Justice K.S. Puttaswamy (Retd.) v. Union of India (2017): नागरिक की निजता मौलिक अधिकार
भूमिका
भारत के संविधान में निजता का अधिकार (Right to Privacy) कई वर्षों तक प्रत्यक्ष रूप से किसी अनुच्छेद में दर्ज नहीं था। हालांकि, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और स्वायत्तता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण मिला हुआ था।
आधुनिक डिजिटल युग में, जब सरकारें और निजी कंपनियां नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा तक पहुंचने और उसका उपयोग करने लगीं, तब निजता के अधिकार को स्पष्ट और मजबूत कानूनी आधार देने की आवश्यकता महसूस हुई।
Justice K.S. Puttaswamy (Retd.) v. Union of India (2017) का ऐतिहासिक निर्णय इस संदर्भ में भारत की न्यायिक प्रणाली का मील का पत्थर साबित हुआ। इसने यह स्थापित किया कि निजता एक मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत सुरक्षित है।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता: के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त न्यायाधीश)
- मुख्य विवाद: आधार योजना के तहत बायोमेट्रिक और व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करना, और इसे नागरिकों के लिए अनिवार्य बनाना।
- याचिकाकर्ता ने दलील दी कि आधार के तहत फिंगरप्रिंट, आईरिस स्कैन और व्यक्तिगत डेटा एकत्र करना नागरिक की निजता का उल्लंघन है।
- सरकार का तर्क था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है, और राज्य जनहित में डेटा एकत्र कर सकता है।
- यह विवाद धीरे-धीरे एक मौलिक संवैधानिक प्रश्न में बदल गया—क्या “निजता” भारत में मौलिक अधिकार है या नहीं?
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पुराने फैसले
निजता पर पहले के दो बड़े निर्णय—
- M.P. Sharma v. Satish Chandra (1954) – इसमें कहा गया कि निजता का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
- Kharak Singh v. State of UP (1962) – पुलिस निगरानी पर विचार करते हुए कहा गया कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है।
इन फैसलों ने वर्षों तक भारतीय कानून में निजता को सीमित रूप से मान्यता दी। पुट्टस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट को इन पुराने फैसलों की समीक्षा करनी थी।
मुख्य संवैधानिक प्रश्न
- क्या निजता संविधान द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकार है?
- यदि हाँ, तो यह किस अनुच्छेद के तहत आता है?
- क्या राज्य जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिक की निजता का असीमित उल्लंघन कर सकता है?
- डिजिटल डेटा और तकनीकी निगरानी के युग में निजता की सीमा क्या होगी?
पीठ का गठन
- न्यायालय: भारत का सर्वोच्च न्यायालय
- पीठ का आकार: 9 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ (Constitution Bench)
- मुख्य न्यायाधीश: जे.एस. खेहर
- अन्य सदस्य: जस्टिस जे. चेलमेश्वर, एस.ए. बोबडे, आर.के. अग्रवाल, आर.एफ. नरिमन, ए.एम. सपरे, डी.वाई. चंद्रचूड़, एस.के. कौल, एस. अब्दुल नज़ीर
सुप्रीम कोर्ट का फैसला (24 अगस्त 2017)
- निजता मौलिक अधिकार है
- सर्वसम्मति से 9-0 निर्णय दिया गया कि निजता भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकार है।
- यह अधिकार अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) से जुड़ा हुआ है।
- पुराने फैसले रद्द
- M.P. Sharma (1954) और Kharak Singh (1962) के उन हिस्सों को असंवैधानिक घोषित किया गया, जिनमें निजता के अधिकार से इंकार किया गया था।
- निजता के तीन पहलू
- शारीरिक निजता (Physical Privacy) – शरीर पर नियंत्रण, जबरन जांच, डीएनए सैंपल आदि से सुरक्षा।
- सूचनात्मक निजता (Informational Privacy) – व्यक्तिगत डेटा, मेडिकल रिकॉर्ड, वित्तीय जानकारी की सुरक्षा।
- निर्णयात्मक निजता (Decisional Privacy) – विवाह, यौन अभिविन्यास, प्रजनन अधिकार, जीवन शैली के चुनाव पर स्वतंत्रता।
- सीमाएं भी तय की गईं
- निजता पूर्णत: असीमित नहीं है।
- जनहित, राष्ट्रीय सुरक्षा, अपराध रोकथाम, और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए कानूनी प्रक्रिया द्वारा निजता पर सीमित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
फैसले का प्रभाव
- डेटा संरक्षण कानून की दिशा में कदम
- इस फैसले के बाद भारत में व्यापक डेटा प्रोटेक्शन कानून की मांग बढ़ी, जिससे 2023 में Digital Personal Data Protection Act अस्तित्व में आया।
- व्यक्तिगत अधिकारों का विस्तार
- यह फैसला LGBTQ+ अधिकार, प्रजनन अधिकार, और व्यक्तिगत जीवन के फैसलों में स्वतंत्रता की नींव बना।
- सरकारी निगरानी पर अंकुश
- राज्य एजेंसियों को निगरानी और डेटा संग्रह के लिए विधिक प्राधिकरण और उचित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य हो गया।
- डिजिटल युग में नागरिक सुरक्षा
- आधार, सीसीटीवी निगरानी, सोशल मीडिया डेटा मॉनिटरिंग जैसे मामलों में निजता के संरक्षण के लिए यह निर्णय मुख्य आधार बन गया।
आलोचनाएं और चुनौतियां
- कानून के लागू होने में देरी – फैसले के बावजूद, डेटा संरक्षण के ठोस प्रावधान लागू होने में समय लगा।
- जनता की जागरूकता की कमी – अधिकांश लोग अपने निजता अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ हैं।
- सरकारी निगरानी के खतरे – तकनीकी प्रगति के साथ राज्य की निगरानी क्षमता बढ़ रही है, जिससे निजता का हनन संभव है।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ
- यह फैसला US Supreme Court के Riley v. California और UK Human Rights Act के प्रावधानों से मेल खाता है।
- इसमें Universal Declaration of Human Rights (UDHR) और International Covenant on Civil and Political Rights (ICCPR) के अनुच्छेद 17 का हवाला दिया गया।
निष्कर्ष
Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India का निर्णय भारतीय संवैधानिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण में से एक है।
यह न केवल डिजिटल युग में नागरिकों की सूचना संबंधी सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि यह सिद्ध करता है कि राज्य की शक्ति सीमित है और व्यक्ति की गरिमा सर्वोपरि है।
यह फैसला याद दिलाता है कि लोकतंत्र में सरकार जनता की सेवक है, मालिक नहीं—और हर नागरिक का निजी जीवन सम्मान और संरक्षण का अधिकारी है।