनाया गया और बाल कल्याण समितियों को अधिक अधिकार दिए गए। यह अधिनियम अधिक व्यावहारिक और न्यायिक दृष्टि से सशक्त माना जाता है।
प्रश्न 12. किशोर न्याय अधिनियम में गोद लेने (Adoption) के प्रावधान क्या हैं?
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत गोद लेने की प्रक्रिया को कानूनी रूप से स्पष्ट किया गया है। अधिनियम के अध्याय VIII में यह प्रावधान है कि कोई भी भारतीय या विदेशी नागरिक कुछ शर्तों के तहत बच्चे को गोद ले सकता है। केंद्रीय गोद लेना संसाधन प्राधिकरण (CARA) इस प्रक्रिया की निगरानी करता है। गोद लेने के बाद बच्चे को वही अधिकार मिलते हैं जो जैविक बच्चे को मिलते हैं। अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे का सर्वोत्तम हित (Best Interest of the Child) हर निर्णय में सर्वोपरि रहे।
प्रश्न 13. “जघन्य अपराध” (Heinous Offence) का क्या अर्थ है?
धारा 2(33) के अनुसार, वह अपराध जिसमें न्यूनतम सज़ा सात वर्ष या उससे अधिक हो, उसे “जघन्य अपराध” कहा जाता है। उदाहरण के लिए – हत्या, बलात्कार, आतंकवाद से जुड़े अपराध आदि। यदि 16 से 18 वर्ष का किशोर ऐसा अपराध करता है, तो किशोर न्याय बोर्ड यह जांच करता है कि क्या उसे वयस्क के समान ट्रायल मिलना चाहिए। यह प्रावधान इसलिए जोड़ा गया ताकि गंभीर अपराधों में न्याय सुनिश्चित हो, साथ ही कम गंभीर अपराधों के लिए बच्चे को सुधार का अवसर दिया जा सके।
प्रश्न 14. सुधार गृह (Observation Home) की क्या भूमिका है?
सुधार गृह या Observation Home वे संस्थान हैं जहाँ अपराध के आरोप में पकड़े गए किशोरों को रखा जाता है जब तक कि उनका मामला किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित है। यहाँ बच्चों को शिक्षा, परामर्श, चिकित्सा और मनोरंजन जैसी सुविधाएँ दी जाती हैं। उद्देश्य है कि वे अपराधबोध से मुक्त होकर सुधार की दिशा में अग्रसर हों। सुधार गृहों में प्रशिक्षित अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता रहते हैं जो बच्चों की मानसिक स्थिति का आकलन करते हैं। यह अधिनियम का सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रश्न 15. धारा 21 के तहत बच्चों को मृत्युदंड क्यों नहीं दिया जा सकता?
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 21 स्पष्ट रूप से कहती है कि 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को मृत्युदंड या आजीवन कारावास नहीं दिया जा सकता। यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) से मेल खाता है। इसका उद्देश्य है कि बच्चे की गलती को सुधार के अवसर के रूप में देखा जाए, न कि प्रतिशोध के रूप में। यह धारणा संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) के अनुरूप है, जिसमें कहा गया है कि बच्चों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाए।
प्रश्न 16. ‘सर्वोत्तम हित के सिद्धांत’ (Principle of Best Interest) से आप क्या समझते हैं?
‘सर्वोत्तम हित का सिद्धांत’ (Best Interest Principle) किशोर न्याय अधिनियम की आत्मा है। इसका अर्थ है कि किसी भी निर्णय में बच्चे का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक हित सर्वोपरि होना चाहिए। चाहे मामला गोद लेने, पुनर्वास या ट्रायल से जुड़ा हो, निर्णय बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखकर ही लिया जाना चाहिए। न्यायालयों ने कई बार यह कहा है कि बच्चे के अधिकार किसी भी अन्य कानूनी प्रक्रिया से ऊपर हैं। यह सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते से प्रेरित है।
प्रश्न 17. किशोर न्याय बोर्ड द्वारा की जाने वाली जांच की प्रक्रिया क्या है?
किशोर न्याय बोर्ड किसी भी अपराध के मामले में यह निर्धारित करने के लिए जांच करता है कि आरोपी सच में 18 वर्ष से कम आयु का है या नहीं। इसके लिए जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल रिकॉर्ड या मेडिकल रिपोर्ट को प्राथमिक साक्ष्य माना जाता है। यदि बच्चा अपराध स्वीकार करता है, तो बोर्ड उसके सुधारात्मक पुनर्वास के उपाय तय करता है। यदि अपराध गंभीर है, तो धारा 15 के तहत बच्चे की मानसिक और शारीरिक परिपक्वता का मूल्यांकन किया जाता है। बोर्ड का उद्देश्य बच्चे को उचित सुधारात्मक वातावरण देना होता है।
प्रश्न 18. मीडिया द्वारा किशोर अपराधों की रिपोर्टिंग पर क्या प्रतिबंध हैं?
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 74 यह निर्धारित करती है कि किसी भी बच्चे की पहचान मीडिया में उजागर नहीं की जा सकती। नाम, फोटो, स्कूल या घर का पता प्रकाशित करना अपराध है। इस प्रावधान का उद्देश्य बच्चे की गोपनीयता और सम्मान की रक्षा करना है ताकि उसका पुनर्वास संभव हो सके। यदि कोई मीडिया संस्थान इसका उल्लंघन करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई निर्णयों में इस बात पर जोर दिया है कि बच्चों से जुड़ी रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता आवश्यक है।
प्रश्न 19. हाल में न्यायालयों ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए क्या दिशा-निर्देश दिए हैं?
हाल के वर्षों में कई उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त दिशा-निर्देश दिए हैं। उदाहरण के लिए, Delhi High Court (2024) ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक बच्चे को कानूनी सहायता, परामर्श और मनोवैज्ञानिक सहयोग मिले। वहीं Bombay High Court (2023) ने कहा कि 17 वर्षीय आरोपी को वयस्क की तरह ट्रायल देने से पहले उसकी मानसिक परिपक्वता का आकलन विशेषज्ञों द्वारा किया जाए। इन निर्णयों ने अधिनियम की भावना को और मजबूत किया है।
प्रश्न 20. किशोर न्याय अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए क्या उपाय आवश्यक हैं?
किशोर न्याय अधिनियम के सफल कार्यान्वयन के लिए कई सुधारात्मक कदम आवश्यक हैं। सबसे पहले, सुधार गृहों में शिक्षा और कौशल विकास की सुविधाएँ बढ़ाई जानी चाहिए। दूसरा, किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों के सदस्यों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे संवेदनशीलता के साथ कार्य करें। तीसरा, समाज में बच्चों के प्रति सहानुभूति और पुनर्वास की भावना विकसित की जाए। साथ ही, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के बीच समन्वय बढ़ाकर बच्चों के अधिकारों को वास्तविक रूप से लागू किया जा सकता है।