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Joint Liability एवं Constructive Liability under IPC

Joint Liability एवं Constructive Liability under IPC

प्रस्तावना

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, 1860) का मूल सिद्धांत है कि अपराध व्यक्तिगत दायित्व (individual liability) पर आधारित होता है। अर्थात् सामान्यतः वही व्यक्ति अपराध के लिए उत्तरदायी होता है जो अपराध करता है। किंतु कई परिस्थितियों में ऐसा देखा गया है कि अपराध सामूहिक रूप से या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा मिलकर किया जाता है, अथवा अपराध करने में कई व्यक्तियों का परोक्ष सहयोग रहता है। ऐसी स्थिति में केवल प्रत्यक्ष अपराधी को दंडित करना पर्याप्त नहीं होता।
इसी कारण IPC ने Joint Liability (सामूहिक दायित्व) और Constructive Liability (निर्मित दायित्व) की अवधारणाएँ विकसित कीं। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह है कि अपराध के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी व्यक्तियों को उत्तरदायी ठहराया जा सके।


Joint Liability की अवधारणा

Joint Liability का अर्थ है – जब एक अपराध में कई व्यक्ति सम्मिलित हों और उन्होंने मिलकर अपराध किया हो, तो प्रत्येक व्यक्ति अपराध के लिए उतना ही उत्तरदायी होगा जितना कि वास्तविक अपराधी।
इस सिद्धांत का आधार यह है कि जब कई लोग अपराध करने के लिए एकजुट होते हैं तो उनके बीच साझा इरादा (common intention) या साझा उद्देश्य (common object) निहित होता है, और सभी को समान रूप से दंडित किया जाना चाहिए।


Constructive Liability की अवधारणा

Constructive Liability का अर्थ है – जब किसी अपराध को एक व्यक्ति करता है लेकिन कानून अन्य व्यक्तियों को भी उस अपराध के लिए उत्तरदायी मानता है क्योंकि वे उस अपराध में किसी प्रकार से सम्मिलित थे।
अर्थात् अपराध वास्तव में “निर्मित रूप से” अन्य व्यक्तियों पर आरोपित किया जाता है, भले ही उन्होंने प्रत्यक्ष कार्यवाही न की हो।


IPC में Joint और Constructive Liability के प्रावधान

भारतीय दंड संहिता में Joint एवं Constructive Liability से संबंधित कई धाराएँ हैं।

1. धारा 34 – Common Intention (साझा आशय)

धारा 34 IPC कहती है कि – “जब कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा साझा आशय (common intention) से किया जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति उस अपराध के लिए उतना ही उत्तरदायी होगा मानो उसने स्वयं वह कार्य किया हो।”

  • इस धारा का उद्देश्य यह है कि अपराध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित सभी व्यक्तियों को दंडित किया जाए।
  • यहाँ “common intention” आवश्यक तत्व है।
  • उदाहरण – यदि A, B और C मिलकर किसी व्यक्ति को मारने का निश्चय करते हैं और उनमें से केवल A ही प्रहार करता है जिससे मृत्यु हो जाती है, तब भी B और C धारा 34 के अंतर्गत हत्या के अपराध के लिए उत्तरदायी होंगे।

2. धारा 35 – Criminal Act done with Criminal Knowledge (अपराध ज्ञान के साथ किया गया कार्य)

यदि कोई कार्य कई व्यक्तियों द्वारा साझा आपराधिक ज्ञान (criminal knowledge) से किया जाता है, तो सभी समान रूप से उत्तरदायी होंगे।

  • यह प्रावधान तब लागू होता है जब अपराध की योजना न हो लेकिन अपराध करने का ज्ञान सभी को हो।

3. धारा 37 और 38 – सहयोग और सहभागिता

  • धारा 37 – जब अपराध घटित करने में कई लोग सम्मिलित हों, तो प्रत्येक को अपराध में भागीदार माना जाएगा।
  • धारा 38 – यदि किसी अपराध को कई व्यक्तियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों से किया गया हो, तब भी प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने इरादे से किए गए अपराध के लिए उत्तरदायी होगा।

4. धारा 120A और 120B – Criminal Conspiracy

यदि कई व्यक्ति किसी अपराध को करने के लिए सहमत होते हैं, तो यह आपराधिक षड्यंत्र (Criminal Conspiracy) कहलाता है। षड्यंत्र में प्रत्यक्ष अपराध न भी घटे, तो भी केवल सहमति ही दायित्व के लिए पर्याप्त है।


5. धारा 141 से 149 – Unlawful Assembly और Common Object

धारा 141 के अनुसार, यदि पाँच या अधिक व्यक्ति किसी अवैध उद्देश्य के लिए एकत्र हों तो यह “Unlawful Assembly” कहलाता है।
धारा 149 कहती है कि – “यदि किसी अपराध को किसी अवैध जमावड़े के सदस्य द्वारा सामान्य उद्देश्य (common object) को पूरा करने के लिए किया जाता है, तो उस जमावड़े का प्रत्येक सदस्य उस अपराध के लिए दोषी होगा।”

  • यह Constructive Liability का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
  • उदाहरण – यदि 10 लोग किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने के उद्देश्य से इकट्ठे होते हैं और उनमें से एक व्यक्ति उसकी हत्या कर देता है, तो सभी 10 व्यक्ति हत्या के अपराध के लिए दोषी होंगे।

6. धारा 396 – Dacoity with Murder

यदि डकैती (dacoity) के दौरान हत्या हो जाती है, तो उस डकैती में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति हत्या के लिए उत्तरदायी होगा, चाहे हत्या किसी एक ने ही क्यों न की हो।


न्यायालयीन व्याख्या एवं केस-लॉ

1. Mahbub Shah v. Emperor (1945, Privy Council)

न्यायालय ने कहा कि धारा 34 के तहत दायित्व तभी तय होगा जब “common intention” स्पष्ट रूप से सिद्ध हो। केवल उपस्थिति से दायित्व सिद्ध नहीं होगा।

2. Virendra Singh v. State of M.P. (2010)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि common intention पूर्व में भी बन सकती है और घटनास्थल पर भी उत्पन्न हो सकती है।

3. State of U.P. v. Dan Singh (1997)

यह निर्णय धारा 149 से संबंधित है। न्यायालय ने कहा कि अवैध जमावड़े के प्रत्येक सदस्य को अपराध के लिए उत्तरदायी माना जाएगा यदि अपराध जमावड़े के सामान्य उद्देश्य के अंतर्गत हुआ है।

4. Lalji v. State of U.P. (1989)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 149 के तहत व्यक्तिगत अपराधी की पहचान करना आवश्यक नहीं है; केवल सदस्यता ही दायित्व के लिए पर्याप्त है।

5. Mizaji v. State of U.P. (1959)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि common object को साबित करना अपेक्षाकृत आसान है; केवल जमावड़े की गतिविधियाँ और परिस्थितियाँ देखी जाती हैं।


Joint Liability और Constructive Liability में अंतर

आधार Joint Liability Constructive Liability
अर्थ कई व्यक्तियों द्वारा मिलकर अपराध करने पर सभी पर संयुक्त दायित्व। अपराध किसी एक व्यक्ति ने किया हो लेकिन कानूनन अन्य को भी दोषी माना जाए।
मुख्य तत्व Common Intention या Common Object। कानून द्वारा आरोपित दायित्व (deemed liability)।
प्रावधान धारा 34, 35, 37, 38। धारा 149, 396 आदि।
प्रमाण साझा इरादे या साझा ज्ञान को साबित करना आवश्यक। केवल सदस्यता या भागीदारी पर्याप्त।
उदाहरण तीन लोग योजना बनाकर चोरी करते हैं – सभी संयुक्त रूप से दोषी। डकैती में एक ने हत्या की – सभी दोषी (धारा 396)।

महत्व और व्यावहारिक उपयोगिता

  • न्याय की रक्षा – यदि केवल प्रत्यक्ष अपराधी को दंडित किया जाए और योजना बनाने या सहयोग करने वाले छूट जाएँ, तो न्याय अधूरा रहेगा।
  • अपराध नियंत्रण – सामूहिक अपराधों पर अंकुश लगाने में यह सिद्धांत अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • सामाजिक सुरक्षा – समाज में भय उत्पन्न होता है कि अपराध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग करने वाला भी दंड से बच नहीं पाएगा।

आलोचना

  • कभी-कभी केवल उपस्थिति के आधार पर लोगों को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं माना जाता।
  • Constructive Liability में व्यक्तिगत दोष (individual guilt) स्पष्ट नहीं होता, जिससे “सामूहिक दोषारोपण” की आशंका रहती है।
  • न्यायालयों ने बार-बार कहा है कि ऐसे मामलों में साक्ष्य और परिस्थितियों की गहन जाँच आवश्यक है।

निष्कर्ष

भारतीय दंड संहिता में Joint Liability और Constructive Liability अपराधियों को दंडित करने के शक्तिशाली साधन हैं। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि अपराध केवल प्रत्यक्ष अपराधी पर न रोका जाए, बल्कि उन सभी पर भी लागू हो जो अपराध की योजना, सहयोग, या अवैध जमावड़े का हिस्सा रहे हों। धारा 34 और धारा 149 इसके सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
हालाँकि इनके दुरुपयोग की आशंका रहती है, फिर भी न्यायालयों ने सटीक व्याख्या और कठोर मानदंडों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया है कि निर्दोष व्यक्तियों को दंडित न किया जाए।
इस प्रकार, IPC में Joint और Constructive Liability की अवधारणा अपराध-नियंत्रण और सामाजिक न्याय की दिशा में अत्यंत आवश्यक और प्रभावी सिद्धांत है।