IUML ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका:
स्थानीय निकाय चुनावों और BLO की मृत्यु का हवाला देते हुए SIR प्रक्रिया रोकने की मांग
भूमिका
केरल में जारी Special Investigation Report (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देते हुए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। पार्टी का आरोप है कि राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही यह प्रक्रिया राजनीतिक रूप से प्रेरित, जल्दबाज़ी में की गई और स्थानीय निकाय चुनावों के ऐन समय पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाली है। IUML ने यह भी कहा है कि हाल ही में एक Booth Level Officer (BLO) की ड्यूटी के दौरान हुई मृत्यु यह दर्शाती है कि प्रशासनिक तंत्र अनावश्यक दबाव में काम कर रहा है, जिससे मॉनिटरिंग और वेरिफिकेशन जैसी प्रक्रियाओं में गंभीर त्रुटियाँ संभावित हैं। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि चुनावी माहौल को देखते हुए SIR कार्यवाही को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।
यह लेख इस याचिका की पृष्ठभूमि, SIR प्रक्रिया के कानूनी और राजनीतिक आयाम, चुनावी कानूनों की प्रासंगिकता, प्रशासनिक दायित्वों और BLO की भूमिका तथा इस पूरी विवाद का व्यापक विश्लेषण करता है।
1. SIR प्रक्रिया क्या है? और विवाद क्यों?
केरल सरकार ने मतदाता सूची और संबंधित रिकॉर्ड की जांच के लिए Special Investigation Report (SIR) प्रक्रिया शुरू की है। सरकार का तर्क है कि मतदाता सूची में बड़े स्तर पर ‘डुप्लिकेट’ और ‘फर्जी’ नाम दर्ज हैं, जिनकी पहचान और हटाने के लिए विशेष सत्यापन आवश्यक है।
हालांकि, विपक्ष और IUML का आरोप है कि:
- यह प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है — चूंकि सत्तारूढ़ दल और प्रशासन का सीधा नियंत्रण है, इसलिए राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के वोट हटाए जाने की आशंका है।
- यह प्रक्रिया चुनावों के नजदीक शुरू की गई है — जिससे चुनाव आचार संहिता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
- SIR प्रक्रिया का कोई स्पष्ट कानूनी आधार नहीं — IUML का दावा है कि भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा निर्धारित मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है।
- मैदान में काम करने वाले BLO पर अत्यधिक दबाव बनाया गया — जिसके चलते एक BLO की दुखद मृत्यु हो गई, जिसे IUML प्रशासनिक विफलता का प्रत्यक्ष संकेत मानती है।
इन सब पहलुओं को आधार बनाकर IUML ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
2. IUML की याचिका का आधार और मुख्य तर्क
IUML की याचिका में निम्न प्रमुख दलीलें रखी गई हैं:
(A) स्थानीय निकाय चुनावों से पहले प्रक्रिया रुकनी चाहिए
IUML ने तर्क दिया है कि चुनावों से ठीक पहले मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ या संशोधन चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करता है। Representation of the People Act, 1950 के अनुसार मतदाता सूची में बदलाव “due procedure” के तहत ही किए जा सकते हैं।
चुनाव के समय मतदाता सत्यापन अभियानों को सीमित किया जाता है ताकि:
- किसी समुदाय विशेष को प्रभावित न किया जाए
- प्रशासनिक दुरुपयोग न हो
- चुनावी निष्पक्षता बनी रहे
IUML का कहना है कि सरकार की अचानक शुरू की गई SIR कवायद स्पष्ट रूप से इन सिद्धांतों के विपरीत है।
(B) BLO की मृत्यु प्रशासनिक अव्यवस्था का संकेत
याचिका में यह बताया गया है कि SIR के लिए व्यापक और जल्दबाज़ी में डाले गए कार्यभार के कारण BLO अत्यधिक तनाव में थे।
एक BLO की अचानक मृत्यु ने इस प्रक्रिया की मानवीय लागत को उजागर किया है।
IUML ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि:
- BLO को बिना प्रशिक्षण,
- बिना समय-सीमा के संतुलन,
- और बिना आवश्यक सहूलियतों के
काम पर लगाया गया, जो प्रशासनिक लापरवाही है।
उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि ऐसी परिस्थितियों में तैयार की गई रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय हो सकती है?
(C) राजनीतिक लाभ के लिए प्रक्रिया का दुरुपयोग
IUML ने SIR को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए दावा किया कि:
- यह विपक्ष के क्षेत्रों में अधिक केंद्रित है
- पार्टी समर्थकों के नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं
- कई स्थानों पर सत्यापन के दौरान नियमों का उल्लंघन किया गया
याचिका में यह भी कहा गया है कि सत्तारूढ़ दल अपने निर्वाचन लाभ के लिए प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल कर रहा है।
(D) चुनाव आयोग की अनुमति के बिना प्रक्रिया अवैध
मतदाता सूची और चुनाव से संबंधी किसी भी जांच, संशोधन या पुनरावलोकन के लिए ECI का निर्देश और अनुमति आवश्यक होती है।
IUML ने आरोप लगाया है कि:
- राज्य सरकार ने चुनाव आयोग के साथ उचित समन्वय नहीं किया
- कई BLO को सरकारी आदेश पर भेजा गया, न कि ECI के निर्देश पर
- यह चुनाव आयोग की शक्तियों में हस्तक्षेप है
सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत याचिका में यह दलील दी गई है कि ऐसी प्रक्रिया संवैधानिक ढांचे के विपरीत है।
3. BLO (Booth Level Officer) की भूमिका और दबाव
BLO चुनाव व्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। उनके कार्यों में—
- मतदाता सूची का सत्यापन
- फॉर्म जमा करना
- पते का क्रॉस-वेरिफिकेशन
- नए मतदाताओं का पंजीकरण
- मृत/स्थानांतरित मतदाताओं को सूची से हटाने की सिफारिश
शामिल है।
IUML का कहना है कि SIR प्रक्रिया में BLO को अत्यधिक दबाव में डाल दिया गया।
कुछ BLO ने कथित रूप से शिकायत की कि:
- उन्हें दैनिक लक्ष्य पूरे करने के लिए मजबूर किया गया
- उन्हें चेतावनी दी गई कि लक्ष्य पूरे न होने पर कार्रवाई की जाएगी
- सत्यापन के दौरान सुरक्षा और सहयोग का अभाव था
इन स्थितियों में एक BLO की मौत ने मुद्दे को और संवेदनशील बना दिया। IUML इसे ‘प्रशासनिक दबाव का परिणाम’ बता रहा है।
4. केरल सरकार का पक्ष — SIR क्यों आवश्यक?
हालांकि याचिका में सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया है, लेकिन सरकारी पक्ष का तर्क है कि:
- मतदाता सूचियों में अनेक विसंगतियाँ पाई गई थीं
- डुप्लिकेट और फर्जी वोट राज्य में निरंतर चुनावी विवादों का कारण बने हैं
- SIR प्रक्रिया लोकतांत्रिक शुचिता को मजबूत करने का प्रयास है
- किसी भी तरह की राजनीतिक मंशा का आरोप निराधार है
सरकार यह भी कहती है कि सत्यापन कार्य को सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा माना जाना चाहिए, न कि राजनीतिक कार्रवाई।
5. कानूनी विश्लेषण — क्या चुनावों के समय ऐसे अभियान रोके जा सकते हैं?
कई सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट निर्णय इस बात पर जोर देते हैं कि:
- मतदाता सूची के सुधार का कार्य निरंतर चलता रहता है
- लेकिन चुनावों के ठीक पहले व्यापक बदलाव या बड़े पैमाने पर हटाने-चुनने की कार्रवाई अनुचित मानी जाती है
- चुनाव आयोग की अनुमति और पर्यवेक्षण अनिवार्य है
महत्वपूर्ण प्रावधान:
- Article 324 — ECI की व्यापक चुनावी निगरानी शक्ति
- RPA 1950 — मतदाता सूची की तैयारी और संशोधन
- Model Code of Conduct (MCC) — चुनाव से पहले सरकारी कार्य सीमित
इन कानूनों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है यदि शासन द्वारा किसी प्रक्रिया से चुनावी निष्पक्षता प्रभावित होती हो।
6. क्या BLO की मृत्यु न्यायालय में महत्वपूर्ण तथ्य बन सकती है?
BLO की मृत्यु अपने आप में प्रशासनिक विफलता या दबाव का सबूत नहीं है, लेकिन यह दिखाता है कि:
- कार्य की परिस्थितियाँ असुरक्षित थीं
- कार्यभार असंतुलित था
- सरकारी आदेशों में मानवीय संवेदनशीलता की कमी थी
सुप्रीम कोर्ट अक्सर ऐसी परिस्थितियों में “procedural fairness” की जांच करता है।
यदि कोर्ट को लगे कि SIR प्रक्रिया BLO या जनता पर अनुचित भार डाल रही है, तो वह इस अभियान को रोक भी सकता है।
7. स्थानीय निकाय चुनाव पर संभावित प्रभाव
IUML का तर्क है कि यदि SIR प्रक्रिया जारी रही तो:
- कुछ समुदायों के वोट काटे जा सकते हैं
- राजनीतिक संतुलन प्रभावित हो सकता है
- चुनाव का परिणाम संदिग्ध हो सकता है
इतिहास में कई राज्य चुनावों में मतदाता सूची को लेकर विवाद हुए हैं, और सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप भी किया है।
इस केस में भी कोर्ट को चुनावी निष्पक्षता सुनिश्चित करनी होगी।
8. सुप्रीम कोर्ट का संभावित रुख
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में निम्न बातों पर ध्यान दे सकता है:
- क्या राज्य सरकार ने चुनाव आयोग से परामर्श किया?
- क्या SIR प्रक्रिया का समय चुनावी संवेदनशीलता को देखते हुए उचित है?
- क्या BLO की सुरक्षा, कार्य-परिस्थिति और प्रशिक्षण का सही इंतज़ाम है?
- क्या यह प्रक्रिया राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त है?
यदि कोर्ट को लगे कि चुनावी निष्पक्षता पर खतरा है, तो वह SIR प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगा सकता है।
9. निष्कर्ष
IUML द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका केरल की चुनावी राजनीति और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को एक नए विवाद में ला खड़ी करती है। SIR प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची में सुधार लाना बताया जा रहा है, परंतु विपक्ष इसे राजनीतिक हथकंडा मान रहा है। BLO की मृत्यु ने इस विवाद को और संवेदनशील बना दिया है, क्योंकि इससे प्रशासनिक दबाव और प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल SIR प्रक्रिया की वैधता तय करेगा, बल्कि चुनावी व्यवस्थाओं की निष्पक्षता और प्रशासनिक जिम्मेदारी के मानकों को भी एक बार फिर रेखांकित करेगा।
आने वाले दिनों में यह मामला केरल के राजनीतिक परिदृश्य के साथ-साथ भारत की चुनावी प्रणाली के लिए भी महत्वपूर्ण दिशा तय करेगा।